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रविवार, 18 जनवरी 2015

आवश्यक


   एक कहानी है: संगीत सभा के लिए वाद्य-वृंद का अभ्यास चल रहा था, संचालक सभी वाद्य-वादकों को निर्देश देते हुए उन्हें संचालित कर रहा था, ऑरगन से मधुर धुन आ रही थी, ड्रम्स बज रहे थे, तुरही अपना स्वर दे रही थी तथा वायलिनों से मधुर संगीत-ध्वनि आ रही थी; लेकिन संचालक को कुछ कमी का आभास हुआ, और उसने अभ्यास रोक दिया - बाँसुरी का स्वर उसे सुनाई नहीं दे रहा था! बाँसुरी वादक का ध्यान भटक गया था और वह अपनी लय खो बैठा था, यह सोचकर कि इतने सारे अन्य बड़े-बड़े वाद्यों के स्वर में उस छोटी सी अकेली बाँसुरी के स्वर की कमी किसी को पता नहीं चलेगी, वह शाँत हो गया था। लेकिन संचालक को तुरंत ही उसकी कमी का आभास हो गया, और उसने बाँसुरी वादक से कहा, "यहाँ सभी आवश्यक हैं।"

   प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थुस की मसीही विश्वासियों की मण्डली को लिखी अपनी पहली पत्री में उन्हें भी यही बात समझाने का प्रयास किया - मण्डली में प्रत्येक की आवश्यकता है, मण्डली में प्रत्येक का उद्देश्य है (1 कुरिन्थियों 12:4-7)। मसीही विश्वासी मण्डली, जिसे प्रभु यीशु की देह भी कहा गया है, के सुचारु रूप से कार्य करने के लिए प्रत्येक सदस्य की अपनी भूमिका है, आवश्यकता है। पौलुस ने इस बात को समझाने के लिए मसीही विश्वासियों को परमेश्वर से मिलने वाले आत्मा के वरदानों की सूची दी और उनके उपयोग की तुलना मानव देह के विभिन्न अंगों के कार्यों से करी। पौलुस, पवित्र आत्मा की अगुवाई में होकर कुरिन्थुस के मसीही विश्वासियों को समझा रहा था कि चाहे उनकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, उनके वरदान, उनके व्यक्तित्व अलग-अलग हों लेकिन वे परमेश्वर के उस एक ही आत्मा से परिपूर्ण हैं और मसीह यीशु की उसी एक देह के अंग हैं। पौलुस ने विशेष रीति से समझाया कि शरीर के दुर्बल और शोभाहीन अंगों का भी महत्व है। वह सिखा रहा था कि मसीही विश्वासियों की मण्डलियों में प्रत्येक सदस्य आवश्यक है, उसकी अपनी भूमिका है, और कोई ऐसा नहीं है जो किसी अन्य से अधिक या कम आवश्यक हो; देह सभी के एक साथ होने और मिलजुलकर, एक दूसरे का पूरक होकर कार्य करने से ही सुचारू रीति से कार्य कर सकती है।

   सदा स्मरण रखें, प्रभु यीशु के दृष्टि में कोई भी छोटा, तुच्छ या अनावश्यक नहीं है। उसने सभी के उद्धार के लिए अपने प्राण बलिदान किए, सभी ने उस पर लाए विश्वास और पापों की क्षमा द्वारा ही उद्धार और उसकी देह का अंग होने के आदर को पाया है, और वह प्रत्येक को अपनी देह के अन्य सदस्यों को बनाने बढ़ाने के लिए प्रयोग करता है। - मार्विन विलियम्स


प्रभु यीशु की देह का अंग होने के कारण आप संपूर्ण का एक अनिवार्य भाग हैं।

हे भाइयो, मैं तुम से यीशु मसीह जो हमारा प्रभु है उसके नाम के द्वारा बिनती करता हूं, कि तुम सब एक ही बात कहो; और तुम में फूट न हो, परन्तु एक ही मन और एक ही मत हो कर मिले रहो। - 1 कुरिन्थियों 1:10

बाइबल पाठ: 1 कुरिन्थियों 12:12-27
1 Corinthians 12:12 क्योंकि जिस प्रकार देह तो एक है और उसके अंग बहुत से हैं, और उस एक देह के सब अंग, बहुत होने पर भी सब मिलकर एक ही देह हैं, उसी प्रकार मसीह भी है। 
1 Corinthians 12:13 क्योंकि हम सब ने क्या यहूदी हो, क्या युनानी, क्या दास, क्या स्‍वतंत्र एक ही आत्मा के द्वारा एक देह होने के लिये बपतिस्मा लिया, और हम सब को एक ही आत्मा पिलाया गया। 
1 Corinthians 12:14 इसलिये कि देह में एक ही अंग नहीं, परन्तु बहुत से हैं। 
1 Corinthians 12:15 यदि पांव कहे कि मैं हाथ नहीं, इसलिये देह का नहीं, तो क्या वह इस कारण देह का नहीं? 
1 Corinthians 12:16 और यदि कान कहे; कि मैं आंख नहीं, इसलिये देह का नहीं, तो क्या वह इस कारण देह का नहीं? 
1 Corinthians 12:17 यदि सारी देह आंख ही होती तो सुनना कहां से होता? यदि सारी देह कान ही होती तो सूंघना कहां होता? 
1 Corinthians 12:18 परन्तु सचमुच परमेश्वर ने अंगो को अपनी इच्छा के अनुसार एक एक कर के देह में रखा है। 
1 Corinthians 12:19 यदि वे सब एक ही अंग होते, तो देह कहां होती? 
1 Corinthians 12:20 परन्तु अब अंग तो बहुत से हैं, परन्तु देह एक ही है। 
1 Corinthians 12:21 आंख हाथ से नहीं कह सकती, कि मुझे तेरा प्रयोजन नहीं, और न सिर पांवों से कह सकता है, कि मुझे तुम्हारा प्रयोजन नहीं। 
1 Corinthians 12:22 परन्तु देह के वे अंग जो औरों से निर्बल देख पड़ते हैं, बहुत ही आवश्यक हैं। 
1 Corinthians 12:23 और देह के जिन अंगो को हम आदर के योग्य नहीं समझते हैं उन्‍ही को हम अधिक आदर देते हैं; और हमारे शोभाहीन अंग और भी बहुत शोभायमान हो जाते हैं। 
1 Corinthians 12:24 फिर भी हमारे शोभायमान अंगो को इस का प्रयोजन नहीं, परन्तु परमेश्वर ने देह को ऐसा बना दिया है, कि जिस अंग को घटी थी उसी को और भी बहुत आदर हो। 
1 Corinthians 12:25 ताकि देह में फूट न पड़े, परन्तु अंग एक दूसरे की बराबर चिन्‍ता करें। 
1 Corinthians 12:26 इसलिये यदि एक अंग दु:ख पाता है, तो सब अंग उसके साथ दु:ख पाते हैं; और यदि एक अंग की बड़ाई होती है, तो उसके साथ सब अंग आनन्द मनाते हैं। 
1 Corinthians 12:27 इसी प्रकार तुम सब मिल कर मसीह की देह हो, और अलग अलग उसके अंग हो।

एक साल में बाइबल:
  • उत्पत्ति 43-45
  • मत्ती 12:24-50



शनिवार, 17 जनवरी 2015

संकट


   मुझे खुशी थी कि वर्ष के अन्तिम दिन भी समाप्त होने लगे हैं, क्योंकि इस वर्ष में मैंने बहुत दुख, बिमारी और उदासी को देखा था। इसलिए मैं नव-वर्ष का स्वागत पूरे ज़ोर-शोर के साथ करने को तैयार थी। लेकिन नए वर्ष के पहले महीने के साथ ही एक के बाद एक उदासी बढ़ाने वाले समचारों ने भी आना आरंभ कर दिया। मेरे कई मित्रों के माता-पिता में से कोई जाता रहा; मेरे पिता के भाई निद्रा में ही जाते रहे; कुछ मित्रों को पता चला कि उन्हें कैंसर है; एक सहकर्मी का भाई, तथा एक मित्र का पुत्र, अनापक्षित दुर्घटनाओं में जाते रहे। बीते वर्ष के साथ दुख भरे समयों का अन्त तो नहीं हुआ, वरन नया वर्ष और भी दुखों की बाढ़ ले आया।

   परमेश्वर के वचन बाइबल में यूहन्ना 16:33 में प्रभु यीशु ने अपने चेलों से कहा, "संसार में तुम्हें क्लेष होता है", अर्थात क्लेषों का आना अवश्यंभावी हैं। हम मसीही विश्वासी जो परमेश्वर की सनतान हैं, हम भी क्लेषों से बचे हुए नहीं हैं; परमेश्वर ने हमारे लिए भी आरामदेह जीवन, समृद्धि एवं संपन्नता और अच्छे स्वास्थ्य की प्रतिज्ञा नहीं करी है। लेकिन जो प्रतिज्ञा परमेश्वर ने हम से करी है वह यह है कि हमारे प्रत्येक संकट और क्लेष में वह हमारे साथ होगा। यशायाह 43:2 में परमेश्वर ने कहा कि "जब तू जल में हो कर जाए, मैं तेरे संग संग रहूंगा और जब तू नदियों में हो कर चले, तब वे तुझे न डुबा सकेंगी; जब तू आग में चले तब तुझे आंच न लगेगी, और उसकी लौ तुझे न जला सकेगी"; अर्थात प्रत्येक खतरनाक परिस्थिति में वह हमारी रक्षा करेगा, हमारे साथ बना रहेगा। जिन संकटों और क्लेषों से होकर हम निकलते हैं, उनमें पूरे होने वाले परमेश्वर के उद्देश्यों को चाहे हम ठीक से समझने ना पाएं, लेकिन परमेश्वर सदा हमारे साथ है, और क्योंकि हम उसके प्रेम तथा हृदय को जानते हैं इसलिए उस पर भरोसा रख सकते हैं।

   क्योंकि हमारा परमेश्वर अत्यन्त प्रेमी परमेश्वर है, और "...न मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानताएं, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्थ, न ऊंचाई, न गहिराई और न कोई और सृष्टि, हमें परमेश्वर के प्रेम से, जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है, अलग कर सकेगी" (रोमियों 8:38-39) इसलिए जब संकट और क्लेष आएं तो वह भी उनमें हमारे साथ रहेगा, और उनमें होकर भी हमारे लिए भला ही उत्पन्न करेगा (रोमियों 8:28)। - सिंडी हैस 
कैस्पर


विश्वास का अर्थ है चाहे हमें कुछ सुनाई या दिखाई ना भी दे, तो भी भरोसा बनाए रखना कि परमेश्वर हमारे साथ ही है।

और हम जानते हैं, कि जो लोग परमेश्वर से प्रेम रखते हैं, उन के लिये सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती है; अर्थात उन्हीं के लिये जो उस की इच्छा के अनुसार बुलाए हुए हैं। - रोमियों 8:28

बाइबल पाठ:  यूहन्ना 16:25-33
John 16:25 मैं ने ये बातें तुम से दृष्‍टान्‍तों में कही हैं, परन्तु वह समय आता है, कि मैं तुम से दृष्‍टान्‍तों में और फिर नहीं कहूंगा परन्तु खोल कर तुम्हें पिता के विषय में बताऊंगा। 
John 16:26 उस दिन तुम मेरे नाम से मांगोगे, और मैं तुम से यह नहीं कहता, कि मैं तुम्हारे लिये पिता से बिनती करूंगा। 
John 16:27 क्योंकि पिता तो आप ही तुम से प्रीति रखता है, इसलिये कि तुम ने मुझ से प्रीति रखी है, और यह भी प्रतीति की है, कि मैं पिता कि ओर से निकल आया। 
John 16:28 मैं पिता से निकलकर जगत में आया हूं, फिर जगत को छोड़कर पिता के पास जाता हूं। 
John 16:29 उसके चेलों ने कहा, देख, अब तो तू खोल कर कहता है, और कोई दृष्‍टान्‍त नहीं कहता। 
John 16:30 अब हम जान गए, कि तू सब कुछ जानता है, और तुझे प्रयोजन नहीं, कि कोई तुझ से पूछे, इस से हम प्रतीति करते हैं, कि तू परमेश्वर से निकला है। 
John 16:31 यह सुन यीशु ने उन से कहा, क्या तुम अब प्रतीति करते हो? 
John 16:32 देखो, वह घड़ी आती है वरन आ पहुंची कि तुम सब तित्तर बित्तर हो कर अपना अपना मार्ग लोगे, और मुझे अकेला छोड़ दोगे, तौभी मैं अकेला नहीं क्योंकि पिता मेरे साथ है। 
John 16:33 मैं ने ये बातें तुम से इसलिये कही हैं, कि तुम्हें मुझ में शान्‍ति मिले; संसार में तुम्हें क्‍लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बांधो, मैं ने संसार को जीत लिया है।

एक साल में बाइबल: 
  • उत्पत्ति 41-42
  • मत्ती 12:1-23



शुक्रवार, 16 जनवरी 2015

उल्टी शिक्षाएं


   प्रभु यीशु से संबंधित ऐसी अनेक बातें हैं जो मेरे अन्दर कौतूहल उत्पन्न करती हैं। प्रभु यीशु की सेवकाई की एक बात जो सदा लोगों को चकित और उन्हें सोचने के लिए विवश करती रही है, वह है उनकी सांसारिक व्यवहार और समझ से उल्ट लगने वाली शिक्षाएं।

   हमारी जीवन यात्रा में ऐसा समय भी आता है जब हम यह समझने लगते हैं कि हम सब कुछ जानने लग गए हैं, सब बातों की समझ अब हम में है, और हम अब जीवन के मार्गों पर सही रीति से चलना सीख चुके हैं। लेकिन प्रभु यीशु हमारे जीवन में हस्तक्षेप करके हमें एक नए और बेहतर मार्ग पर चलने के लिए बुलाता है। किंतु सावधान! प्रभु यीशु के मार्गों पर चलना चुनौती भरा है। संसार के व्यवहार और मान्यताओं के परिपेक्ष में उल्ट लगने वाली तथा विरोधाभास से भरी प्रभु यीशु की कुछ शिक्षाओं पर विचार कीजिए:
  • जीने के लिए मरना पड़ेगा (मरकुस 8:35);
  • पाने के लिए देना होगा (मत्ती 19:21);
  • "धन्य हैं वे जो विलाप करते हैं" (मत्ती 5:4);
  • प्रधान बनने के लिए सेवक बनना होगा (लूका 22:26);
  • दुख एवं कष्टों का भी उद्देश्य है (मत्ती 5:10-11)।

   ऐसी शिक्षाओं को सुनकर लोग सोचते हैं कि प्रभु यीशु संसार की वास्तविकताओं तथा उनके अनुरूप आवश्यक व्यवहार से अनभिज्ञ हैं। लेकिन वास्तविकता तो यह है कि अनभिज्ञ प्रभु यीशु नहीं हम हैं; वह उल्टा नहीं है, उल्टे हम हैं! हम उन छोटे बच्चों के समान हैं जो यह मानकर चलते हैं के वे अपने माता-पिता से बेहतर जानते हैं, बेहतर समझ रखते हैं। इसीलिए परमेश्वर ने कहा है, "...मेरे विचार और तुम्हारे विचार एक समान नहीं है, न तुम्हारी गति और मेरी गति एक सी है" (यशायाह 55:8)।

   आखिरकर हम और यह स्मस्त सृष्टि प्रभु यीशु ही की बनाई हुई है (कुलुस्सियों 1:15-17), इसीलिए वह बेहतर जानता है कि इसमें कार्य तथा इसका संचालन सही रीति से किस प्रकार हो सकता है। इसलिए अपनी उल्टे नैसर्गिक गुणों, सहजज्ञान और सांसारिक मान्यताओं पर भरोसा रखकर चलते रहने और कार्य करने की बजाए, हमारे लिए भला होगा कि हम प्रभु यीशु की शिक्षाओं को अपना लें और उनका पालन करें। - जो स्टोवैल


जो हमें उल्टा लगता है, वह परमेश्वर की दृष्टि में सही है।

वह तो अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप और सारी सृष्‍टि में पहिलौठा है। क्योंकि उसी में सारी वस्‍तुओं की सृष्‍टि हुई, स्वर्ग की हो अथवा पृथ्वी की, देखी या अनदेखी, क्या सिंहासन, क्या प्रभुतांए, क्या प्रधानताएं, क्या अधिकार, सारी वस्तुएं उसी के द्वारा और उसी के लिये सृजी गई हैं। और वही सब वस्‍तुओं में प्रथम है, और सब वस्तुएं उसी में स्थिर रहती हैं। - कुलुस्सियों 1:15-17

बाइबल पाठ: यशायाह 55:6-13
Isaiah 55:6 जब तक यहोवा मिल सकता है तब तक उसकी खोज में रहो, जब तक वह निकट है तब तक उसे पुकारो; 
Isaiah 55:7 दुष्ट अपनी चालचलन और अनर्थकारी अपने सोच विचार छोड़कर यहोवा ही की ओर फिरे, वह उस पर दया करेगा, वह हमारे परमेश्वर की ओर फिरे और वह पूरी रीति से उसको क्षमा करेगा। 
Isaiah 55:8 क्योंकि यहोवा कहता है, मेरे विचार और तुम्हारे विचार एक समान नहीं है, न तुम्हारी गति और मेरी गति एक सी है। 
Isaiah 55:9 क्योंकि मेरी और तुम्हारी गति में और मेरे और तुम्हारे सोच विचारों में, आकाश और पृथ्वी का अन्तर है।
Isaiah 55:10 जिस प्रकार से वर्षा और हिम आकाश से गिरते हैं और वहां यों ही लौट नहीं जाते, वरन भूमि पर पड़कर उपज उपजाते हैं जिस से बोने वाले को बीज और खाने वाले को रोटी मिलती है, 
Isaiah 55:11 उसी प्रकार से मेरा वचन भी होगा जो मेरे मुख से निकलता है; वह व्यर्थ ठहरकर मेरे पास न लौटेगा, परन्तु, जो मेरी इच्छा है उसे वह पूरा करेगा, और जिस काम के लिये मैं ने उसको भेजा है उसे वह सफल करेगा।
Isaiah 55:12 क्योंकि तुम आनन्द के साथ निकलोगे, और शान्ति के साथ पहुंचाए जाओगे; तुम्हारे आगे आगे पहाड़ और पहाडिय़ां गला खोल कर जयजयकार करेंगी, और मैदान के सब वृक्ष आनन्द के मारे ताली बजाएंगे। 
Isaiah 55:13 तब भटकटैयों की सन्ती सनौवर उगेंगे; और बिच्छु पेड़ों की सन्ती मेंहदी उगेगी; और इस से यहोवा का नाम होगा, जो सदा का चिन्ह होगा और कभी न मिटेगा।

एक साल में बाइबल: 
  • उत्पत्ति 39-40
  • मत्ती 11



गुरुवार, 15 जनवरी 2015

प्रार्थना


   जब मुझे ज्ञात हुआ कि मेरी बहन को कैंसर है तब मैंने अपने मित्रों से उसके लिए प्रार्थना करने को कहा। जब इलाज के लिए उसका ऑपरेशन किया गया तब हम ने प्रार्थना करी कि सर्जन सारे कैंसर को निकालने पाए, कुछ भी अन्दर ना रहने पाए जिससे मेरी बहन को कीमोथैरपी या विकिरण चिकित्सा से होकर ना निकलना पड़े - और परमेश्वर ने हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया, हाँ! जब मैंने यह समाचार अपने मित्रों को बताया, तो एक मित्र ने कहा, "मैं बहुत प्रसन्न हूँ कि प्रार्थना में सामर्थ है"; और मैंने कहा, "मैं बहुत धन्यवादी हूँ कि इस बार परमेश्वर ने हमें ’हाँ’ में उत्तर दिया है।"

   परमेश्वर के वचन बाइबल में याकूब ने कहा, "...धर्मी जन की प्रार्थना के प्रभाव से बहुत कुछ हो सकता है" (याकूब 5:16)। लेकिन क्या इसका यह तात्पर्य है कि हम जितने अधिक ज़ोर से, या जितने अधिक लोगों को साथ लेकर प्रार्थना करेंगे, प्रार्थना का उत्तर ’हाँ’ में पाने की संभावना उतनी अधिक बढ़ जाएगी? मुझे अनेकों प्राथनाओं के उत्तर ’नहीं’ में, या फिर ’अभी प्रतीक्षा करो’ में मिल चुके हैं इसलिए मैं उस संभावना बढ़ाने वाले तर्क से सहमत नहीं हूँ।

   यह निश्चित है कि प्रार्थना में सामर्थ है, लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि प्रार्थना में बड़ा भेद भी है। बाइबल हमें सिखाती है कि हमें विश्वास के साथ, दृढ़तापूर्वक, निर्भीक होकर, धैर्य के साथ अपनी इच्छा प्रार्थना में परमेश्वर के सम्मुख रखनी चाहिए किंतु साथ ही हमें परमेश्वर की इच्छा के प्रति समर्पित भी रहना चाहिए, क्योंकि परमेश्वर अपनी इच्छा और बुद्धिमता में होकर जो भी देता है वही सर्वोत्तम तथा सबसे उपयुक्त होता है। मुझे इस बात से शांति है कि परमेश्वर हमारे दिल की बात सुनना चाहता है, और उसका उत्तर जो भी हो, वह भला ही करता है।

   मुझे ओले हैल्सबी का कथन पसन्द है, उन्होंने कहा, "प्रार्थना और सांसारिक रीति से असहाय होना एक दूसरे से अलग नहीं किए जा सकते। जो सांसारिक रीति से असहाय होते हैं वे ही वास्तव में प्रार्थना कर सकते हैं। आपका सांसारिक रीति से असहाय होना ही आपकी प्रार्थना के सफल होने की कुँजी है।"

   प्रार्थना में लगे रहें! - ऐनी सेटास


असहाय सन्तान द्वारा प्रेमी सामर्थी पिता को भेजी गई पुकार ही प्रार्थना है।

किसी भी बात की चिन्‍ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख अपस्थित किए जाएं। तब परमेश्वर की शान्‍ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरिक्षत रखेगी। - फिलिप्पियों 4:6-7

बाइबल पाठ: याकूब 5:13-18
James 5:13 यदि तुम में कोई दुखी हो तो वह प्रार्थना करे: यदि आनन्‍दित हो, तो वह स्‍तुति के भजन गाए। 
James 5:14 यदि तुम में कोई रोगी हो, तो कलीसिया के प्राचीनों को बुलाए, और वे प्रभु के नाम से उस पर तेल मल कर उसके लिये प्रार्थना करें। 
James 5:15 और विश्वास की प्रार्थना के द्वारा रोगी बच जाएगा और प्रभु उसको उठा कर खड़ा करेगा; और यदि उसने पाप भी किए हों, तो उन की भी क्षमा हो जाएगी। 
James 5:16 इसलिये तुम आपस में एक दूसरे के साम्हने अपने अपने पापों को मान लो; और एक दूसरे के लिये प्रार्थना करो, जिस से चंगे हो जाओ; धर्मी जन की प्रार्थना के प्रभाव से बहुत कुछ हो सकता है। 
James 5:17 एलिय्याह भी तो हमारे समान दुख-सुख भोगी मनुष्य था; और उसने गिड़िगड़ा कर प्रार्थना की; कि मेंह न बरसे; और साढ़े तीन वर्ष तक भूमि पर मेंह नहीं बरसा। 
James 5:18 फिर उसने प्रार्थना की, तो आकाश से वर्षा हुई, और भूमि फलवन्‍त हुई।

एक साल में बाइबल: 
  • उत्पत्ति 36-38
  • मत्ती 10:21-42



बुधवार, 14 जनवरी 2015

प्रोत्साहक


   कठिन मंदी के दौर में मैंने अपने साथी मसीही विश्वासियों के साथ अन्य बेरोज़गार मसीही विश्वासियों की सहायता और प्रोत्साहन के लिए एक सहायता समूह बनाया। हम उन बेरोज़गार लोगों के नौकरी पाने में सहायता के लिए उनकी अर्ज़ियों, शैक्षिक एवं कार्य अनुभव आदि को अच्छी रीति से लिखने में सहायता करते, लोगों के साथ संपर्क करके उनके रोज़गार के अवसर तलाशते और उनके लिए प्रार्थनाएं किया करते थे। लेकिन एक समस्या बार-बार सामने आने लगी, जब किसी को नौकरी मिल जाती तो विरला ही कोई होगा जो समूह के लोगों को प्रोत्साहित करने लौटा होगा। इससे समूह में शेष रह गए लोगों में एकाकीपन और निराशा बढ़ जाती थी।

   लेकिन इस से भी बदतर थीं वे टिप्पणियाँ जो उन लोगों से सुनने को मिलती थीं जिन्होंने कभी बेरोज़गारी का कष्ट अनुभव नहीं करा था। उन लोगों की बातें अय्युब के मित्रों द्वारा उसके कष्ट के समय में उस पर लगाए जाने वाले लांछनों के समान ही होते थे; जैसा अय्युब के मित्रों ने उससे कहा: "और यदि तू निर्मल और धमीं रहता, तो निश्चय वह तेरे लिये जागता; और तेरी धमिर्कता का निवास फिर ज्यों का त्यों कर देता" (अय्युब 8:6)। जब हम परमेश्वर के वचन बाइबल में अय्युब और उसके मित्रों के बीच हो रहे इस संवाद को पढ़ते हैं तो अय्युब की पुस्तक के बारहवें अध्याय में पहुँचने तक अय्युब उनसे कहना आरंभ कर देता है कि जिन लोगों का जीवन सरल रहा है, वह उन से उपेक्षित अनुभव कर रहा है (पद 5)।

   जब हमारे लिए सब कुछ अच्छा चल रहा हो तब कभी-कभी हम यह सोचना आरंभ कर देते हैं कि या तो हम उन लोगों से जो कष्ट में होकर निकल रहे हैं भले हैं, या फिर परमेश्वर उनसे तो कम और हम से अधिक प्रेम रखता है। हम यह नज़रन्दाज़ कर बैठते हैं कि परमेश्वर तो सभी से समान ही प्रेम रखता है, और सब का ही भला चाहता है, इसीलिए तो उसने सारे संसार के सभी लोगों के उद्धार के लिए अपने एकलौते पुत्र प्रभु यीशु को इस संसार में बलिदान होने के लिए भेजा। साथ ही हम यह भी भूल जाते हैं कि इस पतित संसार के दुषप्रभाव किसी को भी, कभी भी और किसी भी सीमा तक प्रभावित कर सकते हैं; जो स्थिति आज किसी और की है, वही या उससे भी बुरी कल हमारी भी हो सकती है।

   हम चाहे अच्छे समय से होकर निकल रहे हों या फिर बुरे, हमें परमेश्वर की सहायता की आवश्यकता सदा ही रहती है। परमेश्वर हम से यह भी आशा रखता है कि उसके द्वारा हमें प्रदान करी गई सफलता, समृद्धि और सामर्थ को हम दूसरों की भलाई और प्रोत्साहन में उपयोग करें। वह हमें आलोचक नहीं प्रोत्साहक देखना चाहता है। - रैन्डी किलगोर


परमेश्वर के प्रति दीनता हमें दूसरों के प्रति नम्रता प्रदान करती है।

हम पर अनुग्रह कर, हे यहोवा, हम पर अनुग्रह कर, क्योंकि हम अपमान से बहुत ही भर गए हैं। हमारा जीव सुखी लोगों के ठट्ठों से, और अहंकारियों के अपमान से बहुत ही भर गया है। - भजन 123:3-4

बाइबल पाठ: अय्युब 12:1-10
Job 12:1 तब अय्यूब ने कहा; 
Job 12:2 नि:सन्देह मनुष्य तो तुम ही हो और जब तुम मरोगे तब बुद्धि भी जाती रहेगी। 
Job 12:3 परन्तु तुम्हारी नाईं मुझ में भी समझ है, मैं तुम लोगों से कुछ नीचा नहीं हूँ कौन ऐसा है जो ऐसी बातें न जानता हो? 
Job 12:4 मैं ईश्वर से प्रार्थना करता था, और वह मेरी सुन लिया करता था; परन्तु अब मेरे पड़ोसी मुझ पर हंसते हैं; जो धमीं और खरा मनुष्य है, वह हंसी का कारण हो गया है। 
Job 12:5 दु:खी लोग तो सुखियों की समझ में तुच्छ जाने जाते हैं; और जिनके पांव फिसला चाहते हैं उनका अपमान अवश्य ही होता है। 
Job 12:6 डाकुओं के डेरे कुशल क्षेम से रहते हैं, और जो ईश्वर को क्रोध दिलाते हैं, वह बहुत ही निडर रहते हैं; और उनके हाथ में ईश्वर बहुत देता है। 
Job 12:7 पशुओं से तो पूछ और वे तुझे दिखाएंगे; और आकाश के पक्षियों से, और वे तुझे बता देंगे। 
Job 12:8 पृथ्वी पर ध्यान दे, तब उस से तुझे शिक्षा मिलेगी; ओर समुद्र की मछलियां भी तुझ से वर्णन करेंगी। 
Job 12:9 कौन इन बातों को नहीं जानता, कि यहोवा ही ने अपने हाथ से इस संसार को बनाया है। 
Job 12:10 उसके हाथ में एक एक जीवधारी का प्राण, और एक एक देहधारी मनुष्य की आत्मा भी रहती है।

एक साल में बाइबल: 
  • उत्पत्ति 33-35
  • मत्ती 10:1-20


मंगलवार, 13 जनवरी 2015

सुनिश्चित भविष्य


   मुझे फुटबॉल का खेल बहुत पसन्द है, और मैं इंगलैण्ड के लिवरपूल फुटबॉल क्लब का प्रशंसक हूँ। जब वे खेल रहे होते हैं तो वह मेरे लिए बहुत उत्सुकता से भरा समय होता है, क्योंकि एक गोल या एक चूक खेल के परिणाम को बदल सकती है। इसलिए जब तक वह खेल चल रहा होता है मैं तनाव में बना रहता हूँ, और यही रोमांच खेल को आनन्दपूर्ण भी बनाता है। लेकिन हाल ही में मैंने लिवरपूल द्वारा खेली गई एक प्रतिस्पर्धा की रिकॉर्डिंग देखी, और मुझे आश्चर्य हुआ कि मैं उस खेल को देखते हुए कितना शांत था। ऐसा क्यों? क्योंकि मुझे उस खेल का परिणाम पहले ही पता था! इस कारण मैं शान्त मन और शरीर से उस खेल को देख सका, भाग ले रहे खिलाड़ियों के खेल की बारीकियों पर ध्यान देने पाया और खेल का एक अलग ही आनन्द उठाने पाया।

   जीवन भी रोमांचक खेलों के सीधे प्रसारण के समान ही होता है। कब कुछ अनेपक्षित हो जाए, कुछ अन्होना घट जाए, कब कोई निराशा की स्थिति आ जाए या कोई भय हावी हो जाए, कुछ पता नहीं होता; भविष्य को लेकर तनाव बना रहता है। क्योंकि हम परिणाम से अनभिज्ञ होते हैं इसलिए चिंतित और व्याकुल रहते हैं। लेकिन मसीही विश्वासी इस बात के द्वारा शान्ति प्राप्त कर सकते हैं कि हमारे प्रभु यीशु द्वारा क्रूस पर पूरे किए गए कार्य के द्वारा हमारा भविष्य अनन्तकाल के लिए सुनिश्चित हो चुका है।

   प्रभु यीशु के अनुयायी प्रेरित यूहन्ना ने अपनी पत्री में लिखा, "मैं ने तुम्हें, जो परमेश्वर के पुत्र के नाम पर विश्वास करते हो, इसलिये लिखा है; कि तुम जानो, कि अनन्त जीवन तुम्हारा है" (1 यूहन्ना 5:13)। जीवन हमारे सामने चाहे कैसी भी और कितनी भी अनेपक्षित बातें और परिस्थितियाँ लेकर आए, लेकिन प्रभु यीशु के कार्य के द्वारा हमारा भविष्य सुनिश्चित किया जा चुका है, इसलिए हम मसीही विश्वासियों के लिए कोई चिंता का विषय शेष नहीं रहा है; अनन्त शांति और आनन्द हमारे लिए तैयार हैं। - बिल क्राउडर


जब मसीह यीशु हृदय में राज्य करेगा तो उसकी शान्ति हमारे जीवन में राज्य करेगी।

परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं। - यूहन्ना 1:12

बाइबल पाठ: 1 यूहन्ना 5:10-15
1 John 5:10 जो परमेश्वर के पुत्र पर विश्वास करता है, वह अपने ही में गवाही रखता है; जिसने परमेश्वर को प्रतीति नहीं की, उसने उसे झूठा ठहराया; क्योंकि उसने उस गवाही पर विश्वास नहीं किया, जो परमेश्वर ने अपने पुत्र के विषय में दी है। 
1 John 5:11 और वह गवाही यह है, कि परमेश्वर ने हमें अनन्त जीवन दिया है: और यह जीवन उसके पुत्र में है।
1 John 5:12 जिस के पास पुत्र है, उसके पास जीवन है; और जिस के पास परमेश्वर का पुत्र नहीं, उसके पास जीवन भी नहीं है।
1 John 5:13 मैं ने तुम्हें, जो परमेश्वर के पुत्र के नाम पर विश्वास करते हो, इसलिये लिखा है; कि तुम जानो, कि अनन्त जीवन तुम्हारा है। 
1 John 5:14 और हमें उसके साम्हने जो हियाव होता है, वह यह है; कि यदि हम उस की इच्छा के अनुसार कुछ मांगते हैं, तो हमारी सुनता है। 
1 John 5:15 और जब हम जानते हैं, कि जो कुछ हम मांगते हैं वह हमारी सुनता है, तो यह भी जानते हैं, कि जो कुछ हम ने उस से मांगा, वह पाया है।

एक साल में बाइबल: 
  • उत्पत्ति 31-32
  • मत्ती 9:18-38


सोमवार, 12 जनवरी 2015

उपहार


   अच्छे स्वास्थ्य के लिए अच्छी नींद अनिवार्य है। वैज्ञानिक यह तो भली-भांति नहीं जानते के नींद क्यों आवश्यक है, लेकिन वे यह अवश्य जानते हैं कि अपर्याप्त नींद के क्या-क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं। यदि हम अच्छी और पर्याप्त नींद नहीं लेते तो शरीर की शीथलता, वज़न का बढ़ना, और अनेक बिमारियाँ जैसे ज़ुकाम या फ्लू से लेकर कैंसर तक होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। हमारे सो जाने के बाद जो कुछ परमेश्वर हमारे शरीरों में करता है वह किसी आश्चर्यकर्म से कम नहीं है। जब हम नींद में निष्क्रीय पड़े होते हैं, तब परमेश्वर हमारे शरीरों के रख-रखाव में सक्रीय होता है; वह हमारी ऊर्जा को पुनः स्थापित करता है, हमारे शरीर की कोषिकाओं की मरम्मत करके उन्हें भी पुनःस्थापित करता है और हमारे मस्तिष्क में जमा बातों को सुसंगठित करके सही प्रकार से रखता है।

   अच्छी प्रकार से नींद ना ले पाने के अनेक कारण हो सकते हैं, जिनमें से कुछ ऐसे भी हैं जिनका निवारण संभवतः हमारे हाथों में ना हो, लेकिन परमेश्वर का वचन बाइबल हमें बताती है कि कार्य की अधिकाई अपर्याप्त नींद का कारण नहीं होना चाहिए (भजन 127:2)। नींद परमेश्वर का दिया हुआ एक ऐसा उपहार है जिसे हमें कृतज्ञता के साथ स्वीकार करना चाहिए। यदि हमारी नींद अपर्याप्त है तो हमें यह पता लगाना चाहिए कि ऐसा क्यों है। कहीं ऐसा तो नहीं कि हम प्रातः जल्दी उठते और रात देर से सोते हैं जिससे उन बातों के लिए धन कमा सकें जिनकी हमें आवश्यकता नहीं है। या फिर हम मसीही सेवकाई के ऐसे कार्यों में लगे हैं जिनके लिए हमें लगता है कि उन कार्यों को हमारे सिवाय कोई और अच्छे से नहीं कर सकता।

   मुझे कभी-कभी लगने लगता है कि जो कार्य मैं जागते हुए करती हूँ, वह उस कार्य से अधिक महत्वपूर्ण है जो परमेश्वर मेरे अन्दर तब करता है जब मैं सो रही होती हूँ। लेकिन परमेश्वर के नींद के उपहार की अवहेलना करके उसे हमारे शरीरों में अपना कार्य करने देने में बाधा बनना, एक प्रकार से उससे यह कहना है कि मेरा अपना कार्य आपके कार्य से अधिक महत्वपूर्ण है। परमेश्वर नहीं चाहता कि हम में से कोई भी शारीरिक कार्यों एवं सांसारिक उपलब्धियों की लालसाओं का दास हो जाए। वह चाहता है कि हम उसके उपहार को स्वीकार करके अपने शरिरों को स्वस्थ एवं सुचारू रखें और उसे हमारे अन्दर अपना कार्य अच्छे से करने दें। - जूली ऐकैरमैन लिंक


यदि हम पर्याप्त आराम नहीं करेंगे तो बिखर जाएंगे।

तुम जो सवेरे उठते और देर कर के विश्राम करते और दु:ख भरी रोटी खाते हो, यह सब तुम्हारे लिये व्यर्थ ही है; क्योंकि वह अपने प्रियों को यों ही नींद दान करता है। - भजन 127:2

बाइबल पाठ: भजन 121
Psalms 121:1 मैं अपनी आंखें पर्वतों की ओर लगाऊंगा। मुझे सहायता कहां से मिलेगी? 
Psalms 121:2 मुझे सहायता यहोवा की ओर से मिलती है, जो आकाश और पृथ्वी का कर्ता है।
Psalms 121:3 वह तेरे पांव को टलने न देगा, तेरा रक्षक कभी न ऊंघेगा। 
Psalms 121:4 सुन, इस्राएल का रक्षक, न ऊंघेगा और न सोएगा।
Psalms 121:5 यहोवा तेरा रक्षक है; यहोवा तेरी दाहिनी ओर तेरी आड़ है। 
Psalms 121:6 न तो दिन को धूप से, और न रात को चांदनी से तेरी कुछ हानि होगी।
Psalms 121:7 यहोवा सारी विपत्ति से तेरी रक्षा करेगा; वह तेरे प्राण की रक्षा करेगा। 
Psalms 121:8 यहोवा तेरे आने जाने में तेरी रक्षा अब से ले कर सदा तक करता रहेगा।

एक साल में बाइबल: 
  • उत्पत्ति 29-30
  • मत्ती 9:1-17