ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

शुक्रवार, 27 अक्टूबर 2017

अवसर


   मैंने आज कुछ बहुत दुःखद शब्द सुने। दो मसीही विश्वासी एक ऐसे विषय पर चर्चा कर रहे थे जिस पर वे भिन्न विचार रखते थे। उनमें जो वरिष्ठ था, वह आत्मसन्तुष्ट लग रहा था और परमेश्वर के वचन बाइबल की शिक्षाओं का, दूसरे के जीवन में उसे दिखाई देने वाली कमियों पर प्रहार करने और उनकी छंटाई करने के लिए, एक हथियार के समान प्रयोग कर रहा था। वह दूसरा और दिखने में कनिष्ठ व्यक्ति उसके उपदेश से ऊबा हुआ और हतोत्साहित दिखाई दे रहा था। चर्चा के अन्त की ओर आने पर वरिष्ठ व्यक्ति ने दूसरे की प्रत्यक्ष अरुचि पर टिप्पणी करते हुए कहना आरंभ किया, "तुम पहले कितने इच्छुक हुआ करते थे" और फिर अचानक ही थम गया, और बोला "समझ में नहीं आता कि तुम चाहते क्या हो।"

   इस पर उस दूसरे और कनिष्ठ व्यक्ति ने कहा, "आप ने मेरे प्रति प्रेम दिखाने के अवसर को गवाँ दिया है। जितने समय से आप मुझे जानते हैं, ऐसा लगता है कि जिस एक बात की आप को चिंता रहती है, वह है मुझ में गलतियाँ निकालना। मुझे क्या चाहिए? मैं प्रभु यीशु को देखना चाहता हूँ - आप में और आपके द्वारा।"

   मैंने सोचा, यदि यह बात मुझ से कही गई होती तो मैं टूट कर बिखर गया होता। उस पल में मैंने समझ लिया कि परमेश्वर का पवित्र आत्मा मुझ से कह रहा है कि मेरे जीवन में भी ऐसे अवसर आए हैं जब मैंने प्रेम प्रदर्शित करने के अवसर गवाँ दिए हैं। और मैं यह भी जानता हूँ कि कई लोग मेरे जीवन में भी प्रभु यीशु को नहीं देख सके हैं।

   प्रेरित पौलुस कहता है कि हम जो कुछ भी करते हैं, उसका आधारभूत कारण प्रेम ही होना चाहिए (1 कुरिन्थियों 13:1-4)। हम अपने जीवनों में ध्यान रखें कि मसीही व्यवहार एवं चरित्र को दिखाने का जब भी अगला अवसर आए तो हम उसे गवाँ न दें। - रैंडी किलगोर


प्रेम प्रदर्शन करना उपदेश देने से सदैव ही अधिक प्रभावी होता है।

हे बालकों, हम वचन और जीभ ही से नहीं, पर काम और सत्य के द्वारा भी प्रेम करें। - 1 यूहन्ना 3:18

बाइबल पाठ: 1 कुरिन्थियों 13
1 Corinthians 13:1 यदि मैं मनुष्यों, और सवर्गदूतों की बोलियां बोलूं, और प्रेम न रखूं, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झंझनाती हुई झांझ हूं। 
1 Corinthians 13:2 और यदि मैं भविष्यद्वाणी कर सकूं, और सब भेदों और सब प्रकार के ज्ञान को समझूं, और मुझे यहां तक पूरा विश्वास हो, कि मैं पहाड़ों को हटा दूं, परन्तु प्रेम न रखूं, तो मैं कुछ भी नहीं। 
1 Corinthians 13:3 और यदि मैं अपनी सम्पूर्ण संपत्ति कंगालों को खिला दूं, या अपनी देह जलाने के लिये दे दूं, और प्रेम न रखूं, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं। 
1 Corinthians 13:4 प्रेम धीरजवन्‍त है, और कृपाल है; प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं। 
1 Corinthians 13:5 वह अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुंझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता। 
1 Corinthians 13:6 कुकर्म से आनन्‍दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्‍दित होता है। 
1 Corinthians 13:7 वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है। 
1 Corinthians 13:8 प्रेम कभी टलता नहीं; भविष्यद्वाणियां हों, तो समाप्‍त हो जाएंगी, भाषाएं हो तो जाती रहेंगी; ज्ञान हो, तो मिट जाएगा। 
1 Corinthians 13:9 क्योंकि हमारा ज्ञान अधूरा है, और हमारी भविष्यद्वाणी अधूरी। 
1 Corinthians 13:10 परन्तु जब सवर्सिद्ध आएगा, तो अधूरा मिट जाएगा। 
1 Corinthians 13:11 जब मैं बालक था, तो मैं बालकों के समान बोलता था, बालकों का सा मन था बालकों की सी समझ थी; परन्तु सियाना हो गया, तो बालकों की बातें छोड़ दीं। 
1 Corinthians 13:12 अब हमें दर्पण में धुंधला सा दिखाई देता है; परन्तु उस समय आमने साम्हने देखेंगे, इस समय मेरा ज्ञान अधूरा है; परन्तु उस समय ऐसी पूरी रीति से पहिचानूंगा, जैसा मैं पहिचाना गया हूं। 
1 Corinthians 13:13 पर अब विश्वास, आशा, प्रेम ये तीनों स्थाई है, पर इन में सब से बड़ा प्रेम है।

एक साल में बाइबल: 
  • यिर्मयाह 12-14
  • 2 तिमुथियुस 1