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बुधवार, 1 दिसंबर 2021

मसीही सेवकाई, पवित्र आत्मा, और बपतिस्मा - 8

 

पवित्र आत्मा का बपतिस्मा – निहितार्थ भाग 1


परमेश्वर पवित्र आत्मा के विषय फैलाई जा रही गलत शिक्षाओं के मसीही विश्वासी के जीवन और उसकी सेवकाई पर आने वाले दुष्प्रभावों को हमने पिछले लेखों में अध्ययन किया है। इस शृंखला के निष्कर्ष पर पहुँचने पर आज और कल हम इन गलत शिक्षाओं में शैतान द्वारा छिपाए गए निहितार्थों को देखेंगे। 


जैसे हम पहले भी देख चुके हैं, पवित्र आत्मा कोई वस्तु नहीं है जिसे विभाजित करके टुकड़ों में या अंश-अंश करके दिया जा सके। वह ईश्वरीय व्यक्तित्व है, और जब भी, जिसे भी दिया जाता है, उसमें वह अपनी संपूर्णता में ही वास करता है, टुकड़ों में नहीं। इसलिए जब मसीही विश्वासियों को पवित्र आत्मा एक बार मिल जाता है, और यदि पवित्र आत्मा का बपतिस्मा यदि कोई अलग अनुभव है, तो फिर उस संपूर्णता में मिले हुए परमेश्वर पवित्र आत्मा के विश्वासी में विद्यमान होने के बाद, उसके उद्धार के लिए अपने पुत्र को बलिदान कर देने के बाद, उद्धार पाने पर उसे अपनी संतान बनाकर स्वर्ग का वारिस बना लेने के बाद, उसे अब परमेश्वर की ओर से और क्या दिया जाना शेष रह गया है? 


इन गलत शिक्षाओं के अनुसार पवित्र आत्मा तो फिर परमेश्वर नहीं रहा वरन मनुष्य के हाथों की कठपुतली हो गया। और क्योंकि त्रिएक परमेश्वर के तीनों स्वरूप – परमेश्वर पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा समान और एक ही हैं, इसलिए या तो फिर शेष दोनों स्वरूप भी उस कठपुतली के समान हो गए, अन्यथा पवित्र त्रिएक परमेश्वर में विभाजन है, तीनों समान और एक नहीं हैं। पवित्र आत्मा से संबंधित ‘पवित्र आत्मा का बपतिस्मा’ की इस गलत शिक्षा को स्वीकार करने का अर्थ है, मसीह की देह, उसकी कलीसिया को दो भागों में विभाजित करना – वे जिन के पास यह पवित्र आत्मा की भरपूरी या परिपूर्णता ‘है’, और वे जिन के पास यह ‘नहीं है।’ और फिर इस से, जिनके पास ‘है’ उन में ‘उच्च श्रेणी का होने,’ ‘बेहतर क्षमता और कार्य-कुशलता वाले होने,’ और ‘परमेश्वर से आशीष और प्रतिफल पाने पर अधिक दावा रखने’ की भावनाओं के द्वारा उनमें उनकी आत्मिकता के बारे में, उनके औरों से अधिक श्रेष्ठ और परमेश्वर के लिए उपयोगी होने के बारे में घमंड उत्पन्न करना। तथा जिनके पास ‘नहीं है’ उन्हें इस ‘विशिष्ट विश्वासियों’ के समूह में सम्मिलित होने और उस समूह के लाभ अर्जित कर पाने के निष्फल व्यर्थ प्रयासों को करते रहने के चक्करों में फंसा देना। दोनों ही स्थितियों में, अंततः परिणाम एक ही है – वास्तविक मसीही परिपक्वता और प्रभु के लिए प्रभावी होने में गिरावट आना, परस्पर ऊँच-नीच, अनबन, और कलह की स्थिति उत्पन्न होना (1 कुरिन्थियों 3:1-3)। जिनके पास ‘है’ उन में इस के कारण उठने वाले घमंड, वर्चस्व, तथा औरों पर अधिकार रखने की भावनाओं तथा घमंड के कारण; और जिनके पास ‘नहीं है’ उन्हें एक पूर्णतः अनावश्यक और अनुचित कार्य में समय गंवाने और व्यर्थ प्रयास करने में लगा देने के द्वारा, मसीही विश्वास, परमेश्वर के वचन, और प्रभु के लिए प्रभावी होने में बढ़ने से बाधित कर देना।


इस के अतिरिक्त, इस एक छोटी सी और अ-हानिकारक प्रतीत होने वाली बात से संबंधित गलत शिक्षा में शैतान ने एक बार फिर से परमेश्वर के विरुद्ध बहुत बड़ा षड्यंत्र लपेट कर ‘भक्ति की आदरणीय बात’ के रूप छिपा कर हम में घुसा दिया है। और हमारा इसलिए इस बात के प्रति सचेत होना, उस की सही समझ रखना, इस गलत शिक्षा से निकलना, और बच के रहना अनिवार्य है (2 कुरिन्थियों 2:11)। पवित्र आत्मा प्राप्त कर लेने के पश्चात, उस की प्रभावी उपस्थिति एवं सामर्थ्य को बढ़ाने के लिए बाद में किसी अन्य प्रक्रिया के द्वारा पवित्र आत्मा से भर जाने अथवा ‘परिपूर्ण’ होने के एक भिन्न अनुभव का संभव होने की बात कहने से तो यही अर्थ निकलता है कि पवित्र आत्मा को बांटा जा सकता है, उसे घटाया या बढ़ाया जा सकता है, उसे किस्तों या टुकड़ों में लिया या दिया जा सकता है, मनुष्य पवित्र आत्मा की उपलब्ध ‘मात्रा’ और गुणवत्ता’ को प्रभावित तथा नियंत्रित कर सकता है; इत्यादि।


ये सभी बातें न केवल वचन के विरुद्ध हैं, वरन पवित्र आत्मा के त्रिएक परमेश्वर का स्वरूप होने का इनकार करने का प्रयास करती हैं, जिसका अर्थ हो जाता है कि पवित्र त्रिएक परमेश्वर का सिद्धांत झूठा है, और फिर इसलिए परमेश्वर का वचन जो कि यह सिद्धांत सिखाता है, वह भी झूठा ठहरा। यह गलत शिक्षा पवित्र आत्मा को पवित्र त्रिएक परमेश्वर के एक व्यक्ति के स्थान पर, एक वस्तु बना देती है जिसे काटा, छांटा, और बांटा जा सकता है और फिर मनुष्यों के प्रयासों द्वारा दिया या लिया जा सकता है। और सब से अनुचित यह कि यह शिक्षा, परमेश्वर पवित्र आत्मा को मनुष्य के हाथों का खिलौना बना देती हैं, जिसे मनुष्य अपने व्यवहार और आचरण, अर्थात अपने कर्मों के द्वारा निर्धारित और नियंत्रित कर सकता है कि पवित्र आत्मा कब, किसे, कैसे, और कितना दिया जाएगा, और फिर वह उस मनुष्य में क्या और कैसे कार्य करेगा!


निष्कर्ष यह कि इस गलत शिक्षा को स्वीकार करने का अर्थ है कि परमेश्वर का वचन संपूर्ण एवं पूर्णतः सत्य नहीं है - उसमें मनुष्यों द्वारा जोड़ा या घटाया जा सकता है, उसमें फेर-बदल की जा सकती है; तथा यह भी कि परमेश्वर मनुष्य की मुठ्ठी में किया जा सकता है; और मनुष्य उसे अपनी इच्छानुसार नियंत्रित और उपयोग कर सकता है! परमेश्वर इस घोर विधर्म के विचार से भी हमारी रक्षा करे, हमें इस के घातक फरेब में कभी भी न पड़ने दे। ये सभी गलत शिक्षाएं परमेश्वर और उसके पवित्र वचन को झुठलाने और उसे हमारे जीवनों में अप्रभावी करने के लिए बड़ी चतुराई तथा परोक्ष रीति से किए गए शैतान के हमले हैं; हमारे लिए इन शैतानी षड्यंत्रों को ध्यान दे कर समझना और उन से दूर रहना, और शैतान के इन छलावों में फँसने से बच कर रहना बहुत अनिवार्य है।


परमेश्वर ने हम मसीही विश्वासियों को अपनी पवित्र आत्मा के द्वारा, हमारे उद्धार पाने के साथ ही मसीही जीवन एवं सेवकाई के लिए आवश्यक सामर्थ्य तथा अपने वचन के द्वारा उपयुक्त मार्गदर्शन दे रखा है; अब यह हम पर है कि हम उसका सदुपयोग करें और प्रभु के योग्य गवाह बनें।


यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी। 



एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • यहेजकेल 40-41   

  • 2 पतरस 3