मसीही जीवन, कार्यशील जीवन
मसीही जीवन और
सेवकाई से संबंधित बातों के अध्ययन की इस ज़ारी शृंखला में हम मसीही विश्वास,
मसीही जीवन, मसीही सेवकाई, और मसीही सेवकाई में परमेश्वर पवित्र आत्मा की भूमिका के बारे में देख
चुके हैं। पिछले कुछ लेखों में हम परमेश्वर पवित्र आत्मा और उनके कार्यों से संबंधित सामान्यतः सिखाई और प्रचार की
जाने वाली गलत शिक्षाओं के बारे में देख रहे थे, कि बाइबल की वास्तविक शिक्षाएं क्या
हैं, और इन्हें गलत रूप और अर्थ के साथ बताने सिखाने वालों
की गलतियों को कैसे पहचाना जाए, और उनसे बच कर रहा जाए। आज
से हम एक और संबंधित बात के बारे में अध्ययन करना आरंभ करेंगे - जो मसीही सेवकाई
और जीवन के लिए भी आवश्यक है, और जिसकी गलत समझ के कारण
परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित गलत शिक्षाएं बताने और फैलाने वाले इसके विषय भी
बहुत से गलत धारणाएं तथा शिक्षाएं बताते, सिखाते, और फैलाते रहते हैं। और इसलिए इनके विषय
भी परमेश्वर के वचन की वास्तविकता को जानना एवं समझना अनिवार्य है ताकि गलतियों और
व्यर्थ बातों से बचा जा सके, वचन की सच्चाइयों के साथ चला जा सके।
हमारे प्रभु
परमेश्वर का एक बहुत बड़ा गुण है कि वह सदा अपनी सृष्टि संचालन और प्रबंधन में सक्रिय रहता है, उसकी देखभाल में और संबंधित कार्यों में जुटा रहता है। प्रभु यीशु ने
कहा, “इस पर यीशु ने उन से
कहा, कि मेरा पिता अब तक काम करता है, और
मैं भी काम करता हूं” (यूहन्ना 5:17)। आज भी हमारा परमेश्वर पिता और हमारा उद्धारकर्ता परमेश्वर पुत्र हमारे
लिए कार्य कर रहे हैं; और
परमेश्वर पवित्र आत्मा हम में होकर संसार में कार्य कर रहा है। हमारा
परमेश्वर पिता हम पर अपनी दृष्टि लगाए रखता है (2 इतिहास 16:9),
अपनी आँख की पुतली के समान हमारी रखवाली करता है (व्यवस्थाविवरण 32:10;
ज़कर्याह 2:8), हमारे मन और विचार की बातों को
देखता और जाँचता रहता है (1 इतिहास 28:9), हमारी प्रार्थनाओं को सुनता और अपनी योजनाओं के अनुसार उनका उचित उत्तर
देने के लिए कार्य करता है (भजन 143:1), इत्यादि। हमारा
उद्धारकर्ता परमेश्वर पुत्र, प्रभु यीशु पिता के सामने हमारा
सहायक है (1 यूहन्ना 2:1), हमारे लिए
विनती और प्रार्थना करता है (यूहन्ना 17:9, 11, 15; रोमियों 8:34),
शैतान के दोषारोपण से हमें बचाए रखता है (प्रकाशितवाक्य 12:10),
हमारे लिए स्थान तैयार कर रहा है, हमें लेने
आने की तैयारी में लगा है (यूहन्ना 14:3), इत्यादि। कार्यशील रहना न केवल परमेश्वर का एक गुण है, वरन उसने मनुष्य में जिसे उसने अपने स्वरूप में
बनाया है, उसमें भी अपने समान कार्यशील होने का गुण डाला है। सृष्टि के आरंभ से ही कार्यशील रहने से
संबंधित परमेश्वर के इस सिद्धांत को हम लागू देखते हैं। परमेश्वर ने आदम के लिए
अच्छे फलों के वृक्षों की अदन की वाटिका लगा कर दी, किन्तु उस वाटिका की देखभाल करने की
ज़िम्मेदारी परमेश्वर ने आदम को सौंपी (उत्पत्ति 2:8, 9, 15)।
यद्यपि आदम अकेला था, किन्तु परमेश्वर ने उसे निठल्ला नहीं रहने दिया, उसे वाटिका में काम पर लगाया।
इसी सिद्धांत के अनुसार, पवित्र आत्मा की अगुवाई में प्रेरित
पौलुस ने लिखा, “और जब हम तुम्हारे यहां थे, तब भी यह आज्ञा तुम्हें देते थे, कि यदि कोई काम
करना न चाहे, तो खाने भी न पाए। हम सुनते हैं, कि कितने लोग तुम्हारे बीच में
अनुचित चाल चलते हैं; और कुछ काम नहीं करते, पर औरों के काम में हाथ डाला करते हैं। ऐसों को हम प्रभु यीशु मसीह में
आज्ञा देते और समझाते हैं, कि चुपचाप काम कर के अपनी ही
रोटी खाया करें” (2 थिस्स्लुनीकियों 3:10-12)।
और कार्यशील
रहने से संबंधित यही सिद्धांत उद्धार पाने के बाद के मसीही जीवन एवं सेवकाई पर भी
इसी प्रकार से लागू है; परमेश्वर ने उद्धार पाए हुए अपने
लोगों के लिए पहले से ही कार्य निर्धारित करके तैयार रखे हुए हैं, “क्योंकि हम उसके बनाए हुए हैं; और मसीह यीशु में उन
भले कामों के लिये सृजे गए जिन्हें परमेश्वर ने पहिले से हमारे करने के लिये तैयार
किया” (इफिसियों 2:10)। और जब
परमेश्वर ने ज़िम्मेदारी दी है, तो फिर हम सभी से उस
ज़िम्मेदारी के निर्वाह का हिसाब भी लेगा (मत्ती 16:27; 1 कुरिन्थियों
3:13-15; 4:5; 2 कुरिन्थियों 5:10; 1 पतरस
4:17)। जो काम परमेश्वर ने हमारे लिए निर्धारित किए हैं,
हम उन्हें ठीक से करने पाएं, इसके लिए
परमेश्वर ने हमारे लिए उपाय भी किया है - हम मसीही विश्वासियों में निवास करने
वाला पवित्र आत्मा हमारा मार्गदर्शन और सहायता करता है; और
साथ ही परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रत्येक मसीही विश्वासी की सेवकाई के अनुसार उसे
उपयुक्त वरदान भी दिए हैं, जिनकी सहायता से हम अपनी इस
ज़िम्मेदारी को ठीक से निभा सकें, पूरा कर सकें (1 कुरिन्थियों 12:11)। साथ ही इन आत्मिक वरदानों से
संबंधित कुछ बातें भी हैं, जिनके अनुसार इनका प्रयोग किया
जाना है। आगे हम इन बातों और वरदानों के बारे में कुछ और विस्तार से देखेंगे।
यदि आप एक
मसीही विश्वासी हैं तो क्या आपको यह पता है कि परमेश्वर ने आपके लिए कौन से भले
कार्य निर्धारित करके रखे हुए हैं, और क्या आप उन कार्यों को
उसकी इच्छा के अनुसार पूरा कर रहे हैं? कहीं आप अपनी ही
इच्छा और सुविधा के अनुसार प्रभु यीशु के नाम में कुछ भी करने के द्वारा यह तो
नहीं समझ रहे हैं कि आप ने परमेश्वर के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी का सही निर्वाह कर
लिया है? यदि आपको अभी भी उस कार्य का पता नहीं है जो
परमेश्वर ने आपके लिए नियुक्त किया है, तो आपको प्रार्थना
में परमेश्वर के सम्मुख इस बात को रखना चाहिए और उससे अपनी उस सेवकाई की पहचान
माँगनी चाहिए, जो वह चाहता है कि आप उसके लिए करें। आपकी
आशीष उसी सेवकाई के निर्वाह से है, अन्य कुछ करने से नहीं।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक
स्वीकार नहीं किया है, तो
अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के
पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की
आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए
- उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से
प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ
ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस
प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद
करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया,
उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी
उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को
क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और
मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।”
सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा
भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- यहेजकेल
45-46
- 1 यूहन्ना 2