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बुधवार, 17 फ़रवरी 2016

सुनें


   एक पुरानी कहावत है, "परमेश्वर ने आपको केवल एक मूँह किंतु दो कान किसी उद्देश्य से ही दिए हैं"; सुन पाना जीवन के लिए आवश्यक योग्यताओं में से एक है। परस्पर संबंधों के विषय में परामर्श देने वाले कहते हैं कि हमें एक दूसरे की बात सुननी चाहिए। आत्मिक अगुवे कहते हैं कि हमें परमेश्वर की बात सुननी चाहिए। किंतु शायद ही कोई होगा जो यह कहता है कि हमें अपनी कही बात भी सुननी चाहिए। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि हमारे अन्तरात्मा की आवाज़ सदा ही सही होती है; और ना ही मैं यह कह रहा हूँ कि हमें परमेश्वर अथवा दूसरों की सुनने की बजाए अपनी ही सुनते रहना चाहिए। लेकिन जो मैं कहना चाह रही हूँ वह यह है कि हमें अपने आप को इसलिए सुनना चाहिए जिससे हम जान सकें कि दूसरे हमें कैसा सुनते हैं।

   जब मूसा इस्त्राएलियों को मिस्त्र की गुलामी से निकाल कर ले चला, तब उन इस्त्राएलियों को किसी के द्वारा अपनी बात सुनने का परामर्श दिया जाना चाहिए था। यद्यपि परमेश्वर उन्हें अद्भुत आश्चर्यकर्मों के द्वारा मिस्त्र की गुलामी से निकाल कर लाया था, परन्तु निकल आने के कुछ ही दिनों में ही वे कुड़कुड़ाने लगे (निर्गमन 16:2)। चाहे भोजन की उनकी आवश्यकता उचित थी, परन्तु उस आवश्यकता को व्यक्त करने का उनका तरीका गलत था (पद 3)।

   जब भी हम भय, क्रोध, अज्ञानता अथवा घमण्ड में होकर बोलते हैं तो लोगों को हमारे शब्दों से अधिक हमारी भावनाएं सुनाई देती हैं, चाहे हमारी कही बात सही ही क्यों ना हो; लेकिन सुनने वाले यह नहीं जान पाते कि हमारे भाव प्रेम और चिंता के कारण हैं अथवा अनादर और तिरिस्कार के कारण, इसलिए हमें और हमारी बात के गलत समझे जाने का जोखिम बना रहता है। किंतु यदि कुछ भी बोलने से पहले हम अपनी सुन लें, अर्थात अपनी बात और भाव का आँकलन कर लें, तो हम अपने असावधानी से कहे शब्दों से किसी की हानि करने या परमेश्वर का दिल दुखाने से बचे रहेंगे। - जूली ऐकैरमैन लिंक


उतावलेपन और बिना सोचे-समझे कहे गए शब्द भलाई कम, हानि अधिक करते हैं।

बातें करने में उतावली न करना, और न अपने मन से कोई बात उतावली से परमेश्वर के साम्हने निकालना, क्योंकि परमेश्वर स्वर्ग में हैं और तू पृथ्वी पर है; इसलिये तेरे वचन थोड़े ही हों। - सभोपदेशक 5:2

बाइबल पाठ: निर्गमन 16:1-8
Exodus 16:1 फिर एलीम से कूच कर के इस्राएलियों की सारी मण्डली, मिस्र देश से निकलने के महीने के दूसरे महीने के पंद्रहवे दिन को, सीन नाम जंगल में, जो एलीम और सीनै पर्वत के बीच में है, आ पहुंची। 
Exodus 16:2 जंगल में इस्राएलियों की सारी मण्डली मूसा और हारून के विरुद्ध बकझक करने लगी। 
Exodus 16:3 और इस्राएली उन से कहने लगे, कि जब हम मिस्र देश में मांस की हांडियों के पास बैठकर मनमाना भोजन खाते थे, तब यदि हम यहोवा के हाथ से मार डाले भी जाते तो उत्तम वही था; पर तुम हम को इस जंगल में इसलिये निकाल ले आए हो कि इस सारे समाज को भूखों मार डालो। 
Exodus 16:4 तब यहोवा ने मूसा से कहा, देखो, मैं तुम लोगों के लिये आकाश से भोजन वस्तु बरसाऊंगा; और ये लोग प्रतिदिन बाहर जा कर प्रतिदिन का भोजन इकट्ठा करेंगे, इस से मैं उनकी परीक्षा करूंगा, कि ये मेरी व्यवस्था पर चलेंगे कि नहीं। 
Exodus 16:5 और ऐसा होगा कि छठवें दिन वह भोजन और दिनों से दूना होगा, इसलिये जो कुछ वे उस दिन बटोरें उसे तैयार कर रखें। 
Exodus 16:6 तब मूसा और हारून ने सारे इस्राएलियों से कहा, सांझ को तुम जान लोगे कि जो तुम को मिस्र देश से निकाल ले आया है वह यहोवा है। 
Exodus 16:7 और भोर को तुम्हें यहोवा का तेज देख पडेगा, क्योंकि तुम जो यहोवा पर बुड़बुड़ाते हो उसे वह सुनता है। और हम क्या हैं, कि तुम हम पर बुड़बुड़ाते हो? 
Exodus 16:8 फिर मूसा ने कहा, यह तब होगा जब यहोवा सांझ को तुम्हें खाने के लिये मांस और भोर को रोटी मनमाने देगा; क्योंकि तुम जो उस पर बुड़बुड़ाते हो उसे वह सुनता है। और हम क्या हैं? तुम्हारा बुड़बुड़ाना हम पर नहीं यहोवा ही पर होता है।

एक साल में बाइबल: लैव्यवस्था 21-22; मत्ती 28