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बुधवार, 4 अगस्त 2021

परमेश्वर के वचन – बाइबल की आवश्यकता


          परमेश्वर ने हमें बाइबल क्यों दी? यहूदियों के पास, परमेश्वर द्वारा मूसा में होकर दिया गया उसका वचन था, जिसे आज हम मसीही विश्वासी “पुराना नियम” के नाम से जानते हैं। परमेश्वर द्वारा नैतिकता, धार्मिकता, धार्मिक अनुष्ठानों, पर्वों, और विधियों के पालन का पुराने नियम में वर्णन दिया गया है। तो फिर उसके साथ नया नियम जोड़कर यह 66 पुस्तकों का संकलन, बाइबल, क्यों प्रदान की गई?

          जैसा पहले के लेख में कहा गया है, सम्पूर्ण पुराना नियम, प्रभु यीशु मसीह के विभिन्न पहलुओं और बातों की भविष्यवाणी है। पुराना नियम संसार के लोगों को प्रभु के आने और उन भविष्यवाणियों, उस से संबंधित बातों को पूरा करने, तथा लोगों द्वारा उसे स्वीकार करने के लिए तैयार करता है। बिना नए नियम के, बिना प्रभु यीशु मसीह में होकर पुराने नियम की बातों की परिपूर्णता के, पुराने नियम का उद्देश्य अधूरा है, अपूर्ण है। पुराना और नया नियम, एक ही सिक्के दो पहलू हैं, एक की अनुपस्थिति से सिक्का अधूरा है, अस्वीकार्य है। परमेश्वर ने प्रभु यीशु मसीह को इस संसार में भेजकर और उसमें अपने द्वारा कही गई बातों को पूरा करवाने के द्वारा, अपने आप को, अपने वचन को, प्रभु यीशु मसीह को, और बाइबल की शिक्षाओं को प्रमाणित कर दिया है, सत्यापित कर दिया है। अब अपने जीवनों और परमेश्वर के साथ हमारे संबंधों के विषय जानने के लिए हमें कहीं और भटकने या हाथ-पैर मारने की आवश्यकता नहीं  है। बाइबल में हमें सारा विवरण और मार्गदर्शन उपलब्ध है।

          बाइबल हम मनुष्यों के लिए, जीवन व्यतीत करने और परलोक के लिए तैयार होने की, परमेश्वर द्वारा दी गई मार्गदर्शक पुस्तिका है। यह हमें हमारे भूत, वर्तमान, और भविष्य के बारे में बताती, सिखाती, और चिताती है; और सभी परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार करती है। बाइबल के कुछ पदों पर ध्यान कीजिए:

·    जीवन और भक्ति से संबंधित जो कुछ भी हमें आवश्यक है, वह सब हमें प्रभु यीशु मसीह की पहचान में, जो बाइबल में दी गई है, उपलब्ध करवाया गया है: “क्योंकि उसके ईश्वरीय सामर्थ्य ने सब कुछ जो जीवन और भक्ति से सम्बन्ध रखता है, हमें उसी की पहचान के द्वारा दिया है, जिसने हमें अपनी ही महिमा और सद्गुण के अनुसार बुलाया है” (2 पतरस 1:3)।

·    परमेश्वर ने ठहराया है कि उसके वचन के पालन के द्वारा हमारी भलाई हो, हम आशीषित हों, हमारे कार्य सफल हों: “भला होता कि उनका मन सदैव ऐसा ही बना रहे, कि वे मेरा भय मानते हुए मेरी सब आज्ञाओं पर चलते रहें, जिस से उनकी और उनके वंश की सदैव भलाई होती रहे!” (व्यवस्थाविवरण 5:29)। “इतना हो कि तू हियाव बान्धकर और बहुत दृढ़ हो कर जो व्यवस्था मेरे दास मूसा ने तुझे दी है उन सब के अनुसार करने में चौकसी करना; और उस से न तो दाहिने मुड़ना और न बाएं, तब जहां जहां तू जाएगा वहां वहां तेरा काम सफल होगा। व्यवस्था की यह पुस्तक तेरे चित्त से कभी न उतरने पाए, इसी में दिन रात ध्यान दिए रहना, इसलिये कि जो कुछ उस में लिखा है उसके अनुसार करने की तू चौकसी करे; क्योंकि ऐसा ही करने से तेरे सब काम सफल होंगे, और तू प्रभावशाली होगा” (यहोशू 1:7-8)।

·    परमेश्वर के वचन, बाइबल की शिक्षाओं को अपने हृदय में बसाए रखने से हम पाप करने से बचे रहते हैं: “जवान अपनी चाल को किस उपाय से शुद्ध रखे? तेरे वचन के अनुसार सावधान रहने से। मैं ने तेरे वचन को अपने हृदय में रख छोड़ा है, कि तेरे विरुद्ध पाप न करूं” (भजन संहिता 119:9, 11)।

·    जो परमेश्वर के वचन बाइबल की बातों को थामे रहते हैं, वे परमेश्वर के द्वारा संसार पर आने वाली सभी विपत्तियों और हानियों से सुरक्षित रखे जाते हैं: “तू ने मेरे धीरज के वचन को थामा है, इसलिये मैं भी तुझे परीक्षा के उस समय बचा रखूंगा, जो पृथ्वी पर रहने वालों के परखने के लिये सारे संसार पर आने वाला है” (प्रकाशितवाक्य 3:10)।

         

          बाइबल में दी गई भविष्यवाणियों के अनुसार, हम संसार के अंत के दिनों में जी रहे हैं; शीघ्र ही संसार का हर व्यक्ति अपने जीवन का हिसाब देने और अपने किए के अनुसार न्याय पाने के लिए प्रभु यीशु मसीह के समक्ष उपस्थित होगा: “इसलिये परमेश्वर अज्ञानता के समयों में आनाकानी कर के, अब हर जगह सब मनुष्यों को मन फिराने की आज्ञा देता है। क्योंकि उसने एक दिन ठहराया है, जिस में वह उस मनुष्य के द्वारा धर्म से जगत का न्याय करेगा, जिसे उसने ठहराया है और उसे मरे हुओं में से जिलाकर, यह बात सब पर प्रमाणित कर दी है” (प्रेरितों के काम 17:30-31)। वर्तमान संसार के हालात, सभी स्थानों पर होने वाली तथा बढ़ती जाने वाली प्राकृतिक आपदाएं, विश्व-व्यापी बीमारियाँ, स्थान-स्थान पर हो रहे कलह-क्लेश, युद्ध, सामाजिक अव्यवस्था, आदि सभी प्रभु यीशु मसीह द्वारा दिए गए अंत के दिनों के चिह्नों (मत्ती 24 अध्याय) की पूर्ति हैं। इन परिस्थितियों में हमारा मार्गदर्शन करने और इनमें से सुरक्षित पार निकालने के लिए सभी को बाइबल की आवश्यकता है।

          परमेश्वर ने विपदाओं से बचने का साधन हमें उपलब्ध कर दिया है। प्रभु यीशु मसीह में विश्वास करने और अपना जीवन स्वेच्छा से उसे समर्पित करने के द्वारा हम परमेश्वर के इस अमूल्य, अद्भुत, अनुपम साधन का सदुपयोग करने का मार्गदर्शन और सामर्थ्य भी प्राप्त कर लेते हैं। अब परमेश्वर के इस अनुग्रह को स्वीकार करना, और उसका लाभ उठाना, या उसका तिरस्कार करके अपने ही विनाशकारी मार्गों में बने रहना, यह प्रत्येक का व्यक्तिगत निर्णय है। जो बाइबल को परमेश्वर का वचन मानकर उसकी बातों का पालन करेगा; बाइबल के केन्द्रीय पात्र, प्रभु यीशु मसीह को उद्धारकर्ता स्वीकार करके उसके निर्देशों के अनुसार जीवन व्यतीत करेगा, वह आशीषों के साथ सुरक्षित परलोक में प्रवेश प्राप्त करेगा, अनन्त विनाश से बच जाएगा।

 

बाइबल पाठ: भजन 19:7-14

भजन 19:7 यहोवा की व्यवस्था खरी है, वह प्राण को बहाल कर देती है; यहोवा के नियम विश्वासयोग्य हैं, साधारण लोगों को बुद्धिमान बना देते हैं;

भजन 19:8 यहोवा के उपदेश सिद्ध हैं, हृदय को आनन्दित कर देते हैं; यहोवा की आज्ञा निर्मल है, वह आंखों में ज्योति ले आती है;

भजन 19:9 यहोवा का भय पवित्र है, वह अनन्तकाल तक स्थिर रहता है; यहोवा के नियम सत्य और पूरी रीति से धर्ममय हैं।

भजन 19:10 वे तो सोने से और बहुत कुन्दन से भी बढ़कर मनोहर हैं; वे मधु से और टपकने वाले छत्ते से भी बढ़कर मधुर हैं।

भजन 19:11 और उन्हीं से तेरा दास चिताया जाता है; उनके पालन करने से बड़ा ही प्रतिफल मिलता है।

भजन 19:12 अपनी भूलचूक को कौन समझ सकता है? मेरे गुप्त पापों से तू मुझे पवित्र कर।

भजन 19:13 तू अपने दास को ढिठाई के पापों से भी बचाए रख; वह मुझ पर प्रभुता करने न पाएं! तब मैं सिद्ध हो जाऊंगा, और बड़े अपराधों से बचा रहूंगा।।

भजन 19:14 मेरे मुंह के वचन और मेरे हृदय का ध्यान तेरे सम्मुख ग्रहण योग्य हों, हे यहोवा परमेश्वर, मेरी चट्टान और मेरे उद्धार करने वाले!

 

एक साल में बाइबल: 

  • भजन 66-67
  • रोमियों 7

मंगलवार, 3 अगस्त 2021

परमेश्वर का वचन – बाइबल – रूपरेखा – 2

  

          बाइबल की समस्त पुस्तकों की सामग्री को, उसके लेखों के विषयों तथा बातों को पाँच मुख्य श्रेणियों में बाँटा जा सकता है। हर पुस्तक में हर श्रेणी से संबंधित कुछ लिखा हो, यह आवश्यक नहीं; किन्तु सभी पुस्तकों की बातों को इन पाँच श्रेणियों में से किसी एक में अवश्य रखा जा सकता है।

ये श्रेणियाँ हैं:

        1. इतिहास – बाइबल की बातों और लोगों से संबंधित इतिहास; जैसे कि उत्पत्ति की पुस्तक के आरंभ में सृष्टि का इतिहास है। शमूएल, राजाओं, इतिहास की पुस्तकों में इस्राएल के राजाओं और उनके कार्यों का इतिहास है। नए नियम में प्रेरितों के काम में प्रथम मँडली के बनाए जाने और संसार भर में फैलने का इतिहास है।

        2. व्यवस्था या नियम – परमेश्वर द्वारा अपने लोगों के मार्गदर्शन और पालन के लिए दिए गए नियम, पर्व, विधि-विधान आदि जो पुराने नियम की पहली पाँच पुस्तकों में दिए गए हैं।

        3. जीवनियाँ – बाइबल के मुख्य पात्रों के जीवनों और कार्यों का वर्णन विभिन्न पुस्तकों में दिया गया है। प्रभु यीशु मसीह के जन्म, जीवन, कार्य, शिक्षा, मृत्यु, पुनरुत्थान, और स्वर्गारोहण नए नियम की पहली चार पुस्तकों में दिया गया है।  

        4. भविष्यवाणियाँ – सम्पूर्ण बाइबल में आरंभ से लेकर अंत तक, स्थान-स्थान पर परमेश्वर के कार्यों और उसके लोगों से संबंधित अनेकों भविष्यवाणियाँ दी गई हैं। उत्पत्ति की पुस्तक में ही, मनुष्य के पाप में गिरने के साथ ही, पाप के समाधान और निवारण के मार्ग की भविष्यवाणी परमेश्वर ने दे दी थी। नए नियम की अंतिम पुस्तक का अंत परमेश्वर के लोगों का अनन्तकाल तक परमेश्वर के साथ परम-आनंद में रहने की भविष्यवाणी के साथ होता है।

          प्रभु यीशु मसीह के जन्म, जीवन, कार्य, मृत्यु, पुनरुत्थान आदि की सभी बातों की भविष्यवाणियाँ पुराने नियम में प्रभु से हजारों से लेकर सैकड़ों वर्ष पहले लिखी गई थीं, और वे सभी सटीक पूरी हुई हैं। आज तक कभी भी कोई भी बाइबल की भविष्यवाणियों को गलत अथवा झूठी प्रमाणित नहीं कर सका है। परमेश्वर ने जो कहा है, वो हुआ है, और जैसा कहा है, वैसा ही हुआ है, चाहे लिखे जाने के समय, या पूरा होने से पहले, पढ़ने और सुनने में वह असंभव ही क्यों न लगता हो।

          पुराने नियम की पुस्तकों में कुछ विशिष्ट भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकें हैं, जो उनके लेखकों के नाम से जानी जाती हैं; जैसे कि यशायाह, यिर्मयाह, यहेजकेल, दानिय्येल, होशे, मलाकी, आदि। इन पुस्तकों में परमेश्वर ने अपने नबियों के द्वारा अपने लोगों को उनके पापों, परमेश्वर से भटक जाने, सांसारिकता में फँस जाने आदि के बारे में बताया, चेतावनियाँ दीं, और अनाज्ञाकारिता के परिणामों की चेतावनियाँ दीं, जो अपने समय पर पूरी भी हुईं; साथ ही भविष्य में होने वाली बातों के बारे में भी बताया, जो अपने समयानुसार पूरी भी हुईं, हो रही हैं, और जगत के अंत के समय पूरी होंगी। कुछ पुस्तकें, जैसे कि योना, नहूम, ओबद्याह नबियों की पुस्तकें, गैर-यहूदियों, या अन्यजातियों के विषय परमेश्वर की चेतावनियाँ और भविष्यवाणियाँ हैं।  

        5. शिक्षाएं – मनुष्य के पापों से पश्चाताप करने और उद्धार पाने, फिर परमेश्वर की इच्छानुसार जीवन बिताने, परमेश्वर के बारे में सीखने, परमेश्वर को क्या पसंद है और किस से वह अप्रसन्न होता है, अपने लोगों से वह क्या चाहता है, उन्हें अपने आप को उसके स्वर्गीय राज्य के लिए किस प्रकार तैयार करना और रखना है, आदि सभी बातें बाइबल की सभी पुस्तकों में विभिन्न संदर्भों, उदाहरणों, पात्रों के जीवनों और कार्यों, नैतिक शिक्षाओं, आदि के द्वारा दी गई हैं।  

 

          बाइबल की पुस्तकों की सामग्री सामान्य लेखों, कविताओं, परमेश्वर की स्तुति और आराधना के भजनों, नैतिक शिक्षाओं के लघु कथनों आदि के रूप में है। आज हम बाइबल की पुस्तकों को अध्यायों और पदों या आयतों में विभाजित देखते हैं। उनके मूल स्वरूप और लेखों में अध्यायों और पदों का यह विभाजन नहीं था। इसीलिए नए नियम में जहाँ पर भी पुराने नियम की पुस्तकों को उद्धत किया गया है, उनके हवाले से कोई बात कही गई है, तो हम कभी भी पुस्तक के लेखक के नाम के अतिरिक्त किसी अध्याय या पद की संख्या को नहीं पाते हैं। आज हम जो बाइबल की पुस्तकों का अध्यायों और पदों में विभाजन देखते हैं, वह किसी भी वाक्य अथवा कथन तक सरलता से पहुँचने, या उसे दूसरों को बताने के लिए सरल करने के उद्देश्य से किया गया था। आज जिस विभाजन को सामान्यतः स्वीकार किया और जिसका पालन किया जाता है, वह इंग्लैंड में कैन्टरबरी के आरचबिशप स्टीफन लैंगटन की विभाजन पद्धति के अनुसार है। बिशप लैंगटन ने यह पद्धति 1227 ईस्वी में दी, और 1382 ईस्वी में प्रकाशित वाइकलिफ़ अंग्रेजी बाइबल इसे प्रयोग करने वाली पहली बाइबल थी। इस पद्धति के अंतर्गत जब बाइबल की किसी भी पुस्तक का कोई हवाला देना होता है तो पहले पुस्तक का नाम, फिर अध्याय और फिर वह पद लिखा जाता है जहाँ पर वह बात है। उदाहरण के लिए, यूहन्ना 3:16 से तात्पर्य है यूहन्ना की पुस्तक, उसका तीसरा अध्याय और उसका 16वां पद। यदि कोई लंबा खंड बताना होता है तो उस खंड के आरंभिक और अंतिम पदों को लिखा जाता है;  यूहन्ना 3:16 – 4:6 का अर्थ है यूहन्ना 3 अध्याय के 16वें पद से लेकर 4 अध्याय के 6 पद तक का खंड विचार या प्रयोग के लिए है।

 

बाइबल पाठ:

भजन 119:160 तेरा सारा वचन सत्य ही है; और तेरा एक एक धर्ममय नियम सदा काल तक अटल है।

नीतिवचन 30:5 – ईश्वर का एक एक वचन ताया हुआ है; वह अपने शरणागतों की ढाल ठहरा है।

 

एक साल में बाइबल: 

  • भजन 63-65
  • रोमियों 6

सोमवार, 2 अगस्त 2021

परमेश्वर का वचन – बाइबल – रूपरेखा – 1

 

          शब्द बाइबल यूनानी भाषा के शब्द ‘ता बिबलिआ’ (ta biblia) से आया है। बिबलिआ शब्द का अर्थ होता है “पुस्तकें”। बाइबल अपने मूल स्वरूप में 66 पुस्तकों का संकलन है। ये 66 पुस्तकें, अलग-अलग समयों में, अलग-अलग लेखकों द्वारा, भिन्न स्थानों, भिन्न भाषाओं, और भिन्न परिस्थितियों में लिखी गईं; किन्तु संकलित हो जाने के बाद, ये अब आरंभ से लेकर अंत तक एक पुस्तक हैं। बाइबल की पुस्तकों को मुख्यतः दो भागों में रखा गया है – पुराना नियम (39 पुस्तकें) तथा नया नियम (27 पुस्तकें)। पुराने नियम का आरंभ उत्पत्ति की पुस्तक से, परमेश्वर द्वारा जगत की सृष्टि, मनुष्य की सृष्टि, मनुष्य के पाप में गिरने के वर्णन, और मनुष्यों को पाप से छुड़ाने के लिए आने वाले उद्धारकर्ता की प्रतिज्ञा के साथ होता है। और नए नियम की अंतिम पुस्तक, प्रकाशितवाक्य, जगत के अंत और समस्त संसार के न्याय की भविष्यवाणी की पुस्तक है, जो संसार के सभी लोगों के द्वारा परमेश्वर को अपने जीवनों का हिसाब देने, और उनका दंड अथवा प्रतिफल पाने, पाप तथा मृत्यु से मुक्त नई सृष्टि और परमेश्वर के अनन्तकालीन राज्य के बारे में बताती है। इस प्रकार, बाइबल वर्तमान जगत के आरंभ से लेकर इस जगत के अंत तक का विवरण देती है; और फिर परमेश्वर के साथ अनन्त काल के आरंभ की प्रतिज्ञा तथा उस अनन्त काल की एक झलक के साथ समाप्त होती है।

          पुराना नियम प्रभु यीशु मसीह के जन्म से पहले लिखी गई 39 पुस्तकों का, जो परमेश्वर द्वारा यहूदियों को दिया गया परमेश्वर का वचन भी हैं, संकलन है। सम्पूर्ण पुराने नियम के सभी वृतांतों का मूल विषय, जगत का आने वाले उद्धारकर्ता, प्रभु यीशु मसीह है। पुराने नियम की सभी पुस्तकें प्रभु यीशु मसीह के बारे में आलंकारिक अथवा सांकेतिक रीति से, या भविष्यवाणियों के द्वारा बताती हैं। इन पुस्तकों में प्रभु यीशु मसीह की विभिन्न बातों को, उन से संबंधित भविष्यवाणियों को, उनके गुणों, उनके कार्यों, सारे जगत के सभी लोगों के उद्धार के लिए उनके बलिदान और मृतकों में से पुनरुत्थान को, पहले से ही बता कर लिख दिया गया है: “तब मैं ने कहा, देख, मैं आ गया हूं, (पवित्र शास्त्र में मेरे विषय में लिखा हुआ है) ताकि हे परमेश्वर तेरी इच्छा पूरी करूं” (इब्रानियों 10:7)।

          इसीलिए प्रभु यीशु मसीह ने उनके मारे जाने, गाड़े जाने और फिर मृतकों में से जी उठने के बाद की घटनाओं के कारण असमंजस और अविश्वास में डांवांडोल हो रहे अपने शिष्यों से कहा, “तब उसने उन से कहा; हे निर्बुद्धियों, और भविष्यद्वक्ताओं की सब बातों पर विश्वास करने में मन्‍दमतियों! क्या अवश्य न था, कि मसीह ये दुख उठा कर अपनी महिमा में प्रवेश करे? तब उसने मूसा से और सब भविष्यद्वक्ताओं से आरम्भ कर के सारे पवित्र शास्त्रों में से, अपने विषय में की बातों का अर्थ, उन्हें समझा दिया” (लूका 24:25-27); तथा “फिर उसने उन से कहा, ये मेरी वे बातें हैं, जो मैं ने तुम्हारे साथ रहते हुए, तुम से कही थीं, कि अवश्य है, कि जितनी बातें मूसा की व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं और भजनों की पुस्तकों में, मेरे विषय में लिखी हैं, सब पूरी हों। तब उसने पवित्र शास्त्र बूझने के लिये उन की समझ खोल दी। और उन से कहा, यों लिखा है; कि मसीह दु:ख उठाएगा, और तीसरे दिन मरे हुओं में से जी उठेगा। और यरूशलेम से ले कर सब जातियों में मन फिराव का और पापों की क्षमा का प्रचार, उसी के नाम से किया जाएगा” (लूका 24:44-47)।

          नया नियम प्रभु यीशु मसीह के जन्म के वर्णन के साथ आरंभ होता है। नए नियम की आरंभिक 4 पुस्तकें प्रभु यीशु मसीह की जीवनी हैं, और अंतिम पुस्तक इस वर्तमान जगत के अंत और न्याय की भविष्यवाणी की पुस्तक, प्रकाशितवाक्य है। इनके मध्य प्रभु यीशु मसीह के अनुयायियों की मंडली बनने, संसार भर में फैलाने, और उससे संबंधित मसीही विश्वास की शिक्षाएं हैं।

          पुराने नियम की अंतिम पुस्तक “मलाकी” है; और नए नियम की प्रथम पुस्तक “मत्ती रचित सुसमाचार” है। मलाकी और मत्ती के मध्य 400 वर्ष का अंतराल है जिसमें परमेश्वर ने कोई प्रकाशन नहीं दिया, कोई बात नहीं लिखवाई। अर्थात, प्रभु यीशु मसीह से संबंधित पुराने नियम की हर शिक्षा और भविष्यवाणी, उनके जन्म से भी कम से कम 400 वर्ष या उससे अधिक पहले की है!

 

 

          प्रार्थना करें कि परमेश्वर अपने अद्भुत वचन के लिए आपके मन को तैयार करे, और आप पर अपने वचन को प्रकट करे।

 

बाइबल पाठ: भजन 1

भजन 1:1 क्या ही धन्य है वह पुरुष जो दुष्टों की युक्ति पर नहीं चलता, और न पापियों के मार्ग में खड़ा होता; और न ठट्ठा करने वालों की मण्डली में बैठता है!

भजन 1:2 परन्तु वह तो यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्न रहता; और उसकी व्यवस्था पर रात दिन ध्यान करता रहता है।

भजन 1:3 वह उस वृक्ष के समान है, जो बहती नालियों के किनारे लगाया गया है। और अपनी ऋतु में फलता है, और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। इसलिये जो कुछ वह पुरुष करे वह सफल होता है।

भजन 1:4 दुष्ट लोग ऐसे नहीं होते, वे उस भूसी के समान होते हैं, जो पवन से उड़ाई जाती है।

भजन 1:5 इस कारण दुष्ट लोग अदालत में स्थिर न रह सकेंगे, और न पापी धर्मियों की मण्डली में ठहरेंगे;

भजन 1:6 क्योंकि यहोवा धर्मियों का मार्ग जानता है, परन्तु दुष्टों का मार्ग नाश हो जाएगा।

 

एक साल में बाइबल: 

  • भजन 60-62
  • रोमियों 5

रविवार, 1 अगस्त 2021

परमेश्वर का वचन – बाइबल – परिचय

 

          सामान्यतः बाइबल को ईसाइयों का धर्म-ग्रन्थ; पश्चिमी सभ्यता से आई हुई पुस्तक समझा जाता है, जो लोगों को पश्चिमी सभ्यता तथा व्यवहार में ले जाती है; और यह मिथ्या आरोप लगा कर व्यर्थ में बाइबल का तथा बाइबल को मानने वालों का विरोध किया जाता है। लेकिन वास्तव में बाइबल किसी धर्म-विशेष अथवा सभ्यता विशेष की पुस्तक नहीं है; और न ही किसी सांसारिक सभ्यता का अनुसरण करने की शिक्षा देती है। बाइबल सृष्टि के सृष्टिकर्ता, इस संसार के प्रत्येक व्यक्ति के रचयिता, इस संपूर्ण जगत के सृजनहार, पालनहार, तारणहार परमेश्वर द्वारा संपूर्ण मानवजाति से उसके असीम, अपरिवर्तनीय, निःस्वार्थ, पवित्र प्रेम की लिखित अभिव्यक्ति है।

          बाइबल में परमेश्वर ने अपने आप को, अपने गुणों, अपने चरित्र, अपनी पसंद-नापसन्द को, और समस्त मानवजाति से जो अद्भुत, अवर्णनीय प्रेम परमेश्वर ने रखा है, उसे व्यक्त किया है। यह ऐसा विलक्षण प्रेम है जो परमेश्वर ने मनुष्यों से उनके पाप के दशा में होते हुए भी किया है। बाइबल ही वह एकमात्र ग्रन्थ है जो परमेश्वर के विषय यह बताता है कि वह पापियों से भी प्रेम करता है, उनका नाश नहीं चाहता, वरन उसकी यही लालसा है कि वे अपने पापों से पश्चाताप के साथ उसकी ओर फिरें, और वह उन्हें क्षमा करके अपने साथ अनन्तकाल के लिए अपनी संतान बनाकर जोड़ ले। यह इसलिए संभव है क्योंकि प्रभु यीशु मसीह ने संसार के सभी मनुष्यों के सभी पापों को अपने ऊपर ले लिया, और उनके दण्ड को, क्रूस की मृत्यु को, सभी मनुष्यों के लिए सह लिया। अब, प्रभु यीशु मसीह में सभी मनुष्यों के सभी पापों का दण्ड चुकाया जा चुका है, और किसी भी मनुष्य को अपने पापों की क्षमा को प्राप्त करने के लिए प्रभु यीशु मसीह के इस बलिदान के कार्य को स्वीकार करने के अतिरिक्त और कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है।

          केवल बाइबल का परमेश्वर ही वह परमेश्वर है जो मनुष्यों के प्रति अपने प्रेम के कारण स्वर्ग छोड़कर, एक साधारण मनुष्य की समानता में देहधारी होकर प्रभु यीशु मसीह के नाम से पृथ्वी पर आया, जिससे कि मनुष्यों के लिए स्वर्ग जाने का मार्ग तैयार करके उन्हें दे। ऐसा मार्ग जिस मार्ग पर चलने के लिए संसार के किसी भी मनुष्य को परमेश्वर प्रभु यीशु पर और उसके क्रूस पर दिए गए बलिदान के कार्य पर विश्वास करने, स्वेच्छा से अपना जीवन उसे समर्पित करके उसका अनुसरण करना स्वीकार कर लेने के अतिरिक्त और कुछ भी करने की कोई आवश्यकता नहीं है। मनुष्य को परमेश्वर का यह प्रेम, मनुष्य के प्रति परमेश्वर के अनुग्रह से उसे मिलता है; न कि मनुष्य के किसी भी कर्म अथवा उसकी अपनी किसी भी ‘धार्मिकता के आधार पर। परमेश्वर का यह प्रेम संसार के प्रत्येक व्यक्ति को, परमेश्वर की ओर से सेंत-मेंत उपलब्ध है। परमेश्वर के इस प्रावधान को स्वीकार अथवा अस्वीकार करना, यह प्रत्येक मनुष्य का अपना व्यक्तिगत निर्णय है।

          बाइबल मनुष्यों को पृथ्वी पर की वस्तुओं, संपत्ति, स्थान, वैभव, राज्य या ओहदा प्राप्त करने के लिए नहीं, स्वर्ग में परमेश्वर के साथ निवास करने के लिए तैयार करती है। बाइबल का दृष्टिकोण इस पृथ्वी का नहीं, वरन स्वर्ग का है। बाइबल बारंबार यही सिखाती है कि मनुष्य का यह शरीर और पृथ्वी का समय तथा संपदा अस्थाई हैं, यहीं नाश हो जाएँगी। जो स्थाई और चिरस्थाई है, वह मृत्योपरांत है – स्वर्ग या नरक; जिन में से एक स्थान पर जाने के लिए मनुष्य को अभी यहाँ पृथ्वी पर रहते हुए व्यक्तिगत निर्णय लेना है और उसके अनुसार तैयार होना है। जो पापों के लिए पश्चाताप करके, प्रभु यीशु से पापों की क्षमा प्राप्त करके प्रभु के साथ रहने का निर्णय लेते हैं, वे अपने इस निर्णय लेने के समय से आरम्भ कर के मृत्योपरांत अनन्तकाल तक प्रभु यीशु के साथ स्वर्ग में रहेंगे। जो प्रभु यीशु के इस प्रेम-प्रस्ताव को अस्वीकार कर देते हैं, प्रभु के साथ नहीं रहना चाहते हैं, वे परलोक में अपना अनन्तकाल व्यतीत करने के लिए उनके द्वारा लिए गए व्यक्तिगत निर्णय के अनुसार, मृत्योपरांत उस स्थान पर जाएंगे जहाँ परमेश्वर प्रभु यीशु मसीह नहीं है – नरक में।

          बाइबल में परमेश्वर ने मनुष्यों को परस्पर व्यवहार करने, और परमेश्वर के प्रति व्यवहार रखने के बारे में बताया गया है। बाइबल सिखाती है कि मनुष्य पाप के स्वभाव के साथ जन्म लेता है, पाप के स्वभाव के साथ ही पलता और बड़ा होता है, व्यवहार करता है, और पाप कमाता रहता है; और अन्ततः पापों के साथ ही मर जाता है, और उसका यही पाप स्वभाव उसे इस पृथ्वी पर परमेश्वर प्रभु यीशु से दूर रखता है। उसके पाप उसके साथ परलोक में जाते हैं, और उसे अनन्त पीड़ा के स्थान नरक में ले जाते हैं। किन्तु प्रभु यीशु मसीह पर लाया गया विश्वास और पापों से पश्चाताप उसके इस पाप स्वभाव, तथा पापों के दण्ड को हटाकर, प्रभु यीशु के स्वभाव को उसमें डाल देता है, और पापों की क्षमा पाया हुआ वह पापी मनुष्य अंश-अंश करके प्रभु यीशु की समानता में ढलने लगता है, प्रभु यीशु के व्यवहार, चरित्र, गुणों आदि को अपनाने लगता है, प्रभु यीशु की समानता में आने लग जाता है।

          बाइबल की शिक्षा के अनुसार, प्रभु यीशु में स्वेच्छा तथा सच्चे समर्पण से लाया गया यह विश्वास मनुष्य के धर्म को नहीं वरन उसके मन को, उसकी पाप करने की प्रवृत्ति को, उसके जीवन को बदलता है। उसे किसी सांसारिक सभ्यता अथवा संस्कृति विशेष का नहीं वरन स्वर्गीय दृष्टिकोण तथा व्यवहार रखने वाला, परमेश्वर की संतान बना देता है। प्रभु यीशु के एक अनुयायी ने कहा है: “या तो पाप आपको बाइबल से दूर रखेगा; अन्यथा, बाइबल आपको पाप से दूर रखेगी।”

 

 

          परमेश्वर से सच्चे मन से प्रार्थना करें कि वह अपने वचन बाइबल के प्रति आपके मन और समझ को खोले; और इस पापों की क्षमा का मार्ग दिखाने वाले, जीवन बदलने वाले, अनन्त जीवन देने वाले, परमेश्वर की संतान बनाकर स्वर्ग का उत्तराधिकारी बना देने वाले अद्भुत वचन, बाइबल, के अध्ययन की यात्रा में आपको आगे बढ़ाए।

 

बाइबल पाठ: यूहन्ना 1:1-4

यूहन्ना 1:1 आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था।

यूहन्ना 1:2 यही आदि में परमेश्वर के साथ था।

यूहन्ना 1:3 सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उस में से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न न हुई।

यूहन्ना 1:4 उस में जीवन था; और वह जीवन मनुष्यों की ज्योति थी।


एक साल में बाइबल: 

  • भजन 57-59
  • रोमियों 4


शनिवार, 31 जुलाई 2021

सूचना - ब्लॉग के लेखों में परिवर्तन

 रोज़ की रोटी ब्लॉग के सन्देश 1 अगस्त 2021 से एक बदले हुए स्वरूप में होंगे। अब अंग्रेज़ी की दैनिक मनन के संदेशों की पुस्तिका Our Daily Bread के संदेशों के अनुवाद के स्थान पर, इसी ब्लॉग के लिए लिखे गए सन्देश पोस्ट किए जाएँगे।

           जो पाठक Our Daily Bread के संदेशों को हिन्दी में पढ़ते रहना चाहते हैं, वे इस लिंक के माध्यम से ऐसा कर सकते हैं: प्रतिदिन की रोटी (www.hindi-odb.org )

अंग्रेज़ी में मुख्य वेब साईट का लिंक है: Our Daily Bread (www.ourdailybread.org)

 

          1 अगस्त से इसी ब्लॉग के अंतर्गत की एक नई श्रृंखला आरंभ होगी, जिसका विषय होगा “परमेश्वर का वचन – बाइबल”

          इस नई श्रंखला में हम: 

  • बाइबल क्या है? 
  • मसीही विश्वासी इसे परमेश्वर का वचन क्यों कहते हैं
  • इसकी शिक्षाएँ क्या हैं? 
  • इसे कैसे समझा जा सकता है
  • क्या यह आज के समय के लिए समकालिक है? 
  • क्या बाइबल विज्ञान की कसौटी पर खरी उतरती है? 
  • बाइबल का लोगों के जीवन पर क्या प्रभाव होता है? 

    आदि, और भी कई प्रश्नों के उत्तरों को छोटे लेखों के द्वारा पाठकों के सामने प्रस्तुत किया जाएगा जिससे पाठक स्वयं देख और जान लें कि बाइबल की वास्तविकता क्या है; और इसे बदनाम करने के लिए इसके बारे में कितनी झूठी धारणाएँ गढ़ी और फैलाई गई हैं।

 

          पाठकों से निवेदन है कि 1 अगस्त से किए जाने वाले इस परिवर्तन के विषय अपनी राय और टिप्पणियाँ दें।

 

          धन्यवाद


शुक्रवार, 30 जुलाई 2021

सूचना - ब्लॉग के लेखों में परिवर्तन

  रोज़ की रोटी ब्लॉग के सन्देश 1 अगस्त 2021 से एक बदले हुए स्वरूप में होंगे। अब अंग्रेज़ी की दैनिक मनन के संदेशों की पुस्तिका Our Daily Bread के संदेशों के अनुवाद के स्थान पर, इसी ब्लॉग के लिए लिखे गए सन्देश पोस्ट किए जाएँगे।

           जो पाठक Our Daily Bread के संदेशों को हिन्दी में पढ़ते रहना चाहते हैं, वे इस लिंक के माध्यम से ऐसा कर सकते हैं: प्रतिदिन की रोटी (www.hindi-odb.org )

अंग्रेज़ी में मुख्य वेब साईट का लिंक है: Our Daily Bread (www.ourdailybread.org)


          1 अगस्त से इसी ब्लॉग के अंतर्गत की एक नई श्रृंखला आरंभ होगी, जिसका विषय होगा “परमेश्वर का वचन – बाइबल”

          इस नई श्रंखला में हम: 

  • बाइबल क्या है? 
  • मसीही विश्वासी इसे परमेश्वर का वचन क्यों कहते हैं
  • इसकी शिक्षाएँ क्या हैं? 
  • इसे कैसे समझा जा सकता है? 
  • क्या यह आज के समय के लिए समकालिक है? 
  • क्या बाइबल विज्ञान की कसौटी पर खरी उतरती है? 
  • बाइबल का लोगों के जीवन पर क्या प्रभाव होता है? 
    आदि, और भी कई प्रश्नों के उत्तरों को छोटे लेखों के द्वारा पाठकों के सामने प्रस्तुत किया जाएगा जिससे पाठक स्वयं देख और जान लें कि बाइबल की वास्तविकता क्या है; और इसे बदनाम करने के लिए इसके बारे में कितनी झूठी धारणाएँ गढ़ी और फैलाई गई हैं।

 

          पाठकों से निवेदन है कि 1 अगस्त से किए जाने वाले इस परिवर्तन के विषय अपनी राय और टिप्पणियाँ दें।

 

          धन्यवाद

गुरुवार, 29 जुलाई 2021

सूचना - ब्लॉग के लेखों में परिवर्तन

 रोज़ की रोटी ब्लॉग के सन्देश 1 अगस्त 2021 से एक बदले हुए स्वरूप में होंगे। अब अंग्रेज़ी की दैनिक मनन के संदेशों की पुस्तिका Our Daily Bread के संदेशों के अनुवाद के स्थान पर, इसी ब्लॉग के लिए लिखे गए सन्देश पोस्ट किए जाएँगे।

           जो पाठक Our Daily Bread के संदेशों को हिन्दी में पढ़ते रहना चाहते हैं, वे इस लिंक के माध्यम से ऐसा कर सकते हैं: प्रतिदिन की रोटी (www.hindi-odb.org )

अंग्रेज़ी में मुख्य वेब साईट का लिंक है: Our Daily Bread (www.ourdailybread.org)


          1 अगस्त से इसी ब्लॉग के अंतर्गत की एक नई श्रृंखला आरंभ होगी, जिसका विषय होगा “परमेश्वर का वचन – बाइबल”

          इस नई श्रंखला में हम: 

  • बाइबल क्या है? 
  • मसीही विश्वासी इसे परमेश्वर का वचन क्यों कहते हैं
  • इसकी शिक्षाएँ क्या हैं? 
  • इसे कैसे समझा जा सकता है? 
  • क्या यह आज के समय के लिए समकालिक है? 
  • क्या बाइबल विज्ञान की कसौटी पर खरी उतरती है? 
  • बाइबल का लोगों के जीवन पर क्या प्रभाव होता है? 
    आदि, और भी कई प्रश्नों के उत्तरों को छोटे लेखों के द्वारा पाठकों के सामने प्रस्तुत किया जाएगा जिससे पाठक स्वयं देख और जान लें कि बाइबल की वास्तविकता क्या है; और इसे बदनाम करने के लिए इसके बारे में कितनी झूठी धारणाएँ गढ़ी और फैलाई गई हैं।

 

          पाठकों से निवेदन है कि 1 अगस्त से किए जाने वाले इस परिवर्तन के विषय अपनी राय और टिप्पणियाँ दें।

 

          धन्यवाद