बुधवार, 25 जनवरी 2012

सर्वदा आनन्दित

   छठी शाताब्दी में सात घातक पापों की सूचि बनाकर प्रचलित करी गई थी; ये पाप थे: कामुक्ता, पेटुपन या अतिभक्षी होना, लालच, आलस, बदले की भावना, जलन और घमंड या अहंकार। एक और सूची इससे भी पहले चौथी शताब्दी में प्रेषित की गई थी जिसमें उपरोक्त सातों के अतिरिक्त एक और भी पाप गिनाया गया था - उदास रहने का पाप! समय के साथ साथ पापों की गिनती से उदासी या दुखी रहना हट गया।

   कुछ लोगों का स्वभाव सदा प्रसन्न रहने का होता है; वे सदा ही आनन्दित प्रतीत होते हैं। उनके चेहरे पर मुस्कुराहट ऐसे रहती है मानो किसी दन्तमंजन का प्रचार कर रहे हों। लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो हमेशा दुखी ही नज़र आते हैं। उन्हें हर बात में परेशानीयां ही दिखती रहती हैं, वे सदा जीवन और उसकी कठिनाइयों के बारे में शिकायत करते रहते हैं। वे स्वयं भी निराश रहते हैं और दूसरों को भी निराश करते हैं।

   यह ठीक है कि हर किसी के पास जीवन के प्रति स्कारात्मक रवैया नहीं होता, लेकिन मसीही विश्वासी के लिए यह स्मरण रखना आवश्यक है कि प्रभु यीशु द्वारा अपने चेलों से वायदा किए गए वरदानों में से एक है आनन्द। जिस रात प्रभु यीशु को पकड़वाया गए थे, उन्होंने अपने चेलों से कहा था: "...तुम्हारा आनन्‍द कोई तुम से छीन न लेगा। मैं ने ये बातें तुम से इसलिये कही हैं, कि तुम्हें मुझ में शान्‍ति मिले; संसार में तुम्हें क्‍लेश होता है, परन्‍तु ढाढ़स बांधो, मैं ने संसार को जीत लिया है" (यूहन्ना १६:२२; ३३)। यह भी स्मरण रखिए कि आनन्द मसीही विश्वासी के अन्दर बसे हुए पवित्र आत्मा के फलों में से एक है: "पर आत्मा का फल प्रेम, आनन्‍द, मेल, धीरज, और कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम हैं; ऐसे ऐसे कामों के विरोध में कोई व्यवस्था नहीं" (गलतियों ५:२२, २३)। इसलिए मसीही विश्वासी के लिए यह आवश्यक है कि वह उदासी को अपने ऊपर हावी ना होने दे।

   प्रभु की सामर्थ और सहायता से हम अपने उद्धारकर्ता के समान अपनी परिस्थितियों से आगे देखते रहने वाले हो सकते हैं "और विश्वास के कर्ता और सिद्ध करनेवाले यीशु की ओर से ताकते रहें; जिस ने उस आनन्‍द के लिये जो उसके आगे धरा या, लज्ज़ा की कुछ चिन्‍ता न करके, क्रूस का दुख सहा, और सिंहासन पर परमेश्वर के दाहिने जा बैठा" (इब्रानियों १२:२); ऐसे लोग जो सदा हर परिस्थिति में परमेश्वर में आनन्दित रह सकें क्योंकि मसीही विश्वासी से परमेश्वर का वचन कहता है "...उदास मत रहो, क्योंकि यहोवा का आनन्द तुम्हारा दृढ़ गढ़ है" (नहेम्याह ८:१०)। - वर्नन ग्राउंड्स


आनन्द आत्मा के फलों में से एक है, ऐसे फल जो हर ऋतु में उपलब्ध रहते हैं।

और तुम्हें भी अब तो शोक है, परन्‍तु मैं तुम से फिर मिलूंगा और तुम्हारे मन में आनन्‍द होगा; और तुम्हारा आनन्‍द कोई तुम से छीन न लेगा। - यूहन्ना १६:२२

बाइबल पाठ: प्रेरितों ५:२८-४२
Act 5:28  क्‍या हम ने तुम्हें चिताकर आज्ञा न दी थी, कि तुम इस नाम से उपदेश न करना तौभी देखो, तुम ने सारे यरूशलेम को अपने उपदेश से भर दिया है और उस व्यक्ति का लोहू हमारी गर्दन पर लाना चाहते हो।
Act 5:29  तब पतरस और, और प्रेरितों ने उत्तर दिया, कि मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही कर्तव्य कर्म है।
Act 5:30  हमारे बाप-दादों के परमेश्वर ने यीशु को जिलाया, जिसे तुम ने क्रूस पर लटका कर मार डाला था।
Act 5:31 उसी को परमेश्वर ने प्रभु और उद्धारक ठहराकर, अपने दाहिने हाथ से सर्वोच्‍च कर दिया, कि वह इस्‍त्राएलियों को मन फिराव की शक्ति और पापों की क्षमा प्रदान करे।
Act 5:32 और हम इन बातों के गवाह हैं, और पवित्र आत्मा भी, जिसे परमेश्वर ने उन्‍हें दिया है, जो उस की आज्ञा मानते हैं।
Act 5:33 यह सुनकर वे जल गए, और उन्‍हें मार डालना चाहा।
Act 5:34 परन्‍तु गमलीएल नाम एक फरीसी ने जो व्यवस्थापक और सब लोगों में माननीय था, न्यायालय में खड़े होकर प्रेरितों को थोड़ी देर के लिये बाहर कर देने की आज्ञा दी।
Act 5:35 तब उस ने कहा, हे इस्‍त्राएलियों, जो कुछ इन मनुष्यों से किया चाहते हो, सोच समझ के करना।
Act 5:36 क्‍योंकि इन दिनों से पहले यियूदास यह कहता हुआ उठा, कि मैं भी कुछ हूं; और कोई चार सौ मनुष्य उसके साथ हो लिये, परन्‍तु वह मारा गया; और जितने लोग उसे मानते थे, सब तित्तर बित्तर हुए और मिट गए।
Act 5:37  उसके बाद नाम लिखाई के दिनों में यहूदा गलीली उठा, और कुछ लोग अपनी ओर कर लिये: वह भी नाश हो गया, और जितने लागे उसे मानते थे, सब तित्तर बित्तर हो गए।
Act 5:38 इसलिये अब मैं तुम से कहता हूं, इन मनुष्यों से दूर ही रहो और उन से कुछ काम न रखो; क्‍योंकि यदि यह धर्म या काम मनुष्यों की ओर से हो तब तो मिट जाएगा।
Act 5:39 परन्‍तु यदि परमेश्वर की ओर से है, तो तुम उन्‍हें कदापि मिटा न सकोगे; कहीं ऐसा न हो, कि तुम परमेश्वर से भी लड़ने वाले ठहरो।
Act 5:40 तब उन्‍होंने उस की बात मान ली और प्रेरितों को बुलाकर पिटवाया; और यह आज्ञा देकर छोड़ दिया, कि यीशु के नाम से फिर बातें न करना।
Act 5:41 वे इस बात से आनन्‍दित होकर महासभा के साम्हने से चले गए, कि हम उसके नाम के लिये निरादर होने के योग्य तो ठहरे।
Act 5:42 और प्रति दिन मन्‍दिर में और घर घर में उपदेश करने, और इस बात का सुसमाचार सुनाने से, कि यीशु ही मसीह है न रूके।
 
एक साल में बाइबल: 
  • निर्गमन १२-१३ 
  • मत्ती १६