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शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

हल्का मन

हम मसीही कभी कभी अपने गौरव को बनाए रखने के भ्रम में आवश्यक्ता से अधिक गंभीर और विनोद रहित हो जाते हैं। यह एक अजीब व्यवहार है, यह जानते हुए कि हम उस परमेश्वर के लोग हैं जिसने हंसी और आनन्द का अद्भुत दान हमें दिया है।

आनन्द-विनोद करना कोई गलत बात नहीं है, हर परिवार इसे अपने ही तरीके से करता है। मैं परमेश्वर का धन्यवादी हूँ कि उसने मुझे हंसी खुशी से भरे परिवार में रखा है। परिवार के हम सब सदस्य, आपस में हंसी मज़ाक करने, एक दूसरे की टांग खेंचने और एक दूसरे के साथ किसी न किसी बात में स्वस्थ प्रतियोगिता करने में लगे रहते हैं। हंसी हमारे जीवन की अनेक कठिनाईयों में परमेश्वर का ऐसा वरदान रहा है, जिसके साथ हम उन में से निकल सके। परमेश्वर का आनन्द अक्सर हमारा शरण स्थान और दृढ़ गढ़ रहा है (नेहेमेयाह ८:१०)।

जब राजा दाउद वाचा का पवित्र सन्दूक ओबेदेदोम के घर से यरुशलेम में लेकर आया तो "यहोवा के सम्मुख तन मन से नाचता रहा" ( २ शमुएल ६:१४)। पद १६ बताता है कि "जब यहोवा का सन्दूक दाऊदपुर में आ रहा था, तब शाऊल की बेटी मीकल ने खिड़की में से झांककर दाऊद राजा को यहोवा के सम्मुख नाचते कूदते देखा, और उसे मन ही मन तुच्छ जाना।" मीकल, जो दाउद की पत्नी भी थी, को लगा कि दाउद का यह करना उसके राजा होने की प्रतिष्ठा के अनुरूप नहीं था और उसने दाउद को इसके लिये कड़ा उलाहना दिया। दाउद की प्रतिक्रिया थी कि वह परमेश्वर के सम्मुख अपने आप को और भी तुच्छ कर लेगा (पद २२) क्योंकि परमेश्वर में, दाउद का मन हलका और निश्चिंत था।

हंसी और आनन्द के लिये समय निकालिये (सभोपदेशक ३:४)। - डेविड रोपर


स्वस्थ हंसी बेशकीमती होती है।

मन का आनन्द अच्छी औषधि है, परन्तु मन के टूटने से हड्डियां सूख जाती हैं। - नीतिवचन १७:२२


बाइबल पाठ: २ शमुएल ६:१२-२३

तब दाऊद राजा को यह बताया गया, कि यहोवा ने ओबेदेदोम के घराने पर, और जो कुछ उसका है, उस पर भी परमेश्वर के सन्दूक के कारण आशिष दी है। तब दाऊद ने जाकर परमेश्वर के सन्दूक को ओबेदेदोम के घर से दाऊदपुर में आनन्द के साथ पहूंचा दिया।
जब यहोवा के सन्दूक के उठानेवाले छ: कदम चल चुके, तब दाऊद ने एक बैल और एक पाला पोसा हुआ बछड़ा बलि कराया।
और दाऊद सनी का एपोद कमर में कसे हुए यहोवा के सम्मुख तन मन से नाचता रहा।
यों दाऊद और इस्राएल का समस्त घराना यहोवा के सन्दूक को जय जयकार करते और नरसिंगा फूंकते हुए ले चला।
जब यहोवा का सन्दूक दाऊदपुर में आ रहा था, तब शाऊल की बेटी मीकल ने खिड़की में से झांककर दाऊद राजा को यहोवा के सम्मुख नाचते कूदते देखा, और उसे मन ही मन तुच्छ जाना।
और लोग यहोवा का सन्दूक भीतर ले आए, और उसके स्थान में, अर्थात उस तम्बू में रखा, जो दाऊद ने उसके लिये खड़ा कराया था, और दाऊद ने यहोवा के सम्मुख होमबलि और मेलबलि चढ़ाए।
जब दाऊद होमबलि और मेलबलि चढ़ा चुका, तब उस ने सेनाओं के यहोवा के नाम से प्रजा को आशीर्वाद दिया।
तब उस ने समस्त प्रजा को, अर्थात‌, क्या स्त्री क्या पुरुष, समस्त इस्राएली भीड़ के लोगों को एक एक रोटी, और एक एक टुकड़ा मांस, और किशमिश की एक एक टिकिया बंटवा दी। तब प्रजा के सब लोग अपने अपने घर चले गए।
तब दाऊद अपने घराने को आशीर्वाद देने के लिये लौटा। और शाऊल की बेटी मीकल दाऊद से मिलने को निकली, और कहने लगी, आज इस्राएल का राजा जब अपना शरीर अपके कर्मचारियों की लौंडियों के साम्हने ऐसा उघाड़े हुए था, जैसा कोई निकम्मा अपना तन उघाढ़े रहता है, तब क्या ही प्रतापी देख पड़ता था!
दाऊद ने मीकल से कहा, यहोवा, जिस ने तेरे पिता और उसके समस्त घराने की सन्ती मुझ को चुनकर अपनी प्रजा इस्राएल का प्रधान होने को ठहरा दिया है, उसके सम्मुख मैं ने ऐसा खेला--और मैं यहोवा के सम्मुख इसी प्रकार खेला करूंगा।
और इस से भी मैं अधिक तुच्छ बनूंगा, और अपने लेखे नीच ठहरूंगा, और जिन लौंडियों की तू ने चर्चा की वे भी मेरा आदरमान करेंगी।
और शाऊल की बेटी मीकल के मरने के दिन तक उसके कोई सन्तान न हुआ।

एक साल में बाइबल:
  • भजन १२०-१२२
  • १ कुरिन्थियों ९

गुरुवार, 26 अगस्त 2010

आध्यात्म विद्या का महत्व

किसी नई कार को खरिदते समय खरीदने वाले केवल उसकी बहरी रंग-रूप को ही नहीं देखते, वे उसके आंतरिक भागों को और उसे सुचारू रूप से और भली भांति चलाने वाले इंजन को भी जांचते हैं।

किंतु जीवन साथी चुनते समय, कुछ लोग इस प्रकार सावधान नहीं होते। उन्हें बहुत देर से समझ आता है कि आकर्षक दिखने वाली देह के अंदर एक दोषपूर्ण दिमाग और आत्मा है। आदमी और औरत, दोनों ही यह गलती करते हैं, परन्तु लेखिका कैरोलिन जेम्स विशेषकर मर्दों के लिये यह लिखती है कि, "एक मर्द के लिये जीवन साथी चुनते समय जो जांचने की प्रथम बात होनी चाहिये वह है उस औरत की आध्यात्म विद्या में रुचि। इस बात का महत्व समझ में तब आता है जब आदमी को जीवन में किसी गंभीर कठिनाई का सामना करना पड़ता है और उसे प्रोत्साहन देने के लिये केवल वह स्त्री ही उसके साथ हो।

राजा सुलेमान को यह पता होना चहिये था, आखिरकर वह संसार का सबसे बुद्धिमान मनुष्य था ( १ राजा ३:१२, ४:२९-३४)। परन्तु सुलेमान ने परमेश्वर की आज्ञा मानने के स्थान पर, अपनी इच्छाओं के अनुसार मनमानी करी, और ऐसी स्त्रीओं से ब्याह किया जो परमेश्वर पर विश्वास नहीं करतीं थीं (११:१, २)। इसके परिणाम घातक हुए, सुलेमान की पत्नियों ने उसका मन अन्य देवी-देवताओं की ओर मोड़ दिया (पद ३, ४) और परमेश्वर उससे क्रोधित हुआ। इसका दीर्घकालीन परिणाम हुआ कि इस्त्राएल का राज्य विभाजित और पराजित हुआ (पद ११-१३)।

परमेश्वर का अच्छा ज्ञान सबके लिये आवश्यक है। यदि हमारा प्रेम किसी ऐसे जन के प्रति है जो परमेश्वर को नहीं जानता और न प्रेम करता है, तो जीवन में सही निर्णय ले पाना हमारे लिये कठिन होगा। - जूली ऐकरमैन लिंक


परमेश्वर के संबंध में गलत धारणाएं और विश्वास रखने से, मनुष्यों के संबंध में गलत निर्णय ले लिए जाते हैं।


अविश्वासियों के साथ असमान जूए में न जुतो - २ कुरिन्थियों ६:१४

बाइबल पाठ: १ राजा १:४-१३

सो जब सुलैमान बूढ़ा हुआ, तब उसकी स्त्रियों ने उसका मन पराये देवताओं की ओर बहका दिया, और उसका मन अपने पिता दाऊद की नाईं अपने परमेश्वर यहोवा पर पूरी रीति से लगा न रहा।
सुलैमान तो सीदोनियों की अशतोरेत नाम देवी, और अम्मोनियों के मिल्कोम नाम घृणित देवता के पीछे चला।
और सुलैमान ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, और यहोवा के पीछे अपने पिता दाऊद की नाईं पूरी रीति से न चला।
उन दिनों सुलैमान ने यरूशलेम के साम्हने के पहाड़ पर मोआबियों के किमोश नाम घृणित देवता के लिये और अम्मोनियों के मोलेक नाम घृणित देवता के लिये एक एक ऊंचा स्थान बनाया।
और अपनी सब पराये स्त्रियों के लिये भी जो अपने अपने देवताओं को धूप जलातीं और बलिदान करती थीं, उस ने ऐसा ही किया।
तब यहोवा ने सुलैमान पर क्रोध किया, क्योंकि उसका मन इस्राएल के परमेश्वर यहोवा से फिर गया था जिस ने दो बार उसको दर्शन दिया था।
और उस ने इसी बात के विषय में आज्ञा दी थी, कि पराये देवताओं के पीछे न हो लेना, तौभी उस ने यहोवा की आज्ञा न मानी।
और यहोवा ने सुलैमान से कहा, तुझ से जो ऐसा काम हुआ है, और मेरी बन्धाई हुई वाचा और दी हुई वीधि तू ने पूरी नहीं की, इस कारण मैं राज्य को निश्चय तुझ से छीन कर तेरे एक कर्मचारी को दे दूंगा।
तौभी तेरे पिता दाऊद के कारण तेरे दिनो में तो ऐसा न करूंगा, परन्तु तेरे पुत्र के हाथ से राज्य छीन लूंगा।
फिर भी मैं पूर्ण राज्य तो न छीन लूंगा, परन्तु अपने दास दाऊद के कारण, और अपने चुने हुए यरूशलेम के कारण, मैं तेरे पुत्र के हाथ में एक गोत्र छोड़ दूंगा।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ११९:८९-१७६
  • १ कुरिन्थियों ८

बुधवार, 25 अगस्त 2010

मित्र के लिए विलाप

एक पास्टर होने के नाते मुझे कई बार अन्त्येष्टि क्रियाओं का नेतृत्व करना पड़ता है। ऐसे में सभा का संचालक मुझे एक पोस्ट कार्ड के आकार का कार्ड पकड़ा देता है जिसमें मृतक के बारे में लिखा होता है, जिससे मैं उस व्यक्ति के बारे में जानकारी बता सकूं। चाहे यह पद्वति कितनी भी व्यावाहरिक और आवश्यक हो, मैं कभी भी इसके साथ सन्तुष्ट नहीं रहा। मुझे सदा यही लगा कि किसी के संपूर्ण जीवन को एक छोटे से कार्ड पर सीमित कर देना सही नहीं है, जीवन एक कार्ड से कहीं बड़ा है।

अपने मित्र योनातान की मृत्यु का समाचार मिलने के बाद, दाउद ने उसके जीवन को याद करने में समय बिताया, उसने अपने मित्र की याद में एक विलपगीत भी लिखा (२ शमुएल १:१७-२७) जिसे गाकर लोग उसे स्मरण कर सकें। विलापगीत में दाउद ने अपने मित्र के साहस और कौशल को स्मरण किया, अपने गहरे दुखः की बात कही, योनातान के उत्तम, मनोहर और वीरता से भरे जीवन की सराहना करी। दाउद के लिए यह यादगारी और गहरे विलाप का समय था।

जब हम किसी प्रीय के लिये दुखी होते हैं, तो यह अति आवश्यक है कि हम उसके जीवन की प्रीय यादों और उसके साथ के अपने अनुभवों को स्मरण करें। यह यादें हमारे हृदय में ख्यालों की एक बाढ़ सी ले आतीं हैं, जिन्हें एक कार्ड में सीमित कर पाना संभव नहीं है। जिस दिन यह दुखः हमारे पास आता है, वह दिन संक्षिप्त यादों और अपने प्रीय के जीवन की छोटी झांकियों को याद करने का समय नहीं है। वह समय है विस्तारपूर्वक और गहराई से अपने प्रीय जन को याद करने का और उसके जीवन के प्रसंगों, विवरण और उसके द्वारा हमारे जीवन पर पड़ी छाप के लिये परमेश्वर को धन्यवाद देने का।

ऐसा समय होता है ठहरने, मनन करने और आदर देने का। - बिल क्राउडर


जीवन की बहुमूल्य यादें मृत्यु के गंभीर दुखः को सहने योग्य बना देती हैं।

हे मेरे भाई योनातन, मैं तेरे कारण दु:खित हूँ, तू मुझे बहुत मनभाऊ जान पड़ता था - २ शमुएल १:२६


एक साल में बाइबल:
  • भजन ११९:१-८८
  • १ कुरिन्थियों ७:२०-४०

मंगलवार, 24 अगस्त 2010

अपनी कहानी सुनाओ

न्यूयॉर्क के एक संगठन में कार्य करने वाले एक सलहकार का कहना है उसके स्नातक विद्यार्थी उसके द्वारा उनके सामने रखी गई बातों का केवल लगभग ५ प्रतिशत ही याद रखते हैं, किंतु उन्हीं बातों के दौरान, उदाहरण स्वरूप सुनाई गई कहानियों का लगभग ५० प्रतिशत उन्हें याद रहता है। संपर्क विशेषज्ञों में यह मत बढ़ता जा रहा है कि किसी बात को दूसरों तक पहुंचाने में व्यक्तिगत संपर्क का बहुत महत्व है। किसी भी वकतव्य में, कोरे तथ्य और संख्याएं श्रोताओं को सुला देते हैं किंतु वास्तविक अनुभवों के दृष्टांत उन्हें कार्य करने के लिये प्रेरित करते हैं। लेखिका ऐनैट सिमन्स का कहना है कि किसी भी असफल संपर्क में असफलता का मुख्य कारण मानवीय स्पर्श का अभाव होता है।

मरकुस ५:१-२० में वृतान्त है एक ऐसे मनुष्य का जो दुष्टात्माओं से पीड़ित था, किसी के भी काबू में नहीं रहता था और अपने आप को घायल करता रहता था। प्रभु यीशु ने उसे उन दुष्टआत्माओं से छुड़ाया, तो उस चंगे हुए व्यक्ति ने प्रभु से विनती करी कि अब प्रभु उसे अपने साथ ही रहने दे, "परन्‍तु उस [प्रभु यीशु] ने उसे आज्ञा न दी, और उस से कहा, अपने घर जाकर अपने लोगों को बता, कि तुझ पर दया करके प्रभु ने तेरे लिये कैसे बड़े काम किए हैं। वह जाकर दिकपुलिस में इस बात का प्रचार करने लगा, कि यीशु ने मेरे लिये कैसे बड़े काम किए, और सब अचम्भा करते थे।" (मरकुस ५:१९, २०)

साधारणतया, प्रभु यीशु के सुसमाचार के प्रचार में ज्ञान और वाकपटुता को आवश्यक्ता से कहीं अधिक महत्व दिया जाता है। परमेश्वर ने आप के साथ जो किया है, उसकी सामर्थ को कम मत समझिये, और अपने उद्धार के जीवन कि कहानी लोगों को सुनाने से मत घबराइये। - डेविड मैककैसलैंड


सुसमाचार बांटना, एक व्यक्ति द्वारा किसी दूसरे को अच्छी खबर सुनाने जैसा है।

...अपने घर जाकर अपने लोगों को बता, कि तुझ पर दया करके प्रभु ने तेरे लिये कैसे बड़े काम किए हैं। - मरकुस ५:१९


बाइबल पाठ:

और वे झील के पार गिरासेनियों के देश में पहुंचे।
और जब वह नाव पर से उतरा तो तुरन्‍त एक मनुष्य जिस में अशुद्ध आत्मा थी कब्रों से निकल कर उसे मिला।
वह कब्रों में रहा करता था। और कोई उसे सांकलों से भी न बान्‍ध सकता था।
क्‍योंकि वह बार बार बेडिय़ों और सांकलों से बान्‍धा गया था, पर उस ने साकलों को तोड़ दिया, और बेडिय़ों के टुकड़े टुकड़े कर दिए थे, और कोई उसे वश में नहीं कर सकता था।
वह लगातार रात-दिन कब्रों और पहाड़ो में चिल्लाता, और अपने को पत्थरों से घायल करता था।
वह यीशु को दूर ही से देखकर दौड़ा, और उसे प्रणाम किया।
और ऊंचे शब्‍द से चिल्लाकर कहा "हे यीशु, परमप्रधान परमेश्वर के पुत्र, मुझे तुझ से क्‍या काम? मैं तुझे परमेश्वर की शपथ देता हूं, कि मुझे पीड़ा न दे।"
क्‍योंकि उस ने उस से कहा था, "हे अशुद्ध आत्मा, इस मनुष्य में से निकल आ।"
उस ने उस से पूछा "तेरा क्या नाम है?" उस ने उस से कहा "मेरा नाम सेना है क्‍योंकि हम बहुत हैं।"
और उस ने उस से बहुत बिनती की, हमें इस देश से बाहर न भेज।
वहां पहाड़ पर सूअरों का एक बड़ा झुण्‍ड चर रहा था।
और उन्‍होंने उस से बिनती करके कहा, कि "हमें उन सूअरों में भेज दे, कि हम उन के भीतर जाएं।"
सो उस ने उन्‍हें आज्ञा दी और अशुद्ध आत्मा निकल कर सूअरों के भीतर पैठ गई और झुण्‍ड, जो कोई दो हजार का था, कड़ाडे पर से झपटकर फील में जा पड़ा, और डूब मरा।
और उन के चरवाहों ने भाग कर नगर और गांवों में समाचार सुनाया।
और जो हुआ था, लोग उसे देखने आए। और यीशु के पास आकर, वह जिस में सेना समाई थी, उसे कपड़े पहिने और सचेत बैठे देख कर, डर गए।
और देखने वालों ने उसका जिस में दुष्‍टात्माएं थीं, और सूअरों का पूरा हाल, उन को कह सुनाया।
और वे उस से बिनती कर के कहने लगे, कि हमारे सिवानों से चला जा।
और जब वह नाव पर चढ़ने लगा, तो वह जिस में पहिले दुष्‍टात्माएं थीं, उस से बिनती करने लगा, कि मुझे अपने साथ रहने दे।
परन्‍तु उस ने उसे आज्ञा न दी, और उस से कहा, "अपने घर जाकर अपने लोगों को बता, कि तुझ पर दया करके प्रभु ने तेरे लिये कैसे बड़े काम किए हैं।"
वह जाकर दिकपुलिस में इस बात का प्रचार करने लगा, कि यीशु ने मेरे लिये कैसे बड़े काम किए, और सब अचम्भा करते थे।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ११६-११८
  • १ कुरिन्थियों ७:१-१९

सोमवार, 23 अगस्त 2010

दाउद के समान

एक वृद्धा को अपने पास्टर का प्रति रविवार की प्रातः प्रार्थना करने का तरीका अच्छा नहीं लगता था, सो उसने जाकर यह बात उनसे कही। वृद्धा ने पास्टर से कहा कि, "मेरा पास्टर पाप कर सकता है, मैं ऐसा सोचना भी नहीं चाहती"। जब सन्देश देने से पहले पास्टर प्रार्थना में परमेश्वर के आगे यह अंगीकार और पश्चाताप करता कि बीते सप्ताह में उससे पाप हुआ है, इससे उसे परेशानी होती थी।

हम यह मानना चाहते हैं कि हमारे आत्मिक अगुवे पाप नहीं करते, परन्तु वास्तविकता यही है कि कोइ भी मसीही शरीर के पापी स्वभाव के बोझ से मुक्त नहीं है। पौलुस ने कुलुस्सियों के विश्वासियों से कहा "इसलिये अपने उन अंगो को मार डालो, जो पृथ्वी पर [के] हैं..."(कुलुस्सियों ३:५)। समस्या तब होती है जब हम ऐसा करने की अपेक्षा प्रलोभनों के आगे झुक जाते हैं और फिर पाप द्वारा परेशनियों में पड़ जाते है। यदि ऐसा हो तो हमें अपने आप को विवश और असहाय समझकर निराश नहीं हो जाना चाहिये। परमेश्वर ने आत्मिक अवस्था की पुनः प्राप्ति के लिये उपाय दिया है, परमेश्वर के वचन में हमारे पास अनुसरण करने के लिये एक उदाहरण है - राजा दाउद का।

राजा दाउद के पाप प्रलोभनओं के आगे घुटने टेकने से उत्पन्न दुशपरिणामों का उदाहरण हैं। ऐसी अव्स्था में पड़कर, जब दाउद ने परमेश्वर के सन्मुख अपने पाप को स्वीकार किया, तो उसके मन और कलम से जो निकला वह भजन ५१ में हमारे लिये एक नमूना है। भजन ५१ को ध्यान से पढ़िये और देखिये कि दाउद ने क्या किया - सबसे पहले वह परमेश्वर के चरणों पर गिर पड़ा, उससे अपने पाप का अंगीकार किया, क्षमा याचना करी और परमेश्वर के खरे न्याय पर विश्वास व्यक्त किया (पद १-६)। फिर उसने परमेश्वर द्वारा, जो क्षमा करके उसके पापों का लेखा मिटा सकता है, शुद्ध और स्वच्छ किये जाने का आग्रह किया (पद ७-९)। फिर अपने साथ पवित्र आत्मा की सहायता के बने रहने और अपने बहाल होने के लिये प्रार्थना करी (पद १०-१२)।

क्या पाप ने आपके आनन्द को छीन लिया है और परमेश्वर से आपकी संगति में बाधक हो गया है? तो दाउद के समान, आप भी अपनी समस्या के साथ परमेश्वर की शरण में जाएं। - डेव ब्रैनन


पश्चाताप, परमेश्वर के साथ हमारे चलने के लिये मार्ग को साफ करता है।

मैं तो अपने अपराधों को जानता हूं... - भजन ५१:३


बाइबल पाठ: भजन ५१:१-१२

हे परमेश्वर, अपनी करूणा के अनुसार मुझ पर अनुग्रह कर, अपनी बड़ी दया के अनुसार मेरे अपराधों को मिटा दे।
मुझे भलीं भांति धोकर मेरा अधर्म दूर कर, और मेरा पाप छुड़ा कर मुझे शुद्ध कर!
मैं तो अपने अपराधों को जानता हूं, और मेरा पाप निरन्तर मेरी दृष्टि में रहता है।
मैं ने केवल तेरे ही विरूद्ध पाप किया, और जो तेरी दृष्टि में बुरा है, वही किया है, ताकि तू बोलने में धर्मी और न्याय करने में निष्कलंक ठहरे।
देख, मैं अधर्म के साथ उत्पन्न हुआ, और पाप के साथ अपनी माता के गर्भ में पड़ा।
देख, तू हृदय की सच्चाई से प्रसन्न होता है, और मेरे मन ही में ज्ञान सिखाएगा।
जूफा से मुझे शुद्ध कर, तो मैं पवित्र हो जाऊंगा, मुझे धो, और मैं हिम से भी अधिक श्वेत बनूंगा।
मुझे हर्ष और आनन्द की बातें सुना, जिस से जो हडि्डयां तू ने तोड़ डाली हैं वह मगन हो जाएं।
अपना मुख मेरे पापों की ओर से फेर ले, और मेरे सारे अधर्म के कामों को मिटा डाल।
हे परमेश्वर, मेरे अन्दर शुद्ध मन उत्पन्न कर, और मेरे भीतर स्थिर आत्मा नये सिरे से उत्पन्न कर।
मुझे अपने साम्हने से निकाल न दे, और अपने पवित्र आत्मा को मुझ से अलग न कर।
अपने किए हुए उद्धार का हर्ष मुझे फिर से दे, और उदार आत्मा देकर मुझे सम्भाल।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ११३-११५
  • १ कुरिन्थियों ६

रविवार, 22 अगस्त 2010

अविनाशी

अंतरिक्ष यान, पृथ्वी पर अपनी वापसी के समय ध्वनि कि गति से २५ गुना अधिक तीव्र गति से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है। वायुमंडल से उत्पन्न घर्षण के कारण, यान का बाहरी तापमान ३००० डिग्री फैरन्हाईट तक हो जाता है। इतने अधिक तापमान पर यान को भस्म होने से बचाने के लिये विशेष ताप रोधक पदार्थ से बनी ३४,००० पट्टियों से बने खोल से उसकी सुरक्षा की जाती है। इन पट्टियां का ताप से नाश अथवा भस्म न होना अनिवार्य है, नहीं तो अंतरिक्ष यान नाश हो जाएगा।

मृत्यु और विनाश के इस संसार में कुछ भी अविनाशी नहीं है, परन्तु बाइबल अविनाशी जीवन के बारे में बताती है। प्रभु यीशु की तुलना व्यवस्था के कामों से करके कहा गया है कि, "जो शारीरिक आज्ञा की व्यवस्था के अनुसार नहीं, पर अविनाशी जीवन की सामर्थ के अनुसार नियुक्त हो तो हमारा दावा और भी स्‍पष्‍टता से प्रगट हो गया" (इब्रानियों ७:१६)।

मसीह हमारा महायाजक (महापुरोहित) है, जिसकी याजकीय सेवकाई में हमारे पापों के लिये उसका बलिदान दिया जाना अनिवार्य था, और उसने ऐसा किया। पापों के लिये उस एक बलिदान के दिये जाने के बाद अब मृतकों में से मसीह का पुनरुत्थान इस बात को निश्चित करता है कि जितने पापों से पश्चाताप के साथ उसमें विश्वास लाएंगे, वे मसीह में अनन्त उद्धार को प्राप्त करेंगे।

स्वास्थ्य, संबंधों, धन-संपत्ति आदि की हानि में हम सोच सकते हैं कि जीवन विनाश हो गया, किंतु एक विश्वासी के लिये यह सत्य कदापि नहीं है। मसीह के साथ हुए हमारे आत्मिक गठजोड़ के कारण, यह उसका वायदा है कि हम उसके अविनाशी जीवन के भागीदार होंगे (युहन्ना १४:१९)। - डेनिस फिशर


जिन्होंने अपनी सुरक्षा परमेश्वर के हाथों में रखी है उन्हें कुछ भी हिला नहीं सकता।

...परन्‍तु तुम मुझे देखोगे, इसलिये कि मैं जीवित हूं, तुम भी जीवित रहोगे। - यूहन्ना १४:१९


बाइबल पाठ: इब्रानियों ७:११-२१

तक यदि लेवीय याजक पद के द्वारा सिद्धि हो सकती है (जिस के सहारे से लोगों को व्यवस्था मिली थी) तो फिर क्‍या आवश्यकता थी, कि दूसरा याजक मलिकिसिदक की रीति पर खड़ा हो, और हारून की रीति का न कहलाए
क्‍योंकि जब याजक का पद बदला जाता है तो व्यवस्था का भी बदलना अवश्य है।
क्‍योंकि जिस के विषय में ये बातें कही जाती हैं कि वह दूसरे गोत्र का है, जिस में से किसी ने वेदी की सेवा नहीं की।
तो प्रगट है, कि हमारा प्रभु यहूदा के गोत्र में से उदय हुआ है और इस गोत्र के विषय में मूसा ने याजक पद की कुछ चर्चा नहीं की।
और जब मलिकिसिदक के समान एक और ऐसा याजक उत्‍पन्न होने वाला था।
जो शारीरिक आज्ञा की व्यवस्था के अनुसार नहीं, पर अविनाशी जीवन की सामर्थ के अनुसार नियुक्त हो तो हमारा दावा और भी स्‍पष्‍टता से प्रगट हो गया।
क्‍योंकि उसके विषय में यह गवाही दी गई है, कि तू मलिकिसिदक की रीति पर युगानुयुग याजक है।
निदान, पहिली आज्ञा निर्बल और निष्‍फल होने के कारण लोप हो गई।
(इसलिये कि व्यवस्था ने किसी बात की सिद्धि नहीं कि) और उसके स्थान पर एक ऐसी उत्तम आशा रखी गई है जिस के द्वारा हम परमेश्वर के समीप जा सकते हैं।
और इसलिये कि मसीह की नियुक्ति बिना शपथ नहीं हुई।
(क्‍योंकि वे तो बिना शपथ याजक ठहराए गए पर यह शपथ के साथ उस की ओर से नियुक्त किया गया जिस ने उसके विषय में कहा, कि प्रभु ने शपथ खाई, और वह उस से फिर ने पछताएगा, कि तू युगानुयुग याजक है)।

एक साल में बाइबल:
  • भजन ११०-११२ १
  • कुरिन्थियों ५

शनिवार, 21 अगस्त 2010

२० अगस्त की पोस्ट "मैं कर सकता हूँ" पर प्राप्त टिप्पणी के सन्दर्भ में


श्रीमन दीपक जी,
रोज़ की रोटी ब्लॉग पर करी गई आपकी टिप्पणी और प्रस्तुत विचारों के लिये धन्यवाद। दो पंक्तियों में आपने कुछ बहुत महत्वपुर्ण बातें अंकित करीं हैं। इनके और आपकी टिप्पणी बारे में, बहुत संक्षेप में और तीन शीर्षकों (- भाषा, क्षेत्र एवं संस्कृति, धर्म एवं धन) के अन्तर्गत अपनी बात कहना चाहुंगा।

१. - भाषा:
सृष्टि के सर्जनहार-पालनहार-तारणहार सृष्टिकर्ता को संसार की प्रत्येक भाषा में किसी न किसी शब्द से संबोधित और प्रकट किया जाता है। हमारी मातृभाषा हिंदी में यह शब्द है "परमेश्वर"। क्योंकि मसीही विश्वास प्रभु यीशु मसीह को इस समस्त सृष्टि का सर्जनहार-पालनहार-तारणहार सृष्टिकर्ता मानता है, इसीलिये उसके वचन को परमेश्वर का वचन कहते हैं। यह किसी भाषा अथवा संस्कृति की अवमानना या "आत्मसात करके उसके साथ खिलवाड़" नहीं है, केवल अपने विचार को जिस भाषा में व्यक्त करना है, उस भाषा में उपलब्ध उचित शब्द का प्रयोग है। यदि आप अंग्रेज़ी भाषा में परमेश्वर के बारे में कुछ कहना चाहेंगे तो "god" शब्द का प्रयोग तो करेंगे ही, तो क्या आपके ऐसा करने से पश्चिमी संस्कृति और विचारधारा की अवमानना होगी?

२. - क्षेत्र एवं संस्कृति:
न तो प्रभु यीशु मसीह और न मसीही विश्वास किसी संस्कृति या भूभाग तक सीमित हैं। बाइबल स्पष्ट बताती है कि प्रभु यीशु मसीह सारे संसार के लिये आये और सारे संसार के पापों के लिये उन्होंने अपना बलिदान दिया। इसमें किसी देश, धर्म, भाषा, जाति, रंग, शिक्षा, संपन्न्ता, पद-प्रतिष्ठा आदि का कोई स्थान या महत्व नहीं है। सारे संसार में जो कोई स्वेच्छा से उन पर विश्वास करके अपने निज पापों से पश्चाताप करता है, वह पापों की क्षमा, उद्धार एवं परमेश्वर कि सन्तान होने का अधिकार प्राप्त करता है। इस संदर्भ में अनुरोध करूंगा कि आप http://samparkyeshu.blogspot.com/2009/12/blog-post_20.html तथा संपर्कयीशु ब्लॉग पर उपलब्ध अन्य लेखों का अवलोकन एवं अधयन करें।

एक और गलतफहमी जो बहुत से लोगों में है, और आपने भी जिसका प्रयोग किया है - प्रभु यीशु मसीह पश्चिमी सभ्यता के हैं। जी नहीं; वैसे तो वे सारे संसार के हैं, किंतु यदि मात्र उनके जन्मस्थान, जीवन और कार्य स्थल के परिपेक्श की अति सीमित दृष्टि से भी देखें तो वे उस भूभाग से हैं जिसे संसार इस्त्राएल के नाम से जानता है और जो विश्व के एशिया महाद्वीप के मध्य-पूर्व का एक भाग है न कि पश्चिम का; हमारा देश भारत भी इसी महाद्वीप के दक्षिण का ही भाग है। इस दृष्टिकोण से भी प्रभु यीशु पश्चिम कि अपेक्षा हमारे अधिक निकट ठहरे।

इसी से संबंधित कुछ और बातों को कहना चाहुंगा: आम और प्रचलित धारणा के विपरीत, मसीही विश्वास अंग्रेज़ हमारे देश में लेकर नहीं आये, अंग्रेज़ों के भारत आने से लगभग १७००-१८०० तथा अब से लगभग २००० वर्ष पूर्व, प्रभु यीशु मसीह के मृत्कों में से पुनुर्त्थान और स्वर्गारोहण के कुछ ही वर्ष पश्चात उनके चेले, उन की आज्ञा के अनुसार, संसार के विभिन्न इलाकों में, उद्धार और पापों की क्षमा का उनका संदेश लेकर निकल पड़े और उन्हीं में से एक चेला - थोमा, भारतवर्ष आया और दक्षिण भारत में बस गया। उसके जीवन भर उसके पास सिवाय अपने प्रभु और गुरू की शिक्षाओं और उनकी आज्ञाकारिता के, और कुछ भी नहीं था; न कोई विदेशी मिशन, न कोई देशी अथवा विदेशी धन, न किसी पश्चिमी देश की संस्कृति या सभ्यता, न ही ऐसी किसी बात को दूसरों पर थोपने का इरादा, न अन्य कोई भी ऐसा उद्देश्य, जिसका आज अक्सर लोग मसीहीयों पर निराधार आरोप लगाते हैं। दुखः की बात है कि हमारे देश के जो ज्ञानी और समाज पर प्रभाव रखने वाले लोग इस एतिहासिक सत्य को जानते हैं, वे इसे प्रकट नहीं करते, वरन कुछ निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिये, प्रचलित गलत धारणा को ही जानबूझकर लोगों के सामने बढ़ा-चढ़ाकर रखते रहते हैं, तथ्यों से अन्जान लोगों को बरगलाते रहते हैं और उन्हें असत्य के आधार पर मसीहियों के विरुध भड़काते रहते हैं।

३. - धर्म और धन:
यह एक और बहुत बड़ी गलतफहमी है कि प्रभु यीशु संसार में अपना कोई धर्म स्थापित करने आये थे। वे कोई धर्म देने के लिये नहीं वरन संसार को पापों से मुक्ति का मार्ग देने आये थे। न तो उन्होंने स्वयं किसी धर्म की स्थापना करी और न ही कभी अपने अनुयायियों से ऐसा करने को कहा। इसाई धर्म और मसीही विश्वास में ज़मीन-आसमान का अंतर है। मसीही विश्वास प्रभु यीशु मसीह पर व्यक्तिगत रूप से और स्वेच्छा से किया जाता है, यह विश्वास है - कोई धर्म नहीं है। हमारी अपनी भारतीय संस्कृति के संदर्भ में इसे समझना और भी सरल है - यह प्रभु यीशु को गुरू धारण करके पूर्ण रूप से उसे समर्पित होना, अपने गुरू का अनुसरण करना और आज्ञाकारी रहना ही है। यदि मेरे पास सर्वोत्तम गुरू और उसकी सर्वोत्तम शिक्षाएं हैं, तो उसके बारे में दुसरों को बताने में क्या बुराई है? क्या प्रभु यीशु में या उसकी शिक्षाओं में आपने कुछ ऐसा पाया जो गलत है? हो सकता है कि इसाई धर्म या उस धर्म का पालन करने वालों में आपने कोई आपत्तिजनक बातें पाईं हों, पर प्रभु यीशु में? प्रभु यीशु धर्म, देश, संस्कृति, जाति आदि की सीमाओं में बंधा नहीं है, न ही वह इन और ऐसी बातों के आधार पर संसार और संसार के लोगों को विभाजित करता है, और न ही वह किसी को इन बातों के आधार पर ऊंचा-नीचा, छोटा-बड़ा, भला-बुरा आदि करके बताता है। वह तो अपने प्रेम और अनुग्रह में सब को, चाहे वे जो भी और जैसे भी हों, अपने आप में एक करके, बराबरी का एक ही दर्जा देता है - परमेश्वर की संन्तान होने का।

प्रत्येक धर्म में, इसाई धर्म में भी, उस धर्म को मानने वाले परिवार में जन्म लेने से, स्वाभाविक रीति से, जन्म लेने वाला बच्चा उसी धर्म का हो जाता है और उस धर्म के संसकारों में ही उसका पालन-पोषण होता है, और उसका उस धर्म की लीक से हटना बहुत बुरा माना जाता है। किंतु मसीही विश्वास में ऐसा नहीं है। मसीही विश्वास में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी स्वेच्छा से अपने पापों का अंगीकार और पश्चाताप करके प्रभु यीशु को समर्पण करना होता है। मेरे मसीही विश्वासी होने से मेरे परिवार का कोई भी सदस्य मसीही नहीं हो जाता, और ना ही मुझे पापों की क्षमा मिलने के कारण मेरे परिवार के किसी भी सदस्य को पापों की क्षमा स्वाभाविक रूप से या विरासत में मिल जाती है। मेरा उद्धार किसी दूसरे पर कदापि लागू नहीं होता। मैं उन्हें इसके बारे में बता सकता हूँ, समझा सकता हूँ, किंतु मसीही विश्वास में आना उनका अपना ही निर्णय होगा। यदि उन्होंने इस को नहीं माना और यह निर्णय नहीं लिया तो इस जीवन के बाद जब वे परमेश्वर के सामने अपने न्याय के लिये खड़े होंगे, तो मेरे मसीही विश्वास के सहारे अपने पापों की सज़ा से नहीं बच सकते। इसाई परिवार में जन्म लेने से, या इसाई धर्म अपना लेने से कोई मसीही विश्वासी नहीं हो जाता।

प्रभु यीशु ने कभी नहीं कहा कि धन या अन्य किसी संसारिक वस्तु के लालच का उपयोग करके उसके नाम में कोई समूह खड़ा करो, वरन उसने अपने चेलों को धरती पर नहीं परन्तु स्वर्ग में अपना धन एकत्रित करने को कहा, और धरती की नहीं वरन स्वर्गीय वस्तुओं के खोजी होने की शिक्षा दी। प्रभु यीशु का राज्य पृथ्वी का नहीं स्वर्ग का है, वह नाशमान नहीं वरन अविनाशी की ओर अपने चेलों का ध्यान करवाता है। ऐसे में प्रभु यीशु का कोई भी वास्तविक अनुयायी कैसे धन या सांसारिक वस्तुओं के लालच का उपयोग उसके नाम से कर सकता है? प्रभु यीशु ने न तो कोई धर्म दिया और न कभी किसी के धर्म परिवर्तन कराने की शिक्षा दी। उसने कहा "हे सब [पाप के] बोझ से दबे और थके लोगों मेरे पास आओ, मैं तुम्हें विश्राम दूंगा।" प्रभु यीशु के नाम से धन या सांसारिक वस्तुओं के लालच का प्रयोग करना पाप है और उस लालच को स्वीकार करके उसका चेला बनने का दावा करना भी पाप है; दोनो ही बातें प्रभु यीशु की शिक्षाओं के विपरीत हैं। किंतु यदि प्रभु यीशु को ग्रहण करने से परिवार, समाज और संसार से तिरिस्कार मिले, तो ऐसे तिरिस्कृत लोगों की सहायता, प्रभु यीशु मसीह का सन्देश उन तक लाने वालों के द्वारा करी जाना, क्या अनुचित है? यदि ऐसे अनुचित और निराधार तिरिस्कार और कटुता नहीं होगी, अस्त्य के आधार पर लोगों को विभाजित करना नहीं होगा तो फिर लालच के आरोप का स्थान भी नहीं होगा।

मैं आपका आभारी हूँ कि आपकी टिप्पणी ने ये कुछ अति महत्वपूर्ण बातें उजागर करने का मुझे यह सुअवसर दिया। आशा करता हूँ कि आपकी गलतफहमी दूर हुई होगी और निवेदन है कि यथासंभव इन सत्यों को उजागर करें क्योंकि अन्ततः जीत तो सत्य की ही होती है, तथा प्रभु यीशु को परख कर देखें कि वह कैसा भला है।

धन्यवाद सहित - रोज़ की रोटी