पिछले लेख में हमने स्त्रियों को कलीसिया में प्रचार करने तथा पास्टर होने की अनुमति होने के लिए बहुधा दिए जाने वाले एक उदाहरण, फीबे के बारे में देखा था, और विश्लेषण से समझा था कि फीबे का उदाहरण इस धारणा का कोई समर्थन नहीं करता है। यह केवल यूनानी भाषा के एक शब्द डायकनोस के वास्तविक अर्थ के स्थान पर, उस शब्द से बने और कलीसिया में प्रयोग किए जाने वाले एक अन्य शब्द “डीकन” के वर्तमान समय में अर्थ, समझ, और प्रयोग से उत्पन्न विरोधाभास के कारण है। यदि मूल लेख के शब्द को उसके उस समय के तथा आज के भी वास्तविक अर्थ के अनुसार देखा और समझा जाए, तो कोई विरोधाभास नहीं रहता है। आज हम इसी प्रकार से एक अन्य बहुधा दुरुपयोग किए जाने वाले, यूहन्ना 4 अध्याय में दिए गए सामरी स्त्री के उदाहरण का विश्लेषण कर के उसकी वास्तविकता को देखते और समझते हैं।
यह दावा किया जाता है कि सामरी स्त्री ने भी तो प्रभु यीशु का प्रचार किया था, और प्रभु यीशु ने उसका कोई विरोध नहीं किया। जब वह कर सकती है, तो आज कोई अन्य स्त्री क्यों नहीं कर सकती है? तर्क उचित तो प्रतीत होता है, किन्तु क्या वास्तव में सही है? सामरी स्त्री के साथ प्रभु यीशु की बातचीत, उसकी प्रतिक्रिया, तथा उस स्थान पर आई आत्मिक जागृति का वर्णन हमें यूहन्ना 4:4-42 में मिलता है। किन्तु जिस भाग को धारणा को सही ठहराने के लिए उदाहरण के लिए प्रयोग किया जाता है, वह हमें पद 28-30 में मिलता है। चाहे इस पूरे वृतांत को देखें, अथवा वृतांत के इस छोटे से भाग को, यदि बिना किसी पूर्व-धारणा के, निष्पक्ष रीति से देखा जाए तो उस सामरी स्त्री ने केवल एक बार अपने गाँव में अपनी गवाही दी, और वह भी सारे गाँव में घर-घर जाकर। उसने यह काम न तो किसी सभा में प्रचारक बनकर किया, न ही स्थानीय आराधनालय में जाकर किया, और न ही किसी आराधनालय में कोई नियुक्ति लेकर किया। उसने लोगों को अपने पापों के बारे में, तथा प्रभु द्वारा उनके निवारण के संबंध में बताया (यूहन्ना 4:28-29)।
यदि ये व्यर्थ तर्क देने वाले, उस सामरी स्त्री को उदाहरण बनाकर चलना चाहते हैं तो क्या उन्हें चर्च में पुल्पिट से प्रचार करने, और कलीसिया में पास्टर का कार्य करने की इच्छा रखने के स्थान पर, सामरी स्त्री के समान पहले अपने रहने के स्थान के आस-पास के सभी घरों में जाकर अपने पापों के बारे में नहीं बताना चाहिए? क्या उस स्त्री के समान उन्हें लोगों को प्रभु द्वारा उसे मिले समाधान और नए जीवन के बारे में नहीं बताना चाहिए? सामरी स्त्री का उदाहरण तो हमें सभी को खुलकर अपनी गवाही देना सिखाता है, जिसके लिए किसी चर्च में पुलपिट पर खड़े होने अथवा पास्टर बनने की कोई आवश्यकता नहीं है। इस स्पष्ट उदाहरण के विपरीत, ये लोग बाइबल की बातों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करते हैं, अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए उनका दुरुपयोग करते हैं, जिससे कि चर्च में पुल्पिट से प्रचार करने और कलीसिया में पास्टर बनकर लोगों पर अधिकार रखने के लिए अपनी धारणा को सही दिखा सकें। अगले लेख में हम नए नियम की कुछ अन्य स्त्रियों के उदाहरण के बारे में देखेंगे, जिनको आधार बनाकर ये लोग अपनी धारणा को प्रमाणित तथा अपनी इच्छा पूरी करना चाहते हैं।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
- क्रमशः
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According to the Bible, Do Women Have the Permission to Serve as Pastors and Preach from the Pulpit in the Church?
In the previous article we had seen about an often-given example used to try to justify women preaching in the Church and being appointed as Pastors, of Phoebe. We had seen from the analysis, that the example of Phoebe does not in any way support the notion. The false impression has been created only by of misusing a word of the original Greek language Diakonos and its derivatives; by not looking at how the word and its derivatives have been used in general use and with their actual meaning. We saw how the word “Deacon” / “Deaconess”, derived from Diakonos, is nowadays used in the Churches in a much different sense than it was in its initial and original usage and meaning in the Bible. But if these words in the original writings are used with the same original sense and meaning that they were originally meant to convey in the Bible, then there is no confusion about Phoebe’s role in the Church. Today we will look at and analyze another example of another woman which is similarly often misused, the example of the Samaritan woman given in John’s gospel, chapter 4.
It is often claimed that the Samaritan woman preached about the Lord Jesus, and the Lord did not object to it. If she could do it at that time, then why can’t women do it today? The argument seems to be valid, but then is it really correct and acceptable? The account of the Samaritan woman and her conversation with the Lord, and its outcome are recorded in John 4:4-42. But the portion that is used to try to justify the notion we find is given in verses 28-30. Whether we look at the whole episode, or just the two verses relevant to our discussion, if it is seen without any pre-conceived notions, in an unbiased manner, then it is clear that all that the Samaritan woman did was share her testimony, and that too by going around the village, from house to house. She did not do this by being a preacher in any meeting, nor in the local place of worship, nor by taking a job in any place of worship. She openly spoke to the people about her sins, and how the Lord Jesus had redeemed her from them (John 4:28-29).
If the people giving vain justifications for their arguments want to use her as an example and do as she did, then instead of wanting to preach from the pulpit in the Church and desiring to be pastors, should they not like the Samaritan woman did, go from house to house in their locality, their area of residence and tell everyone about their sins, just as she had done? Should they not tell the people as the Samaritan woman had, about what the Lord did for her? The example of the Samaritan woman teaches us to openly and publicly share our testimony with others; and for doing this there is no necessity of speaking from the Church pulpit or being a Pastor; it can just as well be very effectively done by witnessing from house to house. Contrary to the very clear example, these people twist and trim the teachings and examples of the Bible to make them appear according to their own interpretations; to try to justify their selfish motives and desires, so that they can have the right to preach from the Church pulpit and become Pastors of the Church to have authority over the congregation. In the next article we will see about some more women of the New Testament, whose examples these people use to try to justify their notion and fulfill their desires.
If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life. Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.
- To Be Continued