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मंगलवार, 22 फ़रवरी 2022

कलीसिया में अपरिपक्वता के दुष्प्रभाव (10)


भ्रामक शिक्षाओं के स्वरूप - पवित्र आत्मा के विषय गलत शिक्षाएं (2) - पवित्र आत्मा से भरना

 

पिछले कुछ लेखों से हम इफिसियों 4:14 में दी गई बातों में से, बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों और कलीसियाओं को प्रभावित करने वाले तीसरे दुष्प्रभाव, भ्रामक या गलत उपदेशों के बारे में देखते आ रहे हैं। इन गलत या भ्रामक शिक्षाओं के मुख्य स्वरूपों के बारे में परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है कि इन भ्रामक शिक्षाओं के, गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन स्वरूप होते हैं, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”, जिन्हें शैतान और उसके लोग प्रभु यीशु के झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं। सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए इन तीनों स्वरूपों के साथ इस पद में एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है। इस पद में लिखा है कि शैतान की युक्तियों के तीनों विषयों, प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार के बारे में जो यथार्थ और सत्य है वह वचन में पहले से ही बता दिया गया है। 

इन तीनों प्रकार की गलत शिक्षाओं में से इस पद में सबसे पहली है कि शैतान और उस के जन, प्रभु यीशु के विषय ऐसी शिक्षाएं देते हैं जो वचन में नहीं दी गई हैं, और इसके बारे में हम पहले दो लेखों में विस्तार से देख चुके हैं। दूसरी बात जिसके बारे में भ्रामक शिक्षा और गलत बातें सिखाई, फैलाई जाती हैं, वह है परमेश्वर पवित्र आत्मा के विषय।कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था”, गलत शिक्षा के पहले विषय के समान ही, इस दूसरी के लिए भी यहाँ यही लिखा गया है, “जो पहिले न मिला था” - अर्थात, जो भी गलत शिक्षाएं और बातें होंगी, वे उन शिक्षाओं और बातों के अतिरिक्त होंगी जो परमेश्वर के वचन में पहले से लिखवा दी गई हैं, और जिनके आधार पर उन शिक्षाओं को परखा, जाँचा, और उनकी सत्यता को स्थापित किया जा सकता है। 

पिछले लेख से हमने परमेश्वर पवित्र आत्मा के संबंध में बताई और फैलाई जाने वाली कुछ सामान्य गलत शिक्षाओं के विषय देना आरंभ किया, और यह सीखा था कि मसीही विश्वासी के उद्धार पाते ही, उसी क्षण से, पवित्र आत्मा आकर मसीही विश्वासियों में निवास करने लग जाता है। किसी को भी पवित्र आत्मा पाने के लिए अलग से कोई प्रयास करने, या प्रतीक्षा करने, या प्रार्थनाएं करने की को आवश्यकता नहीं है। परमेश्वर पवित्र आत्मा प्रत्येक सच्चे, नया जन्म अर्थात उद्धार पाए हुए विश्वासी में, उसके उद्धार पाने के पल से ही विद्यमान है। परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित गलत शिक्षाएं देने वाले ये लोग सिखाते हैं कि पवित्र आत्मा प्राप्त करना एक बात है, किन्तु प्रभावी मसीही जीवन और सेवकाई के लिए एक दूसरे अनुभव - पवित्र आत्मा से भरने, और पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाने की आवश्यकता होती है, और जिसे पवित्र आत्मा प्राप्त होता है वह फिर अन्य-भाषाएं बोलने लगता है, जो कि पवित्र आत्मा प्राप्त हो जाने का प्रमाण है। उनकी ये शिक्षाएं भी वचन के कुछ भाग को उसके संदर्भ से बाहर लेकर, अन्य संबंधित बातों का ध्यान रखे बिना, अपनी ही धारणा बना लेने के कारण हैं। आज हम उनके द्वारा दी जाने वाली पवित्र आत्मा से भरना की व्याख्या और शिक्षा के गलत होने बारे में देखेंगे, और वचन से इस बात के सही अर्थ को समझेंगे।

पवित्र आत्मा से भर जाने का पहला उल्लेख प्रभु यीशु के शिष्यों के द्वारा पिन्तेकुस्त के दिन पवित्र आत्मा प्राप्त करने के साथ किया गया है। प्रेरितों के काम 2:4 में लिखा है,“और वे सब पवित्र आत्मा से भर गए, और जिस प्रकार आत्मा ने उन्हें बोलने की सामर्थ्य दी, वे अन्य अन्य भाषा बोलने लगेध्यान कीजिए, इस पहले ही उल्लेख में यह नहीं लिखा है कि उन्होंने पवित्र आत्मा प्राप्त किया; वरन इस पद 4 का आरंभिक वाक्य कहता है किऔर वे सब पवित्र आत्मा से भर गए। यह भी नहीं लिखा है कि उन सभी ने पवित्र आत्मा की थोड़ी-थोड़ी सामर्थ्य प्राप्त कर ली; वरन यह के वे सभी पवित्र आत्मा से भर गए। अर्थात, पवित्र आत्मा जब आया, तब सभी एकत्रित शिष्यों पर, वे चाहे जो भी हों और अपने चाहे विश्वास में कितने भी दृढ़ अथवा दुर्बल थे, एक ही रीति से, एक जैसा ही, तथा अपनी परिपूर्णता के साथ आया। किसी पर कम किसी पर ज़्यादा नहीं आया, और उस स्थान पर उपस्थित सभी जन (प्रेरितों 1:15 - गिनती में लगभग 120) पवित्र आत्मा से भर गए। यहाँ पर वचन यह स्पष्ट कर देता है कि पवित्र आत्मा का विश्वासी में आना और उस विश्वासी का पवित्र आत्मा से भर जाना एक ही बात है। बाइबल में पवित्र आत्मा से भरने के लिए किसी अतिरिक्त प्रार्थना, प्रतीक्षा, या प्रयास करने का न तो कोई उदाहरण है, और न ही कोई निर्देश अथवा शिक्षा है। इसे एक अलग या विशेष अनुभव बताना और सिखाना इन लोगों की अपनी मन-गढ़ंत बात है; वचन की शिक्षा नहीं है। पवित्र आत्मा परमेश्वर है, पवित्र त्रिएक परमेश्वर का एक व्यक्तित्व, उसे बांटा नहीं जाता है, वह टुकड़ों या किस्तों में नहीं मिलता है (यूहन्ना 3:34), न ही किसी व्यक्ति में उसे घटाया या बढ़ाया जा सकता है, और वह हर किसी सच्चे मसीही विश्वासी में मात्रा तथा गुणवत्ता में समान ही विद्यमान होता है।

सामान्य वार्तालाप एवं उपयोग में वाक्यांशभर जानेयापरिपूर्ण हो जानेके विभिन्न अभिप्राय होते हैं, और इस वाक्यांश के विषय ऐसा ही हम परमेश्वर के वचन बाइबल में भी देखते हैं। इन विभिन्न अभिप्रायों के कुछ उदाहरण हैं:

  • किसी रिक्त/खाली स्थान में समा जाना और उसे अपनी उपस्थिति सेभरदेना या परिपूर्ण अथवा ओतप्रोत कर देना। बाइबल में इस अभिप्राय का एक जाना-माना उदाहरण है मरियम द्वारा प्रभु के पाँवों पर इत्र उडेलना, जिसकी सुगंध से घर सुगंधित हो गया (अंग्रेज़ी में filled with the fragrance) अर्थात सुगंध से भर गया। बाइबल से इसी अभिप्राय का एक और परिचित उदाहरण है राजा के कहने पर सभी स्थानों से लोगों को लाकर ब्याह के भोज के लिए बैठाना जिससे ब्याह का घर जेवनहारों से भर गया” (मत्ती 22:10) 
  • किसी बात या भावना के वशीभूत होकर कुछ कार्य अथवा व्यवहार करना; जैसे कि 
    • लोगों का प्रभु या उसके शिष्यों के विरुद्ध क्रोध से भर जाना और हानि पहुँचाने का प्रयास करना (लूका 4:28-29; 6:11-english; प्रेरितों 5:17; 13:45)
    • आश्चर्यकर्म को देखकर अचरज और भय के वशीभूत हो जाना (लूका 5:26-english; प्रेरितों 3:10-english)
    • अत्यधिक आनंदित हो जाना (प्रेरितों 13:52)
  • पवित्र आत्मा को प्राप्त करना (प्रेरितों 9:17) - यहाँ एक बार फिर से पवित्र आत्मा प्राप्त करना और उससे परिपूर्ण हो जाने, या उस से भर जाने को एक ही समान बताया गया है।
  • पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से अभूतपूर्व कार्य करना (प्रेरितों 4:8, 31; 13:9-11)

जब सामान्य भाषा और प्रयोग में कहा जाए किउसने प्रेम से भर कर यह कर दिया”, याउसने क्रोध से भर कर ऐसा कर दिया”, यावह घृणा से भर गया”, आदि, तो क्या हम यह समझते हैं कि उस व्यक्ति ने कहीं से या किसी प्रकार प्रेम, या क्रोध, या घृणा की कुछ अधिक मात्रा प्राप्त की और फिर वह कार्य किया? या फिर हम सीधी भाषा में यह समझ लेते हैं कि किसी बात के कारण वह व्यक्ति, उस में पहले से ही विद्यमान प्रेम, या क्रोध, या घृणा, आदि, की भावना के वशीभूत हो गया और उस वशीभूत होने की स्थिति में उसने वह कार्य कर दिया, जो वह अन्यथा नहीं करता! यही बातपवित्र आत्मा से भरना, या भरकर कुछ कार्य करनापर भी लागू होती है। सामान्यतः बाइबल में वाक्यांशभर जानेयापरिपूर्ण हो जानेका अर्थ और प्रयोग किसी की सामर्थ्य अथवा उपस्थिति के वशीभूत होकर अथवा उससे प्रेरित होकर कुछ अद्भुत या अभूतपूर्व कर पाने के संदर्भ में होता है। अर्थात, पवित्र आत्मा से भर जाना से अभिप्राय है पवित्र आत्मा की सामर्थ्य, उसके नियंत्रण में होकर कार्य करना।

 प्रभु ने यूहन्ना 14:16 में कहाऔर मैं पिता से बिनती करूंगा, और वह तुम्हें एक और सहायक देगा, कि वह सर्वदा तुम्हारे साथ रहेतो अर्थ स्पष्ट है कि अब जब उद्धार के समय एक बार पवित्र आत्मा शिष्यों को दे दिया गया, और पवित्र आत्मा जब उनमें आ गया तो सर्वदा, उनके जीवन भर उनके साथ रहने के लिए आ गया। जब पवित्र आत्मा अपनी संपूर्णता में किसी व्यक्ति में आ गया तो फिर इसके बाद उससे अतिरिक्त, या अधिक, या दोबारा तो किसी को कभी मिल ही नहीं सकता है; परमेश्वर पवित्र आत्मा उस व्यक्ति में अपनी संपूर्णता में हमेशा वही, वैसा ही, और उतना ही रहेगा। तथाकथितपवित्र आत्मा का बपतिस्माया अलग सेपवित्र आत्मा से भरनाइससे अधिक और क्या दे सकता है? इसलिए अब तो बस उस व्यक्ति को अपने में विद्यमान पवित्र आत्मा की उपस्थिति को अपने आचरण द्वारा व्यक्त करते रहना है, अपने व्यवहारिक जीवन में पवित्र आत्मा के प्रभाव एवं नियंत्रण को दिखाते रहना है। इसलिए अब बार-बार पवित्र आत्मा मांगने या भरने की प्रार्थना करने और इससे संबंधित गीत गाने का क्या औचित्य हैअगले लेख में हम वचन सेपवित्र आत्मा का बपतिस्मापाने के बारे में देखेंगे।

यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना और समझना अति-आवश्यक है कि आप परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित इन गलत शिक्षाओं में न पड़ जाएं; न खुद भरमाए जाएं, और न ही आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए। यदि आप इन गलत शिक्षाओं में प चुके हैं, तो अभी वचन के अध्ययन और बात को जाँच-परख कर, सही शिक्षा को, उसी के पालन को अपना लें।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।  

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • गिनती 3-4         
  • मरकुस 3:20-35

सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

कलीसिया में अपरिपक्वता के दुष्प्रभाव (9)

 भ्रामक शिक्षाओं के स्वरूप - पवित्र आत्मा के विषय गलत शिक्षाएं (1)

पिछले कुछ लेखों से हम इफिसियों 4:14 में दी गई बातों में से, बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों और कलीसियाओं को प्रभावित करने वाले तीसरे दुष्प्रभाव, भ्रामक या गलत उपदेशों के बारे में देखते आ रहे हैं। इन गलत या भ्रामक शिक्षाओं के मुख्य स्वरूपों के बारे में परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है कि इन भ्रामक शिक्षाओं के, गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन स्वरूप होते हैं, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”, जिन्हें शैतान और उसके लोग प्रभु यीशु के झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं। सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए इन तीनों स्वरूपों के साथ इस पद में एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है। इस पद में लिखा है कि शैतान की युक्तियों के तीनों विषयों, प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार के बारे में जो यथार्थ और सत्य है वह वचन में पहले से ही बता दिया गया है। 

इन तीनों प्रकार की गलत शिक्षाओं में से इस पद में सबसे पहली है कि शैतान और उस के जन, प्रभु यीशु के विषय ऐसी शिक्षाएं देते हैं जो वचन में नहीं दी गई हैं, और इसके बारे में हम पिछले दो लेखों में विस्तार से देख चुके हैं। दूसरी बात जिसके बारे में भ्रामक शिक्षा और गलत बातें सिखाए, फैलाई जाती हैं, वह हैकोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था। गलत शिक्षा के पहले विषय के समान ही, इस दूसरी के लिए भी यहाँ यही लिखा गया है, “जो पहिले न मिला था” - अर्थात, जो भी गलत शिक्षाएं और बातें होंगी, वे उन शिक्षाओं और बातों के अतिरिक्त होंगी जो परमेश्वर के वचन में पहले से लिखवा दी गई हैं, और जिनके आधार पर उन शिक्षाओं को परखा, जाँचा, और उनकी सत्यता को स्थापित किया जा सकता है। 

यहाँ, इस पद और वाक्य में ध्यान कीजिए कि पवित्र आत्मा मिलने की बात भूत-काल (past tense) में की गई है - उन विश्वासियों को पवित्र आत्मा दिया जा चुका था; भविष्य में नहीं मिलना था। साथ ही झूठे शिक्षकों द्वारा जिस आत्मा को देने की बात की जा रही थी, उसेकोई और आत्माकहा गया है। जो आत्मा पवित्र आत्मा के अतिरिक्त कोई और आत्मा होगा, और व्यक्ति के अंदर आकर उसे प्रभावित एवं नियंत्रित करेगा, निःसंदेह वह परमेश्वर का, या फिर परमेश्वर से तो नहीं होगा। इसलिए यह कोई और आत्मा शैतान का दुष्ट आत्मा ही होगा, क्योंकि इन दोनों आत्माओं के अतिरिक्त तो तीसरी किसी श्रेणी का आत्मा हो ही नहीं सकता है। 

आज से हम परमेश्वर पवित्र आत्मा के संबंध में बताई और फैलाई जाने वाली कुछ सामान्य गलत शिक्षाओं के विषय देखेंगे। 

परमेश्वर पवित्र आत्मा प्रभु की ओर से सहायक के रूप में प्रत्येक मसीही विश्वासी को दिया गया है। किन्तु प्रभु की इस आशीष को ये गलत शिक्षा फैलाने वाले लोग मनुष्यों द्वारा नियंत्रित और निर्देशित करने का प्रयास करते हैं। परमेश्वर के वचन बाइबल की स्पष्ट शिक्षाओं के विरुद्ध, उनकी एक मुख्य गलत शिक्षा है कि मसीही विश्वासियों को पवित्र आत्मा उद्धार पाते ही नहीं मिलता है, वरन उसके लिए प्रतीक्षा, प्रार्थनाएं और प्रयास करने पड़ते हैं। और फिर ये झूठे प्रेरित और शिक्षक अपने उन प्रयासों, प्रार्थनाओं, विधियों को बताते हैं, जो उनके अनुसार पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए आवश्यक हैं, और बाइबल के हवालों को संदर्भ से बाहर दुरुपयोग करके, अपनी बात को सही ठहराने के प्रयास करते हैं। साथ ही पवित्र आत्मा पाने के लिए प्रतीक्षा करने के लिए वे प्रेरितों 1:4-8 का भी हवाला देते हैं, इस हवाले का संदर्भ के बाहर दुरुपयोग करते हैं। 

प्रेरितों 1:4-8 में प्रभु यीशु ने अपने स्वर्गारोहण से पहले शिष्यों को आज्ञा दी कि वे यरूशलेम को न छोड़ें, वरन वहीं बने रहकर परमेश्वर पिता द्वारा जो प्रतिज्ञा दी गई है, और जिसकी चर्चा प्रभु यीशु ने पहले उन से की है, उसकी प्रतीक्षा करते रहें – यह प्रतिज्ञा स्पष्ट शब्दों में इससे अगले पद, पद 5 में, तथा पद 8 में बताई गई है। पद 5 और 8 से यह स्पष्ट है कि प्रभु शिष्यों से जिस प्रतिज्ञा के पूरे होने की प्रतीक्षा करने को कह रहा था, वह शिष्यों के द्वारा पवित्र आत्मा प्राप्त करना था।

यहाँ दो बातों पर ध्यान देना आवश्यक है:

पहली बात, शिष्यों को सेवकाई पर निकलने से पहले, प्रतिज्ञा के पूरा होने तक प्रतीक्षा करनी थी, सेवकाई पर जाने के लिए परमेश्वर के सही समय का इंतजार करना था। किन्तु प्रभु ने उन्हें यह नहीं कहा कि उस प्रतीक्षा के समय के दौरान उन्हें कुछ विशेष करते रहने होगा जिसे करने के द्वारा ही फिर उन्हें पवित्र आत्मा दिया जाएगा; या उनके परमेश्वर से विशेष रीति से मांगने से, आग्रह करने या गिड़गिड़ाने से, अथवा कोई अन्य विशेष प्रयास करने के परिणामस्वरूप फिर परमेश्वर उन्हें पवित्र आत्मा देगा, जैसे कि आज बहुत से लोग और डिनॉमिनेशन सिखाते हैं, करने के लिए बल देते हैं, विशेष सभाएं रखते हैं। पवित्र आत्मा प्राप्त होने की प्रतिज्ञा का पूरा किया जाना परमेश्वर के द्वारा, उसके समय और उसके तरीके से होना था, न कि इन शिष्यों के किसी विशेष रीति से मांगने या कोई विशेष कार्य अथवा प्रयास करने से होना था।

बाइबल के गलत अर्थ निकालने और अनुचित शिक्षा देने का सबसे प्रमुख और सामान्य कारण है किसी बात या वाक्य को संदर्भ से बाहर लेकर, और उस से संबंधित किसी संक्षिप्त वाक्यांश के आधार पर, अपनी ही समझ के अनुसार एक सिद्धांत (doctrine) खड़ा कर लेना, उसे सिखाने लग जाना। प्रभु की कही इस बात के आधार पर भी ऐसे ही यह गलत शिक्षा दी जाती है कि पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए प्रतीक्षा करना और प्रयास करना आवश्यक है।

इस विषय पर यह ध्यान देने योग्य एक बहुत महत्वपूर्ण तथ्य है कि सम्पूर्ण नए नियम में फिर कहीं यह प्रतीक्षा करना न तो सिखाया गया है, और ना इस बात के लिए कभी किसी को कोई उलाहना दिया गया है कि उन्होंने प्रतीक्षा अथवा प्रयास क्यों नहीं किया। न ही किसी में विश्वास अथवा सामर्थ्य की कमी के लिए उससे कहा गया कि कुछ विशेष प्रयास अथवा प्रतीक्षा कर के वे पवित्र आत्मा को प्राप्त करें, और उससे प्रभु की सेवकाई के लिए सामर्थी बनें। वरन अन्य सभी स्थानों पर यही बताया और सिखाया गया है कि पवित्र आत्मा प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करते ही, तुरंत ही दे दिया जाता है।

·        प्रेरितों 10:44; 11:15, 17 – विश्वास करने के साथ ही

·        प्रेरितों 19:2 – विश्वास करते समय

·        इफिसियों 1:13-14 – विश्वास करते ही छाप लगी

·        गलातियों 3:2 – विश्वास के समाचार से

·        तीतुस 3:5 – नए जन्म का स्नान और पवित्र आत्मा द्वारा नया बनाया जाना, एक साथ ही और एक ही बात के लिए लिखे गए हैं। 

दूसरी बात, प्रभु उन्हें स्मरण दिला रहा है कि वह उन्हें पहले भी इसके बारे में न केवल बता  चुका है, वरन इसके विषय उनसे चर्चा भी कर चुका है, अर्थात विस्तार से उन्हें बता और समझा चुका है। उन शिष्यों के साथ, सेवकाई के दिनों में, प्रभु ने कई बार उन से पवित्र आत्मा प्राप्त करने की बात कही थी; किन्तु हर बार यह भविष्य काल में ही होने की बात थी; अर्थात प्रभु ने उन्हें यही सिखाया था पवित्र आत्मा उन्हें बाद में उचित समय पर दिया जाएगा। किन्तु अपनी बात को सही दिखाने के लिए ये गलत शिक्षाओं वाले लोग वचन के हवालों और वहाँ लिखी बात को अनुचित रीति से बताते हैं। इस बारे में उनके द्वारा सामान्यतः प्रयोग किए जाने वाले हवाले और उनसे संबंधित बातें हैं :

  • लूका 11:13 – इस पद का दुरुपयोग यह बताने के लिए किया जाता है कि प्रभु ने कहा है कि पवित्र आत्मा परमेश्वर से मांगने पर मिलता है। जबकि यदि इस पद को उसके संदर्भ (पद 11-13) में देखें, तो यह स्पष्ट है कि यह आलंकारिक भाषा का प्रयोग है, एक तुलनात्मक कथन है। प्रभु, किसी सांसारिक पिता के अपनी संतान की आवश्यकता के लिए उसे सर्वोत्तम देने की मनसा रखने की बात कर रहा है। जैसे सांसारिक पिता अपने बच्चों को यथासंभव उत्तम देता है, वैसे ही परमेश्वर भीअपनेलोगों को – जो उससे पवित्र आत्मा को मांगने का साहस और समझ रखते हैं; उसका प्रयोग करना जानते हैं, उन्हें अपना यथासंभव उत्तम, यहाँ तक कि अपना पवित्र आत्मा भी दे देगा। साथ ही, हर किसी मांगने वाले को पवित्र आत्मा देने के लिए परमेश्वर बाध्य नहीं है; मांगने वाले का मन भी इसके लिए ठीक होना चाहिए। प्रेरितों 8:18-23 में शमौन टोन्हा करने वाले को गलत मनसा रखते हुए पवित्र आत्मा मांगने से अच्छी डाँट-फटकार मिली, न कि पवित्र आत्मा; यद्यपि वह प्रभु में विश्वास करने का दावा करता था, उसने बपतिस्मा भी लिया था, और विश्वासियों की संगति में भी रहता था (प्रेरितों 8:13)
  • यूहन्ना 7:37-39 – “बह निकलेंगी”; “पाने पर थे” – भविष्य काल – और साथ ही शर्त भी कह दी गई है कि ऐसा उनके लिए होगाजो उस पर विश्वास करने वालेहोंगे – जैसा ऊपर देख चुके हैं, जो विश्वास करेगा, उसे विश्वास करते ही तुरंत ही उसे मिल जाएगा; जिसने सच्चा विश्वास नहीं किया (यह केवल प्रभु ही जानता है, कोई मनुष्य नहीं), उसे नहीं मिलेगा, वह चाहे कितनी भी प्रार्थनाएं, प्रतीक्षा, या प्रयास करता रहे। जिसने विश्वास किया, उसे फिर कुछ और करने की आवश्यकता नहीं है, और न ही करने के लिए कहा गया है।
  • यूहन्ना 14:16-17 – “देगा”, “होगा” – भविष्य काल – पिता देगा, और फिर वह सर्वदा साथ रहेगा – आएगा और जाएगा नहीं, जैसे पुराने नियम में था (ओत्निएल न्यायियों 3:9,10; गिदोन न्यायियों 6:34; यिप्ताह, शमसून, राजा शाऊल 1 शमूएल 10:6, 10; दाऊद 1 शमूएल 16:13)
  • यूहन्ना 16:7 – “आएगा” – भविष्य काल – भविष्य में आना था; उसी समय नहीं
  • यूहन्ना 20:22 – “लो” – अभी तक जो भविष्य की बात कही जा रही थी, अब उसका समय आ गया था, अब इस बात को पूरा होना था, एक प्रक्रिया के अंतर्गत प्राप्त करना था।  प्रभु ने यह अपने पुनरुत्थान के बाद शिष्यों से कहा – उन्हें पहले की प्रतिज्ञा स्मरण करवाई, और स्वर्गारोहण के समय उसकी प्रक्रिया भी बताई (लूका 24:49)। पवित्र आत्मा प्रभु की फूँक में नहीं था, और न ही कभी फूंकने के द्वारा किसी को दिया गया।

 

       पवित्र आत्मा से संबंधित कुछ अन्य गलत शिक्षाओं, जैसे के अन्य भाषाएँ बोलना, पवित्र आत्मा के उद्देश्य और कार्य, आदि को हम आगे के लेखों में देखेंगे। 

       यदि आप एक सच्चे मसीही विश्वासी हैं, पापों से पश्चाताप करने और प्रभु यीशु से उनकी क्षमा माँगने, अपना जीवन प्रभु को समर्पित करने के द्वारा आपने नया जन्म अर्थात उद्धार पाया है, तो आपके उद्धार पाने के पल से ही परमेश्वर पवित्र आत्मा आप में निवास कर रहा है, आपकी सहायता और शिक्षा के लिए आप में विद्यमान है। इसलिए किसी गलत शिक्षा में न फंसे, और यदि पड़ गए हैं तो उपरोक्त पदों का ध्यान करते हुए, उन शिक्षाओं से बाहर आ जाएं। पवित्र आत्मा परमेश्वर है, किसी मनुष्य के हाथों की कठपुतली नहीं जिसे कोई मनुष्य अपने किन्हीं प्रयासों द्वारा नियंत्रित और निर्देशित कर सके।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।   

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • गिनती 1-2         
  • मरकुस 3:1-19

रविवार, 20 फ़रवरी 2022

कलीसिया में अपरिपक्वता के दुष्प्रभाव (8)

 


भ्रामक शिक्षाओं के स्वरूप - प्रभु यीशु के विषय गलत शिक्षाएं (2)


पिछले कुछ लेखों से हम इफिसियों 4:14 में दी गई बातों में से, बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों और कलीसियाओं को प्रभावित करने वाले तीसरे दुष्प्रभाव, भ्रामक या गलत उपदेशों के बारे में देखते आ रहे हैं। इन गलत या भ्रामक शिक्षाओं के मुख्य स्वरूपों के बारे में परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है कि इन भ्रामक शिक्षाओं के, गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन स्वरूप होते हैं, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”, जिन्हें शैतान और उसके लोग प्रभु यीशु के झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं। सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए इन तीनों स्वरूपों के साथ इस पद में एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है। इस पद में लिखा है कि शैतान की युक्तियों के तीनों विषयों, प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार के बारे में जो यथार्थ और सत्य है वह वचन में पहले से ही बता दिया गया है। इन तीनों प्रकार की गलत शिक्षाओं में से इस पद में सबसे पहली है कि शैतान और उस के जन, प्रभु यीशु के विषय ऐसी शिक्षाएं देते हैं जो वचन में नहीं दी गई हैं। 

पिछले लेख में हमने प्रभु यीशु मसीह के विषय प्रेरितों और प्रभु के शिष्यों के द्वारा आरंभिक कलीसिया में जो बातें प्रचार की गईं, जो नए नियम की प्रेरितों के काम पुस्तक में संकलित हैं, उनमें से कुछ महत्वपूर्ण शिक्षाएं और तथ्य सूचीबद्ध किए थे, जिससे हर भ्रामक शिक्षा को उन शिक्षाओं और तथ्यों से मिलाकर देखा जाए, और जो उस सूची में नहीं है, उस की बारीकी से वचन की अन्य बातों के आधार पर जाँच-पड़ताल की जाए, यह निश्चित करने के लिए कि वह स्वीकार्य करने योग्य है अथवा अस्वीकार करने के योग्य। स्वीकार्य पाए जाने के बाद ही उसे ग्रहण किया जाना चाहिए अन्यथा उसका तिरस्कार कर देना चाहिए। शैतान और उसके लोगों ने प्रभु यीशु मसीह के विषय कई गलत धारणाएं, बातें और शिक्षाएं संसार में फैला रखी हैं। हमने पहले देखा है कि 2 कुरिन्थियों 11:13-15 के अनुसार, ये लोग झूठे प्रेरित और प्रभु के सेवक बन कर इन गलत बातों और शिक्षाओं को फैलाते हैं। इसीलिए उनकी ये गलत बातें सामान्यतः बड़ी धार्मिक, प्रभु और परमेश्वर के प्रति आदरणीय, श्रद्धा-पूर्ण प्रतीत होती हैं। किन्तु उन्हें जाँचने की कसौटी एक ही है - क्या वे शिक्षाएं प्रभु यीशु के विषय पहले से वचन में लिखी गई बातों के अनुसार, उनके अनुरूप हैं, अथवा उन से भिन्न हैं? यदि भिन्न हैं, तो स्वीकार्य कदापि नहीं हैं; उनसे बच कर रहना चाहिए, उन बातों के और उन्हें फैलाने वालों के झांसे में नहीं आना चाहिए। आज हम इन्हीं धार्मिक, आदरणीय श्रद्धा-पूर्ण, किन्तु बिलकुल अनुचित और गलत शिक्षाओं के कुछ उदाहरण देखेंगे। 


एक गलत शिक्षा यह है कि प्रभु यीशु मानवीय देह में आया ही नहीं। परमेश्वर इतना पवित्र और परिशुद्ध है कि वह न तो पापमय देह में, और न ही पापी मनुष्यों के साथ वास कर सकता है; उनके समान बनकर रह सकता है। जब कि बाइबल स्पष्ट कहती है कि प्रभु यीशु मसीह परमेश्वर है, जिसे हम पिछले लेख में देख चुके हैं; साथ ही थोमा द्वारा पुनरुत्थान हुए प्रभु को किए गए संबोधन को देखिए, “यह सुन थोमा ने उत्तर दिया, हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर!” (यूहन्ना 20:28); और प्रभु ने उसकी इस बात को गलत नहीं कहा, न ही किसी अन्य शिष्य ने इसके बारे में कोई एतराज़ उठाया। यह सभी को स्वीकार्य थी, सत्य थी। साथ ही यूहन्ना 1:1-2, 14 को भी देखिए: “आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था। यही आदि में परमेश्वर के साथ था।”; “और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण हो कर हमारे बीच में डेरा किया, और हम ने उस की ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा।” स्पष्ट है कि जो वचन परमेश्वर है, आदि से था, वही देहधारी हुआ, और प्रेरित यूहन्ना तथा उसके साथियों ने उसकी महिमा देखी, उसे जाना और पहचाना, जैसा वह 1 यूहन्ना 1:1-3 में भी कहता है। और प्रेरित यूहन्ना द्वारा अपनी पहली पत्री में इसके संबंध में लिखी गई बात पर भी ध्यान कीजिए: “परमेश्वर का आत्मा तुम इसी रीति से पहचान सकते हो, कि जो कोई आत्मा मान लेती है, कि यीशु मसीह शरीर में हो कर आया है वह परमेश्वर की ओर से है। और जो कोई आत्मा यीशु को नहीं मानती, वह परमेश्वर की ओर से नहीं; और वही तो मसीह के विरोधी की आत्मा है; जिस की चर्चा तुम सुन चुके हो, कि वह आने वाला है: और अब भी जगत में है” (1 यूहन्ना 4:2-3)। इसी गलत शिक्षा का एक अन्य स्वरूप है कि प्रभु यीशु परमेश्वर नहीं, वरन एक अति उच्च-कोटि के स्वर्गदूत थे, उन्हें परमेश्वर द्वारा बहुत असाधारण सामर्थ्य प्रदान की गई थी, और अपना कार्य करने के बाद वे परमेश्वर के पास लौट गए, किन्तु लोगों ने उन्हें ही परमेश्वर समझ लिया। उपरोक्त पद इन बातों के गलत होने को दिखा देते हैं।


एक और गलत शिक्षा है कि यीशु एक भला व्यक्ति था, जो लोगों की सहायता करता था, धर्मी था; किन्तु न तो अवतरित परमेश्वर था और न ही उद्धारकर्ता। किन्तु उसके मरने के बाद कुछ लोगों ने उसके विषय ये कहानियाँ बनाकर लोगों में फैला दीं। इसे नकारने के लिए उपरोक्त पदों के साथ परमेश्वर पवित्र आत्मा की प्रेरणा से प्रेरित यूहन्ना द्वारा लिखी गई बात पर ध्यान कीजिए: “मैं ने तुम्हें इसलिये नहीं लिखा, कि तुम सत्य को नहीं जानते, पर इसलिये, कि उसे जानते हो, और इसलिये कि कोई झूठ, सत्य की ओर से नहीं। झूठा कौन है? केवल वह, जो यीशु के मसीह होने का इनकार करता है; और मसीह का विरोधी वही है, जो पिता का और पुत्र का इनकार करता है। जो कोई पुत्र का इनकार करता है उसके पास पिता भी नहीं: जो पुत्र को मान लेता है, उसके पास पिता भी है। जो कुछ तुम ने आरम्भ से सुना है वही तुम में बना रहे: जो तुम ने आरम्भ से सुना है, यदि वह तुम में बना रहे, तो तुम भी पुत्र में, और पिता में बने रहोगे। और जिस की उसने हम से प्रतिज्ञा की वह अनन्त जीवन है। मैं ने ये बातें तुम्हें उन के विषय में लिखी हैं, जो तुम्हें भरमाते हैं” (1 यूहन्ना 2:21-26)।


एक और गलत शिक्षा है कि प्रभु यीशु मसीह अपने लड़कपन में भारत आए थे, यहाँ पर शिक्षाएं प्राप्त कीं, और फिर वापस जाकर उन्हीं शिक्षाओं के आधार पर प्रचार किया, ख्याति पाई। यह इस आधार पर कहा जाता है क्योंकि लगभग बारह वर्ष की आयु (लूका 2:42) से लेकर तीस वर्ष की आयु में उनकी सेवकाई के आरंभ होने के समय (लूका 3:23) तक का कोई विस्तृत वृतांत बाइबल में नहीं पाया जाता है। किन्तु वचन से इससे संबंधित कुछ बातें देखिए:

  • लूका 2:51 देखिए: “तब वह उन के साथ गया, और नासरत में आया, और उन के वश में रहा; और उस की माता ने ये सब बातें अपने मन में रखीं।” अर्थात प्रभु यीशु अपने परिवार के साथ ही था, कहीं नहीं गया था। 

  • उसके उपदेश और कार्यों को देखकर लोगों ने अचंभा किया और कहा, “सबत के दिन वह आराधनालय में उपदेश करने लगा; और बहुत लोग सुनकर चकित हुए और कहने लगे, इस को ये बातें कहां से आ गईं? और यह कौन सा ज्ञान है जो उसको दिया गया है? और कैसे सामर्थ्य के काम इसके हाथों से प्रगट होते हैं?” (मरकुस 6:2)। यदि प्रभु यीशु भारत या किसी अन्य स्थान से कुछ सीख कर आए होते तो लोगों में यह असमंजस नहीं होता। 

  • उनकी सेवकाई का आरंभ उनके इस प्रचार से हुआ: “उस समय से यीशु प्रचार करना और यह कहना आरम्भ किया, कि मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है” (मत्ती 4:17)। और उनके जीवन तथा कार्यों को संक्षिप्त करके एक ही पद में इस प्रकार लिखा गया है, “कि परमेश्वर ने किस रीति से यीशु नासरी को पवित्र आत्मा और सामर्थ्य से अभिषेक किया: वह भलाई करता, और सब को जो शैतान के सताए हुए थे, अच्छा करता फिरा; क्योंकि परमेश्वर उसके साथ था” (प्रेरितों 10:38)। प्रभु की ये शिक्षाएं, उनका जीवन, उनका कार्य, उनकी सभी बातें, भारत क्या संसार के अन्य किसी भी स्थान की किसी भी शिक्षा या सभ्यता के बातों से मेल नहीं खाता है। यदि उन्होंने कहीं जा कर शिक्षा पाई थी, तो वह शिक्षा उनके जीवन और प्रचार में दिखनी तो चाहिए। किन्तु ऐसा है ही नहीं।   


अधिकांश गलत शिक्षाएं प्रभु यीशु मसीह के मृतकों में से पुनरुत्थान से संबंधित हैं, उसे नकारने और बिगाड़ने के प्रयास हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि प्रभु यीशु मसीह का पुनरुत्थान ही मसीही विश्वास का आधार है – यदि मसीही विश्वास में से पुनरुत्थान को हटा दें, या उसे झूठा प्रमाणित कर दें, तो फिर मसीही जीवन और शिक्षाएँ किसी भी अन्य धर्म की शिक्षाओं से भिन्न नहीं रह जाती हैं। 1 कुरिन्थियों 15 – पूरा अध्याय इसी विषय – पुनरुत्थान के महत्व, पर है, और पवित्र आत्मा की अगुवाई में पौलुस लिखता है कि यदि पुनरुत्थान नहीं है, यदि मसीह का पुनरुत्थान नहीं हुआ, तो मसीही विश्वास से संबंधित सभी प्रचार और शिक्षा व्यर्थ है (1 कुरिन्थियों 15:12-18)। इसीलिए, जैसा 1 कुरिन्थियों 15:12 में पूछे गए प्रश्न से प्रकट है, कलीसिया के आरंभ के साथ ही प्रभु यीशु के पुनरुत्थान की वास्तविकता पर हमले होने, उसका इनकार करने के प्रयास आरंभ हो गए थे। पुनरुत्थान को झुठलाने के शैतान के ये प्रयास दिखाते हैं कि यह तथ्य उसके तथा उसके राज्य के लिए कितना खतरनाक है। पुनरुत्थान से संबंधित सामान्यतः देखी और कही जाने वाली ये गलत शिक्षाएं हैं:

  • पुनरुत्थान को झूठा ठहराने का पहला प्रयास तो पुनरुत्थान के दिन ही किया गया था – मत्ती 28:11-15 – लोगों में यह बात फैला दी गई कि प्रभु जी नहीं उठा, वरन उसकी लोथ उसके चेलों ने चुरा ली – किन्तु कोई भी, कभी भी, उन भयभीत और प्रभु को छोड़ कर भागे हुए, अपनी जान बचाकर छुपे हुए शिष्यों के पास से उस लोथ को निकलवाकर उनके प्रभु के पुनरुत्थान के प्रचार को झूठ प्रमाणित नहीं कर सका।

  • प्रभु की लोथ चुराने से संबंधित कुछ अन्य कहानियाँ यह भी हैं:

    • अरिमथिया के यूसुफ ने, जिसने निकुदेमुस के साथ मिलाकर प्रभु यीशु को दफनाया था (यूहन्ना 19:38-42), उसी ने प्रभु को किसी और स्थान पर ले जाकर दफना दिया, क्योंकि उस दिन सबत आरंभ होने वाला था, इसलिए उसे यह कार्य शीघ्रता से करना पड़ा था। इसीलिए जहाँ यीशु को पहले दफनाया गया, वह कब्र खाली पाई गई। किन्तु, यूसुफ क्योंकि एक गुप्त शिष्य था, इसलिए उसके द्वारा बिना अन्य शिष्यों को इसके विषय बताए, किसी और स्थान पर ले जाकर दफनाना उचित नहीं लगता है; और ऐसा करने से क्या लाभ होने वाला था? और फिर यदि वे जानते थे कि यीशु जी नहीं उठा है तो फिर शिष्यों में इतनी हिम्मत कैसे आ गई कि वे हर सताव और दुःख सहते हुए भी प्रभु के पुनरुत्थान और सुसमाचार का प्रचार करने से रोके नहीं जा सके?

    • रोमियों ने लोथ ले जाकर कहीं और दफना दी – पिलातुस यरूशलेम में शान्ति रखना चाहता था – ऐसा करने से तो अशांति फैलने की संभावना अधिक थी।

    • यहूदियों ने ही लोथ निकालकर कही और दफना दी – तो फिर जब शिष्य उसके पुनरुत्थान का प्रचार करने लगे, तो उन्होंने वह लोथ निकालकर क्यों नहीं दिखाई?

  • एक कहानी यह भी कही जाती है कि प्रभु यीशु मसीह को क्रूस पर नहीं चढ़ाया गया, वरन उसके स्थान पर उसके जैसा दिखने वाला कोई व्यक्ति चढ़ा दिया गया। किन्तु ध्यान कीजिए कि जिसे यहूदियों ने पूरे लश्कर के साथ जाकर पकड़ा; सारी रात से एक से दूसरी कचहरी में घसीटते रहे, मारते-पीटते रहे, फिर उसे दिन चढ़े छोड़ क्यों दिया गया? रोमी अधिकारी पिलातूस ने भी यीशु को जाँचा, पहचाना, उसे छोड़ने के भरसक प्रयास किए, अन्ततः फिर कोड़े लगाने के लिए अपने सैनिकों को सौंप दिया। तो प्रभु उनके हाथों से कैसे बच निकला? और जिस व्यक्ति को उसके स्थान पर क्रूस पर चढ़ाया गया, वह व्यक्ति अकारण ही क्यों चुपचाप क्रूस पर चढ़ गया, और सब कुछ चुपचाप क्यों सहता रहा? और फिर क्रूस पर से कहे गए सात वचनों के साथ कैसे इस बात का तालमेल बैठा सकते हैं – प्रभु द्वारा अपने सताने वालों को क्षमा करने, यूहन्ना को अपनी माता को सौंपने, साथ टंगे हुए डाकू को क्षमा और स्वर्ग का आश्वासन देने, वचन में लिखी उसके विषय की भविष्यवाणियों पर ध्यान करके उन्हें पूरा करने, परमेश्वर को पिता कहने, आदि बातें कोई साधारण मनुष्य कैसे पूरा कर सकता था? साथ ही यीशु की माता मरियम वहाँ थी, सब देख रही थी, वह कैसे धोखा कहा सकती थी? प्रभु यीशु ने उसे यूहन्ना के हाथों में सौंपा था, यही क्रूस पर यीशु ही के होने की पुष्टि करता है (यूहन्ना 19:25-27)। 

  • कुछ अन्य कहते हैं कि प्रभु मरा नहीं था, केवल बेहोश हुआ था, फिर कब्र में ठण्डे में विश्राम करने के बाद वह होश में आया, और कब्र में से बाहर आ गया। विचार कीजिए, जिस बेरहमी से प्रभु को क्रूस पर चढ़ाने से पहले उसे मारा-पीटा गया था, फिर हाथों-पैरों में कील ठोंके गए, छाती में भाला मारा गया (यूहन्ना 19:34), और सैनिकों ने पुष्टि की, कि वह मर गया है, इसलिए उसकी टांगें नहीं तोड़ीं (यूहन्ना 19:32-33) – इन सभी प्रमाणों के होते हुए, यह कैसे मान लिया जाए कि यीशु मरा नहीं था, केवल बेहोश हुआ था? प्रकट है कि यह कहानी पूर्णतः निराधार है। और फिर तीन दिन कब्र में लहूलुहान और बिना भोजन या पानी के पड़े रहने के बाद किस मनुष्य के शरीर में यह शक्ति बचेगी कि वह 50 सेर मसालों के लेप और लपेटे हुए कपड़े (यूहन्ना 19:39-40) को खोल कर, अपने कीलों से छेदे हुए हाथों और पैरों तथा बेधी हुई छाती के साथ कब्र के मुँह पर लुढ़काए गए भारी पत्थर को हटा कर बाहर आ जाए, पहरेदारों को भी भगा दे, और चलकर वहाँ से चला जाए। 

  • एक अन्य कहानी है कि शिष्यों ने अपनी मनःस्थिति के कारण, प्रभु की आत्मा को देखा था न कि उसके जी उठे शरीर को। प्रभु ने स्वयं ही इस धारणा का खण्डन प्रदान किया – लूका 24:38-43; और थोमा को भी आमंत्रित किया कि वह अपनी रखी गई शर्त के अनुसार उसके घावों को छू कर देख ले (यूहन्ना 20:26-27)। और प्रभु चालीस दिन तक अलग-अलग लोगों को अलग-अलग स्थानों पर दिखाई देता रहा, उनके साथ बात करता रहा; एक साथ पाँच सौ से अधिक शिष्यों को भी दिखाई दिया (1 कुरिन्थियों 15:5-8) – क्या सभी एक ही भ्रम के शिकार थे; और इस भ्रम के कारण अपनी जान पर भी खेलकर प्रचार करने से नहीं रुके? क्या एक भ्रम के लिए वे शिष्य अपने उस अनुभव के बाद उसके लिए दुःख उठाने और मारे जाने को भी तैयार हो गए। जिसने प्रभु का अनुभव कर लिया है, वह उससे पलट नहीं सकता है। 


प्रभु यीशु के विषय इन गलत शिक्षाओं के अतिरिक्त भी अन्य गलत शिक्षाएं और बातें होंगी। पाठकों से निवेदन है कि कृपया उन्हें अपने comments/टिप्पणी के रूप में भेजें, उनके बारे में बताएं जिससे उनके गलत होने की बातों और आधार को सामने लाया जा सके। 


यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो कृपया ध्यान कर लीजिए कि कहीं आप प्रभु यीशु से संबंधित किसी गलत शिक्षा द्वारा भरमा तो नहीं दिए गए हैं? वचन के आधा पर गलत शिक्षाओं को ताड़ लेना, और सही शिक्षा में बने रहना हम सभी मसीही विश्वासियों के लिए अनिवार्य है। हमें अभी समय और अवसर रहते अपने आप को जाँचने और सुधारने के कार्य को कर लेना है। 


यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी। 


एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • लैव्यव्यवस्था 26-27         

  • मरकुस 2


शनिवार, 19 फ़रवरी 2022

कलीसिया में अपरिपक्वता के दुष्प्रभाव (7)


भ्रामक शिक्षाओं के स्वरूप - प्रभु यीशु के विषय गलत शिक्षाएं (1)


पिछले कुछ लेखों से हम इफिसियों 4:14 में दी गई बातों में से, बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों और कलीसियाओं को प्रभावित करने वाले तीसरे दुष्प्रभाव, भ्रामक या गलत उपदेशों के बारे में देखते आ रहे हैं। इन गलत या भ्रामक शिक्षाओं के मुख्य स्वरूपों के बारे में परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है कि इन भ्रामक शिक्षाओं के, गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन स्वरूप होते हैं, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”, जिन्हें शैतान और उसके लोग प्रभु यीशु के झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं। सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए इन तीनों स्वरूपों के साथ इस पद में एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है। इस पद में लिखा है कि शैतान की युक्तियों के तीनों विषयों, प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार के बारे में जो यथार्थ और सत्य है वह वचन में पहले से ही बता दिया गया है। इसलिए, स्वाभाविक है कि जो भी व्यक्ति वचन में दृढ़ और स्थापित होगा, जो भी वचन में इन तीनों के विषय दी गई बातों से भली-भांति अवगत होगा, वह इनके विषय शैतान की युक्तियों में नहीं फँसेगा, गलती में नहीं पड़ेगा, वरन उन शिक्षाओं के गलत होने को पहचान जाएगा, क्योंकि वे गलत शिक्षाएं वचन में पहले से लिखवाई गई बातों से भिन्न होंगी, उनके अतिरिक्त होंगी। 

इन तीनों प्रकार की गलत शिक्षाओं में से इस पद में सबसे पहली है कि शैतान और उस के जन, प्रभु यीशु के विषय ऐसी शिक्षाएं देते हैं जो वचन में नहीं दी गई हैं। इस पद में इस विषय में लिखे गए वाक्ययदि कोई तुम्हारे पास आकर,, जिस का प्रचार हम ने नहीं कियापर ध्यान कीजिए। अर्थात, प्रभु यीशु के बारे में पौलुस, अन्य प्रेरितों, और प्रभु के शिष्यों द्वारा जो प्रचार किया गया है, जो बताया गया है, वही सच्ची शिक्षा है; अन्य सभी मिथ्या हैं। इसलिए यदि हम यह देख और संकलित कर लें कि वचन में इन प्रेरितों और प्रभु के शिष्यों ने क्या सिखाया है, तो उसके अतिरिक्त प्रभु यीशु के विषय जो कुछ भी सिखाया है, वह गलत शिक्षा है। पौलुस, अन्य प्रेरितों, और प्रभु के शिष्यों द्वारा जो प्रचार किया गया है, उसका संकलन प्रेरितों के काम नामक पुस्तक है। आज हम इसी पुस्तक से, प्रभु के इन अनुयायियों द्वारा किए गए प्रचार में से, प्रभु यीशु के विषय कही गई बातों को देखते और सूचीबद्ध करते हैं। यह सूची प्रभु यीशु के विषय गलत शिक्षाओं को पहचानने के लिए हमारी सहायता करेगी। हमें अपनी इस सूची के साथ मिलाकर, यीशु होने का दावा करने वाले व्यक्ति में, या लोगों द्वारा यीशु के विषय बताई जा रही बातों को जाँच कर देखना होगा कि वे सच्चे यीशु के विषय वचन में दी गई इस सूची की बातों से मेल खाती हैं कि नहीं, उनके अनुसार हैं कि नहीं। जो भी शिक्षा इस सूची में प्रभु यीशु के विषय पाई जाने वाली बातों से मेल नहीं खाती है, उसे तुरंत ही स्वीकार नहीं करना होगा, वरन उसे वचन से भली-भांति जाँच-परख कर, उसकी वास्तविकता और खराई की वचन से पुष्टि करने के बाद ही स्वीकार किया जाए, अन्यथा उसका तिरस्कार कर दिया जाए। 

नए नियम में प्रेरितों के काम पुस्तक में प्रेरितों और शिष्यों द्वारा दी गई प्रभु यीशु के विषय सही शिक्षाएं हैं :

  • प्रेरितों 2:22 हे इस्राएलियों, ये बातें सुनो: कि यीशु नासरी एक मनुष्य था जिस का परमेश्वर की ओर से होने का प्रमाण उन सामर्थ्य के कामों और आश्चर्य के कामों और चिह्नों से प्रगट है, जो परमेश्वर ने तुम्हारे बीच उसके द्वारा कर दिखलाए जिसे तुम आप ही जानते हो। प्रभु यीशु न केवल पूर्णतः परमेश्वर था, वरन पूर्णतः मनुष्य भी था। उसे परमेश्वर ने भेजा था, जिसका प्रमाण और पुष्टि परमेश्वर ने उसके द्वारा उन लोगों के मध्य सामर्थ्य के कार्यों और आश्चर्यकर्मों के द्वारा की थी। 
  • प्रेरितों 2:32 इसी यीशु को परमेश्वर ने जिलाया, जिस के हम सब गवाह हैं। प्रभु यीशु मृतकों में से जी उठा था। यह केवल सुनी-सुनाई बात नहीं थी, वरन उसके मारे जाने, गाड़े जाने, और पुनरुत्थान होने के गवाह भी थे (प्रेरितों 4:33; 5:30; 13:33) 
  • प्रेरितों 2:36 सो अब इस्राएल का सारा घराना निश्चय जान ले कि परमेश्वर ने उसी यीशु को जिसे तुम ने क्रूस पर चढ़ाया, प्रभु भी ठहराया और मसीह भी। सच्चा यीशु क्रूस पर चढ़ाया गया था; और उसे जो आदर एवं महिमा मिली वह परमेश्वर ने दी, किसी मनुष्य, मत, या समुदाय ने नहीं। 
  • प्रेरितों 3:6 तब पतरस ने कहा, चान्दी और सोना तो मेरे पास है नहीं; परन्तु जो मेरे पास है, वह तुझे देता हूं: यीशु मसीह नासरी के नाम से चल फिर। सच्चे यीशु के नाम में आश्चर्यकर्म होते हैं (मरकुस 16:17-20; प्रेरितों 4:30; 9:34; 16:18) 
  • प्रेरितों 3:20 और वह उस मसीह यीशु को भेजे जो तुम्हारे लिये पहिले ही से ठहराया गया है। सच्चे यीशु के विषय में पुराने नियम की सभी पुस्तकों में लिखा गया है (लूका 24:27; प्रेरितों 8:35)  
  • प्रेरितों 4:12 और किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिस के द्वारा हम उद्धार पा सकें। पृथ्वी पर, मनुष्यों के उद्धार के लिए और कोई अन्य नाम दिया ही नहीं गया है; और किसी में उद्धार है ही नहीं (प्रेरितों 9:22; 15:11; 16:31; 17:3; 18:5; 18:28) 
  • प्रेरितों 4:13 जब उन्होंने पतरस और यूहन्ना का हियाव देखा, ओर यह जाना कि ये अनपढ़ और साधारण मनुष्य हैं, तो अचम्भा किया; फिर उन को पहचाना, कि ये यीशु के साथ रहे हैं। सच्चे यीशु के साथ बने रहने से जीवन बदल जाते हैं, डरपोक लोग निडर हो जाते हैं, साधारण और अनपढ़ मनुष्य भी परमेश्वर के वचन के प्रभावी प्रचारक और ज्ञानी बन जाते हैं। 
  • प्रेरितों 7:55-56 परन्तु उसने पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो कर स्वर्ग की ओर देखा और परमेश्वर की महिमा को और यीशु को परमेश्वर की दाहिनी ओर खड़ा देखकर कहा; देखो, मैं स्वर्ग को खुला हुआ, और मनुष्य के पुत्र को परमेश्वर के दाहिनी ओर खड़ा हुआ देखता हूं। सच्चे यीशु के पुनरुत्थान और स्वर्गारोहण के बाद से वे स्वर्ग में परमेश्वर के साथ हैं (1 यूहन्ना 2:1) 
  • प्रेरितों 9:5 उसने पूछा; हे प्रभु, तू कौन है? उसने कहा; मैं यीशु हूं; जिसे तू सताता है। सच्चा यीशु अपने अनुयायियों के साथ बना रहता है; उनके दुख और सताव को अपना व्यक्तिगत दुख और सताव मानता है (प्रेरितों 22:8; 26:15) 
  • प्रेरितों 10:36 जो वचन उसने इस्राएलियों के पास भेजा, जब कि उसने यीशु मसीह के द्वारा (जो सब का प्रभु है) शान्ति का सुसमाचार सुनाया। सच्चे यीशु का सुसमाचार शांति का सुसमाचार है, वह मतभेद, अलगाव, और अशान्ति नहीं प्रेम और मेल-मिलाप के साथ मिलकर रहना सिखाता है; यीशु ही के प्रभु होने को बताता है। 
  • प्रेरितों 17:30-31 इसलिये परमेश्वर अज्ञानता के समयों में आनाकानी कर के, अब हर जगह सब मनुष्यों को मन फिराने की आज्ञा देता है। क्योंकि उसने एक दिन ठहराया है, जिस में वह उस मनुष्य के द्वारा धर्म से जगत का न्याय करेगा, जिसे उसने ठहराया है और उसे मरे हुओं में से जिलाकर, यह बात सब पर प्रमाणित कर दी है। सच्चा यीशु ही जगत के अंत में, अपने सुसमाचार के अनुसार सभी मनुष्यों का उनकी सभी बातों के विषय न्याय करेगा (रोमियों 1:3) 

यह सूची अंतिम या पूर्ण नहीं है। हम अपने अगले लेखों में वचन के अन्य स्थानों पर प्रभु यीशु के विषय पाई जाने वाली बातों को भी देखेंगे, तथा उन गलत शिक्षाओं को भी देखेंगे जिन्हें उस प्रथम, आरंभिक कलीसिया के समय से ही शैतान ने मसीहियों और अन्य लोगों में फैलाना आरंभ कर दिया था, जिससे लोग प्रभु यीशु में विश्वास न लाएं। 

यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं तो प्रभु यीशु के विषय जिन शिक्षाओं को आप जानते और मानते हैं, या जिन्हें औरों को बताते हैं, उन्हें उपरोक्त सूची के समक्ष जाँच-परख लीजिए, और जो सही हों केवल उन्हें थामे रहिए (1 थिस्सलुनीकियों 5:21)। अन्य सभी बातों या शिक्षाओं के आधार और सामग्री की, प्रभु यीशु के विषय वचन की अन्य बातों के साथ बारीकी से जाँच-पड़ताल करने के बाद ही निर्णय लें के वे स्वीकार्य हैं अथवा अस्वीकार्य। वचन से असंगत किसी भी बात या शिक्षा से बचकर रहें। प्रचार करने वाले व्यक्ति की वाक्पटुता, उसके ज्ञान, बोलने के आकर्षक ढंग, शिक्षा की रोचक बातों, और मनुष्यों में उसके आदर और प्रशंसा के स्तर पर मत जाइए। केवल परमेश्वर के वचन की सत्यता के आधार पर ही उसकी बातों और शिक्षाओं के विषय निर्णय कीजिए। 

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी। 

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • लैव्यव्यवस्था 25         
  • मरकुस 1:23-45