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बुधवार, 6 सितंबर 2023

Blessed and Successful Life / आशीषित एवं सफल जीवन – 10 – Be a Steward / भण्डारी बनो – 4

गैर-जिम्मेदार भण्डारी होना – 1

 

    पिछले लेख में हमने देखा था कि प्रत्येक मसीही विश्वासी, जो परमेश्वर ने उसे दिया है स्वतः ही उसका भण्डारी भी है। और उसे परमेश्वर द्वारा दिए गए उन वरदानों को कलीसिया के लाभ तथा परमेश्वर की महिमा के लिए उपयोग करना है। यद्यपि परमेश्वर का भण्डारी होना मसीही विश्वासी होने के साथ अभिन्न रीति से जुड़ा हुआ है, फिर भी अधिकांश मसीही विश्वासी उनके मसीही विश्वास में आते ही, उन्हें परमेश्वर द्वारा दी गई इस जिम्मेदारी को न तो पहचानते हैं, और न ही उसका एहसास रखते हैं। आज हम देखेंगे कि मसीही विश्वासी किस प्रकार से परमेश्वर का गैर-ज़िम्मेदार भण्डारी हो सकता है, और फिर अन्ततः उसे इसके लिए बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी।


    मूलतः दो तरीके हैं जिनके कारण व्यक्ति गैर-ज़िम्मेदार भण्डारी बन सकता है, और फिर अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए दोषी हो जाता है। ये दो तरीके, भण्डारी होने की ज़िम्मेदारी निभाने के विपरीत छोर पर देखे जाते हैं। हम परमेश्वर के लिए अयोग्य भण्डारी इन दो तरीकों से हो सकते हैं:

  •  लापरवाह और उदासीन होने के द्वारा: जैसे कि वह दास था जिसे प्रभु द्वारा मत्ती 25:14-30 में दिए गए तोड़ों के दृष्टांत में एक तोड़ा दिया गया था। किन्तु उस दास ने उसे दिए गए आदर और ज़िम्मेदारी की कोई कदर नहीं की, और न ही वह अपने स्वामी द्वारा उस से रखी गई अपेक्षा के विषय चिंतित था। उसने उस तोड़े का कोई उपयोग नहीं किया, और उसे दण्ड भोगना पड़ा (मत्ती 25:24-30)।

  • आवश्यकता से अधिक अधिकार जताने और हथियाने वाला होने के द्वारा: जैसे कि वह दास था जिसने अपने भण्डारी होने को स्वामी होने के समान समझ लिया (लूका 12:45-46); जबकि उससे अपेक्षा थी कि वह अपनी ज़िम्मेदारी के निर्वाह में नम्र और कोमल होगा (1 पतरस 5:1-4)।


    पहले उदाहरण, प्रभु द्वारा दिए गए तोड़ों के दृष्टांत में हम देखते हैं कि स्वामी ने अपने दासों को बुलाया और अपनी संपत्ति उनको सौंप दी (पद 14); और प्रत्येक को तोड़े दिए, प्रत्येक को उसकी योग्यता के अनुसार (पद 15)। जिन्हें पाँच तथा दो तोड़े मिले थे उन्होंने उनका सदुपयोग किया, और अपने स्वामी के लिए उतने ही और कमा लिए। लेकिन जिसे एक मिला था उसने मिट्टी खोदी और अपने स्वामी के पैसे छुपा दिए (पद 18)। स्वामी ने जो उसे सौंपा था, उसके प्रति वह लापरवाह और उदासीन था; और न ही उसने अन्य दोनों दासों द्वारा किए जा रहे काम से कोई संकेत लिया। इस दास ने केवल अपने समय की बरबादी ही की, प्रभु के लिए उपयुक्त कुछ भी नहीं किया। क्योंकि स्वामी बहुत दिनों के बाद वापस आया, इसलिए उसके पास स्वामी के लिए कुछ करने को बहुत समय था, किन्तु उसने कुछ नहीं किया; और स्वामी ने लौट कर आने पर अपने दासों से हिसाब लिया (पद 19)।


    यह एक बहुत महत्वपूर्ण बात है, ऐसी जिसके बारे में प्रत्येक मसीही विश्वासी को ध्यान देना चाहिए, उसका एहसास रखना चाहिए – इससे बचने का कोई तरीका नहीं है, किसी भी रीति से नहीं – परमेश्वर ने हमें भण्डारी बनाया है, और वह हम सभी से हिसाब लेगा (2 कुरिन्थियों 5:10; 1 पतरस 4:17-18)। मसीही विश्वासियों के लिए यह हिसाब लेना, उन्हें उनके अनन्त कालीन प्रतिफलों के दिए जाने के लिए होगा। उनके लिए यह न्याय किया जाना उद्धार पाने या न पाने के लिए नहीं होगा – इस प्रश्न का समाधान तो एक ही बार और हमेशा के लिए उसी पल हो गया था जब हमने प्रभु यीशु को अपना निज उद्धारकर्ता स्वीकार किया था और उसमें विश्वास करना आरंभ किया था, उसके जन बन गए थे।


    जिन्होंने स्वामी की अपेक्षा के अनुसार जीवन व्यतीत किया, और उसके लिए निवेश किया, उन्हें स्वामी ने बहुत प्रतिफल दिए। लेकिन जिस ने स्वामी की अपेक्षा के अनुसार जीवन नहीं जिया, और जो इस बात के लिए क्षमा-प्रार्थी एवं लज्जित होने के स्थान पर, अपने आप को सही ठहराने के प्रयास करने लगा (पद 24-25), स्वामी ने उसी के मुँह के शब्दों के द्वारा उसे दोषी ठहराया, उसके तोड़े को उस से ले लिया, और उसे बाहर दण्ड के स्थान में भेज दिया, उसे दुष्ट, आलसी, निकम्मा कहा (पद 26-30)।


    तो एक प्रकार के गैर-ज़िम्मेदार भण्डारी वे हैं जो परमेश्वर द्वारा उन्हें दिए गए वरदानों और योग्यताओं का उपयोग परमेश्वर के लाभ तथा परमेश्वर के राज्य की बढ़ोतरी के लिए नहीं करते हैं, परमेश्वर के लिए कार्य करने के प्रति उदासीन रहते हैं। ऐसे सेवकों को दुष्ट, आलसी, और निकम्मा कहा गया है, और उनके निष्क्रिय रहने के लिए उन्हें दण्ड दिया गया है। अन्त के समय ऐसे बहुत से होंगे जिन्होंने उद्धार तो पाया है, किन्तु परमेश्वर के राज्य में खाली हाथ प्रवेश करेंगे, और फिर उनके पास अनन्त काल का समय होगा अपनी ज़िम्मेदारियों के प्रति लापरवाह रहने और प्रभु के लिए उपयोगी होने के अवसरों को गँवाते रहने के लिए शोकित होने और हाथ मलते रहने के लिए (1 कुरिन्थियों 3:13-15)।


    अगले लेख में हम दूसरे प्रकार के गैर-ज़िम्मेदार आस के बारे में देखेंगे। यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।


 

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Being an Irresponsible Steward - 1

 

    In the previous article we have seen that every Christian Believer is automatically also God’s steward for whatever God has given him. And he has to use the God given gifts for the benefit of the Church, for the glory of God. Although being a steward for God is an inseparably linked with becoming a Christian Believer; yet, most Christian Believers do not realize and recognize this God given responsibility placed upon them along with their coming to faith. Today we will see how a Christian Believer can be an irresponsible steward of God, and eventually pay heavily for it.

    There are basically two ways through which a person can be an irresponsible steward, and be liable for disciplinary action. These two ways are at the opposite extremes of the responsibility of stewardship given by God. We can be poor stewards of God by either:

  • Being careless and unconcerned: by being like the servant who was given one talent in the Lord’s parable of talents (Matthew 25:14-30). But he did not take into consideration the honor and responsibility given to him, nor was he concerned of the expectations of the one who had given it to him; he did not put the talent given to him to any use, and was punished (Matthew 25:24-30).

  • Being overly possessive and usurping: by being like the one who misused his stewardship as a position of authority (Luke 12:45-46); whereas he had to be gentle and caring in his responsibility (1 Peter 5:1-4).

    In the first instance, we see in the Lord’s parable of the talents that the master called his servants and delivered his goods to them (vs. 14); and gave talents to them, to each one according to their individual ability (vs. 15). Those who had received five and two talents, utilized them, and gained as many more for their master; but the one who had received the one talent dug in the ground and hid his master’s money (vs. 18). He was uncaring, unconcerned about what his master had given him; and neither did he take cue from what the other two servants were doing. This servant only wasted his time, doing nothing worthwhile for the Lord. Since the master came after a long time, he had plenty of time and opportunity to do something for the master, but did nothing; and on coming back took an account from his servants (vs. 19).


    This is something of great importance, something that we Christian Believers should realize and note – there is no escaping, not in any way – God has made us stewards, and God will also take an account from each and every one of us (2 Corinthians 5:10; 1 Peter 4:17-18). For the Christian Believers this accounting, this judgment will be for their eternal rewards. It is not a judgment to determine being saved or not – this question was settled once and for all when we accepted the Lord Jesus as our personal savior and came to faith in Him, and became the people of God.


    Those who had lived up to the master’s expectations and had invested for the master, earned for him, they were handsomely rewarded by the master. But the one who did not live up to the master’ expectation, he, instead of being sorry for it and asking forgiveness, tried to justify himself (vs.24-25). The master took the words of his own mouth and held him guilty; took away his talent and sent him out to be punished, calling him wicked, lazy, and unprofitable (vs. 26-30).


    So, one kind of an irresponsible steward is the one who does not utilize his God given ability and gifts, for the profit of God, for the growth of God’s kingdom, remains unconcerned about working for God. Such a steward has been called wicked, lazy, and unprofitable, and has been punished for his inaction. At the end, there will be many who were saved, but will enter God’s Kingdom empty handed, and will have an eternity to regret their neglect of responsibilities and missed opportunities to be useful for the Lord (1 Corinthians 3:13-15).


    In the next article we will consider being the other kind of irresponsible steward. If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life.  Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.

 

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