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सोमवार, 7 अगस्त 2017

दोष और आलोचना


   अनेकों लोगों के समान, जब मैं समाचार-पत्र या कोई पत्रिका पढ़ता हूँ, तो वर्तनी और व्याकरण की त्रुटियाँ मेरे सामने आती हैं। मैं जान बूझकर उन त्रुटियों को ढूँढ़ने का प्रयास नही करता हूँ; वे स्वतः ही मुझे दिखाई दे जाती हैं। ऐसे में मेरी स्वाभाविक प्रतिक्रिया होती है कि मैं उस प्रकाशन और उससे संबंधित लोगों की आलोचना करूँ, और इस संबंध में अपनी चिड़चिड़ाहट व्यक्त करूँ।

   संभव है कि आपके विशिष्ट कार्य-क्षेत्र को लेकर आपका भी कुछ ऐसा ही अनुभव हो। ऐसा लगता है कि हम किसी बात के बारे में जितना अधिक जानते हैं, उससे संबंधित त्रुटियों के विषय में उतने अधिक आलोचनात्मक हो जाते हैं। यहाँ तक कि हमारे ऐसे आलोचनात्मक व्यवहार के कारण अन्य लोगों के साथ हमारे संबंध भी प्रभावित हो सकते हैं।

   परन्तु परमेश्वर का वचन बाइबल हमें एक भिन्न दृष्टिकोण प्रदान करती है। प्रेरित पौलुस ने फिलिप्पी की मसीही मण्डली को लिखी अपनी पत्री में लिखा, "मैं यह प्रार्थना करता हूं, कि तुम्हारा प्रेम, ज्ञान और सब प्रकार के विवेक सहित और भी बढ़ता जाए" (फिलिप्पियों 1:9)। परमेश्वर चाहता है कि हम उसे जितना अधिक जानें और समझें, उतने अधिक नम्र और प्रेम करने वाले बनते जाएं। बजाए इसके कि हम दोष ढूँढ़ने और आलोचना करने वाले बनें, या ऐसा व्यवहार करें कि मानों हमने देखा नहीं, या हम परवाह नहीं करते हैं, हमारी समझ-बूझ के कारण हमारे अन्दर सहानुभूति और नम्रता बढ़ती जानी चाहिए। आलोचना के स्थान पर करुणा होनी चाहिए।

   बजाए इसके कि हम दूसरों में दोष ढूँढ़ने वाले हों, प्रभु परमेश्वर चाहता है कि हम "उस धामिर्कता के फल से जो यीशु मसीह के द्वारा होते हैं, भरपूर होते जाओ जिस से परमेश्वर की महिमा और स्‍तुति होती रहे" (पद 11)।

   जब प्रभु यीशु हमारे जीवनों और मनों में बसेगा, तब जैसे वह हमारे दोषों के प्रति व्यवहार करता है, हम औरों के दोषों के प्रति व्यवहार करना सीखेंगे; जैसे वह हमारी आलोचना नहीं करता है, हम भी औरों कि आलोचना नहीं करेंगे। उसके समान ही हमारा व्यवहार भी प्रेम का होगा, हम चाहे उन लोगों और उनकी कमियों के बारे में चाहे जितना भी जानने वाले क्यों न हों। - डेविड मैक्कैसलैंड


गलती करना मानवीय स्वभाव है, 
परन्तु क्षमा करना दिव्य स्वभाव है। - एलेकज़ैंडर पोप

जैसा मसीह यीशु का स्‍वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्‍वभाव हो। - फिलिप्पियों 2:5

बाइबल पाठ: फिलिप्पियों 1:1-11
Philippians 1:1 मसीह यीशु के दास पौलुस और तीमुथियुस की ओर से सब पवित्र लोगों के नाम, जो मसीह यीशु में हो कर फिलिप्पी में रहते हैं, अध्यक्षों और सेवकों समेत। 
Philippians 1:2 हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्‍ति मिलती रहे।
Philippians 1:3 मैं जब जब तुम्हें स्मरण करता हूं, तब तब अपने परमेश्वर का धन्यवाद करता हूं। 
Philippians 1:4 और जब कभी तुम सब के लिये बिनती करता हूं, तो सदा आनन्द के साथ बिनती करता हूं। 
Philippians 1:5 इसलिये, कि तुम पहिले दिन से ले कर आज तक सुसमाचार के फैलाने में मेरे सहभागी रहे हो। 
Philippians 1:6 और मुझे इस बात का भरोसा है, कि जिसने तुम में अच्छा काम आरम्भ किया है, वही उसे यीशु मसीह के दिन तक पूरा करेगा। 
Philippians 1:7 उचित है, कि मैं तुम सब के लिये ऐसा ही विचार करूं क्योंकि तुम मेरे मन में आ बसे हो, और मेरी कैद में और सुसमाचार के लिये उत्तर और प्रमाण देने में तुम सब मेरे साथ अनुग्रह में सहभागी हो। 
Philippians 1:8 इस में परमेश्वर मेरा गवाह है, कि मैं मसीह यीशु की सी प्रीति कर के तुम सब की लालसा करता हूं। 
Philippians 1:9 और मैं यह प्रार्थना करता हूं, कि तुम्हारा प्रेम, ज्ञान और सब प्रकार के विवेक सहित और भी बढ़ता जाए। 
Philippians 1:10 यहां तक कि तुम उत्तम से उत्तम बातों को प्रिय जानो, और मसीह के दिन तक सच्चे बने रहो; और ठोकर न खाओ। 
Philippians 1:11 और उस धामिर्कता के फल से जो यीशु मसीह के द्वारा होते हैं, भरपूर होते जाओ जिस से परमेश्वर की महिमा और स्‍तुति होती रहे।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 72-73
  • रोमियों 9:1-15


रविवार, 6 अगस्त 2017

परिवार का सदस्य


   मुजे मेरी प्राथमिक शिक्षा के लिए अपने माता-पिता से दूर, एक अन्य परिवार के साथ रहना पड़ा था। वह परिवार मुझ से बहुत प्रेम करने और देखभाल करने वाला था, तथा मेरी देखरेख बहुत अच्छे से करता था। एक दिन एक पारिवारिक अवसर को मनाने के लिए सभी बच्चे एक स्थान पर एकत्रित हुए। उस सभा के दो भाग थे; पहले भाग में सभी बच्चों ने भाग लिया, और सब ने अपने अनुभव बताए; मैं भी उनमें सम्मिलित था। परन्तु दूसरे भाग में केवल वही बच्चे भाग ले सकते थे जो "सगे" थे, और मुझे नम्रता के साथ, सम्मिलित नहीं होने के लिए कहा गया। उस समय मुझे उस कटु सत्य का बोध हुआ कि मैं उस परिवार का सगा सदस्य नहीं था। वह परिवार मुझसे बहुत प्रेम करता था, बहुत अच्छे से मेरी देखभाल करता था, परन्तु मैं केवल उनके साथ रहने वाला एक जन था, उनके परिवार का सगा तथा वैध सदस्य नहीं था।

   मेरे जीवन का यह अनुभव मुझे परमेश्वर के वचन बाइबल में प्रभु यीशु मसीह के विषय यूहन्ना 1:11-13 में लिखी बात स्मरण करवाता है। परमेश्वर का पुत्र, प्रभु यीशु मसीह, अपनों के मध्य आया, परन्तु उन्होंने उसका तिरिस्कार कर दिया। परन्तु परमेश्वर ने उसे ही मनुष्यों के लिए परमेश्वर के परिवार का सदस्य बनने का माध्यम बना दिया। जो कोई भी साधारण विश्वास के साथ उसे ग्रहण करता है, अपना जीवन उसे समर्पित करता है, वह परमेश्वर के परिवार का सदस्य हो जाता है, चाहे उसका जन्म किसी भी परिवार में क्यों न हुआ हो। परमेश्वर के परिवार का सदस्य बनने का आधार हमारा सांसारिक परिवार और उसका विश्वास, रीतियाँ या मान्यताएं नहीं है, वरन हमारे द्वारा स्वेच्छा से प्रभु यीशु मसीह पर लाया गया विश्वास और उसके प्रति हमारा समर्पण है; हम चाहे किसी भी परिवार में क्यों न जन्मे हों और पले-बड़े हुए हों। जब हम अपने द्वारा लिए गए निर्णय से परमेश्वर के परिवार का अंग बनते हैं, तब ही "आत्मा आप ही हमारी आत्मा के साथ गवाही देता है, कि हम परमेश्वर की सन्तान हैं" (रोमियों 8:16)।

   जो कोई भी परमेश्वर पिता के पास प्रभु यीशु में होकर आता है, उसकी लेपालक संतान बनता है, परमेश्वर कभी उसे अस्विकार नहीं करता है, वरन उन्हें अपने परिवार का वैध और सगा सदस्य बना लेता है। परन्तु जो भी प्रभु यीशु पर विश्वास और समर्पण की इस साधारण सी आवश्यकता को पूरा नहीं करता है, वह चाहे परमेश्वर के प्रेम और देखभाल को कितना भी अनुभव कर ले, वह परमेश्वर के परिवार का वैध तथा सगा सदस्य नहीं है; अन्ततः उसे अलग होना ही होगा।

   अपने जन्म के सांसारिक परिवार को अपने अनन्त का आधार न बनाएं; आपने चाहे जिस भी परिवार में जन्म क्यों न लिया हो, सुखद अनन्त के लिए अनिवार्य है कि आप परमेश्वर के परिवार के सदस्य बन जाएं। - लॉरेंस दरमानी


उद्धार आप क्या जानते हैं से नहीं, 
वरन प्रभु यीशु को जानने-मानने से सुनिश्चित होता है।

सो अब जो मसीह यीशु में हैं, उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं: क्योंकि वे शरीर के अनुसार नहीं वरन आत्मा के अनुसार चलते हैं। - रोमियों 8:1

बाइबल पाठ: यूहन्ना 1:1-14
John 1:1 आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था। 
John 1:2 यही आदि में परमेश्वर के साथ था। 
John 1:3 सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उस में से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न न हुई। 
John 1:4 उस में जीवन था; और वह जीवन मुनष्यों की ज्योति थी। 
John 1:5 और ज्योति अन्धकार में चमकती है; और अन्धकार ने उसे ग्रहण न किया। 
John 1:6 एक मनुष्य परमेश्वर की ओर से आ उपस्थित हुआ जिस का नाम यूहन्ना था। 
John 1:7 यह गवाही देने आया, कि ज्योति की गवाही दे, ताकि सब उसके द्वारा विश्वास लाएं। 
John 1:8 वह आप तो वह ज्योति न था, परन्तु उस ज्योति की गवाही देने के लिये आया था। 
John 1:9 सच्ची ज्योति जो हर एक मनुष्य को प्रकाशित करती है, जगत में आनेवाली थी। 
John 1:10 वह जगत में था, और जगत उसके द्वारा उत्पन्न हुआ, और जगत ने उसे नहीं पहिचाना। 
John 1:11 वह अपने घर आया और उसके अपनों ने उसे ग्रहण नहीं किया। 
John 1:12 परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं। 
John 1:13 वे न तो लोहू से, न शरीर की इच्छा से, न मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं। 
John 1:14 और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण हो कर हमारे बीच में डेरा किया, और हम ने उस की ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 70-71
  • रोमियों 8:22-39


शनिवार, 5 अगस्त 2017

उस्ताद


   हाई स्कूल की पढ़ाई करते समय मुझे अपने शतरंज खेलने की योग्यता पर गर्व था। मैंने शतरंज क्लब की सदस्यता ली, और दोपहर के भोजन अवकाश के समय मैं अन्य सदस्यों के साथ बैठा हुआ पाया जाता था; हम शतरंज के खेल से संबंधित अनेकों किताबें पढ़ते थे, खेल की रणनीति बनाने के नए-नए तरीके सीखते थे; मैंने अपनी अधिकांशतः स्पर्धाएं जीतीं, और फिर खेलना छोड़ दिया। लगभग 20 वर्ष पश्चात मेरी मुलाकात एक कुशल शतरंज खिलाड़ी से हुई, जो हाई स्कूल के बाद भी अपने कौशल को निखारता चला जा रहा था, और उससे खेलने पर मुझे पता चला कि एक उस्ताद के साथ खेलना क्या होता है। यद्यपि शतरंज की बिसात पर मैं कोई भी चाल चलने के लिए स्वतंत्र था, परन्तु उसके सामने मेरे द्वारा बनाए गई कोई भी रणनीति, मेरी कोई भी चाल किसी काम की नहीं थी। उस उस्ताद के श्रेष्ठ कौशल के कारण मेरे द्वारा चली गई प्रत्येक चाल, वह अपने पक्ष में, अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए परिवर्तित कर लेता था।

   यहाँ पर हमारे लिए एक आत्मिक शिक्षा का चित्रण है। परमेश्वर ने हम मनुष्यों को अपने निर्णय लेने और अपनी इच्छानुसार करने की स्वतंत्रता दी है, और हम में से अधिकांश परमेश्वर की इच्छा और योजना के बाहर, उसके उद्देश्यों के विरुद्ध अपनी मनमर्ज़ी करते हैं, योजनाएं बनाते हैं, और उन्हें कार्यान्वित करते हैं। परन्तु ऐसा करने पर भी हम अन्ततः हमारे पुनःस्थापन के परमेश्वर के उद्देश्य को ही पूरा कर देते हैं (रोमियों 8:21, 2 पतरस 3:13, प्रकाशितवाक्य 21:1)। इस एहसास ने जीवन में भली और बुरी दोनों ही प्रकार की बातों के प्रति मेरा दृष्टिकोण बदल दिया। भली बातें, जैसे स्वास्थ्य, योग्यताएं, धन आदि को मैं परमेश्वर को उसके उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अर्पित कर सकता हूँ। बुरी बातें, जैसे कि कोई अक्षमता, निर्धनता, पारिवारिक समस्याएं, असफलताएं आदि को मैं परमेश्वर के निकट आने और उसकी निकटता में बढ़ने का साधन बनाकर उनका सदुपयोग कर सकता हूँ।

   हम मसीही विश्वासियों को आश्वस्त रहना चाहिए कि उस उस्ताद, हमारे परमेश्वर पिता के हाथों से, हर बात और परिस्थिति में हमारी विजय सुनिश्चित है, चाहे जीवन के शतरंज की बिसात कैसी भी प्रतीत क्यों न हो रही हो। - फिलिप यैन्सी


जब हमें परमेश्वर का हाथ दिखाई न भी दे, 
तब भी हम उसके हृदय को लेकर आश्वस्त रह सकते हैं।

पर उस की प्रतिज्ञा के अनुसार हम एक नए आकाश और नई पृथ्वी की आस देखते हैं जिन में धामिर्कता वास करेगी। - 2 पतरस 3:13

बाइबल पाठ: रोमियों 8:16-25
Romans 8:16 आत्मा आप ही हमारी आत्मा के साथ गवाही देता है, कि हम परमेश्वर की सन्तान हैं। 
Romans 8:17 और यदि सन्तान हैं, तो वारिस भी, वरन परमेश्वर के वारिस और मसीह के संगी वारिस हैं, जब कि हम उसके साथ दुख उठाएं कि उसके साथ महिमा भी पाएं।
Romans 8:18 क्योंकि मैं समझता हूं, कि इस समय के दु:ख और क्लेश उस महिमा के साम्हने, जो हम पर प्रगट होने वाली है, कुछ भी नहीं हैं। 
Romans 8:19 क्योंकि सृष्टि बड़ी आशाभरी दृष्टि से परमेश्वर के पुत्रों के प्रगट होने की बाट जोह रही है। 
Romans 8:20 क्योंकि सृष्टि अपनी इच्छा से नहीं पर आधीन करने वाले की ओर से व्यर्थता के आधीन इस आशा से की गई। 
Romans 8:21 कि सृष्टि भी आप ही विनाश के दासत्व से छुटकारा पाकर, परमेश्वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता प्राप्त करेगी। 
Romans 8:22 क्योंकि हम जानते हैं, कि सारी सृष्टि अब तक मिलकर कराहती और पीड़ाओं में पड़ी तड़पती है। 
Romans 8:23 और केवल वही नहीं पर हम भी जिन के पास आत्मा का पहिला फल है, आप ही अपने में कराहते हैं; और लेपालक होने की, अर्थात अपनी देह के छुटकारे की बाट जोहते हैं। 
Romans 8:24 आशा के द्वारा तो हमारा उद्धार हुआ है परन्तु जिस वस्तु की आशा की जाती है जब वह देखने में आए, तो फिर आशा कहां रही? क्योंकि जिस वस्तु को कोई देख रहा है उस की आशा क्या करेगा? 
Romans 8:25 परन्तु जिस वस्तु को हम नहीं देखते, यदि उस की आशा रखते हैं, तो धीरज से उस की बाट जोहते भी हैं।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 68-69
  • रोमियों 8:1-21


शुक्रवार, 4 अगस्त 2017

बुद्धिमता


   इंटरनैट पर उपलब्ध समाचार साईट्स को देखते हुए जब आप उस पृष्ठ पर बिलकुल नीचे तक पहुँचते हैं तो वहाँ एक भाग मिलता है जिसमें पाठक उस समाचार विषय के बारे में अपनी टिप्पणी लिख सकते हैं। सबसे प्रतिष्ठित और अच्छी मानी जाने वाली साईट्स पर भी इस टिप्पणी वाले स्थान में अनेकों लोगों द्वारा निरादरपूर्ण बातें, अधूरी जानकारी वाली अपमानजनक बातें, लोगों को अपशब्द कहना, इत्यादि पाएंगे।

   परमेश्वर के वचन बाइबल में नीतिवचन नामक पुस्तक बुद्धिमता की बातों का संग्रह है जो लगभग 3000 वर्ष पहले संकलित किया गया था; परन्तु इस पुस्तक की बातें आज भी उतनी ही समकालिक और उपयोगी हैं जितनी कि आज का सबसे ताज़ा समाचार। इस पुस्तक के 26वें अध्याय में दो शिक्षाएं हैं जो प्रथम दृष्टि में परस्पर विरोधी प्रतीत होती हैं, और दोनों ही आज के सामाजिक चर्चा माध्यमों पर सटीक लागू होती हैं: "मूर्ख को उस की मूर्खता के अनुसार उत्तर न देना ऐसा न हो कि तू भी उसके तुल्य ठहरे" (नीतिवचन 26:4); और फिर "मूर्ख को उसकी मूढ़ता के अनुसार उत्तर देना, ऐसा न हो कि वह अपने लेखे बुद्धिमान ठहरे" (नीतिवचन 26:5)।

   इन दोनों परस्पर विरोधी प्रतीत होने वाली बातों में परस्पर संतुलन वहाँ प्रयुक्त ’के अनुसार’ में है। कहने का तात्पर्य है कि पहली शिक्षा है कि किसी भी बात पर ऐसे उत्तर या टिप्पणी मत दो जैसे मूर्ख देते हैं। दूसरी शिक्षा का अर्थ है कि ऐसे उत्तर या टिप्पणी दो कि मूर्ख की मूर्खता उसकी बुद्धिमता प्रतीत न हो।

   मेरी समस्या है कि जिस मूर्खता का मुझे बहुधा सामना करना पड़ता है, वह मेरी अपनी ही होती है। मैंने भी कभी-कभी टिप्पणी वाले स्थान पर या तो कोई कटाक्ष अथवा निन्दनीय बात लिखी है, या किसी और की टिप्पणी को पलट कर निरादरपूर्ण रीति से उसी के ऊपर डाल दिया है। यह परमेश्वर को कतई नहीं भाता है जब मैं अपने किसी संगी मनुष्य के प्रति ऐसा अनादर करूँ, चाहे वे मूर्खतापूर्ण व्यवहार ही क्यों न कर रहे हों।

   परमेश्वर ने हमें अभिव्यक्ति की अद्भुत स्वतंत्रता दी है। हमें जो कहना है, जब कहना है, जिस प्रकार कहना है, आदि बातों का हम अपनी इच्छा और समझ के अनुसार स्वयं निर्णय कर सकते हैं, लेकिन परमेश्वर का वचन बाइबल हमें साथ ही प्रभु यीशु मसीह के शब्दों में यह भी चिताती है कि "और मैं तुम से कहता हूं, कि जो जो निकम्मी बातें मनुष्य कहेंगे, न्याय के दिन हर एक बात का लेखा देंगे" (मत्ती 12:36)। साथ ही परमेश्वर ने हमें एक स्वतंत्रता और दी है, हम जब चाहे उसके पास आकर, उससे आवश्यकता तथा परिस्थिति के अनुसार बुद्धिमता माँग सकते हैं, मार्गदर्शन ले सकते हैं, और वह हमें कभी निराश नहीं करेगा। - टिम गुस्टाफ्सन


जो करो या कहो, प्रेम से करो या कहो।

पर यदि तुम में से किसी को बुद्धि की घटी हो, तो परमेश्वर से मांगे, जो बिना उलाहना दिए सब को उदारता से देता है; और उसको दी जाएगी। - याकूब 1:5

बाइबल पाठ: नीतिवचन 26:1-12
Proverbs 26:1 जैसा धूपकाल में हिम का, और कटनी के समय जल का पड़ना, वैसा ही मूर्ख की महिमा भी ठीक नहीं होती। 
Proverbs 26:2 जैसे गौरिया घूमते घूमते और सूपाबेनी उड़ते-उड़ते नहीं बैठती, वैसे ही व्यर्थ शाप नहीं पड़ता। 
Proverbs 26:3 घोड़े के लिये कोड़ा, गदहे के लिये बाग, और मूर्खों की पीठ के लिये छड़ी है। 
Proverbs 26:4 मूर्ख को उस की मूर्खता के अनुसार उत्तर न देना ऐसा न हो कि तू भी उसके तुल्य ठहरे। 
Proverbs 26:5 मूर्ख को उसकी मूढ़ता के अनुसार उत्तर देना, ऐसा न हो कि वह अपने लेखे बुद्धिमान ठहरे। 
Proverbs 26:6 जो मूर्ख के हाथ से संदेशा भेजता है, वह मानो अपने पांव में कुल्हाड़ा मारता और विष पीता है। 
Proverbs 26:7 जैसे लंगड़े के पांव लड़खड़ाते हैं, वैसे ही मूर्खों के मुंह में नीतिवचन होता है। 
Proverbs 26:8 जैसे पत्थरों के ढेर में मणियों की थैली, वैसे ही मूर्ख को महिमा देनी होती है। 
Proverbs 26:9 जैसे मतवाले के हाथ में कांटा गड़ता है, वैसे ही मूर्खों का कहा हुआ नीतिवचन भी दु:खदाई होता है। 
Proverbs 26:10 जैसा कोई तीरन्दाज जो अकारण सब को मारता हो, वैसा ही मूर्खों वा बटोहियों का मजदूरी में लगाने वाला भी होता है। 
Proverbs 26:11 जैसे कुत्ता अपनी छाँट को चाटता है, वैसे ही मूर्ख अपनी मूर्खता को दुहराता है। 
Proverbs 26:12 यदि तू ऐसा मनुष्य देखे जो अपनी दृष्टि में बुद्धिमान बनता हो, तो उस से अधिक आशा मूर्ख ही से है।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 66-67
  • रोमियों 7


गुरुवार, 3 अगस्त 2017

पाप के चँगुल


   अमेरिका के इडाहो प्रांत में कूना के दक्षिण में धरती के नीचे एक सुरंग है जिसमें से लावा बहता है, और यह स्थान काफी बदनाम भी है। जहाँ तक मेरी जानकारी है, उस सुरंग तक पहुँचने का एक ही मार्ग है जो धरती की सतह पर एक गहरा गड्ढ़ा है, जिसकी गहराई सीधे नीचे अन्धकार में उस सुरंग तक जाती है। कुछ वर्ष पहले मैं उस गड्ढ़े के किनारे खड़ा होकर नीचे की ओर झाँक रहा था। मैं उसकी कगार तक जाने के लिए आकर्षित हुआ, और कगार के पास पहुँच कर मैंने अपना संतुलन लगभग खो ही दिया था। उस पल में मैंने हृदय दहला देने वाले भय का अनुभव किया और तुरंत ही मैं उस गड्ढ़े से पीछे हट गया।

   पाप के साथ व्यवहार भी ऐसा ही है: जिज्ञासा हमें पाप के गढ़े के कगार तक आकर्षित कर लेती है। कितनी ही बार ऐसा हुआ है कि ऐसे आकर्षित हुए लोग फिर उस पाप में गिर भी गए हैं, उस विनाश के अन्धकार में समा गए हैं। उन बुराईयों और अनैतिकताओं से किए गए छोटे-मोटे खिलवाड़ के कारण वे अपने परिवार, प्रतिष्ठा, और आजीविका के साधनों को नाश कर लेते हैं, क्योंकि जो एक छेड़-छाड़ से आरंभ हुआ था, वह फिर विचारों में बस गया और क्रिया में परिवर्तित हो गया, और परिणाम बहुत भयानक हुआ। अपने जीवन में पीछे की ओर देखकर वे यही कहते हैं कि, "मुझे कभी ऐसा नहीं लगा था कि यह बढ़कर ऐसा हो जाएगा, इससे मेरा यह हाल हो जाएगा।"

   हमें लगता है कि हम पाप से छेड़-छाड़ के लिए उसके निकट आ सकते हैं, उसकी कगार पर आकर फिर वापस लौट कर जा सकते हैं; परन्तु यह मूर्खता का विचार है। हम जानते हैं कि जो हम कर रहे हैं वह गलत हैं, फिर भी हम उससे खिलवाड़ का मज़ा लेना चाहते हैं। लेकिन निकट आने के कारण, खिलवाड़ करने के कारण, हम फिर बारंबार उस पाप की ओर लौट कर आते हैं, उसमें गहरे, और गहरे धंसते चले जाते हैं; और जब तक हमें अपनी वस्तुस्थिति का एहसास होता है, हम पाप के चँगुल में फंस चुके होते हैं।

   परमेश्वर के वचन बाइबल में प्रभु यीशु मसीह ने इसीलिए कहा, "...मैं तुम से सच सच कहता हूं कि जो कोई पाप करता है, वह पाप का दास है" (यूहन्ना 8:34)। इसलिए चाहिए कि पाप के चँगुल में फँसने से बचे रहने के लिए हम दाऊद के समान प्रार्थना करें "तू अपने दास को ढिठाई के पापों से भी बचाए रख; वह मुझ पर प्रभुता करने न पाएं! तब मैं सिद्ध हो जाऊंगा, और बड़े अपराधों से बचा रहूंगा" (भजन 19:13), जिससे परमेश्वर की सहायता और सामर्थ्य से हम पाप से दूर रहें, बचे रहें। - डेविड रोपर


प्रत्येक बड़ा पतन एक छोटे से लड़खड़ाने से आरंभ होता है।

क्या हो सकता है कि कोई अपनी छाती पर आग रख ले; और उसके कपड़े न जलें? - नीतिवचन 6:27

बाइबल पाठ: रोमियों 6:16-23
Romans 6:16 क्या तुम नहीं जानते, कि जिस की आज्ञा मानने के लिये तुम अपने आप को दासों की नाईं सौंप देते हो, उसी के दास हो: और जिस की मानते हो, चाहे पाप के, जिस का अन्त मृत्यु है, चाहे आज्ञा मानने के, जिस का अन्त धामिर्कता है 
Romans 6:17 परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो, कि तुम जो पाप के दास थे तौभी मन से उस उपदेश के मानने वाले हो गए, जिस के सांचे में ढाले गए थे। 
Romans 6:18 और पाप से छुड़ाए जा कर धर्म के दास हो गए। 
Romans 6:19 मैं तुम्हारी शारीरिक दुर्बलता के कारण मनुष्यों की रीति पर कहता हूं, जैसे तुम ने अपने अंगो को कुकर्म के लिये अशुद्धता और कुकर्म के दास कर के सौंपा था, वैसे ही अब अपने अंगों को पवित्रता के लिये धर्म के दास कर के सौंप दो। 
Romans 6:20 जब तुम पाप के दास थे, तो धर्म की ओर से स्वतंत्र थे। 
Romans 6:21 सो जिन बातों से अब तुम लज्ज़ित होते हो, उन से उस समय तुम क्या फल पाते थे? 
Romans 6:22 क्योंकि उन का अन्त तो मृत्यु है परन्तु अब पाप से स्वतंत्र हो कर और परमेश्वर के दास बनकर तुम को फल मिला जिस से पवित्रता प्राप्त होती है, और उसका अन्त अनन्त जीवन है। 
Romans 6:23 क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 63-65
  • रोमियों 6


बुधवार, 2 अगस्त 2017

विश्वास


   रॉजर को बहुत कुछ सहना पड़ा था। उसके हृदय का एक वाल्व ठीक से कार्य नहीं कर रहा था जिसके लिए उसे एक बड़े ऑपरेशन से निकलना पड़ा। इसके कुछ ही सप्ताह के बाद कुछ दिक्कतों के कारण उसका ऑपरेशन दोबारा करना पड़ गया। अभी वह पूरी तरह से ठीक भी नहीं हुआ था कि मोटर-साईकिल दुर्घटना के कारण उसकी हंसली टूट गई। इन परेशानियों के दौरान रॉजर को अपनी माँ का देहान्त होने के दुःख को भी सहना पड़ा। वह बहुत हताश हो गया। जब एक मित्र ने उससे पूछा कि क्या उसने परमेश्वर को कार्य करते हुए अनुभव किया है, किन्हीं छोटी बातों या रीति से ही सही। तो रॉजर ने स्वीकार किया कि उसने ऐसा कुछ भी अनुभव नहीं किया है।

   मैं रॉजर की इमानदारी की प्रशंसा करती हूँ। निराशा और संशय की भावनाएं मेरे जीवन का भी भाग हैं। परमेश्वर के वचन बाइबल में, रोम के मसीही विश्वासियों को लिखी अपनी पत्री में प्रेरित पौलुस ने लिखा, "केवल यही नहीं, वरन हम क्लेशों में भी घमण्ड करें, यही जानकर कि क्लेश से धीरज। ओर धीरज से खरा निकलना, और खरे निकलने से आशा उत्पन्न होती है" (रोमियों 5:3-4)। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि हम सदा ही आनन्द का अनुभव करते रहेंगे। ऐसे भी समय आएंगे जब हमें किसी ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता होगी जो हमारे साथ बैठकर हमारे मन की बातों को सुन सके; हमें परमेश्वर से भी बातें करने की आवश्यकता पड़ेगी। कभी-कभी हमें रुक कर, अपने जीवन को पीछे मुड़कर देखना पड़ता है, यह समझने के लिए कि उन कठिनाईयों, अनिश्चितताओं और परेशानियों के अनुभवों से हमारा विश्वास कैसे बढ़ा है।

   हम मसीही विश्वासी यह जानते हैं कि परमेश्वर हमारी कठिनाईयों, अनिश्चितताओं और परेशानियों के अनुभवों के द्वारा हमारे विश्वास को और दृढ़ करता है, जिससे हम हर परिस्थिति में उसके भले हृदय पर अपना विश्वास बनाए रखें। - ऐनी सेटास


परमेश्वर हमें परिस्थितियों से निकलने देता है 
जिससे उस पर हमारा विश्वास और दृढ़ हो सके।

हे मेरे भाइयों, जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ो तो इसको पूरे आनन्द की बात समझो, यह जान कर, कि तुम्हारे विश्वास के परखे जाने से धीरज उत्पन्न होता है। - याकूब 1:2-3

बाइबल पाठ: रोमियों 5:1-11
Romans 5:1 सो जब हम विश्वास से धर्मी ठहरे, तो अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के साथ मेल रखें। 
Romans 5:2 जिस के द्वारा विश्वास के कारण उस अनुग्रह तक, जिस में हम बने हैं, हमारी पहुंच भी हुई, और परमेश्वर की महिमा की आशा पर घमण्ड करें। 
Romans 5:3 केवल यही नहीं, वरन हम क्लेशों में भी घमण्ड करें, यही जानकर कि क्लेश से धीरज। 
Romans 5:4 ओर धीरज से खरा निकलना, और खरे निकलने से आशा उत्पन्न होती है। 
Romans 5:5 और आशा से लज्ज़ा नहीं होती, क्योंकि पवित्र आत्मा जो हमें दिया गया है उसके द्वारा परमेश्वर का प्रेम हमारे मन में डाला गया है। 
Romans 5:6 क्योंकि जब हम निर्बल ही थे, तो मसीह ठीक समय पर भक्तिहीनों के लिये मरा। 
Romans 5:7 किसी धर्मी जन के लिये कोई मरे, यह तो र्दुलभ है, परन्तु क्या जाने किसी भले मनुष्य के लिये कोई मरने का भी हियाव करे। 
Romans 5:8 परन्तु परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा। 
Romans 5:9 सो जब कि हम, अब उसके लोहू के कारण धर्मी ठहरे, तो उसके द्वारा क्रोध से क्यों न बचेंगे? 
Romans 5:10 क्योंकि बैरी होने की दशा में तो उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा हमारा मेल परमेश्वर के साथ हुआ फिर मेल हो जाने पर उसके जीवन के कारण हम उद्धार क्यों न पाएंगे? 
Romans 5:11 और केवल यही नहीं, परन्तु हम अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा जिस के द्वारा हमारा मेल हुआ है, परमेश्वर के विषय में घमण्ड भी करते हैं।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 60-62
  • रोमियों 5


मंगलवार, 1 अगस्त 2017

शांति


   फ़िनलैंड देश के हेलसिंकी शहर में स्थित कैम्पी चैपल अपने आप में एक अनूठा स्थान है। यह आकार में गोलाकार है और लकड़ी से ढंका हुआ है; उसकी इस विशिष्ट संरचना के कारण व्यस्त शहर की बाहरी आवाज़ें इसके अन्दर तक बहुत कम पहुँचने पाती हैं। इसे बनाने वालों ने इसे एक शांत स्थान होने के लिए, जहाँ आगंतुक आकर अपने आप को शांत कर सकें, बनाया है। यह शहर के भी़ड़ और शोर-गुल से निकलकर शांत होकर बैठने का एक अच्छा स्थल है।

   बहुत से लोग शांति चाहते हैं और कुछ मिनटों की खामोशी हमें शांत कर सकती है। परन्तु परमेश्वर का वचन बाइबल हमें सिखाती है कि वास्तविक शांति परमेश्वर से मेल-मिलाप हो जाने से ही आती है, जो केवल प्रभु यीशु में होकर ही संभव है। प्रेरित पौलुस ने कहा, "सो जब हम विश्वास से धर्मी ठहरे, तो अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के साथ मेल रखें" (रोमियों 5:1)। बिना प्रभु यीशु मसीह के, अपने पापों की दशा में होने के कारण हम परमेश्वर के बैरी हैं; परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो कि उसने अपने साथ हमारा मेल-मिलाप करने के लिए प्रभु यीशु को भेजा, जिसका क्रूस पर दिया गया बलिदान हमें पापों की क्षमा प्रदान करता है जिससे परमेश्वर से हमारा मेल-मिलाप संभव हो जाता है। अब परमेश्वर हमें प्रभु यीशु मसीह में होकर, "...अपने सम्मुख पवित्र और निष्‍कलंक, और निर्दोष बनाकर उपस्थित करे" (कुलुस्सियों 1:22)।

   परमेश्वर के साथ शांति हो जाने का तात्पर्य यह नहीं है कि अब हमारे जीवनों में कभी कोई समस्या नहीं आएगी; परन्तु हमें परमेश्वर से यह आश्वासन अवश्य ही मिलता है कि हमारी प्रत्येक परिस्थिति में परमेश्वर हमारे साथ बना रहेगा, हमारा मार्गदर्शन करेगा और हमें सुरक्षित निकाल कर ले आएगा। प्रभु यीशु ने अपने अनुयायियों से कहा, "मैं ने ये बातें तुम से इसलिये कही हैं, कि तुम्हें मुझ में शान्‍ति मिले; संसार में तुम्हें क्‍लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बांधो, मैं ने संसार को जीत लिया है" (यूहन्ना 16:33)। मसीह यीशु के कारण हमें सच्ची शांति प्राप्त हो सकती है। - जेनिफर बेन्सन शुल्ट


जब मसीह यीशु हृदय में राज करता है 
तो उसकी शांति हमारे जीवनों में भर जाती है।

मैं तुम्हें शान्‍ति दिए जाता हूं, अपनी शान्‍ति तुम्हें देता हूं; जैसे संसार देता है, मैं तुम्हें नहीं देता: तुम्हारा मन न घबराए और न डरे। - यूहन्ना 14:27

बाइबल पाठ: कुलुस्सियों 1:13-22
Colossians 1:13 उसी ने हमें अन्धकार के वश से छुड़ाकर अपने प्रिय पुत्र के राज्य में प्रवेश कराया। 
Colossians 1:14 जिस में हमें छुटकारा अर्थात पापों की क्षमा प्राप्त होती है। 
Colossians 1:15 वह तो अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप और सारी सृष्‍टि में पहिलौठा है। 
Colossians 1:16 क्योंकि उसी में सारी वस्‍तुओं की सृष्‍टि हुई, स्वर्ग की हो अथवा पृथ्वी की, देखी या अनदेखी, क्या सिंहासन, क्या प्रभुतांए, क्या प्रधानताएं, क्या अधिकार, सारी वस्तुएं उसी के द्वारा और उसी के लिये सृजी गई हैं। 
Colossians 1:17 और वही सब वस्‍तुओं में प्रथम है, और सब वस्तुएं उसी में स्थिर रहती हैं। 
Colossians 1:18 और वही देह, अर्थात कलीसिया का सिर है; वही आदि है और मरे हुओं में से जी उठने वालों में पहिलौठा कि सब बातों में वही प्रधान ठहरे। 
Colossians 1:19 क्योंकि पिता की प्रसन्नता इसी में है कि उस में सारी परिपूर्णता वास करे। 
Colossians 1:20 और उसके क्रूस पर बहे हुए लोहू के द्वारा मेल मिलाप कर के, सब वस्‍तुओं का उसी के द्वारा से अपने साथ मेल कर ले चाहे वे पृथ्वी पर की हों, चाहे स्वर्ग में की। 
Colossians 1:21 और उसने अब उसकी शारीरिक देह में मृत्यु के द्वारा तुम्हारा भी मेल कर लिया जो पहिले निकाले हुए थे और बुरे कामों के कारण मन से बैरी थे। 
Colossians 1:22 ताकि तुम्हें अपने सम्मुख पवित्र और निष्‍कलंक, और निर्दोष बनाकर उपस्थित करे।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 57-59
  • रोमियों 4