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बुधवार, 9 मार्च 2022

कलीसिया में अपरिपक्वता के दुष्प्रभाव (25)


भ्रामक शिक्षाओं के स्वरूप - सुसमाचार संबंधित गलत शिक्षाएं (6)

सही सुसमाचार के 7 गुण 

हम पिछले लेखों से देखते आ रहे हैं कि बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों की एक पहचान यह भी है कि वे बहुत सरलता से भ्रामक शिक्षाओं द्वारा बहकाए तथा गलत बातों में भटकाए जाते हैं (इफिसियों 4:14)। इन भ्रामक शिक्षाओं को शैतान और उस के दूत झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं (2 कुरिन्थियों 11:13-15)। ये लोग, और उनकी शिक्षाएं, दोनों ही बहुत आकर्षक, रोचक, और ज्ञानवान, यहाँ तक कि भक्तिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण भी प्रतीत हो सकती हैं, किन्तु साथ ही उनमें अवश्य ही बाइबल की बातों के अतिरिक्त भी बातें डली हुई होती हैं। जैसा परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”, इन भ्रामक शिक्षाओं और गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन विषय, होते हैं - प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार। साथ ही इस पद में सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है, कि इन तीनों विषयों के बारे में जो यथार्थ और सत्य हैं, वे सब वचन में पहले से ही बता और लिखवा दिए गए हैं। इसलिए बाइबल से देखने, जाँचने, तथा वचन के आधार पर शिक्षाओं को परखने के द्वारा सही और गलत की पहचान करना कठिन नहीं है। 

पिछले लेखों में हमने इन गलत शिक्षा देने वाले लोगों के द्वारा, पहले तो प्रभु यीशु से संबंधित सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं को देखा; फिर उसके बाद, परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित सामान्यतः बताई और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं की वास्तविकता को वचन की बातों से देखा; और अब पिछले कुछ लेखों से हमने सुसमाचार से संबंधित गलत शिक्षाओं के बारे में देखना आरंभ किया है, जिससे कि हम सही सुसमाचार क्या है देख और समझ सकें और गलत या भ्रष्ट को पहचान सकें, ताकि स्वयं भी गलत से बच कर रह सकें तथा औरों को भी बचा सकें। इस संदर्भ में पिछले लेखों में हमने सुसमाचार के विषय भ्रम और गलत शिक्षाएं को पहचानने के आधार को देखा था, फिर हमने सच्चे और उद्धार देने वाले सुसमाचार के शैतान द्वारा बिगाड़े जाने, भ्रष्ट किए जाने, और विभिन्न रीतियों से अप्रभावी किए जाने वाली आम युक्तियों के बारे में देखा। आज हम वास्तविक सुसमाचार के गुणों को देखेंगे, जिससे असली और नकली के मध्य पहचान कर सकें।

कलीसिया के आरंभ से ही शैतान ने गलत शिक्षाओं और झूठे प्रचारकों के द्वारा सुसमाचार को बिगाड़ना, उसे अप्रभावी बनाने वाली बातों के साथ मिलाकर लोगों में फैलाना आरंभ कर दिया था। उसका उद्देश्य यही था कि लोगों को भ्रामक बातों में फँसा कर, उन्हें धर्मी, वचन का पालन करने वाले, और प्रभु के खोजी होने के, आदि भ्रम में फँसाए रखे, और सच्चे सुसमाचार से दूर रखे। ऐसा होने से वे उद्धार से वंचित रह जाएंगे, यद्यपि उन्हें यही लगता रहेगा कि वे भी उद्धार पाए हुए हैं, स्वर्ग में जाने के योग्य हैं। किन्तु साथ ही परमेश्वर पवित्र आत्मा ने अपनी प्रेरणा से प्रभु के शिष्यों द्वारा उन बातों को भी लिखवा दिया तथा उपलब्ध करवा दिया, जो शैतान के इस झूठ को प्रकट करती हैं, और असली सुसमाचार की पहचान करवाती हैं, जिससे जो भी वचन को सच्चे समर्पित मन से, पवित्र आत्मा से सीखने का इच्छुक होगा, वह इस असली-नकली की पहचान को जान लेगा। पवित्र आत्मा की प्रेरणा से पौलुस प्रेरित ने गलातीयों की मण्डली को लिखी पत्री का आरंभ करते हुए कहा:मुझे आश्चर्य होता है, कि जिसने तुम्हें मसीह के अनुग्रह से बुलाया उस से तुम इतनी जल्दी फिर कर और ही प्रकार के सुसमाचार की ओर झुकने लगे। परन्तु वह दूसरा सुसमाचार है ही नहीं: पर बात यह है, कि कितने ऐसे हैं, जो तुम्हें घबरा देते, और मसीह के सुसमाचार को बिगाड़ना चाहते हैं” (गलातियों 1:6-7)। गलातीयों की पत्री, इसी विषय, अर्थात सही सुसमाचार, गलत सुसमाचार, सुसमाचार से भटकना आदि बातों पर ही लिखी गई है, और इस पत्री के 1 और 2 अध्याय, वास्तविक सुसमाचार की पहचान करवाते हैं, प्रभु यीशु के असली सुसमाचार के गुण या स्वभाव, और प्रभावों का यहाँ पर वर्णन किया गया है।

हर नकली उत्पाद को बनाने वाले उस नकली को उसके असली मूल उत्पाद के समान ही दिखने वाला बनाते हैं, साथ ही उस नकली के असली के समान ही कार्य करने और प्रभावी होने के बात करते हैं। अर्थात उस के गुण यास्वभाव”, और उसकेप्रभावहमें असली और नकली की पहचान करवाते हैं। यही असली और नकली सुसमाचार के लिए भी सही है। आज हम असली सुसमाचार के गुणों, अर्थात उसके स्वभाव के बारे में देखेंगे। 

असली सुसमाचार के 7 गुण या स्वभाव:

  1. पौलुस इस पत्री का आरंभ अपनी सेवकाई और बुलाहट से आरंभ करता है। वह गलातीयों 1:1 में अपने पाठकों को यह स्पष्ट कर देता है कि उसकी नियुक्ति परमेश्वर के द्वारा है, न कि मनुष्यों की ओर से। क्योंकि यह उसके मसीही जीवन का दृढ़ सत्य था, इसीलिए उसकी वफादारी भी केवल और केवल प्रभु परमेश्वर के ही प्रति थी, अन्य किसी के प्रति नहीं। सच्चे सुसमाचार के प्रचारक का पहला गुण है कि वह न केवल परमेश्वर की ओर से अपनी सेवकाई के लिए नियुक्त होने का दावा भी करेगा, वरन उस दावे को जी कर के भी दिखाएगा। सही सुसमाचार का प्रचार करने वाले प्रचारक के व्यवहारिक जीवन में परमेश्वर के प्रति वफादारी और जवाबदेही, तथा सांसारिकता की बातों, संसार से प्रशंसा, बड़ाई, यश आदि से अलगाव भी दिखाई देगा।
  2. गलातियों 1:2 से प्रकट है कि सही सुसमाचार के प्रचारकों में बड़े-छोटे की भावना नहीं होगी; वह अपने सभी सहकर्मियों को, प्रभु की सेवकाई में लगे लोगों को समान आदर के साथ रखता है, सभी के साथ मेल-मिलाप रखते हुए, उन्हें भी अपनी सेवकाई का महत्वपूर्ण भाग बताता है, केवल अपने आप को ही बड़ा या मुख्य दिखाने के प्रयास नहीं करता है। 
  3. गलातियों 1:3 में पौलुस सही सुसमाचार का तीसरा गुण या स्वभाव लिखता है - वास्तविक सुसमाचार प्रभु यीशु मसीह की शांति और अनुग्रह के साथ आता है। अर्थात उस संदेश और उसके पालन से अनबन, विभाजन, फूट, बैर, टकराव, आदि नहीं होते; वरन वह हमेशा प्रेम, मेल-मिलाप, क्षमा, एकता, दीनता, नम्रता आदि मसीही गुणों के साथ आता है, जबकि नकली इसके विपरीत बातों के साथ आता है।
  4. गलातीयों 1:4 में वास्तविक सुसमाचार का चौथा स्वभाव दिया गया है, वह हमारे पापों से छुटकारे के लिए प्रभु यीशु के द्वारा दिए गए बलिदान का प्रचार करता है न कि मनुष्यों के अपने किसी कार्य या कर्मों के अनुसार भला बनने और उद्धार पाने का। साथ ही वह सांसारिक बातों, धन-संपत्ति, भौतिक समृद्धि, शारीरिक चंगाइयों, आदि का नहीं, और मसीह यीशु में विश्वास के द्वारा पापों की क्षमा पर बल देता है, उसे ही मुख्य विषय बनाए रखता है। साथ ही वह प्रभु यीशु मसीह के जीवन से परमेश्वर के प्रति मृत्यु सहने तक आज्ञाकारी होने के लिए भी सिखाता है (इब्रानियों 12:1-4; प्रकाशितवाक्य 2:10) 
  5. गलातियों 1:5 में सही सुसमाचार के प्रचार और प्रचारक का पाँचवां गुण दिया गया है, उसके द्वारा सदा ही प्रभु यीशु मसीह की स्तुति और बड़ाई, उसी की प्रशंसा, महिमा और गुणगान का प्रचार होगा, किसी मनुष्य का नहीं।
  6. गलातियों 1:6 सचेत करता है कि कोई भी सच्चा मसीही विश्वासी अपने आप को आवश्यकता से अधिक सिद्ध या स्थिर न समझ ले, जैसा कि 1 कुरिन्थियों 10:12 में भी लिखा गया है। यहाँ ध्यान कीजिए, कोई अविश्वासी नहीं अपितु, गलातिया की मसीही मण्डली के लोग, प्रभु के विश्वासी जन हीऔर ही सुसमाचारमें अर्थात गलत सुसमाचार में बहकाए और भरमाए गए थे। सही सुसमाचार का छठवाँ स्वभाव है कि वह सदा ही मनुष्य को उसकी दुर्बलता के बारे में, और प्रभु के सच्चे विश्वासी जन को सदा हर बात के लिए परमेश्वर पर निर्भर रहने, परमेश्वर के वचन से जाँचते रहने, और उसी के अनुसार चलने के लिए कहेगा। वह कभी किसी को भी अपने आप पर, अपनी बुद्धि और युक्ति पर भरोसा रखने और अपनी समझ या संसार की सलाह, संसार को सही लगने वाली बात के अनुसार करने को नहीं कहेगा।
  7. सही सुसमाचार का सातवाँ गुण है कि उससे लोगों में डर या घबराहट नहीं आती; ऐसा करना सुसमाचार को बिगाड़ने वालों का काम है। गलत सुसमाचार वाले लोग विभिन्न प्रकार के डर-भय दिखा कर लोगों को अपनी बातों का पालन करने के लिए बाध्य करते हैं। जब कि असली सुसमाचार लोगों को परमेश्वर की संतान होने के लिए प्रेरित करता है (यूहन्ना 1:12-13), पापों के दंड उठाने से मुक्ति पाने (रोमियों 8:1-2), और आशीषित अनन्त जीवन की बात करता है (मत्ती 19:19; 1 कुरिन्थियों 2:9), तो फिर उससे घबराहट या भय क्यों आएगा? नाहक ही भय और घबराहट उत्पन्न करना, लोगों को बाध्य करना, शिक्षाओं की जाँच-पड़ताल करने से रोकना शैतान और उसकी बातों का गुण है, प्रभु और उसके सुसमाचार का नहीं। 

सच्चे सुसमाचार के 7 गुणों या स्वभाव को देखने के बात, हम उसके प्रभाव को अगले लेख में देखेंगे। 

यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना और समझना अति-आवश्यक है कि आप प्रभु परमेश्वर के सुसमाचार से संबंधित किसी गलत शिक्षाओं धारणाओं में न पड़े हों। सच्चे सुसमाचार के स्वभाव के अनुसार अपने आप को जाँचने के द्वारा यह सुनिश्चित कर लीजिए कि आपने सच्चे सुसमाचार पर सच्चा विश्वास किया है, और आप सच्चे पश्चाताप और समर्पण तथा सच्चे मन से प्रभु यीशु से पापों की क्षमा के द्वारा परमेश्वर के जन बने हैं। न खुद भरमाए जाएं, और न ही आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए। लोगों द्वारा कही जाने वाली ही नहीं, वरन वचन में लिखी हुई बातों पर ध्यान दें, और लोगों की बातों को वचन की बातों से मिला कर जाँचें और परखें, यदि सही हों, तब ही उन्हें मानें, अन्यथा अस्वीकार कर दें। 

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • व्यवस्थाविवरण 8-10          
  • मरकुस 11:20-33 

मंगलवार, 8 मार्च 2022

कलीसिया में अपरिपक्वता के दुष्प्रभाव (24)


भ्रामक शिक्षाओं के स्वरूप - सुसमाचार के विषय गलत शिक्षाएं (5 ) - सुसमाचार को अप्रभावी - कैसे? (2)

हम पिछले लेखों से देखते आ रहे हैं कि बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों की एक पहचान यह भी है कि वे बहुत सरलता से भ्रामक शिक्षाओं द्वारा बहकाए तथा गलत बातों में भटकाए जाते हैं (इफिसियों 4:14)। इन भ्रामक शिक्षाओं को शैतान और उस के दूत झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं (2 कुरिन्थियों 11:13-15)। ये लोग, और उनकी शिक्षाएं, दोनों ही बहुत आकर्षक, रोचक, और ज्ञानवान, यहाँ तक कि भक्तिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण भी प्रतीत हो सकती हैं, किन्तु साथ ही उनमें अवश्य ही बाइबल की बातों के अतिरिक्त भी बातें डली हुई होती हैं। जैसा परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”, इन भ्रामक शिक्षाओं और गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन विषय, होते हैं - प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार। साथ ही इस पद में सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है, कि इन तीनों विषयों के बारे में जो यथार्थ और सत्य हैं, वे सब वचन में पहले से ही बता और लिखवा दिए गए हैं। इसलिए बाइबल से देखने, जाँचने, तथा वचन के आधार पर शिक्षाओं को परखने के द्वारा सही और गलत की पहचान करना कठिन नहीं है। 

पिछले लेखों में हमने इन गलत शिक्षा देने वाले लोगों के द्वारा, पहले तो प्रभु यीशु से संबंधित सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं को देखा; फिर उसके बाद, परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित सामान्यतः बताई और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं की वास्तविकता को वचन की बातों से देखा; और अब पिछले कुछ लेखों से हमने सुसमाचार से संबंधित गलत शिक्षाओं के बारे में देखना आरंभ किया है, जिससे कि हम सही सुसमाचार क्या है देख और समझ सकें और गलत या भ्रष्ट को पहचान सकें, ताकि स्वयं भी गलत से बच कर रह सकें तथा औरों को भी बचा सकें। इस संदर्भ में पिछले लेख में हमने सुसमाचार के विषय भ्रम और गलत शिक्षाएं को पहचानने के आधार को देखा था। आज हम सच्चे और उद्धार देने वाले सुसमाचार के शैतान द्वारा बिगाड़े जाने, भ्रष्ट किए जाने, और विभिन्न रीतियों से अप्रभावी किए जाने वाली आम युक्तियों के बारे में देखेंगे।  

सुसमाचार को अप्रभावी करने के लिए शैतान की गलत शिक्षाएं और बातें

हमने पिछले लेख में देखा था कि सुसमाचार का सार 1 कुरिन्थियों 15:1-4 में दिया गया है। तात्पर्य यह, कि जिस भी सुसमाचार प्रचार में इन पदों की बातें नहीं हैं, या इन पदों की बातों के अतिरिक्त भी बातें डाली गई हैं, अर्थात, इन पदों में से कुछ घटाया या बढ़ाया गया है, वहसुसमाचारभ्रष्ट है, बिगाड़ा हुआ है, अस्वीकार्य है, क्योंकि वह अप्रभावी है! ये पद और उनके तथ्य हमारे लिए सुसमाचार संबंधित हर शिक्षा को जाँचने और परखने की कसौटी प्रदान करते हैं।

इन बातों को ध्यान में रखते हुए, हम संक्षेप में देखेंगे कि शैतान किस प्रकार से अपनी युक्तियों में हमें फंसा कर, परमेश्वर की बात से हमारा ध्यान अपनी बात की ओर लाकर और उसे मनवाकर, हमारे लिए सुसमाचार को अप्रभावी कर देता है:

  • सुसमाचार केवल गैर-मसीहियों के लिए, जो ईसाई नहीं हैं, उन्हीं के लिए है: वास्तविकता में सुसमाचार संसार के प्रत्येक व्यक्ति के लिए है, चाहे उसका धर्म, धारणा, मान्यता कुछ भी हो; ईसाइयों या मसीहियों के लिए भी (प्रेरितों 17:30-31)। सभी को उसके लिए व्यक्तिगत रीति से निर्णय लेना है। 
  • ईसाई धर्म और उससे संबंधित रीतियों के निर्वाह से सुसमाचार का भी पालन हो जाता है: वास्तविकता में किसी भी प्रकार की कोई भी औपचारिकता के निर्वाह के द्वारा सुसमाचार का पालन नहीं होता है। सुसमाचार का व्यक्ति के जीवन में कार्यकारी होना उसके सच्चे समर्पित मन से अपने पापों के लिए पश्चाताप और प्रभु यीशु से पापों के क्षमा माँगकर उसे समर्पित हो जाने से आरंभ होता है।
  • प्रभु यीशु मसीह से चंगाई प्राप्त करना भी सुसमाचार पर विश्वास करने और प्रभु का जन हो जाने का प्रमाण है: प्रभु यीशु ने जिसने चाही, उन सभी चंगाई दी, किसी से कोई भेदभाव नहीं किया (प्रेरितों 10:38)। किन्तु जिन्हें प्रभु ने चंगा किया था, पिलातुस एक सामने वे ही लोग बहुत ज़ोर देकर उसे क्रूस पर चढ़ाए जाने की माँग करने लगे, और उसे क्रूस पर मरवा दिया। वे अपने स्वार्थ के लिए यीशु के जुड़े साथ हुए थे; सच्चे मन से प्रभु को समर्पण नहीं किया था; प्रभु के जन नहीं बने थे। 
  • प्रभु यीशु मसीह और उसके वचन के बारे में ज्ञान में बढ़ना, सुसमाचार का पालन करने के समान है: बाइबल और प्रभु परमेश्वर के बारे में सांसारिक ज्ञान की बहुत सी बातें और शिक्षाएं हैं उपलब्ध और प्रचलित, और यह ज्ञान लोगों को विश्वास में नहीं लाता है, परमेश्वर और उसके वचन पर संदेह उत्पन्न करके उन से दूर करता है। इसी प्रकार से बाइबल कॉलेज और सेमनरियों से शिक्षा पाने वाला हर जन प्रभु का सच्चा समर्पित विश्वासी नहीं होता है। बहुत से लोगों के लिए यह शिक्षा-दीक्षा केवल नौकरी करने और सांसारिक कमाई का एक साधन है। न वे स्वयं प्रभु को समर्पित होते हैं, न औरों को यह सिखाते हैं; वरन धर्म-कर्म-अनुष्ठानों की औपचारिकता के निर्वाह के द्वारा ही काम चलाते रहने की शिक्षाओं में उलझे और उलझाए रखते हैं। वे स्वयं भी नरक के भागी हैं, और जाने कितनों को नरक का भागी बना दे रहे हैं। 
  • चंगाइयों और आश्चर्यकर्मों को करना प्रभु की सामर्थ्य का और प्रभु के सुसमाचार के पालन करने का प्रमाण है: इस धारणा को मानने वालों को मत्ती 7:21-23 पर बहुत गंभीरता से ध्यान और मनन करना चाहिए। मत्ती में उल्लेखित उन लोगों ने प्रभु यीशु के नाम से बहुत कुछ किया, किन्तु प्रभु यीशु ने अंत में उन्हेंकुकर्म करने वालेकह दिया, और यह भी कह दिया कि प्रभु ने उन्हें कभी नहीं जाना था। यहूदा इस्करियोती भी अन्य शिष्यों के साथ प्रचार और चंगाई की सेवकाइयों में गया था, इन अभियानों में सम्मिलित होकर कार्य किया था, और किसी को भी उस पर कभी संदेह नहीं हुआ। किन्तु उसमें इस सामर्थ्य के होने और उसके द्वारा इसे उपयोग करने के बावजूद, न तो उसका जीवन बदला, और न ही वह वास्तव में कभी प्रभु का जन बना; अन्ततः उसे धोखा देकर पकड़वा दिया, मरवा दिया। ये बातें सुसमाचार को मानने का प्रमाण नहीं हैं, क्योंकि शैतान भी ऐसी ही बातों के द्वारा लोगों को भरमाता है, तथा प्रभु भी इन बातों में रुचि और विश्वास रखने वालों को उन आत्माओं के वक्ष में कर देता है (2 थिस्सलुनीकियों 2:9-11) 
  • सुसमाचार प्रचार में मनुष्यों के ज्ञान और समझ को मिलाना भी सुसमाचार को व्यर्थ और अप्रभावी कर देता है: पिछले लेख में कही गई निर्गमन 20:24-25 की बात को ध्यान कीजिए - जहाँ मनुष्य परमेश्वर की बात को सुधारने और सँवारने का प्रयास करते हैं, उसे अशुद्ध और अनुपयोगी कर देते हैं। पौलुस ने अपनी सेवकाई के विषय लिखा, “क्योंकि मसीह ने मुझे बपतिस्मा देने को नहीं, वरन सुसमाचार सुनाने को भेजा है, और यह भी शब्दों के ज्ञान के अनुसार नहीं, ऐसा न हो कि मसीह का क्रूस व्यर्थ ठहरे” (1 कुरिन्थियों 1:17)। सुसमाचार को उसकी सादगी, स्पष्टता, और शुद्धता में, जैसा वह है, वैसा ही दिया जाना है; अन्यथा मनुष्य की किसी भी बात की मिलावट के द्वारा वह अशुद्ध और अप्रभावी, परमेश्वर के उद्देश्यों के लिए अनुपयोगी हो जाता है। 

·        सुसमाचार में भले कार्यों का योगदान सिखाना भी उसे भ्रष्ट और अप्रभावी करना है। वचन में यह स्पष्ट लिखा और सिखाया गया है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रकार के भले कार्यों के द्वारा या कैसे भी कर्मों से उद्धार नहीं पा सकता है; यह केवल और केवल विश्वास द्वारा ही हो सकता है, क्योंकि उद्धार परमेश्वर से कमाया नहीं जा सकता है, उसे केवल दान के रूप में परमेश्वर से स्वीकार किया जा सकता है:जब हम अपराधों के कारण मरे हुए थे, तो हमें मसीह के साथ जिलाया; (अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है।); क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर का दान है” (इफिसियों 2:5, 8)। मनुष्य के सभी भले कार्य परमेश्वर की दृष्टि में मैले चिथड़ों के समान हैं, “हम तो सब के सब अशुद्ध मनुष्य के से हैं, और हमारे धर्म के काम सब के सब मैले चिथड़ों के समान हैं। हम सब के सब पत्ते के समान मुर्झा जाते हैं, और हमारे अधर्म के कामों ने हमें वायु के समान उड़ा दिया है” (यशायाह 64:6)); वे किसी भी रीति से परमेश्वर के शुद्ध और पवित्र कार्य को संवार नहीं सकते हैं; बिगाड़ अवश्य सकते हैं, और बिगाड़ते भी हैं।  

·        सुसमाचार का उद्देश्य भली मनसा और भले कार्य करना समझाना है: यह शिक्षा देना मनुष्यों को भरमाना है, क्योंकि संसार भर में ऐसे अनेकों लोग हैं और हुए हैं जो मसीही विश्वास में नहीं हैं और न ही सुसमाचार पर विश्वास करते हैं; किन्तु उनके जीवन नैतिकता के भले कार्यों तथा औरों की भलाई करने से भरे हुए हैं, और इसके लिए वे लोगों में बहुत आदरणीय हैं, सुविख्यात हैं। अर्थात, भले कार्य और भलाई करना सुसमाचार से नहीं है; व्यक्ति का विवेक और मानसिकता भी उसे इनके लिए प्रेरित और कार्यकारी कर सकती है, करती है। क्योंकि न्याय के दिन प्रभु यीशु मसीह के द्वारा, सुसमाचार के आधार पर ही लोगों का न्याय होगा, “जिस दिन परमेश्वर मेरे सुसमाचार के अनुसार यीशु मसीह के द्वारा मनुष्यों की गुप्त बातों का न्याय करेगा” (रोमियों 2:16), इसलिए सुसमाचार का उद्देश्य लोगों को भले कामों के लिए प्रेरित करना नहीं, उन्हें उद्धार पाने के लिए प्रेरित करना है, प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने के लिए प्रोत्साहित करना है।  

यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना और समझना अति-आवश्यक है कि आप प्रभु परमेश्वर के सुसमाचार से संबंधित किसी गलत शिक्षाओं धारणाओं में न पड़े हों। यह सुनिश्चित कर लीजिए कि आपने सच्चे सुसमाचार पर सच्चा विश्वास किया है, आप सच्चे पश्चाताप और समर्पण तथा सच्चे मन से प्रभु यीशु से पापों की क्षमा के द्वारा परमेश्वर के जन बने हैं। न खुद भरमाए जाएं, और न ही आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए। लोगों द्वारा कही जाने वाली ही नहीं, वरन वचन में लिखी हुई बातों पर ध्यान दें, और लोगों की बातों को वचन की बातों से मिला कर जाँचें और परखें, यदि सही हों, तब ही उन्हें मानें, अन्यथा अस्वीकार कर दें। 

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • व्यवस्थाविवरण 5-7          
  • मरकुस 11:1-19

सोमवार, 7 मार्च 2022

कलीसिया में अपरिपक्वता के दुष्प्रभाव (23)


भ्रामक शिक्षाओं के स्वरूप - सुसमाचार के विषय गलत शिक्षाएं (4) - सुसमाचार को अप्रभावी - कैसे? (1)

हम पिछले लेखों से देखते आ रहे हैं कि बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों की एक पहचान यह भी है कि वे बहुत सरलता से भ्रामक शिक्षाओं द्वारा बहकाए तथा गलत बातों में भटकाए जाते हैं (इफिसियों 4:14)। इन भ्रामक शिक्षाओं को शैतान और उस के दूत झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं (2 कुरिन्थियों 11:13-15)। ये लोग, और उनकी शिक्षाएं, दोनों ही बहुत आकर्षक, रोचक, और ज्ञानवान, यहाँ तक कि भक्तिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण भी प्रतीत हो सकती हैं, किन्तु साथ ही उनमें अवश्य ही बाइबल की बातों के अतिरिक्त भी बातें डली हुई होती हैं। जैसा परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”, इन भ्रामक शिक्षाओं और गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन विषय, होते हैं - प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार। साथ ही इस पद में सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है, कि इन तीनों विषयों के बारे में जो यथार्थ और सत्य हैं, वे सब वचन में पहले से ही बता और लिखवा दिए गए हैं। इसलिए बाइबल से देखने, जाँचने, तथा वचन के आधार पर शिक्षाओं को परखने के द्वारा सही और गलत की पहचान करना कठिन नहीं है। 

पिछले लेखों में हमने इन गलत शिक्षा देने वाले लोगों के द्वारा, पहले तो प्रभु यीशु से संबंधित सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं को देखा; फिर उसके बाद, परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित सामान्यतः बताई और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं की वास्तविकता को वचन की बातों से देखा; और अब पिछले कुछ लेखों से हमने सुसमाचार से संबंधित गलत शिक्षाओं के बारे में देखना आरंभ किया है, जिससे कि हम सही सुसमाचार क्या है देख और समझ सकें और गलत या भ्रष्ट को पहचान सकें, ताकि स्वयं भी गलत से बच कर रह सकें तथा औरों को भी बचा सकें। आज हम सच्चे और उद्धार देने वाले सुसमाचार के शैतान द्वारा बिगाड़े जाने, भ्रष्ट किए जाने, और विभिन्न रीतियों से अप्रभावी किए जाने की युक्तियों के बारे में देखेंगे।  

शैतान की गलत शिक्षाओं और बातों को पहचान पाने का आधार    

हमने पिछले लेख में देखा था कि सुसमाचार का सार 1 कुरिन्थियों 15:1-4 में दिया गया है। तात्पर्य यह, कि जिस भी सुसमाचार प्रचार में इन पदों की बातें नहीं हैं, या इन पदों की बातों के अतिरिक्त भी बातें डाली गई हैं, अर्थात, इन पदों में से कुछ घटाया या बढ़ाया गया है, वहसुसमाचारभ्रष्ट है, बिगाड़ा हुआ है, अस्वीकार्य है, क्योंकि वह अप्रभावी है! ये पद और उनके तथ्य हमारे लिए सुसमाचार संबंधित हर शिक्षा को जाँचने और परखने की कसौटी प्रदान करते हैं। 

शैतान की सुसमाचार को भ्रष्ट और अप्रभावी करने की इन युक्तियों को देखने और समझने से पहले हमें परमेश्वर, उसके वचन, और उसकी बातों से संबंधित एक बहुत महत्वपूर्ण बात को ध्यान में लाना और हमेशा स्मरण रखना होगा।  यह बात है, परमेश्वर, उसका चरित्र और उसके गुण, उसका वचन, उसकी शिक्षाएं, सभी पवित्र, पूर्णतः शुद्ध, और हर रीति से संपूर्ण और सिद्ध हैं। उनमें न तो कुछ घटाया जा सकता है, न बढ़ाया जा सकता है, और न ही सुधारा जा सकता है; न ही उन्हें किसी भी रीति से संवार कर और बेहतर किया जा सकता है। ऐसा कुछ भी करने का प्रयास करना यह दिखाना है कि परमेश्वर द्वारा दी गई बात में कुछ अपूर्णता, कुछ कमी, कुछ असिद्धता है, जिसे मनुष्य अपनी बुद्धि और योजनाओं तथा कार्यों से और बेहतर कर सकता है, उससे भी बेहतर जो परमेश्वर ने कर के दिया है। स्मरण कीजिए, अदन की वाटिका में हुए पहले पाप का आधार यही विचार था। शैतान ने सर्प के रूप में, हव्वा को इसी बात से बहकाया और अनाज्ञाकारिता के पाप के लिए उकसाया कि “मेरे कहे तथा अपने मन की अभिलाषा के अनुसार कर ले, और जैसा परमेश्वर ने बनाया और दिया है तू उससे भी बेहतर हो जाएगी।” यदि हव्वा, परमेश्वर द्वारा कहे और दिए गए से और बेहतर करने के लालच में न पड़ती, तो अनाज्ञाकारिता का पाप भी नहीं करती। 

इसी संदर्भ में ध्यान करें कि मूसा को अपनी दस आज्ञाएँ देने के पश्चात, परमेश्वर ने अपनी उपासना और आराधना से संबंधित एक और आज्ञा भी दी, “मेरे लिये मिट्टी की एक वेदी बनाना, और अपनी भेड़-बकरियों और गाय-बैलों के होमबलि और मेलबलि को उस पर चढ़ाना; जहां जहां मैं अपने नाम का स्मरण कराऊं वहां वहां मैं आकर तुम्हें आशीष दूंगा। और यदि तुम मेरे लिये पत्थरों की वेदी बनाओ, तो तराशे हुए पत्थरों से न बनाना; क्योंकि जहां तुम ने उस पर अपना हथियार लगाया वहां तू उसे अशुद्ध कर देगा” (निर्गमन 20:24-25)। प्रमुख किए गए अंतिम वाक्य को स्मरण रखें - जैसे ही हम परमेश्वर की दी गई बातों में अपनी युक्तियाँ और कार्य लगाकर उसे और अधिक बेहतर या सुंदर बनाने का प्रयास करते हैं, हम उसे अशुद्ध कर देते हैं। फिर वे देखने में चाहे कितनी भी सुंदर और आकर्षक हों, लोगों को चाहे कितनी भी अच्छी प्रतीत हों और लोगों द्वारा उन की चाहे जितनी भी प्रशंसा की जाए, किन्तु परमेश्वर की वे बातें परमेश्वर के लिए उपयोगिता और उसके परमेश्वर को ग्रहण होने में वह व्यर्थ हो जाती हैं।

हम इससे पहले के विषयों के लेखों में देख चुके हैं कि शैतान ने प्रभु यीशु मसीह, परमेश्वर पवित्र आत्मा, और पवित्र आत्मा के कार्यों तथा वरदानों के बारे में बहुत सी गलत शिक्षाएं लोगों में फैला रखी हैं, उन्हीं में लोगों को भरमाता भटकाता रहता है। उन गलत शिक्षाओं में बहकाए जाने के कारण लोग अपने पापी होने को पहचानने, पापों से पश्चाताप के लिए कायल होने से बाधित रहते हैं और गलत बातों के निर्वाह में लगे रहते हैं। प्रेरितों 2 अध्याय इसका बहुत उत्तम उदाहरण है। पिन्तेकुस्त के दिन जब पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से प्रभु के शिष्य भर गए, और फिर जब पतरस ने प्रचार किया, वह उस समय वहाँ एकत्रितभक्त यहूदियों” (प्रेरितों 2:5) के मध्य किया गया था; अर्थात परमेश्वर की चुनी हुई प्रजा के भक्त लोगों के मध्य जो व्यवस्था के अनुसार परमेश्वर की उपासना करने के लिए पृथ्वी भर के अनेकों स्थानों से आए हुए थे। किन्तु पवित्र आत्मा की अगुवाई में पतरस द्वारा उन्हें भी किए गए प्रचार से उनके हृदय छि गए, उन्हें भी अपनी पापी दशा का बोध हुआ, और पतरस ने उन्हें सुसमाचार, पश्चाताप करने और प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने का ही संदेश दिया (प्रेरितों 2:37-38), जिससे लगभग 3000 लोगों ने उद्धार पाया (प्रेरितों 2:41)। अर्थात, जैसे कि हम पहले देख चुके हैं, जबकि व्यवस्था और पवित्र शास्त्र प्रभु यीशु मसीह की गवाही देते थे, उद्धारकर्ता के बारे में बताते थे, किन्तु शैतान ने उन लोगों की समझ और आँखों को अंधा कर रखा था कि वे सही बात को देख और समझ न सकें, प्रभु यीशु की वास्तविकता को स्वीकार न करें। सुसमाचार की ज्योति ने जिनके इस अंधकार को हटाया, वे फिर उद्धारकर्ता को भी पहचान सके और उन्होंने उद्धार भी पाया (2 कुरिन्थियों 4:4; इफिसियों 2:2; 4:18; कुलुस्सियों 1:12-13) शैतान हमें व्यर्थ की बातों में उलझा कर, सुसमाचार को पहचानने और मानने से बाधित करके रखता है, जब तक कि कोई वास्तविक शुद्ध सुसमाचार के द्वारा उसके अंधकार को हटा कर हमें प्रभु यीशु की ज्योति में न ले आए। 

 अगले लेख में हम शैतान द्वारा फैलाई जाने वाली सुसमाचार से संबंधित आम गलत शिक्षाओं को देखेंगे। यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना और समझना अति-आवश्यक है कि आप प्रभु परमेश्वर के सुसमाचार से संबंधित किसी गलत शिक्षाओं या धारणाओं में न पड़े हों। यह सुनिश्चित कर लीजिए कि आपने सच्चे सुसमाचार पर सच्चा विश्वास किया है, आप सच्चे पश्चाताप और समर्पण तथा सच्चे मन से प्रभु यीशु से पापों की क्षमा के द्वारा परमेश्वर के जन बने हैं। न खुद भरमाए जाएं, और न ही आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए। लोगों द्वारा कही जाने वाली ही नहीं, वरन वचन में लिखी हुई बातों पर ध्यान दें, और लोगों की बातों को वचन की बातों से मिला कर जाँचें और परखें, यदि सही हों, तब ही उन्हें मानें, अन्यथा अस्वीकार कर दें। 

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • व्यवस्थाविवरण 3-4          
  • मरकुस 10:32-52

रविवार, 6 मार्च 2022

कलीसिया में अपरिपक्वता के दुष्प्रभाव (22)


भ्रामक शिक्षाओं के स्वरूप - सुसमाचार संबंधित गलत शिक्षाएं (3) - सुसमाचार की योजना

हम पिछले लेखों से देखते आ रहे हैं कि बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों की एक पहचान यह भी है कि वे बहुत सरलता से भ्रामक शिक्षाओं द्वारा बहकाए तथा गलत बातों में भटकाए जाते हैं (इफिसियों 4:14)। इन भ्रामक शिक्षाओं को शैतान और उस के दूत झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं (2 कुरिन्थियों 11:13-15)। ये लोग, और उनकी शिक्षाएं, दोनों ही बहुत आकर्षक, रोचक, और ज्ञानवान, यहाँ तक कि भक्तिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण भी प्रतीत हो सकती हैं, किन्तु साथ ही उनमें अवश्य ही बाइबल की बातों के अतिरिक्त भी बातें डली हुई होती हैं। जैसा परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”, इन भ्रामक शिक्षाओं और गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन विषय, होते हैं - प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार। साथ ही इस पद में सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है, कि इन तीनों विषयों के बारे में जो यथार्थ और सत्य हैं, वे सब वचन में पहले से ही बता और लिखवा दिए गए हैं। इसलिए बाइबल से देखने, जाँचने, तथा वचन के आधार पर शिक्षाओं को परखने के द्वारा सही और गलत की पहचान करना कठिन नहीं है। 

पिछले लेखों में हमने इन गलत शिक्षा देने वाले लोगों के द्वारा, पहले तो प्रभु यीशु से संबंधित सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं को देखा; फिर उसके बाद, परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित सामान्यतः बताई और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं की वास्तविकता को वचन की बातों से देखा; और पिछले लेख से हमने सुसमाचार से संबंधित गलत शिक्षाओं के बारे में देखना आरंभ किया है, और इन आरंभिक लेखों में हम सही सुसमाचार क्या है, यह देख और समझ रहे हैं, जिससे गलत या भ्रष्ट को पहचान सकें, स्वयं भी उस से बच कर रह सकें तथा औरों को भी बचा सकें। पिछले दो लेखों में हमने देखा है कि सुसमाचार संसार के प्रत्येक व्यक्ति के लिए है, चाहे उसका धर्म, धारणा, मान्यता कुछ भी हो; ईसाइयों या मसीहियों के लिए भी। सभी को उसके लिए व्यक्तिगत रीति से निर्णय लेना है। सुसमाचार का व्यक्ति के जीवन में कार्यकारी होना उसके सच्चे समर्पित मन से अपने पापों के लिए पश्चाताप और प्रभु यीशु से पापों के क्षमा माँगकर उसे समर्पित हो जाने से आरंभ होता है। आज हम इस सुसमाचार के विषय परमेश्वर की योजना के बारे में देखेंगे।  

सुसमाचार - आरंभ से ही परमेश्वर द्वारा स्थापित 

बहुधा लोगों की यह धारणा रहती है कि प्रभु यीशु में पापों की क्षमा और उद्धार तथा उससे संबंधित आशीषों का यह सुसमाचार नए नियम, या प्रभु यीशु के आगमन और सेवकाई के साथ आरंभ हुआ है। संसार के बहुत से लोग तो प्रभु यीशु के विषय यह धारणा भी रखते हैं कि वह एक भक्त यहूदी था, जिसके जीवन से उस समय के बहुत से लोग बहुत प्रभावित हुए थे, और उसके बाद, उसके अनुयायियों ने उसके नाम में कुछ शिक्षाओं और बातों को बना कर फैला दिया, जिनमें से एक यह उसके नाम में विश्वास द्वारा पापों से क्षमा और उद्धार की बात भी है। किन्तु बहुत कम लोगों को यह पता है कि इस सुसमाचार का उल्लेख पुराने नियम में भी है, और इसका आरंभ सृष्टि के पहले से है। परमेश्वर का वचन बाइबल हमें सुसमाचार में होकर परमेश्वर की इस उद्धार की योजना के विषय सामान्य धारणाओं और विचारों से बहुत भिन्न तथ्य प्रदान करती है। बाइबल के इन तथ्यों को देखना आरंभ हम सुसमाचार के संक्षिप्त रूप, उसके सार को परमेश्वर पवित्र आत्मा की अगुवाई में प्रेरित पौलुस द्वारा कुरिन्थुस की मण्डली को लिखी गई पहली पत्री में से देखने के साथ करते हैं:

हे भाइयों, मैं तुम्हें वही सुसमाचार बताता हूं जो पहिले सुना चुका हूं, जिसे तुम ने अंगीकार भी किया था और जिस में तुम स्थिर भी हो। उसी के द्वारा तुम्हारा उद्धार भी होता है, यदि उस सुसमाचार को जो मैं ने तुम्हें सुनाया था स्मरण रखते हो; नहीं तो तुम्हारा विश्वास करना व्यर्थ हुआ। इसी कारण मैं ने सब से पहिले तुम्हें वही बात पहुंचा दी, जो मुझे पहुंची थी, कि पवित्र शास्त्र के वचन के अनुसार यीशु मसीह हमारे पापों के लिये मर गया। ओर गाड़ा गया; और पवित्र शास्त्र के अनुसार तीसरे दिन जी भी उठा” (1 कुरिन्थियों 15:1-4) 

ये पद इस बात को स्पष्ट कर देते हैं कि उद्धार के सुसमाचार का मर्म, प्रभु यीशु मसीह का पृथ्वी पर आना, मानव-जाति के पापों के लिए मारा जाना, गाड़ा जाना, और तीसरे दिन जी उठना, इनमें से कोई भी बात आकस्मिक या अनपेक्षित नहीं थीं। वरन, ये सारी बातें जो हुईं, वे सभीपवित्र शास्त्र के अनुसारही हुईं; अर्थात पवित्र शस्त्र में, जो उस समय वर्तमान का पुराना नियम था, पहले से ही लिखी हुई थीं, और उन्हीं भविष्यवाणी की बातों की पूर्ति प्रभु यीशु के जीवन के द्वारा हुई!

बाइबल में उद्धारकर्ता की पहली प्रतिज्ञा, आदम और हव्वा के पाप करने के साथ ही, परमेश्वर ने अदन की वाटिका में ही कर दी थी -और मैं तेरे और इस स्त्री के बीच में, और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्पन्न करूंगा, वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा” (उत्पत्ति 3:15)। सामान्यतः किसी भी परिवार में, “वंशपुरुष के द्वारा ज़ारी रखा माना जाता है, पुरुष का ही माना जाता है। किन्तु यहाँ परमेश्वर नेस्त्री के वंशकी बात की, जो उस सर्प रूपी शैतान के सिर को कुचलने वाले उद्धारकर्ता, प्रभु यीशु मसीह के, बिना पुरुष के साथ मेल के कुँवारी स्त्री से जन्म लेने, और शैतान के कार्यों का तथा उसका नाश करके मानव जाति के उद्धार के कार्य को संपन्न करने की पहली भविष्यवाणी थी। और इसी भविष्यवाणी के अनुसार प्रभु यीशु के जन्म के समय मरियम को आश्वस्त किया गया, “स्वर्गदूत ने उस से कहा, हे मरियम; भयभीत न हो, क्योंकि परमेश्वर का अनुग्रह तुझ पर हुआ है। और देख, तू गर्भवती होगी, और तेरे एक पुत्र उत्पन्न होगा; तू उसका नाम यीशु रखना” “मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, यह क्योंकर होगा? मैं तो पुरुष को जानती ही नहीं। स्वर्गदूत ने उसको उत्तर दिया; कि पवित्र आत्मा तुझ पर उतरेगा, और परमप्रधान की सामर्थ्य तुझ पर छाया करेगी इसलिये वह पवित्र जो उत्पन्न होनेवाला है, परमेश्वर का पुत्र कहलाएगा।” (लूका 1:30-31, 34-35)

नए नियम में इब्रानियों की पत्री में, प्रभु यीशु मसीह के मनुष्य रूप में पृथ्वी पर आने के समय का वार्तालाप दर्ज किया गया है:इसी कारण वह जगत में आते समय कहता है, कि बलिदान और भेंट तू ने न चाही, पर मेरे लिये एक देह तैयार किया। होम-बलियों और पाप-बलियों से तू प्रसन्न नहीं हुआ। तब मैं ने कहा, देख, मैं आ गया हूं, (पवित्र शास्त्र में मेरे विषय में लिखा हुआ है) ताकि हे परमेश्वर तेरी इच्छा पूरी करूं” (इब्रानियों 10:5-7)। ये पद भी हमारे लिए सुसमाचार के बारे में कुछ बहुत महत्वपूर्ण तथ्य रखते हैं - 

  • जैसे परमेश्वर ने उत्पत्ति 3:15 मेंस्त्री के वंशकी बात कही थी, उसकी के अनुसार, कुँवारी मरियम के गर्भ में पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से एक मानव देह तैयार कर के रखी गई जिसमें होकर परमेश्वर पुत्र - प्रभु यीशु ने जगत में, बिना किसी पुरुष के योगदान के, एक कुँवारी से जन्म लिया।
  • प्रभु का जगत में आना परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने के लिए था - अर्थात परमेश्वर पिता की यह इच्छा पहले से ही विद्यमान थी, जिसे पूरा करने के लिए परमेश्वर पुत्र ने स्वर्ग का वैभव, आदर, और महिमा छोड़कर, अपने आप को शून्य करके (फिलिप्पियों 2:5-8) पृथ्वी पर आना स्वीकार किया। 
  • प्रभु यीशु के विषय यह सब पवित्र शास्त्र में पहले से ही लिखा हुआ था। 

प्रभु यीशु मसीह ने अपने पुनरुत्थान के बाद, इम्माऊस के मार्ग पर जा रहे अपने दो शिष्यों के साथ हुई बातचीत में उन्हें स्मरण करवाया, “फिर उसने उन से कहा, ये मेरी वे बातें हैं, जो मैं ने तुम्हारे साथ रहते हुए, तुम से कही थीं, कि अवश्य है, कि जितनी बातें मूसा की व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं और भजनों की पुस्तकों में, मेरे विषय में लिखी हैं, सब पूरी हों” (लूका 24:44)। प्रेरित पौलुस के जीवन-परिवर्तन के बाद, पुराने नियम के अपने ज्ञान के आधार पर उसनेऔर वह तुरन्त आराधनालयों में यीशु का प्रचार करने लगा, कि वह परमेश्वर का पुत्र है। परन्तु शाऊल और भी सामर्थी होता गया, और इस बात का प्रमाण दे देकर कि मसीह यही है, दमिश्क के रहने वाले यहूदियों का मुंह बन्द करता रहा” (प्रेरितों 9:20, 22)। इसी प्रकार अपुल्लोस भी, जो पवित्र शास्त्र का अच्छा गया रखता था, “अपुल्लोस नाम एक यहूदी जिस का जन्म सिकन्‍दिरया में हुआ था, जो विद्वान पुरुष था और पवित्र शास्त्र को अच्छी तरह से जानता था इफिसुस में आया। क्योंकि वह पवित्र शास्त्र से प्रमाण दे देकर, कि यीशु ही मसीह है; बड़ी प्रबलता से यहूदियों को सब के सामने निरुत्तर करता रहा” (प्रेरितों के काम 18:24, 28)

क्योंकि पवित्र शास्त्र, अर्थात वर्तमान के पुराने नियम में एक उद्धारकर्ता के जन्म और छुटकारे के कार्य के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई थी, इसीलिए प्रभु यीशु की सेवकाई के समय में लोगों को यह अंदेशा था कि उस उद्धारकर्ता के आने का समय हो गया है, वे उसकी बाट जोह रहे थे। इसी प्रत्याशा में यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने अपनी सेवकाई आरंभ की, और जब वह आया तो उसे पहचान लियादूसरे दिन उसने यीशु को अपनी ओर आते देखकर कहा, देखो, यह परमेश्वर का मेम्ना है, जो जगत के पाप उठा ले जाता है” (यूहन्ना 1:29)। यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के शिष्य अन्द्रियास ने, यूहन्ना के कहने पर प्रभु यीशु को मसीह स्वीकार कर लिया, “उसने पहिले अपने सगे भाई शमौन से मिलकर उस से कहा, कि हम को ख्रिस्तुस अर्थात मसीह मिल गया” (यूहन्ना 1:41)। सामान्य लोगों में भी यही प्रत्याशा थी जैसा सामरी स्त्री ने प्रभु यीशु से कहा, “स्त्री ने उस से कहा, मैं जानती हूं कि मसीह जो ख्रीस्‍तुस कहलाता है, आने वाला है; जब वह आएगा, तो हमें सब बातें बता देगाआओ, एक मनुष्य को देखो, जिसने सब कुछ जो मैं ने किया मुझे बता दिया: कहीं यह तो मसीह नहीं है?” (यूहन्ना 4:25, 29)

यह सभी दिखाता है कि प्रभु यीशु मसीह में उद्धार का सुसमाचार नए नियम से भी पहले का है, पवित्र शास्त्र के अनुसार है, पुराने नियम के आरंभ में से ही उसके बारे में लिख दिया गया था, उसकी योजना बनाई जा चुकी थी। किन्तु अद्भुत बात यह है कि प्रभु यीशु मसीह का अपने बलिदान के द्वारा छुटकारे का, पापों से क्षमा और उद्धार का मार्ग प्रदान करने का कार्य जगत की उत्पत्ति से पहले ही स्थापित कर दिया गया थाउसका ज्ञान तो जगत की उत्पत्ति के पहिले ही से जाना गया था, पर अब इस अन्तिम युग में तुम्हारे लिये प्रगट हुआ” (1 पतरस 1:20), और वह घात या बलि जगत की उत्पत्ति के समय हुआ, “और पृथ्वी के वे सब रहने वाले जिन के नाम उस मेम्ने की जीवन की पुस्तक में लिखे नहीं गए, जो जगत की उत्पत्ति के समय से घात हुआ है, उस पशु की पूजा करेंगे” (प्रकाशितवाक्य 13:8) 

अर्थात, प्रभु यीशु मसीह में होकर पापों की क्षमा और उद्धार का यह सुसमाचार न तो मनुष्य के पाप करने के बाद, परिस्थिति के अनुसार, बाद में लिया गया निर्णय और किया गया कार्य है; और न ही मनुष्यों की कल्पनाओं और विचारों की गढ़ी हुई बात है। यह जगत की उत्पत्ति से पहले स्थापित हो गया था, और जगत की उत्पत्ति के समय, इससे पहले कि मनुष्य की सृष्टि भी होती और वो पाप में गिराया जाता, उसे पाप से छुड़ाने का प्रयोजन और क्रिया को परमेश्वर ने तैयार कर के रख लिया था। इसीलिए इसे “eternal salvation” यासदा काल का उद्धारकहा गया है (इब्रानियों 5:9) 

ये बातें सुसमाचार के महत्व, सिद्धता, शुद्धता और पवित्रता को दिखाती हैं; बताती हैं कि कैसे सुसमाचार से की गई थोड़ी से भी छेड़ा-खानी, उसमें की गई कोई भी मिलावट, उसमें डाली गई कोई भी अतिरिक्त बात, उसे भ्रष्ट कर देगी, उसे अप्रभावी बना देगी। अगले लेख में हम देखेंगे के शैतान किन युक्तियों के द्वारा सुसमाचार को अप्रभावी बनाता है, और हमें उस भ्रष्ट सुसमाचार के चक्करों में फँसा कर, वास्तविक और सच्चे सुसमाचार को हमारे जीवनों में कार्यकारी एवं प्रभावी होने से रोक देता है। 

यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना और समझना अति-आवश्यक है कि आप प्रभु परमेश्वर के सुसमाचार से संबंधित किसी गलत शिक्षाओं में न पड़े हों। यह सुनिश्चित कर लीजिए कि आप सच्चे पश्चाताप और समर्पण तथा सच्चे मन से प्रभु यीशु से पापों की क्षमा के द्वारा परमेश्वर के जन बने हैं। न खुद भरमाए जाएं, और न ही आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए। लोगों द्वारा कही जाने वाली ही नहीं, वरन वचन में लिखी हुई बातों पर ध्यान दें, और लोगों की बातों को वचन की बातों से मिला कर जाँचें और परखें, यदि सही हों, तब ही उन्हें मानें, अन्यथा अस्वीकार कर दें। 

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • व्यवस्थाविवरण 1-2          
  • मरकुस 10:1-31

शनिवार, 5 मार्च 2022

कलीसिया में अपरिपक्वता के दुष्प्रभाव (21)


भ्रामक शिक्षाओं के स्वरूप - सुसमाचार संबंधित गलत शिक्षाएं (2) - सुसमाचार क्या है?

हम पिछले लेखों से देखते आ रहे हैं कि बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों की एक पहचान यह भी है कि वे बहुत सरलता से भ्रामक शिक्षाओं द्वारा बहकाए तथा गलत बातों में भटकाए जाते हैं (इफिसियों 4:14)। इन भ्रामक शिक्षाओं को शैतान और उस के दूत झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं (2 कुरिन्थियों 11:13-15)। ये लोग, और उनकी शिक्षाएं, दोनों ही बहुत आकर्षक, रोचक, और ज्ञानवान, यहाँ तक कि भक्तिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण भी प्रतीत हो सकती हैं, किन्तु साथ ही उनमें अवश्य ही बाइबल की बातों के अतिरिक्त भी बातें डली हुई होती हैं। जैसा परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”, इन भ्रामक शिक्षाओं और गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन विषय, होते हैं - प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार। साथ ही इस पद में सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है, कि इन तीनों विषयों के बारे में जो यथार्थ और सत्य हैं, वे सब वचन में पहले से ही बता और लिखवा दिए गए हैं। इसलिए बाइबल से देखने, जाँचने, तथा वचन के आधार पर शिक्षाओं को परखने के द्वारा सही और गलत की पहचान करना कठिन नहीं है। 

पिछले लेखों में हमने इन गलत शिक्षा देने वाले लोगों के द्वारा, पहले तो प्रभु यीशु से संबंधित सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं को देखा; फिर उसके बाद, परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित सामान्यतः बताई और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं की वास्तविकता को वचन की बातों से देखा; और पिछले लेख से हमने सुसमाचार से संबंधित गलत शिक्षाओं के बारे में देखना आरंभ किया है, इस विषय के परिचय को देखा है। इस परिचय में हमने देखा है कि प्रभु यीशु का सुसमाचार परमेश्वर के राज्य में मनुष्य के प्रवेश प्राप्त करने के बारे में है, और इस प्रवेश के लिए सबसे पहला कदम है प्रत्येक व्यक्ति द्वारा व्यक्तिगत रीति से अपने पापों से पश्चाताप करना, जो सभी के लिए समान रीति से अनिवार्य है, चाहे वे किसी भी धर्म, धारणा, मान्यता, या समुदाय के हों, चाहे अपने आप को पिछली कई पीढ़ियोंप्रभु के लोगअर्थात ईसाई या मसीही होना ही क्यों न समझते हों। आज हम यहाँ से आगे बढ़ेंगे और देखेंगे कि सुसमाचार क्या है। 

सुसमाचार क्या है? 

जैसा हम पिछले लेख में देख चुके हैं, सुसमाचार शब्द का अर्थ है भला समाचार या अच्छी खबर। यह लोगों को प्रदान की जाने वाली जानकारी है, कोई प्रथा, परंपरा, या विधि नहीं है जिसे करने के द्वारा व्यक्ति धार्मिकता के किसी विशेष स्तर पर पहुँच जाता है, और परमेश्वर फिर उसे अपने राज्य में प्रवेश देने के लिए बाध्य हो जाता है। सुसमाचार अच्छा समाचार तब ही हो सकता है, जब उसकी तुलना में कुछ बुरा समाचार भी हो, और वह बुरा समाचार सारे संसार के सभी लोगों पर लागू हो; अन्यथा सुसमाचार वास्तव में सुसमाचार हो ही नहीं सकता है। इसबुरे समाचारको हम परमेश्वर के वचन बाइबल के कुछ पदों से देखते हैं:

  • रोमियों 5:12 इसलिये जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, इसलिये कि सब ने पाप किया
  • रोमियों 3:23 इसलिये कि सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं
  • रोमियों 6:23 क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है 

अर्थात, संसार का प्रत्येक मनुष्य, उस पाप के दोष के साथ जन्म लेता है, जो अदन की वाटिका में आदम और हव्वा के पाप करने से मनुष्य जाति में प्रवेश कर गया था, अनुवांशिक रीति से उनमें बस गया था और एक से दूसरी पीढ़ी में फैलने वाला दोष था। उस पाप के कारण मृत्यु ने सृष्टि में प्रवेश किया, और मृत्यु सभी मनुष्यों में फैल गई। यह मृत्यु दो प्रकार की है - आत्मिक और शारीरिक। आत्मिक मृत्यु के कारण मनुष्य परमेश्वर की संगति और सहभागिता से दूर है; और शारीरिक मृत्यु के कारण वह अन्ततः एक दिन मरेगा ही। परिणामस्वरूप मनुष्य जन्म लेते ही मारना आरंभ कर देता है, और उसकी आयु पूरी हो जाने पर मर जाता है। मनुष्य अपनी स्वाभाविक पापमय दशा में ऐसा कुछ भी नहीं कर सकता है जिसके द्वारा अपनी इस परिस्थिति को पलट सके, परमेश्वर की दृष्टि में धर्मी और उसे स्वीकार्य बन सके। हम इस विषय को विस्तार से पहले के कुछ लेखों में देख चुके हैं, इसलिए यहाँ इन पर और अधिक चर्चा नहीं करेंगे। अर्थात, बुरी खबर या बुरा समाचार यह है कि संसार में जन्म लेने वाला प्रत्येक मनुष्य अपनी स्वाभाविक पापी दशा के कारण परमेश्वर से दूर, और अनन्त मृत्यु, यानि कि हमेशा के लिए परमेश्वर से दूर नरक में रहने की दशा में है। 

इसीलिए भला समाचार या अच्छी खबर सभी मनुष्यों के लिए है कि परमेश्वर ने ही मनुष्यों के लिए इस अनन्त मृत्यु, सदा काल के नरक से बचने का मार्ग बनाकर दे दिया है, संसार के सभी लोगों के लिए उसे सेंत-मेंत उपलब्ध करवा दिया है, और सभी को उसमें आने का खुला निमंत्रण दे रखा है। अब केवल मनुष्य को परमेश्वर के इस प्रयोजन पर विश्वास करके, उसे स्वीकार करना है। इस संदर्भ में एक बार फिर बाइबल में रोमियों की पत्री से कुछ पद देखिए:

  • रोमियों 5:15 पर जैसा अपराध की दशा है, वैसी अनुग्रह के वरदान की नहीं, क्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध से बहुत लोग मरे, तो परमेश्वर का अनुग्रह और उसका जो दान एक मनुष्य के, अर्थात यीशु मसीह के अनुग्रह से हुआ बहुतेरे लोगों पर अवश्य ही अधिकाई से हुआ
  • रोमियों 5:17 क्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध के कारण मृत्यु ने उस एक ही के द्वारा राज्य किया, तो जो लोग अनुग्रह और धर्म रूपी वरदान बहुतायत से पाते हैं वे एक मनुष्य के, अर्थात यीशु मसीह के द्वारा अवश्य ही अनन्त जीवन में राज्य करेंगे
  • रोमियों 5:18 इसलिये जैसा एक अपराध सब मनुष्यों के लिये दण्ड की आज्ञा का कारण हुआ, वैसा ही एक धर्म का काम भी सब मनुष्यों के लिये जीवन के निमित धर्मी ठहराए जाने का कारण हुआ
  • रोमियों 5:19 क्योंकि जैसा एक मनुष्य के आज्ञा न मानने से बहुत लोग पापी ठहरे, वैसे ही एक मनुष्य के आज्ञा मानने से बहुत लोग धर्मी ठहरेंगे

तो सभी मनुष्यों के लिए, समस्त मानव जाति के लिए, सुसमाचार, या भला समाचार, यानि कि अच्छी खबर यह है कि किसी को भी उसकी पाप की दशा में बने रहने और पाप के उस दण्ड को भुगतने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि परमेश्वर ने इससे छुटकारे का मार्ग बनाकर, उस मार्ग को सभी के लिए सेंत-मेंत उपलब्ध करवा दिया है। अब निर्णय प्रत्येक व्यक्ति को लेना है कि वो परमेश्वर के इस प्रयोजन को स्वीकार करेगा या अस्वीकार; परमेश्वर द्वारा धर्मी और पाप के दोष से मुक्त बनाया जाएगा, या फिर इसके लिए अपने ही व्यर्थ और निष्फल प्रयासों में पड़ा रहेगा, और अनन्तकाल की मृत्यु में चला जाएगा। परमेश्वर किसी के साथ ज़बरदस्ती नहीं करता है। वह हर एक को उसकी स्वेच्छा पर छोड़ देता है; वह उसे उसके जीवन भर याद दिलाता रहता है, पुकारता रहता है, समझाता रहता है कि जैसे भी हो, जिस भी दशा में हो, तुमने कुछ भी क्यों न किया हो, अपने व्यर्थ और निष्फल प्रयासों को छोड़कर तैयार किए गए आशीषित मार्ग पर आ जाओ, क्योंकि शरीर से निकल जाने के बाद फिर निर्णय कभी बदला नहीं जा सकेगा, इसलिए अभी सही निर्णय कर लो। किन्तु जो परमेश्वर की इस पुकार को अस्वीकार कर देते हैं, उसके मार्ग का तिरस्कार कर देते हैं, परमेश्वर उनके इस निर्णय, उनकी इस स्वेच्छा का आदर करता है, और उन्हें उनके द्वारा निर्णय लिए हुए स्थान पर भेज देता है। जिन्होंने अपने शारीरिक जीवन में पश्चाताप के साथ परमेश्वर के साथ हो जाने का निर्णय लिया है, वे उसके साथ स्वर्ग में रहने के लिए ले जाए जाएंगे; और जिन्होंने सब कुछ जानते हुए भी, अवसर मिलने पर भी परमेश्वर से दूर रहने का निर्णय लिया, वो हमेशा के लिए उससे दूर नरक में डाले जाएंगे। 

संक्षेप में, यही सुसमाचार है, कि परमेश्वर का राज्य निकट है; आज, अभी समय और अवसर रहते अपने लिए सही निर्णय कर लो, और अपने कैसे भी कर्मों या धर्म-कर्म आदि के द्वारा नहीं वरन सच्चे और समर्पित मन से किए गए पापों से पश्चाताप तथा प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने के द्वारा अपने अनन्त काल को सुरक्षित एवं आशीषित कर लो। इस सुसमाचार की योजना के बारे में हम अगले लेख में देखेंगे। किन्तु यहाँ पर बहुत ध्यान से इस बात को देख और समझ लीजिए - सुसमाचार का केंद्र-बिन्दु और उसका मर्म हैअपने कैसे भी कर्मों या धर्म-कर्म आदि के द्वारा नहीं वरन सच्चे और समर्पित मन से किए गए पापों से पश्चाताप तथा प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने के द्वारा”; यदि यह नहीं है, तो सुसमाचार कार्यकारी, प्रभावी, परमेश्वर की ओर से दिया गया नहीं है। इसीलिए शैतान सुसमाचार के इसी केंद्र-बिन्दु, इसी मर्म पर विभिन्न प्रकार से हमला करता है, उसमें तरह-तरह की बातें मिला कर उसे भ्रष्ट करता है, उस पर ध्यान लगाने की बजाए इधर-उधर की बातों में भटकाता है, जिससे व्यक्ति सुसमाचार की सिधाई और सच्चाई से हट कर और ही बातों में प जाए, और उद्धार पाने से रह जाए। उसकी इन्हीं युक्तियों को हम आगे के लेखों में देखेंगे। 

यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना और समझना अति-आवश्यक है कि आप प्रभु परमेश्वर के सुसमाचार से संबंधित किसी गलत शिक्षाओं में न पड़े हों। यह सुनिश्चित कर लीजिए कि आप सच्चे पश्चाताप और समर्पण तथा सच्चे मन से प्रभु यीशु से पापों की क्षमा के द्वारा परमेश्वर के जन बने हैं। न खुद भरमाए जाएं, और न ही आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए। लोगों द्वारा कही जाने वाली ही नहीं, वरन वचन में लिखी हुई बातों पर ध्यान दें, और लोगों की बातों को वचन की बातों से मिला कर जाँचें और परखें, यदि सही हों, तब ही उन्हें मानें, अन्यथा अस्वीकार कर दें। 

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • गिनती 34-36         
  • मरकुस 9:30-50