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शनिवार, 25 नवंबर 2023

Blessed and Successful Life / आशीषित एवं सफल जीवन – 91 – Stewards of Holy Spirit / पवित्र आत्मा के भण्डारी – 20

 

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पवित्र आत्मा और सँसार – 3

 

    प्रत्येक नया-जन्म पाया हुआ मसीही विश्वासी, उसे परमेश्वर द्वारा उपलब्ध करवाए गए सँसाधनों का भण्डारी भी है। परमेश्वर ने ये सँसाधन उसे प्रभु यीशु के लिए गवाही का जीवन जीने  और परमेश्वर द्वारा उसे सौंपी गई सेवकाई को निभाने के लिए दिए हैं। जैसा प्रभु यीशु ने अपने शिष्यों से प्रतिज्ञा की है (यूहन्ना 14:16), परमेश्वर पवित्र आत्मा भी मसीह के शिष्यों को परमेश्वर के द्वारा दिया जाता है। विश्वासी जिस पल प्रभु यीशु मसीह में विश्वास लाने के द्वारा नया-जन्म, उद्धार पाता है, उसी पल से पवित्र आत्मा उसे दे दिया जाता है, कि उसका सहायक और साथी हो, मसीही जीवन जीने और उसकी सेवकाई को पूरा करने में उसकी सहायता और मार्गदर्शन करे। पवित्र आत्मा की सहायता और मार्गदर्शन का योग्य रीति से उपयोग करने के लिए, विश्वासी को उस के बारे में सीखना चाहिए। पवित्र आत्मा के बारे में मुख्य शिक्षाएँ प्रभु द्वारा यूहन्ना रचित सुसमाचार के 14 से 16 अध्याय में दी गई हैं; और हम उन्हीं में से, वर्तमान में यूहन्ना 14:17 से सीख रहे हैं।


    पिछले लेख में हमने पवित्र आत्मा की सहायता के बारे में इस पद से दो महत्वपूर्ण बातों को देखा था। पहली थी कि इस पद के मध्य में दिए गए शब्द “देखता” का अर्थ शारीरिक आँखों से देखना नहीं है; वरन उसका अर्थ है उद्यम के साथ विचार करना या गंभीरता और गहराई से ध्यान करना। दूसरा है कि पवित्र आत्मा की उपस्थिति के बारे में जानने के लिए, यूहन्ना 3:8 में प्रभु यीशु के अपने शब्दों से, पवित्र आत्मा की उपस्थिति और गतिविधि का प्रमाण है उसके प्रभाव जो वह विश्वासी के जीवन में लाता है। हम ने उन में से एक प्रभाव को 2 कुरीनथियों 3:18 से पिछले लेख में देखा था, कि वह विश्वासी को अंश-अंश करके निरन्तर प्रभु यीशु की समानता में बदलता रहता है। आज हम विश्वासियों में पवित्र आतम की उपस्थिति के कुछ अन्य प्रभावों को देखेंगे जो यह प्रमाणित करते हैं कि विश्वासी में पवित्र आत्मा है। हम बहुत ही संक्षेप में यह देखने के साथ आरंभ करेंगे कि क्यों बहुधा प्रचार की जाने वाली और सिखाई जाने वाली धारणा के विपरीत “अन्य-भाषाएँ” पवित्र आत्मा होने का प्रमाण नहीं है।


    अन्य-भाषाएँ प्रमाण नहीं है: जो लोग पवित्र आत्मा के बारे में गलत शिक्षाएँ और सिद्धान्त सिखाते हैं, वे इस बात पर अड़े रहते हैं कि व्यक्ति में पवित्र आत्मा की उपस्थिति का प्रमाण उसके द्वारा अन्य-भाषा बोलना है। लेकिन यह दो कारणों से बाइबल के अनुसार सही नहीं है, पहली, क्योंकि बाइबल में उल्लेख की गई “अन्य-भाषाएँ” पृथ्वी की ही भाषाएँ हैं, न कि उन लोगों के द्वारा मुँह से निकाली जाने वाली व्यर्थ और निरर्थक ध्वनियाँ, जिन्हें निकाल कर ये उन्हें “अन्य-भाषा” कह देते हैं। और, दूसरा, बाइबल में जिस ने भी पवित्र आत्मा प्राप्त किया, उन सभी ने हमेशा ही कोई अन्य-भाषा नहीं बोली – पृथ्वी की कोई अनजान भाषा भी नहीं। पुराने नियम के किसी भी जन ने कभी कोई अन्य-भाषा नहीं बोली; और नए नियम में, लूका रचित सुसमाचार के 1 अध्याय में, वे पहले चार व्यक्ति जो पवित्र आत्मा और उसकी सामर्थ्य से भरे गए, उन्होंने कभी कोई अन्य-भाषा नहीं बोली (यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला, लूका 1:15; मरियम, लूका 1:35; इलीशिबा, लूका 1:41-42; जकरयाह, लूका 1:67)। इस पर विस्तृत विवरण के लिए, पाठक से निवेदन है कि वह इस ब्लॉग साइट पर 12 नवंबर 2022 से आरंभ होकर 16 नवंबर 2022 तक चलने वाली पाँच लेखों की शृंखला को देखें। यह पवित्र आत्मा के बारे में गलत और भ्रामक शिक्षाओं की श्रृंखला का एक भाग है जो 9 नवंबर 2022 से इस ब्लॉग साइट पर आरम्भ की गई थी।


    पवित्र आत्मा की उपस्थिति जानना: मसीही विश्वासी का जीवन उसमें निवास करने वाले पवित्र आत्मा की उपस्थिति की जानकारी उसके कुछ प्रभावों के द्वारा देता है। ये प्रभाव हैं:

·        1 कुरीनथियों 12:3 यह स्पष्ट कहता है कि “...और न कोई पवित्र आत्मा के बिना कह सकता है कि यीशु प्रभु है।” यह पत्री मसीही विश्वासियों को लिखी गई है, उन्हें, जिन्होंने मसीह यीशु को अपना उद्धारकर्ता और प्रभु स्वीकार किया है। इसलिए इसमें यह तात्पर्य निहित है कि यहाँ प्रयुक्त ‘कह सकता’ का अभिप्राय केवल सुनाने भर के लिए मुँह से निरर्थक बोल देना नहीं है, वरन सार्थक रीति और गंभीरता से यीशु को प्रभु कहने से है; अर्थात उसे समर्पित होने और उसका आज्ञाकारी होने से है। अर्थात, जिनके जीवन प्रभु यीशु के प्रति उनके समर्पण और उसकी आज्ञाकारिता को दिखाते हैं, वे उन के अंदर निवास करने वाले पवित्र आत्मा को भी प्रमाणित करते हैं।

·        2 कुरीनथियों 3:18 में लिखा है कि वह निरन्तर, अंश-अंश कर के विश्वासी को प्रभु यीशु की समानता में बदलता रहता है, जैसा कि हम पिछले लेख में देख चुके हैं।

·        1 यूहन्ना 2:27 में लिखा है कि पवित्र आत्मा शिक्षक होने के नाते विश्वासियों को परमेश्वर का वचन सिखाता है, जैसा कि प्रभु यीशु ने अपने शिष्यों से पवित्र आत्मा के विषय कहा है, “...वह तुम्हें सब बातें सिखाएगा, और जो कुछ मैं ने तुम से कहा है, वह सब तुम्हें स्मरण कराएगा” (यूहन्ना 14:26)। इसलिए वास्तव में नया जन्म पाया हुआ विश्वासी, वचन सीखने के लिए पवित्र आत्मा पर निर्भर करता है, न कि किसी मनुष्य पर।


    लेकिन पवित्र आत्मा से सीखने के लिए मसीही विश्वासी में एक प्रतिबद्धता और एक विशेष रवैया चाहिए होता है। हम इस के बारे में अगले लेख में और आगे देखेंगे, और सीखेंगे कि मसीही विश्वासी पवित्र आत्मा से वचन को कैसे सीख सकते हैं।


    यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

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English Translation

Holy Spirit & The World – 3

 

    Every Born-Again Christian Believer is a steward of the provisions made available to him by God, to live a life witnessing for the Lord Jesus and fulfil his God assigned ministry. As promised by the Lord Jesus to His disciples (John 14:16), God the Holy Spirit is also given to the disciples of Christ by God. The Believer at the moment of his being saved and Born-Again through coming to faith in the Lord Jesus receives the Holy Spirit; given to be his Helper and Companion, to help and guide him live his Christian life and fulfil his ministry. To be able to worthily utilize the help and guidance of the Holy Spirit, and to be a worthy steward, the Believer must learn about Him. The main teachings about the Holy Spirit are given by the Lord Jesus in John’s gospel, chapters 14 to 16; from these we are presently considering John 14:17.


    In the last article we had seen two important things regarding utilizing the help of the Holy Spirit, from this verse. One was that the term ‘to see’ given in the middle phrase of this verse, does not mean seeing with physical eyes; rather, it means to diligently ponder about or consider deeply. The second was that to know about the Holy Spirit being present, from the Lord Jesus’s own words of John 3:8, the proof of the presence and activity of the Holy Spirit are the effects He produces in the Believers life. We had seen one of these effects from 2 Corinthians 3:18, that He gradually, bit by bit, continually keeps changing the Believer into the likeness of the Lord Jesus. Today, we will continue and look at the other effects that evidence the presence of the Holy Spirit in the Believers. We will start by very briefly, considering why, unlike the popular and often preached and taught notion, ‘tongues’ is not an evidence of the Holy Spirit.

    Tongues is not the Proof: Those who teach wrong things and doctrines about the Holy Spirit, insist that the proof of the Holy Spirit being in a person is the recipient's speaking in tongues. But this is not Biblically true for two reasons, firstly, because Biblical "tongues'' are earthly languages, not gibberish - vain meaningless sounds which these people utter, calling them "tongues''. And, secondly, not everyone who received the Holy Spirit in The Bible, spoke in tongues, i.e., unknown foreign languages – not even the earthly languages. No one in the Old Testament spoke in any “tongues”; and the first four persons filled and empowered by the Holy Spirit in the New Testament, all in Luke chapter 1, never ever spoke in tongues (John the Baptist, Luke 1:15; Mary, Luke 1:35; Elizabeth Luke 1:41-42; Zacharias Luke 1:67). For a detailed consideration of this, the reader is requested to please see a series of five articles beginning on 12th November 2022 and culminating on 16th November 2022 on this blogsite. This is part of a series on Deceptive Teachings about the Holy Spirit, that began on 9th November 2022 on this blogsite.

    Knowing the Presence of the Holy Spirit: The life of a Christian Believer manifests the presence of the Holy Spirit in him, through certain effects. These effects are:

·        1 Corinthians 12:3 clearly says that “…no one can say that Jesus is Lord except by the Holy Spirit.” This letter has been written to the Christian Believers, to those who have accepted Christ Jesus as their savior and Lord. Therefore, the inherent implication of ‘saying’ is not just for the sake of articulating the word meaninglessly, but to meaningfully call Jesus as Lord, i.e., to be submitted and obedient to Him. So, those whose lives demonstrate their submission and obedience to the Lord Jesus, they also demonstrate the presence of the Holy Spirit residing within them.

·        2 Corinthians 3:18 says that He progressively keeps changing the Believers into the likeness of the Lord, as we have already seen in the last article.

·        1 John 2:27 says that the Holy Spirit, as teacher, teaches the Believers the Word of God; as the Lord Jesus has said to His disciples that the Holy Spirit “…will teach you all things, and bring to your remembrance all things that I said to you” (John 14:26).  The truly Born-Again Believer therefore depends upon the Holy Spirit, not any man, to learn the Word of God.

But learning from the Holy Spirit requires a certain attitude and commitment from the Believer. We will carry on and learn about this in the next article and see how Believers can learn the Word from the Holy Spirit.

    If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life.  Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.


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