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मंगलवार, 31 अगस्त 2021

परमेश्वर का वचन, बाइबल – पाप और उद्धार - 6

 

पाप का समाधान - उद्धार - 2

       पिछले लेख में हमने परमेश्वर के वचन बाइबल से उद्धार के बारे में देखना आरंभ किया था। हम इस विषय को तीन प्रश्नों के उत्तर के रूप में देखेंगे। ये प्रश्न हैं:

·        यह उद्धार, अर्थात बचाव, या सुरक्षा किस से और क्यों होना है?

·        व्यक्ति इस उद्धार को कैसे प्राप्त कर सकता है?

·        इसके लिए यह इतना आवश्यक क्यों हुआ कि स्वयं परमेश्वर प्रभु यीशु को स्वर्ग छोड़कर सँसार में बलिदान होने के लिए आना पड़ा?

       कल हमने पहले प्रश्न, किससे और क्यों को देखना आरंभ किया था; और देखा था कि पाप, अर्थात परमेश्वर की अनाज्ञाकारिता करने से, और करते ही, प्रथम मनुष्यों, आदम और हव्वा में क्या परिवर्तन आ गए। उनमें अपने किए के कारण दोष का बोध आ गया; उनमें अपनी दशा को लेकर लज्जा आ गई जिससे वे उस पूर्व उन्मुक्त भाव से परमेश्वर के सम्मुख नहीं आने पाए; वे परमेश्वर से छिपने लगे; और उन्होंने अपनी लाज को ढाँपने के लिए अपने ही प्रयास तो किए, किन्तु वे अपर्याप्त और अस्थाई थे। फिर हमने शिक्षा ली थी कि मनुष्य का पाप उसके अंदर एक दोषी होने के स्थिति, एक ग्लानि को उत्पन्न करता है। पाप के कारण मनुष्य सच्चे परमेश्वर के सामने आने से कतराने लगता है। यद्यपि मनुष्य का समस्त हाल परमेश्वर के सामने बेपरदा है, बिल्कुल खुला है, फिर भी मनुष्य अपनी लज्जा को स्वीकार करने के स्थान पर उसे अपनी धार्मिकता और भलाई के कामों से ढाँपने का प्रयास करता है, जो अपर्याप्त हैं, और अपने इन प्रयासों के बावजूद फिर भी अपने आप को परमेश्वर से छुपाए रखता है, उससे दूर रहने के प्रयास करता है। पाप के कारण आए परिणामों को आज और आगे देखते हैं। 

       बाइबल की पहली पुस्तक, उत्पत्ति के तीन अध्याय में इस प्रथम पाप की स्थिति का वर्णन दिया गया है। परमेश्वर जब मनुष्य से संगति करने अदन की वाटिका में आया, तो उसके विचरण के शब्द को सुनकर आदम और हव्वा वाटिका के वृक्षों के बीच में जाकर उससे छुप गए। किन्तु इस पाप में गिरे और उससे छुपने का प्रयास करने वाले मनुष्य को परमेश्वर ने ऐसे ही नहीं छोड़ दिया। परमेश्वर चाहता तो सीधे से उन पर अपने उस दण्ड की आज्ञा सुना सकता था, जिसकी चेतावनी वह पहले उस वर्जित फल के विषय उनको दे चुका था (उत्पत्ति 2:17)। किन्तु उस प्रेमी, दयालु, कृपालु, अनुग्रहकारी परमेश्वर ने ऐसा नहीं किया। उसने उन्हें अपनी गलती को, अपने पाप को मान लेने का अवसर दिया। गलती मनुष्य ने की थी; पतित दशा में मनुष्य था; अपनी लज्जा और दोष के निवारण को पता करने का कर्तव्य मनुष्य का था। किन्तु उसकी इस दशा का समाधान प्रदान करने के लिए उसे ढूँढता हुआ परमेश्वर आया। जैसे प्रभु यीशु मसीह ने अपने संसार में आने के लिए कहाक्योंकि मनुष्य का पुत्र खोए हुओं को ढूंढ़ने और उन का उद्धार करने आया है” (लूका 19:10) 

       परमेश्वर ने वाटिका में, उनके छिपने के स्थान के निकट आकर उन पर दोषारोपण नहीं किया, वरन उन्हें प्रेम से बुलाया; उनसे पूछातू कहाँ है?” इसलिए नहीं कि परमेश्वर को उनके बारे में पता नहीं था, वरन इसलिए ताकि वे अपने पाप का, अपनी गलती का अंगीकार कर सकें। इससे पहले कि परमेश्वर को उनपर अपने न्याय को लागू करना पड़े, वह उन्हें पूरा-पूरा अवसर दे रहा था कि वे अपनी गलती को मान लें, क्योंकि परमेश्वर का एक और अद्भुत गुण उसकी क्षमा भी है, “यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने, और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है” (1 यूहन्ना 1:9)। आदम बाहर निकल कर आया, और परमेश्वर से बात भी की; किन्तु उसे वास्तविकता बताने के स्थान पर बहाना और स्पष्टीकरण देने लगा; उसने कहा मैं तुझ से डर गया था, इसलिए छुप गया। यह पाप का मनुष्य के जीवन में एक और प्रभाव है - पाप डर उत्पन्न करता है। यह सामान्य व्यवहार की बात है, जब भी हम कोई गलती करते हैं, तो उस गलती के कारण हम में एक डर बना रहता है। मान लीजिए आप अपनी गाड़ी लेकर निकले हैं, और लाइसेंस लेना भूल गए, तो हर पुलिस वाले को देखते ही मन में डर आएगा, “कहीं इसने रोक कर लाइसेंस पूछ लिया तो परेशानी हो जाएगी!

       परमेश्वर ने उसे फिर से अपने पाप को मान लेने का एक और अवसर भी दिया साथ ही पाप का संकेत भी दिया; उससे सीधे से पूछा किक्या उसने वह वर्जित फल खा लिया है?” फिर से मनुष्य ने इस अवसर को गँवा दिया, और अब अपना दोष स्वीकार करने के स्थान पर, अपनी गलती दूसरों पर मढ़ने लगा। आदम ने परमेश्वर को और हव्वा दोनों को दोषी ठहराया - हव्वा को तो परमेश्वर ही ने उसे दिया था, इसलिए उसके लिए परमेश्वर ही जिम्मेदार था। हव्वा ने अपने आप को दोषी मानने के स्थान पर उसे बहकाने वाले सांप को दोषी ठहराया। गलती मान लेने और पश्चाताप करने का इस अवसर भी उन्होंने औरों पर दोषारोपण करने में गँवा दिया। आज भी हमारी स्वाभाविक प्रतिक्रिया अपनी गलती स्वीकार करने के स्थान पर किसी अन्य को उसके लिए जिम्मेदार और दोषी ठहराने की होती है। अब परमेश्वर को न्याय का कदम उठाना पड़ा। 

       उनपर पीड़ा, परिश्रम, और मृत्यु को लागू कर दिया गया, और उन्हें उस आशीष के स्थान अदन के वाटिका से बाहर कर दिया गया। मृत्यु, जैसा हम पहले देख चुके हैं, एक मानवीय प्रयासों से अपरिवर्तनीय बिछड़ने की दशा को दिखाता है। पाप के कारण मनुष्य की संगति परमेश्वर से टूट गई; उसकी आत्मिक मृत्यु तुरंत हो गई, और वह शारीरिक मृत्यु के लिए भी निर्धारित कर दिया गया। मूल इब्रानी भाषा में जो वाक्यांश इसके लिए उत्पत्ति 2:17 में प्रयोग हुआ है, उसका वास्तविक अंग्रेजी अनुवाद है “dying thou dost die (YLT); dying thou shalt die (SLT)” जिसका हिन्दी अनुवाद होता हैमरते मरते तू मर जाएगा। अर्थात, उसी दिन से तेरी निरंतर कभी न रुकने और पलटे जाने वाली मरते चले जाने की प्रक्रिया आरंभ हो जाएगी, और अंततः तू मर जाएगा।जिस दिन आदम और हव्वा ने पाप किया उनके लिए मृत्यु दो रीति से आ गई - आत्मिक रीति से वे परमेश्वर की संगति से अलग हो गए; और शारीरिक रीति से उन्होंने मरना आरंभ कर दिया, और अंततः अपनी आयु पूरी करके मर गए, मिट्टी में मिल गए। यही दशा तब से प्रत्येक मनुष्य के साथ रहती है; वह आत्मिक रीति से परमेश्वर से दूरी की दश में और शारीरिक रीति से एक दिन-प्रतिदिन घटती जाती आयु के साथ जन्म लेता है, और आयु पूरी करके मर जाता है, मिट्टी में मिल जाता हैइसलिये जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, इसलिये कि सब ने पाप किया” (रोमियों 5:12)

       पहले पाप से उत्पन्न हुई स्थिति के प्रति परमेश्वर की प्रतिक्रिया के बारे में हम और आगे अगले लेख में देखेंगे। अभी के लिए आप से निवेदन है कि अपने जीवनों की वास्तविक स्थिति का आँकलन करके देखें। पाप प्रत्येक व्यक्ति को दूसरों पर दोषारोपण करने वाला, अपनी गलती के लिए औरों को जिम्मेदार ठहराने वाला, यहाँ तक कि परमेश्वर को भी दोषी ठहराने वाला बना देता है। मनुष्य सत्य के सामने आने, उसे स्वीकारने से डरता है, और हर हाल में अपने आप को सही दिखाना चाहता है। किन्तु परमेश्वर आपकी यह वास्तविकता जानता है, फिर भी वह आप से प्रेम करता है, आपके साथ अपनी संगति को बहाल करना चाहता है। लेकिन यह संभव हो पाना आपके निर्णय पर आधारित है। आपकी स्वेच्छा और सच्चे पश्चाताप तथा समर्पित मन से की गई एक छोटी प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु, मैं मान लेता हूँ कि मन-ध्यान-विचार-व्यवहार में आपकी अनाज्ञाकारिता करके मैंने पाप किया है। मैं धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों को अपने ऊपर लेकर, मेरे स्थान पर उनके मृत्यु-दण्ड को कलवरी के क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा सह लिया। आप मेरे स्थान पर मारे गए, और मेरे उद्धार के लिए मृतकों में से जी भी उठे। कृपया मुझ पर दया करें और मेरे पाप क्षमा करें। मुझे अपना शिष्य बना लें, अपनी आज्ञाकारिता में अपने साथ बना कर रखें।परमेश्वर आपकी संगति की लालसा रखता है, आपको दण्ड के अधीन नहीं, वरन आशीषित देखना चाहता है; इसे संभव करना या न करना, आपका अपना व्यक्तिगत निर्णय है। 

 

बाइबल पाठ: उत्पत्ति 3:8-24 

उत्पत्ति 3:8 तब यहोवा परमेश्वर जो दिन के ठंडे समय वाटिका में फिरता था उसका शब्द उन को सुनाई दिया। तब आदम और उसकी पत्नी वाटिका के वृक्षों के बीच यहोवा परमेश्वर से छिप गए।

उत्पत्ति 3:9 तब यहोवा परमेश्वर ने पुकार कर आदम से पूछा, तू कहां है?

उत्पत्ति 3:10 उसने कहा, मैं तेरा शब्द बारी में सुन कर डर गया क्योंकि मैं नंगा था; इसलिये छिप गया।

उत्पत्ति 3:11 उसने कहा, किस ने तुझे चिताया कि तू नंगा है? जिस वृक्ष का फल खाने को मैं ने तुझे बर्जा था, क्या तू ने उसका फल खाया है?

उत्पत्ति 3:12 आदम ने कहा जिस स्त्री को तू ने मेरे संग रहने को दिया है उसी ने उस वृक्ष का फल मुझे दिया, और मैं ने खाया।

उत्पत्ति 3:13 तब यहोवा परमेश्वर ने स्त्री से कहा, तू ने यह क्या किया है? स्त्री ने कहा, सर्प ने मुझे बहका दिया तब मैं ने खाया।

उत्पत्ति 3:14 तब यहोवा परमेश्वर ने सर्प से कहा, तू ने जो यह किया है इसलिये तू सब घरेलू पशुओं, और सब बनैले पशुओं से अधिक शापित है; तू पेट के बल चला करेगा, और जीवन भर मिट्टी चाटता रहेगा:

उत्पत्ति 3:15 और मैं तेरे और इस स्त्री के बीच में, और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्पन्न करूंगा, वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा।

उत्पत्ति 3:16 फिर स्त्री से उसने कहा, मैं तेरी पीड़ा और तेरे गर्भवती होने के दु:ख को बहुत बढ़ाऊंगा; तू पीड़ित हो कर बालक उत्पन्न करेगी; और तेरी लालसा तेरे पति की ओर होगी, और वह तुझ पर प्रभुता करेगा।

उत्पत्ति 3:17 और आदम से उसने कहा, तू ने जो अपनी पत्नी की बात सुनी, और जिस वृक्ष के फल के विषय मैं ने तुझे आज्ञा दी थी कि तू उसे न खाना उसको तू ने खाया है, इसलिये भूमि तेरे कारण शापित है: तू उसकी उपज जीवन भर दु:ख के साथ खाया करेगा:

उत्पत्ति 3:18 और वह तेरे लिये कांटे और ऊंटकटारे उगाएगी, और तू खेत की उपज खाएगा ;

उत्पत्ति 3:19 और अपने माथे के पसीने की रोटी खाया करेगा, और अन्त में मिट्टी में मिल जाएगा; क्योंकि तू उसी में से निकाला गया है, तू मिट्टी तो है और मिट्टी ही में फिर मिल जाएगा।

उत्पत्ति 3:20 और आदम ने अपनी पत्नी का नाम हव्वा रखा; क्योंकि जितने मनुष्य जीवित हैं उन सब की आदि-माता वही हुई।

उत्पत्ति 3:21 और यहोवा परमेश्वर ने आदम और उसकी पत्नी के लिये चमड़े के अंगरखे बना कर उन को पहना दिए।

उत्पत्ति 3:22 फिर यहोवा परमेश्वर ने कहा, मनुष्य भले बुरे का ज्ञान पाकर हम में से एक के समान हो गया है: इसलिये अब ऐसा न हो, कि वह हाथ बढ़ा कर जीवन के वृक्ष का फल भी तोड़ के खा ले और सदा जीवित रहे।

उत्पत्ति 3:23 तब यहोवा परमेश्वर ने उसको अदन की वाटिका में से निकाल दिया कि वह उस भूमि पर खेती करे जिस में से वह बनाया गया था।

उत्पत्ति 3:24 इसलिये आदम को उसने निकाल दिया और जीवन के वृक्ष के मार्ग का पहरा देने के लिये अदन की वाटिका के पूर्व की ओर करूबों को, और चारों ओर घूमने वाली ज्वालामय तलवार को भी नियुक्त कर दिया।

 

एक साल में बाइबल:

·      भजन 132; 133; 134

·      1 कुरिन्थियों 11:17-34