शुक्रवार, 3 मई 2024

Growth through God’s Word / परमेश्वर के वचन से बढ़ोतरी – 58

 

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आरम्भिक बातें – 19

परमेश्वर पर विश्वास करना – 6

 

    अभी हम इब्रानियों 6:1-2 में दी गई छः आरम्भिक बातों में से दूसरी, “परमेश्वर पर विश्वास करना” पर विचार कर रहे हैं, और प्रत्येक मसीही विश्वासी को इन बातों को सीखना चाहिए। जब तक मसीही विश्वासी परमेश्वर में अपने विश्वास के प्रति दृढ़ और अडिग नहीं होगा, शैतान उसे पाप करने के लिए बहकाने में सफल रहेगा। शैतान की इस युक्ति से बचे रहने के लिए, हम परमेश्वर के वचन बाइबल से परमेश्वर के गुणों, विशेषताओं, और चरित्र के बारे में सीख रहे हैं जिस से विश्वासियों के पास अपने विश्वास के लिए एक मज़बूत नींव उपलब्ध हो। शैतान की युक्तियों में से एक है परमेश्वर के वचन की गलत व्याख्याओं और झूठी शिक्षाओं के द्वारा परमेश्वर पर, उसके गुणों, विशेषताओं, और चरित्र के बारे में सन्देह उत्पन्न कर दे; और फिर उस सन्देह के आधार पर परमेश्वर के कहे के विरुद्ध काम करवा कर, पाप करवा दे। इसलिए, दृढ़ नींव पर स्थापित “परमेश्वर पर विश्वास” रखने के लिए सही आधार को जानना अनिवार्य है। पिछले लेख में हमने परमेश्वर के सर्वव्यापी होने के गुण पर विचार किया था, जिस से फिर हम उस गुण पर आए थे जिस के बारे में आज विचार करेंगे, परमेश्वर का सर्वज्ञानी होना, अर्थात हर बात के बारे में पूर्णतः जानना, सब कुछ के बारे में सब कुछ जानना।

    परमेश्वर ने कहा है कि वह अन्त को आरंभ ही से जानता है, “प्राचीनकाल की बातें स्मरण करो जो आरम्भ ही से है; क्योंकि ईश्वर मैं ही हूं, दूसरा कोई नहीं; मैं ही परमेश्वर हूं और मेरे तुल्य कोई भी नहीं है। मैं तो अन्त की बात आदि से और प्राचीनकाल से उस बात को बताता आया हूं जो अब तक नहीं हुई। मैं कहता हूं, मेरी युक्ति स्थिर रहेगी और मैं अपनी इच्छा को पूरी करूंगा” (यशायाह 46:9-10)। परमेश्वर न केवल पृथ्वी पर जो कुछ हो रहा है, उसे जानता है, वरन समस्त सृष्टि की हर बात जानता है। मनुष्य अभी तक कुल सितारों की सँख्या नहीं जानने पाया है, जबकि परमेश्वर न केवल उनकी गिनती जानता है बल्कि हर सितारे को नाम से जानता है, “वह तारों को गिनता, और उन में से एक एक का नाम रखता है” (भजन 147:4)। परमेश्वर सभी मनुष्यों को भी जानता है और यह भी कि मनुष्य के मन में क्या है, “परन्तु यीशु ने अपने आप को उन के भरोसे पर नहीं छोड़ा, क्योंकि वह सब को जानता था। और उसे प्रयोजन न था, कि मनुष्य के विषय में कोई गवाही दे, क्योंकि वह आप ही जानता था, कि मनुष्य के मन में क्या है” (यूहन्ना 2:24-25)। दाऊद ने अपने पुत्र सुलैमान से कहा था कि परमेश्वर मन विचारों को जानता है, और विचारों के पीछे के उद्देश्य को भी समझता है “और हे मेरे पुत्र सुलैमान! तू अपने पिता के परमेश्वर को जान और सम्पूर्ण हृदय एवं इच्छुक मन से उसकी सेवा कर, क्योंकि यहोवा प्रत्येक हृदय को जांचता एवं विचारों के प्रत्येक उद्देश्य को समझता है। यदि तू उसे ढूँढ़े तो वह तुझे मिलेगा; परन्तु यदि तू उसे त्याग दे तो वह सदा के लिए तुझे त्याग देगा” (1 इतिहास 28:9; IBP अनुवाद)। दाऊद ने यह भी कहा कि परमेश्वर उसके बारे में सब कुछ जानता था, “हे यहोवा, तू ने मुझे जांच कर जान लिया है। तू मेरा उठना बैठना जानता है; और मेरे विचारों को दूर ही से समझ लेता है। मेरे चलने और लेटने की तू भली भांति छानबीन करता है, और मेरी पूरी चालचलन का भेद जानता है। हे यहोवा, मेरे मुंह में ऐसी कोई बात नहीं जिसे तू पूरी रीति से न जानता हो” (भजन 139:1-4)। साथ ही दाऊद ने माँ के गर्भ में उसके रचे जाने की सभी गूढ़ बातों के बारे में परमेश्वर को पता होने के बारे में भी कहा, “मैं तेरा धन्यवाद करूंगा, इसलिये कि मैं भयानक और अद्भुत रीति से रचा गया हूं। तेरे काम तो आश्चर्य के हैं, और मैं इसे भली भांति जानता हूं। जब मैं गुप्त में बनाया जाता, और पृथ्वी के नीचे स्थानों में रचा जाता था, तब मेरी हड्डियां तुझ से छिपी न थीं। तेरी आंखों ने मेरे बेडौल तत्व को देखा; और मेरे सब अंग जो दिन दिन बनते जाते थे वे रचे जाने से पहिले तेरी पुस्तक में लिखे हुए थे” (भजन 139:14-16)।

    दूसरे शब्दों में, परमेश्वर का वचन बाइबल इस बात के लिए सुस्पष्ट है कि ऐसा कुछ भी नहीं है, बिल्कुल भी नहीं, जो परमेश्वर को पता न हो। उसके सर्वज्ञानी परमेश्वर होने से उसके लोगों को उसके प्रति बहुत बड़ा भरोसा है, और वे उसकी प्रतिज्ञाओं पर विश्वास रखते हैं कि:

  • उसने अपने लोगों के लिए एक अच्छे भविष्य की योजना बनाई है, “क्योंकि यहोवा की यह वाणी है, कि जो कल्पनाएं मैं तुम्हारे विषय करता हूँ उन्हें मैं जानता हूँ, वे हानि की नहीं, वरन कुशल ही की हैं, और अन्त में तुम्हारी आशा पूरी करूंगा” (यिर्मयाह 29:11)।

  • उसने बातों को विश्वासियों की कल्पनाओं के लिए नहीं छोड़ा है, कि कहीं शैतान उन में किसी युक्ति से उन्हें गलत काम करने के लिए बहका दे; उसने हमारे करने के लिए भले काम पहले से तय कर रखे हैं, “क्योंकि हम उसके बनाए हुए हैं; और मसीह यीशु में उन भले कामों के लिये सृजे गए जिन्हें परमेश्वर ने पहिले से हमारे करने के लिये तैयार किया” (इफिसियों 2:10)।

  • उसने अपने लोगों को यह आश्वासन भी दिया है कि वे उनकी सीमा से बाहर कभी नहीं परखे जाएँगे, और परीक्षा के समय उन्हें निकासी का मार्ग भी दिया जाएगा, “तुम किसी ऐसी परीक्षा में नहीं पड़े, जो मनुष्य के सहने से बाहर है: और परमेश्वर सच्चा है: वह तुम्हें सामर्थ्य से बाहर परीक्षा में न पड़ने देगा, वरन परीक्षा के साथ निकास भी करेगा; कि तुम सह सको” (1 कुरिन्थियों 10:13)।

  • परमेश्वर के लोगों के विरुद्ध कोई भी, कभी भी, कैसा भी दोष नहीं लगा सकता है, और उन्हें परमेश्वर के प्रेम से कोई भी, कुछ भी अलग नहीं कर सकता है, “परमेश्वर के चुने हुओं पर दोष कौन लगाएगा? परमेश्वर वह है जो उन को धर्मी ठहराने वाला है। फिर कौन है जो दण्ड की आज्ञा देगा? मसीह वह है जो मर गया वरन मुर्दों में से जी भी उठा, और परमेश्वर की दाहिनी ओर है, और हमारे लिये निवेदन भी करता है। कौन हम को मसीह के प्रेम से अलग करेगा? क्या क्लेश, या संकट, या उपद्रव, या अकाल, या नंगाई, या जोखिम, या तलवार? जैसा लिखा है, कि तेरे लिये हम दिन भर घात किए जाते हैं; हम वध होने वाली भेड़ों के समान गिने गए हैं। परन्तु इन सब बातों में हम उसके द्वारा जिसने हम से प्रेम किया है, जयवन्त से भी बढ़कर हैं। क्योंकि मैं निश्चय जानता हूं, कि न मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानताएं, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्थ्य, न ऊंचाई, न गहराई और न कोई और सृष्टि, हमें परमेश्वर के प्रेम से, जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है, अलग कर सकेगी” (रोमियों 8:33-39)।

    इसलिए, वास्तविक मसीही विश्वासी, जिन्होंने “परमेश्वर पर विश्वास” बनाए रखा है, वे सुरक्षित और सकुशल रहेंगे, उनके द्वारा “परमेश्वर पर विश्वास” बनाए रखने के कारण।

    दूसरी ओर, जो “परमेश्वर पर विश्वास” नहीं करते हैं, और जो परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारी नहीं रहते हैं, उन्हें इस बात पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए कि क्योंकि परमेश्वर सर्वज्ञानी है, सब कुछ के बारे में सब कुछ जानता है, इसलिए वे अपने किसी भी तर्क अथवा बहाने के द्वारा कभी भी परमेश्वर को बहकाने नहीं पाएँगे। परमेश्वर न केवल जो वे कहते और करते हैं, और क्यों, उसे जानता है; वरन यह भी जानता है कि उनमें क्या है, उनके विचारों को जानता है, और विचारों के पीछे के उद्देश्यों को भी जानता है। इसलिए, न्याय के समय परमेश्वर के सामने उनका कोई भी बहाना या तर्क चलने नहीं पाएगा; और अपने आप को सही ठहराने के लिए उनके पास कोई आधार नहीं होगा; न ही वे उनके द्वारा परमेश्वर का तिरस्कार किए जाने का कोई वैध कारण देने पाएँगे, और न ही परमेश्वर की अनाज्ञाकारिता करने का कोई उचित कारण बताने पाएँगे। इसलिए वे परमेश्वर का तिरस्कार करने या उसके अनाज्ञाकारी होने के उपयुक्त परिणामों को भुगतेंगे।

    अगले लेख में हम परमेश्वर के एक अन्य सम्बन्धित गुण, परमेश्वर का सर्वसामर्थी होना, के बारे में देखेंगे; यह गुण भी मसीही विश्वासियों को “परमेश्वर पर विश्वास” करने में स्थिर बने रहने में सहायता करता है।

    यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

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English Translation


The Elementary Principles – 19

Faith Towards God - 6

 

    We are presently considering the second of the six elementary principles that are mentioned in Hebrews 6:1-2, and every Christian Believer should learn. This second principle is having “Faith Towards God.” Unless the Christian Believer’s faith towards God and His Word is firm and unshakeable, Satan will be able to mislead them into committing sin. To stay safe from this satanic ploy we are learning from God’s Word the Bible about the attributes, characteristics, and character of God, so that the Believers have a strong foundation to build their faith upon. One of Satan’s ploy is to bring in false teachings and wrong interpretations of God’s Word and through them to create doubts about God, His attributes, characteristics, and character; and thereby beguile people into committing sin by going against what God has said. Therefore, it is imperative to know the basis of having “Faith Towards God” that is built upon a firm foundation. In the last article we had considered God’s attribute of being present everywhere all the time, i.e., being omnipresent, which had also led us to the attribute we will be considering today, God being omniscient, i.e., all knowledgeable, knowing everything about everything.

    God has said that He knows the end from the beginning, “Remember the former things of old, For I am God, and there is no other; I am God, and there is none like Me, Declaring the end from the beginning, And from ancient times things that are not yet done, Saying, 'My counsel shall stand, And I will do all My pleasure'” (Isaiah 46:9-10). God not only knows everything happening in the world but even in the entire creation. Till now man does not know the actual number of the stars, but God not only knows their count, but also calls them by name, “He counts the number of the stars; He calls them all by name” (Psalm 147:4). God also knows all men and what is in man “But Jesus did not commit Himself to them, because He knew all men, and had no need that anyone should testify of man, for He knew what was in man” (John 2:24-25). David had told his son Solomon, that God knows even the intent of the thoughts of man, “As for you, my son Solomon, know the God of your father, and serve Him with a loyal heart and with a willing mind; for the Lord searches all hearts and understands all the intent of the thoughts. If you seek Him, He will be found by you; but if you forsake Him, He will cast you off forever” (1 Chronicles 28:9). David also said about God knowing everything about him, “O Lord, You have searched me and known me. You know my sitting down and my rising up; You understand my thought afar off. You comprehend my path and my lying down, And are acquainted with all my ways. For there is not a word on my tongue, But behold, O Lord, You know it altogether” (Psalm 139:1-4). And David also spoke about God knowing in intricate detail his being formed and growing in his mother’s womb, i.e., even before he was born into the world; he says, “I will praise You, for I am fearfully and wonderfully made; Marvelous are Your works, And that my soul knows very well. My frame was not hidden from You, When I was made in secret, And skillfully wrought in the lowest parts of the earth. Your eyes saw my substance, being yet unformed. And in Your book they all were written, The days fashioned for me, When as yet there were none of them” (Psalm 139:14-16).

    In other words, Bible, the Word of God is very clear that there is nothing, absolutely nothing that God does not know about. His being the omniscient God gives His people great confidence and faith in His promises, that:

  • He has planned a good future for His people “For I know the thoughts that I think toward you, says the Lord, thoughts of peace and not of evil, to give you a future and a hope” (Jeremiah 29:11);

  • God has not left things to the Believer’s imagination, lest Satan beguile them into wrong doing through some ploy; He has already prepared the good works that we are to do “For we are His workmanship, created in Christ Jesus for good works, which God prepared beforehand that we should walk in them” (Ephesians 2:10);

  • He has also assured us that His people will never be tested beyond their limits, and when they are tested, a way out will also be provided to them, “No temptation has overtaken you except such as is common to man; but God is faithful, who will not allow you to be tempted beyond what you are able, but with the temptation will also make the way of escape, that you may be able to bear it” (1 Corinthians 10:13);

  • No one can bring any charge against God’s people, and nothing can separate them from the love of God “Who shall bring a charge against God's elect? It is God who justifies. Who is he who condemns? It is Christ who died, and furthermore is also risen, who is even at the right hand of God, who also makes intercession for us. Who shall separate us from the love of Christ? Shall tribulation, or distress, or persecution, or famine, or nakedness, or peril, or sword? As it is written: "For Your sake we are killed all day long; We are accounted as sheep for the slaughter." Yet in all these things we are more than conquerors through Him who loved us. For I am persuaded that neither death nor life, nor angels nor principalities nor powers, nor things present nor things to come, nor height nor depth, nor any other created thing, shall be able to separate us from the love of God which is in Christ Jesus our Lord.” (Romans 8:33-39).

So, the true Christian Believers, those who have kept “Faith towards God,” are safe and secure in God, because of their “Faith towards God.”

    On the other hand, those who do not have “Faith towards God,” and those who do not obey God, should seriously ponder, that in view of His being omniscient, knowing everything about everything, they will never be able to outwit God through any reasoning or excuses they make. He not only knows what they say and do, and why; but even knows what is in them, knows their thoughts, and knows the intents behind their thoughts. So, at judgment time none of their reasoning or excuses will stand before God, they will not have any grounds to justify themselves before Him and give any convincing answer for their not obeying God, or for their rejecting coming to faith in God. Therefore, they will receive a just consequence of their disobedience of God or their rejecting Him.

    In the next article we will consider another related attribute of God that helps the Christian Believers stand firm in their “Faith towards God” i.e., the omnipotence of God.

    If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life.  Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.

 

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