पाप का समाधान - उद्धार - 30 - कुछ संबंधित प्रश्न और उनके उत्तर (3.2)
पिछले लेख में हमने प्रभु यीशु मसीह में
लाए गए विश्वास द्वारा मिलने वाले पाप क्षमा तथा उद्धार से संबंधित प्रश्नों की
शृंखला में एक बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न “क्या कभी गँवाए न जा सकने वाले अनन्त उद्धार के सिद्धांत में, बिना
किसी भय के पाप करते रहने की स्वतंत्रता निहित नहीं है?” को देखना आरंभ किया था।
पिछले लेख में हमने दो बातें देखी थीं कि क्यों यह विचार रखना परमेश्वर के इस
उद्धार के कार्य और आश्वासन से असंगत है। पहली बात थी कि जिसने मसीह के बलिदान और
पुनरुत्थान के महत्व को समझा है और उसे सच्चे मन से स्वीकार किया है, वह फिर प्रभु के बलिदान, पुनरुत्थान, और उसके परिणामस्वरूप मिले इस महान उद्धार का आदर करेगा; उसका दुरुपयोग नहीं करेगा, उसका अनुचित लाभ उठाने का
प्रयास नहीं करेगा। दूसरी बात हमने देखी थी कि परमेश्वर अज्ञानी नहीं है जो बिना
सोचे समझे मनुष्य को एक ऐसी संभावना प्रदान कर दे, जिसका
दुरुपयोग किया जा सके। परमेश्वर का वचन बाइबल यह स्पष्ट बताती है कि चाहे मसीही
विश्वासी का उद्धार न भी जाए, तो भी उसके पाप और दुर्वचन,
उसे स्वर्ग में मिलने वाले उसके प्रतिफलों का नुकसान करते हैं,
और यहाँ पर लापरवाही से बिताया गया जीवन, स्वर्ग
में मिलने वाले प्रतिफलों का नाश करता है, जो स्थिति
अनन्तकाल के लिए होगी, कभी सुधारी या पलटी नहीं जा सकेगी। आज
इसी प्रश्न के उत्तर से जुड़ी एक तीसरी बहुत महत्वपूर्ण बात भी देखते हैं, जिसकी ओर सामान्यतः लोगों का ध्यान या तो जाता ही नहीं है, अथवा बहुत कम जाता है।
हमने पिछले लेख में यह भी देखा था कि पाप
करने से मनुष्य पर दो बातें आईं - मृत्यु - आत्मिक एवं शारीरिक; और जीवनपर्यंत एक
शारीरिक दण्ड की स्थिति में जीते रहना और अन्ततः उसी स्थिति में मर भी जाना।
प्रत्येक मनुष्य के पाप के लिए, उसके पाप की मृत्यु प्रभु
यीशु ने वहन कर ली, उसकी पूरी कीमत चुका दी, और मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली है। जिसने प्रभु के इस कार्य को स्वीकार
कर लिया और अपने आप को उसका शिष्य होने के लिए समर्पित कर दिया, प्रभु ने परमेश्वर के साथ उसकी संगति को बहाल कर दिया, उस पर से मृत्यु के दण्ड को हटा दिया, जैसा हम पहले
देख चुके हैं। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि प्रभु यीशु मसीह के कार्य के
द्वारा हमें मृत्यु से तो निकासी मिल गई, परमेश्वर के साथ
हमारी संगति बहाल हो गई; किन्तु प्रभु यीशु मसीह ने हमारे
पापों के साथ जुड़े हुए उसके शारीरिक दण्ड की स्थिति को हमारे लिए वहन नहीं किया
है। पाप के कारण आए इस शारीरिक दण्ड को हम में से प्रत्येक को मसीही विश्वासी को
भुगतना ही पड़ेगा। बाइबल में इसके कई स्पष्ट उदाहरण हैं और संबंधित हवाले हैं कि लोगों
के पाप क्षमा होने पर परमेश्वर के साथ उनकी संगति बहाल रही, किन्तु उन्हें उन पापों
के लिए शारीरिक दण्ड फिर भी सहते रहना पड़ा। हम यहाँ पर केवल तीन उदाहरणों को ही
देखेंगे:
- गिनती
की पुस्तक के 13 और 14
अध्यायों को देखिए। जब इस्राएली मिस्र के दासत्व से निकलकर,
वाचा किए हुए कनान देश के किनारे पर पहुँचे, तो उनके मनों में कुछ संदेह उठे, और परमेश्वर
ने मूसा से कहा कि वह इस्राएल के हर गोत्र में से एक जन को लेकर कनान की टोह
लेने को भेज दे, जिससे इस्राएल के लोगों का उस देश के
उत्तम होने के बारे में संदेह का निवारण हो जाए। उन भेदियों ने जाकर कनान देश
की टोह ली, और आकर इस्राएलियों को बताया कि देश तो बहुत
अच्छा और उपजाऊ है, किन्तु वहाँ दैत्याकार लोग भी रहते
हैं, और उन्हें उस देश में जाने के विषय घबरा दिया।
उनके बारंबार परमेश्वर के प्रति प्रदर्शित किए जाने अविश्वास और
अनाज्ञाकारिता की प्रवृत्ति के कारण परमेश्वर ने उन्हें दण्ड देना और मार
डालना चाहा, और मूसा से कहा कि अब वह उन इस्राएलियों के
स्थान पर उससे एक नई जाति उत्पन्न करेगा (गिनती 14:11-12)। मूसा ने उन लोगों के लिए परमेश्वर से क्षमा माँगी, परमेश्वर के आगे उनके लिए गिड़गिड़ाया और विनती की। परमेश्वर ने मूसा
की प्रार्थना के उत्तर में उनके मृत्यु दण्ड को तो हटा लिए, किन्तु यह दण्ड दिया कि अब उन्हें 40 वर्ष तक
जंगल में यात्रा करते रहना होगा, जब तक कि वह अविश्वासी
और अनाज्ञाकारी पीढ़ी के लोग मर कर समाप्त न हो जाएं (गिनती 14:22-34)। प्रभु यीशु मसीह के हमारे पापों के लिए मध्यस्थ और सहायक की भूमिका
को मूसा ने निभाया - मृत्यु दण्ड हटा दिया गया, स्वाभाविक
मृत्यु रह गई, किन्तु अविश्वास और अनाज्ञाकारिता के पाप
के कारण जीवन भर सहने वाले एक दण्ड की आज्ञा बनी रह गई।
- गिनती
की पुस्तक के 20 अध्याय को
देखिए। जंगल की यात्रा के दौरान, जब लोगों को पानी की
कमी हुई, तो इस्राएली लोग हाहाकार करने लगे (पद 1-5);
परमेश्वर ने मूसा से कहा कि वह वहाँ की एक चट्टान से जाकर कहे,
और उसमें से पानी निकल पड़ेगा (पद 7-8)।
मूसा ने परमेश्वर के कहे के अनुसार लोगों को एकत्रित किया; किन्तु उनके अविश्वास और परमेश्वर के विरुद्ध कुड़कुड़ाने के कारण उनसे
क्रुद्ध होकर, उसने क्रोधावेश में आकर अनुचित बोला,
और चट्टान से बोलने के स्थान पर उसपर अपनी लाठी दो बार मारी
(पद 10-11)। चट्टान से पानी तो निकला, किन्तु परमेश्वर ने उसे दण्ड दिया कि वह अपनी इस अनाज्ञाकारिता के
कारण कनान में प्रवेश नहीं करने पाएगा (पद 12), और मूसा
को अपनी अनाज्ञाकारिता का दण्ड आजीवन भुगतना पड़ा। कनान के किनारे पहुँच कर
मूसा ने फिर से परमेश्वर से उसे कनान में जाने देने की अनुमति देने की विनती
की, किन्तु परमेश्वर ने उसे डाँट कर चुप करा दिया
(व्यवस्थाविवरण 3:23-27)। मूसा को उसकी अनाज्ञाकारिता
के लिए मृत्यु, या परमेश्वर से पृथक होने की सजा तो नहीं दी गई, किन्तु शारीरिक दण्ड की आज्ञा को आजीवन भुगतना पड़ा।
- 2 शमूएल 12 अध्याय देखिए। दाऊद द्वारा बतशेबा के
साथ किए गए व्यभिचार और उसके पति ऊरिय्याह हत्या के पाप के कारण परमेश्वर
उससे अप्रसन्न हुआ। परमेश्वर ने दाऊद को लगभग एक वर्ष का समय दिया, कि वह पश्चाताप कर ले, किन्तु उसने नहीं किया।
तब परमेश्वर ने नातान नबी को उसके पास भेजा, जिसने दाऊद
के सामने उसके पाप को प्रकट कर दिया (पद 1-7), और दाऊद
पर परमेश्वर की अप्रसन्नता को व्यक्त कर दिया तथा परमेश्वर द्वारा निर्धारित
दण्ड उसको बता दिया (पद 8-12)। यह सुनकर दाऊद ने अपना
पाप स्वीकार किया, पश्चाताप किया। दाऊद के इस पश्चाताप
के कारण परमेश्वर ने जो नातान से कहलवाया, वह ध्यान
देने योग्य है “तब दाऊद ने नातान से कहा, मैं ने यहोवा के विरुद्ध पाप किया है। नातान ने दाऊद से कहा, यहोवा ने तेरे पाप को दूर किया है; तू न मरेगा”
(2 शमूएल 12:13)। दाऊद पर से मृत्यु तो
हटा ली गई, किन्तु शेष दण्ड उसे भुगतना पड़ा, और आज तक परमेश्वर के वचन में उसके इस पाप का वर्णन है। दाऊद जितना
अपने भजनों और ‘परमेश्वर के मन के अनुसार व्यक्ति’
होने के लिए जाना जाता है, उतना ही ऊरिय्याह
के हत्यारे और बतशेबा के साथ व्यभिचार करने के लिए भी जाना जाता है, और परमेश्वर की दृष्टि में बतशेबा ऊरिय्याह ही की पत्नी रही, दाऊद की पत्नी नहीं बनी (मत्ती 1:6)।
इसलिए शैतान के द्वारा फैलाई जा रही इन व्यर्थ और
मिथ्या बातों पर ध्यान मत दीजिए। प्रभु के आपके प्रति प्रमाणित किए गए प्रेम, कृपा, और अनुग्रह, तथा उसके द्वारा आपको प्रदान किए जा रहे
पाप-क्षमा प्राप्त करने के अवसर के मूल्य को समझिए, और अभी
इस अवसर का लाभ उठा लीजिए। आपके द्वारा स्वेच्छा से, सच्चे
और पूर्णतः समर्पित मन से, अपने पापों के प्रति सच्चे
पश्चाताप के साथ आपके द्वारा की गई एक छोटी प्रार्थना, “हे
प्रभु यीशु मैं मान लेता हूँ कि मैंने जाने-अनजाने में, मन-ध्यान-विचार
और व्यवहार में आपकी अनाज्ञाकारिता की है, पाप किए हैं। मैं
मान लेता हूँ कि आपने क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा मेरे पापों के दण्ड
को अपने ऊपर लेकर पूर्णतः सह लिया, उन पापों की पूरी-पूरी
कीमत सदा काल के लिए चुका दी है। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मेरे मन को अपनी ओर परिवर्तित करें, और मुझे अपना
शिष्य बना लें, अपने साथ कर लें” आपका
सच्चे मन से लिया गया मन परिवर्तन का यह निर्णय आपके इस जीवन तथा परलोक के जीवन को
आशीषित तथा स्वर्गीय जीवन बना देगा। अभी अवसर है, अभी प्रभु
का निमंत्रण आपके लिए है - उसे स्वीकार कर लीजिए।
बाइबल पाठ: भजन 139:1-12
भजन 139:1 हे यहोवा, तू ने मुझे जांच कर जान लिया है।
भजन 139:2 तू मेरा उठना बैठना
जानता है; और मेरे विचारों को दूर ही से समझ लेता है।
भजन 139:3 मेरे चलने और लेटने
की तू भली भांति छानबीन करता है, और मेरी पूरी चालचलन का भेद
जानता है।
भजन 139:4 हे यहोवा, मेरे मुंह में ऐसी कोई बात नहीं जिसे तू पूरी रीति से न जानता हो।
भजन 139:5 तू ने मुझे आगे पीछे
घेर रखा है, और अपना हाथ मुझ पर रखे रहता है।
भजन 139:6 यह ज्ञान मेरे लिये
बहुत कठिन है; यह गम्भीर और मेरी समझ से बाहर है।
भजन 139:7 मैं तेरे आत्मा से
भाग कर किधर जाऊं? या तेरे सामने से किधर भागूं?
भजन 139:8 यदि मैं आकाश पर
चढूं, तो तू वहां है! यदि मैं अपना बिछौना अधोलोक में बिछाऊं
तो वहां भी तू है!
भजन 139:9 यदि मैं भोर की
किरणों पर चढ़ कर समुद्र के पार जा बसूं,
भजन 139:10 तो वहां भी तू अपने
हाथ से मेरी अगुवाई करेगा, और अपने दाहिने हाथ से मुझे पकड़े
रहेगा।
भजन 139:11 यदि मैं कहूं कि
अन्धकार में तो मैं छिप जाऊंगा, और मेरे चारों ओर का उजियाला
रात का अन्धेरा हो जाएगा,
भजन 139:12 तौभी अन्धकार तुझ
से न छिपाएगा, रात तो दिन के तुल्य प्रकाश देगी; क्योंकि तेरे लिये अन्धियारा और उजियाला दोनों एक समान हैं।
एक साल में बाइबल:
· यशायाह
5-6
· इफिसियों 1