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मंगलवार, 7 मई 2013

शक का लाभ


   थॉमस इन्मैन ने सन 1860 में अपने संगी डॉक्टरों को यह प्रस्ताव दिया कि यदि किसी रोग के इलाज के लिए किसी दवा की उपयोगिता पर उन्हें शक है तो वे रोगी को वह दवा ना दें; उन्हें अपने इस शक का लाभ रोगी को देना चाहिए और व्यर्थ दवाएं देने से बचना चाहिए। यही वाक्यांश, "शक का लाभ" वैधानिक एवं न्याय सम्बंधित बातों से जुड़ा वाक्यांश भी है; यदि पंचों अथवा न्याय मण्डलियों को प्रस्तुत सबूतों की वैधता या सत्यता पर शक है तो उन्हें शक का लाभ देते हुए दोषी ना होने का निर्णय देना चाहिए।

   हम मसीही विश्वासियों के लिए इस वाक्यांश से शिक्षा लेकर इसे अपने व्यवहार और सम्बंधों में लागू करना अच्छा है, लेकिन परमेश्वर का वचन बाइबल इससे भी आगे बढ़कर इसे अपने ही नहीं वरन दूसरों को लाभ पहुँचाने के लिए प्रयोग करने को कहती है। 1 कुरिन्थियों 13:7 में प्रेम के विषय में लिखा है: "वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है।" बाइबल की एक व्याखया "टिंडेल न्यू टेस्टामेंट कमेंट्रीज़" में, इस पद में आए वाक्यांश "सब बातों की प्रतीति करता है" के संबंध में लियोन मौरिस लिखते हैं: "इसका अर्थ है कि सब बातों में दूसरों में उत्तम को ही देखना...लेकिन इसका यह तात्पर्य नहीं है कि प्रेम भोला होता है और कुटिलता को नहीं पहचानता; वरन यह कि संसार के समान वह दूसरों में सदैव ही बुराई ही नहीं देखता रहता। प्रेम दूसरों में विश्वास को बनाए रखता है; उनसे धोखा नहीं खाता, लेकिन साथ ही हर बात के लिए सदैव दूसरों को बुरा समझ कर उनको शक की दृष्टि से नहीं देखता, वरन दूसरों को शक का लाभ देने को तैयार रहता है।"

   जब कभी हम किसी के बारे में कुछ नकारात्मक सुनें, या उनके किसी कार्य या मंशा के बारे में हमें संषय हो, तो इससे पहले कि हम उन्हें गलत या बुरा करार दें, भला होगा कि कुछ पल रुक कर पूरी बात या परिस्थित का पुनः आंकलन कर लें। यदि कहीं भी शक की कोई गुंजाइश है तो मसीही प्रेम का उदाहरण प्रस्तुत करें और किसी को बुरा जताने या बदनाम करने की बजाए इस शक का लाभ उन्हें दें। - एनी सेटास


प्रेम शक का लाभ दूसरों को देता है।

वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है। - 1 कुरिन्थियों 13:7

बाइबल पाठ: 1 कुरिन्थियों 13
1 Corinthians 13:1 यदि मैं मनुष्यों, और सवर्गदूतों की बोलियां बोलूं, और प्रेम न रखूं, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झंझनाती हुई झांझ हूं।
1 Corinthians 13:2 और यदि मैं भविष्यद्वाणी कर सकूं, और सब भेदों और सब प्रकार के ज्ञान को समझूं, और मुझे यहां तक पूरा विश्वास हो, कि मैं पहाड़ों को हटा दूं, परन्तु प्रेम न रखूं, तो मैं कुछ भी नहीं।
1 Corinthians 13:3 और यदि मैं अपनी सम्पूर्ण संपत्ति कंगालों को खिला दूं, या अपनी देह जलाने के लिये दे दूं, और प्रेम न रखूं, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं।
1 Corinthians 13:4 प्रेम धीरजवन्‍त है, और कृपाल है; प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं।
1 Corinthians 13:5 वह अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुंझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता।
1 Corinthians 13:6 कुकर्म से आनन्‍दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्‍दित होता है।
1 Corinthians 13:7 वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है।
1 Corinthians 13:8 प्रेम कभी टलता नहीं; भविष्यद्वाणियां हों, तो समाप्‍त हो जाएंगी, भाषाएं हो तो जाती रहेंगी; ज्ञान हो, तो मिट जाएगा।
1 Corinthians 13:9 क्योंकि हमारा ज्ञान अधूरा है, और हमारी भविष्यद्वाणी अधूरी।
1 Corinthians 13:10 परन्तु जब सवर्सिद्ध आएगा, तो अधूरा मिट जाएगा।
1 Corinthians 13:11 जब मैं बालक था, तो मैं बालकों की नाईं बोलता था, बालकों का सा मन था बालकों की सी समझ थी; परन्तु सियाना हो गया, तो बालकों की बातें छोड़ दीं।
1 Corinthians 13:12 अब हमें दर्पण में धुंधला सा दिखाई देता है; परन्तु उस समय आमने साम्हने देखेंगे, इस समय मेरा ज्ञान अधूरा है; परन्तु उस समय ऐसी पूरी रीति से पहिचानूंगा, जैसा मैं पहिचाना गया हूं।
1 Corinthians 13:13 पर अब विश्वास, आशा, प्रेम थे तीनों स्थाई हैं, पर इन में सब से बड़ा प्रेम है।

एक साल में बाइबल: 
  • 2 राजा 1-3 
  • लूका 24:1-35


सोमवार, 6 मई 2013

चींटी


   हर वर्ष बसन्त ऋतु के आगमन के साथ मैं एक और आगमन भी देखती हूँ - चींटींयों का। ये छोटे से जीव रसोई के फर्श पर भोजन के कण ढूँढने आते हैं। इन्हें भोजन के प्रकार से कोई मतलब नहीं, जो भी खाने योग्य मिलता है - आलू चिप्स का कण या चावल का दाना या पनीर का कण या अन्य कुछ भी, उसे उठा लेते हैं। बड़ी मेहनत से और पंक्तिबद्ध होकर ये अपने काम को करती हैं और इसके लिए एक लंबी दूरी तय करने से नहीं कतरातीं, सारा दिन जब तक सूर्य का प्रकाश इन्हें उपलब्ध है ये इस कार्य में जुटी रहती हैं।

   परमेश्वर के वचन बाइबल में राजा सुलेमान ने अपने नीतिवचन में इन चींटींयों को उदाहरण बनाकर उनसे शिक्षा लेने को कहा है (नीतिवचन 6:6-11)। सुलेमान ने चींटींयों की प्रशंसा उनके कर्मठ होने के लिए करी। चींटींयों का कोई अधिकारी या निर्देशक नहीं होता, वे स्वतः ही अपने कार्य को करने में लगी रहती हैं। चाहे उन्हें तत्काल उस भोजन की आवश्यकता ना भी हो, फिर भी जितना भी समय उन्हें मिला है उस सारे समय में वे उसे जुटाने में पूरी लगन के साथ लगी रहती हैं। जब तक पुनः शरद ऋतु आती है, इन छोटे से जीवों ने, दाना-दाना और टुकड़ा-टुकड़ा करके अपने भंडार भर लिए होते हैं और अपने स्थान में सुरक्षित रहकर वे शरद ऋतु को बिताने के लिए तैयार रहती हैं। इसी कारण बाइबल इन जीवों से शिक्षा लेने को कहती है।

   जब परमेश्वर हमें भरपूरी के समय देता है तो हम उन समयों के लिए तैयारी कर सकते हैं जब कोई कमी-घटी अथवा कठिनाई आ जाए। हमारी हर आवश्यकता की पूर्ति करने वाला परमेश्वर ही है, और वह ही हमें कार्य करने की शक्ति और क्षमता भी देता है, साथ ही सद्बुद्धि और शिक्षा भी कि उसके द्वारा दी गई इन योग्यताओं का सदुपयोग हम कैसे करें। जो कुछ उसने हमें दिया है, उस सब का उपयोग हमें योग्य भण्डारियों के समान करना है और फिर उसकी हर स्थिति में हमारी देखभाल और पूर्ति करने की प्रतिज्ञा पर विश्वास कर के उसमें आश्वस्त रहना है। मेहनत करने के अपने कर्तव्य का पालन करे बिना केवल इस बात को लेकर बैठ जाना कि परमेश्वर ही हर आवश्यकता को उपलब्ध करायगा, उसकी शिक्षाओं का गलत अर्थ निकालना है। इसीलिए प्रेरित पौलुस ने अपनी एक पत्री में लिखा: "और जब हम तुम्हारे यहां थे, तब भी यह आज्ञा तुम्हें देते थे, कि यदि कोई काम करना न चाहे, तो खाने भी न पाए। हम सुनते हैं, कि कितने लोग तुम्हारे बीच में अनुचित चाल चलते हैं; और कुछ काम नहीं करते, पर औरों के काम में हाथ डाला करते हैं। ऐसों को हम प्रभु यीशु मसीह में आज्ञा देते और समझाते हैं, कि चुपचाप काम कर के अपनी ही रोटी खाया करें" (2 थिस्सुलुनीकियों 3:10-12)।

   राजा सुलेमान में होकर परमेश्वर द्वारा दी गई शिक्षा को स्मरण रखें: "हे आलसी, च्यूंटियों के पास जा; उनके काम पर ध्यान दे, और बुद्धिमान हो" (नीतिवचन 6:6)। - जेनिफर बेन्सन शुल्ट


आज के लिए परमेश्वर पर भरोसा रखें और कल के लिए तैयारी करें।

क्योंकि तुम आप जानते हो, कि किस रीति से हमारी सी चाल चलनी चाहिए; क्योंकि हम तुम्हारे बीच में अनुचित चाल न चले। और किसी की रोटी सेंत में न खाई; पर परिश्रम और कष्‍ट से रात दिन काम धन्‍धा करते थे, कि तुम में से किसी पर भार न हो। - 2 थिस्सुलुनीकियों 3:7-8

बाइबल पाठ: नीतिवचन 6:6-11
Proverbs 6:6 हे आलसी, च्यूंटियों के पास जा; उनके काम पर ध्यान दे, और बुद्धिमान हो।
Proverbs 6:7 उन के न तो कोई न्यायी होता है, न प्रधान, और न प्रभुता करने वाला,
Proverbs 6:8 तौभी वे अपना आहार धूपकाल में संचय करती हैं, और कटनी के समय अपनी भोजन वस्तु बटोरती हैं।
Proverbs 6:9 हे आलसी, तू कब तक सोता रहेगा? तेरी नींद कब टूटेगी?
Proverbs 6:10 कुछ और सो लेना, थोड़ी सी नींद, एक और झपकी, थोड़ा और छाती पर हाथ रखे लेटे रहना,
Proverbs 6:11 तब तेरा कंगालपन बटमार की नाईं और तेरी घटी हथियारबन्द के समान आ पड़ेगी।

एक साल में बाइबल: 
  • 1 राजा 21-22 
  • लूका 23:26-56


रविवार, 5 मई 2013

प्रार्थना के लिए समय?


   बात मेरे बचपन की है, मैं रसोई में बैठा था और अपनी माँ को नाश्ता बनाते हुए देख रहा था। उन्होंने तवे पर तलने के लिए कुछ डाला, और घी के छिटकने से एक दम आग लग गई, और ऊँची लपटें उठीं। मेरी माँ बाहर भागी कि आग बुझाने के लिए उस पर डालने को कुछ ला सके, और मैं एकदम ज़ोर से चिल्लाया, "सहायता करो!" और फिर स्वाभाविक रूप से साथ ही कह बैठा, "काश प्रार्थना के लिए समय भी होता!" हमारे घर में "प्रार्थना के लिए समय" एक बहु-प्रचलित वाक्यांश था, और मैं समझता था कि प्रार्थना बस कुछ निर्धारित समयों पर ही करी जा सकती है।

   लेकिन हर समय प्रार्थना के लिए समय है, विशेषकर मसीही विश्वासियों के लिए; क्योंकि अपने परमेश्वर पिता के पास अपने निवेदन लेकर जाने से उन्हें कोई नहीं रोक सकता, और किसी संकट के समय तो बिलकुल भी नहीं। प्रभु यीशु में मिली पापों से क्षमा और उद्धार के साथ ही हर मसीही विश्वासी को परमेश्वर को "हे अब्बा; हे पिता" कह कर संबोधित करने का अधिकार भी मिला है (रोमियों 8:15)। भय, चिंता, परेशानी, आवश्यकता आदि प्रार्थना के बहुत आम कारण हैं। जब हम उदास, त्यागे हुए और सभी मानवीय सहायता स्त्रोतों से वंचित होते हैं, तो स्वाभाविक रूप से प्रार्थना में ही उपाय ढूँढ़ते हैं। लेकिन परमेश्वर चाहता है कि केवल संकट में ही नहीं वरन हर परिस्थिति में हम हर बात उसके साथ बांटें, उसे बताएं और उससे मार्गदर्शन लें जिससे गलती करने से सदा बचे रहें।

   इस्त्राएल के राजा दाऊद ने भी अपने एक भजन में यह पुकार लगाई: "हे परमेश्वर मुझे छुड़ाने के लिये, हे यहोवा मेरी सहायता करने के लिये फुर्ती कर!" (भजन 70:1)। पाँचवीं शताब्दी के एक मसीही विश्वासी और लेखक जौन कैसियन ने इस पद की व्याख्या में लिखा, "यह एक ऐसे भयभीत व्यक्ति की पुकार है जो शत्रु के फन्दे में हो, जो दिन और रात शत्रुओं के घेरे में हो और जानता हो कि ईश्वरीय सहायता के बगैर वह छूट नहीं सकता।"

   लेकिन हमें परमेश्वर कि सहायता माँगने के लिए किसी संकट में पड़ने की आवश्यकता नहीं है। हमारे लिए परमेश्वर की सहायता सदा उपलब्ध है, हर कार्य के लिए, हर बात के लिए; वह सदैव हमारा मार्गदर्शन और हमारी सहायता करने को तैयार और तत्पर रहता है। हमें बस विश्वास के साथ अपने परमेश्वर पिता से कहना भर है, "हे परमेश्वर सहायता कीजिए!"; चाहे बोल के, चाहे मन में ही कह कर, वह सब एक समान सुनता है।

   एक मसीही विश्वासी के लिए हर समय प्रार्थना का समय है। - डेविड रोपर


ऐसा कोई स्थान या समय नहीं है जिसमें हम प्रार्थना ना कर सकें।

क्योंकि तुम को दासत्व की आत्मा नहीं मिली, कि फिर भयभीत हो परन्तु लेपालकपन की आत्मा मिली है, जिस से हम हे अब्बा, हे पिता कह कर पुकारते हैं। - रोमियों 8:15

बाइबल पाठ: भजन 70
Psalms 70:1 हे परमेश्वर मुझे छुड़ाने के लिये, हे यहोवा मेरी सहायता करने के लिये फुर्ती कर!
Psalms 70:2 जो मेरे प्राण के खोजी हैं, उनकी आशा टूटे, और मुंह काला हो जाए! जो मेरी हानि से प्रसन्न होते हैं, वे पीछे हटाए और निरादर किए जाएं।
Psalms 70:3 जो कहते हैं, आहा, आहा, वे अपनी लज्जा के मारे उलटे फेरे जाएं।
Psalms 70:4 जितने तुझे ढूंढ़ते हैं, वे सब तेरे कारण हर्षित और आनन्दित हों! और जो तेरा उद्धार चाहते हैं, वे निरन्तर कहते रहें, कि परमेश्वर की बड़ाई हो।
Psalms 70:5 मैं तो दीन और दरिद्र हूं; हे परमेश्वर मेरे लिये फुर्ती कर! तू मेरा सहायक और छुड़ाने वाला है; हे यहोवा विलम्ब न कर!

एक साल में बाइबल: 
  • 1 राजा 19-20 
  • लूका 23:1-25


शनिवार, 4 मई 2013

दो शब्द


   अमरीकी विज्ञापन इतिहास में सबसे प्रभावशाली नारों में से एक है कलिफोर्निया के दुग्ध-उत्पादकों द्वारा दिया गया दो शब्द का प्रश्न "दूध है?" इस छोटे से वाक्यांश से उन लोगों ने लगभग सब के ध्यान को बड़े ही प्रभावी रूप से अपनी ओर खींचा। सर्वेक्षणों में पाया गया कि इस छोटे से नारे को 90% से अधिक लोगों जानते और पहिचानते थे।

   यदि यह दो शब्द का नारा लोगों को गाय का दूध प्रयोग करने के लिए इतनी प्रभावशाली रीति से प्रभावित कर सकता है, तो क्यों ना हम अपने लिए भी कुछ ऐसे ही छोटे नारे बना लें जो हमें परमेश्वर की और भी निकटता में जीवन जीने का स्मरण दिलाएं तथा प्रेरित करें। इसके लिए हम परमेश्वर के वचन बाइबल में याकूब द्वारा लिखी पत्री के 4 अध्याय से कुछ प्रेरणा पा सकते हैं। यहाँ पद 7 से पद 10 में इस विषय पर चार विशिष्ट मार्गदर्शिकाएं दी गई हैं:

   1. आधीन हो! पद 7 हमें परमेश्वर के आधीन हो जाने को कहता है। जब परमेश्वर हमसे प्रेम करता है और हमारे भले के लिए ही कार्य करता है तो क्यों ना उसे अपना कार्य स्वतंत्रता से करने दें, बजाए इसके कि अपनी मन-मर्ज़ी पूरी करने के प्रयासों में रहें या उसे निर्देश देते रहें कि वह क्या करे, कैसे करे, कब करे, किस के माध्यम से करे इत्यादि। उसके आधीन हो जाएं और परमेश्वर के प्रति अपने जीवन का सच्चा समर्पण लोगों के सामने प्रदर्शित करें। वह जो करेगा सदा भला ही करेगा।

   2. निकट आओ! पद 8 का पहला भाग हमें परमेश्वर के निकट रहने के लाभ को बताता है। जब हम परमेश्वर के निकट आने का सच्चा प्रयास करते हैं तो प्रत्युत्तर में परमेश्वर भी हमारे निकट आ जाता है, और जहाँ परमेश्वर की निकटता है वहाँ दुष्ट का प्रभाव नहीं रह सकता।

   3. पश्चाताप करो! पद 8 का दूसरा भाग और पद 9 पापों से पश्चाताप और मन की पवित्रता के लिए कहते हैं; हम अपने पापों के लिए दुखी हों, परमेश्वर के सामने पश्चाताप के आँसू बहाएं, उनका शोक करें और यह सुनिश्चित करें कि हमारे मन पवित्र हैं।

   4. दीन बनो! हमें प्रभु के सामने घमंडी नहीं वरन दीन होकर रहना है। परमेश्वर हमारे बारे में सब कुछ जानता है, हमें उसे कुछ बताने की या कोई शेखी मारने की आवश्यकता नहीं है। जो उसके सामने पश्चातापी, पवित्र और दीन रहते हैं उन्हें वह उचित समय पर और उचित रीति से बढ़ाता भी है।

   आधीन हो! निकट आओ! पश्चाताप करो! दीन बनो! ये ’दो शब्द’ के नारे टी-शर्ट पर चाहे अच्छे ना लगें और बहुत संभव है कि ये ’दूध है?’ जैसे लोकप्रीय भी ना होने पाएं, लेकिन किसी भी व्यक्ति के जीवन पर ये बहुत प्रभावी और उन्नति देने वाले होंगे। आज़मा कर देख लीजिए।

   सोचिए और मानिए! - डेव ब्रैनन


परमेश्वर के लिए सबसे सशक्त साक्षी एक धर्मी जीवन है।

इसलिये परमेश्वर के बलवन्‍त हाथ के नीचे दीनता से रहो, जिस से वह तुम्हें उचित समय पर बढ़ाए। - 1 पतरस 5:6

बाइबल पाठ: याकूब 4:7-10
James 4:7 इसलिये परमेश्वर के आधीन हो जाओ; और शैतान का साम्हना करो, तो वह तुम्हारे पास से भाग निकलेगा।
James 4:8 परमेश्वर के निकट आओ, तो वह भी तुम्हारे निकट आएगा: हे पापियों, अपने हाथ शुद्ध करो; और हे दुचित्ते लोगों अपने हृदय को पवित्र करो।
James 4:9 दुखी होओ, और शोक करा, और रोओ: तुम्हारी हंसी शोक में और तुम्हारा आनन्द उदासी में बदल जाए।
James 4:10 प्रभु के साम्हने दीन बनो, तो वह तुम्हें शिरोमणि बनाएगा।

एक साल में बाइबल: 
  • 1 राजा 16-18 
  • लूका 22:47-71


शुक्रवार, 3 मई 2013

अकेले?


   कॉलेज तक फुटबॉल का खिलाड़ी रहने के कारण, इस उत्तम खेल के प्रति मेरा लगाव कभी कम नहीं हुआ। मुझे इंग्लिश प्रीमियर लीग प्रतियोगिता देखने का बहुत शौक है, और इसका एक कारण है इस प्रतियोगिता में देखी जाने वाली खेल की गति एवं कौशल का स्तर; लेकिन एक अन्य कारण भी है - भिन्न टीमों के प्रशंसकों का अपनी अपनी टीम के उत्साहवर्धन के लिए खेल के दौरान अपनी टीम के गीत गाना। उदाहरण स्वरूप, लिवरपूल की टीम के प्रशंसक वर्षों से गाते आ रहे हैं "You'll Never Walk alone" (तुम अकेले कभी नहीं चलोगे)। कितना भावविभोर करने वाला होता है 50,000 प्रशंसकों को एक साथ यह गीत गाते हुए सुनना। यह जानना खिलाड़ीयों और प्रशंसकों, दोनो ही के लिए प्रेरणादायक होता है कि परिणाम चाहे कुछ भी हो, वे सब एक दूसरे के साथ अन्त तक हैं। अकेले? जी नहीं, कभी नहीं!

   साथ बने रहने की यह भावना हम सब के लिए अर्थपूर्ण है क्योंकि हम संगति के लिए सृजे गए हैं - एक दूसरे के साथ भी और सबसे बढ़कर परमेश्वर के साथ। इसीलिए एकाकीपन और सबसे पृथक कर दिया जाना मानव अनुभव के सबसे कटु और पीड़ादायक अनुभवों में से एक है जिनके आधार पर ’कालापानी’ और कालकोठरी में अकेले डाल दिए जाने के दण्ड बनाए गए थे। लेकिन एकाकीपन के इस कष्टदायक अनुभव के लिए इन अमानवीय दण्डों से होकर निकलना आवश्यक नहीं है; भरे समाज और लोगों के बीच रहते हुए भी व्यक्ति बिलकुल अकेला और असहाय हो सकता है। ऐसे एकाकीपन के कष्टदायक समय में केवल हमारा विश्वास ही हमारा सहारा होता है। जिसका विश्वास सदा साथ बने रहने वाले और उससे सदा प्रेम रखने वाले परमेश्वर पर है वह कभी अकेला अनुभव नहीं करता क्योंकि उसकी हर परिस्थिति में वह प्रेमी परमेश्वर पिता उसके साथ रहता है और उसे शांति देता है।

   परमेश्वर की किसी भी सन्तान को कभी त्यागे जाने या अकेला छोड़ दिए जाने का भय नहीं। चाहे लोग विरोधी हो जाएं, मित्रजन त्याग दें, परिस्थितियाँ प्रीय जनों को अलग कर दें, लेकिन परमेश्वर से उसकी सन्तान को कोई कभी अलग नहीं कर सकता। परमेश्वर ने हम मसीही विश्वासियों से यह वायदा किया है कि: "...कि मैं तुझे कभी न छोडूंगा, और न कभी तुझे त्यागूंगा" (इब्रानियों 13:5)। यह केवल कहने-सुनने में अच्छी लगने वाली बात ही नहीं है वरन परमेश्वर की हर सन्तान का व्यक्तिगत अनुभव भी है। पीड़ा, कष्ट, कमी-घटी, सताव से होकर निकलने वाले प्रत्येक मसीही विश्वासी ने परमेश्वर कि शांति और साथ बनी रहने वाली उसकी उपस्थिति को अनुभव किया है। परमेश्वर ने कभी यह वायदा नहीं किया कि उसका जन इन विपरीत परिस्थितियों से होकर कभी नहीं निकलेगा, लेकिन यह वायदा अवश्य किया है कि इन परिस्थितियों में वह भी उसके साथ रहेगा, उसे शांति, सामर्थ और ढाढ़स देगा - और वह अपने वायदे में सदा ही पक्का और विश्वासयोग्य रहा है। परीक्षा से होकर निकले हर मसीही विश्वासी की यह गवाही रही है कि उस परीक्षा की घड़ी में ही उसने परमेश्वर की उपस्थिति को सबसे अधिक निकटता से और सबसे भली-भांति अनुभव किया है।

   प्रभु यीशु ने कहा है: "मैं तुम्हें शान्‍ति दिए जाता हूं, अपनी शान्‍ति तुम्हें देता हूं; जैसे संसार देता है, मैं तुम्हें नहीं देता: तुम्हारा मन न घबराए और न डरे" (यूहन्ना 14:27); "मैं ने ये बातें तुम से इसलिये कही हैं, कि तुम्हें मुझ में शान्‍ति मिले; संसार में तुम्हें क्‍लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बांधो, मैं ने संसार को जीत लिया है" (यूहन्ना 16:33)।

   संसार के लोग अकेले हो सकते हैं, लेकिन मसीही विश्वासी - कभी नहीं! - बिल क्राउडर


परमेश्वर की लगातार बनी संगति मसीही विश्वासी की सबसे दृढ़ सामर्थ है।

तुम्हारा स्‍वभाव लोभरिहत हो, और जो तुम्हारे पास है, उसी पर संतोष किया करो; क्योंकि उसने आप ही कहा है, कि मैं तुझे कभी न छोडूंगा, और न कभी तुझे त्यागूंगा। - इब्रानियों 13:5

बाइबल पाठ: इब्रानियों 13:1-8
Hebrews 13:1 भाईचारे की प्रीति बनी रहे।
Hebrews 13:2 पहुनाई करना न भूलना, क्योंकि इस के द्वारा कितनों ने अनजाने स्‍वर्गदूतों की पहुनाई की है।
Hebrews 13:3 कैदियों की ऐसी सुधि लो, कि मानो उन के साथ तुम भी कैद हो; और जिन के साथ बुरा बर्ताव किया जाता है, उन की भी यह समझकर सुधि लिया करो, कि हमारी भी देह है।
Hebrews 13:4 विवाह सब में आदर की बात समझी जाए, और बिछौना निष्‍कलंक रहे; क्योंकि परमेश्वर व्यभिचारियों, और परस्त्रीगामियों का न्याय करेगा।
Hebrews 13:5 तुम्हारा स्‍वभाव लोभरिहत हो, और जो तुम्हारे पास है, उसी पर संतोष किया करो; क्योंकि उसने आप ही कहा है, कि मैं तुझे कभी न छोडूंगा, और न कभी तुझे त्यागूंगा।
Hebrews 13:6 इसलिये हम बेधड़क हो कर कहते हैं, कि प्रभु, मेरा सहायक है; मैं न डरूंगा; मनुष्य मेरा क्या कर सकता है।
Hebrews 13:7 जो तुम्हारे अगुवे थे, और जिन्हों ने तुम्हें परमेश्वर का वचन सुनाया है, उन्हें स्मरण रखो; और ध्यान से उन के चाल-चलन का अन्‍त देखकर उन के विश्वास का अनुकरण करो।
Hebrews 13:8 यीशु मसीह कल और आज और युगानुयुग एकसा है।

एक साल में बाइबल: 
  • 1 राजा 14-15 
  • लूका 22:21-46


गुरुवार, 2 मई 2013

परमेश्वर से प्रेम


   क्या कभी आपने जीवन जीने से संबंधित नियमों एवं आज्ञाओं से अपने आप को दबा हुआ तथा मुक्त होने के लिए छटपटाता हुआ अनुभव किया है? ज़रा विचार कीजिए कि परमेश्वर के वचन बाइबल में पुराने नियम में दिए गए 600 से भी अधिक नियमों और धर्म-गुरुओं तथा धर्म-शिक्षकों द्वारा मानने के लिए स्थापित किए गए इनके अतिरिक्त और भी अनेक नियमों को लेकर इस्त्राएली लोग कैसा अनुभव करते होंगे! और फिर उनके उस आश्चर्य के बारे में भी सोचिए जब प्रभु यीशु मसीह ने धार्मिकता की उनकी खोज को सरल करके, इन बेहिसाब नियमों के पालन को केवल दो नियमों में ही सीमित कर दिया - "...तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख (मत्ती 22:37)"; तथा "...तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख (मत्ती 22:39)"।

   प्रभु यीशु के कहने का तात्पर्य, तब उन इस्त्राएली लोगों से और आज हम सब से भी यही है कि परमेश्वर की सृष्टि के प्रति हमारा प्रेम ही परमेश्वर के प्रति हमारे प्रेम की पहचान है, और इसमें कुछ विशेष मनुष्यों के प्रति लगाव और अन्यों के प्रति अलगाव, तिरस्कार या फिर घृणा आदि का चुनाव करने का कोई स्थान कदापि नहीं है। हमारा यह प्रेम सब मनुष्यों के लिए एक समान ही होना है क्योंकि सभी समान रूप से ही परमेश्वर की सृष्टि हैं। अपने पड़ौसी से प्रेम रखना एक चुनौती भी हो सकता है; किंतु चाहे वह हमारे प्रेम के योग्य हो अथवा ना हो, फिर भी यदि परमेश्वर के प्रति अपने प्रेम की पहचान के रूप में, हम अपने पड़ौसी से प्रेम रखते हैं तो इससे हम एक बहुत प्रभावी और सकारात्मक प्रेरणा को उत्पन्न करते हैं जिसके समाज के निर्माण और व्यक्ति के उत्थान से संबंधित दूरगामी परिणाम होते हैं।

   यदि मैं अपने पड़ौसी से वास्तव में सच्चा प्रेम रखूँगा तो मैं उसके विरुद्ध झूठी साक्षी नहीं दूँगा, कोई गलत बात नहीं कहूँगा और ना ही कोई अफवाह फैलने में सहायक होऊँगा; मैं उसकी किसी चीज़ का लालच नहीं करूँगा, उसकी पत्नि और परिवार जनों की ओर भी गलत नज़र से कभी नहीं देखूँगा; मैं उसकी किसी चीज़ की चोरी नहीं करूँगा और उसकी कोई हानि नहीं होने दूँगा। परमेश्वर के प्रति अपने प्रेम के कारण, जैसे परमेश्वर मेरी गलतियों को क्षमा करता है, मैं भी अपने प्रति उसकी गलतियों को क्षमा करूँगा और उससे बदला लेने या उसे नीचा दिखाने की कोई भावना नहीं रखूँगा। सोचिए कि समाज पर कैसा अद्भुत प्रभाव होगा यदि हम प्रभु यीशु की इस शिक्षा को अपने जीवन में लागू कर लें।

   लेकिन यह कहना जितना सरल है, करना उतना सरल नहीं है क्योंकि हमारा पाप स्वभाव, हमारा अहम हमें ऐसा कदापि करने नहीं देता। यह सब करना हमारे लिए केवल तब ही संभव है जब हमने प्रभु यीशु में होकर परमेश्वर के प्रेम, अनुग्रह और क्षमा को व्यक्तिगत रीति से अनुभव किया हो और अपने पाप स्वभाव तथा अहम को अपने उद्धारकर्ता प्रभु यीशु को पूर्णतः समर्पित कर दिया हो; परमेश्वर के उस प्रेम, अनुग्रह और क्षमा के लिए अपने सर्वथा अयोग्य होने को जाना और माना हो, लेकिन साथ ही यह भी जाना हो कि सर्वथा अयोग्य होने के बावजूद भी परमेश्वर ने यह हमारे लिए किया और कर रहा है। इसलिए अब परमेश्वर के प्रति हमारा यह कर्तव्य है कि उसके इस प्रेम को दूसरों पर भी ऐसे ही निस्वार्थ भाव से प्रकट करें। परमेश्वर से मिली सामर्थ के बिना परमेश्वर के प्रेम को प्रकट कर पाना संभव नहीं, और परमेश्वर की यह सामर्थ प्रभु यीशु में मिलने वाली पापों की क्षमा और नए जीवन के अनुभव के साथ ही प्राप्त होती है।

   क्या आप परमेश्वर से प्रेम रखते हैं? स्वयं प्रभु यीशु मसीह के शब्दों में आपके दावे के यथार्थ की केवल एक ही पहचान है - अन्य लोगों के प्रति आपका प्रेम (यूहन्ना 13:34-35); अन्य हर पहचान मन गढ़ंत है, महज़ एक दिखावा है। - जो स्टोवैल


दूसरों के प्रति प्रेम ही परमेश्वर के प्रति प्रेम की सच्ची पहचान है।

मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूं, कि एक दूसरे से प्रेम रखो: जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दुसरे से प्रेम रखो। यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो। - यूहन्ना 13:34-35

बाइबल पाठ: मत्ती 22:34-40; 1 कुरन्थियों 13:1-8
Matthew 22:34 जब फरीसियों ने सुना, कि उसने सदूकियों का मुंह बन्‍द कर दिया; तो वे इकट्ठे हुए।
Matthew 22:35 और उन में से एक व्यवस्थापक ने परखने के लिये, उस से पूछा।
Matthew 22:36 हे गुरू; व्यवस्था में कौन सी आज्ञा बड़ी है?
Matthew 22:37 उसने उस से कहा, तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख।
Matthew 22:38 बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है।
Matthew 22:39 और उसी के समान यह दूसरी भी है, कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।
Matthew 22:40 ये ही दो आज्ञाएं सारी व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं का आधार है।
1 Corinthians 13:1 यदि मैं मनुष्यों, और सवर्गदूतों की बोलियां बोलूं, और प्रेम न रखूं, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झंझनाती हुई झांझ हूं।
1 Corinthians 13:2 और यदि मैं भविष्यद्वाणी कर सकूं, और सब भेदों और सब प्रकार के ज्ञान को समझूं, और मुझे यहां तक पूरा विश्वास हो, कि मैं पहाड़ों को हटा दूं, परन्तु प्रेम न रखूं, तो मैं कुछ भी नहीं।
1 Corinthians 13:3 और यदि मैं अपनी सम्पूर्ण संपत्ति कंगालों को खिला दूं, या अपनी देह जलाने के लिये दे दूं, और प्रेम न रखूं, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं।
1 Corinthians 13:4 प्रेम धीरजवन्‍त है, और कृपाल है; प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं।
1 Corinthians 13:5 वह अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुंझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता।
1 Corinthians 13:6 कुकर्म से आनन्‍दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्‍दित होता है।
1 Corinthians 13:7 वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है।
1 Corinthians 13:8 प्रेम कभी टलता नहीं; भविष्यद्वाणियां हों, तो समाप्‍त हो जाएंगी, भाषाएं हो तो जाती रहेंगी; ज्ञान हो, तो मिट जाएगा।

एक साल में बाइबल: 
  • 1 राजा 12-13 
  • लूका 22:1-20


बुधवार, 1 मई 2013

अन्ततः


   मई का महीना मेरे रिहायशी इलाके मिशिगन में बसन्त ऋतु के समय का होता है, और इस महीने के आने पर मेरा मन करता है कि काश किसी प्रकार मैं समय को रोक पाता। शीत काल की पतझड़ से सूखे ठूँठ हुए पेड़ों की डालियों पर नई कोंपलें फूटने लगती हैं और बर्फ की नमी के बाद सूख कर कड़क हुई धरती को चटका कर नए अंकुर उगने लगते हैं, मानो जीवन मृत्यु पर अपनी विजय घोषित कर रहा हो। थोड़े ही दिनों में वहाँ का शुश्क और बंजर दिखने वाला नज़ारा नई पत्तियों, चटक रंग वाले फूलों, उनकी सुगन्ध और पक्षियों की चहचहाट से भर जाता है। प्रकृति की यह मनोहर छटा बस देखते ही बनती है और इन दृश्यों से मन नहीं भरता। यही इच्छा रहती है कि बस अब समय यहीं थम जाए और यह सब ऐसे ही बना रहे।

   मई के महीने में मेरे साथ एक और बात होती है; परमेश्वर के वचन के अपने अध्ययन में प्रतिदिन के अपने बाइबल पाठ में मैं 1 राजा 10 अध्याय पर पहुँचता हूँ। फिर मेरी वही इच्छा होती है - बस अब इस्त्राएल की कहानी यहीं थम जाए। यह अध्याय उस समय का वर्णन है जब इस्त्राएल खुशहाली और संपन्नता की ऊँचाईयों पर पहुँच गया है। सुलेमान इस्त्राएल का राजा बन गया और परमेश्वर के लिए एक भव्य मन्दिर बनवा लिया जिसके समर्पण के समय परमेश्वर अपनी ज्योतिर्मय महिमा के साथ मन्दिर में प्रकट हुआ (1 राजा 8:11)। एक धर्मी, न्यायी और बु्द्धिमान राजा के नीचे इस्त्राएल एकजुट और शान्ति में था। काश इस्त्राएल की कहानी इसी समृद्धि और खुशहाली के वर्णन के साथ अन्त होती, क्योंकि मुझे कहानीयों के आनन्दमय अन्त पसन्द हैं।

    लेकिन समय तो आगे बढ़ ही जाता है और इस्त्राएल की कहानी का अन्त भी यहाँ नहीं होता। इससे अगले ही अध्याय में हम इस्त्राएल के पत्न के मार्ग पर उठे आरंभिक कदमों के बारे में पढ़ते हैं: अपनी संपन्नता और ऐश्वर्य में राजा सुलेमान ने परमेश्वर को छोड़ कर भोग-विलास का जीवन अपना लिया, सैकड़ों अन्य-जाति रानियाँ और रखैलें रख लीं, और उनके बहकावे में आकर परमेश्वर की बजाए उनके देवी-देवताओं की उपासना में लग गया। परिणामस्वरूप परमेश्वर की आशीष और सुरक्षा इस्त्राएल पर से हट गई और इस्त्राएल पत्न के मार्ग पर चल निकला, दो राज्यों में विभाजित हो गया और अन्ततः दास्त्व में चला गया तथा सुलेमान द्वारा बनवाया गया वह भव्य मन्दिर ढा दिया गया।

   जैसे वर्ष के मौसम बदलते रहते हैं, जीवन-मरण, सफलता-असफलता, पाप-पश्चाताप के चक्र भी चलते रहते हैं। हम अच्छे समयों में आनन्दित और बुरे समयों में दुखी हो सकते हैं लेकिन समय ना तो एक के लिए रुकता है और ना ही दूसरे के लिए। लेकिन समय के हर चक्र के साथ यह सृष्टि अपने न्याय के समय की ओर बढ़ती जा रही है और अन्ततः समय थम जाएगा और प्रत्येक परमेश्वर के सामने अपने अपने जीवन का हिसाब देने को खड़ा होगा। कुछ के लिए, जिन्होंने प्रभु यीशु को अपना मुक्तिदाता माना और उससे अपने पापों की क्षमा माँग कर अपना जीवन उसे समर्पित कर दिया, वह ऐसा समय होगा जब वे परमेश्वर के पास और साथ होंगे और वह उनकी आँखों से हर आँसू पोंछ डालेगा तथा उनके लिए अनन्त आनन्द का आरंभ होगा। शेष के लिए, जिन्होंने पृथ्वी के अपने जीवनकाल में प्रभु यीशु में मिलने वाली पापों की क्षमा के निमंत्रण को ठुकरा दिया और अपने ही मार्ग चुन लिए, उनके द्वारा किए गए इस चुनाव के अनुसार वह समय उनके लिए सदा के लिए परमेश्वर से दूर अनन्त पीड़ा में रहने का आरंभ होगा। 

   अन्ततः अनन्त आनन्द अथवा अनन्त पीड़ा, एक ना एक में जाना ही है। कहाँ जाएंगे, यह चुनाव आपका अपना है और अभी इस पृथ्वी पर होता है। अन्ततः आपका चुनाव ही आपका अनन्त भविष्य निर्धारित करेगा, इसलिए बहुत सावधानी और बुद्धिमानी से इस चुनाव को कीजिए। - जूली ऐकैरमैन लिंक


समय बदलता है, परमेश्वर नहीं।

और वह उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं। - प्रकाशितवाक्य 21:4

बाइबल पाठ: प्रकाशितवाक्य 21:1-8
Revelation 21:1 फिर मैं ने नये आकाश और नयी पृथ्वी को देखा, क्योंकि पहिला आकाश और पहिली पृथ्वी जाती रही थी, और समुद्र भी न रहा।
Revelation 21:2 फिर मैं ने पवित्र नगर नये यरूशलेम को स्वर्ग पर से परमेश्वर के पास से उतरते देखा, और वह उस दुल्हिन के समान थी, जो अपने पति के लिये सिंगार किए हो।
Revelation 21:3 फिर मैं ने सिंहासन में से किसी को ऊंचे शब्द से यह कहते सुना, कि देख, परमेश्वर का डेरा मनुष्यों के बीच में है; वह उन के साथ डेरा करेगा, और वे उसके लोग होंगे, और परमेश्वर आप उन के साथ रहेगा; और उन का परमेश्वर होगा।
Revelation 21:4 और वह उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं।
Revelation 21:5 और जो सिंहासन पर बैठा था, उसने कहा, कि देख, मैं सब कुछ नया कर देता हूं: फिर उसने कहा, कि लिख ले, क्योंकि ये वचन विश्वास के योग्य और सत्य हैं।
Revelation 21:6 फिर उसने मुझ से कहा, ये बातें पूरी हो गई हैं, मैं अलफा और ओमेगा, आदि और अन्‍त हूं: मैं प्यासे को जीवन के जल के सोते में से सेंतमेंत पिलाऊंगा।
Revelation 21:7 जो जय पाए, वही इन वस्‍तुओं का वारिस होगा; और मैं उसका परमेश्वर होऊंगा, और वह मेरा पुत्र होगा।
Revelation 21:8 पर डरपोकों, और अविश्वासियों, और घिनौनों, और हत्यारों, और व्यभिचारियों, और टोन्‍हों, और मूर्तिपूजकों, और सब झूठों का भाग उस झील में मिलेगा, जो आग और गन्‍धक से जलती रहती है: यह दूसरी मृत्यु है।

एक साल में बाइबल: 
  • 1 राजा 10-11 
  • लूका 21:20-38