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रविवार, 13 नवंबर 2022

भ्रामक शिक्षाएँ - 'अन्य भाषा' पवित्र आत्मा प्राप्त करने का प्रमाण नहीं हैं / Wrong Teachings - ‘Tongues’ Not Proof of Receiving the Holy Spirit


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अन्य-भाषाएं - पवित्र आत्मा प्राप्त करने का प्रमाण नहीं


हम पिछले लेखों से देखते आ रहे हैं कि बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों की एक पहचान यह भी है कि वे बहुत सरलता से भ्रामक शिक्षाओं द्वारा बहकाए तथा गलत बातों में भटकाए जाते हैं। इन भ्रामक शिक्षाओं को शैतान और उस के दूत झूठे प्रेरितों और प्रभु के लोगों का भेस धारण कर के प्रस्तुत करते हैं। ये लोग, और उनकी शिक्षाएं, दोनों ही बहुत आकर्षक, रोचक, और ज्ञानवान, यहाँ तक कि भक्तिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण भी प्रतीत हो सकती हैं, किन्तु साथ ही उनमें अवश्य ही बाइबल की बातों के अतिरिक्त भी बातें डली हुई होती हैं। इन गलत या भ्रामक शिक्षाओं के मुख्य स्वरूपों के बारे में, जिन्हें शैतान और उसके लोग प्रभु यीशु के झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं, परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है कि, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”। अर्थात, इन भ्रामक शिक्षाओं के, गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन विषय, होते हैं - प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार। साथ ही इस पद में सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है। इस पद में यह भी लिखा है कि इन तीनों विषयों के बारे में शैतान की युक्तियों के जो यथार्थ और सत्य हैं, वे सब वचन में पहले से ही बता दिए गए हैं। इसलिए वचन से देखने, जाँचने, शिक्षाओं को परखने के द्वारा सही और गलत की पहचान करना कठिन नहीं है।

 

पिछले लेखों में हमने इन गलत शिक्षा देने वाले लोगों के द्वारा प्रभु यीशु से संबंधित सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं को देखने के बाद, परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित सामान्यतः बताई और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं की वास्तविकता को वचन की बातों से देखना आरंभ किया है। हम देख चुके हैं कि प्रत्येक सच्चे मसीही विश्वासी के नया जन्म या उद्धार पाते ही, तुरंत उसके उद्धार पाने के पल से ही परमेश्वर पवित्र आत्मा अपनी संपूर्णता में आकर उसके अंदर निवास करने लगता है, और उसी में बना रहता है, उसे कभी छोड़ कर नहीं जाता है; और इसी को पवित्र आत्मा से भरना या पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाना भी कहते हैं। वचन स्पष्ट है कि पवित्र आत्मा से भरना या उससे बपतिस्मा पाना कोई दूसरा या अतिरिक्त अनुभव नहीं है, वरन उद्धार के साथ ही सच्चे मसीही विश्वासी में पवित्र आत्मा का आकर निवास करना ही है। इन गलत शिक्षकों की एक और बहुत प्रचलित और बल पूर्वक कही जाने वाले बात है “अन्य-भाषाओं” में बोलना, और उन लोगों के द्वारा “अन्य-भाषाओं” को अलौकिक भाषाएं बताना। इसके बारे में पिछले लेख में हम देख चुके हैं कि यह भी एक ऐसी गलत शिक्षा है जिसका वचन से कोई समर्थन या आधार नहीं है। प्रेरितों 2 अध्याय में जो अन्य भाषाएं बोली गईं, वे पृथ्वी ही की भाषाएं और उनकी बोलियाँ थीं; कोई अलौकिक भाषा नहीं। हमने यह भी देखा था कि वचन में इस शिक्षा का भी कोई आधार या समर्थन नहीं है कि “अन्य-भाषाएं” प्रार्थना की भाषाएं हैं।

 

एक अन्य संबंधित गलत शिक्षा उन लोगों के द्वारा बल-पूर्वक यह सिखाना है कि अन्य-भाषाएं बोलना ही पवित्र आत्मा प्राप्त करने का प्रमाण है। आज हम इसी के विषय परमेश्वर के वचन बाइबल से देखेंगे। यदि आप 1 कुरिन्थियों 12:4-11 को देखेंगे, जो पवित्र आत्मा द्वारा वचन की सेवकाई के लिए दिए जाने वाले आत्मिक वरदानों के बारे में है, तो उसके 10 पद से यह स्पष्ट हो जाएगा कि अन्य-भाषा में बोलना, अन्य आत्मिक वरदानों के समान ही पवित्र आत्मा द्वारा दिया गया एक आत्मिक वरदान है। साथ ही इसी खंड में पद 8 से 10 में हर आत्मिक वरदान के लिए, बारंबार “किसी को” भी लिखा गया है; जो यह दिखाता है कि हर किसी को एक ही समान आत्मिक वरदान नहीं दिए गए, किसी को एक, किसी अन्य को कोई और, और इसी प्रकार भिन्न लोगों को भिन्न आत्मिक वरदान, उनकी सेवकाई के अनुसार, पवित्र आत्मा की इच्छा के अनुसार (पद 11) दिए गए हैं। बाइबल का यह खंड स्पष्ट है कि हर किसी को अन्य-भाषा में बात करने का वरदान नहीं दिया गया है। साथ ही यहाँ पर अन्य भाषाओं के विषय ऐसी कोई बात या कोई संकेत तक भी नहीं है जिसके आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जाए कि अन्य-भाषा में बोलना पवित्र आत्मा प्राप्त करने का प्रमाण है। व्यक्ति में पवित्र आत्मा की उपस्थिति का प्रमाण तो उसका बदला हुआ जीवन, उसका पवित्र आत्मा के चलाए चलना और शारीरिक लालसाओं और अभिलाषाओं से दूर हो जाना, उसके जीवन में दिखने वाले आत्मा के फल हैं (गलातियों 5:22-26)।

 

 परमेश्वर पवित्र आत्मा के बारे में गलत शिक्षाएं फैलाने वाले ये लोग अपने इस दावे को “प्रमाणित” करने के लिए एक बहुत बड़ा झूठ बोलते हैं। वे दावे के साथ कहते हैं कि वचन में जब भी किसी ने पवित्र आत्मा प्राप्त किया है, उससे परिपूर्ण हुआ है, तो उसने अवश्य ही अन्य-भाषाएं भी बोली हैं। इसलिए यह मानने योग्य बात और प्रमाण है कि अन्य-भाषा बोलना ही पवित्र आत्मा प्राप्त करने का प्रमाण है। इस संदर्भ में शायद ही कभी किसी ने बेरिया के विश्वासियों के समान (प्रेरितों 17:11) इस बात की सच्चाई को जाँचने और उनके दावे की पुष्टि करने का प्रयास किया होगा - न तो उनके अपने साथियों और अनुयायियों ने, और न ही उन्होंने जिन्हें ये बड़ी हिम्मत के साथ यह बात कहते हैं।


जब हम वचन से उनके इस दावे को परखते हैं तो पाते हैं कि उनका यह तर्क भी कि वचन में जब भी पवित्र आत्मा प्राप्त करना आया है, साथ ही अन्य-भाषाएं बोलना भी आया है, इसी प्रकार से निराधार है। नए नियम में पवित्र आत्मा के किसी पर आने का सबसे पहला उल्लेख प्रभु यीशु की माता मरियम के लिए है (लूका 1:35), दूसरा उल्लेख यूहन्ना बपतिस्मा देने वाली की माता इलीशिबा का है (लूका 1:41), और तीसरा यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के पिता ज़कर्याह का है (लूका 1:67); किन्तु इन तीनों आरंभिक घटनाओं में कहीं कोई उल्लेख नहीं है कि इन में से किसी ने कभी कोई “अन्य भाषा” बोली - न तो उस समय जब वे पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हुए, और न ही उसके बाद किसी अन्य अवसर पर।

 

इसी प्रकार से बिना अन्य भाषा बोले पवित्र आत्मा से भरने के लिए प्रेरितों के कार्य में अन्य स्थानों पर भी आया है:

  • प्रेरितों 4:8 में पतरस के लिए

  • प्रेरितों 4:31 में शिष्यों के लिए 

  • प्रेरितों 6:5 में स्तिफनुस के लिए

  • प्रेरितों 8:17 में सामरियों के विश्वास में आने और पवित्र आत्मा पाने के लिए

  • प्रेरितों 9:17 में पौलुस के लिए


पुराने नियम में पवित्र आत्मा प्राप्त करने पर साथ ही अन्य भाषा में बोलने का भी कोई उदाहरण नहीं है:

  • बेजलील निर्गमन 31:3 

  • ओतनिएल न्यायियों 3:10 

  • गिदोन न्यायियों 6:34   

  • यिपताह न्यायियों 11:29 

  • शिमशोन न्यायियों 13:25, 14:6, 14:19, 15:14 

  • शाऊल 1 शमूएल 10:6; 10:10; 11:6; 19:23 

  • दाऊद 1 शमूएल 16:13 

  • शाऊल के दूत 1 शमूएल 19:20 

  • आमासाई 1 इतिहास 12:18  

  • अज़रियाह 2 इतिहास 15:1  

  • जहाज़ीएल  2 इतिहास 20:14 

  • ज़कर्याह 2 इतिहास 24:20

  • दानिय्येल; दानिय्येल 4:8, 9, 18; 5:11, 14 

  • मीका; मीका 3:8 


परमेश्वर के वचन के ये सभी हवाले उनके इस दावे के बिलकुल झूठ और वचन का दुरुपयोग होने, लोगों को बहकाने और भरमाने का कार्य होने को दिखा देते हैं। 


यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना और समझना अति-आवश्यक है कि आप परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित इन गलत शिक्षाओं में न पड़ जाएं; न खुद भरमाए जाएं, और न ही आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए। लोगों द्वारा कही जाने वाले ही नहीं, वरन वचन में लिखी हुई बातों पर भी ध्यान दें, और लोगों की बातों को वचन की बातों से मिला कर जाँचें और परखें। यदि आप इन गलत शिक्षाओं में पड़ चुके हैं, तो अभी वचन के अध्ययन और बात को जाँच-परख कर, सही शिक्षा को, उसी के पालन को अपना लें।


यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।


एक साल में बाइबल पढ़ें: 

  • विलापगीत 1-2 

  • इब्रानियों 10:1-18


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English Translation

Speaking in ‘Tongues’ is NOT Proof of Receiving the Holy Spirit


We have been seeing from the previous articles that one of the characteristics of child-like immature Christians is that they are very easily misled into deceptive and false teachings. Satan and his followers disguise themselves as false apostles, ministers of righteousness, and angels of light to present these deceptive, false teachings. These deceivers and their teachings are attractive, appealing, seemingly knowledgeable, and even have an appearance of being reverential and righteous; but there will always be some extra-Biblical teachings cleverly mixed up in them. About these deceptive, false teachings, God the Holy Spirit had it written through the Apostle Paul in 2 Corinthians 11:4 “For if he who comes preaches another Jesus whom we have not preached, or if you receive a different spirit which you have not received, or a different gospel which you have not accepted--you may well put up with it!” that they are mainly about three topics, the Lord Jesus, the Holy Spirit, and the Gospel. To recognize the truth and escape falling for Satan’s deception, along with these three topics, a very important point for proper discernment has also been stated in this verse: the facts and truth about these three have already been given in God’s Word. Therefore, anything that is not already in God’s Word is satanic, a corruption brought in by the false teachers, and is not to be accepted.


In the preceding articles we had first seen the various false teachings spread about the Lord Jesus, and had then started to look into the false teachings about the Holy Spirit. We have seen that the Holy Spirit is given to every truly Born-Again Christian Believer at the moment of his being saved; God the Holy Spirit comes to reside in him forever in all His fullness, and never leaves him. We have also seen that the Word of God is very clear that being “filled with the Holy Spirit” and “baptism with the Holy Spirit'' are not “second experiences” or something extra, but just the same as the Holy Spirit coming to reside in the Believer on being saved; and Biblically there is nothing like the very emphatically preached and taught “Baptism of the Holy Spirit.” This too is a false teaching that has no basis or affirmation from the Word of God. In the last article we have considered the facts and truth regarding another related wrong teaching, again insisted upon and very emphatically taught by these preachers and teachers of false doctrines - the “speaking in tongues” and seen from the Word of God that the claims of these preachers that these are super-natural languages, and Prayer languages” are unfounded and baseless. The languages spoken by the disciples in Acts 2, were known and recognized languages of earth.


There is another related wrong teaching, a false doctrine, also very emphatically preached and taught, that speaking in “tongues” is the proof of having received the Holy Spirit. We will examine this claim today from the Bible. If you look at 1 Corinthians 12:4-11, which is a passage about the different gifts the Holy Spirit gives to the Christian Believers, then it is very clear from verse 10 that speaking in “tongues” is one of the gifts of the Holy Spirit, like any of the other gifts mentioned here. Moreover, note that in this passage, from verse 8 to 10, with every gift, is also written “to some”, which is a clear indication that not everybody receives the same gift, different gifts are given to different people, as the Holy Spirit decides (verse 11). This passage from the Bible makes it quite clear that every Believer has not been given the gift of speaking in “tongues”. There is nothing stated or indicated in this passage that would suggest that speaking in “tongues” is the proof of having received the Holy Spirit. The proof of the presence of the Holy Spirit in the life of a person is his changed life, his living and walking under the guidance of the Holy Spirit, and moving away from the worldly desires and living; the presence of fruits of the Holy Spirit in a person’s life is the proof of the Holy Spirit being present (Galatians 5:22-26).


These people who spread false teachings and wrong doctrines about the Holy Spirit, to corroborate their false claim, speak a big lie, stating it as a fact of God’s Word. They say and claim that in the Bible, whenever anyone has received the Holy Spirit, they have also spoken in “tongues”; therefore, this association is proof of what they say and claim. But as the Believers in Berea had done, has anyone ever made an effort to cross-check and verify their claim, and confirm it’s being true or false? Even those who so emphatically and courageously make this claim, and their followers would never have tried to actually check it out from the Word of God!


When we cross-check their claim from the Word of God, the Bible, that everyone who received the Holy Spirit also spoke in “tongues”, it becomes evident that like their other claims about receiving the Holy Spirit, this one too is unfounded and baseless. In the New Testament, the first occurrence of the Holy Spirit coming upon or filling a person is about Mary, the mother of Lord Jesus (Luke 1:35), the second is of Elizabeth, the mother of John the Baptist (Luke 1:41), and the third is of Zechariah, the father of John the Baptist (Luke 1:67); but in none of these instances did anyone ever speak in “tongues” - neither at the time when they received the Holy Spirit, nor at any other occasion subsequently.

    Similarly, in the Book of Acts too, there are instances when a person was “filled” with the Holy Spirit, but did not speak in “tongues”:

  • Acts 4:8 - Peter

  • Acts 4:31 - the disciples

  • Acts 6:5 - Stephen

  • Acts 8:17 - the Samaritans coming to faith in the Lord and receiving the Holy Spirit

  • Acts 9:17 - Paul

    In the Old Testament, there is no occurrence of anyone speaking in tongues on receiving the Holy Spirit:

  • Exodus 31:3 - Bezalel

  • Judges 3:10 - Othniel

  • Judges 6:34 - Gideon

  • Judges 11:29 - Jephthah

  • Judges 13:25; 14:6, 19; 15:14 - Samson

  • 1 Samuel 10:6, 10; 11:6; 19:23 - King Saul

  • 1 Samuel 16:13 - David

  • 1 Samuel 19:20 - the messengers of King Saul

  • 1 Chronicles 12:18 - Amasai

  • 2 Chronicles 15:1 - Azariah

  • 2 Chronicles 20:14 - Jahaziel

  • 2 Chronicles 24:20 - Zechariah

  • Daniel 4:8, 9, 18; 5:11, 14 - Daniel

  • Micah 3:8 - Micah


These references from the bible expose the hollowness of their claim, and how it is only a lie spread to deceive and mislead people into unBiblical teachings and doctrines.


If you are a Christian Believer, then it is very essential for you to know and learn that you do not get beguiled and misled into wrong teachings and doctrines about the Holy Spirit; neither should you get deceived, nor should anyone else be deceived through you. Take note of the things written in God’s Word, not on things spoken by the people; always cross-check and verify all messages and teachings from the Word of God. If you have already been entangled in wrong teachings, then by cross-checking and verifying them from the Word of God, hold to only that which is the truth, follow it, and reject the rest.


If you have not yet accepted the discipleship of the Lord Jesus, then to ensure your eternal life and heavenly rewards, take a decision in favor of the Lord Jesus now. Wherever there is surrender and obedience towards the Lord Jesus, the Lord’s blessings and safety are also there. If you are still not Born Again, have not obtained salvation, or have not asked the Lord Jesus for forgiveness for your sins, then you have the opportunity to do so right now. A short prayer said voluntarily with a sincere heart, with heartfelt repentance for your sins, and a fully submissive attitude, “Lord Jesus, I confess that I have disobeyed You, and have knowingly or unknowingly, in mind, in thought, in attitude, and in deeds, committed sins. I believe that you have fully borne the punishment of my sins by your sacrifice on the cross, and have paid the full price of those sins for all eternity. Please forgive my sins, change my heart and mind towards you, and make me your disciple, take me with you." God longs for your company and wants to see you blessed, but to make this possible, is your personal decision. Will you not say this prayer now, while you have the time and opportunity to do so - the decision is yours.



Through the Bible in a Year: 

  • Lamentations 1-2 

  • Hebrews 10:1-18



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