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शुक्रवार, 9 दिसंबर 2022

प्रभु भोज – पुराने नियम का आधार (9) / The Holy Communion - The OT Foundation (9)

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निर्गमन 12:8-10 (3) - प्रभु की मेज़ और व्यक्तिगत बाइबल अध्ययन 


क्योंकि परमेश्वर के लोगों में परमेश्वर के वचन को पढ़ने और उसका पालन करने का चाव नहीं रहा है, बल्कि वे मनुष्यों द्वारा दी जा रही शिक्षाओं को सुनने और बिना उन्हें जाँचे तथा वचन से उनकी पुष्टि करे ही मानने से ही संतुष्ट रहते हैं, इसीलिए शैतान परमेश्वर के वचन और निर्देशों के बारे में बहुत सी गलत व्याख्याएँ एवं अर्थ, गलत शिक्षाएं और मिथ्या सिद्धांतों को परमेश्वर के लोगों तथा कलीसिया में ले आने पाया है। शैतान की इन बाइबल के विपरीत, झूठी, त्रुटिपूर्ण, दुष्ट शिक्षाओं ने ईसाई समाज या मसीहियत में बहुत गहरी जड़ पकड़ ली है, और सामान्यतः लोग उन्हीं में बने रहना भी चाहते हैं, न कि यह कि परमेश्वर के वचन से उन्हें जाँचे और उनकी पुष्टि करें, तथा अपने आप को सुधारें। हमारे इस अध्ययन, प्रभु भोज में भाग लेने, से संबंधित इन गलत शिक्षाओं में से एक है कि हम किसी भी प्रकार से, अपने समुदाय या डिनॉमिनेशन की रीति के अनुसार, इसमें भाग ले सकते हैं, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है और सभी परमेश्वर को मान्य है। दूसरी गलत शिक्षा है कि प्रभु की मेज़ में भाग लेने से लोग धर्मी, परमेश्वर को स्वीकार्य, और स्वर्ग में प्रवेश के लिये योग्य हो जाते हैं। किन्तु, जैसा कि हम पहले के लेखों में देख चुके हैं, परमेश्वर के वचन बाइबल में इन धारणाओं का कोई समर्थन, कोई पुष्टि नहीं है; ये सभी शैतान द्वारा परमेश्वर के वचन में मिलावट करने के द्वारा लाई तथा परोसी गई बातें हैं।


हम इस विषय, प्रभु भोज, या, प्रभु की मेज़ के बारे में पुराने नियम के इसके प्ररूप, फसह से सीखते आ रहे हैं। फसह के बारे में परमेश्वर के निर्देश और नियम निर्गमन 12 में तथा मूसा में होकर परमेश्वर के द्वारा दी गई व्यवस्था में दिए गए हैं। वर्तमान में हम निर्गमन 12 से अध्ययन कर रहे हैं, और अभी पद 8-10 पर अध्ययन कर रहे हैं। इन पदों में बहुत से प्रतीक और चिह्न हैं जो प्रभु यीशु मसीह, प्रभु की मेज़ में भाग लेने, और मसीही जीवन जीने से संबंधित हैं। पिछले लेख में हमने बलि किए हुए मेमने को “खाने” के बारे में विस्तार से देखा था, और इसका प्रभु यीशु द्वारा उसकी “देह और लहू” को खाने के निर्देश के साथ संबंध को देखा था। हमने देखा था कि प्रभु का यह निर्देश, सांकेतिक रीति से उसके वचन का प्रयास के साथ गंभीर अध्ययन करने तथा उसका पालन करने को दिखाता है। आज हम इन पदों में दिए गए प्रतीकों और चिह्नों पर और आगे देखेंगे, और उनसे प्रभु की मेज़ में भाग लेने के बारे में और आगे की बातों को सीखेंगे।


पद 8 कहता है कि इस्राएलियों को बलि किए हुए मेमने को उसी रात में खाना था। परमेश्वर के वचन में “रात” और “अंधकार” पाप के व्याप्त होने तथा शैतानी ताकतों के कार्यरत होने के प्रतीक हैं (रोमियों 13:12; 1 थिस्सलुनीकियों 5:5), स्वर्ग में कोई रात नहीं होगी (प्रकाशितवाक्य 21:25; 22:5); ये ऐसे समय के भी चिह्न हैं जब कोई भी प्रभु के लिए कार्य नहीं करने पाएगा (यूहन्ना 9:4)। प्रभु द्वारा दिए गए अंत के दिनों के चिह्नों में से एक है कि उसके लोग घोर सताव में से होकर निकलेंगे, झूठे शिक्षक और झूठी शिक्षाओं का बोल-बाला होगा, और बहुत से लोग ठोकर खाकर पीछे हट जाएंगे (मत्ती 24:9-12)। वर्तमान में संसार भर की परिस्थितियाँ एवं गतिविधियाँ, उनका निरंतर और भी बिगड़ते ही चले जाना, मसीही विश्वासियों को अधिकाधिक निशाना बनाया तथा प्रताड़ित किये जाना, सुसमाचार प्रचार तथा प्रभु को उद्धारकर्ता स्वीकार करने में बढ़ती हुए बाधाएँ, सभी इस बात को दिखाते हैं कि हम इस “रात” के समय में जी रहे हैं; जिसमें प्रभु के लिए कार्य करना और भी अधिक कठिन होता चला जा रहा है। इस्राएलियों को उस रात में, मिस्र से निकाल जाने की पुकार की प्रतीक्षा करते हुए, बलि किए हुए मेमने को खाना था। जैसा हमने पिछले लेख में देखा है, यह मसीही विश्वासियों के लिए इस बात का प्रतीक है कि उन्हें अपने आप को परमेश्वर के वचन के अध्ययन में लौलीन कर लेना है, बिना इस बात की परवाह किए कि बाहर संसार में क्या हो रहा है। हमारे लिए कुलुस्सियों 3:16 इस बात की पुष्टि करता है, “मसीह के वचन को अपने हृदय में अधिकाई से बसने दो; और सिद्ध ज्ञान सहित एक दूसरे को सिखाओ, और चिताओ, और अपने अपने मन में अनुग्रह के साथ परमेश्वर के लिये भजन और स्‍तुतिगान और आत्मिक गीत गाओ”; और याकूब 1:21 हमें बताता है कि ऐसा क्यों करना है, “इसलिये सारी मलिनता और बैर भाव की बढ़ती को दूर कर के, उस वचन को नम्रता से ग्रहण कर लो, जो हृदय में बोया गया और जो तुम्हारे प्राणों का उद्धार कर सकता है।” स्मरण कीजिए कि मत्ती 24:12 में प्रभु ने कहा है कि संसार के हालात, और बढ़ते हुए अधर्म के कारण बहुतेरों का प्रेम ठंडा पड़ जाएगा। किन्तु जो परमेश्वर के वचन में दृढ़ता से स्थापित होंगे, संसार चाहे जो भी दिखाता और सिखाता रहे, वे वचन में ही विश्वास रखेंगे और उसी का पालन करेंगे, ऐसे लोग ही अपने छुटकारे की प्रतीक्षा करते हुए अपने विश्वास में दृढ़ बने रहेंगे।

 

इन बातों से हम अपने अध्ययन, प्रभु की मेज़ में भाग लेने के बारे में क्या सीखते हैं? जैसा कि हम पिछले लेख में देख और विचार कर चुके हैं, प्रभु की मेज़ उनके लिए है जो परमेश्वर के वचन का आदर करते हैं, उसका अध्ययन और पालन करते हैं। पाप के बड़ी गहराई से हर ओर, हर बात में व्याप्त होने और शैतानी शक्तियों के अभिभूत कर देने वाले कार्यों के इस समय में, अपने विश्वास में दृढ़ बने रहने, तथा शैतान की युक्तियों द्वारा बहकाए जाने से बचे रहने के लिए हमें परमेश्वर के वचन में दृढ़ता से स्थापित रहना है। प्रभु यीशु ने अंत के दिनों के चिह्नों में कहा है “तब बहुतेरे ठोकर खाएंगे, और एक दूसरे से बैर रखेंगे” (मत्ती 24:10), तथा, “और अधर्म के बढ़ने से बहुतों का प्रेम ठण्‍डा हो जाएगा” (मत्ती 24:12)। ये लोग कौन होंगे? ये वे लोग होंगे जो अपने विश्वास में कमजोर हैं, इसलिए वे शैतान की उन दुष्ट योजनाओं के सामने खड़े नहीं रहने पाएंगे जो वह संसार और प्रभु के लोगों पर लाएगा। यह बात कोई अंदाज़ा, किसी मनुष्य का विचार नहीं है; वरन यह एक स्थापित, कड़वा किन्तु अटल तथ्य है - स्वयं प्रभु यीशु ने यह कहा है, और उसकी कही हुई कोई भी बात कभी भी टलती या बदलती नहीं है। वो लोग इतने कमज़ोर और धोखा खाने तथा देने वाले क्यों होंगे? इसका उत्तर हम अपनी उपरोक्त चर्चा के आधार पर समझ सकते हैं, क्योंकि उन्होंने कभी उनसे बारंबार किए गए आग्रह पर, कि उनके छुटकारे के लिए बलिदान हुए मेमने को “खा” लें, कोई ध्यान नहीं दिया; अर्थात, उन्होंने कभी परमेश्वर के वचन, बाइबल, को गंभीरता से पढ़ने और उसका पालन करने के महत्व पर ध्यान नहीं दिया। प्रभु भोज में अपने समुदाय या डिनॉमिनेशन की रीतियों के अनुसार पारंपरिक रीति से भाग ले लेने से व्यक्ति प्रभु में स्थापित तथा बढ़ता नहीं है; यह केवल मेमने को “खा लेने” के द्वारा, अर्थात परमेश्वर के वचन का प्रयास के साथ गंभीरता से अध्ययन करने और फिर हर कीमत पर उसका पालन करने के द्वारा ही होता है। जो ऐसा करते हैं वे “रात” में भी प्रभु में स्थापित और दृढ़ रहते हैं, और अन्ततः पीछे हटकर गिर जाने की बजाए छुटकारा भी पा लेते हैं।

  

ये सभी बातें स्पष्ट दिखाती हैं कि प्रभु भोज में भाग लेना उनके लिए नहीं है जो इसे एक धार्मिक रीति या औपचारिकता के समान लेते हैं, किन्तु उनके लिए है जिन्होंने स्वेच्छा से प्रभु के योग्य जीवन बिताने उसकी आज्ञाकारिता में चलने का निर्णय लिया है, और इसके लिए कीमत चुकाने के लिए भी तैयार है। अगले लेख में हम निर्गमन 12 में से यहीं से आगे देखेंगे। यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, और प्रभु की मेज़ में भाग लेते रहे हैं, तो कृपया अपने जीवन को जाँच कर देख लें कि आप वास्तव में पापों से छुड़ाए गए हैं कि नहीं? क्या आप ने अपना जीवन प्रभु की आज्ञाकारिता में जीने के लिए उस को समर्पित किया है कि नहीं? तथा क्या आप प्रभु में एक नई सृष्टि बन गए हैं कि नहीं? क्या आप कलीसिया में विभाजनों और गुटों में बांटने में नहीं किन्तु एकता के साथ रहने में प्रयासरत रहते हैं कि नहीं? तथा क्या आप प्रभु की मेज़ में उसी प्रकार से भाग ले रहे हैं जैसे परमेश्वर ने निर्देश दिये हैं, प्रभु के प्रति पूर्ण समर्पण और प्रतिबद्धता के साथ, बड़ी गंभीरता से मेज़ के महत्व पर मनन करते हुए; या फिर आप किसी डिनॉमिनेशन की परंपरा अथवा किसी के  मनमाने विचारों के अनुसार भाग ले रहे हैं? अपने आप को जांच कर देखें कि क्या आप प्रभु के सामने खड़े होकर अपने जीवन का हिसाब देने के लिए तैयार हैं कि नहीं? आपके लिए यह अनिवार्य है कि आप परमेश्वर के वचन की सही शिक्षाओं को जानने के द्वारा एक परिपक्व विश्वासी बनें, तथा निरंतर परिपक्वता में बढ़ते जाएं। साथ ही सभी शिक्षाओं को वचन की कसौटी पर परखने, और बेरिया के विश्वासियों के समान, लोगों की बातों को पहले वचन से जाँचने और उनकी सत्यता को निश्चित करने के बाद ही उनको स्वीकार करने और मानने वाले बनें (प्रेरितों 17:11; 1 थिस्सलुनीकियों 5:21)। अन्यथा शैतान द्वारा छोड़े हुए झूठे प्रेरित और भविष्यद्वक्ता मसीह के सेवक बन कर (2 कुरिन्थियों 11:13-15) अपनी ठग विद्या और चतुराई से आपको प्रभु के लिए अप्रभावी कर देंगे और आप के मसीही जीवन एवं आशीषों का नाश कर देंगे।

  

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी। 


 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • दानिय्येल 11-12         

  • यहूदा 1    

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English Translation


Exodus 12:8-10 (3) - The Lord’s Table & Personal Bible Study


Since people of God have lost interest in studying and obeying God’s Word, instead, have become content and satisfied with listening to and obeying man’s teachings, without evaluating and verifying them from God’s Word, therefore Satan has been able to bring in his misinterpretations, wrong teachings, and false doctrines about God’s instructions and His Word, amongst God’s people and the Church. These unBiblical, false, erroneous, devious, satanic teachings have become very firmly established in Christendom, and generally speaking, people like to persist in them, than verify them from God’s Word and correct themselves. One of these wrong teachings, related to the subject of our study - The Holy Communion, is that they can participate in it in any manner, as per the practices of their sect or denomination, and it will be acceptable to God. Another is that participating in the Hoy Communion, or the Lord’s Table makes them righteous, acceptable to God, worthy of gaining entrance into heaven. But God’s Word, the Bible has no support or affirmation for either of these notions, as we have seen in the earlier articles; all of these are satanic doctrines mixed into the teachings of God’s Word and served to the gullible people.


We have been studying this subject of the Holy Communion or the Lord’s Table through its antecedent in the Old Testament, the Passover. God’s instructions and regulations regarding the Passover are given in Exodus 12, and in His Law, which He gave through Moses. We are presently studying from Exodus 12, and have reached verse 8-10. These verses have a lot of symbolisms and meanings that apply to the Lord Jesus, participating in the Lord’s Table, and Christian Living, that we have seen and studied in the recent articles. In the previous article, we have dwelt at length on the “eating” of the sacrificed lamb, and corelated it with the Lord’s instructions to “eat and drink” his body and blood, and seen that it signifies studying the Lord’s Word diligently, seriously, and obeying it. Today we will continue to dwell further on the symbolisms in these verses and learn from them about participating in the Holy Communion.


Verse 8 says that the flesh of the sacrificed lamb had to be eaten on that night by the Israelites. In God’s Word, “night” or “darkness” are symbols of pervading sin and satanic forces at work (Romans 13:12; 1 Thessalonians 5:5), in heaven there will be no night (Revelation 21:25; 22:5); it is also a symbol of the time when no one will be able to work for the Lord (John 9:4). One of the signs of the end times, given by the Lord was that His people will be severely persecuted, false teachers and teachings will abound, and many will fall away (Matthew 24:9-12). The prevailing and continually worsening world conditions, the increasing targeting and persecution of Christians, the worsening obstacles to preaching the Gospel and accepting the Lord Jesus as Savior, are all indicative that we are living in this period of the night; the period in which working for the Lord is becoming increasingly difficult. The Israelites, waiting for their deliverance, on the Passover night were to eat the sacrificed lamb, as they waited for the call to leave Egypt. As we have seen in the previous article, for the Christian Believers, this is an indicator of immersing ourselves in the study of God’s Word, unperturbed by what is happening outside in the world. Colossians 3:16 affirms this for us, “Let the word of Christ dwell in you richly in all wisdom, teaching and admonishing one another in psalms and hymns and spiritual songs, singing with grace in your hearts to the Lord”; and James 1:21 tells us why, “Therefore lay aside all filthiness and overflow of wickedness, and receive with meekness the implanted word, which is able to save your souls.” Recall, in Matthew 24:12, the Lord has said that due to the prevailing world conditions, the abounding lawlessness, the love of many will grow cold. But those who are firmly established in God’s Word, believe in it irrespective of what the world says and shows, obey it, will remain firm in their faith, waiting for their deliverance.


What can we learn for our study on participating in the Holy Communion from this? As we have already seen and considered in the previous article, the Lord’s Table is for those who honor, study and obey God’s Word. In this time of prevailing sin and overwhelming activities of satanic forces, to remain firm in our faith and not succumb to the wiles of the devil, we need to be firmly established in God’s Word. The Lord Jesus has said about the signs of the end times that “And then many will be offended, will betray one another, and will hate one another” (Matthew 24:10), and “And because lawlessness will abound, the love of many will grow cold” (Matthew 24:12). Who will these people be? They will be the ones who will be weak in their faith, not firmly established in God’s Word, and therefore they will not be able to stand up to the devious devices the devil will unleash against the people of God. This is not speculation, not mere conjecture; it is an established, hard and bitter fact - the Lord Jesus Himself has said it, and what He has said will never fail. And, why will they be so weak and fallible? We can surmise the answer from our discussion above, because they never paid serious heed to the repeated pleas of “eating” the lamb sacrificed for their deliverance; they never bothered to seriously study and obey the Bible - the Word of God. It is not a ritualistic participation in the Holy Communion, as per the practices of one’s sect and denomination, that makes a person grow and be strongly rooted in the Lord; it is only by “eating” the lamb, i.e., by seriously and diligently studying the Word of God and then obeying it at all costs, that one can remain firm and established in the Lord, even in the “night”, and eventually be delivered, instead of falling away.


All these things show that participating in the Holy Communion is not for those who take it as a religious ritual or formality to be carried out perfunctorily, but is for those who willingly have chosen to live worthy of the Lord, in obedience to His Word, and are willing to pay the price for doing so. In the next article we will carry on from here and see more from these verse, Exodus 12:8-10. If you are a Christian Believer, and have been participating in the Lord’s Table, then please examine your life and make sure that you are actually redeemed from your sins, have submitted and surrendered your life to the Lord Jesus to live in obedience to Him and His Word, are a new creation for the Lord. That you strive for unity, not divisions and factionalism in the Church, and have been participating as the Lord has instructed to be done, participating with full allegiance to the Lord, in all seriousness, and pondering over its significance; instead of doing it in any presumptive manner, or simply as a denominational ritual; and are ready and prepared to stand before the Lord and answer for your life. It is also necessary for you to be spiritually mature, learn the right teachings of God’s Word. You should also always, like the Berean Believers first check and test all teachings you receive from the Word of God, and only after ascertaining the truth and veracity of the teachings brought to you by men, should you accept and obey them (Acts 17:11; 1 Thessalonians 5:21). If you do not do this, the false apostles and prophets sent by Satan as ministers of Christ (2 Corinthians 11:13-15), will by their trickery, cunningness, and craftiness render you ineffective for the Lord and cause severe damage to your Christian life and your rewards.


If you have not yet accepted the discipleship of the Lord Jesus, then to ensure your eternal life and heavenly rewards, take a decision in favor of the Lord Jesus now. Wherever there is surrender and obedience towards the Lord Jesus, the Lord’s blessings and safety are also there. If you are still not Born Again, have not obtained salvation, or have not asked the Lord Jesus for forgiveness for your sins, then you have the opportunity to do so right now. A short prayer said voluntarily with a sincere heart, with heartfelt repentance for your sins, and a fully submissive attitude, “Lord Jesus, I confess that I have disobeyed You, and have knowingly or unknowingly, in mind, in thought, in attitude, and in deeds, committed sins. I believe that you have fully borne the punishment of my sins by your sacrifice on the cross, and have paid the full price of those sins for all eternity. Please forgive my sins, change my heart and mind towards you, and make me your disciple, take me with you." God longs for your company and wants to see you blessed, but to make this possible, is your personal decision. Will you not say this prayer now, while you have the time and opportunity to do so - the decision is yours.

Through the Bible in a Year: 

  • Daniel 11-12 

  • Jude 1



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