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मंगलवार, 2 नवंबर 2021

मसीही सेवकाई में पवित्र आत्मा की भूमिका - 2

 

आवश्यकता 

 पिछले लेख में हमने देखा था कि सफल और प्रभावी मसीही सेवकाई केवल परमेश्वर पवित्र आत्मा की आज्ञाकारिता और मार्गदर्शन के द्वारा ही संव है। कोई भी शैक्षिक योग्यता अथवा प्रशिक्षण, कोई डिग्री प्राप्त कर लेना या कोर्स कर लेना तब तक प्रभु के लिए फलवंत और प्रभु को स्वीकार्य नहीं हो सकता है, जब तक व्यक्ति पवित्र आत्मा की अगुवाई में उस प्रशिक्षण का उपयोग, परमेश्वर की इच्छा के अनुसार ना करे। मसीही सेवकाई, मत्ती 28:19-20 के अनुसार, लोगों को प्रभु यीशु का शिष्य बनाना है और उन्हें, जो शिष्य बन जाते हैं, बपतिस्मा देना और प्रभु की बातें सिखाना है। शिष्य बनाने और फिर उन्हें प्रभु की बातें सिखाने में उन विभिन्न वरदानों का उपयोग होता है, जो परमेश्वर पवित्र आत्मा प्रत्येक मसीही विश्वासी को देता है (रोमियों 12:6-8; 1 कुरिन्थियों 12:4-11)। यही अपने आप में स्पष्ट कर देता है कि क्यों जब तक परमेश्वर पवित्र आत्मा की सामर्थ्य और मार्गदर्शन साथ नहीं है, कोई भी सफल और प्रभावी मसीही सेवकाई नहीं कर सकता है। 

हमारे ध्यान देने के लिए आवश्यक एक और बात है; अन्य सभी शिष्यों के समान, प्रभु यीशु से वचन की शिक्षाएं, प्रशिक्षण, तथा अधिकार तो यहूदा इस्करियोती ने भी पाया था; अन्य शिष्यों के साथ सेवकाई के लिए वह भी गया था; उस समय प्रभु यीशु का प्रचार तो उसने भी किया था, और हो सकता है कि शिष्यों के समान उसने आश्चर्यकर्म भी किए होंगे; किन्तु अंततः परिणाम क्या हुआ? प्रभु यीशु ने उसेविनाश का पुत्रबताया, जो नाश हो गया। उसके साथ न तो प्रभु का अनुग्रह था - जिसे वह ठुकरा चुका था; और न पवित्र आत्मा की सामर्थ्य अथवा मार्गदर्शन था। उसका प्रभु के साथ रहने का अनुभव, प्रभु से मिली शिक्षाएं और अधिकार, उसका प्रभु के चुने हुए बारह शिष्यों में गिना औरप्रेरितकहलाया जाना (मत्ती 10:1-4), सब निरर्थक और व्यर्थ हो गया।

प्रभु ने जब अपने शिष्यों को सुसमाचार प्रचार और मसीही सेवकाई के लिए जाने को कहा, तो वह उन्हें एक बहुत बड़े जोखिम में भेज रहा था; सृष्टि के सबसे सामर्थी, चतुर, और धूर्त एवं कुटिल हस्ती, शैतान, के विरुद्ध युद्ध करने के लिए भेज रहा था। परमेश्वर के बाद, शैतान ही है जिसकी सामर्थ्य है। परमेश्वर का वचन बाइबल हमें बताती है कि: 

  • सारा संसार उस दुष्ट के वक्ष में पड़ा है (1 यूहन्ना 5:19); 
  • वह अपनी चतुराई से परमेश्वर के लोगों को उनकी पवित्रता और मन की सिधाई से बहका सकता है, उन्हें भ्रष्ट कर सकता है (2 कुरिन्थियों 11:3) - ध्यान कीजिए कि जब आदम और हव्वा बहकाए गए और पाप में गिरे, तब वो निष्पाप और पवित्र दशा में थे, सृष्टि में पाप का अस्तित्व ही नहीं था, वे दोनों परमेश्वर के साथ ऐसी संगति में रहते थे जिसकी आज हम केवल कल्पना ही कर सकते हैं। लेकिन फिर भी शैतान ने उन्हें बहका कर पाप में गिरा दिया।
  • वह और उसके दूत ज्योतिर्मय स्वर्गदूत का रूप धारण करके, अपने आप को मसीह का प्रेरित दिखा कर गलत शिक्षाओं से लोगों को भरमा सकते हैं (2 कुरिन्थियों 11:13-15)
  • उसके भरमाने की युक्तियों की सामर्थ्य का अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि हज़ार वर्ष तक अथाह कुंड में कैद रहने के बाद जब उसे कुछ समय के लिए छोड़ा जाएगा, तब भी वह उन लोगों में से जिन्होंने परमेश्वर के राज्य को हज़ार वर्ष तक देखा है, लोगों को भरमा कर परमेश्वर के विरुद्ध युद्ध करने के लिए तैयार कर लेगा (प्रकाशितवाक्य 20:7-9) 
  • वह इतना धूर्त है कि देहधारी हुए परमेश्वर के वचन, प्रभु यीशु मसीह (यूहन्ना 1:1, 14), के समक्ष उसी के वचन का दुरुपयोग करने और प्रभु को बहकाने के प्रयास करने से पीछे नहीं हटा (मत्ती 4:1-11), तो फिर उसके सामने किसी मनुष्य के बाइबल ज्ञान या समझ की क्या हस्ती हो सकती है
  • वह स्‍वर्गदूतों को भी उनका कार्य करने से रोक के रखने, बाधित करने की सामर्थ्य रखता है (दानिय्येल 10:11-14)
  • पतरस ने मसीही विश्वासियों से कहासचेत हो, और जागते रहो, क्योंकि तुम्हारा विरोधी शैतान गरजने वाले सिंह के समान इस खोज में रहता है, कि किस को फाड़ खाए” (1 पतरस 5:8) 

इस प्रबल, चतुर, और कुटिल शत्रु का सामना करके, उसके चंगुल से लोगों को निकालकर उन्हें अनन्त विनाश से अनन्त जीवन में ला पाना किसी भी मनुष्य की सामर्थ्य के बस की बात नहीं है। इसीलिए प्रभु ने शिष्यों से कहा कि जब तक वे परमेश्वर पवित्र आत्मा की सामर्थ्य - उसका साथ, उसका मार्गदर्शन प्राप्त न कर लें, तब तक अपनी ही मानवीय बल-बुद्धि-सामर्थ्य के सहारे शैतान से लोहा लेने न निकलें। प्रभु जानता था कि यदि वे अपनी ही सामर्थ्य से शैतान का सामना करने के प्रयास करेंगे तो मुँह की खाएंगे, और परास्त तथा निराश होकर पीछे हट जाएंगे, असफल रहेंगे; इसके लिए उन्हें शैतान से अधिक सामर्थी की सहायता चाहिए होगी, और वह परमेश्वर स्वयं था, जो परमेश्वर पवित्र आत्मा उनके अंदर रहेगा, और उन्हें सक्षम तथा उपयोगी करेगा, यदि वे उसके आज्ञाकारी और समर्पित रहें।  

प्रभु परमेश्वर ने सभी मसीही विश्वासियों के लिए सेवकाई रखी हुई है (इफिसियों 2:10), और परमेश्वर पवित्र आत्मा उन्हें उस सेवकाई के लिए उपयुक्त वरदान भी देता है (1 कुरिन्थियों 12:4-11), और उनकी सहायता तथा मार्गदर्शन भी करता है। यदि आप मसीही विश्वासी हैं, तो क्या आपने अपनी सेवकाई को पहचाना है, प्रभु परमेश्वर से उसके विषय प्रार्थना की और जानकारी ली है, परमेश्वर पवित्र आत्मा द्वारा आपको उसके लिए दिए गए वरदानों को जाना और उनका उपयोग करना सीखा है? यदि नहीं, तो यह करना अपनी प्राथमिकता बनाएं, और अन्य सभी सेवकाई के कार्योंको छोड़कर प्रभु द्वारा निर्धारित अपनी सेवकाई को पूरा करने में प्रयासरत हो जाएं। क्योंकि आपकी आशीष और अनन्तकाल के प्रतिफल उसी से हैं; आपकी वही सेवकाई परमेश्वर को स्वीकार्य होगी, और सफल रहेगी

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी उसके पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी। 

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • यिर्मयाह 27-29
  • तीतुस