शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024

Growth through God’s Word / परमेश्वर के वचन से बढ़ोतरी – 31

 

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सुसमाचार से संबंधित शिक्षाएँ – 28

 

    हम सुसमाचार से सम्बन्धित शिक्षाओं के बारे में सीख रहे हैं, और हमने देखा है कि 1 कुरिन्थियों 15:1-4 तथा गलतियों 1:4 में परमेश्वर द्वारा दिए गए वास्तविक सुसमाचार का सार या मर्म है। परमेश्वर द्वारा दिए गया यही सुसमाचार, परमेश्वर पवित्र आत्मा के कार्य के द्वारा, लोगों को उनके पापों के लिए कायल करने, उन्हें प्रभु यीशु में विश्वास करने और उद्धार पाने के लिए उभारने, और उनके जीवनों में परिवर्तन लाने की सामर्थ्य एवं क्षमता रखता है। परमेश्वर द्वारा दिए गए इस सुसमाचार के अतिरिक्त जो भी सुसमाचार है, वह सुसमाचार का बिगाड़ा हुआ स्वरूप है, और लोगों को उनके पापों से बचाने के लिए अप्रभावी है, वह चाहे कितना भी मनोहर, आकर्षक, और ज्ञानवर्धक प्रतीत क्यों न हो। परमेश्वर द्वारा दिए गए इस सुसमाचार को बिगाड़ने और उसे अप्रभावी करने के लिए शैतान प्रयास करता रहता है; वह लोगों को उनकी बुद्धि और समझ तथा तात्कालिक परिस्थिति के अनुसार उस सुसमाचार में कुछ जोड़ने अथवा उस में से कुछ निकालने के लिए भरमाता है। पिछले लेख में हमने धार्मिक तथा भले कार्यों से सम्बन्धित तीन आम तरीकों को देखा है, जिनके द्वारा शैतान सुसमाचार में बिगाड़ उत्पन्न करता है। आज हम शैतान द्वारा सुसमाचार में लाए जाने वाले कुछ अन्य बिगाड़ों के बारे में देखेंगे।

    कलवरी के क्रूस पर दिया गया प्रभु यीशु मसीह का बलिदान, उनका मारा जाना, गाड़ा जाना, और मृतकों में से जी उठना सुसमाचार के वृतान्त का अनिवार्य और सबसे महत्वपूर्ण भाग है। इनके बिना, सुसमाचार निष्फल है, और पापों के पश्चाताप तथा प्रभु यीशु मसीह में लाए गए विश्वास के द्वारा उद्धार व्यर्थ है (1 कुरिन्थियों 15:12-20)। इसलिए, सुसमाचार पर सन्देह उत्पन्न करने का एक अन्य शैतानी तरीका है लोगों के अन्दर प्रभु यीशु मसीह की मृत्यु और पुनरुत्थान के प्रति सन्देह उत्पन्न करके, उनमें सुसमाचार के प्रति सन्देह उत्पन्न करना। शैतान ऐसा प्रभु की मृत्यु और पुनरुत्थान को, तथा प्रभु यीशु के मनुष्य बनकर मानवीय देह में पृथ्वी पर आने को चुनौती देने के द्वारा करता है। शैतान यह चुनौती गढ़ी गई झूठी कहानियों के द्वारा करता है, जो सुनने में तर्कसंगत और भक्तिपूर्ण भी लग सकती हैं, और लोग उन में फंस भी जाते हैं; किन्तु ये कहानियाँ चारों सुसमाचारों में दिए गए प्रभु यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान के वर्णनों के आधार पर की गई जाँच के सामने टिक नहीं पाती हैं। हम बहुत संक्षेप में इन गढ़ी गई कहानियों को देखेंगे, और सुसमाचारों में दिए गए प्रभु यीशु के क्रूस पर चढ़ाए जाने, मारे जाने, गाड़े जाने, और जी उठने के वर्णनों के आधार पर उनके प्रत्युत्तर को भी देखेंगे।

    प्रभु यीशु की मृत्यु के बारे में सन्देह उत्पन्न करने के शैतान के तरीकों में से एक, उसके द्वारा फैलाई गई यह धारणा है कि क्रूस पर प्रभु यीशु नहीं चढ़ाए गए और न ही वे क्रूस पर मरे थे; वरन उनके समान दिखने वाला कोई अन्य व्यक्ति उनके स्थान पर क्रूस पर चढ़ाया और मारा गया था। यहूदा इस्करियोती के द्वारा पहचाने और पकड़वाए जाने (मरकुस 14:43-46) के समय से लेकर प्रभु के क्रूस पर चढ़ाए जाने के समय तक, प्रभु यीशु को एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ा गया था। वे पूरे समय अपने शत्रुओं के हाथों में ही रहे, जिनमें रोमी सैनिक भी थे। इसलिए, उनके बच कर निकल जाने और उनके स्थान पर किसी अन्य के आ जाने का कोई अवसर ही नहीं था, तो फिर यह फेर-बदल कब और कैसे संभव होता? सुसमाचारों के वृतान्त दिखाते हैं कि उन्हें क्रूस पर चढ़ाने से पहले उनका उपहास हुआ था, उन्हें बुरी तरह से मारा-पीटा और कोड़ों से घायल किया गया था (मत्ती 26:67; 27:27-31; लूका 22:63; यूहन्ना 19:1-3), जिससे उनका शरीर इतना कमज़ोर हो गया था कि वे अपना क्रूस भी उठा कर चलने नहीं पा रहे थे (मत्ती 27:32), और अन्त में बड़ी क्रूरता के साथ उन्हें क्रूस पर ठोक दिया गया था कि वे एक अत्यंत पीड़ादायक मृत्यु को भोगें। कोई निर्दोष व्यक्ति उनके स्थान पर यह सब क्यों सहेगा, और वह यह बात क्यों नहीं बता देगा कि जिसे वे क्रूस पर चढ़ाना चाह रहे हैं वह कोई और ही है? और फिर, प्रभु यीशु के सबसे निकट के शिष्य, जिन्होंने मृत्यु तक उसके साथ खड़े रहने के दावे किये थे, वे भी उसे छोड़ कर भाग गए थे (मत्ती 26:35, 56; मरकुस 14:31, 50); तो फिर अब कौन बचा था जो उनके स्थान पर यह सब सहने के लिए स्वेच्छा से आ जाता, और सह लेता? साथ ही, क्रूस के उस स्थान पर प्रभु की माँ और प्रभु से परिचित अन्य महिलाएँ भी थीं, उनका शिष्य यूहन्ना था, और प्रभु ने यूहन्ना को अपनी माँ की देखभाल करने का दायित्व सौंपा था (यूहन्ना 19:25-27); यदि क्रूस पर प्रभु क स्थान पर कोई और लटका होता, तो क्या यह संभव होने पाता? क्या ये सभी लोग पहचान नहीं लेते कि क्रूस पर प्रभु नहीं कोई अन्य चढ़ाया गया है?

    हम ऐसी ही गढ़ी गई झूठी कहानियों के द्वारा सुसमाचार को बिगाड़ने और प्रभु के क्रूस पर चढ़ाए जाने, मारे जाने, गाड़े जाने, और जी उठने पर सन्देह लाने के प्रयासों को अगले लेख में और आगे देखेंगे।

    यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

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English Translation


Teachings Related to the Gospel – 28

 

    We are presently considering teachings related to the gospel, and have seen that the gospel given in the Bible, in 1 Corinthians 15:1-4 and Galatians 1:4 is the gist of the true God given gospel. It is this God given gospel that through the work of God the Holy Spirit has the power to convict people of their sins, bring them to faith in the Lord Jesus and salvation, and change their lives. Anything other than this God given gospel is a perversion of the gospel, and is ineffective for saving people from their sins, no matter how attractive, appealing, and educative it may sound. To pervert this God given gospel and render it ineffective, Satan keeps trying to get people to add or take way from it, by modifying it through their wisdom, understanding, and altering it according to the situation at hand. In the last article we have briefly seen three common ways, related to religious and good works, through which the gospel is altered and perverted. Today we will consider something more about these satanic perversions of the gospel.

    The sacrificial death of the Lord Jesus on the Cross of Calvary, and His resurrection from the dead are crucial to the gospel narrative. Without them, the gospel is infructuous, and salvation through repentance for sins and coming to faith in the Lord Jesus is vain (1 Corinthians 15:12-20). Therefore, another way in which Satan tries to discredit the gospel and try to have people disbelieve the gospel is by creating doubts about the death and resurrection of the Lord Jesus. Satan does this by challenging the death and resurrection of the Lord; as well as the Lord’s coming to earth in the flesh, as a human being. Satan does this through contrived, untenable stories that sound logical and even pious, and people fall for them. But these stories cannot stand up to the scrutiny based on the accounts of the Lord’s death and resurrection as recorded in the four Gospels. We will very briefly consider these concocted stories and their rebuttal based on the Gospel accounts of the crucifixion, death, burial, and resurrection of the Lord Jesus.

    One of the ways Satan has tried to create doubts about the death of the Lord Jesus is by alleging that it was not Jesus who was crucified and died on the cross, but someone resembling Him. After His being identified by Judas Iscariot and caught (Mark 14:43-46) till His crucifixion, the Lord Jesus was never left alone even for a moment; He was continually in the hands of His enemies, including the Roman soldiers. So, when and where would there have been a chance for Him to escape, and someone else take His place, without anybody knowing anything about this switch? The Gospel accounts show how severely He was flogged, tortured and ridiculed before being crucified (Matthew 26:67; 27:27-31; Luke 22:63; John 19:1-3), rendering Him so weak that He could not carry His cross (Matthew 27:32), and finally He was brutally crucified to die an excruciating death. Why would someone innocent suffer all this, and not say that he was not the one they were wanting to crucify? Moreover, the closest of His disciples who had claimed to always stand by Him even unto death, had forsaken Him and fled (Matthew 26:35, 56; Mark 14:31, 50); so, who would have volunteered to take His place and suffer all this, in His place? Then, at the place of His crucifixion, His mother and some other familiar women were there, and so was His disciple John, and the Lord handed over the charge of looking after His mother to John (John 19:25-27); would this have been possible if the person hanging on the cross was someone other than the Lord? Would not all these people have identified that the one on the cross was not Jesus but someone else?

    We will continue to look at these attempts to pervert the gospel through contrived stories meant to discredit the crucifixion, death, burial, and resurrection of the Lord Jesus in the next article.

    If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life.  Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.

 

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