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सोमवार, 16 अगस्त 2021

परमेश्वर का वचन – बाइबल – और विज्ञान – 4


            सृष्टि और अंतरिक्ष से संबंधित बातों को बाइबल में से देखने के बाद, पृथ्वी से संबंधित बाइबल में लिखी कुछ वैज्ञानिक बातों को देखते हैं, जिन्हें विज्ञान के जानने से पहले ही परमेश्वर ने अपने वचन में लिखवा दिया था। साथ ही हम यह भी देखेंगे कि पृथ्वी को लेकर जो बाइबल के बारे में प्रचलित गलत धारणाएं हैं, वे निराधार और झूठ हैं; बाइबल ऐसा कुछ नहीं कहती है जैसा उसके विषय गलत फैलाया जाता रहा है।  

            पृथ्वी पर जीवन अनायास अथवा आकस्मिक ही नहीं पनप गया। परमेश्वर ने पृथ्वी को एक बहुत योजनाबद्ध तरीके से बनाया है। पृथ्वी की भीतरी, सतही, वायुमंडलीय, आकाश, और अंतरिक्ष में स्थिति तथा पृथ्वी पर इन सब बातों के प्रभाव बहुत ही बारीकी से रचे और स्थिर किए गए हैं, जिससे जीवन, विशेषकर मानवीय जीवन इस पृथ्वी पर संभव हो सके। पृथ्वी की संरचना और सूर्य से उसकी दूरी, तथा उसकी धुरी का झुकाव जीवन को बनाए रखने के लिए उपयुक्त है। यदि सूर्य से दूरी बढ़ जाए, तो पृथ्वी पर ठंड बहुत हो जाएगी,  तथा जल जम जाएगा, जिससे जीवन संभव नहीं रहेगा; यदि पृथ्वी की दूरी सूर्य के कुछ निकट हो जाए, तो गर्मी बहुत बढ़ जाएगी और पानी भाप कर उड़ जाएगा, और जीवन संभव नहीं होगा; सूर्य से इस उपयुक्त दूरी के क्षेत्र को “Goldilock’s Zone” या “वास योग्य क्षेत्र कहते हैं (Goldilock’s Zone : https://hi.wikipedia.org/wiki/वासयोग्य_क्षेत्र ;अंग्रेजी में यह विवरण अधिक विस्तृत और रोचक है)। पृथ्वी की संरचना और जीवन के योग्य होने के लिए विशेषताओं का वर्णन, जिसे वैज्ञानिकों ने पिछले कुछ समयों से समझना आरंभ किया है, बहुत बड़ा है (Earth: https://hi.wikipedia.org/wiki/पृथ्वी)। पृथ्वी की धुरी का झुकाव, पृथ्वी पर मौसम उत्पन्न करता है, जिससे जीव-जन्तुओं  और वनस्पतियों  की विविधता तथा जीवन के लिए सहायता, साधन और उपयुक्त वातावरण बना रहता है। इसी प्रकार पृथ्वी की भीतरी रचना, उसकी सतह की धरती की गतिविधियां, उसके चारों ओर का वातावरण, उसके चारों ओर बना हुआ उसका चुंबकीय क्षेत्र, चंद्रमा तथा अन्य ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण बल के द्वारा उसे मिलने वाली स्थिरता तथा सुरक्षा, आदि भी उसे जीवन के लिए विशिष्ट और उपयुक्त बनाते हैं; क्योंकि ये बातें अन्य किसी गृह में नहीं पाई जाती हैं, इसलिए किसी भी अन्य गृह पर जीवन नहीं है।

            बाइबल में यशायाह नबी (सेवकाई का काल लगभग 700 ईस्वी पूर्व, या आज से लगभग 2700 वर्ष पूर्व) और यिर्मयाह नबी (सेवकाई का काल लगभग 600 ईस्वी पूर्व, या आज से लगभग 2600 वर्ष पूर्व) की पुस्तकों से हम कुछ पदों को देखेंगे जो यह प्रकट कर देते हैं कि पृथ्वी को परमेश्वर ने मनुष्य को बसाने के लिए बनाया था “क्योंकि यहोवा जो आकाश का सृजनहार है, वही परमेश्वर है; उसी ने पृथ्वी को रचा और बनाया, उसी ने उसको स्थिर भी किया; उसने उसे सुनसान रहने के लिये नहीं परन्तु बसने के लिये उसे रचा है। वही यों कहता है, मैं यहोवा हूं, मेरे सिवा दूसरा और कोई नहीं है” (यशायाह 45:18); और “अपने अपने स्वामी से यों कहो कि पृथ्वी को और पृथ्वी पर के मनुष्यों और पशुओं को अपनी बड़ी शक्ति और बढ़ाई हुई भुजा के द्वारा मैं ने बनाया, और जिस किसी को मैं चाहता हूँ उसी को मैं उन्हें दिया करता हूँ” (यिर्मयाह 27:5)। परमेश्वर द्वारा पृथ्वी को मनुष्यों के निवास के लिए बनाए जाने, उसे इस उद्देश्य के लिए स्थिर या उपयुक्त करने, और इसके लिए आकाश को उसके ऊपर 'तानने' के संदर्भ में बाइबल के कुछ अन्य पदों को भी देखिए: यशायाह 45:12; यिर्मयाह 10:12; 32:17; 51:15। यह सब तब लिखा गया जब न विज्ञान था, न खगोल-शास्त्र और खगोल-विद्या थी, और न ही आज के समान दूरबीन, उपकरण और कंप्यूटर थे जिनके द्वारा इन जटिल बातों का विश्लेषण और आँकलन किया जा सकता। किन्तु परमेश्वर ने अपने वचन बाइबल में यह आज से लगभग 2700 -2600 वर्ष पहले ही लिखवा दिया था कि उसने पृथ्वी की विशेष रीति से मनुष्य के निवास के लिए रचना की है; और उसे इस उद्देश्य के लिए स्थिर भी किया।

 

पृथ्वी से संबंधित कुछ अन्य बातें हैं:

            जबकि अन्य धर्म और मतों की पौराणिक कथाओं में पृथ्वी को किसी पशु अथवा मनुष्य द्वारा उठा कर रखा गया बताया गया है, बाइबल में अय्यूब की पुस्तक में, जो लगभग 2000 ईस्वी पूर्व अर्थात, आज से लगभग 4000 वर्ष पुरानी है, स्पष्ट लिखा है कि  पृथ्वी अंतरिक्ष के रिक्त स्थान में मुक्त लटकी हुई है: "वह उत्तर दिशा को निराधार फैलाए रहता है, और बिना टेक पृथ्वी को लटकाए रखता है" (अय्यूब 26:7)।

            जबकि प्रचलित विश्वास, और विज्ञान की भी धारणा यही थी कि पृथ्वी सपाट (flat) है, बाइबल में यशायाह नबी की पुस्तक में (आज से लगभग 2700 वर्ष पहले) लिखा गया था कि पृथ्वी गोलाकार है "यह वह है जो पृथ्वी के घेरे के ऊपर आकाशमण्डल पर विराजमान है; और पृथ्वी के रहने वाले टिड्डी के तुल्य है; जो आकाश को मलमल के समान फैलाता और ऐसा तान देता है जैसा रहने के लिये तम्बू ताना जाता है" (यशायाह 40:22)।

            आज से लगभग 2000 वर्ष पहले लिखी गई प्रभु यीशु मसीह की जीवनियों में इस बात का संकेत विद्यमान है कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है। प्रभु यीशु मसीह ने अंत के दिनों के एक विशिष्ट समय के संदर्भ में कहा था "मैं तुम से कहता हूं, उस रात दो मनुष्य एक खाट पर होंगे, एक ले लिया जाएगा, और दूसरा छोड़ दिया जाएगा। दो स्त्रियां एक साथ चक्की पीसती होंगी, एक ले ली जाएगी, और दूसरी छोड़ दी जाएगी। जन खेत में होंगे एक ले लिया जाएगा और दूसरा छोड़ा जाएगा" (लूका 17:34-36)। एक ही साथ, एक ही घटना के लिए पृथ्वी के अलग अलग स्थानों पर रात, प्रातः (चक्की पीसना), और दिन-दोपहर (खेत में कार्य करना) के उल्लेख देना एक गोलाकार और घूमती हुई पृथ्वी के द्वारा ही संभव है।

            विज्ञान को यह 1970 के दशक में पता चला, जब समुद्र की गहराइयों के दबाव को सहन कर पाने वाली पनडुब्बियाँ और सागर तल के गहरे अंधकार में रौश्नी डालकर चित्र लेने वाले कैमरे बन गए, कि गहरे सागर तल में पानी के सोते भी हैं, जिनसे निकलकर पानी सागरों के जल के साथ मिलता रहता है; केवल वर्षा और नदियां ही सागरों के जल का स्त्रोत नहीं हैं। किन्तु आज से लगभग 4000 वर्ष पुरानी अय्यूब की पुस्तक में यह बात परमेश्वर ने अय्यूब को बता रखी थी "क्या तू कभी समुद्र के सोतों तक पहुंचा है, या गहिरे सागर की थाह में कभी चला फिरा है?" (अय्यूब 38:16); उस समय पर जब अय्यूब या किसी अन्य के लिए सागर की अंधियारी गहराइयों में जाकर कुछ देख पाना कदापि संभव नहीं था।

            इसी प्रकार से इन गहरे सागरों की गहराइयों की खोज करने की क्षमता विकसित होने के बाद ही वैज्ञानिक यह भी जानने पाए के सागर तल में विशाल पर्वत तथा गहरे खाइयाँ भी हैं। किन्तु लगभग 750 ईस्वी पूर्व, अर्थात आज से लगभग 2750 वर्ष पहले लिखी गई योना नबी की पुस्तक में सागर के अंदर के पर्वत और उन पहाड़ों की 'जड़', उनकी भूमि के अंदर 'गड़हे', अर्थात सागर तल की खाइयों का उल्लेख है  "मैं जल से यहां तक घिरा हुआ था कि मेरे प्राण निकले जाते थे; गहरा सागर मेरे चारों ओर था, और मेरे सिर में सिवार लिपटा हुआ था। मैं पहाड़ों की जड़ तक पहुंच गया था; मैं सदा के लिये भूमि में बन्द हो गया था; तौभी हे मेरे परमेश्वर यहोवा, तू ने मेरे प्राणों को गड़हे में से उठाया है" (योना 2:5-6)।

            इस अद्भुत और विलक्षण पृथ्वी को अद्भुत और विलक्षण योजनाबद्ध रीति से रच कर, उस पर रहने के लिए आपकी भी रचना करने वाला, प्रेमी परमेश्वर है। उसे आपकी लालसा है, आप चाहे जैसे भी हों – भले-बुरे, अमीर-गरीब, शिक्षित-अशिक्षित, किसी भी जाति, समाज, रंग, देश, धर्म के मानने वाले या न मानने वाले, या परमेश्वर को न भी मानने वाले क्यों न हों, फिर भी उसे आप से प्रेम है, आपके जीवन की कोई भी बात या बुराई उसकी क्षमा की सीमा से बाहर नहीं है। चाहे आप अपने आप को कितना भी क्षमा के अयोग्य क्यों न समझते हों, वह तब भी आप से प्रेम करता है, आपको अपने साथ लेना चाहता है - यदि आप आने को तैयार हैं तो!। आपको केवल स्वेच्छा और सच्चे मन से अपने पापों को मानते हुए, उससे क्षमा माँगनी है, और अपना जीवन उसे समर्पित करना है। स्वेच्छा और सच्चे मन से की गई एक छोटी प्रार्थना, "हे  प्रभु यीशु मेरे पाप क्षमा कर, और मुझे अपनी शरण में लेकर अपनी आज्ञाकारी संतान बना, मुझे मेरे पापों से मुक्त करके अपने लिए उपयोगी जन बना" आपको अभी से लेकर अनन्तकाल के लिए परमेश्वर की संतान होकर उसके साथ स्वर्ग में निवास करने का आदर प्रदान कर देगी। क्या आप यह निर्णय करेंगे?

 

बाइबल पाठ: भजन 94:1-11

भजन 94:1 हे यहोवा, हे पलटा लेने वाले ईश्वर, हे पलटा लेने वाले ईश्वर, अपना तेज दिखा!

भजन 94:2 हे पृथ्वी के न्यायी उठ; और घमण्डियों को बदला दे!

भजन 94:3 हे यहोवा, दुष्ट लोग कब तक, दुष्ट लोग कब तक डींग मारते रहेंगे?

भजन 94:4 वे बकते और ढिठाई की बातें बोलते हैं, सब अनर्थकारी बड़ाई मारते हैं।

भजन 94:5 हे यहोवा, वे तेरी प्रजा को पीस डालते हैं, वे तेरे निज भाग को दु:ख देते हैं।

भजन 94:6 वे विधवा और परदेशी का घात करते, और अनाथों को मार डालते हैं;

भजन 94:7 और कहते हैं, कि याह न देखेगा, याकूब का परमेश्वर विचार न करेगा।।

भजन 94:8 तुम जो प्रजा में पशु सरीखे हो, विचार करो; और हे मूर्खों तुम कब तक बुद्धिमान हो जाओगे?

भजन 94:9 जिसने कान दिया, क्या वह आप नहीं सुनता? जिसने आंख रची, क्या वह आप नहीं देखता?

भजन 94:10 जो जाति जाति को ताड़ना देता, और मनुष्य को ज्ञान सिखाता है, क्या वह न समझाएगा?

भजन 94:11 यहोवा मनुष्य की कल्पनाओं को तो जानता है कि वे मिथ्या हैं।

 

एक साल में बाइबल: 

  • भजन 94-96
  • रोमियों 15:14-33