रविवार, 2 जनवरी 2022

मसीह यीशु की कलीसिया या मण्डली - कलीसिया


शब्दकलीसियाको समझना

मसीही जीवन और सेवकाई को तब ही उचित रीति से समझा और किया जा सकता है, जबमसीहीहोने के तात्पर्य और उद्देश्य को ठीक से समझ लिया जाए। अन्यथा, शैतान हमें अनेकों गलत धारणाओं, शिक्षाओं, और मन-गढ़न्त बातों में फंसा कर परमेश्वर के मार्गों से भटका देगा, और हम इसी भ्रम में पड़े रह जाएंगे कि हम परमेश्वर को स्वीकार्य, परमेश्वर की इच्छा के अनुसार कार्य कर रहे हैं, और जीवन जी रहे हैं, जब कि वास्तविकता में हम शैतान के बताए और सिखाए अनुसार कर रहे होंगे। हम पहले के लेखों में देख चुके हैं कि बाइबल के अनुसारमसीहीहोने का अर्थ है प्रभु यीशु मसीह का शिष्य होना (प्रेरितों 11:26)। शब्दार्थ एवं पहचान के रूप मेंमसीही” होने की यही सही परिभाषा है, और इसी के अनुसार मसीही या प्रभु यीशु के शिष्य होने को समझा जाना चाहिए, शिष्यता के कर्तव्यों का निर्वाह किया जाना चाहिए। किन्तु इसके साथ ही यह भी जानना और समझना आवश्यक है कि प्रभु यीशु ने संसार में से लोगों कोमसीहीया अपने शिष्य होने के लिए क्यों बुलाया; क्यों उन्हें यह आदर और ज़िम्मेदारी प्रदान की? मसीही जीवन और सेवकाई में परमेश्वर पवित्र आत्मा तथा आत्मिक वरदानों की भूमिका के अध्ययन में हम देख चुके हैं कि परमेश्वर ने अपने प्रत्येक जन के लिए कोई न कोई भला कार्य पहले से निर्धारित कर रखा है (इफिसियों 2:10), और परमेश्वर द्वारा सौंपे गए इस कार्य को करने में सहायता के लिए, उसे सुचारु रीति से करवाने के लिए परमेश्वर पवित्र आत्मा प्रत्येक मसीही विश्वासी को उस की सेवकाई के लिए उपयुक्त आत्मिक वरदान निर्धारित करता एवं प्रदान करता है। मण्डली, या मसीही विश्वासियों के समूह में सब की भिन्न सेवाकाइयाँ और वरदान हैं, किन्तु सभी फिर भी एक ही नाममसीहीके द्वारा जाने, पहचाने, और संबोधित किए जाते हैं। अर्थात, मसीही होना, मसीहियों के अपने समूह में सेवकाई एवं वरदानों के प्रयोग के उन दायित्वों और कार्यों के निर्वाह से बढ़कर या ऊपर के स्तर के बात है; और जो मसीही है, वही परमेश्वर द्वारा सेवकाई और वरदानों के सौंपे जाने का हकदार है। सेवकाई और वरदान उसे मसीही नहीं बनाते हैं, वरन, उसके मसीही होने के द्वारा उस पर आई ज़िम्मेदारियाँ, उससे परमेश्वर की अपेक्षाएं और उद्देश्य, उसे वह सेवकाई और संबंधित वरदान दिए जाने के लिए योग्य ठहराते हैं। मसीहियों से परमेश्वर की अपेक्षाएं और उद्देश्य जानने और समझने के लिए यहकलीसियायामण्डलीके दर्शन को समझना बहुत आवश्यक है। 

जैसा हमने पिछले लेख में देखा है, “कलीसियाशब्द का परमेश्वर के वचन बाइबल में सर्वप्रथम प्रयोग, प्रभु यीशु मसीह द्वारा मत्ती 16:18 में हुआ है -और मैं भी तुझ से कहता हूं, कि तू पतरस है; और मैं इस पत्थर पर अपनी कलीसिया बनाऊंगा: और अधोलोक के फाटक उस पर प्रबल न होंगेआज सामान्यतःकलीसियाशब्द से लोग एक विशेष भवन या इमारत या बिल्डिंग की कल्पना करते हैं, जहाँ पर ईसाई या मसीही धर्म को मानने वाले अपनी पूजा-अर्चना, आराधना, रीति-रिवाजों के पालन, आदि के लिए एकत्रित होते हैं। और साथ ही इस सामान्य धारणा के अनुसार उनके ध्यान में उस विशेष भवन या इमारत या बिल्डिंग का एक विशिष्ट स्वरूप भी आ जाता है। किन्तु मूल यूनानी भाषा के जिस शब्द का अनुवादकलीसियाया मण्डली किया गया है, वह है “ekklesia, एक्कलेसियाजिसका शब्दार्थ होता है, “व्यक्तियों का एकत्रित होना”, याव्यक्तियों का समूहयाव्यक्तियों की सभा”; और प्रेरितों 19:32, 39 में “ekklesia, एक्कलेसियाशब्द का अनुवादसभाकिया गया है। 

मसीही विश्वास के प्रारंभिक दिनों में लोग घरों में (रोमियों 16:5; 1 कुरिन्थियों 16:19; कुलुस्सियों 4:15; फिलेमोन 1:2), खुले स्थानों पर, जैसे कि नदी के किनारे (प्रेरितों 16:13), आदि स्थानों पर आराधना के लिए एकत्रित हुआ करते थे। घरों में आराधना, उपासना के लिए एकत्रित होने की सभा के लिए उपरोक्त सभी  हवालों में “ekklesia, एक्कलेसियाप्रयोग किया गया है।  इसमें किसी भी विशिष्ट प्रयोग के लिए किसी वस्तु के द्वारा बनाए गए किसी विशेष भवन या इमारत का कोई अभिप्राय ही नहीं है। इसलिए, जब प्रभु यीशु ने पतरस से उपरोक्त वाक्य कहा, तो उसने तथा उसके साथ के अन्य शिष्यों ने भी इसी शब्दार्थ के साथ प्रभु के इस वाक्य को कुछ इस प्रकार से समझा होगा, “...और मैं [इस पत्थर पर] अपने लोगों को एकत्रित करूंगा...। जैसे ही हमकलीसियाशब्द के मूल अर्थ के साथ प्रभु के इस वाक्य और अन्य स्थानों पर इस शब्द के प्रयोग को देखते हैं, तो स्वतः हीकलीसियाशब्द के साथ जुड़ी अनेकों भ्रांतियों और गलत समझ एवं अनुचित शिक्षाओं का आधार समाप्त हो जाता है; उन बातों के मिथ्या एवं व्यर्थ होने की बात प्रकट हो जाती है, जैसे हम आने वाले दिनों के लेखों में देखेंगे। 

इसकी तुलना में, अंग्रेज़ी शब्द Church यूनानी भाषा के शब्दकुरियाकॉनसे आया है, जिसका अर्थ होता हैउपासना या आराधना का स्थान”; किन्तु नए नियम की मूल यूनानी भाषा का यह शब्द पूरे नए नियम में कहीं पर भी प्रयोग नहीं किया गया है। तो फिर “ekklesia, एक्कलेसियासे “Church, चर्चकैसे आ गया? इसे हम प्रभु यीशु के शिष्यों के समूह को बाइबल में जिन विभिन्न रूपकों या उपनामों से संबोधित किया गया है उसे देखते समय समझेंगे। अभी के लिए हम यही ध्यान रखते हैं कि नए नियम में मसीही विश्वास एवं शिक्षाओं के संदर्भ में, मूल यूनानी भाषा में “ekklesia, एक्कलेसियाशब्द न तो किसी भौतिक भवन या आराधना स्थल के लिए, और न ही ईसाई लोगों की किसी संस्था के लिए प्रयोग किया गया है। वरन, नए नियम में मसीही विश्वास एवं शिक्षाओं के संदर्भ में, यह शब्द प्रभु यीशु मसीह के शिष्यों के समूह या समुदाय के लिए ही विभिन्न अभिप्रायों के साथ प्रयोग किया गया है, जिन्हें हम आगे के लेखों में देखेंगे।

यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो ध्यान कीजिए कि किसी भी शिक्षा या शब्द को उसके मूल और वास्तविक प्रयोग के अनुसार समझना कितना आवश्यक है। जब इस बात का ध्यान नहीं किया जाता है, तो शैतान को कैसे अपनी गलत शिक्षाएं ले आने और फैलाने का खुला अवसर मिल जाता है। इसलिए बाइबल में दिए गए बेरिया एवं थिस्सलुनीकिया के विश्वासियों के उदाहरणों (प्रेरितों 17:11; 1 थिस्सलुनीकियों 5:21) के समान, गलत शिक्षाओं को सीखने और सिखाने से बचे रहने के लिए, हर बात को परमेश्वर के वचन से परखने और जाँचने के बाद ही स्वीकार करने की आदत बना लें। इसे कठिन या सामान्य लोगों के लिए न मानी जा सकने वाली बात न समझें -  बेरिया एवं थिस्सलुनीकिया के ये विश्वासी न तो कोई वचन के ज्ञानी और विद्वान थे, और न ही किसी बाइबल कॉलेज या सेमनरी के छात्र। ये सभी मेरे और आपके समान साधारण लोग थे, अधिक पढ़े लिखे भी नहीं थे - शिक्षा उन दिनों दुर्लभ हुआ करती थी, इनके हाथों में केवल पुराना नियम ही था, इनके पास पुराने नियम की व्याख्या करने वाली कोई पुस्तकें नहीं थीं, मसीही विश्वासी होने के कारण ये उस समय के वचन के विद्वानों - फरीसियों, सदूकियों, और शास्त्रियों, द्वारा तिरस्कार किए हुए थे, उन से पूछ और सीख नहीं सकते थे - यदि उन्हें यह सुविधा उपलब्ध भी होती, तो केवल उन प्रभु यीशु के विरोधियों की गलतियों को ही सीखते परमेश्वर के वचन की सच्चाइयों को नहीं। ये केवल परमेश्वर पवित्र आत्मा के द्वारा सिखाए जाने पर निर्भर थे। और जब उन्होंने सच्चे मन और विश्वास से पवित्र आत्मा से सीखने के लिए अपने हाथ फैलाए, तो पवित्र आत्मा ने उन्हें सिखाया भी, जैसा आज मुझे सिखा रहा है, और वह आपको भी सिखाने के लिए तत्पर और तैयार है; और उनका उल्लेख सदा काल के लिए परमेश्वर के वचन में भले उदाहरण के रूप में आदर के साथ लिखवा दिया।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • उत्पत्ति 4-6     
  • मत्ती 2