गुरुवार, 16 अगस्त 2012

प्रेम से पहचान


   "आपको उन्हें अप्रसन्न करने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। स्वभाव ही से वे बहुत क्षमाशील, विचारशील और समझ-बूझ वाले होते हैं। वे कभी हताश नहीं होते और भिन्न लोगों के भिन्न दृष्टिकोण होने की संभावनाओं को समझते हैं। वे क्रोध करने में धीमे, क्षमा करने में तत्पर और उतावली में निर्णय करने से बचने वाले होते हैं और सदा ही प्रेम के साथ व्यवहार करते हैं।"

   काश यह बातें सभी मनुष्यों, विशेषतः मसीही विश्वासियों के संबंध में कही गई होतीं और उनके लिए सदा सत्य होतीं! ये बातें सत्य तो हैं, किंतु कुत्ते की एक प्रजाति गोल्डन रिट्रीवर के लिए! 

   बहुत से मसीही विश्वासियों और कुछ गोल्डन रिट्रीवरों के साथ संपर्क में आने के बाद मैं यह कह सकती हूँ कि कई विश्वासी बहुत छोटी छोटी बातों पर बड़ी आसानी से अप्रसन्न हो जाते हैं - "चर्च का समूहगान संचालक एक विशेष लड़की को ही सदा एकल गाने का अवसर देता है, मुझे कभी नहीं"; "आज जब चर्च के बाद पास्टर सबसे हाथ मिला रहा था तो हाथ मिलाते समय उसने मेरी ओर देखा भी नहीं"; "मैं यहां बहुत कुछ करता हूँ, लोगों को मेरे योगदान को पहचानना चाहिए और मेरी सराहना करनी चाहिए" आदि कई बातें हैं जो आम तौर से चर्च में भी जलन, मनमुटाव और मतभेदों का कारण बन जाती हैं।

   क्रोध, घमंड, विरोध, बैर - हां मसीही विश्वासियों में भी ऐसी समस्याएं होती हैं और उनका निवारण भी आवश्यक है; किंतु क्या दूसरे ही को अपने आप को ठीक करना होता है हमें स्वयं नहीं? ज़रा विचार कीजिए कि यदि दूसरों से बदलने की आशा रखने की बजाए हम स्वयं अपने आप में बदलाव लाएं - यदि हम स्वयं लोगों के साथ वही व्यवहार करें जिसकी आशा हम उन से अपने प्रति रखते हैं (मत्ती ७:१२), यदि हम दूसरों को दोषी ठहराने और उनके दोषों का बखान करने की बजाए उन्हें क्षमा करने वाले बन जाएं (लूका ६:३७), और यदि हम थोड़ी नम्रता दिखाने वाले (फिलिप्पियों २:३) हो जाएं तो कैसा रहेगा? तब हमारा समाज और संबंध कैसे हो जाएंगे? तब हमारे अपने जीवन और हम्से होकर दूसरों के जीवन में कैसा प्रभाव होगा?

   कैसा हो यदि संसार के सामने हमारी पहचान उस प्रेम से हो जो हम एक दूसरे से रखते हैं और हमारे प्रेम से जाने कि हम प्रभु यीशु के अनुयायी हैं (यूहन्ना १३:३५)? क्या आज यह हमारे बारे में कहा जा सकता है? क्या हमारी पहचान हमारे प्रेम से है? - सिंडी हैस कैस्पर


सबसे अच्छी गवाही प्रेम की गवाही है।

यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो। - युहन्ना १३:३५

बाइबल पाठ: युहन्ना १३:३३-३५; १ युहन्ना २:१-११
Joh 13:33  हे बालको, मैं और थोड़ी देर तुम्हारे पास हूं: फिर तुम मुझे ढूंढोगे, और जैसा मैं ने यहूदियों से कहा, कि जहां मैं जाता हूं, वहां तुम नहीं आ सकते वैसा ही मैं अब तुम से भी कहता हूं। 
Joh 13:34  मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूं, कि एक दूसरे से प्रेम रखो: जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दुसरे से प्रेम रखो। 
Joh 13:35  यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।
1Jn 2:1  हे मेरे बालको, मैं ये बातें तुम्हें इसलिये लिखता हूं, कि तुम पाप न करो; और यदि कोई पाप करे, तो पिता के पास हमारा एक सहायक है, अर्थात धामिर्क यीशु मसीह। 
1Jn 2:2 और वही हमारे पापों का प्रायश्‍चित्त है: और केवल हमारे ही नहीं, वरन सारे जगत के पापों का भी। 
1Jn 2:3  यदि हम उस की आज्ञाओं को मानेंगे, तो उस से हम जान लेंगे कि हम उसे जान गए हैं। 
1Jn 2:4  जो कोई यह कहता है, कि मैं उसे जान गया हूं, और उस की आज्ञाओं को नहीं मानता, वह झूठा है, और उस में सत्य नहीं। 
1Jn 2:5  पर जो कोई उसके वचन पर चले, उस में सचमुच परमेश्वर का प्रेम सिद्ध हुआ है: हमें इसी से मालूम होता है, कि हम उस में हैं। 
1Jn 2:6  सो कोई यह कहता है, कि मैं उस में बना रहता हूं, उसे चाहिए कि आप भी वैसा ही चले जैसा वह चलता था। 
1Jn 2:7  हे प्रियों, मैं तुम्हें कोई नई आज्ञा नहीं लिखता, पर वही पुरानी आज्ञा जो आरम्भ से तुम्हें मिली है; यह पुरानी आज्ञा वह वचन है, जिसे तुम ने सुना है। 
1Jn 2:8 फिर मैं तुम्हें नई आज्ञा लिखता हूं, और यह तो उस में और तुम में सच्‍ची ठहरती है, कयोंकि अन्‍धकार मिटता जाता है और सत्य की ज्योति अभी चमकने लगी है। 
1Jn 2:9 जो कोई यह कहता है, कि मैं ज्योति में हूं, और अपने भाई से बैर रखता है, वह अब तक अन्‍धकार ही में है। 
1Jn 2:10  जो कोई अपने भाई से प्रेम रखता है, वह ज्योति में रहता है, और ठोकर नहीं खा सकता। 
1Jn 2:11 पर जो कोई अपने भाई से बैर रखता है, वह अन्‍धकार में है, और अन्‍धकार में चलता है, और नहीं जानता, कि कहां जाता है, क्‍योंकि अन्‍धकार ने उस की आंखे अन्‍धी कर दी हैं।


एक साल में बाइबल: 
  • भजन ९४-९६ 
  • रोमियों १५:१४-३