अपनी पुस्तक The Problem of Pain में सुप्रसिध्द लेखक तथा मसीही विश्वासी, सी. एस. ल्यूईस कहते हैं, "परमेश्वर हमारे आनन्द के समय में फुसफुसाकर, हमारे विवेक से बोलकर, परन्तु हमारे दुःख के समय में ऊँची आवज़ में बात करता है; दुःख बहरे संसार को जगाने के लिए उसके मेगाफोन हैं।" दुःख अकसर हमारे ध्यान को पुनःकेन्द्रित करने में सहायता करता है। वह हमारी सोच को हमारी तात्कालिक परिस्थितियों से हटाता है जिससे हमारे जीवनों में उसके कार्यों के संबंध में हम परमेश्वर की सुन सकें। सामान्य जीवन एक आत्मिक कक्षा बन जाता है।
परमेश्वर के वचन के पुराने नियम ख्ण्ड में हम देखते हैं कि कैसे भजनकार ने अपने मन को सीखनेवाला बनाए रखा, दुःख भरी परिस्थितियों में भी। उसने उन परिस्थितियों को परमेश्वर द्वारा निर्धारित स्वीकार किया और समर्पित मन से प्रार्थना की, "हे यहोवा, मैं जान गया कि तेरे नियम धर्ममय हैं, और तू ने अपनी सच्चाई के अनुसार मुझे दु:ख दिया है" (भजन 119:75)। भविष्यद्वक्ता यशायाह ने दुःख को निर्मल करने की प्रक्रिया के समान देखा: "देख, मैं ने तुझे निर्मल तो किया, परन्तु, चान्दी की नाईं नहीं; मैं ने दु:ख की भट्ठी में परखकर तुझे चुन लिया है" (यशायाह 48:10)। और अय्युब ने, अपने विलापों के बावजूद, अपने दुःख और समस्याओं द्वारा परमेश्वर की सार्वभौमिकता तथा महानता का पाठ सीखा (अय्युब 40-42)।
दुःखों से होकर निकलने के अनुभव में हम अकेले नहीं हैं। परमेश्वर ने भी जब मनुष्य रूप धारण किया तो हमारे पापों से छुटकारे तथा उध्दार का मार्ग बना कर देने के लिए, संख्या तथा प्रचण्डता में, वह बहुत दुःखों से होकर निकला और क्रूस की अत्यंत पीड़ादायक मृत्यु को भी सह लिया, और हमारे लिए दुःखों के प्रति रवैया रखने का एक आदर्श उदाहरण बन गया: "और तुम इसी के लिये बुलाए भी गए हो क्योंकि मसीह भी तुम्हारे लिये दुख उठा कर, तुम्हें एक आदर्श दे गया है, कि तुम भी उसके चिन्ह पर चलो" (1 पतरस 2:21)। आज वह हाथों तथा पैरों पर ठोकी गई कीलों के निशान लिए हमारे साथ बना रहता है, हमारे हर दुःख में हमें शान्ति देता है, हमें सिखाता है। - डेनिस फिशर
हम परीक्षाओं के विद्यालय में ही भरोसा रखने के पाठ सीखने पाते हैं।
और विश्वास के कर्ता और सिध्द करने वाले यीशु की ओर ताकते रहें; जिसने उस आनन्द के लिये जो उसके आगे धरा था, लज्ज़ा की कुछ चिन्ता न कर के, क्रूस का दुख सहा; और सिंहासन पर परमेश्वर के दाहिने जा बैठा। इसलिये उस पर ध्यान करो, जिसने अपने विरोध में पापियों का इतना वाद-विवाद सह लिया, कि तुम निराश हो कर हियाव न छोड़ दो। - इब्रानियों 12:2-3
बाइबल पाठ: भजन 119:65-80
Psalms 119:65 हे यहोवा, तू ने अपने वचन के अनुसार अपने दास के संग भलाई की है।
Psalms 119:66 मुझे भली विवेक-शक्ति और ज्ञान दे, क्योंकि मैं ने तेरी आज्ञाओं का विश्वास किया है।
Psalms 119:67 उस से पहिले कि मैं दु:खित हुआ, मैं भटकता था; परन्तु अब मैं तेरे वचन को मानता हूं।
Psalms 119:68 तू भला है, और भला करता भी है; मुझे अपनी विधियां सिखा।
Psalms 119:69 अभिमानियों ने तो मेरे विरुद्ध झूठ बात गढ़ी है, परन्तु मैं तेरे उपदेशों को पूरे मन से पकड़े रहूंगा।
Psalms 119:70 उनका मन मोटा हो गया है, परन्तु मैं तेरी व्यवस्था के कारण सुखी हूं।
Psalms 119:71 मुझे जो दु:ख हुआ वह मेरे लिये भला ही हुआ है, जिस से मैं तेरी विधियों को सीख सकूं।
Psalms 119:72 तेरी दी हुई व्यवस्था मेरे लिये हजारों रूपयों और मुहरों से भी उत्तम है।
Psalms 119:73 तेरे हाथों से मैं बनाया और रचा गया हूं; मुझे समझ दे कि मैं तेरी आज्ञाओं को सीखूं।
Psalms 119:74 तेरे डरवैये मुझे देख कर आनन्दित होंगे, क्योंकि मैं ने तेरे वचन पर आशा लगाई है।
Psalms 119:75 हे यहोवा, मैं जान गया कि तेरे नियम धर्ममय हैं, और तू ने अपने सच्चाई के अनुसार मुझे दु:ख दिया है।
Psalms 119:76 मुझे अपनी करूणा से शान्ति दे, क्योंकि तू ने अपने दास को ऐसा ही वचन दिया है।
Psalms 119:77 तेरी दया मुझ पर हो, तब मैं जीवित रहूंगा; क्योंकि मैं तेरी व्यवस्था से सुखी हूं।
Psalms 119:78 अभिमानियों की आशा टूटे, क्योंकि उन्होंने मुझे झूठ के द्वारा गिरा दिया है; परन्तु मैं तेरे उपदेशों पर ध्यान करूंगा।
Psalms 119:79 जो तेरा भय मानते हैं, वह मेरी ओर फिरें, तब वे तेरी चितौनियों को समझ लेंगे।
Psalms 119:80 मेरा मन तेरी विधियों के मानने में सिध्द हो, ऐसा न हो कि मुझे लज्जित होना पड़े।
एक साल में बाइबल:
- 1 राजा 21-22
- लूका 23:26-56