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शनिवार, 24 दिसंबर 2022

प्रभु भोज – पुराने नियम का आधार (24) / The Holy Communion - The OT Foundation (24)

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फसह तथा प्रभु की मेज़ - पवित्र शास्त्र को प्रमाणित एवं पुष्टि करते हैं 

 

हम निर्गमन 12 अध्याय और उसमें दिए गए प्रभु भोज के प्ररूप, फसह, से संबंधित शिक्षाओं के अंत पर आ गए हैं। आज हम इस अध्याय से एक और पद को देखेंगे, जो एक बार फिर उन बातों की जो हम फसह तथा प्रभु भोज के बारे में सीखते आ रहे हैं, पुनः पुष्टि करता है। यह है पद 46, जो बलिदान के मेमने के साथ दो बातें करना वर्जित करता है - पहले तो उसके माँस को उस घर के बाहर ले जाना जहां पर उसे बलि किया गया था, और दूसरे यह कि मेमने की कोई भी हड्डी न तोड़ी जाए। जब हम इस पद को उसके संदर्भ में उससे पहले के पदों के साथ देखते हैं, तो हम पाते हैं कि घर के दासों, मजदूरों, और किसी परदेशी को फसह में भाग लेना मना था, जब तक कि वे पहले अब्राहम के साथ बाँधी गई परमेश्वर की वाचा के अधीन आकर खतना नहीं करवा लेते, जैसा कि हम पिछले लेख में देख चुके हैं। सामान्य रीति से, उस समय में, घर के दास अथवा मज़दूर “परिवार” के सदस्य समझे जाते थे, यद्यपि उनके वे अधिकार और विशेषाधिकार नहीं होते थे जो परिवार में जन्म लेने वाली संतान के होते थे। ऐसे “सदस्यों” को फसह में भाग लेने से मना करने का अभिप्राय यही है कि जो कोई ऊपरी तौर पर या परिस्थिति के अनुसार “परिवार” से जुड़ा है, किन्तु वास्तव में और घनिष्ठता से परिवार का अंग नहीं है, उन्हें परिवार के समान फसह खाने का अधिकार नहीं है। इससे, हम प्रभु भोज के बारे में एक बार फिर यह सीख सकते हैं, जिसे हम पहले भी देखते और कहते चले आ रहे हैं, कि प्रभु यीशु के साथ एक औपचारिक या ऊपरी रीति से संबंध रखने वालों को, अर्थात, उन्हें जो प्रभु यीशु मसीह के साथ एक प्रतिबद्धता, समर्पण के व्यक्तिगत संबंध में नहीं आए हैं, किन्तु उसके साथ केवल अपने डिनॉमिनेशन की कुछ रीतियों और प्रथाओं के द्वारा, धर्म संबंधी औपचारिकताओं और निर्देशों को निभाने के द्वारा जुड़े हैं, उन्हें परमेश्वर अपने वचन के द्वारा प्रभु की मेज़ में भाग लेने के लिए अनुमति नहीं देता है। फसह और प्रभु की मेज़ उन्हीं के लिए है जो वास्तव में प्रभु के लोग हैं, उनके लिए जिन्हें कोई मनुष्य नहीं, वरन स्वयं परमेश्वर अपने मानकों के आधार पर, अपने लोग स्वीकार करता है।

 

पद 46 पर आते हैं, पद का आरंभ इस निर्देश के साथ होता है कि जो मेमना जिस घर के लिए बलिदान किया गया, उसका खाना भी उसी घर ही में हो। इसके बाद निर्देश दिए गए हैं कि उसके माँस को बाहर न ले जाया जाए। इससे पहले, पद 21-24 में, परमेश्वर यहोवा ने इस्राएलियों को यह निर्देश दिया था कि मेमने को बलिदान करने और उसके लहू को दरवाजों के अलंगों और चौखटों पर लगाने के बाद, उस घर से कोई भी फिर प्रातः होने तक घर से बाहर न निकले (पद 22)। बाहर, अंधकार में मारने वाला अपना काम कर रहा होगा, जितने घरों पर बलि किए हुए मेमने का लहू नहीं लगा होगा उनके पहिलौठों को मार रहा होगा। पद 46 इसमें यह भी जोड़ देता है कि मेमने का माँस भी उस घर से बाहर नहीं जाना था। प्रतीक के रूप में, इस निर्देश का नए नियम में तात्पर्य है कि वह व्यक्ति जो एक बार परमेश्वर के घराने में आ गया है, उसे फिर अपने साथ प्रभु यीशु मसीह को लिए हुए, लौट कर संसार में, पाप के अंधकार में नहीं जाना है। प्रेरित पौलुस ने, परमेश्वर पवित्र आत्मा की अगुवाई में लिखते हुए  गलातिया के मसीही विश्वासियों को डाँट लगाते हुए लिखा (गलातियों 4:7-11), कि अब ‘दास’ से उठाकर ‘पुत्र’ का दर्जा दिए जाने के बाद, अर्थात, अब परमेश्वर के परिवार के पूर्ण सदस्य बन जाने के बाद “उन निर्बल और निकम्मी आदि-शिक्षा की बातों की ओर क्यों फिरते हो, जिन के तुम दोबारा दास होना चाहते हो?” (पद 4:9), क्योंकि इस प्रकार से वे लोग प्रभु यीशु के कार्य और पौलुस के परिश्रम को व्यर्थ करते हैं। इसी प्रकार से कुलुस्सियों को लिखी पत्री के 2 अध्याय में पौलुस उन से कहता है कि वे मसीह में परिपूर्ण कर दिए गए हैं, क्रूस पर उसके बलिदान के द्वारा, और अब किसी भी व्यवस्था या मनुष्यों के बनाए हुए किसी भी विधि-विधान की अधीनता में नहीं हैं। अब उन्हें केवल मसीह में बने रहना और उसी में बढ़ते जाना है, बजाए वापस मुड़कर संसार की बातों में जाने के, जिनमें “गढ़ी हुई भक्ति की रीति, और दीनता, और शारीरिक योगाभ्यास के भाव से ज्ञान का नाम तो है, परन्तु शारीरिक लालसाओं को रोकने में इन से कुछ भी लाभ नहीं होता” (पद 2:23)। फसह के निर्देश, नया जन्म पाए हुए मसीही विश्वासियों से की गई आशा और उनके लिए दिए जाने वाले निर्देशों का पूर्वाभास हैं।

 

निर्गमन 12:46 में जो दूसरी बात वर्जित की गई थी, वह थी बलि के मेमने की हड्डी को तोड़ना। अधिकांश व्याख्याकर्ता इसे यह कहकर समझाते हैं कि क्योंकि बलि के मेमने को फुर्ती से खाने का निर्देश था (12:11), इसलिए उसे खाने वालों के पास उसकी हड्डियों को तोड़कर हड्डियों के अन्दर के गूदे तक पहुँचने का समय नहीं था। उन्हें हड्डियों और न खाए हुए भागों को जला देना था और जैसे ही आवाज आए, तुरंत ही निकल जाने के लिए तैयार रहना था। कारण चाहे जो भी रहा हो, यह परमेश्वर के बलि के मेमने, प्रभु यीशु के लिए एक भविष्यवाणी थी। क्योंकि उस समय की सामान्य रीति के अनुसार, क्रूस पर चढ़ाए गए लोगों की टांगें कुछ समय के बाद तोड़ दी जाती थीं, किन्तु प्रभु यीशु की कोई भी हड्डी नहीं तोड़ी गई। यूहन्ना ने इस बात को मसीहा संबंधी भविष्यवाणी (निर्गमन 12:46, गिनती 9:12; भजन 34:20) की पूर्ति के लिए विशेष रीति से लिखा है (यूहन्ना 19:33, 36)। एक बार फिर हम पवित्र शास्त्र की अद्भुत सच्चाई और खराई को देखते हैं, सदियों के अंतर से कही गई बातें, उनका समय आने पर बिल्कुल सटीक पूरी हुई हैं।


हम इन बातों से प्रभु भोज के बारे में जो सीखते हैं वह है कि जो भी फसह अथवा प्रभु भोज में भाग लेते हैं, उन्हें परमेश्वर के प्रतिबद्ध, समर्पित जन होना अनिवार्य है, वे लोग जिन्हें परमेश्वर ने अपने मानकों के आधार पर अपने लोग स्वीकार किया है; न कि वे जो यह समझ लेते हैं कि वे परमेश्वर के घराने के हैं, किन्तु वास्तव में हैं नहीं। जो भी परमेश्वर के घराने का जन बन जाता है, उसे फिर अपने आप को संसार और सांसारिकता की बातों से अलग रखना है, और फिर से संसार के साथ समझौते का जीवन जीने के लिए संसार में नहीं लौटना है। क्योंकि पवित्र शास्त्र कभी गलत नहीं होता है, बिल्कुल खरा और सही है, इसलिए एक मसीही विश्वासी के जीवन में उसका प्राथमिक स्थान होना चाहिए (यूहन्ना 14:21, 23; 2 तिमुथियुस 3:16-17)।


अब हम नए नियम की ओर चलेंगे, और देखेंगे कि अब तक जो हमने पुराने नियम से, निर्गमन 12 से देखा और सीखा है वह नए नियम की बातों पर कैसे लागू होता है, कैसे उनके साथ जाता है।  हम देखेंगे कि अभी तक जो निर्गमन 12 से हमने देखा और सीखा है वह केवल मन-गढ़ंत बातें या अटकलें लगाना नहीं है, परंतु परमेश्वर के वचन के ठोस, अपरिवर्तनीय तथ्य हैं; उस वचन के जो कभी नहीं बदलता है, न जिसमें कभी विरोधाभास आता है, यद्यपि उसकी बातें भिन्न सदियों में लिखी गई हों।


यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, और प्रभु की मेज़ में भाग लेते रहे हैं, तो कृपया अपने जीवन को जाँच कर देख लें कि आप वास्तव में पापों से छुड़ाए गए हैं तथा आप ने अपना जीवन प्रभु की आज्ञाकारिता में जीने के लिए उस को समर्पित किया है। आपके लिए यह अनिवार्य है कि आप परमेश्वर के वचन की सही शिक्षाओं को जानने के द्वारा एक परिपक्व विश्वासी बनें, तथा सभी शिक्षाओं को वचन की कसौटी पर परखने, और बेरिया के विश्वासियों के समान, लोगों की बातों को पहले वचन से जाँचने और उनकी सत्यता को निश्चित करने के बाद ही उनको स्वीकार करने और मानने वाले बनें (प्रेरितों 17:11; 1 थिस्सलुनीकियों 5:21)। अन्यथा शैतान द्वारा छोड़े हुए झूठे प्रेरित और भविष्यद्वक्ता मसीह के सेवक बन कर (2 कुरिन्थियों 11:13-15) अपनी ठग विद्या और चतुराई से आपको प्रभु के लिए अप्रभावी कर देंगे और आप के मसीही जीवन एवं आशीषों का नाश कर देंगे।

  

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी। 

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • हबक्कूक 1-3          

  • प्रकाशितवाक्य 15     


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English Translation



The Passover & The Lord’s Table - Prove & Affirm the Scriptures 

  

  As we draw to the end of Exodus 12 and its teachings related to the Passover, the antecedent of the Holy Communion, we will look at one more verse from this chapter, that again reaffirms what we have been seeing and learning about the Passover and through it about the Holy Communion. This is verse 46, that forbids doing two things to the sacrificial lamb - one is carrying its flesh outside the house where it had been sacrificed, and the second being breaking any of the bones of that lamb. When we see this verse in its context of the preceding verses, we see that servants of the house, whether bought or hired, and any sojourner, i.e., a person passing through the area, and not a member of the family, were forbidden from partaking the Passover, unless and until they came under God’s covenant with Abraham, and were circumcised, as we have seen in the last article. Generally speaking, at that time, the servants of the household were considered as part of the family, although not with the same rights and privileges as one born into the family. The forbidding of these “members” of the family indicates that those who were casually or circumstantially part of the household, but were actually not an intimate part of the family, they too had no right to partake of the Passover. From this, for the Holy Communion, we can once again infer, what we have been seeing and saying all along, that no one casually associated with the Lord Jesus, i.e., one who has not come into a committed and a personal relationship with the Lord Jesus, but is associated with Him only because of having gone through some denominational rites and rituals, through some religious formalities and procedures, is not permitted by the Lord God through His Word to participate in the Lord’s Table. The Passover, and the Lord’s Table are only for the actual people of God, those whom not any man, but God accepts as His own, based on His criteria.


Coming to verse 46, the verse starts with the instruction that the lamb, sacrificed for one household (12:3-4), has to be eaten within that household. It is followed up with the instruction of not carrying its flesh outside. Earlier, in verses 21-24, the Lord God had instructed the Israelites that after sacrificing the lamb and applying its blood to the door-posts and lintels of the house, no one from the household was to go out till the morning (v. 22); outside, in the darkness the “destroyer” would be at work, bringing death to the firstborns in the houses not covered with the blood of the sacrificial lamb. Verse 46 adds to this that the flesh of the lamb was not to be taken out of the house. Symbolically, the New Testament application of this instruction indicates that the person who has come into the household of God, is not to go out back into the world, into the darkness of sin, carrying the Lord Jesus there with Him. The Apostle Paul, writing through the holy Spirit of God admonishes the Galatian Believers, in Galatians 4:7-11, that having been elevated from being a ‘slave’ to being a ‘son, i.e., having become a full-fledged member of God’s household, why were they turning back to the “weak and beggarly elements, to which you desire again to be in bondage?” (4:9),  thereby rendering vain the work of the Lord Jesus and the labor of Paul amongst them. Similarly, writing to the Colossian Believers, Paul says to them in Colossians chapter 2 that they have been made complete in Christ, through His sacrifice on the Cross, and are no longer under any law or man-made ordinance. Now, all they have to do is remain in Christ and grow in Him, instead of turning back again to the ways of the world, which “have an appearance of wisdom in self-imposed religion, false humility, and neglect of the body, but are of no value against the indulgence of the flesh” (2:23). The instructions of the Passover foreshadow the expectations and instructions for the Born-Again Christian Believers.


In Exodus 12:46, the second thing that was forbidden was the breaking of the bones of the sacrificial lamb. Most of the Commentators have explained this on the grounds that since the sacrificial lamb was to be eaten in haste (12:11), therefore, there was no time for those eating it to break the bones to get to the marrow in the bones. They had to burn the bones along with the other un-eaten parts, and be ready to depart as soon as the call to do so came. Whatever be the reason, it was a prophetic statement for the Lord Jesus, the sacrificial Lamb of God, for unlike the common practice of breaking the legs of those crucified, none of the bones of the Lord were broken. John has specifically recorded this (John 19:33, 36) as the fulfillment of the prophesy about the Messiah, stated in the Scriptures (Exodus 12:46, Numbers 9:12; Psalm 34:20). Once again, we see the amazing accuracy of the Scriptures, things stated centuries apart, but accurately fulfilled when their time came.


What we learn related to the Holy Communion from these is that participating in the Passover and the Holy Communion is only for God’s actual, committed people, whom God has accepted on the basis of His own criteria; and not those who assume themselves to be of the household of God, but actually are not. The person who becomes a part of God’s household, has to remain separate from the world, and not go back to living in a state of compromise with the world and its ways. Since the Scriptures are infallible and accurate; they should have a primary place in the life of a Christian Believer (John 14:21, 23; 2 Timothy 3:16-17).

 

We will now move to the New Testament, and see how what we have studied and learnt from the Old Testament, from Exodus 12, applies to and is reiterated in the New Testament. We will see that what we have studied so far from Exodus 12, is not mere conjecture and surmising, but incontrovertible, hard facts of God’s Word; The Word that neither changes, nor contradicts itself, though written centuries apart.


If you are a Christian Believer, and have been participating in the Lord’s Table, then please examine your life and make sure that you are actually a disciple of the Lord, i.e., are redeemed from your sins, have submitted and surrendered your life to the Lord Jesus to live in obedience to Him and His Word. You should also always, like the Berean Believers, first check and test all teachings that you receive from the Word of God, and only after ascertaining the truth and veracity of the teachings brought to you by men, should you accept and obey them (Acts 17:11; 1 Thessalonians 5:21). If you do not do this, the false apostles and prophets sent by Satan as ministers of Christ (2 Corinthians 11:13-15), will by their trickery, cunningness, and craftiness render you ineffective for the Lord and cause severe damage to your Christian life and your rewards.


If you have not yet accepted the discipleship of the Lord Jesus, then to ensure your eternal life and heavenly rewards, take a decision in favor of the Lord Jesus now. Wherever there is surrender and obedience towards the Lord Jesus, the Lord’s blessings and safety are also there. If you are still not Born Again, have not obtained salvation, or have not asked the Lord Jesus for forgiveness for your sins, then you have the opportunity to do so right now. A short prayer said voluntarily with a sincere heart, with heartfelt repentance for your sins, and a fully submissive attitude, “Lord Jesus, I confess that I have disobeyed You, and have knowingly or unknowingly, in mind, in thought, in attitude, and in deeds, committed sins. I believe that you have fully borne the punishment of my sins by your sacrifice on the cross, and have paid the full price of those sins for all eternity. Please forgive my sins, change my heart and mind towards you, and make me your disciple, take me with you." God longs for your company and wants to see you blessed, but to make this possible, is your personal decision. Will you not say this prayer now, while you have the time and opportunity to do so - the decision is yours. 


Through the Bible in a Year: 

  • Habakkuk 1-3

  • Revelation 15


 

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