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गुरुवार, 18 नवंबर 2021

मसीही सेवकाई में पवित्र आत्मा की भूमिका - 18

      

मसीही सेवकाई में पवित्र आत्मा की कार्य-विधि (यूहन्ना 16:14-15) - 4.

 हम मसीही सेवकाई में परमेश्वर पवित्र आत्मा की कार्य-विधि का यूहन्ना 16 अध्याय में प्रभु यीशु द्वारा कही गई बातों के आधार पर अध्ययन कर रहे हैं। पिछले लेख में हमने देखा था कि पवित्र आत्मा केवल सत्य का मार्ग, अर्थात परमेश्वर के वचन और प्रभु यीशु की बातों में से बताता है; वह अपनी ओर से कुछ नया नहीं कहता है, वरन प्रभु की जो बातें सुनता है वही कहता है; और मसीही विश्वासियों को आने वाली बातों तथा परिस्थितियों के लिए सचेत और अवगत रखता है। प्रभु द्वारा मसीही विश्वासी के जीवन में परमेश्वर पवित्र आत्मा की यह कार्य-विधि उससे कितनी भिन्न है, सीधे से तुलना (contrast) में है, जो आज बहुत से मत, समुदाय, और डिनॉमिनेशन परमेश्वर पवित्र आत्मा और उनके कार्यों के बारे में कहते तथा सिखाते हैं; पवित्र आत्मा के नाम में वे जैसा व्यवहार दिखाते हैं, और फिर उस शिक्षा और व्यवहार के आधार पर यह प्रमाणित करने के प्रयास करते हैं कि यह सभी उन्हें पवित्र आत्मा की ओर से मिला है, तथा औरों को भी इन्हीं शिक्षाओं और व्यवहार का इच्छुक रहना चाहिए, उसका प्रयास करना चाहिए। यह सब हमारे सामने एक सीधा प्रश्न उत्पन्न करता है - हमें किस की बात माननी चाहिए - जो प्रभु यीशु द्वारा परमेश्वर के वचन में दी गई है, या वह जो आज प्रभु यीशु से लगभग 2000 वर्ष बाद मनुष्यों ने कहना और दिखाना आरंभ किया है, जो चाहे विचित्र-अद्भुत-आकर्षक-आश्चर्यकर्मों वाला तो है, किन्तु परमेश्वर के वचन की बहुत सी शिक्षाओं के साथ पूर्णतः मेल नहीं खाता है, बल्कि विरोधाभास (contradiction) उत्पन्न करता है

यूहन्ना 16:12-13 की बात को आगे बढ़ाते हुए, उनकी पुष्टि में प्रभु यीशु ने पद 14-15 में वैसी ही बात फिर से कही। मसीही सेवकाई के लिए मसीही विश्वासी में होकर परमेश्वर पवित्र आत्मा की कार्य-विधि के बारे में प्रभु यीशु मसीह ने आगे कहा:वह मेरी महिमा करेगा, क्योंकि वह मेरी बातों में से ले कर तुम्हें बताएगा। जो कुछ पिता का है, वह सब मेरा है; इसलिये मैं ने कहा, कि वह मेरी बातों में से ले कर तुम्हें बताएगा” (यूहन्ना 16:14-15)। आज पवित्र आत्मा के नाम से फैलाई जाने वाली गलत शिक्षाओं को सिखाने और फैलाने वाले बहुत दृढ़ता से यह दावा करते हैं कि उन्हें यह सब पवित्र आत्मा की ओर से मिला है, और वे इसके लिए पवित्र आत्मा की महिमा करने पर बल देते हैं, तथा लोगों को बताते और सिखाते हैं कि वे भी पवित्र आत्मा से उनके समान बातों तथा व्यवहार को प्राप्त करने की माँग करें। किन्तु उनके जीवन, व्यवहार, और शिक्षाओं में, पवित्र आत्मा के नाम के उपयोग की तुलना में, प्रभु यीशु का नाम और उनकी शिक्षाओं तथा कार्यों का उल्लेख और महत्व बहुत कम होता है। उनका मुख्य प्रयास और शिक्षा व्यक्ति द्वारा अपने स्वयं के लिए चमत्कारिक तथा लोगों को अद्भुत बातों से प्रभावित कर के अपनी ही ओर आकर्षित करने वाले, और आम लोगों पर अपनी धाक जमाने वाले वरदान पवित्र आत्मा से प्राप्त करने के प्रति होता है। किन्तु इसकी तुलना में यहाँ प्रभु यीशु ने दो ऐसी बातें शिष्यों को सिखाई हैं जो करिश्माई वरदानों और व्यवहार की बातों को मानने और मांगने वाले लोगों की शिक्षाओं के बिलकुल विपरीत हैं। 

पवित्र आत्मा की कार्य-विधि के विषय जो पहली बात प्रभु ने 14 पद में कही वह हैवह मेरी महिमा करेगा”! ये लोग पवित्र आत्मा की महिमा करने पर इतना बल देते हैं, और अपनी इस बात को पवित्र आत्मा से सीखा हुआ बताते है; जबकि प्रभु यीशु मसीह साफ, सीधे शब्दों में, बिलकुल स्पष्ट, दो-टूक कह रहे हैं कि पवित्र आत्मा अपनी नहीं वरन प्रभु की महिमा करेगा! हम देख चुके हैं कि परमेश्वर पवित्र आत्मा सत्य का आत्मा है, वह कभी कुछ असत्य नहीं कहता या सिखाता है। तो फिर तो प्रभु की बात सत्य है, और उन लोगों की गलत है, और यह संभव नहीं है कि परमेश्वर पवित्र आत्मा ने उन लोगों को कुछ असत्य सिखाया है, प्रचार करने के लिए कहा है। प्रभु की यह बात हमारे सामने मसीही विश्वास की शिक्षाओं का आँकलन करने का एक और मापदंड रखती है - मसीही विश्वास और सेवकाई से संबंधित जो भी शिक्षा अथवा व्यवहार प्रभु यीशु मसीह पर केंद्रित न हो, प्रभु यीशु को महिमा न दे; बल्कि प्रभु यीशु और उनके क्रूस पर दिए गए बलिदान, पुनरुत्थान, और सुसमाचार की बजाए किसी अन्य की ओर ध्यान आकर्षित करे, उसे महिमित करने का प्रयास करे, वह परमेश्वर प्रभु की ओर से नहीं है; चाहे उस महिमा का विषय परमेश्वर पवित्र आत्मा ही क्यों न हो। पवित्र आत्मा का कार्य प्रभु यीशु की महिमा करना है; वह अपनी महिमा नहीं करवाता है, और न ही ऐसी कोई शिक्षा या व्यवहार सिखाता है जो प्रभु यीशु की महिमा करने पर ध्यान न दे, अथवा न करे।

पवित्र आत्मा की कार्य-विधि के बारे में प्रभु यीशु ने जो दूसरी बात 14 और 15 में कही, उसे वे पहले भी यूहन्ना 14:26 तथा 16:13 में कह चुके हैं, और यहाँ इन दोनों पदों में फिर से दोहराया है। प्रभु द्वारा इस बात को बारंबार दोहराया जाना इस बात का सूचक है कि प्रभु की दृष्टि में यह बात कितनी महत्वपूर्ण है, और शिष्यों के ध्यान रखने के लिए कितनी आवश्यक है। प्रभु ने कहा, “वह मेरी बातों में से ले कर तुम्हें बताएगा”; जिसे हम दूसरे शब्दों में पहले भी देख चुके हैं - परमेश्वर पवित्र आत्मा अपनी ओर से कुछ नया किसी मसीही विश्वासी को नहीं कहता, सिखाता, या करवाता है। मसीही सेवकाई के लिए, मसीही विश्वासी के जीवन में, पवित्र आत्मा की शिक्षाओं और व्यवहार का दायरा प्रभु यीशु मसीह द्वारा दी गई शिक्षाओं तक ही सीमित है। फिर चाहे कोई भी कुछ भी क्यों न कहता रहे, कोई भी अद्भुत बातप्रमाणके रूप में क्यों न दिखाता रहे, प्रभु यीशु द्वारा वचन में दे दी गई शिक्षाओं और बातों से अधिक या बाहर जो कुछ भी है, वह न तो प्रभु यीशु की ओर से है, और न पवित्र आत्मा की ओर से। इसलिए प्रभु की शिक्षाओं से अतिरिक्त और बाहर की किसी भी शिक्षा या व्यवहार को स्वीकार नहीं करना है - गलत शिक्षाओं को पहचानने का यह एक और मापदंड प्रभु यीशु ने अपने शिष्यों को यहाँ दिया है। 

यदि आप मसीही विश्वासी हैं, तो कुछ रुक कर अपने विश्वास के आधार का और जिन शिक्षाओं को आप मानते और बताते हैं, उनके बारे में गंभीरता से विचार और आँकलन कर लीजिए। क्या आपके विश्वास का आधार प्रभु यीशु मसीह और उसका वचन है, या सांसारिक तथा शारीरिक लाभ और चंगाई, अद्भुत आश्चर्यकर्म, विचित्र व्यवहार, और करिश्माई बातों द्वारा दिखाया गया आकर्षण है? जिन शिक्षाओं और बातों को आप मानते हैं, जिनके अनुसार व्यवहार करते हैं क्या वे परमेश्वर के वचन से हैं, या अपनी ही अलग व्याख्या के द्वारा किसी मत-समुदाय-डिनॉमिनेशन द्वारा दी जाने वाली ऐसी शिक्षाएं हैं जो परमेश्वर के वचन से पूर्णतः मेल नहीं कहती हैं? क्या आपके जीवन, व्यवहार, और गवाही से प्रभु यीशु के नाम को महिमा मिलती है; और क्या पापों से पश्चाताप तथा प्रभु यीशु में विश्वास द्वारा उद्धार के सुसमाचार को प्राथमिकता मिलती है, या फिर आप सांसारिक तथा शारीरिक लाभों, चंगाइयों, करिश्माई व्यवहार आदि की लालसाओं में ही बंधे हुए पड़े हैं? अभी, समय रहते, अपने आप को तथा अपने मसीही विश्वासी होने को परमेश्वर के वचन के अनुसार जाँच कर सही कर लीजिए।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो थोड़ा थम कर विचार कीजिए, क्या मसीही विश्वास के अतिरिक्त आपको कहीं और यह अद्भुत और विलक्षण आशीषों से भरा सौभाग्य प्राप्त होगा, कि आप जैसी भी दशा में हैं, उसी में परमेश्वर आपको स्वीकार कर लेगा, और सदा काल के लिए अपना बना लेगा। साथ ही क्या किसी पापी मनुष्य के लिए कहीं और यह संभव है कि परमेश्वर स्वयं आप में आ कर सर्वदा के लिए निवास करे; आपको धर्मी बनाए; आपको अपना वचन सिखाए; और आपको शैतान की युक्तियों और हमलों से सुरक्षित रखने के सभी प्रयोजन करके दे? और फिर, आप में होकर अपने आप को तथा अपनी धार्मिकता को औरों पर प्रकट करे, आपको खरा आँकलन करने और सच्चा न्याय करने वाला बनाए; तथा आप में होकर पाप में भटके लोगों को उद्धार और अनन्त जीवन प्रदान करने के अपने अद्भुत कार्य करे, जिससे अंततः आपको ही अपनी ईश्वरीय आशीषों से भर सके? इसलिए अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। स्वेच्छा और सच्चे मन से अपने पापों के लिए पश्चाताप करके, उनके लिए प्रभु से क्षमा माँगकर, अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आप अपने पापों के अंगीकार और पश्चाताप करके, प्रभु यीशु से समर्पण की प्रार्थना कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए मेरे सभी पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।प्रभु की शिष्यता तथा मन परिवर्तन के लिए सच्चे पश्चाताप और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

   

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • यहेजकेल 8-10 
  • इब्रानियों 13