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गुरुवार, 11 मई 2023

Miscellaneous Questions / कुछ प्रश्न - 9b - Physical Healing by Stripes (2) / कोड़े खाने द्वारा शारीरिक चंगाई (2)

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यीशु के मार/कोड़े खाने तथा यीशु के लहू द्वारा शारीरिक चंगाई - भाग - 2


    इस विषय पर पिछले लेख में हमने देखा था कि साधारण प्रयोग के समान, बाइबल में भी चंगाई शब्द का प्रयोग हमेशा ही शारीरिक चंगाई ही के लिए नहीं किया गया है, वरन आत्मिक चंगाई के लिए भी किया गया है। आज हम नए नियम से शारीरिक चंगाई के कुछ उदाहरणों को देखते हैं:
·         पौलुस, तिमुथियुस को निर्देश देता है, “भविष्य में केवल जल ही का पीने वाला न रहपर अपने पेट के और अपने बार बार बीमार होने के कारण थोड़ा थोड़ा दाखरस भी काम में लाया कर” (1 तिमुथियुस 5:23)। प्रगट है कि तिमुथियुस को बारंबार होने वाले किसी शारीरिक रोग के कारण परेशानी होती रहती थीऔर पौलुस उससे थोड़ा थोड़ा दाखरस” औषधि के समान लेने के लिए कह रहा है – क्यों यहाँ पर पौलुस ने तिमुथियुस से प्रभु यीशु के मार/कोड़े खाने के आधार पर चंगाई की माँग/दावा करने के लिए नहीं कहा?
·         स्वयँ पौलुस के शरीर में एक कांटा चुभाया गया के बारे में देखें – पौलुस कहता है “और इसलिये कि मैं प्रकाशनों की बहुतायत से फूल न जाऊंमेरे शरीर में एक कांटा चुभाया गया अर्थात शैतान का एक दूत कि मुझे घूँसे मारे ताकि मैं फूल न जाऊं। इस के विषय में मैं ने प्रभु से तीन बार बिनती कीकि मुझ से यह दूर हो जाए” (2 कुरिन्थियों 12: 7, 8)। पौलुस को इस समस्या के निवारण के लिए प्रभु से विनती क्यों करनी पड़ीऐसा करने के स्थान पर उसने प्रभु के मार/कोड़े खाने के आधार पर उपलब्ध चंगाई को क्यों नहीं माँग लियाऔर जबकि प्रभु द्वारा विश्वास की प्रार्थना के प्रत्युत्तर में चंगाई देने के लिए पौलुस या तिमुथियुस के “विश्वास” पर तो संदेह किया ही नहीं जा सकता है!
·         हम प्रेरितों के काम में देखते हैं कि जब पतरस नेप्रेरितों 3 में, मंदिर के प्रवेश द्वार पर बैठे जन्म के लंगड़े को चँगा किया, तो उसने लंगड़े मनुष्य से यह नहीं कहा “प्रभु यीशु के मार/कोड़े खाने तुझे चँगा किया जाता है;” वरन, “तब पतरस ने कहाचान्दी और सोना तो मेरे पास है नहींपरन्तु जो मेरे पास हैवह तुझे देता हूं: यीशु मसीह नासरी के नाम से चल फिर” (प्रेरितों 3:6).

क्या बाइबल में कहीं पर भी, कोई भी, एक भी ऐसा उदाहरण है जहाँ वाक्याँश “प्रभु के मार/कोड़े खाने के द्वारा तुझे चँगा किया जाता है” का शारीरिक चंगाई प्राप्त होने के लिए उल्लेख आया हैयदि नहीं, तो फिरइस वाक्याँश का इतनी बहुतायत से प्रचार और शिक्षा में इतना प्रयोग और व्याख्या, तथा लोगों द्वारा इसे इतना सहज स्वीकार तथा ग्रहण किया जाना क्यों हैऔर भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि, लोग इतने भोले और आसानी से धोखा खाने वाले क्यों बने रहते हैं; और उन भरमाने तथा बहकाने वालों से इसके लिए परमेश्वर के वचन में से स्पष्टिकरण क्यों नहीं मांगते हैं?

सीधा और सपष्ट तथ्य यह है कि ये पद मसीह द्वारा हमारे लिए सहे गए दुखों के लिए तो हैपरन्तु हमारे पापों के दुखों के लिए हैजिन्हें उसने अपने ऊपर ले लिया था। क्योंकि उसने हमारे दण्ड को अपने ऊपर ले लियाहमारे स्थान पर उसने कोड़े खाएहमें हमारे पापों के दण्ड से छुटकारा मिला हैऔर पाप के द्वारा कुचली गई हमारी आत्मा को चंगाई प्राप्त हुई है (यशायाह 61:1; लूका 4:18)। वाक्याँश “उसके मार/कोड़े खाने से हम चंगे हुए...” रोग या बीमारियों से मिली किसी शारीरिक चंगाई के लिए नहीं प्रयोग हुआ हैवरन हमारे पापों के दुष्प्रभावों से हमें मिलने वाली चंगाई के लिए प्रयोग किया गया है।

इसी प्रकार से, बाइबल में यह कहीं नहीं आया है कि यीशु का लहू हमें शारीरिक रोगों और बीमारियों से चंगा करता है। प्रभु यीशु के लहू को अन्य कई बातों के लिए प्रभावी बताया गया है – वे सभी आत्मिक हैं और प्रभु परमेश्वर के साथ हमारे संबंधों के बारे में हैंजैसे कि – हमारा प्रायश्चित (रोमियों 3:25); हमारा धर्मी ठहरना (रोमियों 5:9); हमें परमेश्वर के निकट लाने, अर्थात उससे मेल करवाने (इफिसियों 2:13); हमारे विवेक को मरे हुए कामों से शुद्ध करने (इब्रानियों 9:14); हमें पवित्र स्थान में प्रवेश प्रदान करने के हियाव देने के लिए (इब्रानियों 10:19); हमारे छुटकारे (1 पतरस 1:18-19); पापों से शुद्ध करने (1 यूहन्ना 1:7); पापों से छुड़ाए जाने (प्रकाशितवाक्य 1:5) के लिए। परन्तु कहीं पर भी प्रभु यीशु के लहू के द्वारा किसी भी शारीरिक चंगाई होने या किए जाने का कोई उल्लेख नहीं हैऔर न ही कभी किसी प्रेरित या नए नियम के किसी भी लेखक ने शारीरिक चंगाई के लिए न तो “प्रभु यीशु के लहू” को प्रयोग किया है और न ही ऐसा करने की कोई शिक्षा दी है।

इसलिए लोगों को यह सिखाना कि हम बाइबल के किसी पद या अंश को, किसी ऐसे स्वरूप या उपयोग के लिए मांगे या उसका दावा करेंजो कि परमेश्वर के वचन में उसके प्रयोग या उसके संदर्भ के अनुसार नहीं हैऔर परमेश्वर का वचन जिसके विषय न तो कुछ सिखाता है और न ही करने के लिए कहता हैतो उसे परमेश्वर के वचन के अनुसार सही शिक्षा कैसे माना और स्वीकार किया जा सकता है? ऐसी सभी शिक्षाएँ और प्रयोग परमेश्वर के वचन से बाहर के हैंवे सभी तिमुथियुस 2:15 के निर्देश के अनुसार नहीं हैंइसलिए गलत और अस्वीकार्य होने के आधार पर उनका तिरिस्कार किया जाना चाहिए।

कृपया इस संदेश के लिंक को औरों को भी भेजें और साझा करें
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Physical healing by the stripes and the blood of Jesus - Part 2


 In the last article we had seen that the as in the general usage, in the Bible also, healing does not always only refer to physical healing, but spiritual healing as well. Let us consider a few examples related to physical ailments and healing from the New Testament:
·         Paul instructing Timothy says to him, “No longer drink only water, but use a little wine for your stomach's sake and your frequent infirmities” (1 Timothy 5:23). Clearly, Timothy was distressed because of some recurrent physical ailments, and Paul is asking him to use “a little wine” as a medicine – why has Paul not asked Timothy to use and claim healing on the basis of the stripes of the Lord Jesus?
·        Consider Paul’s own “thorn in the flesh” – Paul says “And lest I should be exalted above measure by the abundance of the revelations, a thorn in the flesh was given to me, a messenger of Satan to buffet me, lest I be exalted above measure. Concerning this thing I pleaded with the Lord three times that it might depart from me” (2 Corinthians 12: 7, 8). Why did Paul have to plead with the Lord to deliver him from the problem of the flesh; instead, why did he simply not claim the healing made available through the stripes of the Lord? And  too when the “faith” of Paul and Timothy in the Lord and the Lord’s ability to heal in answer to prayer cannot be doubted!
·         We see in the book of Acts that when Peter, in Acts 3, healed the lame from birth person sitting at the entrance to the Temple, he did not say to the lame man “by the stripes of the Lord Jesus you are healed and made whole;” rather, “Then Peter said, "Silver and gold I do not have, but what I do have I give you: In the name of Jesus Christ of Nazareth, rise up and walk"” (Acts 3:6).

Is there any instance of physical healing through applying or claiming the phrase “by the Lord’s stripes you/we have been healed” recorded anywhere in the Bible? If not then, why is such a usage and interpretation being so enthusiastically preached, taught and accepted? More importantly, why are people being so gullible and not asking the purveyors of untruth to justify their stand from God’s Word about it?

    The plain and simple fact of the matter is that surely though these verses are referring to the suffering Christ endured in our place, but for our sins, which He had taken upon Himself. Because of His taking up our punishment, His bearing those stripes for us, we have received deliverance from our sins, and also the healing that was required for our spirits broken down by sin (Isaiah 61:1; Luke 4:18). The phrase “By His stripes we are healed...” is not referring to any physical healing from diseases and infirmities, but to being healed from the deleterious consequences of our sins.

    Similarly, nowhere does the Bible say that the blood of Jesus heals us from physical diseases and infirmities. The blood of Jesus is said to be efficacious for many other things – all of them spiritual and related to our relationship with the Lord God, e.g. – our propitiation (Romans 3:25); our justification (Romans 5:9); bringing us near to God i.e. reconciling us to God (Ephesians 2:13); cleansing of our conscience from dead works (Hebrews 9:14) and giving us the boldness to enter the Holiest (Hebrews 10:19); our redemption (1 Peter 1:19); cleansing of our sins (1 John 1:7); washing away of our sins (Revelation 1:5). But there is no mention of any physical healing through the blood of Lord Jesus Christ, and neither have any of the Apostles or writers of the New Testament at any place claimed or taught the use of “Blood of Jesus Christ” for any healing or recovery from physical ailments.

    Therefore teaching people that we ask for or claim some portion of the Bible, out of its context and usage in God’s Word, in a manner, or, for something that the Word of God neither teaches about nor asks us to claim, can in no way be accepted as being in accordance with the teachings of God’s Word. All such teachings and applications are extraneous to God’s Word; they do not stand up to the admonition of 2 Timothy 2:15, therefore they ought to be rejected on grounds of being quite unacceptable and erroneous.

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