मंगलवार, 7 अगस्त 2012

स्वार्थ या निस्वार्थ


   हाल ही में एक भीड़ भरी दुकान में मैंने एक महिला को देखा जो अपने पसन्द की चीज़ें लेने के लिए लोगों को धकेलते हुए दुकान में बढ़ रही थी। उसके व्यवहार के साथ साथ उसकी टी. शर्ट पर बड़े प्रमुख शब्दों में लिखे वाक्य, "सब कुछ मेरे लिए है" ने मेरा ध्यान उसकी ओर खींचा। उसका व्यवहार निश्चय ही उसकी शर्ट के वाक्य को प्रदर्शित कर रहा था।

   दुख की बात यह है कि वह महिला अकेली ऐसी नहीं है। यह वाक्य और ऐसा स्वार्थी व्यवहार संसार के कितने ही लोगों द्वारा प्रतिदिन प्रतिपल प्रदर्शित होता रहता है; ऐसा प्रतीत होता है कि यह आज के समय का आदर्श वाक्य बन गया है। किंतु यह ठीक नहीं है, मसीही विश्वासियों के लिए तो बिलकुल भी नहीं। मसीही विश्वासियों के लिए सब कुछ उनके लिए नहीं वरन उनके उद्धारकर्ता प्रभु यीशु और संसार के अन्य लोगों के लिए है जिनके लिए उनका प्रभु इस संसार में आया और बलिदान हुआ।

   प्रेरित पौलुस का तो निश्चय ही यह मानना था। पौलुस के संगी इस्त्राएली भी प्रभु यीशु को उद्धारकर्ता करके जाने, यह उसकी गहन इच्छा थी; पौलुस ने कहा : "क्‍योंकि मैं यहां तक चाहता था, कि अपने भाईयों, के लिये जो शरीर के भाव से मेरे कुटुम्बी हैं, आप ही मसीह से श्रापित हो जाता" (रोमियों ९:३)। यह एक अद्भुत वाक्य है! अपने स्वार्थ और भले की सोचने की बजाए, पौलुस ने चाहा कि अपने लोगों की भलाई के लिए यदि संभव हो तो वह अपनी अनन्त काल की भलाई उन्हें देकर उनके श्राप को अपने ऊपर ले ले। उनके भले के लिए वह अपनी भलाई का बलिदान देने को तैयार था।

   पौलुस द्वारा परमेश्वर के वचन बाइबल में दी गई यह शिक्षा इस स्वार्थ से भरे संसार में निस्वार्थ जीवन जीने के लिए एक चुनौती है। हम मसीही विश्वासियों को अपने आप से यह प्रश्न पूछते रहना चाहिए कि हमारा जीवन किस के लिए है - अपने लिए या हमारे उद्धारकर्ता प्रभु यीशु और अन्य लोगों के लिए, जिनके लिए मसीह यीशु संसार में आया?

   ज़रा विचार कीजिए - आपके जीवन में सब कुछ किसके लिए है? - बिल क्राउडर


मसीही विश्वासियों के जीवन मसीह और अन्य लोगों के प्रति प्रेम द्वारा पहचाने जाने चाहिएं, ना कि स्वार्थ द्वारा।

क्‍योंकि मैं यहां तक चाहता था, कि अपने भाईयों, के लिये जो शरीर के भाव से मेरे कुटुम्बी हैं, आप ही मसीह से श्रापित हो जाता। - रोमियों ९:३

बाइबल पाठ: फिलिप्पियों २:१-११
Php 2:1  सो यदि मसीह में कुछ शान्‍ति और प्रेम से ढाढ़स और आत्मा की सहभागिता, और कुछ करूणा और दया है। 
Php 2:2  तो मेरा यह आनन्‍द पूरा करो कि एक मन रहो और एक ही प्रेम, एक ही चित्त, और एक ही मनसा रखो। 
Php 2:3  विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्‍छा समझो। 
Php 2:4  हर एक अपनी ही हित की नहीं, वरन दूसरों की हित की भी चिन्‍ता करे। 
Php 2:5  जैसा मसीह यीशु का स्‍वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्‍वभाव हो। 
Php 2:6  जिस ने परमेश्वर के स्‍वरूप में होकर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्‍तु न समझा। 
Php 2:7  वरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्‍वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया। 
Php 2:8   और मनुष्य के रूप में प्रगट होकर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली। 
Php 2:9  इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्‍ठ है। 
Php 2:10  कि जो स्‍वर्ग में और पृथ्वी पर और जो पृथ्वी के नीचे हैं वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें। 
Php 2:11  और परमेश्वर पिता की महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन ७२-७३ 
  • रोमियों ९:१-१५