एक
शनिवार की दोपहर को मेरे चर्च के युवा समूह के कुछ सदस्य एक दूसरे से फिलिप्पियों
2:3-4 “विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से
अच्छा समझो। हर एक अपनी ही हित की नहीं, वरन दूसरों की हित की भी चिन्ता करे” पर आधारित कुछ
कठिन प्रश्न पूछने के लिए एकत्रित हुए। उनके द्वारा पूछे गए उन कठिन प्रश्नों में
से कुछ थे: औरों में आप कितनी बार रुचि लेते हैं? कोई आपको क्या कहेगा –
नम्र या घमण्डी; और क्यों? आदि। उनकी बातें सुनते हुए मैं उनके ईमानदार उत्तरों से
प्रभावित हुई। वे किशोर इस बात से सहमत थे कि अपनी कमियों को स्वीकार कर लेना तो
सहज है, किन्तु बदलना, या फिर, बदलने की इच्छा भी रखना, बहुत कठिन होता है। एक
किशोर ने बड़े खेदित भाव से यह भी कहा, “स्वार्थी होना तो मेरे खून में है।”
अपने
ही ऊपर ध्यान केन्द्रित किए रहने के स्थान पर औरों की सेवा करने पर ध्यान लगाना
केवल हम में निवास करने वाले प्रभु यीशु के आत्मा के द्वारा ही संभव है। इसीलिए,
परमेश्वर के वचन बाइबल में, पौलुस प्रेरित ने भी यही बात फिलिप्पी की मसीही मण्डली
को समझाई कि वे उन बातों पर ध्यान लगाएँ जो परमेश्वर ने उनके लिए की हैं, तथा संभव कर के दी
हैं। परमेश्वर ने अपने बड़े अनुग्रह में उन्हें गोद ले लिया, अपने प्रेम से
उन्हें सांत्वना दी, और सदा उनकी सहायता करते रहने के लिए उन्हें अपना पवित्र
आत्मा दिया है (फिलिप्पियों 2:1-2)। और परमेश्वर ने यह न केवल फिलिप्पी के उन
मसीही विश्वासियों के लिए किया, वरन संसार के प्रत्येक मसीही विश्वासी के लिए किया
है। तो फिर ऐसे अनुग्रह के प्रति कोई भी मसीही विश्वासी सिवाए स्वभाव में विनम्र
और व्यवहार में दीन हो जाने के और कोई भी प्रत्युत्तर कैसे दे सकता है?
जी
हाँ; परमेश्वर ही हमारे लिए बदल जाने का कारण है, और केवल वह ही हमें बदल
सकता है: “क्योंकि परमेश्वर ही है, जिस न अपनी सुइच्छा निमित्त तुम्हारे मन में इच्छा और
काम, दोनों बातों के करने
का प्रभाव डाला है” (फिलिप्पियों 2:13)। जब हम इन बातों पर ध्यान लगाए रखते
हैं, तब हम अपने ध्यान को अपने ऊपर कम और दूसरों की सेवा करने के लिए नम्र होने पर
अधिक लगा सकते हैं। - पोह फेंग चिया
विनम्रता के साथ परमेश्वर की इच्छा को समर्पित हो
जाना हमारी ज़िम्मेदारी है।
इसलिये परमेश्वर के चुने हुओं के समान जो पवित्र और प्रिय
हैं, बड़ी करुणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो। और यदि
किसी को किसी पर दोष देने को कोई कारण हो, तो एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो: जैसे प्रभु ने तुम्हारे
अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी करो।
- कुलुस्सियों 3:12-13
बाइबल पाठ: फिलिप्पियों 2:1-11
फिलिप्पियों 2:1 सो यदि मसीह में कुछ शान्ति और प्रेम
से ढाढ़स और आत्मा की सहभागिता, और कुछ करुणा और दया है।
फिलिप्पियों 2:2 तो मेरा यह आनन्द पूरा करो कि एक मन रहो
और एक ही प्रेम, एक ही चित्त, और एक ही मनसा रखो।
फिलिप्पियों 2:3 विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो
पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो।
फिलिप्पियों 2:4 हर एक अपनी ही हित की नहीं, वरन दूसरों की हित की भी चिन्ता
करे।
फिलिप्पियों 2:5 जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही
तुम्हारा भी स्वभाव हो।
फिलिप्पियों 2:6 जिसने परमेश्वर के स्वरूप में हो कर भी
परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा।
फिलिप्पियों 2:7 वरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो
गया।
फिलिप्पियों 2:8 और मनुष्य के रूप में प्रगट हो कर अपने
आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी
रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली।
फिलिप्पियों 2:9 इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान भी
किया, और उसको वह नाम दिया
जो सब नामों में श्रेष्ठ है।
फिलिप्पियों 2:10 कि जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर और जो
पृथ्वी के नीचे है; वे सब यीशु के नाम पर
घुटना टेकें।
फिलिप्पियों 2:11 और परमेश्वर पिता की महिमा के लिये हर
एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है।
एक साल में बाइबल:
- 1 शमूएल 7-9
- लूका 9:18-36