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मंगलवार, 15 अक्तूबर 2024

Growth through God’s Word / परमेश्वर के वचन से बढ़ोतरी – 221

 

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मसीही जीवन से सम्बन्धित बातें – 66


मसीही जीवन के चार स्तम्भ - 4 - प्रार्थना (8) 


हम व्यावहारिक मसीही जीवन जीने से सम्बन्धित, प्रेरितों 2:42 में दी गई चौथी बात, प्रार्थना करने पर विचार कर रहे हैं। हम देख चुके हैं कि सामान्य धारणा के विपरीत, प्रार्थना करना केवल परमेश्वर से कुछ माँगना या कुछ करने के लिए कहना मात्र नहीं है; वरन हर बात के लिए, खुले दिल के साथ उससे वार्तालाप करते रहना है। परमेश्वर का अपने लोगों को निर्देश है कि वे उसके साथ निरन्तर प्रार्थना में लगे रहें। हम देख चुके हैं कि ऐसा करने से हम शैतान की युक्तियों से, उसके द्वारा बहकाए जाने से बचे रहते हैं। पिछले लेख में हमने समझना आरम्भ किया था कि परमेश्वर ने अपने वचन में यह अनियंत्रित छूट नहीं दी है कि हम उससे जो भी माँगेंगे, उसे वह अवश्य ही “हाँ” में और तुरन्त पूरा करेगा। हमने सामान्य जीवन के दो उदाहरणों से समझा था कि परमेश्वर ऐसी खुली छूट दे भी नहीं सकता है, क्योंकि ऐसा करना, उसके व्यक्तित्व और गुणों से सुसंगत नहीं होगा। साथ ही हमने यह भी समझा था कि परमेश्वर के वचन बाइबल की बातों के गलत अर्थ, व्याख्या, और दुरुपयोग किए जाने का सबसे मुख्य कारण है बाइबल के कुछ शब्दों, वाक्यांशों, वाक्यों, पदों या खण्डों को उनके सन्दर्भ से बाहर लेकर उनकी अपनी ही समझ के अनुसार व्याख्या करना, उन्हें ऐसे अर्थ देना जो उनके मूल स्वरूप में कभी दिए ही नहीं गए थे। हम उन पदों को भी उनके सन्दर्भ में देखेंगे जिनके आधार पर ये गलत शिक्षाएं दी जाती हैं कि परमेश्वर ने अपने लोगों से वायदा किया है कि वह उनकी हर प्रार्थना का उत्तर हाँ में और तुरन्त देगा।

 

आज हम बाइबल से कुछ पदों को देखेंगे और उनसे सीखेंगे कि परमेश्वर ने किन लोगों और किस प्रकार की प्रार्थनाओं को सुनने और उत्तर देने के बारे में कहा है। ये पद किसी विशेष क्रम में नहीं दिए गए हैं; और न ही बाइबल में प्रार्थना के उत्तर दिए जाने से सम्बन्धित सभी पदों का संकलन हैं। लेकिन ये पद हमें दिखाते हैं कि परमेश्वर ने प्रार्थना सुनने और पूरी करने के बारे में अपने वचन में वास्तव में कहा क्या है। इनके आधार पर हम सामान्यतः दी जाने वाली गलत व्याख्याओं और अनुचित शिक्षाओं के यथार्थ को समझ सकेंगे, और परमेश्वर के वायदों की वास्तविकता को पहचान सकेंगे।

 

  • भजन 10:17 हे यहोवा, तू ने नम्र लोगों की अभिलाषा सुनी है; तू उनका मन तैयार करेगा, तू कान लगाकर सुनेगा” परमेश्वर उनकी सुनता है जो नम्र हैं।
  • भजन 34:16-17 “यहोवा बुराई करने वालों के विमुख रहता है, ताकि उनका स्मरण पृथ्वी पर से मिटा डाले। धर्मी दोहाई देते हैं और यहोवा सुनता है, और उन को सब विपत्तियों से छुड़ाता है।” परमेश्वर दुष्टों की नहीं वरन धर्मियों की सुनता है। 
  • भजन 37:4 “यहोवा को अपने सुख का मूल जान, और वह तेरे मनोरथों को पूरा करेगा।” परमेश्वर उनकी इच्छाएं पूरी करता है जो उसमें आनन्दित रहते हैं। 
  • भजन 91:9, 15 “हे यहोवा, तू मेरा शरण स्थान ठहरा है। तू ने जो परमप्रधान को अपना धाम मान लिया है, जब वह मुझ को पुकारे, तब मैं उसकी सुनूंगा; संकट में मैं उसके संग रहूंगा, मैं उसको बचा कर उसकी महिमा बढ़ाऊंगा।” परमेश्वर उनकी सुनता है जिन्होंने उसे अपना निवासस्थान बनाया है, अर्थात जो हमेशा उसके साथ जुड़े रहते हैं। 
  • भजन 145:19 “वह अपने डरवैयों की इच्छा पूरी करता है, ओर उनकी दोहाई सुन कर उनका उद्धार करता है।” परमेश्वर उनकी इच्छा पूरी करता है जो उसका भय मानते हैं।
  • नीतिवचन 10:24 “दुष्ट जन जिस विपत्ति से डरता है, वह उस पर आ पड़ती है, परन्तु धर्मियों की लालसा पूरी होती है।” परमेश्वर धर्मियों की लालसा पूरी करता है।
  • यूहन्ना 9:31 “हम जानते हैं कि परमेश्वर पापियों की नहीं सुनता परन्तु यदि कोई परमेश्वर का भक्त हो, और उस की इच्छा पर चलता है, तो वह उस की सुनता है।” परमेश्वर अपने भक्तों की, उसकी इच्छा पर चलें वालों की सुनता है।
  • यूहन्ना 15:7 “यदि तुम मुझ में बने रहो, और मेरी बातें तुम में बनी रहें तो जो चाहो मांगो और वह तुम्हारे लिये हो जाएगा।” परमेश्वर उनकी माँगो को पूरा करता है जो उसमें तथा उसके वचन में बने रहते हैं।
  • यूहन्ना 15:16 “तुम ने मुझे नहीं चुना परन्तु मैं ने तुम्हें चुना है और तुम्हें ठहराया ताकि तुम जा कर फल लाओ; और तुम्हारा फल बना रहे, कि तुम मेरे नाम से जो कुछ पिता से मांगो, वह तुम्हें दे।” परमेश्वर उनकी सुनता है जो जाकर उसके लिए फल लाते हैं, ऐसा फल जो बना रहे; अर्थात उनकी जो यत्न एवं निष्ठा से प्रभु के लिए कार्य करते रहते हैं।
  • 1 यूहन्ना 5:14 “और हमें उसके सामने जो हियाव होता है, वह यह है; कि यदि हम उस की इच्छा के अनुसार कुछ मांगते हैं, तो हमारी सुनता है।” परमेश्वर उनकी सुनता है जो उसकी इच्छा के अनुसार माँगते हैं। अर्थात जो परमेश्वर के वचन का अध्ययन और पालन करते हैं; क्योंकि परमेश्वर की इच्छा जानने का माध्यम, परमेश्वर का वचन बाइबल ही है।

 

बाइबल के इन कुछ पदों से हम देख सकते हैं कि परमेश्वर ने उन्हीं की प्रार्थनाओं को सुनने और उत्तर देने का वायदा किया है जो नम्र हैं, धर्मी हैं, बुराई से विमुख रहते हैं, जो उस में आनन्दित रहते हैं, और उसे अपना शरणस्थान तथा निवासस्थान बनाते हैं, उसके भय में बने रहते हैं, उसके भक्त हैं, उसकी इच्छा पर चलते हैं, उसमें तथा उसके वचन में बने रहते हैं, उसके लिए परिश्रम करते हैं और फल लाते हैं, तथा उसकी इच्छा के अनुसार उससे माँगते हैं। जैसे जैसे हम बाइबल की पुस्तकों में से प्रार्थनाओं का उत्तर दिए जाने से सम्बन्धित पदों को संकलित करके उन पर मनन करते हैं, तो हमारे सामने स्पष्ट होता चला जाता है कि परमेश्वर किन लोगों की, और किस प्रकार की प्रार्थनाओं का सकारात्मक रीति से उत्तर देता है। और जैसा उपरोक्त पदों से प्रकट है, परमेश्वर का सकारात्मक उत्तर उन लोगों से और उन प्रार्थनाओं से जुड़ा हुआ है, जो उसके व्यक्तित्व और गुणों के अनुरूप हैं, उन से सुसंगत हैं।

 

आगे के कुछ लेखों में हम उन वाक्यों या पदों को देखेंगे और उनका विश्लेषण करेंगे, जिनका सामान्यतः यह दिखाने के लिए दुरुपयोग किया जाता है कि परमेश्वर ने विश्वास से माँगी गई प्रत्येक प्रार्थना का सकारात्मक उत्तर देने का वायदा किया है।

 

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।


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English Translation


Things Related to Christian Living – 66


The Four Pillars of Christian Living - 4 - Prayer (8)


We are considering the fourth thing related to practical Christian living, given in Acts 2:42. We have seen that contrary to the popular misconception, praying is not just asking for something from God, nor is it asking Him to do something; rather it is conversing with God about everything and with an open heart. It is God’s instruction to His people that they continually keep praying to Him. We have seen that by doing so we are kept safe from the schemes of the devil, and from being misled by him. Since the last article we have started to see how God has not given an uncontrolled license in His Word that whatever we ask for, He is obliged to fulfill it and do it immediately. We had seen through two examples of everyday life that God cannot give any such promises, since doing this will not be in conformity to His person and His attributes. We had also understood that the most common and important reason for misunderstanding, misinterpreting, and misapplying the words, phrases, sentences, verses and passages of the Bible is taking them out of their context, and then giving them meanings which were never a part of their original form. We will also see those verses in their context, which are often made the basis of the wrong teachings that God has promised His people that He will answer their prayers in affirmative and immediately.


Today we will see some verses from the Bible and learn from them what God has said about answering whose prayers, and what kinds of prayers. These verses are not given here in any particular sequence; and neither are they a compilation of all the verses related to answered prayers. But these verses show to us what God actually has said in His Word about listening to and fulfilling prayers. On the basis of these verses, we can see the reality about the verses usually misinterpreted and used to give wrong teachings, and be able to understand the promises of God on this topic correctly.


  • Psalm 10:17 “Lord, You have heard the desire of the humble; You will prepare their heart; You will cause Your ear to hear” The Lord listens to those who are humble.
  • Psalm 34:16-17 “The face of the Lord is against those who do evil, To cut off the remembrance of them from the earth. The righteous cry out, and the Lord hears, And delivers them out of all their troubles.” The Lord listens to not the wicked but the righteous.
  • Psalm 37:4 “Delight yourself also in the Lord, And He shall give you the desires of your heart.” God fulfills the desires of those who delight themselves in the Lord.
  • Psalm 91:9, 15 “Because you have made the Lord, who is my refuge, Even the Most High, your dwelling place, He shall call upon Me, and I will answer him; I will be with him in trouble; I will deliver him and honor him.” God listens to those who have made Him their refuge and dwelling place.
  • Psalm 145:19 “He will fulfill the desire of those who fear Him; He also will hear their cry and save them.” God fulfills the desires of those who fear Him.
  • Proverbs 10:24 “The fear of the wicked will come upon him, And the desire of the righteous will be granted.” God fulfills the desires of the righteous.
  • John 9:31 “Now we know that God does not hear sinners; but if anyone is a worshiper of God and does His will, He hears him.” God listens to those who are His worshippers and do His will.
  • John 15:7 “If you abide in Me, and My words abide in you, you will ask what you desire, and it shall be done for you.” God fulfills the prayers of those who abide in Him and His Words.
  • John 15:16 “You did not choose Me, but I chose you and appointed you that you should go and bear fruit, and that your fruit should remain, that whatever you ask the Father in My name He may give you.” God listens to those who go and bear fruit for Him, fruit that remains; i.e., to those who sincerely and diligently work for the Lord.
  • 1 John 5:14 “Now this is the confidence that we have in Him, that if we ask anything according to His will, He hears us.” God listens to those who ask according to His will. In other words, those who study and obey His Word; since the way to know God’s will is His Word the Bible.


From these few verses of the Bible, we can see that God has promised to listen to the prayers of only those who are humble, righteous, stay away from evil, delight themselves in Him, make Him their refuge and dwelling place, remain in His fear, worships Him and does His will, abide in Him and His Word, work for Him and bear fruit for him, and ask according to His will. As we compile the verses about answered prayers from the various books of the Bible and meditate upon them, then it keeps getting clearer to us about whose, and what kinds of prayers God responds to positively. And as is evident from the above verses, God’s positive response is for the prayers of those who are in conformity with Him and His attributes.


In the next few articles, we will look at those sentences and verses and analyze them, which are generally used to say that God has promised to answer positively every prayer that is made to Him in faith.


If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life.  Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.


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