मंगलवार, 5 जुलाई 2011

क्लेषों का उद्देश्य

सूखे और पत्थरीले रेगिस्तानी इलाकों में पाई जाने वाली कुछ झाड़ीयों के बीज तब तक अंकुरित नहीं होते जब तक रगड़ खाकर उनके बाहरी खोल क्षतिग्रस्त नहीं हो जाते। जब झाड़ीयों में बीज बनता है तो उसपर एक कठोर खोल भी चढा होता है जो उनके अन्दर के अंकुरित होने की क्षमता और सामग्री की रक्षा करता है, लेकिन इस खोल के कारण पानी उनके अन्दर भी नहीं पहुंच पाता और वे सही परिस्थितयों के होने तक अंकुरित नहीं हो पाते। जब भारी बारिश से उन पत्थरीली ढालों पर पानी तेज़ी से बहता है, तो उस पानी के वेग से वे बीज भी कंकड़ों और पत्थरों से टकाराते और रगड़ खाते हुए पानी के प्रवाह के साथ लुड़कते चले जाते हैं और उनका कठोर बाहरी खोल क्षतिग्रस्त होता जाता है, जिससे पानी उनके अन्दर पहुँच पाता है। पानी के साथ बहते हुए ये बीज ऐसे स्थानों में मिट्टी में दब जाते हैं जहाँ पानी का कुछ ठहराव हो और भूमि की नमी कुछ समय बनी रहे। यहाँ पर इन अनुकूल परिस्थितित्यों में अब ये अंकुरित होकर जड़ पकड़ सकते हैं और आगे चलकर बीज बनाने वाले नए पौधे बन सकते हैं।

कभी कभी हम मसीही विश्वासी भी इन बीजों की तरह ही होते हैं। हमें भी जीवन के तेज़ प्रवाह द्वारा इधर उधर पटके जाने की आवश्यक्ता होती है जिससे परमेश्वर के वचन का जल हमारे अन्दर पहुँच सके और हम में मसीही चरित्र को अंकुरित कर सके। हम तब तक अपने विश्वास को गंभीरता से नहीं लेते जब तक कुछ उग्र हमारे साथ घटित नहीं हो जाता, जैसे, बीमारी और अस्पताल के बिस्तर पर बिताया कुछ समय, या अचानक आया कोई बड़ा खर्च, या परिवार में आई कोई गंभीर समस्या आदि। यद्यपि हमारा परमेश्वर पिता हमें अनावश्यक रूप से किसी दुख और संकट में जाने नहीं देना चाहता, लेकिन वह हमारे जीवन में ऐसी परिस्थितियाँ आने देता है जो हमारे अन्दर परमेश्वर के वचन रूपी जल को पहुँचने से रोकने वाली बातों को छीलकर हटाती रहें और हमें नम्र बनाए रखें। ऐसी परिस्थितियाँ अवश्य दुख देती हैं, लेकिन जब इनमें भी हम परमेश्वर की योजना को पहचान कर परमेश्वर के आगे नम्र और उसके आधीन हो जाते हैं तो यही परिस्थितियाँ हमारे आत्मिक जीवन की बढ़ोतरी का कारण भी बन जाती हैं।

चाहे हम बीज के रुप में एक स्थान पर सूखे और शिथिल पड़े रहना चाहते हों, लेकिन हमारा परमेश्वर पिता हमें फलवन्त वृक्ष देखना चाहता है, और इसलिए वह हम पर क्लेष भी आने देता है कि हम अंकुरित हों और उसकी महिमा के लिए फल लाएं। - मार्ट डी हॉन


कठिनाईयों से निकले बिना कुछ प्राप्त नहीं होता।

हे मेरे पुत्र, यहोवा की शिक्षा से मुंह न मोड़ना, और जब वह तुझे डांटे, तब तू बुरा न मानना, क्योंकि यहोवा जिस से प्रेम रखता है उसको डांटता है, जैसे कि बाप उस बेटे को जिसे वह अधिक चाहता है। - नीतिवचन ३:११, १२


बाइबल पाठ: इब्रानियों १२:१-१२

Heb 12:1 इस कारण जब कि गवाहों का ऐसा बड़ा बादल हम को घेरे हुए है, तो आओ, हर एक रोकने वाली वस्‍तु, और उलझाने वाले पाप को दूर कर के, वह दौड़ जिस में हमें दौड़ना है, धीरज से दौड़ें।
Heb 12:2 और विश्वास के कर्ता और सिद्ध करने वाले यीशु की ओर से ताकते रहें, जिस ने उस आनन्‍द के लिये जो उसके आगे धरा था, लज्ज़ा की कुछ चिन्‍ता न करके, क्रूस का दुख सहा और सिंहासन पर परमेश्वर के दाहिने जा बैठा।
Heb 12:3 इसलिये उस पर ध्यान करो, जिस ने अपने विरोध में पापियों का इतना वाद-विवाद सह लिया कि तुम निराश हो कर हियाव न छोड़ दो।
Heb 12:4 तुम ने पाप से लड़ते हुए उस से ऐसी मुठभेड़ नहीं की, कि तुम्हारा लोहू बहा हो।
Heb 12:5 और तुम उस उपदेश को जो तुम को पुत्रों की नाई दिया जाता है, भूल गए हो, कि हे मेरे पुत्र, प्रभु की ताड़ना को हलकी बात न जान, और जब वह तुझे घुड़के तो हियाव न छोड़।
Heb 12:6 क्‍योंकि प्रभु, जिस से प्रेम करता है, उस की ताड़ना भी करता है और जिसे पुत्र बना लेता है, उस को कोड़े भी लगाता है।
Heb 12:7 तुम दुख को ताड़ना समझ कर सह लो: परमेश्वर तुम्हें पुत्र जान कर तुम्हारे साथ बर्ताव करता है, वह कौन सा पुत्र है, जिस की ताड़ना पिता नहीं करता?
Heb 12:8 यदि वह ताड़ना जिस के भागी सब होते हैं, तुम्हारी नहीं हुई, तो तुम पुत्र नहीं, पर व्यभिचार की सन्‍तान ठहरे!
Heb 12:9 फिर जब कि हमारे शारीरिक पिता भी हमारी ताड़ना किया करते थे, तो क्‍या आत्माओं के पिता के और भी आधीन न रहें जिस से जीवित रहें।
Heb 12:10 वे तो अपनी अपनी समझ के अनुसार थोड़े दिनों के लिये ताड़ना करते थे, पर यह तो हमारे लाभ के लिये करता है, कि हम भी उस की पवित्रता के भागी हो जाएं।
Heb 12:11 और वर्तमान में हर प्रकार की ताड़ना आनन्‍द की नहीं, पर शोक ही की बात दिखाई पड़ती है, तौभी जो उस को सहते सहते पक्के हो गए हैं, पीछे उन्‍हें चैन के साथ धर्म का प्रतिफल मिलता है।
Heb 12:12 इसलिये ढीले हाथों और निर्बल घुटनों को सीधे करो।

एक साल में बाइबल:
  • अय्युब ३०-३१
  • प्रेरितों १३:२६-५२