ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

शनिवार, 20 अक्टूबर 2012

उचित शब्द


   अपने बचपन में मैंने एक बड़ा शब्द सीखा जिसका उच्चारण भी कठिन था; शब्द था "antidisestablishmentarianism" इसे बोलने में भी मेहनत करनी पड़ती थी। ना मैं और ना मेरे स्कूल के मित्र जानते थे कि इसका अर्थ क्या है, किंतु इस बड़े से शब्द के बोलने से मैं बहुत ज्ञानवान प्रतीत होता था। अभी हाल ही में मैंने शब्दकोष में इस शब्द का अर्थ देखा; अर्थ था: "एक ऐसा राजनैतिक सिद्धांत जो किसी स्थापित चर्च को मिली उसकी सरकारी मान्यता को रद्द करने का विरोध करे" - जैसा कठिन शब्द वैसा ही कठिन उसका अर्थ!

   जब पौलुस प्रेरित ने मसीही सेवकाई में अपने आप को समर्पित किया तब वह अपने समय के सबसे अधिक पढ़े-लिखे और ज्ञानवान लोगों में से था और परमेश्वर के वचन की गहन शिक्षा प्राप्त व्यक्ति था। लेकिन अपनी मसीही सेवकाई में वह अपने ज्ञान के द्वारा लोगों को प्रभावित करने का प्रयास नहीं करता था। उसने कुरिन्थुस के विश्वासियों को लिखी अपनी पत्री में उनसे कहा: "और हे भाइयों, जब मैं परमेश्वर का भेद सुनाता हुआ तुम्हारे पास आया, तो वचन या ज्ञान की उत्तमता के साथ नहीं आया" (१ कुरिन्थियों २:१)। पौलुस द्वारा प्रयुक्त जिस युनानी भाषा के शब्द का अनुवाद "वचन या ज्ञान की उत्तमता" हुआ है उसका तात्पर्य बड़े-बड़े और जटिल शब्दों के प्रयोग से है; अर्थात ऐसे शब्दों का प्रयोग जिनसे श्रोता सीखते तो कम ही हैं किंतु वक्ता और उस के ’ज्ञान’ की महिमा अधिक होती है। पौलुस एक महान पंडित और शास्त्री था जो परमेश्वर के गहन रहस्यों को जानता था, लेकिन अपनी इस महानता जताने के लिए उसने भाषा और अपने ज्ञान का दुरुपयोग कभी नहीं किया।

   हम सभी मसीही विश्वासियों को इस बात का ध्यान रखना है कि जैसे जैसे हम परमेश्वर की निकटता और ज्ञान में बढ़ें, हम भी पौलुस के उदाहरण का अनुसरण करें और केवल अपना ज्ञान लोगों पर प्रगट करने के लिए ही शब्दों का अनुचित प्रयोग ना करें; वरन उचित शब्द प्रयोग करके जिन्हें लोग सरलता से समझ सकें, लोगों को परमेश्वर की निकटता में आने और बढ़ने के लिए उभारने और प्रोत्साहित करने वाले बनें। - डेनिस फिशर


हमारी समझ-बूझ केवल हमारे शब्दों की जानकारी ही से नहीं वरन उन्हें उचित रीति से प्रयोग करने के द्वारा प्रगट होती है।

और हे भाइयों, जब मैं परमेश्वर का भेद सुनाता हुआ तुम्हारे पास आया, तो वचन या ज्ञान की उत्तमता के साथ नहीं आया। - १ कुरिन्थियों २:१

बाइबल पाठ: १ कुरिन्थियों २:१-९
1Co 2:1   और हे भाइयों, जब मैं परमेश्वर का भेद सुनाता हुआ तुम्हारे पास आया, तो वचन या ज्ञान की उत्तमता के साथ नहीं आया। 
1Co 2:2  क्‍योंकि मैं ने यह ठान लिया था, कि तुम्हारे बीच यीशु मसीह, वरन क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह को छोड़ और किसी बात को न जानूं। 
1Co 2:3   और मैं निर्बलता और भय के साथ, और बहुत थरथराता हुआ तुम्हारे साथ रहा। 
1Co 2:4  और मेरे वचन, और मेरे प्रचार में ज्ञान की लुभाने वाली बातें नहीं, परन्‍तु आत्मा और सामर्थ का प्रमाण था। 
1Co 2:5  इसलिये कि तुम्हारा विश्वास मनुष्यों के ज्ञान पर नहीं, परन्‍तु परमेश्वर की सामर्थ पर निर्भर हो।
1Co 2:6  फिर भी सिद्ध लोगों में हम ज्ञान सुनाते हैं: परन्‍तु इस संसार का और इस संसार के नाश होने वाले हाकिमों का ज्ञान नहीं। 
1Co 2:7  परन्‍तु हम परमेश्वर का वह गुप्‍त ज्ञान, भेद की रीति पर बताते हैं, जिसे परमेश्वर ने सनातन से हमारी महिमा के लिये ठहराया। 
1Co 2:8  जिसे इस संसार के हाकिमों में से किसी ने नहीं जाना, क्‍योंकि यदि जानते, तो तेजोमय प्रभु को क्रूस पर न चढ़ाते। 
1Co 2:9  परन्‍तु जैसा लिखा है, कि जो आंख ने नहीं देखी, और कान ने नहीं सुना, और जो बातें मनुष्य के चित्त में नहीं चढ़ी वे ही हैं, जो परमेश्वर ने अपने प्रेम रखने वालों के लिये तैयार की हैं।

एक साल में बाइबल: 
  • यशायाह ५९-६१ 
  • २ थिस्सलुनीकियों ३