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बुधवार, 21 सितंबर 2011

आदर्श एवं यथार्थ

   पत्रकार सिडनी हैरिस ने व्यर्थ आदर्शवाद के नकारात्मक परिणामों के बारे में एक अन्य लेखक के उदाहरण द्वारा समझाया। जब हैरिस ने पहले-पहल उस लेखक की रचनाओं को पढ़ा तो उन्हें वह बहुत आकर्षक लगा, हैरिस ने कहा कि "उस लेखक के विचार ऐसे थे मानो जैसे बदबूदार कमरे में खुशबू का झोंका आया हो। मानवता, पारिवारिक संबंधों, सामाजिक संबंधों, बच्चों, जानवरों और फुल-पौधों - सभी पर उनके विचार बहुत उत्तम और आदर्शपूर्ण थे।" लेकिन दुख की बात यह थी कि यह आदर्शवादिता उस लेखक के व्यक्तिगत जीवन के व्यवहार में ज़रा भी नहीं थी। अपने घर में वह व्यक्ति अपनी पत्नि के प्रति क्रूर और अपने बच्चों के लिए आतंक था। उसका आदर्शवाद का प्रचार केवल दूसरों के लिए था, इसलिए व्यर्थ था।

   अपने पहाड़ी उपदेश में प्रभु यीशु ने सिखाया कि कैसे आदर्शों को यथार्थ के साथ व्यावाहरिक जीवन में लागू करना चाहिए। उन्होंने समझाया कि कैसे हम व्यावाहरिक जीवन के प्रति सही रवैया रखें जिससे जीवन जैसा है और जैसा होना चाहिए, इन दोनो बातों में कोई विरोधाभास नहीं हो। साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि हम अपने आदर्शों को लेकर इतने अव्यावाहरिक तथा कट्टर भी न हो जाएं कि अपने आस-पास के लोगों से अनुचित और असंभव उम्मीदें रखने लगें।

   प्रभु यीशु ने अपने जीवन के उदाहरण द्वारा सिखाया कि आदर्श और यथार्थ में संतुलन बना कर रखें - जो सिद्ध अथवा योग्य नहीं भी हों उनके साथ भी सदा धैर्य, प्रेम तथा सहिषुणता का व्यवहार करें। उन्होंने सिखाया कि हमें सत्य के साथ तो बने रहना है, किंतु दया और करुणा का साथ भी नहीं छोड़ना है।

   यदि हम प्रभु यीशु के उदाहरण का अनुसरण करेंगे तो हम सर्वोच्च आदर्शों को भी थामे रहेंगे तथा संसार के यथार्थ से भी मुँह नहीं छुपाएंगे; अपितु प्रभु यीशु के समान हमारे हृदय सदा प्रेम से भरे और हम प्रेम से व्यवहार करने वाले होंगे। - मार्ट डी हॉन


एक धर्मी हृदय में करुणा के लिए बहुत स्थान रहता है।
 
धन्य हैं वे, जो दयावन्‍त हैं, क्‍योंकि उन पर दया की जाएगी। - मत्ती ५:७
 
बाइबल पाठ: मत्ती ५:१-१२
    Mat 5:1  वह इस भीड़ को देख कर, पहाड़ पर चढ़ गया; और जब बैठ गया तो उसके चेले उसके पास आए।
    Mat 5:2  और वह अपना मुंह खोल कर उन्‍हें यह उपदेश देने लगा,
    Mat 5:3  धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्‍योंकि स्‍वर्ग का राज्य उन्‍हीं का है।
    Mat 5:4  धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं, क्‍योंकि वे शांति पाएंगे।
    Mat 5:5  धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्‍योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे।
    Mat 5:6  धन्य हैं वे जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं, क्योंकि वे तृप्त किए जाएंगे।
    Mat 5:7  धन्य हैं वे, जो दयावन्‍त हैं, क्‍योंकि उन पर दया की जाएगी।
    Mat 5:8  धन्य हैं वे, जिन के मन शुद्ध हैं, क्‍योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे।
    Mat 5:9  धन्य हैं वे, जो मेल करवाने वाले हैं, क्‍योंकि वे परमेश्वर के पुत्र कहलाएंगे।
    Mat 5:10 धन्य हैं वे, जो धर्म के कारण सताए जाते हैं, क्‍योंकि स्‍वर्ग का राज्य उन्‍हीं का है।
    Mat 5:11 धन्य हो तुम, जब मनुष्य मेरे कारण झूठ बोल बोलकर तुम्हारे विरोध में सब प्रकार की बुरी बात कहें।
    Mat 5:12 आनन्‍दित और मगन होना क्‍योंकि तुम्हारे लिये स्‍वर्ग में बड़ा फल है; इसलिये कि उन्‍होंने उन भविष्यद्वक्ताओं को जो तुम से पहिले थे इसी रीति से सताया था।
 
एक साल में बाइबल: 
  • सभोपदेशक ७-९ 
  • २ कुरिन्थियों १३

मंगलवार, 20 सितंबर 2011

पवित्रता द्वारा आनन्द

   कुछ लोग मानते हैं कि सभी नियमों को ताक पर रखने, हर एक नियंत्रण से निकल जाने और अपनी मन मरज़ी ही कर पाने में सच्चा आनन्द है। उनकी धारणा है कि जब नियम और कानून ही नहीं होंगे तो सही-गलत में फर्क करने और निर्णय लेने का झंझट भी नहीं रहेगा। ऐसे ही धारणा रखने वाले एक व्यक्ति ने कहा, "मेरे लिए यह ज़्यादा ज़रूरी है कि मैं अपने जीवन का आनन्द लूँ न कि यह कि मैं सही-गलत के झंझट में पड़ा रहूँ। यह बात मैंने अपने सात वर्षीय पुत्र के साथ अपने संबंध द्वारा भली भांति समझ ली है। मैंने देखा है कि बार बार उसे कहना कि वह गलत है, सदा ही हमारे बीच अलगाव और दुखः उत्पन्न करता है।" संभवतः इस व्यक्ति ने कभी अपने पुत्र को यह समझने का प्रयास नहीं किया होगा कि वह गलत क्यों है और गलती के क्या परिणाम और नुकसान हो सकते हैं, बस केवल रौब मारकर या डांट-डपट कर ही अपनी बात व्यक्त करी होगी।

   यदि संसार में सभी इसी धारणा के अन्तर्गत अपने जीवन व्यतीत करने लगें तो आप स्वयं समझ सकते हैं कि संसार का क्या हाल हो जाएगा। वास्तविकता तो यह है कि हम जितना अधिक नियमों का पालन करते हैं, उतने ही अधिक स्वतंत्र और आनन्दित रहते हैं। यदि आपके पास वैद लाईसेंस है, आपकी गाड़ी के कागज़ात पूरे और सही हैं, आप यातयात के नियमों के पालन के साथ गाड़ी चला रहें है तो यदि मार्ग में कोई पुलिस वाला आपको रोके तो आप बिना हिचकिचाए, उससे नज़रें मिलाकर बात कर लेते हैं, किंतु यदि इन में से किसी एक में भी कोई कमी होगी तो आप ऐसा नहीं कर सकेंगे, आशंकित रहेंगे। इसी प्रकार जब तक वायुयान उड़ान के नियमों का पालन करता रहता है, वह अपनी उड़ान सरलता से भरता रहता है; जहाँ नियमों की अवहेलना हुई, विमान का और दूसरों का भारी नुकसान हो जाता है।

   यही बात नैतिक जीवन और नियमों पर भी लागू होती है। यदि हम अपने जीवन में पवित्रता और नैतिकता को लक्षय बनाए रखेंगे तो स्वतः ही जीवन में आनन्द भी मिलता रहेगा; किंतु यदि आनन्द प्राप्ति के लिए नैतिक मूल्यों और नियमों की अवहेलना करेंगे तो ना ही अनन्द रहेगा और ना ही जीवन। पाप, जो परमेश्वर के नियमों का उल्लंघन है, हमारे हर दुखः की जड़ और और हर परेशानी का कारण है। सांसारिक तथा शारीरिक आनन्द कुछ समय के लिए तो हमें बहला सकते हैं, लेकिन हमारी आत्मा को ना तो सन्तुष्ट कर सकते हैं और ना ही स्थाई होते हैं; और अधिकांशतः उनकी प्राप्ति के लिए नैतिक मूल्यों के साथ समझौता करना पड़ता है, जो अशांति को और बढ़ाता रहता है। पाप हमें परमेश्वर की संगति से दूर करता है और हमारे जीवन और आत्मा को उस सच्चे और चिरस्थाई आनन्द से वंचित करता है जो परमेश्वर की संगति से मिलता है। पवित्रता परमेश्वर की संगति से आती है, परमेश्वर से मिलती है। परमेश्वर का वचन हमें आश्वासन देता है कि "यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने, और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है" (१ युहन्ना १:९)।

   पाप को छुपाना या किसी प्रकार उसे ढांपने का प्रयास करना पाप का निवारण नहीं है। पाप केवल अंगीकार और क्षमा द्वारा हट सकता है। क्योंकि हर पाप अन्ततः परमेश्वर के विरुद्ध ही होता है, उसे क्षमा करने और उसके दुष्प्रभाव को हटा कर सच्चे आनन्द को प्रदान करना भी परमेश्वर के ही हाथ में है। परमेश्वर ने यह संभव करने के लिए ही प्रभु यीशु को सबके पापों के लिए बलिदान होने भेजा, कि उसमें होकर पापों की क्षमा मांगने वाले को पवित्रता और सच्चा आनन्द मिल सके। - डेनिस डी हॉन


केवल पाप ही है जो मसीही विश्वासी के आनन्द को नष्ट कर सकता है।

धन्य हैं वे जो धर्म के भूखे और प्यासे हैं क्योंकि वे तृप्त किए जाएंगे। - मत्ती ५:६
 
बाइबल पाठ: भजन ३२:१-११
    Psa 32:1  क्या ही धन्य है वह जिसका अपराध क्षमा किया गया, और जिसका पाप ढ़ांपा गया हो।
    Psa 32:2  क्या ही धन्य है वह मनुष्य जिसके अधर्म का यहोवा लेखा न ले, और जिसकी आत्मा में कपट न हो।
    Psa 32:3  जब मैं चुप रहा तक दिन भर कहरते कहरते मेरी हडि्डयां पिघल गई।
    Psa 32:4  क्योंकि रात दिन मैं तेरे हाथ के नीचे दबा रहा; और मेरी तरावट धूप काल की सी झुर्राहट बनती गई।
    Psa 32:5  जब मैं ने अपना पाप तुझ पर प्रगट किया और अपना अधर्म न छिपाया, और कहा, मैं यहोवा के साम्हने अपने अपराधों को मान लूंगा, तब तू ने मेरे अधर्म और पाप को क्षमा कर दिया।
    Psa 32:6  इस कारण हर एक भक्त तुझ से ऐसे समय में प्रार्थना करे जब कि तू मिल सकता है। निश्चय जब जल की बड़ी बाढ़ आए तौभी उस भक्त के पास न पहुंचेगी।
    Psa 32:7  तू मेरे छिपने का स्थान है; तू संकट से मेरी रक्षा करेगा; तू मुझे चारों ओर से छुटकारे के गीतों से घेर लेगा।
    Psa 32:8  मैं तुझे बुद्धि दूंगा, और जिस मार्ग में तुझे चलना होगा उस में तेरी अगुवाई करूंगा; मैं तुझ पर कृपादृष्टि रखूंगा और सम्मत्ति दिया करूंगा।
    Psa 32:9  तुम घोड़े और खच्चर के समान न बनो जो समझ नहीं रखते, उनकी उमंग लगाम और बाग से रोकनी पड़ती है, नहीं तो वे तेरे वश में नहीं आने के।
    Psa 32:10  दुष्ट को तो बहुत पीड़ा होगी; परन्तु जो यहोवा पर भरोसा रखता है वह करूणा से घिरा रहेगा।
    Psa 32:11  हे धर्मियों यहोवा के कारण आनन्दित और मगन हो, और हे सब सीधे मन वालों आनन्द से जयजयकार करो!
 
एक साल में बाइबल: 
  • सभोपदेशक ४-६ 
  • २ कुरिन्थियों १२

सोमवार, 19 सितंबर 2011

नम्रता कमज़ोरी है?

   अधिकतर लोग नम्रता को कमज़ोरी के रूप में देखते हैं. लेकिन यह सच नहीं है। वास्तव में विनम्र होने के लिए बहुत सामर्थ चाहिए होती है, क्योंकि विनम्र लोग अन्य लोगों के समान न तुरंत पलटवार करते हैं और न बदला लेने की चाह में रहते हैं। वे बिना कुड़कुड़ाए, अपशबद बोले या अपने हाव-भाव द्वारा कोई कटुता दिखाए निन्दा सह लेते हैं; वे हर परिस्थिति के लिए और हर परिस्थिति में - भली हो या बुरी, परमेश्वर के धन्यवादी रहते हैं तथा उसके आधीन बने रहते हैं। ऐसे संयम को बनाए रखना हर किसी के बस की बात नहीं है और ना ही यह मात्र मानवीय समर्थ से संभव है। क्योंकि विनम्र लोग संसार के आम लोगों के समान प्रत्युत्तर नहीं देते और ना ही व्यवहार करते हैं इसलिए संसार के लोग समझते हैं कि उन को दबा लेना या उन पर हावी होकर अपने लिए प्रयोग कर लेना आसान है; किंतु सच्ची नम्रता कमज़ोरी नहीं है। इसके विपरीत यदि नम्रता स्वार्थ सिधि का मार्ग या जीवन में समझौते करने और पाप में पड़ने का माध्यम बन जाए तो अवश्य कमज़ोरी बन जाती है।

   परमेश्वर का वचन पवित्र बाइबल जिस नम्रता की बात करती है, वह कोई कमज़ोरी नहीं वरन एक सामर्थी सद्गुण है जो हमें प्रभु यीशु में देखने को मिलता है। प्रभु यीशु परमेश्वर का प्रतिरूप थे, परमेश्वरत्व की सारी सामर्थ उनमें विद्यमान थी, उनके वचन में हर कार्य को कर देने की सामर्थ थी लेकिन उनहोंने कभी अपनी इस सामर्थ का प्रयोग अपने लिए अथवा किसी स्वार्थ सिधि के लिए नहीं किया। दूसरों ने उनके साथ चाहे जैसा भी बर्ताव किया हो, वे सदा ही दूसरों की भलाई में ही लगा रहे। वे सदा परमेश्वर पिता को भी समर्पित रहे, सदा उनका आज्ञाकारी रहे। परमेश्वर पिता के प्रति उनका समपूर्ण विश्वास, समर्पण और आज्ञाकारिता ही थे जिनके द्वारा वे हर परिस्थिति में साहसी, हरेक व्यक्ति के प्रति करुणामय, पाप और बुराई से कभी कैसा भी समझौता न करने वाले और समस्त संसार के पापों के लिए आत्मबलिदान करने वाले बन सके।

   ऐसी सच्ची नम्रता परमेश्वर के प्रति सच्चे समर्पण तथा मन के अन्दर बसी और बनी भलाई की भावना से ही आती है; और यह भलाई परमेश्वर के साथ बने रहने से आती है, इसीलिए सच्ची नम्रता परमेश्वर की संगति का नतीजा है। जहाँ परमेश्वर की संगति होगी, वहाँ परमेश्वर की सामर्थ भी होगी; और जो परमेश्वर की सामर्थ से होगा वह ना कभी कमज़ोरी हो सकता और ना ही कमज़ोर बना सकता है। - मार्ट डी हॉन


सेवा करने के लिए काबू में ली गई सामर्थ ही नम्रता है।

धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्‍योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे। - मत्ती ५:५

बाइबल पाठ: फिलिप्पियों २:१-११
    Php 2:1  सो यदि मसीह में कुछ शान्‍ति और प्रेम से ढाढ़स और आत्मा की सहभागिता, और कुछ करूणा और दया है।
    Php 2:2  तो मेरा यह आनन्‍द पूरा करो कि एक मन रहो और एक ही प्रेम, एक ही चित्त, और एक ही मनसा रखो।
    Php 2:3  विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्‍छा समझो।
    Php 2:4  हर एक अपने ही हित की नहीं, वरन दूसरों के हित की भी चिन्‍ता करे।
    Php 2:5  जैसा मसीह यीशु का स्‍वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्‍वभाव हो।
    Php 2:6  जिस ने परमेश्वर के स्‍वरूप में होकर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्‍तु न समझा।
    Php 2:7  वरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्‍वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया।
    Php 2:8  और मनुष्य के रूप में प्रगट होकर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली।
    Php 2:9  इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्‍ठ है।
    Php 2:10  कि जो स्‍वर्ग में और पृथ्वी पर और जो पृथ्वी के नीचे हैं वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें।
    Php 2:11  और परमेश्वर पिता की महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है।
एक साल में बाइबल: 
  • सभोपदेशक १-३ 
  • २ कुरिन्थियों ११:१६-३३

रविवार, 18 सितंबर 2011

सामर्थ का रहस्य

   सदा अपने पाप के बारे में सोचते ही रहना तथा अपनी खामियों के लिए हर समय विलाप करते रहना न स्वयं को न दुसरों को अच्छा लगता है। लेकिन पापों को हलके में भी नहीं लेना चाहिए। पवित्र परमेश्वर के नैतिक नियमों की अवहेलना तथा उल्लंघन अति गंभीर बात है। जीवन में पाप की भयानकता और दुषप्रभावों को कभी कमतर कर के नहीं आंकना चाहिए।

   स्कॉटलैंड के जाने-माने प्रचारक रौबर्ट मैक्चेन की मृत्योपरांत एक पादरी उनके शहर में आया। मैक्चेन की सेवकाई से बहुत से लोगों ने अपने पापों से पश्चाताप कर के प्रभ यीशु को अपने व्यक्तिगत उद्धारकर्ता के रूप में ग्रहण किया था। यह पादरी मैक्चेन के ऐसे प्रभावी प्रचार के रहस्य को जानना चाहता था। जिस चर्च से मैक्चेन सेवकाई करते थे, वहाँ के सेवादार ने उस पादरी को मैक्चेन की कुर्सी-मेज़ दिखाई और उनसे कहा, "आप इस कुर्सी पर बैठिए", पादरी बैठ गए; सेवादार ने फिर कहा, "अब अपनी कोहनियाँ मेज़ पर रखिए और अपना सिर अपने हाथों से पकड़ लीजिए", पादरी ने वैसा ही किया; सेवादर ने आगे कहा, "अब पश्चाताप के अपने आँसुओं को अविराल बहने दीजिए, मैक्चेन यही किया करते थे।" फिर सेवादार उस पादरी को चर्च के आगे के भाग में ले गया जहाँ पर वह मंच था जिस से मैक्चेन प्रचार करते थे। सेवादार ने पादरी से कहा, "अपनी कोहनियाँ मंच पर टिकाइए, अपने हाथों से अपने मुँह को पकड़ लीजिए और पश्चाताप के अपने आँसुओं को अविराल बहने दीजिए; मैक्चेन यही किया करते थे।"

   मैक्चेन का स्वभाव था कि वे अपने तथा अपने लोगों के पापों के लिए बेझिझक रोते और पश्चाताप करते थे। पाप के प्रति इस प्रकार कायल रहने ने उन्हें परमेश्वर के सामने दीन और नम्र रखा और परमेश्वर की सामर्थ उनमें हो कर अति प्रभावी रूप से कार्य कर सकी। इसकी तुलना में, पाप के प्रति अकसर हमारा रवैया ढिटाई का होता है। हमें अपने जीवन में पाप के लिए परमेश्वर की पवित्र आत्मा की आवाज़ के प्रति और अधिक संवेदनशील तथा पापमय व्यवहार से अलगाव का जीवन जीने को तत्पर और तैयार रहना चाहिए।

   हम परमेश्वर की क्षमा करने की प्रवृति में आनन्दित तो रह सकते हैं, लेकिन साथ ही हमें पापों के लिए पश्चातापी और शोकित भी रहना चाहिए। यही परमेश्वर के लिए सामर्थी और प्रभावी जीवन का रहस्य है। - डेव एग्नर

कलवरी पर प्रभु यीशु का क्रूस इस बात का प्रमाण है कि पाप परमेश्वर को परेशान करता है; क्या आप भी पाप से परेशान होते हैं?

धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं, क्‍योंकि वे शांति पाएंगे। - मत्ती ५:४

बाइबल पाठ: दानिएल ९:१-१९
     Dan 9:1  मादी क्षयर्ष का पुत्र दारा, जो कसदियों के देश पर राजा ठहराया गया था,
    Dan 9:2  उसके राज्य के पहिले वर्ष में, मुझ दानिय्येल ने शास्त्र के द्वारा समझ लिया कि यरूशलेम की उजड़ी हुई दशा यहोवा के उस वचन के अनुसार, जो यिर्मयाह नबी के पास पहुंचा था, कुछ वर्षों के बीतने पर अर्थात सत्तर वर्ष के बाद पूरी हो जाएगी।
    Dan 9:3  तब मैं अपना मुख परमेश्वर की ओर कर के गिड़गिड़ाहट के साथ प्रार्थना करने लगा, और उपवास कर, टाट पहिन, राख में बैठ कर वरदान मांगने लगा।
    Dan 9:4  मैं ने अपने परमेश्वर यहोवा से इस प्रकार प्रार्थना की और पाप का अंगीकार किया, हे प्रभु, तू महान और भययोग्य परमेश्वर है, जो अपने प्रेम रखने और आज्ञा मानने वालों के साथ अपनी वाचा को पूरा करता और करूणा करता रहता है,
    Dan 9:5  हम लोगों ने तो पाप, कुटिलता, दुष्टता और बलवा किया है, और तेरी आज्ञाओं और नियमों को तोड़ दिया है।
    Dan 9:6  और तेरे जो दास नबी लोग, हमारे राजाओं, हाकिमों, पूर्वजों और सब साधारण लोगों से तेरे नाम से बातें करते थे, उनकी हम ने नहीं सुनी।
    Dan 9:7  हे प्रभु, तू धर्मी है, परन्तु हम लोगों को आज के दिन लज्जित होना पड़ता है, अर्थात यरूशलेम के निवासी आदि सब यहूदी, क्या समीप क्या दूर के सब इस्राएली लोग जिन्हें तू ने उस विश्वासघात के कारण जो उन्होंने तेरा किया था, देश देश में बरबस कर दिया है, उन सभों को लज्जित होना पड़ता है।
    Dan 9:8  हे यहोवा हम लोगों ने अपने राजाओं, हाकिमों और पूर्वजों समेत तेरे विरूद्ध पाप किया है, इस कारण हम को लज्जित होना पड़ता है।
    Dan 9:9  परन्तु, यद्यपि हम अपने परमेश्वर प्रभु से फिर गए, तौभी तू दयासागर और क्षमा की खान है।
    Dan 9:10  हम तो अपने परमेश्वर यहोवा की शिक्षा सुनने पर भी उस पर नहीं चले जो उस ने अपने दास नबियों से हमको सुनाई।
    Dan 9:11  वरन सब इस्राएलियों ने तेरी व्यवस्था का उल्लंघन किया, और ऐसे हट गए कि तेरी नहीं सुनी। इस कारण जिस शाप की चर्चा परमेश्वर के दास मूसा की व्यवस्था में लिखी हुई है, वह शाप हम पर घट गया, क्योंकि हम ने उसके विरूद्ध पाप किया है।
    Dan 9:12  सो उस ने हमारे और न्यायियों के विषय जो वचन कहे थे, उन्हें हम पर यह बड़ी विपत्ति डाल कर पूरा किया है; यहां तक कि जैसी विपत्ति यरूशलेम पर पड़ी है, वैसी सारी धरती पर और कहीं नहीं पड़ी।
    Dan 9:13  जैसे मूसा की व्यवस्था में लिखा है, वैसे ही यह सारी विपत्ति हम पर आ पड़ी है, तौभी हम अपने परमेश्वर यहोवा को मनाने के लिये न तो अपने अधर्म के कामों से फिरे, और ने तेरी सत्य बातों पर ध्यान दिया।
    Dan 9:14  इस कारण यहोवा ने सोच विचार कर हम पर विपत्ति डाली है; क्योंकि हमारा परमेश्वर यहोवा जितने काम करता है उन सभों में धर्मी ठहरता है; परन्तु हम ने उसकी नहीं सुनी।
    Dan 9:15  और अब, हे हमारे परमेश्वर, हे प्रभु, तू ने अपनी प्रजा को मिस्र देश से, बली हाथ के द्वारा निकाल लाकर अपना ऐसा बड़ा नाम किया, जो आज तक प्रसिद्ध है, परन्तु हम ने पाप किया है और दुष्टता ही की है।
    Dan 9:16  हे प्रभु, हमारे पापों और हमारे पुरखाओं के अधर्म के कामों के कारण यरूशलेम की और तेरी प्रजा की, और हमारे आस पास के सब लोगों की ओर से नामधराई हो रही है; तौभी तू अपने सब धर्म के कामों के कारण अपना क्रोध और जलजलाहट अपने नगर यरूशलेम पर से उतार दे, जो तेरे पवित्र पर्वत पर बसा है।
    Dan 9:17  हे हमारे परमेश्वर, अपने दास की प्रार्थना और गिड़गड़ाहट सुन कर, अपने उजड़े हुए पवित्रस्थान पर अपने मुख का प्रकाश चमका; हे प्रभु, अपने नाम के निमित्त यह कर।
    Dan 9:18  हे मेरे परमेश्वर, कान लगा कर सुन, आंख खोल कर हमारी उजड़ी हुई दशा और उस नगर को भी देख जो तेरा कहलाता है; क्योंकि हम जो तेरे साम्हने गिड़गिड़ा कर प्रार्थना करते हैं, सो अपने धर्म के कामों पर नहीं, वरन तेरी बड़ी दया ही के कामों पर भरोसा रख कर करते हैं।
    Dan 9:19  हे प्रभु, सुन ले; हे प्रभु, पाप क्षमा कर; हे प्रभु, ध्यान देकर जो करता है उसे कर, विलम्ब न कर; हे मेरे परमेश्वर, तेरा नगर और तेरी प्रजा तेरी ही कहलाती है, इसलिये अपने नाम के निमित्त ऐसा ही कर।
एक साल में बाइबल: 
  • नीतिवचन ३०-३१ 
  • २ कुरिन्थियों ११:१-१५

शनिवार, 17 सितंबर 2011

"उड़ाऊ पुत्र" का स्वरूप

   पापियों के प्रति परमेश्वर के प्रेम को समझाने के लिए प्रभु यीशु द्वारा कही गई "उड़ाऊ पुत्र" की नीतिकथा (लूका १५:११-३२) एक प्रचलित उदाहरण रही है। इस नीतिकथा में एक पुत्र अपने पिता से संपत्ति का अपना भाग लेकर अलग हो जाता है, और उस संपत्ति को व्यर्थ और दुराचारी जीवन में उड़ा देता है। सम्पत्ति के समाप्त हो जाने पर जब वह अकेला पड़ जाता है और बदहाल हो जाता है तो अपने व्यवहार और किये पर पश्चातापी मन के साथ अपनी उसी बदहाल दशा में अपने पिता के पास लौटता है, जो आनन्द के साथ उसे स्वीकार कर के परिवार में उसे पुनः यथास्थान स्थापित कर देता है।

   एक चित्रकार ने इस कथा पर चित्र बनाना चाहा। उसे एक ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जिस के स्वरूप पर वह उड़ाऊ पुत्र के बदहाल स्वरूप को चित्रित कर सके। मार्ग पर चलते समय उसे एक भिखारी बहुत ही बदहाल स्वरूप में दिखाई दिया, और चित्रकार ने उसे अपनी चित्रशाला में आकर चित्र बनाने के लिए नमुना बनने का निमंत्रण दिया। अगले दिन जब वह भिखारी उसकी चित्रशाला में पहुँचा तो उसका स्वरूप बदला हुआ था - वह नहा-धो कर, अपनी बढ़ी हुई दाढ़ी साफ करवा कर, बाल बना कर, साफ-सुथरे कपड़े पहन कर चित्रकार के समने प्रस्तुत हुआ था। इस हाल में उसे देख कर चित्रकार विस्मय से बोल उठा, "नहीं, ऐसे नहीं, अब इस स्वरूप में मैं तुम्हें प्रयोग नहीं कर सकता।"

   परमेश्वर भी हमें वैसा ही चाहता है, जैसे उड़ाऊ पुत्र अपने पिता के पास आया था - अपनी बदहाल दशा में। यह विचित्र और विनम्र करने वाला अनुभव है, लेकिन यदि हम अपनी ही धार्मिकता और भलाई द्वारा स्वच्छ तथा परमेश्वर को ग्रहणयोग्य होने का प्रयास करते हैं, तो यह परमेश्वर के सामने व्यर्थ है। परमेश्वर की धार्मिकता, भलाई और स्वच्छता - जिसे हमें प्रदान करने के लिए प्रभु यीशु ने अपने प्राण क्रूस पर बलिदान कर दिए, हमें केवल अपने पापों के लिए हमारे पश्चाताप और क्षमा आग्रह द्वारा ही उपलब्ध होती है, हमारे किन्ही कर्मों के द्वारा नहीं।

   प्रभु यीशु के समय में मन्दिर में सेवकाई करने वाले शास्त्री और फरीसी बहुत कड़ाई से अपनी धर्म-व्यवस्था का पालन करते थे। वे समझते थे कि परमेश्वर उनसे प्रसन्न है क्योंकि उन्होंने अपने आप को "स्वच्छ" रखा हुआ है। जब उन्होंने प्रभु यीशु को ऐसे लोगों के साथ संगति करते और उनके घर जाकर भोजन लेते देखा जो उनकी नज़रों में "अशुद्ध" और "दुष्ट" थे तो उन्हें यह बहुत नागवार गुज़रा, और वे प्रभु यीशु के विरुद्ध कुड़कुड़ाने लगे। लेकिन प्रभु यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, "मैं धमिर्यों को नहीं, परन्‍तु पापियों को मन फिराने के लिये बुलाने आया हूं" (लूका ५:३२)। प्रभु यीशु का यह कहना वास्तव में उनके स्वधार्मिक व्यवहार और उस पर उन के घमण्ड पर किया गया कटाक्ष था। उन स्वधर्मी लोगों को भी अपने जीवन में छुपे पाप का अंगीकार करने की आवश्यक्ता थी, जिसे परमेश्वर भली भांति जानता था। यदि वे पश्चाताप करते तो प्रभु यीशु उन्हें भी ग्रहण कर लेते।

   परमेश्वर नहीं चाहता कि कोई भी पाप में नाश हो; "वह यह चाहता है, कि सब मनुष्यों का उद्धार हो और वे सत्य को भली भांति पहिचान लें" (१ तिमुथियुस २:४)। वह सब को पाप क्षमा देना चाहता है, यदि वे अपने पाप के अंगीकार और उससे क्षमा प्रार्थना के लिए तैयार हों। जैसे उड़ाऊ पुत्र, जैसा वह था अपने पिता के पास लौट आया, और पिता से सब कुछ पा लिया, वैसे ही आप भी भी जैसे हैं, प्रभु यीशु के नाम से परमेश्वर की ओर लौट आईये, आप भी उद्धार, अनन्त जीवन का अननत आनन्द, परमेश्वर की संगति और उसके राज्य में प्रवेश के भागीदार हो जाएंगे। - डेनिस डी हॉन


संसार में धनी होने की बजाए परमेश्वर के राज्य में धनी होना कहीं बेहतर है।

धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्‍योंकि स्‍वर्ग का राज्य उन्‍हीं का है। - मत्ती ५:३
 
बाइबल पाठ: लूका १५:११-२४
    Luk 15:11  फिर उस ने कहा, किसी मनुष्य के दो पुत्र थे।
    Luk 15:12  उन में से छुटके ने पिता से कहा कि हे पिता संपत्ति में से जो भाग मेरा हो, वह मुझे दे दीजिए। उस ने उन को अपनी संपत्ति बांट दी।
    Luk 15:13  और बहुत दिन न बीते थे कि छुटका पुत्र सब कुछ इकट्ठा कर के एक दूर देश को चला गया और वहां कुकर्म में अपनी संपत्ति उड़ा दी।
    Luk 15:14  जब वह सब कुछ खर्च कर चुका, तो उस देश में बड़ा अकाल पड़ा, और वह कंगाल हो गया।
    Luk 15:15  और वह उस देश के निवासियों में से एक के यहां जा पड़ा: उस ने उसे अपने खेतों में सूअर चराने के लिये भेजा।
    Luk 15:16  और वह चाहता था, कि उन फलियों से जिन्‍हें सूअर खाते थे अपना पेट भरे; और उसे कोई कुछ नहीं देता था।
    Luk 15:17  जब वह अपने आपे में आया, तब कहने लगा, कि मेरे पिता के कितने ही मजदूरों को भोजन से अधिक रोटी मिलती है, और मैं यहां भूखा मर रहा हूँ।
    Luk 15:18  मैं अब उठ कर अपने पिता के पास जाऊंगा और उस से कहूंगा कि पिता जी मैं ने स्‍वर्ग के विरोध में और तेरी दृष्‍टि में पाप किया है।
    Luk 15:19  अब इस योग्य नहीं रहा कि तेरा पुत्र कहलाऊं, मुझे अपने एक मजदूर की नाईं रख ले।
    Luk 15:20  तब वह उठ कर, अपने पिता के पास चला: वह अभी दूर ही था, कि उसके पिता ने उसे देख कर तरस खाया, और दौड़कर उसे गले लगाया, और बहुत चूमा।
    Luk 15:21  पुत्र न उस से कहा; पिता जी, मैं ने स्‍वर्ग के विरोध में और तेरी दृष्‍टि में पाप किया है, और अब इस योग्य नहीं रहा, कि तेरा पुत्र कहलाऊं।
    Luk 15:22  परन्‍तु पिता ने अपने दासों से कहा, फट अच्‍छे से अच्‍छा वस्‍त्र निकाल कर उसे पहिनाओ, और उसके हाथ में अंगूठी, और पांवों में जूतियां पहिनाओ।
    Luk 15:23  और पला हुआ बछड़ा लाकर मारो ताकि हम खांए और आनन्‍द मनावें।
    Luk 15:24  क्‍योंकि मेरा यह पुत्र मर गया था, फिर जी गया है : खो गया था, अब मिल गया है: और वे आनन्‍द करने लगे।
 
एक साल में बाइबल: 
  • नीतिवचन २७-२९ 
  • २ कुरिन्थियों १०

शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

प्रलोभन और परीक्षा

   यद्यपि प्रलोभन और परीक्षा अधिकांशतः साथ ही आते हैं, दोनो में फर्क की एक महीन रेखा है। परमेश्वर के वचन बाइबल के नए नियम की मूल यूनानी भाषा में दोनो के लिए एक ही शब्द प्रयोग हुआ है। याकूब १:२,३ में कहा गया है कि "हे मेरे भाइयों, जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ो तो इसे पूरे आनन्‍द की बात समझो..." और मत्ती २६:४१ में प्रभु यीशु ने अपने चेलों से कहा कि "जागते रहो, और प्रार्थना करते रहो, कि तुम परीक्षा में न पड़ो" - पहला उदाहरण भले के लिए है और दूसरा खतरे से बचने के लिए।

   १९वीं सदी के एक पास्टर एलेक्ज़ैंडर मैक्लैरन ने प्रलभोन और परीक्षा के बीच की इस महीन रेखा के फर्क को समझाया। उन्होंने कहा, "प्रलोभन कहता है, इस मज़ेदार काम को करो, इस बात से चिंतित मत हो कि यह कम बुरा है। जबकि परीक्षा कहती है, इस सही और भले काम को करो, इस बात की चिंता मत करो कि इसे करने में कष्ट होगा। एक मधुर और सुखद प्रतीत होने किंतु बहका देने वाली धुन है जो अन्तरात्मा को सुला कर धीरे से विनाश की ओर मोड़ देती है तो दूसरा श्रेष्ठ लक्ष्यों की प्राप्ति के संघर्ष के लिए रणभेरी की आवाज़ है।"

   प्रत्येक कठिनाई प्रलोभन भी बन सकती है और परीक्षा भी। जब हम कष्ट और परेशानियों से बचने के लिए समझौते करके छोटे और गलत रास्ते अपनाते हैं तो कठिनाई प्रलोभन बन जाती है। किंतु जब हम हर गलत बात का विरोध करके कठिनाईयों को आगे बढ़ने के अवसर के रूप में देखते हैं तो वह हमारी उन्नति के लिए परीक्षा बन जाती है। जब हम उन्नति के इन अवसरों को स्वीकार करते रहते हैं, और परमेश्वर के पवित्र आत्मा की अगुवाई और सामर्थ में सही लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते रहते हैं, तो परमेश्वर के वचन "तुम पूरे और सिद्ध हो जाओ और तुम में किसी बात की घटी न रहे" (याकूब १:४) की पूर्ति की ओर अग्रसर भी होते रहते हैं।

   प्रलोभन और परीक्षा में हमारा रवैया, हमारी उन्न्ति अथवा अवनति को निर्धारित करता है। - डेनिस डी हॉन


परमेश्वर आपको परीक्षाओं द्वारा सामर्थी और उन्नत करना चाहता है तो शैतान प्रलोभनों द्वारा गिराने के प्रयास में रहता है।

हे मेरे भाइयों, जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ो तो इसे पूरे आनन्‍द की बात समझो... - याकूब १:२,३
 
बाइबल पाठ: याकूब १:१-१५
    Jas 1:1  परमेश्वर के और प्रभु यीशु मसीह के दास याकूब की ओर से उन बारहों गोत्रों  को जो तित्तर बित्तर होकर रहते हैं नमस्‍कार पहुंचे।
    Jas 1:2  हे मेरे भाइयों, जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ो
    Jas 1:3  तो इसे पूरे आनन्‍द की बात समझो, यह जान कर, कि तुम्हारे विश्वास के परखे जाने से धीरज उत्‍पन्न होता है।
    Jas 1:4  पर धीरज को अपना पूरा काम करने दो, कि तुम पूरे और सिद्ध हो जाओ और तुम में किसी बात की घटी न रहे।
    Jas 1:5  पर यदि तुम में से किसी को बुद्धि की घटी हो, तो परमेश्वर से मांगे, जो बिना उलाहना दिए सब को उदारता से देता है; और उस को दी जाएगी।
    Jas 1:6  पर विश्वास से मांगे, और कुछ सन्‍देह न करे; क्‍योंकि सन्‍देह करने वाला समुद्र की लहर के समान है जो हवा से बहती और उछलती है।
    Jas 1:7  ऐसा मनुष्य यह न समझे, कि मुझे प्रभु से कुछ मिलेगा।
    Jas 1:8  वह व्यक्ति दुचित्ता है, और अपनी सारी बातों में चंचल है।
    Jas 1:9  दीन भाई अपने ऊंचे पद पर घमण्‍ड करे।
    Jas 1:10  और धनवान अपनी नीच दशा पर: क्‍योंकि वह घास के फूल की नाई जाता रहेगा।
    Jas 1:11  क्‍योंकि सूर्य उदय होते ही कड़ी धूप पड़ती है और घास को सुखा देती है, और उसका फूल झड़ जाता है, और उस की शोभा जाती रहती है; उसी प्रकार धनवान भी अपने मार्ग पर चलते चलते धूल में मिल जाएगा।
    Jas 1:12  धन्य है वह मनुष्य, जो परीक्षा में स्थिर रहता है; क्‍योंकि वह खरा निकल कर जीवन का वह मुकुट पाएगा, जिस की प्रतिज्ञा प्रभु ने अपने प्रेम करने वालों को दी है।
    Jas 1:13  जब किसी ही परीक्षा हो, तो वह यह न कहे, कि मेरी परीक्षा परमेश्वर की ओर से होती है; क्‍योंकि न तो बुरी बातों से परमेश्वर की परीक्षा हो सकती है, और न वही किसी की परीक्षा आप करता है।
    Jas 1:14  परन्‍तु प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही अभिलाषा में खिंच कर, और फंस कर परीक्षा में पड़ता है।
    Jas 1:15  फिर अभिलाषा गर्भवती होकर पाप को जनती है और पाप बढ़ जाता है तो मृत्यु को उत्‍पन्न करता है।
 
एक साल में बाइबल: 
  • नीतिवचन २५-२६ 
  • २ कुरिन्थियों ९

गुरुवार, 15 सितंबर 2011

लुभावने विचार

   एक युवक, अपने निज जीवन के रुख से परेशान होकर सहायता के लिए अपने पादरी के पास गया। थोड़ी देर तक उस युवक की छोटी-मोटी बुराईयों और लालसाओं की सूचि सुनने के बाद पादरी को लगा कि वह अपने विवरण में पूरी तरह से ईमानदार नहीं है, इसलिए पादरी ने उससे पूछा, "क्या वास्तविकता में बस इतना ही है?" युवक बोला, "जी हाँ, परेशानी की बस यही बातें हैं।" पादरी ने फिर पूछा, "तुम्हें पूरा निश्चय है कि तुम किन्ही अपवित्र बातों और विचारों से नहीं खेल रहे हो?" युवक ने कहा, "नहीं नहीं, मैं तो उनसे नहीं खेल रहा, वे ही मेरा मन बहला रहे हैं।"

   कुछ लोगों की धारणा रहती है, "प्रलोभनों से बच कर भागने में मुझे कोई आपत्ति नहीं है, बशर्ते मैं उन के लिए अपना पता छोड़ के भाग सकूँ।" यदि हम सच्चे होंगे तो यह अवश्य स्वीकार करेंगे कि पाप पहले विचारों में उत्पन्न होता है, उसके बाद ही जीवन में कार्यकारी हो कर प्रगट होता है।

   प्रलोभन पाप नहीं है। प्रलोभन के पाप में परिवर्तित हो पाने के लिए हमें उसका स्वागत करके अपने मन में बसाना होता है, उसे समय देना होता है, उसके साथ मज़ा लेना होता है। उदाहरण स्वरूप यदि किसी ने हमारा कुछ बिगाड़ा है तो उससे बदला लेने का पाप हम तब ही कर पाते हैं जब पहले बदला लेने के बारे में सोचना आरंभ करें, फिर उस व्यक्ति को किन बातों से और कैसे कैसे नुकसान हो सकता है, यह विचार करने लगें, तब ही योजना बना कर बदले की भावना से हम उसका नुकसान पहुँचा सकते हैं।

   इन बातों को आरंभ में ही रोक देने और पाप तथा नुकसान की हद तक न पहुँचने देने के लिए प्रेरित पौलुस उपाय देता है, "सो हम कल्पनाओं को, और हर एक ऊंची बात को, जो परमेश्वर की पहिचान के विरोध में उठती है, खण्‍डन करते हैं; और हर एक भावना को कैद कर के मसीह का आज्ञाकारी बना देते हैं" (२ कुरिन्थियों १०:५)।

   जब हम गलत विचारों को अपने मन में स्थान बनाने देते हैं, तो उन के दुषप्रभावों से बचने का मार्ग है कि उन्हें परमेश्वर के सामने पाप के रूप में स्वीकार कर लें, क्षमा मांगें और परमेश्वर से मांगें के वह हमारी सहायता करे; फिर भले विचारों तथा परमेश्वर के वचन से अपने मन को भर लें।

   जब हम परमेश्वर की आधीनता में होकर शैतान का सामना करते हैं, तो वह हमारे सामने टिक नहीं सकता और उसके लुभावने विचार हमें पाप में गिरा नहीं सकते। - डेव एग्नर

जो मन में होता है वही चरित्र में भी आ जाता है।

सो हम कल्पनाओं को, और हर एक ऊंची बात को, जो परमेश्वर की पहिचान के विरोध में उठती है, खण्‍डन करते हैं; और हर एक भावना को कैद कर के मसीह का आज्ञाकारी बना देते हैं। - २ कुरिन्थियों १०:५
 
बाइबल पाठ: २ कुरिन्थियों १०:१-६
    2Co 10:1  मैं वही पौलुस जो तुम्हारे साम्हने दीन हूं, परन्‍तु पीठ पीछे तुम्हारी ओर साहस करता हूं; तुम को मसीह की नम्रता, और कोमलता के कारण समझाता हूं।
    2Co 10:2  मैं यह बिनती करता हूं, कि तुम्हारे साम्हने मुझे निर्भय होकर साहस करना न पड़े, जैसा मैं कितनों पर जो हम को शरीर के अनुसार चलने वाले समझते हैं, वीरता दिखाने का विचार करता हूं।
    2Co 10:3  क्‍योंकि यद्यपि हम शरीर में चलते फिरते हैं, तौभी शरीर के अनुसार नहीं लड़ते।
    2Co 10:4  क्‍योकि हमारी लड़ाई के हथियार शारीरिक नहीं, पर गढ़ों को ढा देने के लिये परमेश्वर के द्वारा सामर्थी हैं।
    2Co 10:5  सो हम कल्पनाओं को, और हर एक ऊंची बात को, जो परमेश्वर की पहिचान के विरोध में उठती है, खण्‍डन करते हैं; और हर एक भावना को कैद करके मसीह का आज्ञाकारी बना देते हैं।
    2Co 10:6  और तैयार रहते हैं कि जब तुम्हारा आज्ञा मानना पूरा हो जाए, तो हर एक प्रकार के आज्ञा न मानने का पलटा लें।
 
एक साल में बाइबल: 
  • नीतिवचन २२-२४ 
  • २ कुरिन्थियों ८