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शनिवार, 4 दिसंबर 2010

जीवन की इच्छाएं तथा सच्चे आनन्द का स्त्रोत

क्या जो आप चाहते हैं आपको वह ज़िंदगी से मिल रहा है? या आपको लगता है कि अर्थव्यवस्था, सरकार, आपकी परिस्थितियां या कोई अन्य बात आपसे आपका आनन्द और आपकी प्रतिभा का प्रतिफल चुरा रहे हैं?

हाल ही में एक सर्वेक्षण करने वाली एजेंसी ने १००० लोगों से पूछा कि वे जीवन सबसे अधिक किस की इच्छा रखते हैं? सर्वेक्षण के नतीजों में से एक अद्भुत नतीजा था कि बाइबल पर विश्वास करने वाले मसीही विश्वासियों में से ९० प्रतिशत ये सब चाहते थे:
  • परमेश्वर के साथ और निकट संबंध,
  • जीवन का स्पष्ट उद्देश्य,
  • जीवन में अधिकाई से ईमानदारी, और
  • अपने विश्वास के प्रति दृढ़ समर्पण।
ध्यान कीजिए कि ये सभी इच्छाएं ऐसी हैं जिन्हें पूरा करने के लिये किसी को भी किसी अन्य सांसारिक सहायता की आवश्यक्ता नहीं है, प्रत्येक व्यक्ति स्वयं ही इनके लिये प्रयास कर सकता है। कोई सरकारी कार्यक्रम इन्हें उपलब्ध नहीं करा सकता और ना ही कठिन आर्थिक परिस्थितियां इन्हें छीन सकती हैं। यदि हम परमेश्वर के वचन को अपने जीवन में अधिकार रखने दें और पवित्रआत्मा की सहायता से अपने भीतरी मनुष्यत्व में बलवन्त होते जाएं (इफिसियों ३:१६) तो जीवन की इनये इच्छाएं की पूर्ति भी होती है और सच्चा आनन्द भी हासिल होता है।

यह सच है कि इस जटिल संसार में हम सबसे अलग होकर नहीं रह सकते और हमें कई बातों में लोगों की सहायता की आवश्यक्ता होती है। साथ ही अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिये दूसरों का सहारा लेने का प्रलोभन सदा बना रहता है - कोई आकर हमारी इच्छाओं को उपलब्ध करा दे; परन्तु सच्चे आनन्द का स्त्रोत कोई बाहरी सांसारिक सहायता कभी नहीं बन सकती। यह वह आनन्द है जो हमारे अन्दर से ही आता है और इसके लिये एक स्थिर और शांत मन की अवश्यक्ता होती है।

किंतु " मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देने वाला होता है, उस में असाध्य रोग लगा है, उसका भेद कौन समझ सकता है?" (यर्मियाह १७:९) तथा "ऐसी तो कोई वस्‍तु नहीं जो मनुष्य को बाहर से समाकर अशुद्ध करे परन्‍तु जो वस्‍तुएं मनुष्य के भीतर से निकलती हैं, वे ही उसे अशुद्ध करती हैं। जो मनुष्य में से निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है। क्‍योंकि भीतर से अर्थात मनुष्य के मन से, बुरी बुरी चिन्‍ता, व्यभिचार, चोरी, हत्या, परस्त्रीगमन, लोभ, दुष्‍टता, छल, लुचपन, कुदृष्‍टि, निन्‍दा, अभिमान, और मूर्खता निकलती हैं। ये सब बुरी बातें भीतर ही से निकलती हैं और मनुष्य को अशुद्ध करती हैं।" (मरकुस ७:१५, २०-२३) इसीलिये दाउद ने प्रार्थना करी " हे परमेश्वर, मेरे अन्दर शुद्ध मन उत्पन्न कर, और मेरे भीतर स्थिर आत्मा नये सिरे से उत्पन्न कर। ...टूटा मन परमेश्वर के योग्य बलिदान है, हे परमेश्वर, तू टूटे और पिसे हुए मन को तुच्छ नहीं जानता।" (भजन ५१:१०, १७)

प्रभु यीशु मसीह इसी असाध्य मन को बदल कर पाप की कड़ुवाहट के स्थान पर आनन्द की भरपूरी देने आया " ...मैं इसलिये आया कि वे जीवन पाएं, और बहुतायत से पाएं। मैं ने ये बातें तुम से इसलिये कही हैं, कि मेरा आनन्‍द तुम में बना रहे, और तुम्हारा आनन्‍द पूरा हो जाए।" (यूहन्ना १०:१०, १५:११)

प्रभु यीशु से करी गई एक सच्चे पश्चाताप की प्रार्थना आपके जीवन को सच्चे आनन्द से भर देगी। - डेव ब्रैनन


प्रभु यीशु में संसार के प्रत्येक दुखी और निराश व्यक्ति के लिये आशा है।

कि वह अपनी महिमा के धन के अनुसार तुम्हें यह दान दे, कि तुम उसके आत्मा से अपने भीतरी मनुष्यत्‍व में सामर्थ पाकर बलवन्‍त होते जाओ। - इफिसियों ३:१६


बाइबल पाठ: इफिसियों ३:१४-२१

मैं इसी कारण उस पिता के साम्हने घुटने टेकता हूं,
जिस से स्‍वर्ग और पृथ्वी पर, हर एक घराने का नाम रखा जाता है।
कि वह अपनी महिमा के धन के अनुसार तुम्हें यह दान दे, कि तुम उसके आत्मा से अपने भीतरी मनुष्यत्‍व में सामर्थ पाकर बलवन्‍त होते जाओ।
और विश्वास के द्वारा मसीह तुम्हारे ह्रृदय में बसे कि तुम प्रेम में जड़ पकड़ कर और नेव डाल कर
सब पवित्र लोगों के साथ भली भांति समझने की शक्ति पाओ कि उसकी चौड़ाई, और लम्बाई, और ऊंचाई, और गहराई कितनी है।
और मसीह के उस प्रेम को जान सको जो ज्ञान से परे है, कि तुम परमेश्वर की सारी भरपूरी तक परिपूर्ण हो जाओ।
अब जो ऐसा सामर्थी है, कि हमारी बिनती और समझ से कहीं अधिक काम कर सकता है, उस सामर्थ के अनुसार जो हम में कार्य करता है,
कलीसिया में, और मसीह यीशु में, उस की महिमा पीढ़ी से पीढ़ी तक युगानुयुग होती रहे। आमीन।

एक साल में बाइबल:
  • यहेजेकेल ४७, ४८
  • १ युहन्ना ३

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