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गुरुवार, 3 मार्च 2022

कलीसिया में अपरिपक्वता के दुष्प्रभाव (19)

 


भ्रामक शिक्षाओं के स्वरूप - पवित्र आत्मा के विषय गलत शिक्षाएं (9) - पवित्र आत्मा की निन्दा करने का पाप (3) 

हम पिछले लेखों से देखते आ रहे हैं कि बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों की एक पहचान यह भी है कि वे बहुत सरलता से भ्रामक शिक्षाओं द्वारा बहकाए तथा गलत बातों में भटकाए जाते हैं। इन भ्रामक शिक्षाओं को शैतान और उस के दूत झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं (2 कुरिन्थियों 11:13-15)। ये लोग, और उनकी शिक्षाएं, दोनों ही बहुत आकर्षक, रोचक, और ज्ञानवान, यहाँ तक कि भक्तिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण भी प्रतीत हो सकती हैं, किन्तु साथ ही उनमें अवश्य ही बाइबल की बातों के अतिरिक्त भी बातें डली हुई होती हैं। जैसा परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”, इन भ्रामक शिक्षाओं और गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन विषय, होते हैं - प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार। साथ ही इस पद में सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है, कि इन तीनों विषयों के बारे में जो यथार्थ और सत्य हैं, वे सब वचन में पहले से ही बता और लिखवा दिए गए हैं। इसलिए बाइबल से देखने, जाँचने, तथा वचन के आधार पर शिक्षाओं को परखने के द्वारा सही और गलत की पहचान करना कठिन नहीं है। 

पिछले लेखों में हमने इन गलत शिक्षा देने वाले लोगों के द्वारा, प्रभु यीशु से संबंधित सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं को देखने के बाद, परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित सामान्यतः बताई और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं की वास्तविकता को वचन की बातों से देखना आरंभ किया है। हम देख चुके हैं कि प्रत्येक सच्चे मसीही विश्वासी के नया जन्म या उद्धार पाते ही, तुरंत उसके उद्धार पाने के पल से ही परमेश्वर पवित्र आत्मा अपनी संपूर्णता में आकर उसके अंदर निवास करने लगता है, और उसी में बना रहता है, उसे कभी छोड़ कर नहीं जाता है; और इसी को पवित्र आत्मा से भरना या पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाना भी कहते हैं। वचन स्पष्ट है कि पवित्र आत्मा से भरना या उससे बपतिस्मा पाना कोई दूसरा या अतिरिक्त अनुभव नहीं है, वरन उद्धार के साथ ही सच्चे मसीही विश्वासी में पवित्र आत्मा का आकर निवास करना ही है। इन गलत शिक्षकों की एक और बहुत प्रचलित और बल पूर्वक कही जाने वाले बात हैअन्य-भाषाओंमें बोलना, और उन लोगों के द्वाराअन्य-भाषाओंको अलौकिक भाषाएं बताना, और परमेश्वर के वचन के दुरुपयोग के द्वारा इससे संबंधित कई और गलत शिक्षाओं को सिखाना। इसके बारे में भी हम देख चुके हैं कि यह भी एक ऐसी गलत शिक्षा है जिसका वचन से कोई समर्थन या आधार नहीं है। प्रेरितों 2 अध्याय में जो अन्य भाषाएं बोली गईं, वे पृथ्वी ही की भाषाएं और उनकी बोलियाँ थीं; कोई अलौकिक भाषा नहीं। हमने यह भी देखा था कि वचन में इस शिक्षा का भी कोई आधार या समर्थन नहीं है किअन्य-भाषाएंप्रार्थना की भाषाएं हैं। इस गलत शिक्षा के साथ जुड़ी हुई इन लोगों की एक और गलत शिक्षा है किअन्य-भाषाएंबोलना ही पवित्र आत्मा प्राप्त करने का प्रमाण है, जिसके भी झूठ होने और परमेश्वर के वचन के दुरुपयोग पर आधारित होने को हमने पिछले लेख में देखा है। पिछले लेख में हमने यह भी देखा था कि उन लोगों के सभी दावों के विपरीत, न तो प्रेरितों 2:3-11 का प्रभु के शिष्यों द्वारा अन्य-भाषाओं में बोलना कोईसुननेका आश्चर्यकर्म था, न ही अन्य भाषाएं प्रार्थना करने की गुप्त भाषाएँ हैं, और न ही ये किसी को भी यूं ही दे दी जाती हैं, जब तक कि व्यक्ति की उस स्थान पर सेवकाई न हो, जहाँ की भाषा बोलने की सामर्थ्य उसे प्रदान की गई है। एक और दावा जो ये पवित्र आत्मा और अन्य-भाषाएँ बोलने से संबंधित गलत शिक्षाएं देने वाले करते हैं, है कि व्यक्ति अन्य-भाषा बोलने के द्वारा सीधे परमेश्वर से बात करता है। इसके तथा कुछ संबंधित और बहुत महत्वपूर्ण बातों के बारे में हम पिछले दो लेखों में देख चुके हैं कि उनका यह दावा भी वचन की कसौटी पर बिलकुल गलत है, अस्वीकार्य है।

   इन गलत शिक्षा फैलाने वालों की एक और प्रमुख शिक्षा, जिसे वे अपने बचाव के लिए प्रयोग करते हैं, हैपवित्र आत्मा की निन्दा कभी क्षमा न होने वाला पाप है।यह समझने के लिए कि यहनिरादरयानिन्दावास्तव में है क्या, और यह क्यों केवल परमेश्वर पवित्र आत्मा ही के विरुद्ध ही क्षमा नहीं हो सकता है, हमने पिछले लेख से परमेश्वर के वचन में से कुछ तथ्यों एवं शिक्षाओं को देखना आरंभ किया है, और पहले त्रिएक परमेश्वर के तीनों स्वरूपों, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के बारे में अपने इस विषय के संदर्भ से देखा है। फिर हमने देखा कि लूसिफर का पाप क्यों क्षमा नहीं हो सकता था; और यह भी समझा था कि वचन के अनुसार निन्दा (blasphemy) शब्द का वास्तव में क्या अर्थ और अभिप्राय होता है, और वचन के संदर्भ एवं प्रयोग के अनुसार क्यों जन-साधारण का हर संदेह, अविश्वास, अभद्र भाषा का प्रयोग, आदि, पवित्र आत्मा की निन्दा की श्रेणी में नहीं आता है। आज हम देखेंगे कि क्यों प्रभु यीशु नेपवित्र आत्मा की निन्दा कभी क्षमा न होने वाला पाप हैकेवल वचन के ज्ञानियों और शिक्षकों, फरीसियों के लिए ही क्यों कहा है (मरकुस 3:28-30 और लूका 12:10) 

        यह समझने के लिए कि किस प्रकार से फरीसियों के लिए प्रभु यीशु का निरादर करना क्षमा न हो सकने वाले पाप ठहरा, इस संदर्भ में वचन के कुछ हवालों को देखिए:

           यूहन्ना 3:1-3 को देखिए:फरीसियों में से नीकुदेमुस नाम एक मनुष्य था, जो यहूदियों का सरदार था। उसने रात को यीशु के पास आकर उस से कहा, हे रब्बी, हम जानते हैं, कि तू परमेश्वर की ओर से गुरु हो कर आया है; क्योंकि कोई इन चिन्हों को जो तू दिखाता है, यदि परमेश्वर उसके साथ न हो, तो नहीं दिखा सकता। यीशु ने उसको उत्तर दिया; कि मैं तुझ से सच सच कहता हूं, यदि कोई नये सिरे से न जन्मे तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकतायहाँ, यह बिलकुल स्पष्ट है कि निकुदेमुस ने प्रभु से जो कहा -हम जानते हैं”, उसके अनुसार न केवल वह स्वयं, वरन फरीसी समाज के सभी लोग भली-भांति जानते थे कि प्रभु यीशु परमेश्वर की ओर से गुरु होकर आए हैं। तथा सभी फरीसी यह भी समझते थे कि प्रभु यीशु के कार्य यह प्रमाणित करते थे कि परमेश्वर उनके साथ है, और उन में होकर काम कर रहा है। 

धर्म के ये अगुवे प्रभु यीशु के, उस के सेवकाई से पहले के जीवन के बारे में, न तो अनभिज्ञ थे और न किसी संदेह में थे; वरन, वे उसके विषय सब बातों के बारे में अच्छे से जानते थे! इसीलिए जब प्रभु यीशु ने उन्हें चुनौती दी कितुम में से कौन मुझे पापी ठहराता है? और यदि मैं सच बोलता हूं, तो तुम मेरी प्रतीति क्यों नहीं करते?” (यूहन्ना 8:46), तो उनमें से कोई भी प्रभु के जीवन में कोई पाप या बुराई को नहीं बता सका, कोई भी प्रभु को किसी भी बात में दोषी नहीं ठहरा सका।

 इसी प्रकार से जबतब फरीसियों ने जा कर आपस में विचार किया, कि उसको किस प्रकार बातों में फंसाएं। सो उन्होंने अपने चेलों को हेरोदियों के साथ उसके पास यह कहने को भेजा, कि हे गुरु; हम जानते हैं, कि तू सच्चा है; और परमेश्वर का मार्ग सच्चाई से सिखाता है; और किसी की परवाह नहीं करता, क्योंकि तू मनुष्यों का मुंह देखकर बातें नहीं करता” (मत्ती 22:15-16) तब भी उन्होंने उसेहे गुरुकहकर संबोधित किया, तथा इस तथ्य का अंगीकार किया कि प्रभु यीशु सच्चा है, परमेश्वर का मार्ग सच्चाई से सिखाता है, और निष्पक्ष, निष्कपट व्यवहार करता है।

जब प्रभु यीशु मसीह को पकड़वाने वाले उनके शिष्य यहूदा इस्करियोती ने अपने किए पर दुख जताया और उन धर्म के अगुवों के पास आकर कहा, “जब उसके पकड़वाने वाले यहूदा ने देखा कि वह दोषी ठहराया गया है तो वह पछताया और वे तीस चान्दी के सिक्के महायाजकों और पुरनियों के पास फेर लाया। और कहा, मैं ने निर्दोष को घात के लिये पकड़वाकर पाप किया है? उन्होंने कहा, हमें क्या? तू ही जान” (मत्ती 27:3-4), तब भी, यद्यपि उन्होंने यहूदा की बात को अनसुनी कर दिया, किन्तु उन्होंने प्रभु यीशु के निर्दोष होने की उसकी बात को अस्वीकार नहीं किया, उसके विषय कोई तर्क नहीं किया।    

और न ही प्रभु ने अपने बारे में उन्हें किसी संदेह में छोड़ा था; अनेकों अवसरों पर, यहाँ तक कि उस समय तक भी जब उन्हें झूठे मुकद्दमों में दोषी ठहराने के प्रयास किए जा रहे थे, प्रभु ने यह बारंबार स्पष्ट बता दिया था की वे कौन हैं (यूहन्ना 5:17-43; 8:25; 10:24; 14:11; लूका 22:67-70)। परन्तु प्रभु यीशु के वास्तविकता को भली-भांति जानते हुए भी उन्होंने कभी भी प्रभु पर विश्वास नहीं किया (यूहन्ना 12:37)। उलटे, यह सब जानते हुए भी, बुरे उद्देश्यों एवं स्वार्थी भावनाओं के अंतर्गत, उन्होंने प्रभु को मार डालने का षड्यंत्र रचा (यूहन्ना 11:47-50) 

दूसरे शब्दों में, यद्यपि यहूदियों के धार्मिक अगुवे यह भली-भांति जानते थे कि प्रभु यीशु वास्तव में कौन हैं, और यह भी कि परमेश्वर उनके साथ है, तथा उन में होकर कार्य कर रहा है। फिर भी जानबूझकर, स्वार्थी लाभ के लिए, उन्होंने प्रभु की अवहेलना की, उन पर अविश्वास किया, और सबसे बुरा यह कि जानबूझकर उनके बारे में लोगों का गलत मार्गदर्शन किया। उन्होंने सभी के समक्ष प्रभु के कार्यों और शिक्षाओं में होकर दिखाए जा रहे परमेश्वर पवित्र आत्मा की सामर्थ्य को शैतानों के सरदार की सामर्थ्य कहने के द्वारा न केवल प्रभु और परमेश्वर के विषय झूठ बोला, वरन प्रभु में होकर कार्य करने वाली पवित्र आत्मा की सामर्थ्य को शैतानी शक्ति बताया। अब पिछले लेख में हमने जोनिन्दा” (blasphemy) शब्द का वचन के अनुसार वास्तविक अर्थ को और उसके अभिप्रायों के बारे में सीखा था, उसे स्मरण कीजिए या फिर से देख लीजिए। उन फरीसियों तथा धर्म के अगुवों की यह, प्रभु के विरोध में, और स्वार्थ के अंतर्गत जानबूझकर कही गई बात; प्रभु के बारे में जानकारी रखते हुए भी और यह जानते हुए भी कि प्रभु पर उनके द्वारा लगाए जाने वाले आरोप झूठे हैं, फिर भी झूठ बोलकर प्रभु का निरादर करना, उन्हें अपमानित करना, और उनमें होकर कार्य करने वाली पवित्र आत्मा की सामर्थ्य को शैतानी सामर्थ्य कहना, केवल इसे ही प्रभु ने पवित्र आत्मा के विरुद्ध किया गया कभी क्षमा न हो सकने वाला पाप कहा है; अन्य किसी बात को नहीं।

इसलिए, पवित्र आत्मा के विरुद्ध कभी क्षमा न हो सकने वाले पाप वह नहीं हैं जो बहुधा वर्तमान के अनेकों धार्मिक अगुवों के द्वारा कहे और बताए जाते हैं; और जो वचन, विशेषकर पवित्र आत्मा से संबंधित गलत शिक्षाओं को देने वाले बताते और फैलाते हैं। बाइबल में यह वाक्यांश एक बहुत ही विशिष्ट अपराध के लिए प्रयोग किया गया है, और केवल उस अपराध को ही यह कहा जाना चाहिए। अपनी गलत शिक्षाओं के विषय प्रश्नों से बचने के लिए लोगों को पवित्र आत्मा की निन्दाका भय दिखाना या कहना झूठ है, अनुचित है, वचन का दुरुपयोग है। 

यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना और समझना अति-आवश्यक है कि आप परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित इन गलत शिक्षाओं में न पड़ जाएं; न खुद भरमाए जाएं, और न ही आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए। लोगों द्वारा कही जाने वाले ही नहीं, वरन वचन में लिखी हुई बातों पर भी ध्यान दें, और लोगों की बातों को वचन की बातों से मिला कर जाँचें और परखें। यदि आप इन गलत शिक्षाओं में पड़ चुके हैं, तो अभी वचन के अध्ययन और बात को जाँच-परख कर, सही शिक्षा को, उसी के पालन को अपना लें।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।



एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • गिनती 28-30         
  • मरकुस 8:22-38

बुधवार, 2 मार्च 2022

कलीसिया में अपरिपक्वता के दुष्प्रभाव (18)


भ्रामक शिक्षाओं के स्वरूप - पवित्र आत्मा के विषय गलत शिक्षाएं (8) - पवित्र आत्मा की निन्दा करने का पाप (2) 

हम पिछले लेखों से देखते आ रहे हैं कि बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों की एक पहचान यह भी है कि वे बहुत सरलता से भ्रामक शिक्षाओं द्वारा बहकाए तथा गलत बातों में भटकाए जाते हैं। इन भ्रामक शिक्षाओं को शैतान और उस के दूत झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं (2 कुरिन्थियों 11:13-15)। ये लोग, और उनकी शिक्षाएं, दोनों ही बहुत आकर्षक, रोचक, और ज्ञानवान, यहाँ तक कि भक्तिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण भी प्रतीत हो सकती हैं, किन्तु साथ ही उनमें अवश्य ही बाइबल की बातों के अतिरिक्त भी बातें डली हुई होती हैं। जैसा परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”, इन भ्रामक शिक्षाओं और गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन विषय, होते हैं - प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार। साथ ही इस पद में सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है, कि इन तीनों विषयों के बारे में जो यथार्थ और सत्य हैं, वे सब वचन में पहले से ही बता और लिखवा दिए गए हैं। इसलिए बाइबल से देखने, जाँचने, तथा वचन के आधार पर शिक्षाओं को परखने के द्वारा सही और गलत की पहचान करना कठिन नहीं है। 

पिछले लेखों में हमने इन गलत शिक्षा देने वाले लोगों के द्वारा, प्रभु यीशु से संबंधित सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं को देखने के बाद, परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित सामान्यतः बताई और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं की वास्तविकता को वचन की बातों से देखना आरंभ किया है। हम देख चुके हैं कि प्रत्येक सच्चे मसीही विश्वासी के नया जन्म या उद्धार पाते ही, तुरंत उसके उद्धार पाने के पल से ही परमेश्वर पवित्र आत्मा अपनी संपूर्णता में आकर उसके अंदर निवास करने लगता है, और उसी में बना रहता है, उसे कभी छोड़ कर नहीं जाता है; और इसी को पवित्र आत्मा से भरना या पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाना भी कहते हैं। वचन स्पष्ट है कि पवित्र आत्मा से भरना या उससे बपतिस्मा पाना कोई दूसरा या अतिरिक्त अनुभव नहीं है, वरन उद्धार के साथ ही सच्चे मसीही विश्वासी में पवित्र आत्मा का आकर निवास करना ही है। इन गलत शिक्षकों की एक और बहुत प्रचलित और बल पूर्वक कही जाने वाले बात हैअन्य-भाषाओंमें बोलना, और उन लोगों के द्वाराअन्य-भाषाओंको अलौकिक भाषाएं बताना, और परमेश्वर के वचन के दुरुपयोग के द्वारा इससे संबंधित कई और गलत शिक्षाओं को सिखाना। इसके बारे में भी हम देख चुके हैं कि यह भी एक ऐसी गलत शिक्षा है जिसका वचन से कोई समर्थन या आधार नहीं है। प्रेरितों 2 अध्याय में जो अन्य भाषाएं बोली गईं, वे पृथ्वी ही की भाषाएं और उनकी बोलियाँ थीं; कोई अलौकिक भाषा नहीं। हमने यह भी देखा था कि वचन में इस शिक्षा का भी कोई आधार या समर्थन नहीं है किअन्य-भाषाएंप्रार्थना की भाषाएं हैं। इस गलत शिक्षा के साथ जुड़ी हुई इन लोगों की एक और गलत शिक्षा है किअन्य-भाषाएंबोलना ही पवित्र आत्मा प्राप्त करने का प्रमाण है, जिसके भी झूठ होने और परमेश्वर के वचन के दुरुपयोग पर आधारित होने को हमने पिछले लेख में देखा है। पिछले लेख में हमने यह भी देखा था कि उन लोगों के सभी दावों के विपरीत, न तो प्रेरितों 2:3-11 का प्रभु के शिष्यों द्वारा अन्य-भाषाओं में बोलना कोईसुननेका आश्चर्यकर्म था, न ही अन्य भाषाएं प्रार्थना करने की गुप्त भाषाएँ हैं, और न ही ये किसी को भी यूं ही दे दी जाती हैं, जब तक कि व्यक्ति की उस स्थान पर सेवकाई न हो, जहाँ की भाषा बोलने की सामर्थ्य उसे प्रदान की गई है। एक और दावा जो ये पवित्र आत्मा और अन्य-भाषाएँ बोलने से संबंधित गलत शिक्षाएं देने वाले करते हैं, है कि व्यक्ति अन्य-भाषा बोलने के द्वारा सीधे परमेश्वर से बात करता है। इसके तथा कुछ संबंधित और बहुत महत्वपूर्ण बातों के बारे में हम पिछले दो लेखों में देख चुके हैं कि उनका यह दावा भी वचन की कसौटी पर बिलकुल गलत है, अस्वीकार्य है।

   इन गलत शिक्षा फैलाने वालों की एक और प्रमुख शिक्षा, जिसे वे अपने बचाव के लिए प्रयोग करते हैं, हैपवित्र आत्मा की निन्दा कभी क्षमा न होने वाला पाप है।यह समझने के लिए कि यहनिरादरया निन्दावास्तव में है क्या, और यह क्यों केवल परमेश्वर पवित्र आत्मा ही के विरुद्ध ही क्षमा नहीं हो सकता है, हमने पिछले लेख से परमेश्वर के वचन में से कुछ तथ्यों एवं शिक्षाओं को देखना आरंभ किया है, और त्रिएक परमेश्वर के तीनों स्वरूपों, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के बारे में अपने इस विषय के संदर्भ से देखा है। आज हम देखेंगे कि लूसिफर का पाप क्यों क्षमा नहीं हो सकता था; और यह भी समझेंगे कि वचन के अनुसार निन्दा (blasphemy) शब्द का वास्तव में क्या अर्थ और अभिप्राय होता है। 

लूसिफर का पाप क्यों कभी क्षमा नहीं हो सकता, और हमारे लिए उसके क्या अभिप्राय हैं?

परमेश्वर की पवित्रता, वैभव, और महानता के विरुद्ध मनुष्यों द्वारा किए गए निरादर के पाप को यदि हमारे लिए क्षमा योग्य बना दिया जाता, तो फिर परमेश्वर के उच्च तथा निष्पक्ष न्याय की मांग होगी कि प्रधान स्वर्गदूत, लूसिफर द्वारा परमेश्वर की पवित्रता, वैभव, और महानता के विरुद्ध किए गए निरादर के पाप को भी क्षमा मिलनी चाहिए – और यह परमेश्वर की पवित्रता, वैभव, महानता, और पूर्ण सार्वभौमिकता का उपहास हो जाएगा। लूसिफर का पाप न केवल अत्यंत जघन्य था, वरन क्योंकि उसके पतन के समय, किसी ने भी किसी के पाप की कोई कीमत नहीं चुकाई थी, जैसे कि मसीह यीशु ने हमारे लिए चुका दी है, इसलिए पाप के लिए कोई प्रायश्चित का समाधान उपलब्ध भी नहीं था; इसका निवारण दंड के द्वारा ही संभव था। 

साथ ही, हम वचन से यह भी देखते हैं कि न तो लूसिफर ने और न ही उसके दूतों ने कभी अपने पापों के लिए कोई पश्चाताप किया, उनके लिए सच्चे मन से क्षमा माँगी। वे तो आरंभ से ही परमेश्वर के कार्यों में बाधा और बिगाड़ उत्पन्न करते आ रहे हैं, परमेश्वर के वचन और शिक्षाओं को भ्रष्ट करके उनका दुरुपयोग ही करते चले आ रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में, मात्र क्षमा की प्रार्थना कर लेने की औपचारिकता को स्वीकार किए जाने का अर्थ होता स्वर्गीय स्थानों में अनियंत्रित अव्यवस्था एवं अराजकता को निमंत्रण देना। क्योंकि तब, कोई भी सृजा गया प्राणी अपनी इच्छानुसार कुछ भी कर लेता और, बस क्षमा मांग कर उसके परिणामों से बच निकालता –  और यह कदापि स्वीकार नहीं की जा सकने वाली स्थिति हो जाती। 

इसलिए पृथ्वी पर भी पापों की क्षमा के लिए सच्चे और वास्तविक पश्चाताप और समर्पण को ही आधार बनाया गया है, पश्चाताप के बाद ही पाप-क्षमा है (मरकुस 1:15; प्रेरितों 2:38); औपचारिकता में पापों की क्षमा माँग लेना न पर्याप्त है और न स्वीकार्य। इसलिए यह अनिवार्य था कि लूसिफर से उसके द्वारा किए गए परमेश्वर के निरादर के पाप का हिसाब लिया जाए और उसे पाप का उचित एवं उपयुक्त दण्ड भोगने का उदाहरण बना कर प्रस्तुत किया जाए। लूसिफर को उचित दण्ड दिया ही जाना था; ऐसा दण्ड जो उसके पाप के घोर और जघन्य होने के अनुपात में कम से कम उतना ही घोर और जघन्य तो हो। यदि परमेश्वर के निरादर का पाप एक के लिए क्षमा होने योग्य नहीं है, तो फिर परमेश्वर के निष्पक्ष न्याय के अनुसार, यह औरों के लिए भी क्षमा नहीं किया जा सकता है। इसीलिए, पवित्र आत्मा के विरूद्ध निरादर या निन्दा के पाप को भी कभी क्षमा नहीं किया जा सकता है।

बाइबल के अनुसार परमेश्वर पवित्र आत्मा की निन्दा क्या है?

अब हम देखते हैं की शब्दनिंदा या निरादरका, उसके क्षमा न हो सकने वाले पाप के सन्दर्भ में, परमेश्वर के वचन में अभिप्राय क्या है। हम मिकल्संस एन्हांस्ड डिक्शनरी ऑफ़ द ग्रीक एंड हीब्र्यु टेस्टामेंट्स (Mickelson’s Enhanced Dictionary of the Greek and Hebrew Testaments) से देखते हैं कि यह शब्दनिन्दा”, यूनानी शब्दब्लास्फेमियो” (स्ट्रौंग्स/Strongs G987) से आया है, जिसका अर्थ है:

1. धिक्कारना, अपशब्द के साथ विरोध में बोलना, हानि पहुंचाना।

2. कलंकित करना, किसी की प्रतिष्ठा को हानि पहुंचाना, बदनाम करना।

3. (विशेषतः) किसी के प्रति निरादर पूर्वक बोलना।

 

इस शब्द की उपरोक्त परिभाषा से स्पष्ट है कि, यह निरादर का पाप एक ऐच्छिक, जानबूझकर योजनानुसार किया गया कार्य है; जो तथ्यों पर आधारित हो सकता है अथवा नहीं भी हो सकता है, वरन जो तथ्यों का दुरुपयोग करके उन तथ्यों के यथार्थ से बिलकुल भिन्न अभिप्राय देने के द्वारा किया गया भी हो सकता है। और साथ ही यह केवल व्यक्ति को नीचा दिखाने और बदनाम करने के उद्देश्य से किया गया होगा – जो करना चाहे सही हो या गलत। सीधे शब्दों में में अर्थ यह है कि, किसी का निरादर या निन्दा करना, उस व्यक्ति को दुष्ट कहना और इस बात का प्रचार करना है, यह भली-भांति जानते हुए भी कि वह व्यक्ति बुरा नहीं है; और उसके बुरा न होने के प्रमाण होते और जानते हुए भी, केवल उसे बदनाम करने के उद्देश्य से, जानबूझकर ऐसा करना।

इस विषय के संदर्भ में, यह बहुत ध्यान देने और भली-भांति समझने की बात है कि पवित्र आत्मा के विरुद्ध निरादर या निन्दा का पाप, पवित्र आत्मा या उसकी सामर्थ्य अथवा कार्यों के प्रति असमंजस में होना या अनिश्चित होना, या उस पर संदेह करना, या उसके विषय कोई स्पष्टीकरण की अपेक्षा करना, या कुछ और अधिक खुलासा अथवा विवरण माँगना, आदि नहीं है। यह इस बात से भली-भांति प्रकट होता है कि यद्यपि प्रभु के कार्य पवित्र आत्मा के अभिषेक और सामर्थ्य के साथ किए गए थे (प्रेरितों 10:38), किन्तु फिर भी अनेकों को, जिन में नए नियम के कुछ बहुत महत्वपूर्ण व्यक्ति भी सम्मिलित हैं, प्रभु पर, तथा पवित्र आत्मा की अगुवाई और सामर्थ्य द्वारा की गई उसकी सेवकाई के प्रति न केवल संदेह था, यहाँ तक कि अविश्वास भी था:

  • यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले को संदेह हुआ की क्या प्रभु वह प्रतिज्ञा किया हुआ मसीहा था भी की नहीं (मत्ती 11:2-3); 
  • प्रभु के शिष्यों को ही उस पर संदेह था की वह वास्तव में है कौन (मरकुस 4:38-41); 
  • प्रभु यीशु के अपने भाई, जिनमें याकूब और यहूदा भी थे जिनकी पत्रियां नए नियम में विद्यमान हैं, आरंभ में वे भी उस पर विश्वास नहीं रखते थे (यूहन्ना 7:5); 
  • दुष्टात्मा के वश में लड़के के पिता को संदेह था कि वह उसके पुत्र को ठीक कर सकता है कि नहीं (मरकुस 9:24); 
  • मृतक लाज़रस की बहिन मारथा को संदेह था, कि प्रभु लाज़रस को मृतकों में से जिलाने पाएगा (यूहन्ना 11:21-28); 
  • थोमा को प्रभु के पुनरुत्थान पर संदेह था (यूहन्ना 20:25) इत्यादि। 

किन्तु इन में से किसी को भी प्रभु ने उनके प्रश्नों, संदेहों, और अविश्वास के कारण कभी भीक्षमा न हो पाने वाले पापका दोषी न तो कहा और न इसके लिए उन्हें दण्डित किया। 

इसके अतिरिक्त: 

  • वचन में यह भी उदाहरण है कि पवित्र आत्मा का प्रतिरोध करने और उसके अनाज्ञाकारी होने की निंदा अवश्य की गई है (प्रेरितों 7:51-53), परन्तु इस भीकभी क्षमा न होने वाला पापनहीं कहा गया है।
  • यहाँ तक कि प्रभु के विरोध में भद्दी या अपमानजनक भाषा के उपयोग को (पतरस द्वारा प्रभु का तीन बार असभ्य भाषा के प्रयोग के साथ किया गया इनकार – मत्ती 26:69-74), भी बाइबल में अनादर या क्षमा न होने वाला पाप नहीं कहा गया है। 
  • हमें यह स्मरण करना और ध्यान करना आवश्यक है कि केवल फरीसी, सदूकी, और शास्त्री ही नहीं थे जिन्होंने प्रभु यीशु में दुष्टात्मा होने का दोषारोपण किया था, आम लोगों में से भी कई लोगों ने यही कहा था (मत्ती 10:25; मरकुस 3:21; यूहन्ना 7:20; 8:48, 52; 10:20); परन्तु इन में से किसी भी अवसर पर प्रभु यीशु ने न तो उन्हें क्षमा न होने वाले पाप का दोषी कहा और न ही उन्हें इसके विषय सचेत किया। 

उपरोक्त वचन के सभी उदाहरणों के आधार पर, यह बिलकुल स्पष्ट है कि वचन के अनुसार, जन-साधारण द्वारा प्रभु या पवित्र आत्मा पर संदेह करना, किसी असमंजस के लिए स्पष्टीकरण की लालसा रखना या मांगना, अविश्वास रखना, उनके विषय अनुचित या अभद्र भाषा अथवा व्यवहार का प्रयोग करना, आदिकभी न क्षमा होने वाला पापनहीं हैं, क्योंकि उन लोगों ने ये सभी बातें की हैं, और प्रभु ने कभी उसे उनके द्वाराकभी न क्षमा होने वाला पापकिया जाना नहीं कहा है। 

अब प्रश्न यह उठता है कि ऐसे निरादर या निन्दा कोकभी न क्षमा होने वाला पाप,” प्रभु ने केवल वचन के ज्ञानियों और शिक्षकों, फरीसियों से ही क्यों कहा है (मरकुस 3:28-30 और लूका 12:10)? इसे हम अगले लेख में देखेंगे। 

यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना और समझना अति-आवश्यक है कि आप परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित इन गलत शिक्षाओं में न पड़ जाएं; न खुद भरमाए जाएं, और न ही आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए। लोगों द्वारा कही जाने वाले ही नहीं, वरन वचन में लिखी हुई बातों पर भी ध्यान दें, और लोगों की बातों को वचन की बातों से मिला कर जाँचें और परखें। यदि आप इन गलत शिक्षाओं में पड़ चुके हैं, तो अभी वचन के अध्ययन और बात को जाँच-परख कर, सही शिक्षा को, उसी के पालन को अपना लें।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • गिनती 26-27          
  • मरकुस 8:1-21

मंगलवार, 1 मार्च 2022

कलीसिया में अपरिपक्वता के दुष्प्रभाव (17)


भ्रामक शिक्षाओं के स्वरूप - पवित्र आत्मा के विषय गलत शिक्षाएं (7) - पवित्र आत्मा की निन्दा करने का पाप (1) 

हम पिछले लेखों से देखते आ रहे हैं कि बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों की एक पहचान यह भी है कि वे बहुत सरलता से भ्रामक शिक्षाओं द्वारा बहकाए तथा गलत बातों में भटकाए जाते हैं। इन भ्रामक शिक्षाओं को शैतान और उस के दूत झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं (2 कुरिन्थियों 11:13-15)। ये लोग, और उनकी शिक्षाएं, दोनों ही बहुत आकर्षक, रोचक, और ज्ञानवान, यहाँ तक कि भक्तिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण भी प्रतीत हो सकती हैं, किन्तु साथ ही उनमें अवश्य ही बाइबल की बातों के अतिरिक्त भी बातें डली हुई होती हैं। जैसा परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”, इन भ्रामक शिक्षाओं और गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन विषय, होते हैं - प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार। साथ ही इस पद में सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है, कि इन तीनों विषयों के बारे में जो यथार्थ और सत्य हैं, वे सब वचन में पहले से ही बता और लिखवा दिए गए हैं। इसलिए बाइबल से देखने, जाँचने, तथा वचन के आधार पर शिक्षाओं को परखने के द्वारा सही और गलत की पहचान करना कठिन नहीं है। 

पिछले लेखों में हमने इन गलत शिक्षा देने वाले लोगों के द्वारा, प्रभु यीशु से संबंधित सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं को देखने के बाद, परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित सामान्यतः बताई और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं की वास्तविकता को वचन की बातों से देखना आरंभ किया है। हम देख चुके हैं कि प्रत्येक सच्चे मसीही विश्वासी के नया जन्म या उद्धार पाते ही, तुरंत उसके उद्धार पाने के पल से ही परमेश्वर पवित्र आत्मा अपनी संपूर्णता में आकर उसके अंदर निवास करने लगता है, और उसी में बना रहता है, उसे कभी छोड़ कर नहीं जाता है; और इसी को पवित्र आत्मा से भरना या पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाना भी कहते हैं। वचन स्पष्ट है कि पवित्र आत्मा से भरना या उससे बपतिस्मा पाना कोई दूसरा या अतिरिक्त अनुभव नहीं है, वरन उद्धार के साथ ही सच्चे मसीही विश्वासी में पवित्र आत्मा का आकर निवास करना ही है। इन गलत शिक्षकों की एक और बहुत प्रचलित और बल पूर्वक कही जाने वाले बात हैअन्य-भाषाओंमें बोलना, और उन लोगों के द्वाराअन्य-भाषाओंको अलौकिक भाषाएं बताना, और परमेश्वर के वचन के दुरुपयोग के द्वारा इससे संबंधित कई और गलत शिक्षाओं को सिखाना। इसके बारे में भी हम देख चुके हैं कि यह भी एक ऐसी गलत शिक्षा है जिसका वचन से कोई समर्थन या आधार नहीं है। प्रेरितों 2 अध्याय में जो अन्य भाषाएं बोली गईं, वे पृथ्वी ही की भाषाएं और उनकी बोलियाँ थीं; कोई अलौकिक भाषा नहीं। हमने यह भी देखा था कि वचन में इस शिक्षा का भी कोई आधार या समर्थन नहीं है किअन्य-भाषाएंप्रार्थना की भाषाएं हैं। इस गलत शिक्षा के साथ जुड़ी हुई इन लोगों की एक और गलत शिक्षा है किअन्य-भाषाएंबोलना ही पवित्र आत्मा प्राप्त करने का प्रमाण है, जिसके भी झूठ होने और परमेश्वर के वचन के दुरुपयोग पर आधारित होने को हमने पिछले लेख में देखा है। पिछले लेख में हमने यह भी देखा था कि उन लोगों के सभी दावों के विपरीत, न तो प्रेरितों 2:3-11 का प्रभु के शिष्यों द्वारा अन्य-भाषाओं में बोलना कोईसुननेका आश्चर्यकर्म था, न ही अन्य भाषाएं प्रार्थना करने की गुप्त भाषाएँ हैं, और न ही ये किसी को भी यूं ही दे दी जाती हैं, जब तक कि व्यक्ति की उस स्थान पर सेवकाई न हो, जहाँ की भाषा बोलने की सामर्थ्य उसे प्रदान की गई है। एक और दावा जो ये पवित्र आत्मा और अन्य-भाषाएँ बोलने से संबंधित गलत शिक्षाएं देने वाले करते हैं, वह है कि व्यक्ति अन्य-भाषा बोलने के द्वारा सीधे परमेश्वर से बात करता है। इसके तथा कुछ संबंधित और बहुत महत्वपूर्ण बातों के बारे में हम पिछले दो लेखों में देख चुके हैं कि उनका यह दावा भी वचन की कसौटी पर बिलकुल गलत है, अस्वीकार्य है।

पवित्र आत्मा की निन्दा क्या है, और क्यों इस क्षमा न हो सकने वाला पाप कहा गया है? 

आज हम पवित्र आत्मा से संबंधित एक और बहुत गलत और भ्रामक शिक्षा के बारे में देखना आरंभ करेंगे, जिसका दुरुपयोग ये गलत शिक्षाएं फैलाने वाले लोग अपने आप को प्रश्न पूछे जाने तथा अपनी आलोचना होने से बचाए रखने के लिए करते हैं; और इसे कुछ विस्तार से, तीन भागों में देखेंगे।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि परमेश्वर के वचन बाइबल में, स्वयं प्रभु यीशु मसीह ही के द्वारा  “पवित्र आत्मा की निन्दा या निरादरकोकभी न क्षमा होने वाला पापकहा गया है (मत्ती 12:31; मरकुस 3:29; लूका 12:10)। किन्तु वर्तमान में यह भी एक तथ्य है कि प्रभु की इस बात को लेकर मसीही विश्वासियों, मसीही या ईसाई समाज के लोगों में बहुत सी ग़लतफ़हमियाँ भी हैं, जिसके कारण प्रभु की इस बात का दुरुपयोग भी किया जाता है। यह निंदनीय है कि बहुत से प्रचारक तथा शिक्षक, विशेषकर वे लोग जो पवित्र आत्मा के संबंध में गलत शिक्षाएं सिखाते और फैलाते हैं, वचन की बातों को अनुचित रीति से, संदर्भ से बाहर, और तोड़-मरोड़ कर लोगों के सामने प्रस्तुत करके, इस बात का दुरुपयोग लोगों के मनों में अनुचित भय जागृत करने के लिए करते हैं। वे ऐसा इसलिए करते हैं जिससे कोई उनसे, उनके कार्यों और शिक्षाओं के लिए प्रश्न न कर सके। ऐसा करके ये लोग, प्रश्न करने वालों परपवित्र आत्मा का निरादर/निन्दाकरने का भय एवं आरोप लगाने के द्वारा, उन गलत शिक्षकों की बहुत सी सैद्धांतिक एवं विश्वास संबंधी गलत शिक्षाओं के विषय, तथा उन लोगों के जीवनों में पाए जाने वाले अनुचित व्यवहार के प्रति उन से प्रश्न करने वाले लोगों के मुंह बंद करते हैं। 

यह समझने के लिए कि यहनिरादरयानिन्दावास्तव में है क्या, और यह क्यों केवल परमेश्वर पवित्र आत्मा ही के विरुद्ध ही क्षमा नहीं हो सकता है, हमें परमेश्वर के वचन में से कुछ तथ्यों एवं शिक्षाओं को देखना होगा।

इसे केवल परमेश्वर पवित्र आत्मा के विरुद्ध पाप ही क्यों कहा गया है?

परमेश्वर का वचन बाइबल हमारे प्रभु परमेश्वर को त्रिएक परमेश्वर दिखाती है, परमेश्वर पिता, परमेश्वर पुत्र – प्रभु यीशु मसीह, और परमेश्वर पवित्र आत्मा। ये तीनों हर प्रकार से और हर बात में पूर्णतः एक और समान हैं, इन तीनों में कोई भी, किसी भी प्रकार की भिन्नता नहीं है – पवित्र त्रिएक परमेश्वर – एक परमेश्वर तीन व्यक्तित्वों में। तो जबकि तीनों हर रीति से समान और बराबर हैं, तो फिर ऐसा क्यों है कि केवलपवित्र आत्मा के निरादरके लिए ही इतने कठोर परिणाम दिए गए हैं; जबकि ऐसे ही दुष्परिणामों का न तो कोई संकेत और न ही कोई दावा परमेश्वर पिता, या परमेश्वर पुत्र – प्रभु यीशु के विरुद्ध किए गए निरादर के लिए कहा गया है; जबकि तीनों ही परमेश्वर के समान स्वरूप हैं?

इसे समझने के लिए त्रिएक परमेश्वर के तीन व्यक्तित्वों के संबंध में कुछ बारीकियों को देखना होगा। परमेश्वर पुत्र – प्रभु यीशु मसीह, जब पृथ्वी पर हमारे उद्धारकर्ता बन कर आए, तो वे अपनी स्वर्गीय महिमा, वैभव, स्वरूप, और स्थान को छोड़कर आए थे। बाइबल बताती है कि मानव स्वरूप में उन्होंने अपने आप को स्वर्गीय महिमा से शून्य कर लिया और वे स्‍वर्गदूतों से थोड़ा कम किए गए थे (फिलिप्पियों 2:5-8; इब्रानियों 2:9)। इस मानवीय स्वरूप में, वे संसार के पाप उठाने और संसार के छुटकारे के लिए बलिदान होने के लिए आए थे। इसके लिए उनका, तुच्छ समझा जाना, उनके विरुद्ध बोला जाना, उनका दुःख और ताड़ना सहना, और संसार के लोगों से तिरस्कृत एवं निरादर होना, पूर्व-निर्धारित था (यशायाह 53)। उन्हें भी वही सब अनुभव करना और सहना था जिसमें होकर संसार के लोग निकलते हैं; उन्हें किसी भी अन्य मनुष्य के समान जीवन जीना था (इब्रानियों 4:15; 5:7-8), और अंततः क्रूस की श्रापित मृत्यु सहन करनी थी। उनके इस मानवीय स्वरूप और अस्तित्व के सन्दर्भ में, मृत्यु सहने के लिए स्‍वर्गदूतों से कुछ कम किए जाने से, उनका यह शारीरिक या मानवीय स्वरूप उनके त्रिएक परमेश्वरीय स्वरूप से कुछकमथा। इसलिए उनके मानवीय स्वरूप की निंदा या निरादर का दोष, जिसे उन्हें सहना ही था, परमेश्वर पवित्र आत्मा के निरादर से कुछ कम और भिन्न होता। क्योंकि हमारे प्रभु को हमारे उद्धार का मार्ग प्रदान करने की अपनी सेवकाई के दौरान अपमान और तिरस्कार सहना निर्धारित किया गया था, इसलिए उनके (अर्थात उनके शारीरिक/मानव स्वरूप के) विरुद्ध कही गई, या कही जाने वाली निंदनीय बातों को क्षमा न हो सकने वाला पाप कहना उनके पृथ्वी पर आने के उद्देश्य को ही विफल कर देता, और संसार को छुटकारे के स्थान पर नाश में भेज देता। इसलिए परमेश्वर पुत्र की निंदा को क्षमा न हो सकने वाला पाप नहीं कहा जा सकता था।

परमेश्वर पिता के संदर्भ में, ध्यान करें कि शब्दपरमेश्वरऔरपितासभी संस्कृतियों और धर्मों में सामान्यतः प्रयोग किए जाने वाले शब्द हैं, जिन्हें नास्तिक और धर्म को न मानने वाले भी प्रयोग करते रहते हैं; बहुधा सौगंध खाने और अपशब्दों के साथ भी, जैसे कि, “अरे मेरे परमेश्वर/या ख़ुदा” “परमेश्वर नाश करे,” “परमेश्वर के श्रापित,” “परमेश्वर की सौगंधआदि। संसार के किसी भी व्यक्ति द्वारा इन अपमानजनक या निंदनीय शब्दों का प्रयोग करने का यह अर्थ नहीं है कि वह इन्हें मसीही विश्वास के पवित्र त्रिएक परमेश्वरत्व में से पिता परमेश्वर के लिए ही प्रयोग कर रहा है। इसी प्रकार से शब्दपिताभी संसार भर में अनेकों अभिप्रायों के साथ प्रयोग किया जाता है, और इसे भी बहुधा अपशब्दों और सौगंध लेने में भी प्रयोग किया जाता है। इसलिए शब्दपितातथा शब्दपरमेश्वरका, जिन्हें किसी भी मत अथवा धर्म में किसी भी आदरणीय अथवा आराध्य के लिए प्रयोग किया जा सकता है, किसी भी प्रकार से दुरुपयोग करना, यदि उसे यहोवा परमेश्वर के निरादर की परिभाषा से पृथक नहीं रखा जाता, तो स्वतः ही शब्दों का इस प्रकार से प्रयोग करने वाला व्यक्ति, तुरंत ही सदा काल के लिए दोषी ठहराया जाता, और उसके पास फिर कभी उद्धार पाने का कोई अवसर नहीं रहता। इसलिए ये दोनों शब्दपिताएवंपरमेश्वरके दुरुपयोग को भी कभी क्षमा न हो सकने वाले पापों में सम्मिलित नहीं किए जा सकता था।

अब पवित्र त्रिएक परमेश्वरत्व में केवल परमेश्वर पवित्र आत्मा ही शेष रहा। यहां पर एक बहुत ही महत्वपूर्ण ध्यान देने योग्य बात यह है कि परमेश्वर पवित्र आत्मा का विचार केवल मसीही और यहूदी धर्म की विचारधारा में ही पाया जाता है; संसार के अन्य किसी भी धर्म या विश्वास में यह विद्यमान नहीं है। क्योंकि पवित्र आत्मा के बारे में पुराने नियम के समय में भी लोगों को भली-भांति पता था (उदाहरण के लिए, उत्पत्ति 1:2; भजन 104:30; 139:7 आदि) – जो कि वह पवित्र शास्त्र है जिसे फरीसी, सदूकी, और शास्त्री पढ़ा करते थे, तथा लोगों को सिखाते भी थे, इसलिए वे फरीसी, सदूकी, और शास्त्री किसी भी प्रकार से परमेश्वर पवित्र आत्मा के विषय अनभिज्ञ होने का दावा नहीं कर सकते थे, और न ही पवित्र आत्मा के त्रिएक परमेश्वर का अभिन्न एवं समतुल्य भाग होने से अपने आप को अनजान होने को कह सकते थे। इसलिए, परमेश्वर पिता तथा परमेश्वर पुत्र के विषय में उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए, मूलतः, परमेश्वर पवित्र आत्मा के विरुद्ध कही गई निरादर की कोई बात ही वास्तविकता में एकमात्र सच्चे परमेश्वर की निंदा मानी जा सकती है।

पवित्र परमेश्वर के विरुद्ध बात करना वही पाप है जिसके कारण लूसिफर गिराया गया (यशायाह 14:12-14; यहेजकेल 28:12-15), और शैतान बन गया – सदा काल के लिए परमेश्वर और उससे संबंधित किसी भी बात का विरोधी। लूसिफर ने परमेश्वर की महिमा और महानता के विरुद्ध बलवा किया और बातें कीं। लूसिफर ने परमेश्वर को उसके समस्त महिमा, वैभव, महानता, अधिकार और सामर्थ्य में भली-भाँति जानने के बावजूद; परमेश्वर के विषय सारी जानकारी रखते हुए भी जानबूझकर किया गया उसका यह विद्रोह लूसिफर के लिए क्षमा न होने वाला पाप बन गया, और उसे स्वर्ग से निष्कासित कर दिया गया। वह शैतान बन गया, तथा उसे और उसके अनुयायियों को अनन्तकाल तक दण्ड भोगने के लिए ठहरा दिया गया (मत्ती 25:41, 46)

अगले लेख में हम देखेंगे कि लूसिफर का पाप क्यों क्षमा नहीं हो सकता था; और यह भी समझेंगे कि वचन के अनुसार निन्दा (blasphemy) शब्द का वास्तव में क्या अर्थ और अभिप्राय होता है। 

यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना और समझना अति-आवश्यक है कि आप परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित इन गलत शिक्षाओं में न पड़ जाएं; न खुद भरमाए जाएं, और न ही आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए। लोगों द्वारा कही जाने वाले ही नहीं, वरन वचन में लिखी हुई बातों पर भी ध्यान दें, और लोगों की बातों को वचन की बातों से मिला कर जाँचें और परखें। यदि आप इन गलत शिक्षाओं में पड़ चुके हैं, तो अभी वचन के अध्ययन और बात को जाँच-परख कर, सही शिक्षा को, उसी के पालन को अपना लें।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • गिनती 23-25         
  • मरकुस 7:14-37   

सोमवार, 28 फ़रवरी 2022

कलीसिया में अपरिपक्वता के दुष्प्रभाव (16)


भ्रामक शिक्षाओं के स्वरूप - पवित्र आत्मा के विषय गलत शिक्षाएं (7) - अन्य-भाषाएं - परमेश्वर से बातें करना नहीं है (2) 

हम पिछले लेखों से देखते आ रहे हैं कि बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों की एक पहचान यह भी है कि वे बहुत सरलता से भ्रामक शिक्षाओं द्वारा बहकाए तथा गलत बातों में भटकाए जाते हैं। इन भ्रामक शिक्षाओं को शैतान और उस के दूत झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं (2 कुरिन्थियों 11:13-15)। ये लोग, और उनकी शिक्षाएं, दोनों ही बहुत आकर्षक, रोचक, और ज्ञानवान, यहाँ तक कि भक्तिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण भी प्रतीत हो सकती हैं, किन्तु साथ ही उनमें अवश्य ही बाइबल की बातों के अतिरिक्त भी बातें डली हुई होती हैं। जैसा परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”, इन भ्रामक शिक्षाओं और गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन विषय, होते हैं - प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार। साथ ही इस पद में सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है, कि इन तीनों विषयों के बारे में जो यथार्थ और सत्य हैं, वे सब वचन में पहले से ही बता और लिखवा दिए गए हैं। इसलिए बाइबल से देखने, जाँचने, तथा वचन के आधार पर शिक्षाओं को परखने के द्वारा सही और गलत की पहचान करना कठिन नहीं है। 

पिछले लेखों में हमने इन गलत शिक्षा देने वाले लोगों के द्वारा, प्रभु यीशु से संबंधित सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं को देखने के बाद, परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित सामान्यतः बताई और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं की वास्तविकता को वचन की बातों से देखना आरंभ किया है। हम देख चुके हैं कि प्रत्येक सच्चे मसीही विश्वासी के नया जन्म या उद्धार पाते ही, तुरंत उसके उद्धार पाने के पल से ही परमेश्वर पवित्र आत्मा अपनी संपूर्णता में आकर उसके अंदर निवास करने लगता है, और उसी में बना रहता है, उसे कभी छोड़ कर नहीं जाता है; और इसी को पवित्र आत्मा से भरना या पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाना भी कहते हैं। वचन स्पष्ट है कि पवित्र आत्मा से भरना या उससे बपतिस्मा पाना कोई दूसरा या अतिरिक्त अनुभव नहीं है, वरन उद्धार के साथ ही सच्चे मसीही विश्वासी में पवित्र आत्मा का आकर निवास करना ही है। इन गलत शिक्षकों की एक और बहुत प्रचलित और बल पूर्वक कही जाने वाले बात हैअन्य-भाषाओंमें बोलना, और उन लोगों के द्वाराअन्य-भाषाओंको अलौकिक भाषाएं बताना, और परमेश्वर के वचन के दुरुपयोग के द्वारा इससे संबंधित कई और गलत शिक्षाओं को सिखाना। इसके बारे में भी हम देख चुके हैं कि यह भी एक ऐसी गलत शिक्षा है जिसका वचन से कोई समर्थन या आधार नहीं है। प्रेरितों 2 अध्याय में जो अन्य भाषाएं बोली गईं, वे पृथ्वी ही की भाषाएं और उनकी बोलियाँ थीं; कोई अलौकिक भाषा नहीं। हमने यह भी देखा था कि वचन में इस शिक्षा का भी कोई आधार या समर्थन नहीं है किअन्य-भाषाएंप्रार्थना की भाषाएं हैं। इस गलत शिक्षा के साथ जुड़ी हुई इन लोगों की एक और गलत शिक्षा है किअन्य-भाषाएंबोलना ही पवित्र आत्मा प्राप्त करने का प्रमाण है, जिसके भी झूठ होने और परमेश्वर के वचन के दुरुपयोग पर आधारित होने को हमने पिछले लेख में देखा है। पिछले लेख में हमने यह भी देखा था कि उन लोगों के सभी दावों के विपरीत, न तो प्रेरितों 2:3-11 का प्रभु के शिष्यों द्वारा अन्य-भाषाओं में बोलना कोईसुननेका आश्चर्यकर्म था, न ही अन्य भाषाएं प्रार्थना करने की गुप्त भाषाएँ हैं, और न ही ये किसी को भी यूं ही दे दी जाती हैं, जब तक कि व्यक्ति की उस स्थान पर सेवकाई न हो, जहाँ की भाषा बोलने की सामर्थ्य उसे प्रदान की गई है। एक और दावा जो ये पवित्र आत्मा और अन्य-भाषाएँ बोलने से संबंधित गलत शिक्षाएं देने वाले करते हैं, है कि व्यक्ति अन्य-भाषा बोलने के द्वारा सीधे परमेश्वर से बात करता है। इसके बारे में हम पिछले लेख में देख चुके हैं कि उनका यह दावा भी वचन की कसौटी पर बिलकुल गलत है, अस्वीकार्य है। आज हम इससे संबंधित कुछ अन्य बातों को देखेंगे।

यहाँ पर कुछ संबंधित और बहुत महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान दीजिए, जिनकी अनदेखी ये गलत शिक्षा देने वाले करते रहते हैं: 

क्या अन्य सभी लोग जो उनके अनुसार उनकी येअन्य-भाषाएँ नहीं बोलते हैं, क्या वे पिता परमेश्वर से बात नहीं करते हैं, और क्या पिता परमेश्वर उनकी नहीं सुनता है, उनकी प्रार्थनाओं के उत्तर नहीं देता है? और यदि बिना अन्य-भाषा बोले बिना भी परमेश्वर से बात-चीत की जा सकती है, परमेश्वर सामान्य भाषा में की गई बातों को भी सुनता है, उनका उत्तर देता है, तो फिर किसी को भी उनकी ये अन्य-भाषा में बोलने की क्या आवश्यकता है? उनकी ये अन्य-भाषा में बोलने के द्वारा वह और क्या अतिरिक्त या अद्भुत कर लेगा या प्राप्त कर लेगा? इस संदर्भ में उनके सभी दावों के झूठा और वचन के अतिरिक्त होने को तो हम देख ही चुके हैं।

वचन में, पुराने अथवा नए नियम में, ऐसा कुछ भी कहाँ लिखा है कि अन्य-भाषाओं में प्रार्थना करने वालों, या परमेश्वर से बातचीत करने वालों की ही बातें परमेश्वर द्वारा सुनी जाती हैं? या फिर, उनकी बातें परमेश्वर पहले या अवश्य ही सुनता है, जबकि अपनी सामान्य भाषा में प्रार्थना करने वालों की बातों की परमेश्वर अनदेखी करता है या विलंब से सुनता है? परमेश्वर और उसके वचन से संबंधित शिक्षाओं में इस प्रकार के अनुचित अभिप्राय मिला देने के द्वारा वे इन शिक्षाओं के शैतान की ओर से होने की पुष्टि करते हैं, क्योंकि शैतान आरंभ ही से परमेश्वर की बातों में मिलावट करता आया है, उन्हें बिगाड़ कर प्रस्तुत करता आया है। और इन गलत शिक्षाओं में बने रहने, इन्हें सिखाते रहने के द्वारा वे अपने लिए बहुत कठोर दण्ड निश्चित कर रहे हैं। 

पुराने नियम में लेवियों और याजकों का कार्य था लोगों की ओर से परमेश्वर के सामने भेंट-बलिदान चढ़ाना, और साथ ही इस्राएल की प्रजा के लिए परमेश्वर का दूत होने के नाते उन्हें लोगों को परमेश्वर का वचन भी सिखाना होता था (मलाकी 2:4-7)। लेकिन न व्यवस्था की पुस्तकों में, और न कहीं और यह लिखा गया है कि उन्हें भी अन्य-भाषाओं में यह सेवकाई करनी होती थी। यदि व्यवस्था के युग में बिना मुँह से विचित्र, निरर्थक ध्वनियाँ निकाले याजक परमेश्वर की राज्य के लिए परमेश्वर से बातें कर सकता था, तो फिर आज इस अनुग्रह के युग में जब प्रभु परमेश्वर हमारे साथ रहता है, हम में निवास करता है, हम सामान्य भाषा में उससे बात क्यों नहीं कर सकते हैं? ये सभी वचन की शिक्षाओं के विरुद्ध व्यर्थ के निराधार तर्क हैं, जिन के द्वारा ये लोग अपरिपक्व लोगों को बहका और भटका देते हैं। 

यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि 1 कुरिन्थियों 12:7 में लिखा है कि पवित्र आत्मा के द्वारा दिए जाने वाले आत्मिक वरदानसब के लाभ पहुँचानेके उद्देश्य से दिए जाते हैं। इस बात के अनुसार 1 कुरिन्थियों 14:4 में बताया गया है कि वे व्यर्थ की अन्य-भाषाएं बोलने वाले ऐसा करने के द्वारा केवल अपनी ही उन्नति करते, कलीसिया की नहीं। और यदि उनका अपनी प्रार्थनाओं या आशीष के लिए अन्य-भाषा में बोलने का यह दावा सही होता, तो फिर वचन की शिक्षाओं के विरुद्ध होता, वचन में विरोधाभास (contradiction) ले आता - जो वचन के पवित्र आत्मा की अगुवाई और प्रेरणा से लिखे जाने के कारण संभव नहीं है। इसलिए यह स्पष्ट है कि अन्य-भाषाओं में बोलना किसी के भी, कैसे भी व्यक्तिगत प्रयोग अथवा लाभ या उन्नति के लिए हो ही नहीं सकता है। अन्य-भाषा में बोलना तब ही सही और जायज़ होगा जब वह सभी लोगों के लाभ और कलीसिया की उन्नति के लिए हो; और यह तभी हो सकता है जब उस भाषा में कही जाने वाली बातें मनुष्यों द्वारा भी समझी और सीखी जा सकें, केवलपरमेश्वर से की गई बातेंन हों।

पवित्र आत्मा की अगुवाई में, पौलुस प्रेरित ने यहाँ यह भी लिखा है, “मैं चाहता हूं, कि तुम सब अन्य भाषाओं में बातें करो, परन्तु अधिकतर यह चाहता हूं कि भविष्यवाणी करो: क्योंकि यदि अन्य अन्य भाषा बोलने वाला कलीसिया की उन्नति के लिये अनुवाद न करे तो भविष्यवाणी करने वाला उस से बढ़कर है” (1 कुरिन्थियों 14:5)। गलत शिक्षाएं फैलाने वाले ये लोग इस पद के केवल आरंभिक वाक्यमैं चाहता हूं, कि तुम सब अन्य भाषाओं में बातें करो...को ही लोगों के सामने रखते हैं, और कहते हैं कि यह वचन ही की शिक्षा है कि सभी को अन्य-भाषाओं में बोलना चाहिए। किन्तु वे उससे आगे के वाक्य “... परन्तु अधिकतर यह चाहता हूं कि भविष्यवाणी करो: क्योंकि यदि अन्य अन्य भाषा बोलने वाला कलीसिया की उन्नति के लिये अनुवाद न करे तो भविष्यवाणी करने वाला उस से बढ़कर हैकी पूर्णतः अनदेखी कर देते हैं, क्योंकि यहाँ स्पष्ट लिखा है कि अन्य-भाषाओं में बोलने से बेहतर भविष्यवाणी करना है। हम पहले के लेखों में देख चुके हैं किभविष्यवाणी करनेका अर्थ भविष्य की बातें बताना ही नहीं है, वरन लोगों के समक्ष परमेश्वर के वचन की शिक्षाएं देना है। अब यह प्रकट है कि पवित्र आत्मा की अगुवाई में पौलुस के इच्छा यही है कि निरर्थक अन्य-भाषाएँ बोलने के स्थान पर प्रभु के लोगों में वचन को सीखने और उसे औरों को सिखाने की अभिलाषा होनी चाहिए। दूसरों को वचन की सही शिक्षा देना अन्य-भाषा बोलने से अधिक उत्तम और परमेश्वर को अधिक पसंद कार्य है। 

       यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना और समझना अति-आवश्यक है कि आप परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित इन गलत शिक्षाओं में न पड़ जाएं; न खुद भरमाए जाएं, और न ही आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए। लोगों द्वारा कही जाने वाले ही नहीं, वरन वचन में लिखी हुई बातों पर भी ध्यान दें, और लोगों की बातों को वचन की बातों से मिला कर जाँचें और परखें। यदि आप इन गलत शिक्षाओं में पड़ चुके हैं, तो अभी वचन के अध्ययन और बात को जाँच-परख कर, सही शिक्षा को, उसी के पालन को अपना लें।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी। 

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • गिनती 17-22         
  • मरकुस 6:30-56; 7:1-13