रविवार, 7 अप्रैल 2024

Growth through God’s Word / परमेश्वर के वचन से बढ़ोतरी – 33

 

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सुसमाचार से संबंधित शिक्षाएँ – 30

 

    पिछले कुछ लेखों से हम सुसमाचार में बिगाड़ और सुसमाचार के प्रति सन्देह उत्पन्न करके सुसमाचार को अप्रभावी बनाने के लिए शैतान जिन युक्तियों का उपयोग करता है, उन्हें देख रहे हैं। पिछले लेख से हमने प्रचलित की गई इस झूठी कहानी, जिसे बेहोशी की धारणा भी कहते हैं, के बारे में देखना आरम्भ किया है कि प्रभु यीशु क्रूस पर चढ़ाया तो गया किन्तु मरा नहीं, केवल बेहोश हुआ, उसी दशा में कब्र में रख दिया गया, और वहाँ उसे होश आया, और तब वह निकलकर कब्र से बाहर आ गया। इसे प्रभु के शिष्यों ने उसके जी उठने के रूप में फैला दिया। पिछले लेख में हमने देखा था कि क्रूस की मृत्यु कितनी क्रूर और पीड़ादायक मृत्यु होती थी, तथा रोमी सैनिक उसकी मृत्यु को निश्चित कर लेने के बाद ही क्रूस से व्यक्ति की देह को उतारते थे, अन्यथा नहीं। इसलिए यह विचार रखना कि प्रभु मरा नहीं केवल बेहोश हुआ था पूर्णतः असम्भव और अस्वीकार्य है। आज हम इसी गलत धारणा से सम्बन्धित कुछ अन्य, प्रभु यीशु के जी उठने के बारे में प्रचलित गलत धारणाओं को देखेंगे, तथा बाइबल के आधार पर इन धारणाओं को गलत प्रमाणित करने को भी देखेंगे।

    प्रभु के मारे जाने और गाड़े जाने के बाद यहूदी धर्म-गुरुओं को आशंका थी कि प्रभु के शिष्य आकर उसकी देह को उठा ले जाएंगे और कह देंगे कि वह जी उठा है। प्रभु के पुनरुत्थान की भविष्यवाणी पवित्र शास्त्र में, भजन 16:10; 49:15 में की गई थी। इसलिए उन लोगों के लिए प्रभु का पुनरुत्थान इस बात का ठोस प्रमाण होना चाहिए था कि प्रभु ही वह प्रतिज्ञा किया हुआ मसीहा है। लेकिन वे इस बात को मानने के लिए तैयार ही नहीं थे। इसलिए उन्होंने कब्र के मुंह पर न केवल एक भारी पत्थर लगवा दिया, वरन कब्र को मोहर-बंद करवा दिया, और वहाँ पहरा बैठा दिया “दूसरे दिन जो तैयारी के दिन के बाद का दिन था, महायाजकों और फरीसियों ने पिलातुस के पास इकट्ठे हो कर कहा। हे महाराज, हमें स्मरण है, कि उस भरमाने वाले ने अपने जीते जी कहा था, कि मैं तीन दिन के बाद जी उठूंगा। सो आज्ञा दे कि तीसरे दिन तक कब्र की रखवाली की जाए, ऐसा न हो कि उसके चेले आकर उसे चुरा ले जाएं, और लोगों से कहने लगें, कि वह मरे हुओं में से जी उठा है: तब पिछला धोखा पहिले से भी बुरा होगा। पिलातुस ने उन से कहा, तुम्हारे पास पहरूए तो हैं जाओ, अपनी समझ के अनुसार रखवाली करो। सो वे पहरूओं को साथ ले कर गए, और पत्थर पर मुहर लगाकर कब्र की रखवाली की” (मत्ती 27:62-66)। 

    इन तथ्यों के संदर्भ में हम उस मिथ्या धारणा की ओर आते हैं, जिसके अंतर्गत लोग कहते हैं कि प्रभु यीशु क्रूस पर मरे नहीं, केवल बेहोश हुए, और फिर कब्र के ठन्डे वातावरण में कुछ समय के बाद उन्हें होश आया, और तब वे कब्र से बाहर निकाल कर आ गए, कहीं चले गए, और शिष्यों ने यह कह दिया कि वे जीवित हो उठे हैं। किन्तु उपरोक्त तथ्यों के सामने यह धारणा पूर्णतः निराधार है, बिना तथ्यों का ध्यान किए भ्रम फैलाने के लिए बनाई गई है। ध्यान कीजिए कि:

·        रोमी गवर्नर पिलातुस के कहने पर सूबेदार और सिपाहियों ने जाकर यह निश्चित किया कि प्रभु यीशु वास्तव में मर गया है। वे रोमी सैनिक क्रूस पर चढ़ाए हुओं के मरे अथवा जीवित होने की पहचान में अनुभवी थे; उन्होंने देखा कि प्रभु यीशु मर गए हैं, इसलिए उनके साथ क्रूसित किए गए शेष दोनों डाकुओं के समान, उन्होंने प्रभु यीशु की टांगें नहीं तोड़ीं, वरन छाती को भाले से छेद अवश्य दिया, और फिर पिलातुस को बता दिया कि प्रभु यीशु मर गया है। यदि उन्होंने पिलातुस से झूठ बोल होता, और यह बात सामने आ जाती, तो उस सूबेदार और उन सिपाहियों की मौत निश्चित थी, इसलिए वे प्रभु यीशु की मृत्यु का झूठा समाचार पिलातुस को देने का जोखिम नहीं उठा सकते थे।

·        प्रभु की देह को केवल कफन के कपड़े से ढाँप कर नहीं, बल्कि पचास सेर सामग्री में और कपड़े में लपेट कर कब्र में रखा गया था। क्या यह संभव कि कब्र के अंदर होश आने पर सारे शरीर की कोड़ों से उधेड़ दी गई स्थिति, और हाथों तथा पैरों में शरीर का वज़न सहन कर सकने लायक मोटी कीलों के घावों वाला व्यक्ति, जिसकी छाती को रोमी भाले ने छेद दिया हो, वह बिना किसी सहायता के, तीसरे दिन अकेले अपने आप ही सूखे हुए खून से कड़े हुए पचास सेर सामग्री तथा लिपटे हुए कपड़े को खोल कर उतार देगा और खड़ा हो जाएगा?

·        क्या इतनी यातना सहने, शरीर पर गहरे गंभीर घाव होने, और फिर इतना लहू बह जाने, तथा बिना खाए-पिए तीन दिन यूँ ही पड़े रहने के बाद किसी भी मनुष्य के शरीर में यह कर पाने की सामर्थ्य बचेगी?

·        क्या ऐसा घायल और निर्बल व्यक्ति अंदर से अकेले ही कब्र के मुँह पर लगे मोहर बंद भारी पत्थर को, जिसे हटा पाने की असमर्थता तीन स्त्रियाँ, मरियम मगदलीनी, याकूब की माता मरियम, और सलोमी व्यक्त करते हुई कब्र पर आ रही थीं (मरकुस 16:1-3), उसे वह स्वयं ही लुढ़का कर बाहर आने पाएगा? उन घायल हाथों और पैरों में, उसे भेदी गई छाती में, और लहू बहने से दुर्बल हो गई देह में क्या यह सब करने की शक्ति एवं क्षमता शेष रही होगी?

·        यदि एक बार को मान भी लिया जाए कि प्रभु यीशु अपने घायल हाथों से उस भारी पत्थर को लुढ़का कर, घायल पैरों पर चलकर बाहर आ गया, तो फिर उन पहरेदारों ने उसे पकड़ क्यों नहीं लिया जो कब्र के बाहर तैनात थे? वह अकेला और घायल, दुर्बल था; और पहरेदार कई थे - यीशु को पकड़ लेने में उन्हें क्या कठिनाई हो सकती थी?

किसी भी रीति से प्रभु यीशु के क्रूस पर मारे जाने, और दफनाए जाने से संबंधित तथ्य इस मिथ्या धारणा को कोई समर्थन प्रदान नहीं करते हैं कि वे क्रूस पर मरे नहीं थे, केवल बेहोश हुए थे, और फिर अन्ततः जब उन्हें होश आया तो उठाकर बाहर आ गए और कहीं चले गए। परमेश्वर का वचन पर्याप्त प्रमाण देता है, और कोई भी गढ़ी गई मिथ्या धारणा वचन द्वारा जाँचे जाने के समक्ष टिक नहीं पाती है, उसे चाहे कितने भी तर्कसंगत तरीके और चतुराई से क्यों न प्रस्तुत किया जाए।

अगले लेख में हम एक और शैतानी धारणा के बारे में देखेंगे कि प्रभु यीशु मानवीय देह में आए ही नहीं थे; यह लोगों का एक गलत विश्वास था।

    यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

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English Translation


Teachings Related to the Gospel – 30

 

    In the past few articles, we have been considering the ways by which Satan gets the gospel perverted and creates doubts about it amongst the people. Since the previous article we have started to consider a popularized false notion that is also commonly known as the Swoon Theory, that though the Lord Jesus was crucified, but He did not die on the cross, He only became unconscious, and in that unconscious state He was placed in the tomb, and there He regained consciousness, and then He came out of the tomb. The disciples of the Lord Jesus claimed this as His resurrection. We have seen in the last article how cruel and excruciating the death of the cross was, and that the Roman soldiers would only bring down the body of the person from the cross after they had ascertained his death, not before that. Therefore, to think that the Lord had not died, but had only become unconscious is absolutely untenable, and unacceptable. Today we will see some other things related to this false notion, about the Lord’s resurrection, and also see how to Biblically disprove these false notions.

    After the death and burial of the Lord, the religious leaders were worried that the Lord’s disciples will come and steal away His body, and claim that He has risen from the dead. Lord’s resurrection was prophesied in the Scriptures, in Psalms 16:10; 49:15; therefore, for these people, His resurrection should have been the ultimate proof of the Lord being the Messiah. But they were not willing to consider it. So, they not only had a heavy stone rolled on mouth of the grave, but also had it sealed, and put guards to secure the grave, “On the next day, which followed the Day of Preparation, the chief priests and Pharisees gathered together to Pilate, saying, "Sir, we remember, while He was still alive, how that deceiver said, 'After three days I will rise.' Therefore, command that the tomb be made secure until the third day, lest His disciples come by night and steal Him away, and say to the people, 'He has risen from the dead.' So the last deception will be worse than the first." Pilate said to them, "You have a guard; go your way, make it as secure as you know how." So they went and made the tomb secure, sealing the stone and setting the guard” (Matthew 27:62-66). 

    Now bearing the above Biblical facts in mind, let us turn back to the false notion that people have, that the Lord Jesus only became unconscious on the cross, did not die, and in the cool environment of the grave, He regained consciousness, revived, came out of the grave, and walked away to some unknown place, and the disciples spread the claim that He had risen from the dead. But in light of the above facts, this notion is absolutely baseless, is a concocted story spread to deceive people. Consider some things here:

·        On the orders of Pilate, the Roman Governor, the soldiers went to ascertain that the Lord had indeed died on the cross. Those Roman soldiers were experienced in recognizing whether the person hanging on the cross was dead or not. They broke the legs of the other two criminals crucified with the Lord, but did not break the legs of the Lord, still they did pierce His chest to confirm His death, and told the same to Pilate. Had they lied to Pilate, and had this at any time come to the knowledge of Pilate, then that Centurion and those soldiers would certainly have been killed as punishment; so, there is no way they could have taken the risk of giving a false report to Pilate and risked their lives because of it.

·        The Lord’s body was not just covered, but wrapped in linen cloth along with a hundred pounds of material. Now, is it at all possible that a person whose body had been badly bruised by the scourging, whose hands and feet had been pierced with thick nails, by which he hung on the cross, and whose chest had been pierced by a Roman spear, he, without any help, on the third day, would be able to unwrap himself from the blood crusted cloth and hundred pounds of material, and stand up?

·        After having suffered all this excruciating torture, severe wounds, and blood loss, and lying without any food or water for three days, would there be any strength left in any person to still be able to do this?

·        Would such a bruised, battered, and weak person, all by himself, be able to get up, walk, push away the heavy stone from the mouth of the grave, which three women, Mary Magdelene, Mary the mother of James, and Salome were wondering how to get rolled away (Mark 16:1-3)? Would he have any strength left in his body to do any of this?

·        Even if only for arguments sake, it is accepted that the Lord could do all this, push away the heavy stone with His pierced hands, and walk with His nail-pierced feet and step out of the grave, then what about the guards placed there? Why did they not catch and hold Him down? He was alone, bruised, battered, and weak, and the guards were many - so why could they not catch the Lord?

    Whichever way you look at it, there is just no support for this concocted story that the Lord did not die on the cross, only became unconscious and eventually got up and walked away from the grave. God’s Word gives ample evidence, and no concocted story can stand the scrutiny of God’s Word, no matter how logically and cleverly it is presented.

    In the next article we will consider another satanic notion that the Lord Jesus did not really come in a human body; this was just a wrong belief on part of the people.

    If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life.  Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.

 

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