ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें : rozkiroti@gmail.com / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2022

प्रभु यीशु की कलीसिया के कार्यकर्ता और उनकी सेवकाई (3)


भविष्यद्वक्ता और भविष्यवाणी (2)

इफिसियों 4:11 में कलीसिया की उन्नति के लिए प्रभु द्वारा नियुक्त किए गए पाँच प्रकार के सेवकों या कार्यकर्ताओं और उनकी सेवकाई या कार्यों के विषय में सूची दी गई है, कहा गया है। मूल यूनानी भाषा में इनके लिए प्रयोग किए गए शब्दों के आधार पर, ये पाँचों कार्यकर्ता और उनके कार्य, वचन की सेवकाई से संबंधित हैं। इनमें से पहले, प्रेरितों, के बारे में हम पहले विस्तार से देख चुके हैं कि वर्तमान में जो लोग अपने आप को प्रेरित घोषित करते हैं, और इसे उपाधि के अनुसार प्रयोग करके ईसाई या मसीही समाज में आदर, सम्मान, और उच्च स्थान प्राप्त करने या दिखाने का यत्न करते हैं, वहप्रेरितशब्द के परमेश्वर के वचन बाइबल में किए गए प्रयोग और अभिप्राय के अनुरूप नहीं है। सूची के दूसरे कार्यकर्ता या सेवक हैं भविष्यद्वक्ता, जिनके बारे में हमने पिछले लेख से देखना आरंभ किया है। हमने देखा है कि परमेश्वर के वचन बाइबल में परमेश्वर के लोगों के मध्य भावी कहने या भविष्य की बातें बताने वाले परमेश्वर की ओर से नियुक्त किए गए भविष्यद्वक्ता, अन्य सेवकाइयों की तुलना में बहुत कम रहे हैं। परमेश्वर ने जब अपने लोगों के मध्य इन भविष्यद्वक्ताओं को खड़ा किया, तब ऐसा परमेश्वर और उसके वचन से विमुख हो चुके उसके लोगों पर, उनके किए के कारण उन पर आने वाले परमेश्वर के प्रकोप और दण्ड के विषय सचेत करने और उन लोगों को अवसर एवं समय रहते परमेश्वर की ओर लौट आने के लिए उकसाने के लिए किया। परमेश्वर के ये भविष्यद्वक्ता लोगों के मनोरंजन के लिए, उनकी मन-पसंद बातें सुनाने, उनके कानों की खुजली मिटाने (2 तीमुथियुस 4:3) के लिए कार्य नहीं करते थे। बाइबल में उल्लेखित सभी भविष्यद्वक्ता परमेश्वर द्वारा खड़े और नियुक्त किए गए थे, और बहुतेरे तो ऐसे भी थे जो इस कार्य को करना ही नहीं चाहते थे, उन्होंने भरसक प्रयास किया कि परमेश्वर उन्हें इस दायित्व से मुक्त कर दे। बाइबल के परमेश्वर के भविष्यद्वक्ताओं में से कोई भी ऐसा नहीं था, जिसने स्वयं ही इस सेवकाई को अपना लिया हो, या फिर अपनी या कुछ अन्य मनुष्यों, अथवा किसी मत या समुदाय के कहने पर भविष्यद्वक्ता बन बैठा हो। 

पुराने और नए नियम की मूल इब्रानी और यूनानी भाषाओं के जिन शब्दों का अनुवाद भविष्यद्वक्ता या Prophet और भविष्यवाणी या Prophesy किया गया है, आम धारणा के विपरीत उनका शब्दार्थ हमेशा ही भावी कहना या भविष्य के बातें बताना ही नहीं होता है। मोटे तौर पर इन शब्दों का अभिप्राय होता हैसामने बोलना”, जहाँसामनेसेआने वाले समय के बारे मेंनहीं वरन अभिप्रायसमक्षका रहता है; अर्थात किसी व्यक्ति या समूह के सामने, या समक्ष, या सम्मुख खड़े होकर उन्हें संबोधित करना, उनसे कुछ कहना। साथ ही आवश्यक नहीं कि जो बोला जाए वह लेख के समान गद्य ही हो, वह गीत या कविता/पद्य भी हो सकता है। और बाइबल में ये शब्द केवल यहोवा परमेश्वर के सेवकों और उनकी सेवकाइयों के लिए ही प्रयोग नहीं किए गए हैं; वरन अन्य देवी-देवताओं के उपासकों और उनके कार्य के लिए भी प्रयोग किए गए हैं। परमेश्वर के वचन बाइबल से भविष्यद्वक्ता और भविष्यवाणी शब्दों के प्रयोग के कुछ उदाहरण देखते हैं:

  • किसी देवी-देवता को पुकारना:  1 राजा 18:29 “वे दोपहर भर ही क्या, वरन भेंट चढ़ाने के समय तक नबूवत करते रहे, परन्तु कोई शब्द सुन न पड़ा; और न तो किसी ने उत्तर दिया और न कान लगाया” - एल्लियाह से मिली चुनौती के अंतर्गत बाल देवता के नबी अपने देवता को भरसक पुकारते रहे।
  • अपने शब्दों के द्वारा लोगों को आश्वस्त करना, शांत या सांत्वना देना: 1 कुरिन्थियों 14:3 “परन्तु जो भविष्यवाणी करता है, वह मनुष्यों से उन्नति, और उपदेश, और शान्ति की बातें कहता है
  • परमेश्वर द्वारा दी गई आज्ञा को बोलना और मानना: 
    • यहेजकेल 37:4 “तब उसने मुझ से कहा, इन हड्डियों से भविष्यवाणी कर के कह, हे सूखी हड्डियों, यहोवा का वचन सुनो
    • यहेजकेल 37:9-10 तब उसने मुझ से कहा, हे मनुष्य के सन्तान सांस से भविष्यवाणी कर, और सांस से भविष्यवाणी कर के कह, हे सांस, परमेश्वर यहोवा यों कहता है कि चारों दिशाओं से आकर इन घात किए हुओं में समा जा कि ये जी उठें। उसकी इस आज्ञा के अनुसार मैं ने भविष्यवाणी की, तब सांस उन में आ गई, ओर वे जीकर अपने अपने पांवों के बल खड़े हो गए; और एक बहुत बड़ी सेना हो गई
  • परमेश्वर की ओर से आने वाली घटनाओं और बातों के बारे में बताना:
    • यहेजकेल 36:1, 3 “फिर हे मनुष्य के सन्तान, तू इस्राएल के पहाड़ों से भविष्यवाणी कर के कह, हे इस्राएल के पहाड़ों, यहोवा का वचन सुनोइस कारण भविष्यवाणी कर के कह, परमेश्वर यहोवा यों कहता हे, लोगों ने जो तुम्हें उजाड़ा और चारों ओर से तुम्हें ऐसा निगल लिया कि तुम बची हुई जातियों का अधिकार हो जाओ, और लुतरे तुम्हारी चर्चा करते और साधारण लोग तुम्हारी निन्दा करते हैं;
    • यहेजकेल 37:12-14 इस कारण भविष्यवाणी कर के उन से कह, परमेश्वर यहोवा यों कहता है, हे मेरी प्रजा के लोगों, देखो, मैं तुम्हारी कब्रें खोल कर तुम को उन से निकालूंगा, और इस्राएल के देश में पहुंचा दूंगा। सो जब मैं तुम्हारी कब्रें खोलूं, और तुम को उन से निकालूं, तब हे मेरी प्रजा के लोगों, तुम जान लोगे कि मैं यहोवा हूँ। और मैं तुम में अपना आत्मा समाऊंगा, और तुम जीओगे, और तुम को तुम्हारे निज देश में बसाऊंगा; तब तुम जान लोगे कि मुझ यहोवा ही ने यह कहा, और किया भी है, यहोवा की यही वाणी है
  • परमेश्वर के प्रभाव में आकर उसके निर्देश के अनुसार बोलना: 
    • अमोस 3:8 “सिंह गरजा; कौन न डरेगा? परमेश्वर यहोवा बोला; कौन भविष्यवाणी न करेगा”?
    • यहेजकेल 36:6 इस कारण इस्राएल के देश के विषय में भविष्यवाणी कर के पहाड़ों, पहाडिय़ों, नालों, और तराइयों से कह, परमेश्वर यहोवा यों कहता है, देखो, तुम ने जातियों की निन्दा सही है, इस कारण मैं अपनी बड़ी जलजलाहट से बोला हूँ
  • आराधना, स्तुति करना, और आराधना के लिए संगीत वाद्य बजाना: 1 इतिहास 25:1-6  “फिर दाऊद और सेनापतियों ने आसाप, हेमान और यदूतून के कितने पुत्रों को सेवकाई के लिये अलग किया कि वे वीणा, सारंगी और झांझ बजा बजाकर नबूवत करें। और इस सेवकाई के काम करने वाले मनुष्यों की गिनती यह थी: अर्थात आसाप के पुत्रों में से तो जक्कूर, योसेप, नतन्याह और अशरेला, आसाप के ये पुत्र आसाप ही की आज्ञा में थे, जो राजा की आज्ञा के अनुसार नबूवत करता था। फिर यदूतून के पुत्रों में से गदल्याह, सरीयशायाह, हसब्याह, मत्तित्याह, ये ही छ: अपने पिता यदूतून की आज्ञा में हो कर जो यहोवा का धन्यवाद और स्तुति कर कर के नबूवत करता था, वीणा बजाते थे। और हेमान के पुत्रों में से, मुक्किय्याह, मत्तन्याह, लज्जीएल, शबूएल, यरीमोत, हनन्याह, हनानी, एलीआता, गिद्दलती, रोममतीएजेर, योशबकाशा, मल्लोती, होतीर और महजीओत। परमेश्वर की प्रतिज्ञानुकूल जो उसका नाम बढ़ाने की थी, ये सब हेमान के पुत्र थे जो राजा का दर्शी था; क्योंकि परमेश्वर ने हेमान को चौदह बेटे और तीन बेटियां दीं थीं। ये सब यहोवा के भवन में गाने के लिये अपने अपने पिता के आधीन रह कर, परमेश्वर के भवन, की सेवकाई में झांझ, सारंगी और वीणा बजाते थे। और आसाप, यदूतून और हेमान राजा के आधीन रहते थे
  • किसी गुप्त या अनजानी बात को बताना: लूका 22:64 “और उस की आंखे ढांपकर उस से पूछा, कि भविष्यवाणी कर के बता कि तुझे किसने मारा” - प्रभु यीशु मसीह को पकड़ने के बाद उसका का ठट्ठा करते समय उससे उपहास करते हुए पूछना।  

साथ ही ध्यान कीजिए कि बाइबल में भविष्यद्वक्ताओं और उनकी बातों के उदाहरणों के आधार पर यह भी प्रकट और स्पष्ट है कि परमेश्वर द्वारा नियुक्त भविष्यद्वक्ता की कही हर बात भीभविष्यवाणीनहीं होती थी। बाइबल मेंभविष्यवाणीकेवल उसे ही कहा गया है जो परमेश्वर के उस भविष्यद्वक्ता ने परमेश्वर के कहे पर और उसकी ओर से कहा है। कई बार भविष्यद्वक्ताओं ने अपनी भावनाएं और विचार भी व्यक्त किए, किन्तु उन सभी बातों कोभविष्यवाणीनहीं कहा गया है। और न ही यह अनिवार्य है कि परमेश्वर का नियुक्त भविष्यद्वक्ता यदि कुछ कहेगा, तो परमेश्वर उसकी हर बात को मानने और पूरा करने के लिए बाध्य है। इन बातों का एक अच्छा उदाहरण है 2 शमूएल 7 अध्याय में दाऊद द्वारा परमेश्वर के लिए भवन बनवाने की लालसा रखना, उसे व्यक्त करना, और नातान नबी द्वारा दाऊद की इस इच्छा का अनुमोदन करना। किन्तु परमेश्वर ने दाऊद और नातान दोनों ही की इस बात को अस्वीकार कर दिया, यद्यपि वे दोनों उसके जन थे, उससे प्रेम करते थे, और परमेश्वर के आदर एवं महिमा के लिए कुछ करने की इच्छा रखते थे। परमेश्वर ने उन दोनों को अपने लोग, अपने नबी होने से तिरस्कार नहीं किया, किन्तु उनकी लालसा को स्वीकार करने और मानने के लिए भी परमेश्वर बाध्य नहीं बना। इसलिए हरभविष्यद्वक्ताकी हर बातभविष्यवाणीनहीं है, चाहे वह बात परमेश्वर के आदर और महिमा के लिए ही क्यों न कही गई हो; और न ही हर बात परमेश्वर की ओर से पूरी होगी, जब तक कि उसभविष्यद्वक्ताने परमेश्वर की ओर से और उसकी अधीनता में होकर वह बात न कही हो।

आज ईसाई या मसीही समाज में, विशेषकर उन समुदायों और डिनॉमिनेशंस में जो परमेश्वर पवित्र आत्मा के बारे में गलत शिक्षाएं बताते और सिखाते रहते हैं, ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अपने आप कोनबीयाभविष्यद्वक्ताकहते हैं, और परमेश्वर के नाम से कुछ भी कहते रहते हैं। उनका मुख्य ध्येय अपने आप को उच्च और प्रशंसनीय बनाना तथा परमेश्वर के नाम, काम, और उसके वचन के द्वारा अपने लिए सांसारिक लाभ, संपत्ति, यश, ओहदा, आदि एकत्रित करना होता है।  यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह अनिवार्य है कि आप परमेश्वर के वचन की गलत समझ और गलत उपयोग से बचें। वचन की सही समझ और सही उपयोग आपके लिए आत्मिक उन्नति और आशीष का कारण होगा, किन्तु गलत समझ और गलत उपयोग बहुत हानिकारक होगा। इसलिए यदि आप किसी गलत शिक्षा अथवा धारणा में पड़े हुए हैं, तो स्थिति को जाँच-परखकर अभी समय और अवसर के रहते उससे बाहर निकल आएं, आवश्यक सुधार कर लें।

  यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी। 

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • निर्गमन 34-35      
  • मत्ती 22:23-46 

गुरुवार, 3 फ़रवरी 2022

प्रभु यीशु की कलीसिया के कार्यकर्ता और उनकी सेवकाई (2)


भविष्यद्वक्ता और भविष्यवाणी (1)

 पिछले लेख से हमने इफिसियों 4:11 से उन पाँच प्रकार के सेवकों और उनकी सेवकाइयों के विषय देखना आरंभ किया है, जिन्हें प्रभु ने अपनी कलीसिया की उन्नति के लिए स्थानीय कलीसियाओं में नियुक्त किया है। जैसा शैतान का स्वभाव और कार्य है, वह प्रभु की हर बात के विषय लोगों में असमंजस, गलत शिक्षाएं, और विरोधाभास डालता रहता है। इन पाँच प्रकार के सेवकों और उनकी सेवकाई को लेकर भी उसने मसीही विश्वासियों, कलीसियाओं, तथा ईसाई समाज में यही कर रखा है। इसी कारण प्रभु के वचन की इन बातों और इन सेवकों के लिए प्रयोग किए गए संज्ञात्मक शब्दों को लेकर लोगों में आज बहुत सी गलत धारणाएं, मान्यताएं, और शिक्षाएं देखी जाती हैं। शैतान द्वारा डाली गई इन भ्रामक बातों की वास्तविकता को समझ कर, इन बातों के विषय वचन की सच्चाई को जानना और समझना हमारे लिए अनिवार्य है। मूल यूनानी भाषा में इन पाँचों सेवकाइयों के लिए प्रयोग किए गए शब्द, वचन की सेवकाई के विभिन्न स्वरूपों को दिखाते हैं। 

पिछले लेख में हमने पहले प्रकार के सेवक - प्रेरितों और उनकी सेवकाई के बारे में, वचन में दी गई शिक्षाओं से देखा था कि प्रभु ने ही प्रेरितों को नियुक्त किया, प्रभु का हर शिष्य प्रेरित नहीं कहलाया जाता था, वचन में किसी मनुष्य द्वारा प्रेरितों की नियुक्ति के लिए कोई निर्देश नहीं दिए गए, और आरंभिक कलीसिया में, जब परमेश्वर का वचन बाइबल अपनी संपूर्णता में नहीं लिखी गई थी, तब प्रभु के वचन की शिक्षाओं का दायित्व प्रेरितों को सौंपा गया। प्रभु ने अपने वचन को परमेश्वर पवित्र आत्मा की अगुवाई में अपने प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा लिखवाया, और हमें उपलब्ध करवा दिया, और मसीही सेवकों को यह दायित्व सौंपा कि इस वचन को पवित्र आत्मा की अगुवाई और मार्गदर्शन में औरों को सिखाएं, विशेषकर ऐसे लोगों को जो फिर इसे अन्य लोगों को भी सिखा सकें। इस रीति से आज भी प्रेरित और भविष्यद्वक्ता, उनके द्वारा लिखे गए वचन में होकर, हमें प्रभु के वचन की शिक्षाएं देने का कार्य कर रहे हैं। वचन में उन पहले प्रेरितों की सेवकाई और उनके समय के बाद प्रभु द्वारा किसी और के प्रेरित नियुक्त किए जाने का कोई उल्लेख, उदाहरण, या शिक्षा नहीं है। किन्तु शैतान के लिए अवश्य लिखा है कि उसके दूत झूठे प्रेरित बनकर लोगों को बहकाते और भरमाते रहते हैं। इसलिए जो आज अपने आप को प्रेरित कहते हैं, इस सेवकाई को एक उपाधि के समान यश और प्रशंसा प्राप्ति के लिए प्रयोग करते हैं, उनसे सावधान रहने, और उन्हें पिछले लेख में दिए गए प्रेरितों के गुणों और चिह्नों के आधार पर जाँचने, परखने, और तब ही उनके दावे को स्वीकार करना अति-आवश्यक है।  

आज के इस लेख में हम इन पाँच में से दूसरे सेवक, भविष्यद्वक्ताओं और उनकी सेवकाई के बारे में वचन के तथ्य देखेंगे। प्रेरितों और उनकी सेवकाई के समान, भविष्यद्वक्ताओं की इस सेवकाई को लेकर भी शैतान ने बहुत सी गलत शिक्षाएं, धारणाएं, और बातें फैला रखी हैं। सामान्यतः, लोग यही समझते और मानते हैं कि बाइबल के अनुसार भविष्यद्वक्ता होने, या भविष्यवाणी करने का अर्थ है भावी कहना या भविष्य की बातें बताना। निःसंदेह परमेश्वर ने अपने लोगों के मध्य कुछ लोगों को भविष्य की बातें बताने के लिए सक्षम किया और इसके लिए खड़ा किया; किन्तु परमेश्वर द्वारा नियुक्त और खड़े किए गए ये भविष्यद्वक्ता, अन्य सेवकों और सेवकाइयों की तुलना में, संख्या में बहुत कम और केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में ही देखे जाते हैं। परमेश्वर के वचन में परमेश्वर द्वारा नियुक्त ये भविष्यद्वक्ता सामान्यतः हर समय और हर स्थान पर इस्राएली या मसीही समाज में नहीं देखे जाते हैं। पुराने नियम में परमेश्वर के लोगों में, इस्राएली या यहूदियों में, और नए नियम में मसीही विश्वासियों और प्रभु यीशु की मण्डली में इन भविष्यद्वक्ताओं की सेवकाई मुख्यतः ऐसे समयों पर देखी जाती है जब परमेश्वर के लोग पाप में भ्रष्ट होकर बिगड़ते चले जा रहे थे, परमेश्वर से दूर होते जा रहे थे, और इस बात के लिए उनके आते दण्ड और विनाश के लिए उन्हें चेतावनियाँ देने, उन्हें वापस परमेश्वर की ओर लौट आने के लिए उकसाने को इन भविष्यद्वक्ताओं की सेवकाई चेतावनी के वचन के रूप में रही है। उस दण्ड और विनाश के साथ, परमेश्वर ने अपने प्रेम, उनकी बहाली और आशीषों आदि के विषय भी भविष्यवाणियों में आश्वस्त किया; किन्तु संपूर्ण बाइबल में सभी भविष्यद्वक्ताओं की सेवकाई परमेश्वर से भटके हुए लोगों को परमेश्वर की ओर वापस मुड़ने अन्यथा भारी दण्ड और ताड़ना का सामना से संबंधित ही रही है। नए नियम में भविष्यवाणी की और बाइबल की अंतिम पुस्तक, प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में भी सारे संसार के सभी लोगों के लिए इसी विषय की बातों को देखा जाता है। अर्थात, बाइबल के आधार पर, भविष्यवाणी करना और भविष्यद्वक्ता की ज़िम्मेदारी निभाना कोई हल्की या आम बात नहीं थी; उसके गंभीर अभिप्राय थे। 

 किन्तु आज के ईसाई समाज या मसीहियों में, विशेषकर उन में जो परमेश्वर पवित्र आत्मा के नाम से अनेकों प्रकार की गलत शिक्षाओं और धारणाओं को मानते और मनाते हैं, औरों को बताते तथा सिखाते हैं, परमेश्वर के नाम से कुछ भीभविष्यवाणीके रूप में कह देना एक आम बात हो गई है। ऐसा इसलिए क्योंकि परमेश्वर के वचन में प्रयोग किए गए “भविष्यद्वक्ता” और “भविष्यवाणी” शब्दों की सही समझ उन्हें नहीं है। “भविष्यद्वक्ता” और “भविष्यवाणी” शब्दों का यह दुरुपयोग न केवल वचन के विरुद्ध है, वरन परमेश्वर की ओर से इसकी भर्त्सना की गई है, और इसे परमेश्वर द्वारा दण्डनीय बताया गया है। इस संदर्भ में परमेश्वर के वचन से कुछ पद देखिए:

  • व्यवस्थाविवरण 18:21-22 “और यदि तू अपने मन में कहे, कि जो वचन यहोवा ने नहीं कहा उसको हम किस रीति से पहचानें? तो पहचान यह है कि जब कोई नबी यहोवा के नाम से कुछ कहे; तब यदि वह वचन न घटे और पूरा न हो जाए, तो वह वचन यहोवा का कहा हुआ नहीं; परन्तु उस नबी ने वह बात अभिमान कर के कही है, तू उस से भय न खाना
  • यहेजकेल 13:2-3 हे मनुष्य के सन्तान, इस्राएल के जो भविष्यद्वक्ता अपने ही मन से भविष्यवाणी करते हैं, उनके विरुद्ध भविष्यवाणी कर के तू कह, यहोवा का वचन सुनो। प्रभु यहोवा यों कहता है, हाय, उन मूढ़ भविष्यद्वक्ताओं पर जो अपनी ही आत्मा के पीछे भटक जाते हैं, और कुछ दर्शन नहीं पाया!”
  • यहेजकेल 13:6-9 “वे लोग जो कहते हैं, यहोवा की यह वाणी है, उन्होंने भावी का व्यर्थ और झूठा दावा किया है; और तब भी यह आशा दिलाई कि यहोवा यह वचन पूरा करेगा; तौभी यहोवा ने उन्हें नहीं भेजा। क्या तुम्हारा दर्शन झूठा नहीं है, और क्या तुम झूठमूठ भावी नहीं कहते? तुम कहते हो, कि यहोवा की यह वाणी है; परन्तु मैं ने कुछ नहीं कहा है। इस कारण प्रभु यहोवा तुम से यों कहता है, तुम ने जो व्यर्थ बात कही और झूठे दर्शन देखे हैं, इसलिये मैं तुम्हारे विरुद्ध हूँ, प्रभु यहोवा की यही वाणी है। जो भविष्यद्वक्ता झूठे दर्शन देखते और झूठमूठ भावी कहते हैं, मेरा हाथ उनके विरुद्ध होगा, और वे मेरी प्रजा की गोष्ठी में भागी न होंगे, न उनके नाम इस्राएल की नामावली में लिखे जाएंगे, और न वे इस्राएल के देश में प्रवेश करने पाएंगे; इस से तुम लोग जान लोगे कि मैं प्रभु यहोवा हूँ
  • यिर्मयाह 5:31 “भविष्यद्वक्ता झूठमूठ भविष्यवाणी  करते हैं; और याजक उनके सहारे से प्रभुता करते हैं; मेरी प्रजा को यह भाता भी है, परन्तु अन्त के समय तुम क्या करोगे?”
  • यिर्मयाह 14:14 “और यहोवा ने मुझ से कहा, ये भविष्यद्वक्ता मेरा नाम ले कर झूठी भविष्यवाणी  करते हैं, मैं ने उन को न तो भेजा और न कुछ आज्ञा दी और न उन से कोई भी बात कही। वे तुम लोगों से दर्शन का झूठा दावा कर के अपने ही मन से व्यर्थ और धोखे की भविष्यवाणी  करते हैं
  • यिर्मयाह 23:21-22 “ये भविष्यद्वक्ता बिना मेरे भेजे दौड़ जाते और बिना मेरे कुछ कहे भविष्यवाणी  करने लगते हैंयदि ये मेरी शिक्षा में स्थिर रहते, तो मेरी प्रजा के लोगों को मेरे वचन सुनाते; और वे अपनी बुरी चाल और कामों से फिर जाते
  • यिर्मयाह 23:30-32 “यहोवा की यह वाणी है, देखो, जो भविष्यद्वक्ता मेरे वचन औरों से चुरा चुराकर बोलते हैं, मैं उनके विरुद्ध हूँ। फिर यहोवा की यह भी वाणी है कि जो भविष्यद्वक्ताउसकी यह वाणी है”, ऐसी झूठी वाणी कहकर अपनी अपनी जीभ डुलाते हैं, मैं उनके भी विरुद्ध हूँ। यहोवा की यह भी वाणी है कि जो बिना मेरे भेजे या बिना मेरी आज्ञा पाए स्वप्न देखने का झूठा दावा कर के भविष्यवाणी  करते हैं, और उसका वर्णन कर के मेरी प्रजा को झूठे घमण्ड में आकर भरमाते हैं, उनके भी मैं विरुद्ध हूँ; और उन से मेरी प्रजा के लोगों का कुछ लाभ न होगा
  • यिर्मयाह 27:15 “यहोवा की यह वाणी है कि मैं ने उन्हें नहीं भेजा, वे मेरे नाम से झूठी भविष्यवाणी  करते हैं; और इसका फल यही होगा कि मैं तुझ को देश से निकाल दूंगा, और तू उन नबियों समेत जो तुझ से भविष्यवाणी करते हैं नष्ट हो जाएगा

       हम अगले लेख में परमेश्वर के वचन में प्रयोग किए गए “भविष्यद्वक्ता” और “भविष्यवाणी” शब्दों की सही अर्थ को, और उनके आधार पर भविष्यवाणी की सेवकाई की सही समझ देखेंगे। यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह अनिवार्य है कि आप परमेश्वर के वचन की गलत समझ और गलत उपयोग से बचें। वचन की सही समझ और सही उपयोग आपके लिए आत्मिक उन्नति और आशीष का कारण होगा, किन्तु गलत समझ और गलत उपयोग बहुत हानिकारक होगा। इसलिए यदि आप किसी गलत शिक्षा अथवा धारणा में पड़े हुए हैं, तो स्थिति को जाँच-परखकर अभी समय और अवसर के रहते उससे बाहर निकल आएं, आवश्यक सुधार कर लें।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी। 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • निर्गमन 31-33      
  • मत्ती 22:1-22

बुधवार, 2 फ़रवरी 2022

प्रभु यीशु की कलीसिया के कार्यकर्ता और उनकी सेवकाई (1)

प्रेरित 

पिछले लेख में हमने इफिसियों 4:11 से उन पाँच प्रकार के सेवकों और सेवकाइयों के विषय देखा था, जिन्हें प्रभु ने अपनी कलीसिया की उन्नति के लिए स्थानीय कलीसियाओं में नियुक्त किया है। मूल यूनानी भाषा में इन पाँचों सेवकाइयों के लिए प्रयोग किए गए शब्द, वचन की सेवकाई के विभिन्न स्वरूपों को दिखाते हैं। हम बारी-बारी इन पाँचों को कुछ विस्तार से देखेंगे। पिछले लेख में हमने बाइबल की प्रेरितों के काम पुस्तक में से आरंभिक कलीसिया के प्रसार और बढ़ोतरी के इतिहास, तथा कुछ अन्य पदों से, और प्रकाशितवाक्य 2 और 3 अध्याय में उल्लेखित सात कलीसियाओं के उदाहरणों से देखा था कि कलीसिया तथा मसीही जीवन की उन्नति और बढ़ोतरी तब ही देखी गई जब वे प्रभु और उसके वचन की आज्ञाकारिता में बने रहे। वचन में मिलावट करना, उसके साथ समझौता करना, और सच्चे समर्पण के स्थान पर किसी मत या डिनॉमिनेशन के नियमों, रीतियों, परंपराओं आदि की औपचारिकता के निर्वाह पर उतर आना और उसे मसीही विश्वास एवं जीवन का निर्वाह समझ लेना, सदा ही हानि और विनाश का कारण रहा है। 


पिछले लेख के अंत में हमने यह भी देखा था कि मत्ती 28:19-20, और प्रेरितों 2:42 के आरंभिक वाक्यांश के अनुसार, मसीही विश्वासियों और कलीसियाओं में प्रभु यीशु के वचन की शिक्षा देने का दायित्व प्रभु के शिष्यों, प्रभु द्वारा नियुक्त प्रेरितों (लूका 6:13) को दिया गया था। इसी प्रकार से, इफिसियों 4:11 में वचन से संबंधित प्रथम सेवकाई भी “प्रेरितों” की कही गई है। वर्तमान में, शब्द “प्रेरित” को लेकर बहुत असमंजस और कई प्रकार की गलत शिक्षाएं देखने को मिलती हैं। आज अधिकांश लोगों ने अपने आप को “प्रेरित” कहना आरंभ कर दिया है, और इसे वे अपने लिए एक सम्मान के स्थान, मसीही समाज एवं चर्च में उच्च-स्तर और आदर का स्थान एवं सूचक होने के लिए प्रयोग करते हैं। इसलिए, आज हम “प्रेरित” शब्द को परमेश्वर के वचन बाइबल से कुछ विस्तार से देखेंगे। 


मूल यूनानी भाषा में प्रयुक्त जिस शब्द का अनुवाद प्रेरित किया गया है, उस शब्द का अर्थ है “विशेष अधिकार के साथ नियुक्त किया हुआ”, और यह संज्ञा सर्वप्रथम स्वयं प्रभु ने ही अपने कुछ शिष्यों को दी थी। यह एक सामान्यतः अनदेखी की जाने वाली, किन्तु वास्तव में एक बहुत महत्वपूर्ण बात है कि प्रभु ने अपने सभी शिष्यों को कभी भी, कहीं भी प्रेरित नहीं कहा; वरन अपने सभी शिष्यों में से जिन बारह को उसने विशेषकर चुना था, उन्हें ही यह संज्ञा दी (चुनाव - लूका 6:12-16; पद 13); और सुसमाचारों में अन्त तक उन्हीं बारह के लिए ही “प्रेरित” शब्द प्रयोग किया गया (पकड़वाए जाने से पहले फसह का पर्व – लूका 22:14; पुनरुत्थान के बाद एकत्रित लोगों को बताना – लूका 24:9-10)। अर्थात, स्वयं प्रभु यीशु द्वारा इस शब्द के प्रयोग के अनुसार, प्रभु का प्रत्येक शिष्य, प्रभु यीशु की ओर से, “प्रेरित” नहीं था। और इन बारह को चुनने के पीछे, उनके लिए प्रभु का विशेष अभिप्राय था। जिन्हें प्रभु ने “प्रेरित” कहा था, उन्हें उसके अन्य शिष्यों से कुछ भिन्न होना था, जैसा कि मरकुस 3:13-15 में उनके लिए दिया गया है:

–       वे उसके साथ रहें;

–       वे उसके द्वारा भेजे जाने के लिए तैयार रहें – जब और जहाँ प्रभु भेजे;

–       वे प्रभु के कहे के अनुसार प्रचार करें; और दुष्टात्माओं को निकालने का अधिकार रखें।

        

इन तीनों बातों के कहे जाने के क्रम का भी महत्व है; अकसर लोग अंतिम बात, प्रचार करने और आश्चर्यकर्म करने की सेवकाई के पीछे भागते हैं, किन्तु प्रभु के साथ समय बिताने, और उसके कहे के अनुसार जाकर उसके द्वारा बताए गए कार्य को करने की इच्छा नहीं रखते हैं। किन्तु यहाँ दिए गए क्रम में प्रेरित को, या प्रभु के उस विशिष्ट शिष्य को, सबसे पहले प्रभु के साथ रहने वाला होना है, फिर उसके कहे के अनुसार करने वाला होना है, और तब ही प्रभु से प्रचार या आश्चर्यकर्मों को करने की सामर्थ्य पाने की लालसा रखनी है।


 बाद में नए नियम में शब्द “प्रेरित” का प्रयोग दूसरे रूप में भी किया गया है – एक तो प्रेरित वे थे जिन्हें प्रभु ने नियुक्त किया था; और इस शब्द का दूसरा प्रयोग उनके लिए आया है जो विशेष सन्देश-वाहक थे, जैसे कि बरनबास (प्रेरितों 14:14), प्रभु का भाई याकूब (गलातियों 1:19), संभवतः सिलास (1 थिस्सलुनीकियों 2:6 और 1:1 को साथ देखें), आदि। किन्तु प्रभु के प्रत्येक सेवक को कभी भी प्रेरित नहीं कहा गया – जैसे कि तिमुथियुस, तीतुस, फिलेमोन, उनेसिमुस, इपफ्रूदितुस, आदि महत्वपूर्ण और प्रशंसनीय कार्य करने वाले, महत्वपूर्ण भूमिकाएं और ज़िम्मेदारियाँ निभाने वाले सेवकों के लिए प्रेरित शब्द नहीं प्रयोग किया गया है।


कलीसिया के कार्यों और देखभाल के लिए नियुक्त किए गए लोगों में भी परमेश्वर के द्वारा प्रेरितों को नियुक्त करने का उल्लेख है (1 कुरिन्थियों 12:28-29; इफिसियों 4:11)। कलीसिया के कार्यों से संबंधित “प्रेरितों” के लिए इन दोनों पत्रियों – कुरिन्थियों और इफिसियों, में स्पष्ट आया है कि उन्हें परमेश्वर ने नियुक्त किया था; वे किसी मनुष्य की नियुक्ति नहीं थे – यह भी बहुत संभव है कि ये प्रेरित, प्रभु द्वारा आरंभ में नियुक्त किए गए वे शिष्य रहे हों, जिन्हें तब प्रभु ने “प्रेरित” कहा था, और अब उन्हें प्रभु द्वारा कलीसियाओं की रखवाली की ज़िम्मेदारी भी दे दी गई।


वचन यह भी संकेत देता है कि उन आरंभिक प्रेरितों की नियुक्ति के पश्चात, फिर कभी कोई अन्य प्रेरित नियुक्त नहीं  किए गए। कलीसियाओं के बढ़ने के साथ, बाद में तीतुस और तिमुथियुस को लिखी गई पत्रियों में जब कलीसिया के कार्यों को संभालने के लिए, कलीसियाओं के सदस्यों द्वारा, अगुवों की नियुक्ति करने के लिए, कलीसिया के उन सेवकों या अगुवों या प्राचीनों के गुणों के बारे में बताया गया (1 तिमुथियुस 3:1-7; तीतुस 1:6-9), तब वहाँ कलीसिया के कार्यों के लिए मनुष्यों द्वारा प्रेरितों के चुनाव के लिए न तो कहा गया (तीतुस 1:5), और न ही तब प्रेरित नियुक्त होने के लिए कोई विशेष गुण लिखवाए गए। रोमियों 16 में, जो पत्री का अंतिम अध्याय है, पौलुस कई सहयोगियों, मित्रों, सहकर्मियों, लोगों को स्मरण करता है, पहले ही पद में फीबे को डीकनेस भी कहता है, किन्तु 16:7 में अपने साथ के पुराने प्रेरितों को छोड़, पौलुस और किसी को प्रेरित नहीं कहता है। इसी प्रकार 1 कुरिन्थियों 16 में भी किसी के प्रेरित होने का उल्लेख नहीं है, जबकि कई लोगों की उनके मसीही जीवन और कार्यों के लिए सराहना की गई है।


प्रेरितों 1:2-3 में हमें प्रभु द्वारा नियुक्त प्रेरितों की पहचान के लिए दिए गए तीन गुण देखते हैं:

1.     प्रभु द्वारा चुने हुए (पद 2)

2.     प्रभु द्वारा आज्ञा पाए हुए (पद 2)

3.     जिन्होंने पुनरुत्थान हुए प्रभु को देखा (पद 3)

पौलुस के जीवन में भी दमिश्क के मार्ग पर उसे मिले प्रभु यीशु के दर्शन के द्वारा ये तीनों बातें पूरी हुई; और इस बात का दावा वह 1 कुरिन्थियों 9:1-2; 15:9 में करता है।


 जैसे सच्चे प्रेरित थे, वैसे ही शैतान ने अपने लोगों को झूठे प्रेरित बना कर मण्डलियों में मिला दिया (2 कुरिन्थियों 11:13) जिससे प्रभु के कार्य को बिगाड़ सकें, लोगों को सच्चाई के मार्ग से भटका सकें। ये झूठे प्रेरित व्यावसायिक प्रचारक थे, जो लोग-लुभावनी बातों का प्रचार करके (2 तिमुथियुस 4:3-4), श्रोताओं से पैसे लेते थे। ये लोगों से सिफारिश की पत्रियाँ या अपनी प्रशंसा के पत्र लिखवाकर ले आए थे, और पौलुस द्वारा दी गई शिक्षाओं का विरोध करते थे (2 कुरिन्थियों 3:1-3)। प्रभु यीशु ने कहा था कि सच्चे और झूठे भविष्यद्वक्ताओं में भिन्नता उनके फलों से पता चल जाएगी (मत्ती 7:16-20)। प्रभु की इसी बात को आधार बनाकर, पौलुस कुरिन्थियों से कहता है कि तुम ही हमारे प्रशंसा-पत्र, हमारे सिफारिशी पत्र हो – तुम्हें देखकर लोग पहचानते हैं कि उन झूठे प्रेरितों की तुलना में तुम्हारे शिक्षक कौन और कैसे थे। अर्थात, प्रभु द्वारा नियुक्त उन आरंभिक प्रेरितों के अतिरिक्त, बाद की “प्रेरित” नाम से नियुक्तियाँ, संभवतः शैतान द्वारा की गई थीं, प्रभु द्वारा नहीं। उन आरंभिक प्रेरितों के साथ ही प्रेरितों का समय और सेवकाई पूर्ण हो गए। उन प्रेरितों द्वारा परमेश्वर का वचन लिखा गया, सिखाया गया, और उचित प्रयोग के लिए अगली पीढ़ी को सौंप दिया गया (इफिसियों 2:20; 2 तीमुथियुस 2:2, 14-16)। आज वचन की शिक्षा पाना, प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं द्वारा लिखे गए वचन से सीखना ही है, जो वर्तमान में भी प्रेरितों 2:42 की आरंभिक बात की पूर्ति है। 


सच्चे और झूठे प्रेरितों की पहचान करने के लिए हम आज उन्हें मरकुस 3:13-15 तथा प्रेरितों 1:1-2 में दिए गए प्रेरित कहलाने वाले शिष्यों के गुणों और बातों के आधार पर, तथा प्रभु द्वारा मत्ती 7:16-20 की पहचान – उनके फलों के द्वारा जाँच सकते हैं। जिस में ये बाते नहीं हैं, वह मसीही सेवकाई के लिए प्रभु द्वारा नियुक्त सच्चा प्रेरित भी नहीं है। आज भी यदि कोई अपने आप को प्रेरित कहते हैं, तो उनके जीवनों में इन बातों को भी होना चाहिए, अन्यथा उनका दावा गलत है; वे स्वयं या शैतान के द्वारा नियुक्त प्रेरित तो हो सकते हैं, किन्तु प्रभु द्वारा नियुक्त प्रेरित कदापि नहीं होंगे।


परमेश्वर ने हमें भेड़ की खाल में छिपे भेड़ियों की पहचान न कर पाने की स्थिति में नहीं छोड़ा है; उसने अपने वचन में सही पहचान दी है। वह चाहता है कि हम पहले जाँचें, सच्चाई को परखें, और तब स्वीकार करें (1 यूहन्ना 4:1; 1 थिस्सलुनीकियों 5:21)।


यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो किसी के भी द्वारा किए जाने वाले किसी भी दावे को स्वीकार करने से पहले, उसे परमेश्वर के वचन से जाँच-परख कर देखने, और उसकी वास्तविकता या सच्चाई को स्थापित करने की आदत डाल लें, क्योंकि भटकाने भरमाने वाले लोगों की, प्रभु के नाम और उसकी कलीसिया को अपनी प्रशंसा और कमाई के लिए प्रयोग करने वालों की कोई कमी नहीं है। शैतान द्वारा खड़े किए गए ये “प्रेरित” प्रभु की ओर से नहीं हैं, और उनके जीवन, उनके फल ही उनकी सच्ची पहचान बता देते हैं। प्रभु ने अपने प्रत्येक विश्वासी को अपना पवित्र आत्मा अपने वचन को सिखाने के लिए और गलत शिक्षाओं में पड़ने से बचाने के लिए दिया है (1 यूहन्ना 2:27); उसकी सहायता से भरमाए और बहकाए जाएं से बचकर चलें। 


यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • निर्गमन 29-30      

  • मत्ती 21:23-46

मंगलवार, 1 फ़रवरी 2022

प्रभु यीशु की कलीसिया के कार्यकर्ता

  वचन की आज्ञाकारिता की अनिवार्यता

पिछले लेख में हमने देखा था कि प्रभु यीशु की कलीसिया अभी निर्माणाधीन है, प्रभु यीशु द्वारा बनाई जा रही है, उसमें अभी प्रभु के प्रति समर्पित लोग, प्रभु द्वारा जोड़े जा रहे हैं, और अभी कलीसिया को अपने वचन के स्नान के द्वारा प्रभु पवित्र, निर्दोष, बेदाग़, बेझुर्री कर रहा है। कलीसिया की इस गतिमान (dynamic) स्थिति में उसके विभिन्न कार्यों और दायित्वों के निर्वाह के लिए, प्रभु ने कलीसिया के सदस्यों में से कुछ लोगों को विशेष ज़िम्मेदारियों के साथ नियुक्त किया है। इफिसियों 4:11 में हम प्रभु द्वारा की गई इन नियुक्तियों और नियुक्त लोगों की सेवकाइयों के बारे में पढ़ते हैं। ये कार्यकर्ता हैं प्रेरित, भविष्यद्वक्ता, सुसमाचार प्रचारक, रखवाले, और उपदेशक। मूल यूनानी भाषा में, ये पाँचों सेवकाइयां परमेश्वर के वचन की सेवकाई से संबंध रखती हैं। अर्थात, किसी भी स्थानीय कलीसिया की उन्नति और स्थिरता के लिए, उसके शैतान द्वारा बिगाड़े जाने से सुरक्षित रहने के लिए इफिसियों 4:11 की, परमेश्वर के वचन से संबंधित पाँच प्रकार की सेवकाइयां, तथा प्रेरितों 2:38-42 की वे सात बातें जिन्हें हम अभी देख कर चुके हैं, अनिवार्य हैं। इन सभी बातों की उपस्थिति, पालन, और निर्वाह ही कलीसिया के प्रभु में दृढ़ और स्थिर बने रहने का आधार है। प्रेरित यूहन्ना के द्वारा, प्रभु यीशु प्रकाशितवाक्य 2 और 3 अध्याय में अपनी सात कलीसियाओं को दिए गए संदेशों में, सात में से पाँच कलीसियाओं को कड़े दण्ड की चेतावनियाँ देता है, क्योंकि वे उसके वचन और आज्ञाकारिता में बने नहीं रहे। ध्यान दीजिए कि प्रभु इन सातों कलीसियाओं कोकलीसियाकहकर ही संबोधित करता है, कुछ बातों के लिए उनकी प्रशंसा और सराहना भी करता है, किन्तु उनमें से पाँच कलीसियाएं ऐसी थीं जिनमें पाई जाने वाली कुछ बातें और कार्य प्रभु के वचन, उसकी आज्ञाकारिता, और प्रभु की इच्छा के अनुसार नहीं थे। प्रभु ने उन्हें इन बातों और कार्यों के बारे में चिताया, और उसकी इस चेतावनी की बात को न मानने के भारी दण्ड के बारे में भी बताया। और आज हम उन सातों कलीसियाओं को केवल इतिहास की पुस्तकों में या फिर परमेश्वर के वचन में ही पाते हैं, अन्ततः वे कलीसियाएं पृथ्वी के अपने अस्तित्व में, प्रभु में स्थिर और दृढ़ तथा स्थापित नहीं रह सकीं, पृथ्वी से मिट गईं। प्रभु के वचन के साथ समझौता, उसमें सांसारिक बातों की मिलावट, और प्रभु की अनाज्ञाकारिता हमेशा ही व्यक्तिगत तथा कलीसिया के जीवन के लिए हानिकारक एवं विनाशक रहे हैं। 

आरंभिक कलीसिया का इतिहास इस बात का प्रमाण और सूचक है कि मसीही विश्वासियों के व्यक्तिगत जीवन की, तथा कलीसिया की उन्नति, उनके व्यक्तिगत जीवनों में तथा मंडली के जीवन में वचन की सही सेवकाई के साथ जुड़ी रही है। जहाँ प्रभु के वचन को आदर और आज्ञाकारिता मिली है, वहाँ उन्नति भी हुई है, अन्यथा जहाँ भी वचन का निरादर, वचन में मिलावट, वचन की अनाज्ञाकारिता आई, वहीं पतन और विनाश भी शीघ्र ही आ गए। इसलिए इसमें कोई अचरज की बात नहीं है कि प्रेरितों 2:42 में दी गई चार बातों, जिन में उस प्रथम मण्डली के लोग लौलीन रहते थे, उन में से पहली थीप्रेरितों से शिक्षा पाने”; और प्रभु यीशु द्वारा अपने स्वर्गारोहण से ठीक पहले शिष्यों को दी गई सुसमाचार प्रचार की महान आज्ञा में भी लोगों को प्रभु की बातें सिखाने के लिए कहा गया है। बाइबल में आरंभिक कलीसिया की उन्नति के, प्रभु तथा उसके वचन की आज्ञाकारिता के साथ जुड़े होने से संबंधित प्रेरितों के काम से कुछ पदों को देखिए, और यह बात स्वतः ही प्रकट एवं स्पष्ट हो जाएगी:

  • प्रेरितों 4:4 “परन्तु वचन के सुनने वालों में से बहुतों ने विश्वास किया, और उन की गिनती पांच हजार पुरुषों के लगभग हो गई
  • प्रेरितों 5:14 “और विश्वास करने वाले बहुतेरे पुरुष और स्त्रियां प्रभु की कलीसिया में और भी अधिक आकर मिलते रहे
  • प्रेरितों 6:7 “और परमेश्वर का वचन फैलता गया और यरूशलेम में चेलों की गिनती बहुत बढ़ती गई; और याजकों का एक बड़ा समाज इस मत के आधीन हो गया
  • प्रेरितों 9:31 “सो सारे यहूदिया, और गलील, और सामरिया में कलीसिया को चैन मिला, और उसकी उन्नति होती गई; और वह प्रभु के भय और पवित्र आत्मा की शान्ति में चलती और बढ़ती जाती थी
  • प्रेरितों 11:20-21 “परन्तु उन में से कितने कुप्रुसी और कुरेनी थे, जो अन्‍ताकिया में आकर युनानियों को भी प्रभु यीशु का सुसमाचार की बातें सुनाने लगे। और प्रभु का हाथ उन पर था, और बहुत लोग विश्वास कर के प्रभु की ओर फिरे
  • प्रेरितों 12:24 “परन्तु परमेश्वर का वचन बढ़ता और फैलता गया
  • प्रेरितों 13:48-49 “यह सुनकर अन्यजाति आनन्दित हुए, और परमेश्वर के वचन की बड़ाई करने लगे: और जितने अनन्त जीवन के लिये ठहराए गए थे, उन्होंने विश्वास किया। तब प्रभु का वचन उस सारे देश में फैलने लगा
  • प्रेरितों 16:4-5 “और नगर नगर जाते हुए वे उन विधियों को जो यरूशलेम के प्रेरितों और प्राचीनों ने ठहराई थीं, मानने के लिये उन्हें पहुंचाते जाते थे। इस प्रकार कलीसिया विश्वास में स्थिर होती गई और गिनती में प्रति दिन बढ़ती गई
  • प्रेरितों 19:20 “यों प्रभु का वचन बल पूर्वक फैलता गया और प्रबल होता गया

इनके अतिरिक्त रोमियों 16:25, कुलुस्सियों 2:6, 1 थिस्सलुनीकियों 3:2, 2 तीमुथियुस 3:16-17, इब्रानियों 13:20-21, 2 पतरस 1:12, आदि पद भी इस बात को दिखाते और प्रमाणित करते हैं।

प्रभु यीशु ने अपने शिष्यों को, उन प्रेरितों को जिसने उसने नियुक्त किया था (लूका 6:13) को जगत के छोर तक उसके सुसमाचार के प्रचार का दायित्व सौंपा (प्रेरितों 1:8), और अपनी प्रथम मण्डली को अपने शिष्यों से, प्रेरितों से उसके वचन की शिक्षा पाने के निर्देश दिए (प्रेरितों 2:42)। तब से लेकर आज तक, संसार भर में, मसीही मंडलियों और मसीही विश्वासियों का इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि जो मसीही विश्वासी और मण्डली प्रभु के वचन और उसकी आज्ञाकारिता में बनी रहे, बढ़ती रही, वह उन्नत होती गई, और स्थिर बनी रही। जो प्रभु के वचन से हटकर, औपचारिकताओं और रीतियों-रस्मों-परंपराओं के निर्वाह में चले गए, वे प्रभु से भी दूर चले गए, उसके जन नहीं रहे, चाहे बाहरी स्वरूप में वे प्रभु के साथ बने रहने के जितने भी प्रयास करते रहे हों। प्रभु यीशु के संसार में प्रथम आगमन के समय, यरूशलेम में मंदिर भी था, मंदिर में याजक और लेवी भी थे, सारे पर्व मनाए जाते थे और बलिदान चढ़ाए जाते थे, बहुत बड़ी संख्या में भक्त लोग नियमित वहाँ आया करते थे, और व्यवस्था तथा पुराने नियम की बातों का कड़ाई से पालन करने और करवाने वाला फरीसियों, शास्त्रियों, सदूकियों का बड़ा और अति-प्रभावी समुदाय भी वहीं पर था। किन्तु इन सभी ने मिलकर परमेश्वर के वचन को भ्रष्ट कर दिया था, उसे औपचारिकताओं और रीतियों-रस्मों-परंपराओं के निर्वाह में बदल दिया था। इसीलिए, जब वह वचन देहधारी होकर उनके सामने आया, तो उन्होंने उसे नहीं पहचाना, उसका अनादर और निन्दा की, और उसे क्रूस पर मरवा दिया, फिर उसके अनुयायियों को भी सताने और मरवाने पर उतारू हो गए। आज न वह मंदिर बचा, न वे याजक, लेवी, फरीसी, शास्त्री, सदूकी बचे; किन्तु प्रभु का वचन और प्रभु के लोग सारे संसार में फैल गए, स्थापित हो गए, और बढ़ते जा रहे हैं। 

अगले लेख से हम इन पाँचों सेवकाइयों और सेवकों के बारे में देखना आरंभ करेंगे। किन्तु यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो यह आपके लिए अपने आप को जाँचने-परखने का अवसर और समय है कि प्रभु यीशु मसीह और उसके वचन एवं उसकी आज्ञाकारिता के प्रति आपका रवैया क्या है? कहीं आपकामसीही विश्वासकिसी मत या डिनॉमिनेशन के नियमों, रीतियों, परंपराओं आदि की औपचारिकता के निर्वाह पर आधारित और वहीं तक सीमित तो नहीं है? क्योंकि यदि ऐसा है, तो आप एक बहुत बड़े भ्रम में हैं, और आपको मसीही विश्वास की वास्तविकता को पहचान कर, उसके पालन एवं निर्वाह में आना अनिवार्य है।  

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।


एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • निर्गमन 27-28     
  • मत्ती 21:1-2

सोमवार, 31 जनवरी 2022

प्रभु यीशु की कलीसिया की बढ़ोतरी

प्रभु यीशु द्वारा नियुक्तियों के द्वारा   

प्रभु यीशु मसीह की कलीसिया या मण्डली से संबंधित इस अध्ययन में हम देख चुके हैं कि आम धारणा के विपरीत, कलीसिया, या चर्च, या प्रभु की मण्डली, कोई भौतिक स्थान अथवा भवन नहीं है। वरन, बाइबल के अनुसार, प्रभु की कलीसिया, प्रभु के प्रति पूर्णतः समर्पित और स्वेच्छा से उसे अपना व्यक्तिगत उद्धारकर्ता स्वीकार करने वाले लोगों का समूह या गुट है। हमने यह भी देखा है कि प्रभु यीशु स्वयं ही अपनी कलीसिया बना रहा है, उसने यह कार्य किसी मनुष्य अथवा संस्था को नहीं सौंपा है, तथा वर्तमान में प्रभु की कलीसिया निर्माणाधीन है, इसलिए अपूर्ण है, उसमें विभिन्न कमियाँ और त्रुटियाँ दिखाई देती हैं। प्रभु अभी कलीसिया को उसका अंतिम पूर्ण स्वरूप देने में कार्यरत है, और अन्ततः कलीसिया प्रभु की दुल्हन के रूप में उसके तेजस्वी और जयवंत स्वरूप में प्रभु के साथ होगी। परमेश्वर के वचन से प्राप्त होने वाले, कलीसिया से संबंधित ये आधार-भूत तथ्य, यह प्रकट और स्पष्ट कर देते हैं कि वास्तविक कलीसिया, अर्थात मसीही विश्वासियों का वह समूह, जो प्रभु के पास उठाई जाएगी तथा अनन्तकाल के लिए प्रभु के साथ रहेगी वह किसी मानवीय अथवा संस्थागत रीति-रिवाज़ों, नियमों, परंपराओं, या धारणाओं द्वारा न तो बनी है और न प्रभु को स्वीकार्य है। प्रभु यीशु केवल अपनी बनाई हुई कलीसिया को अपने साथ लेगा और रखेगा, और शेष सभी, जो प्रभु यीशु के साथ उसके द्वारा नहीं जोड़े गए हैं, वे अनन्त विनाश के लिए पीछे रह जाएंगे। उन पीछे रह जाने वाले लोगों की धारणाएं और मान्यताएं चाहे कुछ भी रही हों। 

 प्रभु के द्वारा उसकी कलीसिया में जोड़े जाने वाले लोगों का यह समूह या गुट किसी मत या डिनॉमिनेशन के विधि-विधानों, परंपराओं, और नियमों का पालन नहीं करता है। वरन, परमेश्वर पवित्र आत्मा की अगुवाई में, प्रभु की कलीसिया प्रभु यीशु और उसके वचन की आज्ञाकारिता में जीवन व्यतीत करती है, प्रभु के लिए कार्यकारी रहती है। कलीसिया में विभिन्न दायित्वों और कार्यों के निर्वाह के लिए, प्रत्येक मसीही विश्वासी को परमेश्वर पवित्र आत्मा के द्वारा कुछ आत्मिक वरदान भी दिए गए हैं, जिनके बारे में हम पवित्र आत्मा की भूमिका से संबंधित पहले के लेखों में देख चुके हैं। कलीसिया से संबंधित बाइबल के इन तथ्यों से हम प्रभु की कलीसिया के विषय एक और आधार-भूत बात भी सीखते हैं - अभी, इस पृथ्वी पर प्रभु की कलीसिया अचल (static) नहीं वरन गतिमान (dynamic) है। अभी उसमें लोग जोड़े जा रहे हैं, शैतान द्वारा घुसाए गए लोगों की पहचान दिखाकर उन्हें पृथक किया जा रहा है, प्रभु अपनी कलीसिया को अपनेवचन के जल के स्नान सेपवित्र, निर्दोष, बेदाग़, बेझुर्री बना रहा है (इफिसियों 5:26-27)। प्रभु की कलीसिया में यह कार्य किए जाने के लिए प्रभु ने कुछ लोगों को नियुक्त किया है:और उसने कुछ को प्रेरित नियुक्त करके, और कुछ को भविष्यद्वक्ता नियुक्त कर के, और कुछ को सुसमाचार सुनाने वाले नियुक्त कर के, और कुछ को रखवाले और उपदेशक नियुक्त कर के दे दिया। जिस से पवित्र लोग सिद्ध हों जाएं, और सेवा का काम किया जाए, और मसीह की देह उन्नति पाए। जब तक कि हम सब के सब विश्वास, और परमेश्वर के पुत्र की पहचान में एक न हो जाएं, और एक सिद्ध मनुष्य न बन जाएं और मसीह के पूरे डील डौल तक न बढ़ जाएं। ताकि हम आगे को बालक न रहें, जो मनुष्यों की ठग-विद्या और चतुराई से उन के भ्रम की युक्तियों की, और उपदेश की, हर एक बयार से उछाले, और इधर-उधर घुमाए जाते हों। वरन प्रेम में सच्चाई से चलते हुए, सब बातों में उस में जो सिर है, अर्थात मसीह में बढ़ते जाएं। जिस से सारी देह हर एक जोड़ की सहायता से एक साथ मिलकर, और एक साथ गठकर उस प्रभाव के अनुसार जो हर एक भाग के परिमाण से उस में होता है, अपने आप को बढ़ाती है, कि वह प्रेम में उन्नति करती जाए” (इफिसियों 4:11-16)

बाइबल के उपरोक्त खण्ड (इफिसियों 4:11-16) के संदर्भ को यदि उसके पहले के पदों (इफिसियों 4:7-10) के साथ देखें, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि कलीसिया में इन कार्यकर्ताओं को नियुक्त करने वाला प्रभु यीशु ही है (4:7); जो प्रभु के द्वारा मत्ती 16:18 में कही गई बात, “मैं अपनी कलीसिया बनाऊँगाकी पुष्टि है। परमेश्वर पवित्र आत्मा ने इफिसियों 4:11-16 में पाँच भिन्न कार्य और कार्यकर्ताओं का उल्लेख है - प्रेरितभविष्यद्वक्ता, सुसमाचार प्रचारक, रखवाले, और उपदेशक। अर्थात, प्रभु की प्रत्येक स्थानीय कलीसिया में, जो प्रभु के विश्व-व्यापी कलीसिया का एक अंश है, कलीसिया की उन्नति के लिए प्रभु इन सेवकाइयों को चाहता है, और उनके निर्वाह के लिए उपयुक्त लोगों को खड़ा करता है। ये लोग न तो किसी स्थानीय कलीसिया के सदस्यों द्वाराचुनेयानियुक्तकिए जाते हैं; और न ही स्वयं अपनी इच्छा के अनुसार इस दायित्व को उठाते हैं। कलीसिया के निर्माण से संबंधित लेख में, हम ने 1 राजाओं 6:7 में सुलैमान द्वारा बनवाए जा रहे मंदिर से देखा था कि मंदिर का प्रत्येक पत्थर पहले अपने स्थान के लिए काट-तराश कर तैयार किया जाता था, और फिर मंदिर में लाकर उसे उसके निर्धारित स्थान पर लगा दिया जाता था। इसी प्रकार से प्रभु की कलीसिया में कार्य करने के लिए भी प्रभु ही उपयुक्त लोगों को निर्धारित करता है और उन्हें कलीसिया में उनके कार्य के लिए प्रत्यक्ष करता है। यह तथ्य हमें कलीसिया के प्रभु के होने या न होने के विषय पहचान करने का भी एक तरीका देती है - प्रभु की कलीसिया में, प्रभु द्वारा उस की कलीसिया की उन्नति के लिए, ये पाँचों प्रकार की सेवकाइयों को करने वाले लोग मिलेंगे। जो प्रभु की कलीसिया नहीं है, उसमें यह गुण नहीं देखा जाएगा। हम आते कुछ लेखों में इन सेवकाइयों के विषय और इफिसियों 4:11-16 में कलीसिया की उन्नति से संबंधित लिखी बातों को कुछ और विस्तार से देखेंगे। 

यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो गंभीरता से जाँच परख कर देख लें कि आप अपने आप को जिस कलीसिया का अंग या सदस्य मानते हैं वह प्रभु की कलीसिया है भी या नहीं; और यह भी कि आप प्रभु द्वारा उसकी कलीसिया में जोड़े गए हैं कि नहीं, या किसी मत अथवा डिनॉमिनेशन के विधि-विधानों, परंपराओं, और नियमों के पालन के द्वारा अपने आप को प्रभु की कलीसिया का सदस्य समझ रहे हैं। कहीं ऐसा न हो कि जब तक वास्तविकता के प्रति सचेत हों, तब तक बहुत देर हो जाए, और बात को ठीक करने का अवसर हाथ से निकल जाए। 

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।  

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • निर्गमन 25-26     
  • मत्ती 20:17-34  

रविवार, 30 जनवरी 2022

प्रभु यीशु की कलीसिया या मण्डली

प्रभु यीशु में जयवंत   

हमने प्रभु यीशु मसीह की कलीसिया, अर्थात प्रभु यीशु के विश्वासी समर्पित शिष्यों के समूह या समुदाय विषय परमेश्वर के वचन बाइबल से, मत्ती 16:18 के साथ, जहाँ बाइबल में कलीसिया शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किया गया है, सीखना आरंभ किया था। हमने कलीसिया शब्द के अर्थ को समझा, यह देखा कि आम धारणा के विपरीत प्रभु यीशु ने कलीसिया पतरस पर स्थापित नहीं की; और यह देखा कि क्यों ऐसा समझना इस पद की गलत व्याख्या करना है। हमने देखा कि प्रभु यीशु स्वयं ही अपनी कलीसिया का बनाने वाला और उसकी देख-भाल करने वाला है, उसने यह कार्य किसी अन्य अथवा किसी मनुष्य को नहीं सौंपा है। फिर हमने कलीसिया के लिए बाइबल में प्रयुक्त विभिन्न रूपकों (metaphors) के द्वारा कलीसिया के उद्देश्य और कार्यों को समझा था, और देखा था कि कोई भी मानवीय अथवा संस्थागत रीति अथवा विधि से बनाई गईकलीसियाइन रूपकों पर खरी नहीं उतरती है, और केवल प्रभु यीशु मसीह द्वारा बनाई गई उसकी कलीसिया ही इन रूपकों के गुणों का निर्वाह कर सकती है; इसलिए कोई भी मनुष्य किसी भी रीति से प्रभु की कलीसिया को नहीं बना अथवा बनवा सकता है; और न ही स्वयं उसमें जुड़ सकता है न ही किसी अन्य को जोड़ सकता है 

फिर हमने प्रेरितों 2:38-42 में से उन सात बातों को देखा है, जो कलीसिया के आरंभ से ही सच्ची मसीही कलीसिया तथा उसके सदस्यों के जीवनों का अभिन्न अंग रही हैं। प्रेरितों 2:42 में उन सात में से चार ऐसी बातें दे गई हैं जिन्हें कलीसिया और मसीही जीवन के स्तंभ कहा जाता है, जो कलीसिया और मसीही जीवन की स्थिरता और दृढ़ता के लिए अनिवार्य हैं। किसी भीकलीसियामें इन सात बातों की उपस्थिति दिखाती एवं प्रमाणित करती है कि वहकलीसियाप्रभु की कलीसिया है। अन्यथा वहकलीसियाप्रभु की नहीं, वरन किसी मानवीय अथवा संस्थागत रीतियों के आधार पर मनुष्यों द्वारा बनाई गई ऐसीकलीसियाहै जिसका प्रभु की सच्ची कलीसिया से कोई संबंध नहीं है; कलीसिया के लिए प्रभु की आशीषों और अनन्तकालीन योजनाओं तथा प्रतिफलों में जिसका कोई भाग नहीं है। वरन वह अनन्त विनाश के लिए रखे गए प्रभु के खेत में उगने वाले उन जंगली पौधों के समान है जो खेत में रहते हुए पलते, बढ़ते और पोषित तो होते रहे, किन्तु कटनी के समय पृथक कर के उन्हें उनके पूर्व-निर्धारित अनन्त विनाश के लिए फेंक दिया गया (मत्ती 13:24-30, 37-42)

मत्ती 16:18 में प्रभु यीशु ने अपनी कलीसिया के एक और गुण को भी बताया है... और अधोलोक के फाटक उस पर प्रबल न होंगे”; अर्थात प्रभु की कलीसिया प्रभु में रहने और प्रभु से प्राप्त सुरक्षा के कारण सदा जयवंत बनी रहेगी, शैतान की कोई योजना, कोई षड्यंत्र उसके विरुद्ध सफल नहीं होगा। प्रभु की कही इस बात के अभिप्राय को समझने के लिए प्रभु द्वारा यहाँ पर प्रयुक्त वाक्यांश अधोलोक के फाटक के इन शब्दों को समझना आवश्यक है। शब्दअधोलोकयूनानी भाषा के शब्द hades (हेडीस) का अनुवाद है और एक ऐसे पीड़ा के स्थान के लिए प्रयोग किया जाता है जहाँ पर पार्थिव जीवन में परमेश्वर के साथ अपने संबंधों को ठीक नहीं करने वालों की आत्माएं उनके अंतिम न्याय के लिए रखी गई हैं; जैसे कि प्रभु द्वारा लाजरस और धनी व्यक्ति के दृष्टांत (लूका 16:19-31) में दिखाया गया है, उस धनी व्यक्ति की आत्मा अधोलोक डाली गई (लूका 16:23)। अर्थात अधोलोक शैतानी आत्माओं और शक्तियों का स्थान है। बाइबल में, विशेषकर पुराने नियम में, किसी नगर या शहर का फाटक वह स्थान होता था जहाँ पर उस नगर अथवा शहर के मुख्य अधिकारी और न्यायी बैठा करते थे, और लोगों का न्याय करते थे (व्यवस्थाविवरण 16:18; व्यवस्थाविवरण 21:19-20; रूत 4:1-2; अय्यूब 29:7-10)। अर्थात किसी स्थान के फाटक का जन होने से तात्पर्य होता था उस स्थान का प्रमुख न्यायिक या प्रशासनिक अधिकारी। इसलिए मत्ती 16:18 में इन दोनों शब्दों को साथ देखने से अभिप्राय बनता है शैतानी स्थान की प्रमुख शक्तियां। और प्रभु यीशु मसीह ने दावा किया है कि उसकी कलीसिया के विरुद्ध शैतान की कोई शक्ति प्रबल नहीं हो सकेगी, उसे पराजित नहीं कर सकेगी। 

प्रभु के इस दावे को हम आज वास्तविकता में कार्यान्वित होते हुए क्यों नहीं देखते हैं? ध्यान कीजिए कि, जैसा हम पहले देख चुके हैं, प्रभु की कलीसिया अभी निर्माणाधीन है; अभी अपने अंतिम स्वरूप में नहीं आई है। प्रभु अपने लोगों को तैयार कर के कलीसिया में उनके निर्धारित स्थान पर जोड़ता चला जा रहा है। प्रभु अभी अपनी कलीसिया को वचन के जल के स्नान के द्वारा बेदाग और बेझुर्री, पवित्र और निर्दोष बना रहा है (इफिसियों 5:26-27); यह प्रक्रिया चल रही है, पूरी नहीं हुई है। साथ ही एक बार फिर मत्ती 13:24-30 के प्रभु के दृष्टांत पर ध्यान कीजिए - प्रभु की कलीसिया में प्रभु के जनों के अतिरिक्त शैतान केपौधेभी हैं - जो उनके अनन्त विनाश के लिए पहचान कर लिए गए हैं और कटनी के समय अलग कर दिए जाएंगे। इन कारणों से कलीसिया अभी इस पृथ्वी पर अपने उस तेजस्वी और जयवंत स्वरूप में देखने को नहीं मिलती है, जिसका वर्णन उसके विषय वचन में किया गया है। किन्तु प्रभु की कलीसिया में प्रभु के अनेकों समर्पित जन व्यक्तिगत रीति से यह जयवंत जीवन जीते हुए देखे जा सकते हैं। प्रभु के दूसरे आगमन पर कलीसिया प्रभु के पास उठाई जाएगी, और फिर प्रभु की दुल्हन, आत्मिक यरूशलेम के रूप में प्रभु के साथ रहेगी (प्रकाशितवाक्य 21:2, 9-10)। प्रभु की इस कलीसिया, उसकी दुल्हन, उस आत्मिक यरूशलेम के लिए लिखा है, “और उस में कोई अपवित्र वस्तु या घृणित काम करने वाला, या झूठ का गढ़ने वाला, किसी रीति से प्रवेश न करेगा; पर केवल वे लोग जिन के नाम मेम्ने के जीवन की पुस्तक में लिखे हैं” (प्रकाशितवाक्य 21:27)

यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो अभी आपके पास इस बात को जाँचने और परखने का समय है कि क्या आपका नाम वास्तव में मेमने की जीवन की पुस्तक में लिखा गया है कि नहीं? क्या आप प्रभु की कलीसिया के वास्तविक सदस्य हैं, या मत्ती 13:24-30 के प्रभु के दृष्टांत के जंगली बीजों के उस पौधे के समान तो नहीं हैं जो स्वामी की देखभाल, पालन-पोषण, और सुरक्षा के कारण अपने आप को उसके खलिहान में जाने के लिए निश्चिंत समझे हुए है, किन्तु कटनी के समय जो कटु सत्य सामने आएगा, उसके लिए तैयार नहीं है। वह जंगली बीज अपनी नियति नहीं बदल सकता था; किन्तु आपके पास अभी अपनी अनन्तकालीन नियति समझने और सुधारने के लिए समय और अवसर है। प्रभु द्वारा दिए गए इस समय और अवसर को व्यर्थ न जानें दें; उसका सदुपयोग करें और अपने अनन्तकाल को सुरक्षित एवं आशीषित कर लें।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • निर्गमन 23-24     
  • मत्ती 20:1-16