शनिवार, 18 सितंबर 2021

परमेश्वर का वचन, बाइबल – पाप और उद्धार - 24


पाप का समाधान - उद्धार - 20

       पिछले लेख में हमने प्रभु यीशु मसीह के पुनरुत्थान और उसके महत्व को देखना आरंभ किया था। हमने देखा था कि यदि प्रभु यीशु मसीह का पुनरुत्थान मसीही विश्वास में से हटा दिया जाए, या उसे झूठ प्रमाणित कर दिया जाए, तो फिर मसीही विश्वास, संसार के किसी भी अन्य धर्म से भिन्न नहीं रह जाता है, उसका महत्व समाप्त हो जाता है। मनुष्यों के पापों का समाधान और निवारण प्रदान करने वाले सिद्ध मनुष्य के लिए यह अनिवार्य था कि वह मनुष्यों पर से मृत्यु के प्रभाव को मिटा दे। क्योंकि प्रभु यीशु का यह पुनरुत्थान इतना अधिक महत्व रखता था, शैतान और उसके राज्य के लिए इतना घातक था, इसीलिए प्रभु यीशु के पुनरुत्थान के साथ ही उसे झुठलाने के प्रयास भी शैतान द्वारा फैलाए जाने लगे। 

प्रभु यीशु के पुनरुत्थान को नकारने, उसे झूठ दिखाने के प्रयासों के लिए जो मनगढ़ंत बातें कही जाती हैं, वे प्रभु यीशु के मारे जाने, गाड़े जाने और तीसरे दिन मृतकों में से जी उठने के बाइबल में दिए विवरण से कदापि मेल नहीं खाती हैं; और इन कहानियों की पुष्टि के लिए कोई भी प्रमाण विद्यमान नहीं हैं। सामान्यतः लोगों में फैलाई गई मन-गढ़न्त बातें हैं:

  •  पुनरुत्थान को झूठा ठहराने का पहला प्रयास तो पुनरुत्थान के दिन ही किया गया था – मत्ती 28:11-15 – लोगों में यह बात फैला दी गई कि प्रभु जी नहीं उठा, वरन उसकी लोथ उसके चेलों ने चुरा ली – किन्तु कोई भी, कभी भी, उन भयभीत और जान बचाकर छुपे हुए शिष्यों के पास से उस लोथ को निकलवाकर उनके द्वारा किए जा रहे प्रभु के पुनरुत्थान के प्रचार को झूठ प्रमाणित नहीं कर सका।
  • प्रभु की लोथ चुराने से संबंधित कुछ अन्य कहानियाँ यह भी हैं:
    • अरिमथिया के यूसुफ ने, जिसने निकुदेमुस के साथ मिलाकर प्रभु यीशु को दफनाया था (यूहन्ना 19:38-42), उसी ने प्रभु को किसी और स्थान पर ले जाकर दफना दिया, क्योंकि उस दिन सबत आरंभ होने वाला था, इसलिए उसे यह कार्य शीघ्रता से करना पड़ा था। - यूसुफ क्योंकि एक गुप्त शिष्य था, इसलिए उसके द्वारा बिना अन्य शिष्यों को इसके विषय बताए, किसी और स्थान पर ले जाकर दफनाना उचित नहीं लगता है; और ऐसा करने से क्या लाभ होने वाला था? और फिर शिष्यों में इतनी हिम्मत कैसे आ गई कि वे हर सताव और दुःख सहते हुए भी प्रभु के पुनरुत्थान और सुसमाचार का प्रचार करने से रोके नहीं जा सके, यदि वे जानते थे कि प्रभु जी नहीं उठा है?
    • रोमियों ने लोथ ले जाकर कहीं और दफना दी – पिलातुस यरूशलेम में शान्ति रखना चाहता था – ऐसा करने से तो अशांति फैलने की संभावना अधिक थी।
    • यहूदियों ने ही लोथ निकालकर कही और दफना दी – तो फिर जब शिष्य उसके पुनरुत्थान का प्रचार करने लगे, तो उन्होंने वह लोथ निकालकर क्यों नहीं दिखाई?
  • एक कहानी यह भी कही जाती है कि प्रभु यीशु मसीह को क्रूस पर नहीं चढ़ाया गया, वरन उसके स्थान पर उसके जैसा दिखने वाला कोई व्यक्ति चढ़ा दिया गया। जिसे पूरे लश्कर के साथ जाकर पकड़ा; सारी रात से एक से दूसरी कचहरी में घसीटते रहे, मारते-पीटते रहे, फिर उसे दिन चढ़े छोड़ क्यों दिया गया? और जिस व्यक्ति को उसके स्थान पर क्रूस पर चढ़ाया गया, वह व्यक्ति अकारण ही क्यों चुपचाप क्रूस पर चढ़ गया, और सब कुछ चुपचाप क्यों सहता रहा? और फिर क्रूस पर से कहे गए सात वचनों के साथ कैसे इस बात का तालमेल बैठा सकते हैं – प्रभु द्वारा अपने सताने वालों को क्षमा करने, यूहन्ना को अपनी माता को सौंपने, साथ टंगे हुए डाकू को क्षमा और स्वर्ग का आश्वासन देने, वचन में लिखी उसके विषय की भविष्यवाणियों पर ध्यान करके उन्हें पूरा करने, परमेश्वर को पिता कहने, आदि बातें कोई साधारण मनुष्य कैसे पूरा कर सकता था?
  • कुछ अन्य कहते हैं कि प्रभु मरा नहीं था, केवल बेहोश हुआ था, फिर कब्र में ठण्डे में विश्राम करने के बाद वह होश में आया, और कब्र में से बाहर आ गया। जिस बेरहमी से प्रभु को क्रूस पर चढ़ाने से पहले उसे मारा-पीटा गया था, फिर हाथों-पैरों में कील ठोंके गए, छाती में भाला मारा गया (यूहन्ना 19:34), और सैनिकों ने पुष्टि की, कि वह मर गया है, इसलिए उसकी टांगें नहीं तोड़ीं (यूहन्ना 19:32-33) – इन सभी प्रमाणों के होते हुए, यह कहानी निराधार है। और फिर तीन दिन कब्र में लहूलुहान और बिना भोजन या पानी के पड़े रहने के बाद किस मनुष्य के शरीर में यह शक्ति बचेगी कि वह 50 सेर मसालों के लेप और लपेटे हुए कपड़े (यूहन्ना 19:39-40) को खोल कर, अपने कीलों से छेदे हुए हाथों और पैरों तथा बेधी हुई छाती के साथ कब्र के मुँह पर लुढ़काए गए भारी पत्थर को हटा कर बाहर आ जाए, पहरेदारों को भी भगा दे, और चलकर वहाँ से चला जाए।
  • एक अन्य कहानी है कि शिष्यों ने अपनी मनःस्थिति के कारण, प्रभु की आत्मा को देखा था न कि उसके जी उठे शरीर को। प्रभु ने स्वयं ही इस धारणा का खण्डन प्रदान किया – लूका 24:38-43; और थोमा को भी आमंत्रित किया कि वह अपनी रखी गई शर्त के अनुसार उसके घावों को छू कर देख ले (यूहन्ना 20:26-27)। और प्रभु चालीस दिन तक अलग-अलग लोगों को अलग-अलग स्थानों पर दिखाई देता रहा, उनके साथ बात करता रहा; एक साथ पाँच सौ से अधिक शिष्यों को भी दिखाई दिया (1 कुरिन्थियों 15:5-8) – क्या सभी एक ही भ्रम के शिकार थे; और इस भ्रम के कारण अपनी जान पर भी खेलकर प्रचार करने से नहीं रुके? क्या एक भ्रम के लिए वे शिष्य अपने उस अनुभव के बाद उसके लिए दुःख उठाने और मारे जाने को भी तैयार हो गए। जिसने प्रभु का अनुभव कर लिया है, वह उससे पलट नहीं  सकता है।

प्रभु यीशु के पुनरुत्थान और सुसमाचार की सत्यता का संभवतः सबसे बड़ा प्रमाण, जो आज भी कार्यकारी है, वह है प्रभु यीशु को उद्धारकर्ता स्वीकार कर लेने के बाद जीवनों में आने वाला परिवर्तन। उद्धार पाया व्यक्ति कुछ और ही हो जाता है; स्वयं अपने आप पर अचंभित होता है कि मैं इतना बदल कैसे गया – और यह सारे संसार में, हर स्थान पर, हर प्रकार के लोगों में, पिछले दो हज़ार वर्षों से निरंतर होता चला आ रहा है। यदि पुनरुत्थान और सुसमाचार कल्पना की बातें होतीं, तो आरंभिक उत्साह और उत्तेजना के बाद, कुछ ही समय में उनकी पोल खुल जाती, और प्रचार समाप्त हो जाता, लोग वापस अपने पुराने जीवन में लौट जाते – जो नहीं हुआ, वरन लोग हर दुःख-परेशानी-मुसीबत उठाकर भी सारे संसार में सुसमाचार फैलाते फिरे और आज भी फिर रहे हैं; क्यों?

       मसीही विश्वास ही संसार का एकमात्र विश्वास है जो लोगों को खुला आमंत्रण देता है कि उसे परखें, और फिर विश्वास करें –सब बातों को परखो: जो अच्छी है उसे पकड़े रहो” (1 थिस्सलुनीकियों 5:21); “परखकर देखो कि यहोवा कैसा भला है! क्या ही धन्य है वह पुरुष जो उसकी शरण लेता है” (भजन 34:8)। अन्य सभी धर्मों और मान्यताओं में यदि संदेह के प्रश्न उठाए जाएँ तो उसे उन धर्मों एवं मान्यताओं का अपमान समझा जाता है, लोग ऐसा करने वाले को मारने-काटने को तैयार हो जाते हैं। किन्तु परमेश्वर के वचन बाइबल की खुली चुनौती है कि कोई भी उसकी बातों को जाँच-परख कर देख सकता है, उनकी वास्तविकता की जाँच कर सकता है, और फिर, अपनी जाँच के आधार पर अपना निर्णय ले सकता है। प्रभु यीशु की खाली कब्र आज भी इस्राएल में विद्यमान है। उनके जीवन, क्रूस पर मारे जाने, और तीसरे दिन जी उठने के ऐतिहासिक प्रमाण, बाइबल के बाहर समकालिक के लेखों में पाए जाते हैं। अनेकों लोगों ने प्रभु के जीवन, मरने, और जी उठने को गलत प्रमाणित करने का प्रयास किया है, किन्तु सफल कोई नहीं होने पाया। अपितु, इन प्रयासों में बहुत से लोगों के जीवन बदल गए और वे नास्तिक अथवा प्रभु में अविश्वासी होने से प्रभु में विश्वास करने वाले और उसे समर्पित जीवन जीने वाले बन गए। 

       हम अगले लेख में प्रभु यीशु मसीह के पुनरुत्थान के महत्व के बारे देखेंगे। यदि आप अभी भी प्रभु यीशु मसीह में, उनके जीवन, शिक्षाओं, बलिदान, और पुनरुत्थान में; आपकी वास्तविक स्थिति के बावजूद आपके लिए उनके प्रेम में विश्वास नहीं  करते हैं, तो आप भी प्रभु यीशु के पुनरुत्थान से संबंधित प्रमाणों की जाँच कर सकते हैं, अपने आप को संतुष्ट कर सकते हैं। प्रभु यीशु आपको इस सांसारिक नाशमान जीवन से अविनाशी जीवन में लाना चाहता है; पाप के परिणाम से निकालकर परमेश्वर के साथ मेल-मिलाप करवाकर अब से लेकर अनन्तकाल के लिए आपको स्वर्गीय आशीषों का वारिस बनाना चाहता है। शैतान की किसी बात में न आएं, उसके द्वारा फैलाई जा रही किसी गलतफहमी में न पड़ें, अभी समय और अवसर के रहते स्वेच्छा और सच्चे मन से अपने पापों से पश्चाताप कर लें, अपना जीवन उसे समर्पित कर के, उसके शिष्य बन जाएं। स्वेच्छा से, सच्चे और पूर्णतः समर्पित मन से, अपने पापों के प्रति सच्चे पश्चाताप के साथ एक छोटी प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु मैं मान लेता हूँ कि मैंने जाने-अनजाने में, मन-ध्यान-विचार और व्यवहार में आपकी अनाज्ञाकारिता की है, पाप किए हैं। मैं मान लेता हूँ कि आपने क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा मेरे पापों के दण्ड को अपने ऊपर लेकर पूर्णतः सह लिया, उन पापों की पूरी-पूरी कीमत सदा काल के लिए चुका दी है। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मेरे मन को अपनी ओर परिवर्तित करें, और मुझे अपना शिष्य बना लें, अपने साथ कर लें।आपका सच्चे मन से लिया गया मन परिवर्तन का यह निर्णय आपके इस जीवन तथा परलोक के जीवन को स्वर्गीय जीवन बना देगा। 

 

बाइबल पाठ: 1 कुरिन्थियों 15:21-28  

1 कुरिन्थियों 15:21 क्योंकि जब मनुष्य के द्वारा मृत्यु आई; तो मनुष्य ही के द्वारा मरे हुओं का पुनरुत्थान भी आया।

1 कुरिन्थियों 15:22 और जैसे आदम में सब मरते हैं, वैसा ही मसीह में सब जिलाए जाएंगे।

1 कुरिन्थियों 15:23 परन्तु हर एक अपनी अपनी बारी से; पहिला फल मसीह; फिर मसीह के आने पर उसके लोग।

1 कुरिन्थियों 15:24 इस के बाद अन्त होगा; उस समय वह सारी प्रधानता और सारा अधिकार और सामर्थ्य का अन्त कर के राज्य को परमेश्वर पिता के हाथ में सौंप देगा।

1 कुरिन्थियों 15:25 क्योंकि जब तक कि वह अपने बैरियों को अपने पांवों तले न ले आए, तब तक उसका राज्य करना अवश्य है।

1 कुरिन्थियों 15:26 सब से अन्तिम बैरी जो नाश किया जाएगा वह मृत्यु है।

1 कुरिन्थियों 15:27 क्योंकि परमेश्वर ने सब कुछ उसके पांवों तले कर दिया है, परन्तु जब वह कहता है कि सब कुछ उसके आधीन कर दिया गया है तो प्रत्यक्ष है, कि जिसने सब कुछ उसके आधीन कर दिया, वह आप अलग रहा।

1 कुरिन्थियों 15:28 और जब सब कुछ उसके आधीन हो जाएगा, तो पुत्र आप भी उसके आधीन हो जाएगा जिसने सब कुछ उसके आधीन कर दिया; ताकि सब में परमेश्वर ही सब कुछ हो।

एक साल में बाइबल:

·      नीतिवचन 30-31

·      2 कुरिन्थियों 11:1-15