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सोमवार, 1 नवंबर 2021

मसीही सेवकाई में पवित्र आत्मा की भूमिका - 1

 

परिचय 

            परमेश्वर के वचन बाइबल के नए नियम खण्ड की प्रभु यीशु की जीवनी और कार्यों के वर्णन वाली पहली चार सुसमाचारों की पुस्तकों के बाद, पाँचवीं पुस्तक का नाम हैप्रेरितों के काम। प्रेरितों के काम मसीही विश्वासियों की प्रथम मण्डली, और उस प्रारंभिक मसीही मण्डली के लोगों के साथ घटित घटनाओं एवं संसार में सुसमाचार प्रचार और प्रसार के उनके कार्यों का लेख है। इस पुस्तक का आरंभ प्रभु यीशु मसीह के मृतकों में से पुनरुत्थान के बाद, उनके द्वारा अपने शिष्यों के साथ बिताए गए समय के उल्लेख से होता है। अपने पुनरुत्थान के बाद, प्रभु यीशु चालीस दिन तक अपने शिष्यों के साथ रहा, उन्हें सिखाता रहा, वचन और विश्वास में दृढ़ करता रहा, उनकी आने वाली सेवकाई के लिए उन्हें तैयार करता रहाऔर उसने दु:ख उठाने के बाद बहुत से पड़े प्रमाणों से अपने आप को उन्हें जीवित दिखाया, और चालीस दिन तक वह उन्हें दिखाई देता रहा: और परमेश्वर के राज्य की बातें करता रहा” (प्रेरितों के काम 1:3)। अपने बलिदान से पहले साढ़े तीन वर्ष तक प्रभु यीशु अपने शिष्यों को साथ लिए चलता रहा, उसने उन्हें विभिन्न परिस्थितियों से होकर निकालने दिया, बहुत सी शिक्षाएं दीं। उन्हें प्रचार और आश्चर्यकर्म करने के अधिकार भी दिए और जब प्रभु ने शिष्यों को इस कार्य के लिए भेजा (मत्ती 10 अध्याय), तो उन्होंने यह सब किया भी (मरकुस 6:12-13; लूका 10:20) 

हम इन बातों से यह अभिप्राय ले सकते हैं कि प्रभु के स्वर्गारोहण के समय आने तक, अब शिष्य शिक्षा और अनुभव के साथ मसीही सेवकाई के लिए जाने के लिए प्रशिक्षित और तैयार थे। किन्तु फिर भी प्रभु यीशु ने स्वर्ग पर जाने से पहले उन्हें एक निर्देश और दियाऔर उन से मिलकर उन्हें आज्ञा दी, कि यरूशलेम को न छोड़ो, परन्तु पिता की उस प्रतिज्ञा के पूरे होने की बाट जोहते रहो, जिस की चर्चा तुम मुझ से सुन चुके हो” (प्रेरितों 1:4); “परन्तु जब पवित्र आत्मा तुम पर आएगा तब तुम सामर्थ्य पाओगे; और यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया में, और पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होगे” (प्रेरितों 1:8)। यह प्रभु की ओर से दिया गया कोई नया निर्देश नहीं था; अपने पकड़वाए जाने से पहले प्रभु यीशु ने शिष्यों से यह प्रतिज्ञा की थी, कि उन के बाद शिष्यों के साथ परमेश्वर पवित्र आत्मा सहायक बनकर रहेगा (यूहन्ना 14 और 16 अध्याय); और यहाँ पर प्रभु इसी प्रतिज्ञा को दोहरा रहा था। हम मसीही विश्वासियों के लिए यह बहुत ध्यान देने और विचार करने योग्य बात है कि स्वयं प्रभु यीशु के साथ रहकर, उससे सीखकर, यह सारा प्रशिक्षण और अनुभव प्राप्त करने के बाद भी, प्रभु यीशु ने शिष्यों को सेवकाई पर निकलने से तब तक रुके रहने के लिए कहा, जब तक कि उन्हें परमेश्वर पवित्र आत्मा की सामर्थ्य, तथा उनका साथ नहीं मिल जाता है। मसीही सेवकाई में परमेश्वर पवित्र आत्मा की भूमिका का यह एक महान और अति महत्वपूर्ण अनुमोदन है; मसीही सेवकाई उनकी सहायता उनके मार्गदर्शन के बिना नहीं हो पाने के आधारभूत सत्य की पुष्टि है। 

आज बहुत से लोग केवल प्रशिक्षण और किसी बाइबल कॉलेज अथवा सेमनरी से डिग्री प्राप्त कर लेने, या कोई कोर्स कर लेने के द्वारा समझते हैं कि वे अब मसीही सेवकाई के लिए तैयार हैं। और उन्हें लगता है कि वे अपने प्रशिक्षण, शिक्षा, अनुभव, के द्वारा और उनके चर्च या डिनॉमिनेशन में बनाई गई योजनाओं और निर्धारित लक्ष्यों के अनुसार कार्य करने से तथा उन लोगों से उपलब्ध सहायता एवं साथ के द्वारा मसीही सेवकाई को कर सकते हैं। अवश्य ही वे कुछ प्रचार का कार्य कर सकते हैं, लोगों को अपना ज्ञान दिखा सकते हैं, औरमसीही सेवकाईके नाम पर कुछसमाज-सेवाया कुछ शिक्षा, चिकित्सा, भलाई के कार्य आदि कर सकते हैं। किन्तु यह सब प्रभु के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए, और सुसमाचार के प्रभावी प्रचार और प्रसार के लिए अंततः निरर्थक तथा अप्रभावी ही ठहरता है। हो सकता है कि समाज और लोगों से इसके लिए बहुत सराहना मिले, कुछ पुरस्कार भी मिलें, किन्तु जो प्रभु की ओर से नहीं है, वह प्रभु को स्वीकार्य भी नहीं है, और उसके लिए फलवंत भी नहीं है (मत्ती 7:21-23; मत्ती 15:8, 9, 14) 

प्रेरितों के काम पुस्तक का यह आरंभिक अध्याय और यहाँ दिए गए प्रभु यीशु के निर्देश दिखाते हैं कि वास्तविक और प्रभावी मसीही सेवकाई, बिना परमेश्वर पवित्र आत्मा की सामर्थ्य, सहायता, और मार्गदर्शन के संभव नहीं है। आते दिनों में हम मसीही सेवकाई में परमेश्वर पवित्र आत्मा की इसी भूमिका के विषय परमेश्वर के वचन में दी गई शिक्षाओं को देखेंगे, और उनसे सीखेंगे के हम प्रभु के लिए कैसे उपयोगी तथा कार्यकारी हो सकते हैं। यदि आप मसीही विश्वासी हैं, तो आप को अपने उद्धारकर्ता प्रभु के लिए कार्यकारी एवं उपयोगी भी अवश्य ही होना है। और आप यह प्रभु के प्रति पूर्ण समर्पण और आज्ञाकारिता के द्वारा ही कर सकते हैं, जिसमें परमेश्वर पवित्र आत्मा आपका मार्गदर्शक, सहायक, और सामर्थ्य प्रदान करने वाला रहेगा। 

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी उसके पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • यिर्मयाह 24-26
  • तीतुस 2