अमेरिका के टैक्सस प्रांत के लोग अपने पशु-पालन के बड़े-बड़े फार्म और हर बात में शेखी बघारने के लिए जाने जाते थे और इन बातों से संबंधित उनके विषय में अनेक विनोदी लघु-कथाएं प्रचलित हैं। ऐसी ही कथाओं में से मेरी एक प्रीय कथा है: "टैक्सस का एक फार्म मालिक जर्मनी गया हुआ था और वहां के एक पशु-पालन फार्म के मालिक को उसके काम के बारे में सलाह देने लगा। इसी वार्तालाप के दौरान टेक्सस वाले ने जर्मनी वाले से पूछा कि उसकी ज़मीन का नाप कितना है; जर्मनी वाले ने उत्तर दिया ’एक वर्ग मील’। फिर जर्मनी वाले ने टैक्सस वाले से भी यही बात पूछी, तो टैक्सस वाले ने अपने अंदाज़ में उत्तर दिया, ’यदि मैं सूर्योदय के साथ अपनी गाड़ी में चलना आरंभ करूँ, तो सूर्यास्त होने तक भी मैं अपनी ज़मीन के एक छोर से दूसरे छोर तक नहीं पहुँच पाता।’ जर्मनी वाले ने संवेदना में सिर हिलाते हुए उत्तर दिया, ’ मैं आपकी व्यथा समझ सकता हूँ; मेरे पास भी कभी ऐसी ही परेशान कर देने वाली पुरानी और बेकार गाड़ी हुआ करती थी!’ "
मज़ाक तो अपने स्थान पर अच्छा है, लेकिन साथ ही यह कहानी हमें सही दृष्टिकोण के महत्व को भी सिखाती है। यह सही दृष्टिकोण होना केवल सांसारिक जीवन की बातों में ही नहीं, आत्मिक जीवन की बातों में भी महत्वपूर्ण है। परमेश्वर के वचन बाइबल में ग़लत दृष्टिकोण रखने वाली एक मसीही मण्डली का उल्लेख है - प्रकाशितवाक्य 3:14-22। अपने बाह्य स्वरूप में वह मण्डली काफी धनी थी। उनके पास सांसारिक वस्तुओं की बहुतायत थी और वे सोचने लगे थे कि अब उन्हें किसी भी बात की आवश्यकता नहीं है, यहाँ तक कि प्रभु यीशु की भी नहीं, जिसे उन्होंने मण्डली के बाहर कर दिया था।
लेकिन प्रभु यीशु का दृष्टिकोण उनके लिए भिन्न था। वह उनकी वास्तविक दशा भली-भांति जानता था। उनके दुर्व्यवहार के बावजूद वह उनसे प्रेम रखता था, उनका भला चाहता था और वापस उनमें आकर उनके साथ संगति करना चाहता था। प्रभु यीशु ने उन्हें उन की वास्तविक दशा बताई: "...यह नहीं जानता, कि तू अभागा और तुच्छ और कंगाल और अन्धा, और नंगा है" (पद 17), उन्हें सलाह दी कि वे मन फिराएं और उससे असली और कभी नष्ट ना होने वाला धन ले लें, अर्थात पवित्रता, अच्छा चरित्र, धार्मिकता और बुद्धिमता तथा उनके पास वापस अन्दर आकर उनके साथ संगति करने की अपनी इच्छा प्रगट करी।
कहीं सांसारिक उपलब्धियों और बातों की चकाचौंध ने हमें भी तो अपनी वास्तविक दशा से अनभिज्ञ बनाकर किसी गलत दृष्टिकोण में तो नहीं फंसा लिया है? प्रभु यीशु का निमंत्रण संसार के प्रत्येक जन के लिए खुला है, वह हर एक से प्रेम रखता है, उसने हर एक जन के पापों के लिए अपने प्राण दिए और आज स्वेच्छा से उसके पास आने वाले हर जन को वह पापों की क्षमा, उद्धार और परमेश्वर की संगति में अनन्त जीवन देने को तैयार है; उनके पाप स्वभाव के स्थान पर उन्हें अपनी धार्मिकता का स्वभाव देने को तैयार है।
सही दृष्टिकोण अपनाएं, वास्तविकता को जांचें-परखें और पहचानें और प्रभु यीशु से अनन्त आशीषों को प्राप्त कर लें। - जो स्टोवैल
सबसे ग़रीब वही है जिसके पास केवल संसार का धन ही है।
तू जो कहता है, कि मैं धनी हूं, और धनवान हो गया हूं, और मुझे किसी वस्तु की घटी नहीं, और यह नहीं जानता, कि तू अभागा और तुच्छ और कंगाल और अन्धा, और नंगा है। - प्रकाशितवाक्य 3:17
बाइबल पाठ: प्रकाशितवाक्य 3:14-22
Revelation 3:14 और लौदीकिया की कलीसिया के दूत को यह लिख, कि, जो आमीन, और विश्वासयोग्य, और सच्चा गवाह है, और परमेश्वर की सृष्टि का मूल कारण है, वह यह कहता है।
Revelation 3:15 कि मैं तेरे कामों को जानता हूं कि तू न तो ठंडा है और न गर्म: भला होता कि तू ठंडा या गर्म होता।
Revelation 3:16 सो इसलिये कि तू गुनगुना है, और न ठंडा है और न गर्म, मैं तुझे अपने मुंह में से उगलने पर हूं।
Revelation 3:17 तू जो कहता है, कि मैं धनी हूं, और धनवान हो गया हूं, और मुझे किसी वस्तु की घटी नहीं, और यह नहीं जानता, कि तू अभागा और तुच्छ और कंगाल और अन्धा, और नंगा है।
Revelation 3:18 इसी लिये मैं तुझे सम्मति देता हूं, कि आग में ताया हुआ सोना मुझ से मोल ले, कि धनी हो जाए; और श्वेत वस्त्र ले ले कि पहिन कर तुझे अपने नंगेपन की लज्ज़ा न हो; और अपनी आंखों में लगाने के लिये सुर्मा ले, कि तू देखने लगे।
Revelation 3:19 मैं जिन जिन से प्रीति रखता हूं, उन सब को उलाहना और ताड़ना देता हूं, इसलिये सरगर्म हो, और मन फिरा।
Revelation 3:20 देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूं; यदि कोई मेरा शब्द सुन कर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आ कर उसके साथ भोजन करूंगा, और वह मेरे साथ।
Revelation 3:21 जो जय पाए, मैं उसे अपने साथ अपने सिंहासन पर बैठाऊंगा, जैसा मैं भी जय पा कर अपने पिता के साथ उसके सिंहासन पर बैठ गया।
Revelation 3:22 जिस के कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है।
एक साल में बाइबल:
- व्यवस्थाविवरण 26-27
- मरकुस 14:27-53