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शनिवार, 7 अगस्त 2021

परमेश्वर का वचन – बाइबल – अनुपम एवं विशिष्ट – 3

 

3. लेखन तथा लेखकों में अनुपम

          जैसे पहले कहा गया है, बाइबल कुल 66 भिन्न पुस्तकों का संकलन है, जो भिन्न समयों पर, भिन्न लोगों द्वारा लिखी गई पुस्तकें हैं; किन्तु जब उन्हें एकत्रित करके साथ रखा गया तो वे सभी पुस्तकें एक पूर्ण पुस्तक बन गईं, जिसके सभी भाग एक-दूसरे के पूरक हैं, उनमें कोई विरोधाभास नहीं है, सभी पुस्तकें एक-दूसरे के लेखों को समर्थित करती हैं, और सभी पुस्तकों की परस्पर सहायता से ही बाइबल की बातें भली-भांति समझी जा सकती हैं। यह तब और भी अद्भुत तथा विलक्षण हो जाता है जब बाइबल के लिखे जाने और लेखकों के बारे में थोड़ा विवरण देखते हैं:

·    बाइबल की पुस्तकें लगभग 1500 वर्ष से अधिक के अंतराल में लिखी गईं।

·    बाइबल की पुस्तकों के 40 से अधिक लेखक थे, जो समय, भौगोलिक स्थान, भाषा, कार्य तथा व्यवसाय, शैक्षिक स्तर, सामाजिक ओहदे, आदि में भिन्न थे। इन विभिन्न लेखकों में से कुछ के उदाहरण देखते हैं:

o   मूसा – एक राजनीतिक अगुवा था, जिसका पालन-पोषण, शिक्षा, प्रशिक्षण मिस्र के राजसी घराने में एक राजकुमार के समान हुआ था।

o   यहोशू – एक सेनापति था।

o   दाऊद – एक चरवाहा युवक था, जो राजा की सेना में सम्मिलित किया गया, उन्नति करते हुए शूरवीर पराक्रमी योद्धा, और फिर इस्राएल का राज्य बना। वह एक कवि, और संगीतज्ञ भी था जिसने न केवल स्तुति के भजन लिखे और संगीत-बद्ध किए, वरन कई संगीत वाद्य  भी बनाए।

o   सुलैमान – राजा तथा परमेश्वर की कृपादृष्टि पाया हुआ दार्शनिक, बुद्धिजीवी, और लेखक था।

o   नहेम्याह – एक गैर-यहूदी राज्य का सेवक था, जिसका कार्य पहले स्वयं चख-परखकर फिर राजा के पीने के लिए उसे पेय का कटोरा पकड़ाना था।

o   एज्रा – एक धर्म-शास्त्री और पवित्र शास्त्र का विद्वान था।  

o   दानिय्येल – एक यहूदी गुलाम युवक, जो बेबीलोन के राजा का सर्वोच्च सलाहकार एवं मंत्री बना।

o   आमोस – एक चरवाहा था।

o   लूका – एक वैद्य और लेखक था।

o   मत्ती – एक चुंगी लेने वाला सरकारी नौकर था।

o   पौलुस – एक धर्म-शास्त्र का विद्वान और धार्मिक अगुवा था।

o   यूहन्ना और पतरस – अनपढ़ साधारण मछुआरे थे।

o   मरकुस – पतरस के लिए लिखने वाले एक सामान्य युवक था।

·    बाइबल की पुस्तकें विभिन्न स्थानों और परिस्थितियों में लिखे गईं:

o   मूसा ने जंगल की यात्रा के दौरान लिखीं

o   यिर्मयाह ने कैदखाने की काल-कोठरी में पड़े हुए लिखी

o   दानिय्येल ने राजमहल में लिखी

o   पौलुस ने बंदीगृह में पड़े हुए लिखीं

o   लूका ने मसीही सेवकाई की यात्रा करते हुए लिखी

o   यूहन्ना ने पतमोस के टापू पर काला-पानी की सजा भोगते हुए लिखी

o   दाऊद ने कुछ युद्ध के समय में लिखी, तो कुछ अन्य अपने जीवन की भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में लिखीं।  

o   सुलैमान ने शांति और संपन्नता के समय में लिखी

·    बाइबल की पुस्तकें विभिन्न मनोदशाओं में लिखी गईं:

o   कुछ ने परम-आनंद के भाव में उत्साह के साथ लिखीं

o   कुछ ने घोर निराशा, दुख, और हताश के समयों में अपनी भावनाएं व्यक्त कीं

o   कुछ ने विश्वास की दृढ़ता में निश्चितता के साथ लिखीं

o   कुछ ने संदेह और असमंजस से जूझते हुए लिखा

·    बाइबल की पुस्तकें तीन भिन्न महाद्वीपों और उनकी संस्कृतियों तथा सामाजिक विचारधाराओं में लिखी गईं। ये तीन महाद्वीप हैं:

o   एशिया

o   अफ्रीका

o   यूरोप

·    बाइबल की पुस्तकें तीन भिन्न भाषाओं में लिखी गईं:

o   इब्री या इब्रानी भाषा – जो यहूदियों की, तथा लगभग सम्पूर्ण पुराने नियम के लिखे जाने की भाषा है।

o   अरामी – जो निकट-पूर्व के देशों – वर्तमान इस्राएल तथा उसके आस-पास के देशों के क्षेत्रों की आम लोगों की भाषा हुआ करती थी; राजा सिकंदर के छठी शताब्दी ईसा-पूर्व में यूनान से संसार के विजय अभियान पर निकले से पहले। पुराने नियम के कुछ भाग, जैसे के दानिय्येल के 2 से 7 अध्याय और एज्रा का अधिकांश 4 अध्याय से लेकर 7 अध्याय तक अरामी भाषा में हैं।

o   यूनानी – यह लगभग सम्पूर्ण नए नियम के लिखे जाने की भाषा है, और प्रभु यीशु मसीह की पृथ्वी के समय की सेवकाई के समय की यह अंतर्राष्ट्रीय भाषा तथा जन-सामान्य की भाषा थी।

 

          अब थोड़ा ध्यान दीजिए और विचार कीजिए कि हर प्रकार की इतनी अधिक विविधता और भिन्नता होते हुए भी; एक लेखक के दूसरे के बारे में न जानते हुए भी; किसी भी लेखक को यह जानकारी न होते हुए भी के भविष्य में किसी समय पर जाकर पुस्तकें संकलित होंगी; अलग-अलग पृष्ठभूमि, विचार-धारा, संस्कृति, समय, स्थान, और भाषाओं के होते हुए भी, इन लेखकों की पुस्तकों में कोई विरोधाभास नहीं है, कोई असंगत होना नहीं है, सभी पुस्तकें एक-दूसरे की पूरक हैं, सहायक हैं, समर्थक हैं। यदि आज, अभी कोई घटना घटित हो, और उसके प्रत्यक्षदर्शियों से उस घटना का विवरण लिखने को कहा जाए, तो उन लोगों के विवरणों में कुछ न कुछ भिन्नता अवश्य मिलेगी; कुछ थोड़ा-बहुत विरोधाभास भी अवश्य आएगा। यदि ऐसा नहीं होता है, तो विश्लेषण करने वाले विशेषज्ञों का सामान्य निष्कर्ष होता है कि या तो लोगों ने किसी एक के वर्णन को आधार बनाकर उसकी नकल की है; या किसी एक व्यक्ति ने उन सभी से लिखवाया है, जिससे कि समान विचार और सामग्री सभी में देखे जा रहे हैं।

          यही तर्क बाइबल के लेखों के लिए भी लागू होता है। ऊपर दी गए विविधता और भिन्नताओं के कारण ये लेखक एक दूसरी की नकल तो कर नहीं सकते थे; तो फिर उन्हें लिखवाने वाला कोई एक ही होगा - सम्पूर्ण पवित्र शास्त्र परमेश्वर पवित्र आत्मा की प्रेरणा से लिखा गया है। लेखक भिन्न थे, लिखवाने वाला एक ही था। इस पर कुछ और चर्चा हम आते समय में एक अन्य लेख में करेंगे।

          बाइबल के लेखकों और लेखन का अनुपम, अद्भुत इतिहास, उसके परमेश्वर का वचन होने के दावे की पुष्टि करता है।  

 

बाइबल पाठ: रोमियों 1:16-23

रोमियों 1:16 क्योंकि मैं सुसमाचार से नहीं लजाता, इसलिये कि वह हर एक विश्वास करने वाले के लिये, पहिले तो यहूदी, फिर यूनानी के लिये उद्धार के निमित परमेश्वर की सामर्थ्य है।

रोमियों 1:17 क्योंकि उस में परमेश्वर की धामिर्कता विश्वास से और विश्वास के लिये प्रगट होती है; जैसा लिखा है, कि विश्वास से धर्मी जन जीवित रहेगा॥

रोमियों 1:18 परमेश्वर का क्रोध तो उन लोगों की सब अभक्ति और अधर्म पर स्वर्ग से प्रगट होता है, जो सत्य को अधर्म से दबाए रखते हैं।

रोमियों 1:19 इसलिये कि परमेश्वर के विषय का ज्ञान उन के मनों में प्रगट है, क्योंकि परमेश्वर ने उन पर प्रगट किया है।

रोमियों 1:20 क्योंकि उसके अनदेखे गुण, अर्थात उस की सनातन सामर्थ्य, और परमेश्वरत्व जगत की सृष्टि के समय से उसके कामों के द्वारा देखने में आते है, यहां तक कि वे निरुत्तर हैं।

रोमियों 1:21 इस कारण कि परमेश्वर को जानने पर भी उन्होंने परमेश्वर के योग्य बड़ाई और धन्यवाद न किया, परन्तु व्यर्थ विचार करने लगे, यहां तक कि उन का निर्बुद्धि मन अन्‍धेरा हो गया।

रोमियों 1:22 वे अपने आप को बुद्धिमान जताकर मूर्ख बन गए।

रोमियों 1:23 और अविनाशी परमेश्वर की महिमा को नाशमान मनुष्य, और पक्षियों, और चौपायों, और रेंगने वाले जन्तुओं की मूरत की समानता में बदल डाला।

 

 

एक साल में बाइबल: 

  • भजन 72 -73
  • रोमियों 9:1-15

शुक्रवार, 6 अगस्त 2021

परमेश्वर का वचन – बाइबल – अनुपम एवं विशिष्ट – 2


2. वैज्ञानिक आविष्कारों के लिए प्रेरणा एवं मार्गदर्शन देने में अनुपम।

           यह एक सामान्य, किन्तु सर्वथा गलत एवं अनुचित धारणा है कि बाइबल विज्ञान के साथ तालमेल नहीं रखती है, और विज्ञान बाइबल का समर्थन नहीं करता है। इस धारणा के विपरीत, न तो बाइबल और विज्ञान में परस्पर कोई विरोधाभास है, और न ही बाइबल विज्ञान की बातों और उन्नति में बाधक है। वास्तविकता तो यह है कि बाइबल के द्वारा मनुष्यों को लाभ पहुँचने वाले कई खोज और आविष्कार हुए हैं, तथा पश्चिमी देशों के प्रमुख वैज्ञानिक बहुधा बाइबल तथा बाइबल के परमेश्वर पर विश्वास रखने वाले लोग थे।

          बाइबल में प्रयुक्त ऐसे शब्दों और वाक्यांशों का प्रयोग, जिनके आधार पर वैज्ञानिक खोज की गईं, समकालीन साहित्य तथा गैर-मसीहियों के द्वारा भी होता रहा है, किन्तु उन्होंने तथा उनके पाठकों ने बाइबल के शब्दों और बातों को केवल आलंकारिक भाषा समझा, अथवा उन्हें विश्वास करने योग्य मानकर गंभीरता से नहीं लिया; इसलिए उनके आधार पर कोई कार्यवाही नहीं की। लेकिन कुछ लोगों ने, जो बाइबल और बाइबल के परमेश्वर पर विश्वास रखते थे और रखते हैं, उन शब्दों और बातों को गंभीरता से लिया, उन बातों पर विश्वास किया, और इस विचारधारा के साथ उनके विषय कार्यवाही की, कि यदि बाइबल यह कहती है, तो यह सच ही है, और इसकी आगे जाँच करके, इसके आधार पर कार्यवाही करना लाभप्रद होगा।

          पृथ्वी का गोलाकार होने, जल का चक्र, संक्रमण की बीमारियों की रोक-थाम के लिए संक्रमित रोगियों को पृथक करना, स्वच्छता और हाथ-पैर धोने के महत्व, आदि बातों के महत्व को वैज्ञानिकों द्वारा पहचानने और मानने से सदियों पहले, बाइबल में लिख दिया गया था, और परमेश्वर के लोगों से उनका पालन करने के लिए कहा गया था।

          बाइबल की सबसे प्राचीन पुस्तक, पुराने नियम में अय्यूब की पुस्तक में, जो लगभग 2000 ईस्वी पूर्व में लिखी गई थी, परमेश्वर ने अय्यूब से "समुद्र के सोतों" के विषय में पूछा, "क्या तू कभी समुद्र के सोतों तक पहुंचा है, वा गहिरे सागर की थाह में कभी चला फिरा है?" (अय्यूब 38:16)। इन "समुद्र के सोतों" को सबसे पहले सन 1973 में गहरे समुद्र के तल में मिड-एटलांटिक रिज में देखा गया जिन में से पानी निकल कर समुद्र में मिल रहा था; और 1977 में गहरे सागर के तल में गरम पानी के अद्भुत सोते देखे गए, और उनके चित्र लिए गए। सुविख्यात पत्रिका नैशनल जियोग्राफिक ने अपने नवंबर 1979 के अंक में इन गहरे सागर-तल में विद्यमान "समुद्र के सोतों" पर एक लेख प्रकाशित किया।

          अमेरिका की नौ सेना के एक मसीही विश्वासी अफसर, मैथ्यू फ़ौनटेन मौरे का ध्यान बाइबल की सभोपदेशक नामक पुस्तक में लिखी बात, "वायु दक्खिन की ओर बहती है, और उत्तर की ओर घूमती जाती है; वह घूमती और बहती रहती है, और अपने चक्करों में लौट आती है" (सभोपदेशक 1:6), तथा "आकाश के पक्षी और समुद्र की मछलियां, और जितने जीव-जन्तु समुद्रों में चलते फिरते हैं" (भजन 8:8) पर गया, और उसने निर्णय लिया कि वह बाइबल में उल्लेखित वायु बहने और समुद्र के जलचरों के जल-मार्गों का पता लगाएगा। उसके अथक प्रयासों और वायु तथा समुद्र-जल के प्रवाहित होने की धाराओं के अध्ययन और प्रकाशन के द्वारा नाविकों के लिए समुद्र में यात्रा तथा कार्य करने में बहुत सहायता हुई। मैथ्यू फ़ौनटेन मौरे की मृत्यु-उपरांत, उनकी स्मृति में एक स्मारक बनाया गया जिसमें एक पत्थर की तख्ती पर तराश कर ये शब्द लिखकर लगाए गए: “Mathew Fontaine Maury, Pathfinder of the Seas, the genius who first snatched from the oceans and atmosphere the secret of their laws. His inspiration, Holy Writ, Psalm 8:8; Ecclesiastes 1:6”.  ("मैथ्यू फ़ौनटेन मौरे, समुद्र के जल-मार्गों का खोजने वाला, वह अद्भुत प्रतिभाशाली व्यक्ति जिन्होंने सबसे पहले सागर और वायुमंडल से उनके मार्ग और रहस्य छीन लिए। यह करने की उनके प्रेरणा, पवित्र शास्त्र, भजन 8:8; सभोपदेशक 1:6") - उनकी अद्भुत प्रतिभा का रहस्य – वे बाइबल में विश्वास रखने वाले एक सामान्य मसीही विश्वासी थे, जिन्हें परमेश्वर के वचन के सत्य और कभी गलत न होने पर अटूट विश्वास था।

          चार्ल्स व्हिटशोल्ट भी एक बाइबल में विश्वास रखने वाले मसीही विश्वासी थे; वे अमेरिका की स्टैंडर्ड ऑइल कंपनी के एक निर्देशक भी थे। उन्हें उनकी कंपनी ने मिस्र में तेल खोजने के लिए भेज था - तब जब किसी को यह पता नहीं था कि मिस्र या मध्य-पूर्व खाड़ी देशों की भूमि में तेल का भण्डार विद्यमान है; और उन्होंने मिस्र में तेल की खोज कर के भी दी। मिस्र में तेल होने के प्रति चार्ल्स व्हिटशोल्ट का विश्वास, बाइबल के एक पद पर आधारित था "और जब वह उसे और छिपा न सकी तब उसके लिये सरकंड़ों की एक टोकरी ले कर, उस पर चिकनी मिट्टी और राल लगाकर, उस में बालक को रखकर नील नदी के तीर पर कांसों के बीच छोड़ आई" (निर्गमन 2:3)। चार्ल्स व्हिटशोल्ट का विश्वास था कि यदि एक गुलाम स्त्री को मिस्र में 'राल' मिल सकती है, जो कि धरती के नीचे तेल से आती है, तो इसका अर्थ है कि मिस्र में तेल है। उनके मसीही चरित्र और विश्वास के कारण उनकी कंपनी उन पर पूरा भरोसा रखती थी, और कंपनी ने उन्हें, उनके विश्वास के आधार पर, मिस्र में तेल की खोज करने के लिए भेज दिया; और उन्होंने बाइबल में लिखी बात के आधार पर मिस्र तथा मध्य-पूर्व में तेल खोज कर दिखा दिया।

            सर विलियम रैमसे एक बहुत माने हुए बाइबल पुरातत्व वैज्ञानिक हुए, जिनके द्वारा किए गए खोज और बातें आज भी, उनके 100 से भी अधिक वर्ष बाद भी, बाइबल संबंधी पुरातत्व खोजों के लिए पढ़ी और पढ़ाई जाती हैं, और उनके इस कार्य के लिए उन्हें "सर" की उपाधि से सम्मानित किया गया था। अपने समय के अन्य अनेकों पढ़े-लिखे और ज्ञानवान लोगों के समान, उनकी भी धारणा थी कि बाइबल विश्वास योग्य नहीं है, और इसे वह आदर-मान नहीं दिया जाना चाहिए जो दिया जाता है। अपनी धारणा प्रमाणित करने के लिए वे बाइबल संबंधी क्षेत्रों में प्रमाण एकत्रित करने के लिए गए जिससे यह प्रमाणित कर सकें कि बाइबल विश्वासयोग्य नहीं है। उन्होंने जा कर पुरातत्व महत्व के स्थानों  पर खुदाई करनी तथा प्रमाण एकत्रित करने आरंभ किए। शीघ्र ही उन्हें एहसास हो गया कि बाइबल में लिखी बातें, छोटे से छोटे विवरण में भी बिल्कुल सटीक और सही हैं, और बाइबल संबंधी उनके पुरातत्व खोज और ज्ञान ने बाइबल के पक्ष में अनेकों प्रमाण उजागर कर दिए। विलियम रैमसे स्वयं इन प्रमाणों से इतने प्रभावित हुए कि वे भी एक मसीही विश्वासी बन गए, उन्होंने बाइबल कॉलेज में दाखिल लिया, मसीही सेवकाई में सम्मिलित हुए, और अपनी खोज के कार्यों से कई पुस्तकें और लेख लिखे, जिन्हें आज भी बहुत सम्मान के साथ देखा और पढ़ा जाता है। बाइबल को झूठ प्रमाणित करने का प्रयास करने वाला व्यक्ति बाइबल के सत्य को प्रमाणित मरने वाला मसीही विश्वासी बन गया।

          वास्तविकता में, ऐसी कोई भी पुरातत्व खोज नहीं है जो बाइबल की किसी भी बात को असत्य प्रमाणित करती हो। परमेश्वर की सृष्टि और रचना, परमेश्वर के वचन के विरुद्ध कभी हो ही नहीं सकती है। सही भावना और दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता है, और परमेश्वर के वचन के तथ्य, उसकी सृष्टि में प्रमाण प्रत्यक्ष कर देंगे।

 

बाइबल पाठ: भजन 19:1-6

भजन 19:1 आकाश ईश्वर की महिमा वर्णन कर रहा है; और आकाशमण्डल उसकी हस्तकला को प्रगट कर रहा है।

भजन 19:2 दिन से दिन बातें करता है, और रात को रात ज्ञान सिखाती है।

भजन 19:3 न तो कोई बोली है और न कोई भाषा जहां उनका शब्द सुनाई नहीं देता है।

भजन 19:4 उनका स्वर सारी पृथ्वी पर गूंज गया है, और उनके वचन जगत की छोर तक पहुंच गए हैं। उन में उसने सूर्य के लिये एक मण्डप खड़ा किया है,

भजन 19:5 जो दुल्हे के समान अपने महल से निकलता है। वह शूरवीर के समान अपनी दौड़ दौड़ने को हर्षित होता है।

भजन 19:6 वह आकाश की एक छोर से निकलता है, और वह उसकी दूसरी छोर तक चक्कर मारता है; और उसकी गर्मी सब को पहुंचती है।

 

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 70-71
  • रोमियों 8:22-39

गुरुवार, 5 अगस्त 2021

परमेश्वर का वचन – बाइबल – अनुपम एवं विशिष्ट – 1


          हम बाइबल को ‘परमेश्वर का वचन’ कहकर संबोधित करते हैं; प्रत्येक धर्म की अपनी पुस्तकें हैं, और हर धर्म के मानने वाले भी अपने धर्म-ग्रंथों के लिए यही कहते हैं, कि उनके वे ग्रंथ परमेश्वर भी ईश्वरीय हैं। इसके अतिरिक्त, संसार भर में साहित्य, दर्शन-शास्त्र, धर्म तथा धार्मिक व्याख्यानों, नैतिक शिक्षाओं, आदि से संबंधित कई पुस्तकें हैं जो बहुत विख्यात हैं, और उन्हें अपने प्रकार की अनुपम कृतियाँ कहा अजात है, तुलना के लिए मानक के समान प्रयोग किया जाता है। तो फिर बाइबल में ऐसा क्या है जिसके आधार पर मसीही विश्वास में उसे ‘परमेश्वर का वचन’ कहा जाता है; उसे अन्य किसी भी पुस्तक अथवा ग्रंथ से भिन्न माना जाता है, और जिसके आधार पर कहा जाता है कि केवल यही एक पुस्तक वह पुस्तक है जो वास्तव में परमेश्वर का वचन है। बाइबल में ऐसा अनुपम और विशिष्ट क्या है, जो और किसी पुस्तक अथवा धर्म-ग्रंथ में नहीं  है?

आज के इस लेख में हम बाइबल की कुछ बातों को देखेंगे जो इसे अन्य किसी भी पुस्तक से भिन्न, अनुपम, एवं विशिष्ट बनाती हैं, और इस दावे के पुष्टि करती हैं कि यही वास्तव में जीवते, सच्चे परमेश्वर का वचन है।

          1. इसे जाँचने के दावे में अनुपम: यद्यपि हर धर्म के ग्रंथ के लिए उसके परमेश्वर का वचन होने का दावा किया जाता है, किन्तु बाइबल ही एकमात्र है जो अपने दावों और बातों के लिए उसे जाँचने और परखने का निमंत्रण देती है। अन्य किसी भी धर्म में यदि उसके धर्म ग्रंथ को जाँचने, परखने,आलोचनात्मक विश्लेषण तथा तुलना करने आदि का प्रयास किया जाए तो उस धार्मिक समुदाय के लोग इसे उनके धर्म और धर्म ग्रंथ का अपमान मानते हैं, और कटु प्रतिक्रिया देने में संकोच नहीं करते हैं। संसार के इतिहास में ऐसे कितने ही उदाहरण विद्यमान हैं जब धर्म या धर्म-ग्रंथ से संबंधित बातों पर प्रश्न उठाने या उनका विश्लेषण करके उनकी मान्यताओं पर प्रश्न उठाने के कारण दंगे तथा जान-माल की हानि  हुई है।

          किन्तु बाइबल ही एकमात्र ऐसा धर्म-ग्रंथ है जो सभी को आमंत्रित करता है कि उसे जाँचें और परखें। इस संदर्भ में बाइबल के कुछ पद देखिए:

          1 थिस्स्लुनीकियों 5:21 – "सब बातों को परखो: जो अच्छी है उसे पकड़े रहो।" यह बाइबल की शिक्षा है कि पहले हर बात, हर शिक्षा, हर धारणा को जाँचा जाए, और खरा उतारने पर ही उसे स्वीकार किया जाए। बाइबल अंध विश्वास को स्वीकार नहीं करती है, बढ़ावा नहीं देती है।

          प्रेरितों 17:11 – "ये लोग तो थिस्सलुनीके के यहूदियों से भले थे और उन्होंने बड़ी लालसा से वचन ग्रहण किया, और प्रति दिन पवित्र शास्त्रों में ढूंढ़ते रहे कि ये बातें यों ही हैं, कि नहीं।" यह पद बेरिया नामक एक स्थान पर मसीही विश्वासियों की एक मँडली में पौलुस द्वारा परमेश्वर के वचन के प्रचार की जाने के विषय में है। पौलुस नए नियम का बहुत प्रमुख और आदरणीय पात्र है; उसी के द्वारा नए नियम के लगभग दो-तिहाई पुस्तकें  लिखी गई हैं। जब पौलुस ने बेरिया के मसीही विश्वासियों के मध्य प्रभु यीशु मसीह के विषय प्रचार किया, तो, जैसा पद में लिखा है, उन लोगों ने तुरंत ही उन बातों पर इसलिए विश्वास नहीं कर लिया कि पौलुस जैसा सुविख्यात परमेश्वर के जन ने उन्हें वे बातें बताईं और सिखाईं थीं।  वरन, उन्होंने प्रतिदिन पहले जा कर पौलुस की शिक्षाओं को उनके पास उपलब्ध पुराने नियम की पुस्तकों और शिक्षाओं के साथ मिलाकर जाँचा, और जब पौलुस की शिक्षाओं को सत्य पाया, तब ही उनपर विश्वास किया। किन्तु साथ ही उनके द्वारा याह जाँच-परख करने के लिए उनकी कोई आलोचना नहीं की गई, वरन उन्हें अन्य यहूदियों से जिन्होंने मसीह पर विश्वास किया था, इस बात के लिए, 'भला' कहा गया।

          आज यदि किसी धर्म-प्रचारक की शिक्षाओं के प्रति कोई सवाल-जवाब कर ले, तो बहुत समस्या खड़ी हो जाती है; ऐसा करने वालों की निन्दा तथा ताड़ना की जाती है। केवल बाइबल ही है जो साफ, खुला, दो-टूक कहती है कि आओ और जाँचो, और संतुष्ट होने पर ही विश्वास करो।

          भजन 34:8 – "परखकर देखो कि यहोवा कैसा भला है! क्या ही धन्य है वह पुरुष जो उसकी शरण लेता है।" बाइबल ही एकमात्र ऐसी पुस्तक है जो ना केवल अपने आप को जाँचने का निमंत्रण देती है, वरन उस परमेश्वर 'यहोवा' को भी, जिसका बाइबल वचन है, परख कर देखने के लिए आमंत्रित करती है। यह बाइबल की खुली शिक्षा है कि कोई भी आकर बाइबल के परमेश्वर के भले होने को जाँच-परख कर देख ले; इसमें बुरा मानने या एतराज़  करने की कोई बात नहीं है। प्रभु यीशु मसीह ने अपने आलोचकों को खुली चुनौती दी, "परन्तु मैं जो सच बोलता हूं, इसीलिये तुम मेरी प्रतीति नहीं करते। तुम में से कौन मुझे पापी ठहराता है? और यदि मैं सच बोलता हूं, तो तुम मेरी प्रतीति क्यों नहीं करते? जो परमेश्वर से होता है, वह परमेश्वर की बातें सुनता है; और तुम इसलिये नहीं सुनते कि परमेश्वर की ओर से नहीं हो (यूहन्ना 8:45-47); और कोई उसके विरुद्ध कुछ प्रमाणित नहीं कर सका, उसकी चुनौती का सामना नहीं कर सका - तब से लेकर आज तक भी नहीं।

          यह केवल बाइबल अध्ययन के कौलेजों (सेमीनरी) में ही पाया जाता है कि इस प्रकार का बाइबल विश्लेषण एवं जाँचना परखना, पाठ्यक्रम का एक महत्वपूर्ण और अभिन्न अंग है, और छात्रों को बाइबल की बातों को परखने और जाँचने की विधियों की शिक्षा दी जाती है। साथ ही, यह केवल बाइबल अध्ययन के कौलेजों (सेमीनरी) में ही पाया जाता है कि बाइबल का अध्ययन करने वालों के लिए अन्य धर्मों की मान्यताओं की शिक्षा भी प्रदान की जाती है, और छात्रों को प्रत्येक धर्म के बारे में विस्तृत जानकारी दी जाती है, कौलेज (सेमीनरी) की लाइब्रेरी में सभी धर्मों से संबंधित पुस्तकें भी रखी जाती हैं, जिससे छात्र स्वयं पढ़ सकें और जान सकें कि तुलना में बाइबल और अन्य धर्म तथा उनके धर्म-ग्रंथ परस्पर कहाँ खड़े हैं।

          जाँचने, परखने, समझने का यह व्यवहार बाइबल और मसीही विश्वास में अनूठा एवं अनुपम है, क्योंकि न बाइबल और न ही मसीही विश्वास किसी को किसी छल अथवा कपट के द्वारा प्रभावित करने में विश्वास रखता है, वरन उसकी हर बात खुली, स्पष्ट, और अवलोकन के लिए उपलब्ध है। 

 

 

बाइबल पाठ: 2 तीमुथियुस 3:15-17

2 तीमुथियुस 3:15 और बालकपन से पवित्र शास्त्र तेरा जाना हुआ है, जो तुझे मसीह पर विश्वास करने से उद्धार प्राप्त करने के लिये बुद्धिमान बना सकता है।

2 तीमुथियुस 3:16 हर एक पवित्र शास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिये लाभदायक है।

2 तीमुथियुस 3:17 ताकि परमेश्वर का जन सिद्ध बने, और हर एक भले काम के लिये तत्पर हो जाए।

 

एक साल में बाइबल: 

  • भजन 66-67
  • रोमियों 7

बुधवार, 4 अगस्त 2021

परमेश्वर के वचन – बाइबल की आवश्यकता


          परमेश्वर ने हमें बाइबल क्यों दी? यहूदियों के पास, परमेश्वर द्वारा मूसा में होकर दिया गया उसका वचन था, जिसे आज हम मसीही विश्वासी “पुराना नियम” के नाम से जानते हैं। परमेश्वर द्वारा नैतिकता, धार्मिकता, धार्मिक अनुष्ठानों, पर्वों, और विधियों के पालन का पुराने नियम में वर्णन दिया गया है। तो फिर उसके साथ नया नियम जोड़कर यह 66 पुस्तकों का संकलन, बाइबल, क्यों प्रदान की गई?

          जैसा पहले के लेख में कहा गया है, सम्पूर्ण पुराना नियम, प्रभु यीशु मसीह के विभिन्न पहलुओं और बातों की भविष्यवाणी है। पुराना नियम संसार के लोगों को प्रभु के आने और उन भविष्यवाणियों, उस से संबंधित बातों को पूरा करने, तथा लोगों द्वारा उसे स्वीकार करने के लिए तैयार करता है। बिना नए नियम के, बिना प्रभु यीशु मसीह में होकर पुराने नियम की बातों की परिपूर्णता के, पुराने नियम का उद्देश्य अधूरा है, अपूर्ण है। पुराना और नया नियम, एक ही सिक्के दो पहलू हैं, एक की अनुपस्थिति से सिक्का अधूरा है, अस्वीकार्य है। परमेश्वर ने प्रभु यीशु मसीह को इस संसार में भेजकर और उसमें अपने द्वारा कही गई बातों को पूरा करवाने के द्वारा, अपने आप को, अपने वचन को, प्रभु यीशु मसीह को, और बाइबल की शिक्षाओं को प्रमाणित कर दिया है, सत्यापित कर दिया है। अब अपने जीवनों और परमेश्वर के साथ हमारे संबंधों के विषय जानने के लिए हमें कहीं और भटकने या हाथ-पैर मारने की आवश्यकता नहीं  है। बाइबल में हमें सारा विवरण और मार्गदर्शन उपलब्ध है।

          बाइबल हम मनुष्यों के लिए, जीवन व्यतीत करने और परलोक के लिए तैयार होने की, परमेश्वर द्वारा दी गई मार्गदर्शक पुस्तिका है। यह हमें हमारे भूत, वर्तमान, और भविष्य के बारे में बताती, सिखाती, और चिताती है; और सभी परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार करती है। बाइबल के कुछ पदों पर ध्यान कीजिए:

·    जीवन और भक्ति से संबंधित जो कुछ भी हमें आवश्यक है, वह सब हमें प्रभु यीशु मसीह की पहचान में, जो बाइबल में दी गई है, उपलब्ध करवाया गया है: “क्योंकि उसके ईश्वरीय सामर्थ्य ने सब कुछ जो जीवन और भक्ति से सम्बन्ध रखता है, हमें उसी की पहचान के द्वारा दिया है, जिसने हमें अपनी ही महिमा और सद्गुण के अनुसार बुलाया है” (2 पतरस 1:3)।

·    परमेश्वर ने ठहराया है कि उसके वचन के पालन के द्वारा हमारी भलाई हो, हम आशीषित हों, हमारे कार्य सफल हों: “भला होता कि उनका मन सदैव ऐसा ही बना रहे, कि वे मेरा भय मानते हुए मेरी सब आज्ञाओं पर चलते रहें, जिस से उनकी और उनके वंश की सदैव भलाई होती रहे!” (व्यवस्थाविवरण 5:29)। “इतना हो कि तू हियाव बान्धकर और बहुत दृढ़ हो कर जो व्यवस्था मेरे दास मूसा ने तुझे दी है उन सब के अनुसार करने में चौकसी करना; और उस से न तो दाहिने मुड़ना और न बाएं, तब जहां जहां तू जाएगा वहां वहां तेरा काम सफल होगा। व्यवस्था की यह पुस्तक तेरे चित्त से कभी न उतरने पाए, इसी में दिन रात ध्यान दिए रहना, इसलिये कि जो कुछ उस में लिखा है उसके अनुसार करने की तू चौकसी करे; क्योंकि ऐसा ही करने से तेरे सब काम सफल होंगे, और तू प्रभावशाली होगा” (यहोशू 1:7-8)।

·    परमेश्वर के वचन, बाइबल की शिक्षाओं को अपने हृदय में बसाए रखने से हम पाप करने से बचे रहते हैं: “जवान अपनी चाल को किस उपाय से शुद्ध रखे? तेरे वचन के अनुसार सावधान रहने से। मैं ने तेरे वचन को अपने हृदय में रख छोड़ा है, कि तेरे विरुद्ध पाप न करूं” (भजन संहिता 119:9, 11)।

·    जो परमेश्वर के वचन बाइबल की बातों को थामे रहते हैं, वे परमेश्वर के द्वारा संसार पर आने वाली सभी विपत्तियों और हानियों से सुरक्षित रखे जाते हैं: “तू ने मेरे धीरज के वचन को थामा है, इसलिये मैं भी तुझे परीक्षा के उस समय बचा रखूंगा, जो पृथ्वी पर रहने वालों के परखने के लिये सारे संसार पर आने वाला है” (प्रकाशितवाक्य 3:10)।

         

          बाइबल में दी गई भविष्यवाणियों के अनुसार, हम संसार के अंत के दिनों में जी रहे हैं; शीघ्र ही संसार का हर व्यक्ति अपने जीवन का हिसाब देने और अपने किए के अनुसार न्याय पाने के लिए प्रभु यीशु मसीह के समक्ष उपस्थित होगा: “इसलिये परमेश्वर अज्ञानता के समयों में आनाकानी कर के, अब हर जगह सब मनुष्यों को मन फिराने की आज्ञा देता है। क्योंकि उसने एक दिन ठहराया है, जिस में वह उस मनुष्य के द्वारा धर्म से जगत का न्याय करेगा, जिसे उसने ठहराया है और उसे मरे हुओं में से जिलाकर, यह बात सब पर प्रमाणित कर दी है” (प्रेरितों के काम 17:30-31)। वर्तमान संसार के हालात, सभी स्थानों पर होने वाली तथा बढ़ती जाने वाली प्राकृतिक आपदाएं, विश्व-व्यापी बीमारियाँ, स्थान-स्थान पर हो रहे कलह-क्लेश, युद्ध, सामाजिक अव्यवस्था, आदि सभी प्रभु यीशु मसीह द्वारा दिए गए अंत के दिनों के चिह्नों (मत्ती 24 अध्याय) की पूर्ति हैं। इन परिस्थितियों में हमारा मार्गदर्शन करने और इनमें से सुरक्षित पार निकालने के लिए सभी को बाइबल की आवश्यकता है।

          परमेश्वर ने विपदाओं से बचने का साधन हमें उपलब्ध कर दिया है। प्रभु यीशु मसीह में विश्वास करने और अपना जीवन स्वेच्छा से उसे समर्पित करने के द्वारा हम परमेश्वर के इस अमूल्य, अद्भुत, अनुपम साधन का सदुपयोग करने का मार्गदर्शन और सामर्थ्य भी प्राप्त कर लेते हैं। अब परमेश्वर के इस अनुग्रह को स्वीकार करना, और उसका लाभ उठाना, या उसका तिरस्कार करके अपने ही विनाशकारी मार्गों में बने रहना, यह प्रत्येक का व्यक्तिगत निर्णय है। जो बाइबल को परमेश्वर का वचन मानकर उसकी बातों का पालन करेगा; बाइबल के केन्द्रीय पात्र, प्रभु यीशु मसीह को उद्धारकर्ता स्वीकार करके उसके निर्देशों के अनुसार जीवन व्यतीत करेगा, वह आशीषों के साथ सुरक्षित परलोक में प्रवेश प्राप्त करेगा, अनन्त विनाश से बच जाएगा।

 

बाइबल पाठ: भजन 19:7-14

भजन 19:7 यहोवा की व्यवस्था खरी है, वह प्राण को बहाल कर देती है; यहोवा के नियम विश्वासयोग्य हैं, साधारण लोगों को बुद्धिमान बना देते हैं;

भजन 19:8 यहोवा के उपदेश सिद्ध हैं, हृदय को आनन्दित कर देते हैं; यहोवा की आज्ञा निर्मल है, वह आंखों में ज्योति ले आती है;

भजन 19:9 यहोवा का भय पवित्र है, वह अनन्तकाल तक स्थिर रहता है; यहोवा के नियम सत्य और पूरी रीति से धर्ममय हैं।

भजन 19:10 वे तो सोने से और बहुत कुन्दन से भी बढ़कर मनोहर हैं; वे मधु से और टपकने वाले छत्ते से भी बढ़कर मधुर हैं।

भजन 19:11 और उन्हीं से तेरा दास चिताया जाता है; उनके पालन करने से बड़ा ही प्रतिफल मिलता है।

भजन 19:12 अपनी भूलचूक को कौन समझ सकता है? मेरे गुप्त पापों से तू मुझे पवित्र कर।

भजन 19:13 तू अपने दास को ढिठाई के पापों से भी बचाए रख; वह मुझ पर प्रभुता करने न पाएं! तब मैं सिद्ध हो जाऊंगा, और बड़े अपराधों से बचा रहूंगा।।

भजन 19:14 मेरे मुंह के वचन और मेरे हृदय का ध्यान तेरे सम्मुख ग्रहण योग्य हों, हे यहोवा परमेश्वर, मेरी चट्टान और मेरे उद्धार करने वाले!

 

एक साल में बाइबल: 

  • भजन 66-67
  • रोमियों 7

मंगलवार, 3 अगस्त 2021

परमेश्वर का वचन – बाइबल – रूपरेखा – 2

  

          बाइबल की समस्त पुस्तकों की सामग्री को, उसके लेखों के विषयों तथा बातों को पाँच मुख्य श्रेणियों में बाँटा जा सकता है। हर पुस्तक में हर श्रेणी से संबंधित कुछ लिखा हो, यह आवश्यक नहीं; किन्तु सभी पुस्तकों की बातों को इन पाँच श्रेणियों में से किसी एक में अवश्य रखा जा सकता है।

ये श्रेणियाँ हैं:

        1. इतिहास – बाइबल की बातों और लोगों से संबंधित इतिहास; जैसे कि उत्पत्ति की पुस्तक के आरंभ में सृष्टि का इतिहास है। शमूएल, राजाओं, इतिहास की पुस्तकों में इस्राएल के राजाओं और उनके कार्यों का इतिहास है। नए नियम में प्रेरितों के काम में प्रथम मँडली के बनाए जाने और संसार भर में फैलने का इतिहास है।

        2. व्यवस्था या नियम – परमेश्वर द्वारा अपने लोगों के मार्गदर्शन और पालन के लिए दिए गए नियम, पर्व, विधि-विधान आदि जो पुराने नियम की पहली पाँच पुस्तकों में दिए गए हैं।

        3. जीवनियाँ – बाइबल के मुख्य पात्रों के जीवनों और कार्यों का वर्णन विभिन्न पुस्तकों में दिया गया है। प्रभु यीशु मसीह के जन्म, जीवन, कार्य, शिक्षा, मृत्यु, पुनरुत्थान, और स्वर्गारोहण नए नियम की पहली चार पुस्तकों में दिया गया है।  

        4. भविष्यवाणियाँ – सम्पूर्ण बाइबल में आरंभ से लेकर अंत तक, स्थान-स्थान पर परमेश्वर के कार्यों और उसके लोगों से संबंधित अनेकों भविष्यवाणियाँ दी गई हैं। उत्पत्ति की पुस्तक में ही, मनुष्य के पाप में गिरने के साथ ही, पाप के समाधान और निवारण के मार्ग की भविष्यवाणी परमेश्वर ने दे दी थी। नए नियम की अंतिम पुस्तक का अंत परमेश्वर के लोगों का अनन्तकाल तक परमेश्वर के साथ परम-आनंद में रहने की भविष्यवाणी के साथ होता है।

          प्रभु यीशु मसीह के जन्म, जीवन, कार्य, मृत्यु, पुनरुत्थान आदि की सभी बातों की भविष्यवाणियाँ पुराने नियम में प्रभु से हजारों से लेकर सैकड़ों वर्ष पहले लिखी गई थीं, और वे सभी सटीक पूरी हुई हैं। आज तक कभी भी कोई भी बाइबल की भविष्यवाणियों को गलत अथवा झूठी प्रमाणित नहीं कर सका है। परमेश्वर ने जो कहा है, वो हुआ है, और जैसा कहा है, वैसा ही हुआ है, चाहे लिखे जाने के समय, या पूरा होने से पहले, पढ़ने और सुनने में वह असंभव ही क्यों न लगता हो।

          पुराने नियम की पुस्तकों में कुछ विशिष्ट भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकें हैं, जो उनके लेखकों के नाम से जानी जाती हैं; जैसे कि यशायाह, यिर्मयाह, यहेजकेल, दानिय्येल, होशे, मलाकी, आदि। इन पुस्तकों में परमेश्वर ने अपने नबियों के द्वारा अपने लोगों को उनके पापों, परमेश्वर से भटक जाने, सांसारिकता में फँस जाने आदि के बारे में बताया, चेतावनियाँ दीं, और अनाज्ञाकारिता के परिणामों की चेतावनियाँ दीं, जो अपने समय पर पूरी भी हुईं; साथ ही भविष्य में होने वाली बातों के बारे में भी बताया, जो अपने समयानुसार पूरी भी हुईं, हो रही हैं, और जगत के अंत के समय पूरी होंगी। कुछ पुस्तकें, जैसे कि योना, नहूम, ओबद्याह नबियों की पुस्तकें, गैर-यहूदियों, या अन्यजातियों के विषय परमेश्वर की चेतावनियाँ और भविष्यवाणियाँ हैं।  

        5. शिक्षाएं – मनुष्य के पापों से पश्चाताप करने और उद्धार पाने, फिर परमेश्वर की इच्छानुसार जीवन बिताने, परमेश्वर के बारे में सीखने, परमेश्वर को क्या पसंद है और किस से वह अप्रसन्न होता है, अपने लोगों से वह क्या चाहता है, उन्हें अपने आप को उसके स्वर्गीय राज्य के लिए किस प्रकार तैयार करना और रखना है, आदि सभी बातें बाइबल की सभी पुस्तकों में विभिन्न संदर्भों, उदाहरणों, पात्रों के जीवनों और कार्यों, नैतिक शिक्षाओं, आदि के द्वारा दी गई हैं।  

 

          बाइबल की पुस्तकों की सामग्री सामान्य लेखों, कविताओं, परमेश्वर की स्तुति और आराधना के भजनों, नैतिक शिक्षाओं के लघु कथनों आदि के रूप में है। आज हम बाइबल की पुस्तकों को अध्यायों और पदों या आयतों में विभाजित देखते हैं। उनके मूल स्वरूप और लेखों में अध्यायों और पदों का यह विभाजन नहीं था। इसीलिए नए नियम में जहाँ पर भी पुराने नियम की पुस्तकों को उद्धत किया गया है, उनके हवाले से कोई बात कही गई है, तो हम कभी भी पुस्तक के लेखक के नाम के अतिरिक्त किसी अध्याय या पद की संख्या को नहीं पाते हैं। आज हम जो बाइबल की पुस्तकों का अध्यायों और पदों में विभाजन देखते हैं, वह किसी भी वाक्य अथवा कथन तक सरलता से पहुँचने, या उसे दूसरों को बताने के लिए सरल करने के उद्देश्य से किया गया था। आज जिस विभाजन को सामान्यतः स्वीकार किया और जिसका पालन किया जाता है, वह इंग्लैंड में कैन्टरबरी के आरचबिशप स्टीफन लैंगटन की विभाजन पद्धति के अनुसार है। बिशप लैंगटन ने यह पद्धति 1227 ईस्वी में दी, और 1382 ईस्वी में प्रकाशित वाइकलिफ़ अंग्रेजी बाइबल इसे प्रयोग करने वाली पहली बाइबल थी। इस पद्धति के अंतर्गत जब बाइबल की किसी भी पुस्तक का कोई हवाला देना होता है तो पहले पुस्तक का नाम, फिर अध्याय और फिर वह पद लिखा जाता है जहाँ पर वह बात है। उदाहरण के लिए, यूहन्ना 3:16 से तात्पर्य है यूहन्ना की पुस्तक, उसका तीसरा अध्याय और उसका 16वां पद। यदि कोई लंबा खंड बताना होता है तो उस खंड के आरंभिक और अंतिम पदों को लिखा जाता है;  यूहन्ना 3:16 – 4:6 का अर्थ है यूहन्ना 3 अध्याय के 16वें पद से लेकर 4 अध्याय के 6 पद तक का खंड विचार या प्रयोग के लिए है।

 

बाइबल पाठ:

भजन 119:160 तेरा सारा वचन सत्य ही है; और तेरा एक एक धर्ममय नियम सदा काल तक अटल है।

नीतिवचन 30:5 – ईश्वर का एक एक वचन ताया हुआ है; वह अपने शरणागतों की ढाल ठहरा है।

 

एक साल में बाइबल: 

  • भजन 63-65
  • रोमियों 6

सोमवार, 2 अगस्त 2021

परमेश्वर का वचन – बाइबल – रूपरेखा – 1

 

          शब्द बाइबल यूनानी भाषा के शब्द ‘ता बिबलिआ’ (ta biblia) से आया है। बिबलिआ शब्द का अर्थ होता है “पुस्तकें”। बाइबल अपने मूल स्वरूप में 66 पुस्तकों का संकलन है। ये 66 पुस्तकें, अलग-अलग समयों में, अलग-अलग लेखकों द्वारा, भिन्न स्थानों, भिन्न भाषाओं, और भिन्न परिस्थितियों में लिखी गईं; किन्तु संकलित हो जाने के बाद, ये अब आरंभ से लेकर अंत तक एक पुस्तक हैं। बाइबल की पुस्तकों को मुख्यतः दो भागों में रखा गया है – पुराना नियम (39 पुस्तकें) तथा नया नियम (27 पुस्तकें)। पुराने नियम का आरंभ उत्पत्ति की पुस्तक से, परमेश्वर द्वारा जगत की सृष्टि, मनुष्य की सृष्टि, मनुष्य के पाप में गिरने के वर्णन, और मनुष्यों को पाप से छुड़ाने के लिए आने वाले उद्धारकर्ता की प्रतिज्ञा के साथ होता है। और नए नियम की अंतिम पुस्तक, प्रकाशितवाक्य, जगत के अंत और समस्त संसार के न्याय की भविष्यवाणी की पुस्तक है, जो संसार के सभी लोगों के द्वारा परमेश्वर को अपने जीवनों का हिसाब देने, और उनका दंड अथवा प्रतिफल पाने, पाप तथा मृत्यु से मुक्त नई सृष्टि और परमेश्वर के अनन्तकालीन राज्य के बारे में बताती है। इस प्रकार, बाइबल वर्तमान जगत के आरंभ से लेकर इस जगत के अंत तक का विवरण देती है; और फिर परमेश्वर के साथ अनन्त काल के आरंभ की प्रतिज्ञा तथा उस अनन्त काल की एक झलक के साथ समाप्त होती है।

          पुराना नियम प्रभु यीशु मसीह के जन्म से पहले लिखी गई 39 पुस्तकों का, जो परमेश्वर द्वारा यहूदियों को दिया गया परमेश्वर का वचन भी हैं, संकलन है। सम्पूर्ण पुराने नियम के सभी वृतांतों का मूल विषय, जगत का आने वाले उद्धारकर्ता, प्रभु यीशु मसीह है। पुराने नियम की सभी पुस्तकें प्रभु यीशु मसीह के बारे में आलंकारिक अथवा सांकेतिक रीति से, या भविष्यवाणियों के द्वारा बताती हैं। इन पुस्तकों में प्रभु यीशु मसीह की विभिन्न बातों को, उन से संबंधित भविष्यवाणियों को, उनके गुणों, उनके कार्यों, सारे जगत के सभी लोगों के उद्धार के लिए उनके बलिदान और मृतकों में से पुनरुत्थान को, पहले से ही बता कर लिख दिया गया है: “तब मैं ने कहा, देख, मैं आ गया हूं, (पवित्र शास्त्र में मेरे विषय में लिखा हुआ है) ताकि हे परमेश्वर तेरी इच्छा पूरी करूं” (इब्रानियों 10:7)।

          इसीलिए प्रभु यीशु मसीह ने उनके मारे जाने, गाड़े जाने और फिर मृतकों में से जी उठने के बाद की घटनाओं के कारण असमंजस और अविश्वास में डांवांडोल हो रहे अपने शिष्यों से कहा, “तब उसने उन से कहा; हे निर्बुद्धियों, और भविष्यद्वक्ताओं की सब बातों पर विश्वास करने में मन्‍दमतियों! क्या अवश्य न था, कि मसीह ये दुख उठा कर अपनी महिमा में प्रवेश करे? तब उसने मूसा से और सब भविष्यद्वक्ताओं से आरम्भ कर के सारे पवित्र शास्त्रों में से, अपने विषय में की बातों का अर्थ, उन्हें समझा दिया” (लूका 24:25-27); तथा “फिर उसने उन से कहा, ये मेरी वे बातें हैं, जो मैं ने तुम्हारे साथ रहते हुए, तुम से कही थीं, कि अवश्य है, कि जितनी बातें मूसा की व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं और भजनों की पुस्तकों में, मेरे विषय में लिखी हैं, सब पूरी हों। तब उसने पवित्र शास्त्र बूझने के लिये उन की समझ खोल दी। और उन से कहा, यों लिखा है; कि मसीह दु:ख उठाएगा, और तीसरे दिन मरे हुओं में से जी उठेगा। और यरूशलेम से ले कर सब जातियों में मन फिराव का और पापों की क्षमा का प्रचार, उसी के नाम से किया जाएगा” (लूका 24:44-47)।

          नया नियम प्रभु यीशु मसीह के जन्म के वर्णन के साथ आरंभ होता है। नए नियम की आरंभिक 4 पुस्तकें प्रभु यीशु मसीह की जीवनी हैं, और अंतिम पुस्तक इस वर्तमान जगत के अंत और न्याय की भविष्यवाणी की पुस्तक, प्रकाशितवाक्य है। इनके मध्य प्रभु यीशु मसीह के अनुयायियों की मंडली बनने, संसार भर में फैलाने, और उससे संबंधित मसीही विश्वास की शिक्षाएं हैं।

          पुराने नियम की अंतिम पुस्तक “मलाकी” है; और नए नियम की प्रथम पुस्तक “मत्ती रचित सुसमाचार” है। मलाकी और मत्ती के मध्य 400 वर्ष का अंतराल है जिसमें परमेश्वर ने कोई प्रकाशन नहीं दिया, कोई बात नहीं लिखवाई। अर्थात, प्रभु यीशु मसीह से संबंधित पुराने नियम की हर शिक्षा और भविष्यवाणी, उनके जन्म से भी कम से कम 400 वर्ष या उससे अधिक पहले की है!

 

 

          प्रार्थना करें कि परमेश्वर अपने अद्भुत वचन के लिए आपके मन को तैयार करे, और आप पर अपने वचन को प्रकट करे।

 

बाइबल पाठ: भजन 1

भजन 1:1 क्या ही धन्य है वह पुरुष जो दुष्टों की युक्ति पर नहीं चलता, और न पापियों के मार्ग में खड़ा होता; और न ठट्ठा करने वालों की मण्डली में बैठता है!

भजन 1:2 परन्तु वह तो यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्न रहता; और उसकी व्यवस्था पर रात दिन ध्यान करता रहता है।

भजन 1:3 वह उस वृक्ष के समान है, जो बहती नालियों के किनारे लगाया गया है। और अपनी ऋतु में फलता है, और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। इसलिये जो कुछ वह पुरुष करे वह सफल होता है।

भजन 1:4 दुष्ट लोग ऐसे नहीं होते, वे उस भूसी के समान होते हैं, जो पवन से उड़ाई जाती है।

भजन 1:5 इस कारण दुष्ट लोग अदालत में स्थिर न रह सकेंगे, और न पापी धर्मियों की मण्डली में ठहरेंगे;

भजन 1:6 क्योंकि यहोवा धर्मियों का मार्ग जानता है, परन्तु दुष्टों का मार्ग नाश हो जाएगा।

 

एक साल में बाइबल: 

  • भजन 60-62
  • रोमियों 5

रविवार, 1 अगस्त 2021

परमेश्वर का वचन – बाइबल – परिचय

 

          सामान्यतः बाइबल को ईसाइयों का धर्म-ग्रन्थ; पश्चिमी सभ्यता से आई हुई पुस्तक समझा जाता है, जो लोगों को पश्चिमी सभ्यता तथा व्यवहार में ले जाती है; और यह मिथ्या आरोप लगा कर व्यर्थ में बाइबल का तथा बाइबल को मानने वालों का विरोध किया जाता है। लेकिन वास्तव में बाइबल किसी धर्म-विशेष अथवा सभ्यता विशेष की पुस्तक नहीं है; और न ही किसी सांसारिक सभ्यता का अनुसरण करने की शिक्षा देती है। बाइबल सृष्टि के सृष्टिकर्ता, इस संसार के प्रत्येक व्यक्ति के रचयिता, इस संपूर्ण जगत के सृजनहार, पालनहार, तारणहार परमेश्वर द्वारा संपूर्ण मानवजाति से उसके असीम, अपरिवर्तनीय, निःस्वार्थ, पवित्र प्रेम की लिखित अभिव्यक्ति है।

          बाइबल में परमेश्वर ने अपने आप को, अपने गुणों, अपने चरित्र, अपनी पसंद-नापसन्द को, और समस्त मानवजाति से जो अद्भुत, अवर्णनीय प्रेम परमेश्वर ने रखा है, उसे व्यक्त किया है। यह ऐसा विलक्षण प्रेम है जो परमेश्वर ने मनुष्यों से उनके पाप के दशा में होते हुए भी किया है। बाइबल ही वह एकमात्र ग्रन्थ है जो परमेश्वर के विषय यह बताता है कि वह पापियों से भी प्रेम करता है, उनका नाश नहीं चाहता, वरन उसकी यही लालसा है कि वे अपने पापों से पश्चाताप के साथ उसकी ओर फिरें, और वह उन्हें क्षमा करके अपने साथ अनन्तकाल के लिए अपनी संतान बनाकर जोड़ ले। यह इसलिए संभव है क्योंकि प्रभु यीशु मसीह ने संसार के सभी मनुष्यों के सभी पापों को अपने ऊपर ले लिया, और उनके दण्ड को, क्रूस की मृत्यु को, सभी मनुष्यों के लिए सह लिया। अब, प्रभु यीशु मसीह में सभी मनुष्यों के सभी पापों का दण्ड चुकाया जा चुका है, और किसी भी मनुष्य को अपने पापों की क्षमा को प्राप्त करने के लिए प्रभु यीशु मसीह के इस बलिदान के कार्य को स्वीकार करने के अतिरिक्त और कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है।

          केवल बाइबल का परमेश्वर ही वह परमेश्वर है जो मनुष्यों के प्रति अपने प्रेम के कारण स्वर्ग छोड़कर, एक साधारण मनुष्य की समानता में देहधारी होकर प्रभु यीशु मसीह के नाम से पृथ्वी पर आया, जिससे कि मनुष्यों के लिए स्वर्ग जाने का मार्ग तैयार करके उन्हें दे। ऐसा मार्ग जिस मार्ग पर चलने के लिए संसार के किसी भी मनुष्य को परमेश्वर प्रभु यीशु पर और उसके क्रूस पर दिए गए बलिदान के कार्य पर विश्वास करने, स्वेच्छा से अपना जीवन उसे समर्पित करके उसका अनुसरण करना स्वीकार कर लेने के अतिरिक्त और कुछ भी करने की कोई आवश्यकता नहीं है। मनुष्य को परमेश्वर का यह प्रेम, मनुष्य के प्रति परमेश्वर के अनुग्रह से उसे मिलता है; न कि मनुष्य के किसी भी कर्म अथवा उसकी अपनी किसी भी ‘धार्मिकता के आधार पर। परमेश्वर का यह प्रेम संसार के प्रत्येक व्यक्ति को, परमेश्वर की ओर से सेंत-मेंत उपलब्ध है। परमेश्वर के इस प्रावधान को स्वीकार अथवा अस्वीकार करना, यह प्रत्येक मनुष्य का अपना व्यक्तिगत निर्णय है।

          बाइबल मनुष्यों को पृथ्वी पर की वस्तुओं, संपत्ति, स्थान, वैभव, राज्य या ओहदा प्राप्त करने के लिए नहीं, स्वर्ग में परमेश्वर के साथ निवास करने के लिए तैयार करती है। बाइबल का दृष्टिकोण इस पृथ्वी का नहीं, वरन स्वर्ग का है। बाइबल बारंबार यही सिखाती है कि मनुष्य का यह शरीर और पृथ्वी का समय तथा संपदा अस्थाई हैं, यहीं नाश हो जाएँगी। जो स्थाई और चिरस्थाई है, वह मृत्योपरांत है – स्वर्ग या नरक; जिन में से एक स्थान पर जाने के लिए मनुष्य को अभी यहाँ पृथ्वी पर रहते हुए व्यक्तिगत निर्णय लेना है और उसके अनुसार तैयार होना है। जो पापों के लिए पश्चाताप करके, प्रभु यीशु से पापों की क्षमा प्राप्त करके प्रभु के साथ रहने का निर्णय लेते हैं, वे अपने इस निर्णय लेने के समय से आरम्भ कर के मृत्योपरांत अनन्तकाल तक प्रभु यीशु के साथ स्वर्ग में रहेंगे। जो प्रभु यीशु के इस प्रेम-प्रस्ताव को अस्वीकार कर देते हैं, प्रभु के साथ नहीं रहना चाहते हैं, वे परलोक में अपना अनन्तकाल व्यतीत करने के लिए उनके द्वारा लिए गए व्यक्तिगत निर्णय के अनुसार, मृत्योपरांत उस स्थान पर जाएंगे जहाँ परमेश्वर प्रभु यीशु मसीह नहीं है – नरक में।

          बाइबल में परमेश्वर ने मनुष्यों को परस्पर व्यवहार करने, और परमेश्वर के प्रति व्यवहार रखने के बारे में बताया गया है। बाइबल सिखाती है कि मनुष्य पाप के स्वभाव के साथ जन्म लेता है, पाप के स्वभाव के साथ ही पलता और बड़ा होता है, व्यवहार करता है, और पाप कमाता रहता है; और अन्ततः पापों के साथ ही मर जाता है, और उसका यही पाप स्वभाव उसे इस पृथ्वी पर परमेश्वर प्रभु यीशु से दूर रखता है। उसके पाप उसके साथ परलोक में जाते हैं, और उसे अनन्त पीड़ा के स्थान नरक में ले जाते हैं। किन्तु प्रभु यीशु मसीह पर लाया गया विश्वास और पापों से पश्चाताप उसके इस पाप स्वभाव, तथा पापों के दण्ड को हटाकर, प्रभु यीशु के स्वभाव को उसमें डाल देता है, और पापों की क्षमा पाया हुआ वह पापी मनुष्य अंश-अंश करके प्रभु यीशु की समानता में ढलने लगता है, प्रभु यीशु के व्यवहार, चरित्र, गुणों आदि को अपनाने लगता है, प्रभु यीशु की समानता में आने लग जाता है।

          बाइबल की शिक्षा के अनुसार, प्रभु यीशु में स्वेच्छा तथा सच्चे समर्पण से लाया गया यह विश्वास मनुष्य के धर्म को नहीं वरन उसके मन को, उसकी पाप करने की प्रवृत्ति को, उसके जीवन को बदलता है। उसे किसी सांसारिक सभ्यता अथवा संस्कृति विशेष का नहीं वरन स्वर्गीय दृष्टिकोण तथा व्यवहार रखने वाला, परमेश्वर की संतान बना देता है। प्रभु यीशु के एक अनुयायी ने कहा है: “या तो पाप आपको बाइबल से दूर रखेगा; अन्यथा, बाइबल आपको पाप से दूर रखेगी।”

 

 

          परमेश्वर से सच्चे मन से प्रार्थना करें कि वह अपने वचन बाइबल के प्रति आपके मन और समझ को खोले; और इस पापों की क्षमा का मार्ग दिखाने वाले, जीवन बदलने वाले, अनन्त जीवन देने वाले, परमेश्वर की संतान बनाकर स्वर्ग का उत्तराधिकारी बना देने वाले अद्भुत वचन, बाइबल, के अध्ययन की यात्रा में आपको आगे बढ़ाए।

 

बाइबल पाठ: यूहन्ना 1:1-4

यूहन्ना 1:1 आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था।

यूहन्ना 1:2 यही आदि में परमेश्वर के साथ था।

यूहन्ना 1:3 सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उस में से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न न हुई।

यूहन्ना 1:4 उस में जीवन था; और वह जीवन मनुष्यों की ज्योति थी।


एक साल में बाइबल: 

  • भजन 57-59
  • रोमियों 4