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रविवार, 1 अगस्त 2021

परमेश्वर का वचन – बाइबल – परिचय

 

          सामान्यतः बाइबल को ईसाइयों का धर्म-ग्रन्थ; पश्चिमी सभ्यता से आई हुई पुस्तक समझा जाता है, जो लोगों को पश्चिमी सभ्यता तथा व्यवहार में ले जाती है; और यह मिथ्या आरोप लगा कर व्यर्थ में बाइबल का तथा बाइबल को मानने वालों का विरोध किया जाता है। लेकिन वास्तव में बाइबल किसी धर्म-विशेष अथवा सभ्यता विशेष की पुस्तक नहीं है; और न ही किसी सांसारिक सभ्यता का अनुसरण करने की शिक्षा देती है। बाइबल सृष्टि के सृष्टिकर्ता, इस संसार के प्रत्येक व्यक्ति के रचयिता, इस संपूर्ण जगत के सृजनहार, पालनहार, तारणहार परमेश्वर द्वारा संपूर्ण मानवजाति से उसके असीम, अपरिवर्तनीय, निःस्वार्थ, पवित्र प्रेम की लिखित अभिव्यक्ति है।

          बाइबल में परमेश्वर ने अपने आप को, अपने गुणों, अपने चरित्र, अपनी पसंद-नापसन्द को, और समस्त मानवजाति से जो अद्भुत, अवर्णनीय प्रेम परमेश्वर ने रखा है, उसे व्यक्त किया है। यह ऐसा विलक्षण प्रेम है जो परमेश्वर ने मनुष्यों से उनके पाप के दशा में होते हुए भी किया है। बाइबल ही वह एकमात्र ग्रन्थ है जो परमेश्वर के विषय यह बताता है कि वह पापियों से भी प्रेम करता है, उनका नाश नहीं चाहता, वरन उसकी यही लालसा है कि वे अपने पापों से पश्चाताप के साथ उसकी ओर फिरें, और वह उन्हें क्षमा करके अपने साथ अनन्तकाल के लिए अपनी संतान बनाकर जोड़ ले। यह इसलिए संभव है क्योंकि प्रभु यीशु मसीह ने संसार के सभी मनुष्यों के सभी पापों को अपने ऊपर ले लिया, और उनके दण्ड को, क्रूस की मृत्यु को, सभी मनुष्यों के लिए सह लिया। अब, प्रभु यीशु मसीह में सभी मनुष्यों के सभी पापों का दण्ड चुकाया जा चुका है, और किसी भी मनुष्य को अपने पापों की क्षमा को प्राप्त करने के लिए प्रभु यीशु मसीह के इस बलिदान के कार्य को स्वीकार करने के अतिरिक्त और कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है।

          केवल बाइबल का परमेश्वर ही वह परमेश्वर है जो मनुष्यों के प्रति अपने प्रेम के कारण स्वर्ग छोड़कर, एक साधारण मनुष्य की समानता में देहधारी होकर प्रभु यीशु मसीह के नाम से पृथ्वी पर आया, जिससे कि मनुष्यों के लिए स्वर्ग जाने का मार्ग तैयार करके उन्हें दे। ऐसा मार्ग जिस मार्ग पर चलने के लिए संसार के किसी भी मनुष्य को परमेश्वर प्रभु यीशु पर और उसके क्रूस पर दिए गए बलिदान के कार्य पर विश्वास करने, स्वेच्छा से अपना जीवन उसे समर्पित करके उसका अनुसरण करना स्वीकार कर लेने के अतिरिक्त और कुछ भी करने की कोई आवश्यकता नहीं है। मनुष्य को परमेश्वर का यह प्रेम, मनुष्य के प्रति परमेश्वर के अनुग्रह से उसे मिलता है; न कि मनुष्य के किसी भी कर्म अथवा उसकी अपनी किसी भी ‘धार्मिकता के आधार पर। परमेश्वर का यह प्रेम संसार के प्रत्येक व्यक्ति को, परमेश्वर की ओर से सेंत-मेंत उपलब्ध है। परमेश्वर के इस प्रावधान को स्वीकार अथवा अस्वीकार करना, यह प्रत्येक मनुष्य का अपना व्यक्तिगत निर्णय है।

          बाइबल मनुष्यों को पृथ्वी पर की वस्तुओं, संपत्ति, स्थान, वैभव, राज्य या ओहदा प्राप्त करने के लिए नहीं, स्वर्ग में परमेश्वर के साथ निवास करने के लिए तैयार करती है। बाइबल का दृष्टिकोण इस पृथ्वी का नहीं, वरन स्वर्ग का है। बाइबल बारंबार यही सिखाती है कि मनुष्य का यह शरीर और पृथ्वी का समय तथा संपदा अस्थाई हैं, यहीं नाश हो जाएँगी। जो स्थाई और चिरस्थाई है, वह मृत्योपरांत है – स्वर्ग या नरक; जिन में से एक स्थान पर जाने के लिए मनुष्य को अभी यहाँ पृथ्वी पर रहते हुए व्यक्तिगत निर्णय लेना है और उसके अनुसार तैयार होना है। जो पापों के लिए पश्चाताप करके, प्रभु यीशु से पापों की क्षमा प्राप्त करके प्रभु के साथ रहने का निर्णय लेते हैं, वे अपने इस निर्णय लेने के समय से आरम्भ कर के मृत्योपरांत अनन्तकाल तक प्रभु यीशु के साथ स्वर्ग में रहेंगे। जो प्रभु यीशु के इस प्रेम-प्रस्ताव को अस्वीकार कर देते हैं, प्रभु के साथ नहीं रहना चाहते हैं, वे परलोक में अपना अनन्तकाल व्यतीत करने के लिए उनके द्वारा लिए गए व्यक्तिगत निर्णय के अनुसार, मृत्योपरांत उस स्थान पर जाएंगे जहाँ परमेश्वर प्रभु यीशु मसीह नहीं है – नरक में।

          बाइबल में परमेश्वर ने मनुष्यों को परस्पर व्यवहार करने, और परमेश्वर के प्रति व्यवहार रखने के बारे में बताया गया है। बाइबल सिखाती है कि मनुष्य पाप के स्वभाव के साथ जन्म लेता है, पाप के स्वभाव के साथ ही पलता और बड़ा होता है, व्यवहार करता है, और पाप कमाता रहता है; और अन्ततः पापों के साथ ही मर जाता है, और उसका यही पाप स्वभाव उसे इस पृथ्वी पर परमेश्वर प्रभु यीशु से दूर रखता है। उसके पाप उसके साथ परलोक में जाते हैं, और उसे अनन्त पीड़ा के स्थान नरक में ले जाते हैं। किन्तु प्रभु यीशु मसीह पर लाया गया विश्वास और पापों से पश्चाताप उसके इस पाप स्वभाव, तथा पापों के दण्ड को हटाकर, प्रभु यीशु के स्वभाव को उसमें डाल देता है, और पापों की क्षमा पाया हुआ वह पापी मनुष्य अंश-अंश करके प्रभु यीशु की समानता में ढलने लगता है, प्रभु यीशु के व्यवहार, चरित्र, गुणों आदि को अपनाने लगता है, प्रभु यीशु की समानता में आने लग जाता है।

          बाइबल की शिक्षा के अनुसार, प्रभु यीशु में स्वेच्छा तथा सच्चे समर्पण से लाया गया यह विश्वास मनुष्य के धर्म को नहीं वरन उसके मन को, उसकी पाप करने की प्रवृत्ति को, उसके जीवन को बदलता है। उसे किसी सांसारिक सभ्यता अथवा संस्कृति विशेष का नहीं वरन स्वर्गीय दृष्टिकोण तथा व्यवहार रखने वाला, परमेश्वर की संतान बना देता है। प्रभु यीशु के एक अनुयायी ने कहा है: “या तो पाप आपको बाइबल से दूर रखेगा; अन्यथा, बाइबल आपको पाप से दूर रखेगी।”

 

 

          परमेश्वर से सच्चे मन से प्रार्थना करें कि वह अपने वचन बाइबल के प्रति आपके मन और समझ को खोले; और इस पापों की क्षमा का मार्ग दिखाने वाले, जीवन बदलने वाले, अनन्त जीवन देने वाले, परमेश्वर की संतान बनाकर स्वर्ग का उत्तराधिकारी बना देने वाले अद्भुत वचन, बाइबल, के अध्ययन की यात्रा में आपको आगे बढ़ाए।

 

बाइबल पाठ: यूहन्ना 1:1-4

यूहन्ना 1:1 आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था।

यूहन्ना 1:2 यही आदि में परमेश्वर के साथ था।

यूहन्ना 1:3 सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उस में से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न न हुई।

यूहन्ना 1:4 उस में जीवन था; और वह जीवन मनुष्यों की ज्योति थी।


एक साल में बाइबल: 

  • भजन 57-59
  • रोमियों 4