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शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2022

कलीसिया में निरंतर वचन की सेवकाई की आवश्यकता


मसीही जीवन में अपरिपक्वता के कारण

     प्रभु यीशु मसीह द्वारा अपनी कलीसिया में विभिन्न कार्यों और जिम्मेदारियों को निभाने के लिए पाँच प्रकार के कार्यकर्ता या सेवक नियुक्त किए गए हैं (इफिसियों 4:11), जिनके कार्यों और सेवकाइयों के विषय, जो मुख्यतः वचन की विभिन्न प्रकार की सेवकाई से संबंधित हैं, हम पिछले लेखों में देख चुके हैं। साथ ही हमने यह भी देखा था कि पाँच प्रकार के भिन्न सेवक नियुक्त होना अनिवार्य नहीं है, किन्तु प्रत्येक स्थानीय मण्डली में उन पाँच प्रकार की वचन की सेवकाइयों का होना अनिवार्य है; वही कलीसिया और उसके सदस्यों की उन्नति का आधार है। इसके बाद हमने इफिसियों 4:12, 13 से देखा है कि उन पाँच प्रकार की वचन की सेवकाइयों का एक क्रमिक प्रभाव होता है, जो मसीही विश्वासियों, उनके मसीही जीवनों, और कलीसिया की भी उन्नति तथा सिद्धता का कारण ठहरता है। किसी भी स्थानीय कलीसिया में वचन से संबंधित इन पाँच सेवकाइयों की, तथा उनके कारण होने वाले उन प्रभावों की उपस्थिति उस कलीसिया और उसके मसीही विश्वासी सदस्यों के आत्मिक स्तर, परिपक्वता, और आत्मिक सिद्धता की पहचान है। आज हम उन पाँच सेवकाइयों से मसीही विश्वासियों के जीवनों और कलीसियाओं में होने वाले प्रभावों से संबंधित अगले पद, इफिसियों 4:14 को देखेंगे।

यह पद पिछले लेख में कही गई आरंभिक बात की पुष्टि करता है। पिछले लेख में हमने देखा था कि मसीही विश्वास और प्रभु यीशु की पहचान में सभी ईसाई या मसीही लोगों में एक-मनता के न होने, ईसाई या मसीही समाज में अनेकों गुटों, समुदायों, डिनॉमिनेशंस के होने, और उनमें परस्पर विरोध तथा टकराव की स्थिति होने का आधार-भूत कारण है मसीही विश्वासियों का मनुष्यों और संस्थाओं या डिनॉमिनेशंस के द्वारा दी जानी वाली शिक्षाओं और बातों पालन करना, किन्तु परमेश्वर पवित्र आत्मा से सीख कर, उनकी आज्ञाकारिता में बने नहीं रहना। यदि सभी परमेश्वर पवित्र आत्मा से सीखने वाले हो जाएंगे, तो सभी के पास एक ही शिक्षा, एक ही बात, एक ही सिद्धांत होंगे; परस्पर भिन्नता और मतभेद का आधार ही समाप्त हो जाएगा, समस्त विश्वव्यापी कलीसिया एक समान हो जाएगी, अति-प्रभावी हो जाएगी। इफिसियों 4:14 “ताकि हम आगे को बालक न रहें, जो मनुष्यों की ठग-विद्या और चतुराई से उन के भ्रम की युक्तियों की, और उपदेश की, हर एक बयार से उछाले, और इधर-उधर घुमाए जाते होंमसीही विश्वासियों और कलीसिया में यह अपरिपक्वता, विभाजन, और मतभेद उत्पन्न करने वाली चार प्रकार की बातों को हमारे सामने रखता है:

  1. बालक, अर्थात अपरिपक्व होना
  2. मनुष्यों की ठग-विद्या और चतुराई
  3. भ्रम की युक्तियों
  4. (भ्रामक) उपदेश 

यहाँ दी गई पहली बात है बालक या अपरिपक्व होना। मसीही विश्वास में आने, पापों से पश्चाताप करके, प्रभु यीशु मसीह को अपना उद्धारकर्ता ग्रहण करने और अपना जीवन उसे समर्पित करने को परमेश्वर की संतान हो जाना (यूहन्ना 1:12-13), “नया जन्मप्राप्त करना, अर्थात, शारीरिक जीवन से आत्मिक जीवन में जन्म लेना कहा गया है, जिसके बिना कोई भी न तो परमेश्वर के राज्य को देख सकता है, और न ही उसमें प्रवेश कर सकता है (यूहन्ना 3:1-7)। प्रेरित पतरस में होकर परमेश्वर पवित्र आत्मा ने इन नए जन्मे हुए शिशुओं को पुराने शारीरिक स्वभाव को त्याग कर, निर्मल आत्मिक दूध, अर्थात परमेश्वर के वचन की लालसा रखने को कहा, जिससे वे आत्मिक या मसीही जीवन में बढ़ते जाएं (1 पतरस 2:1-2 - इन पदों को अंग्रेज़ी अनुवादों में भी देखें) 

किन्तु बहुधा यह भी देखा जाता है कि मसीह में आने के कुछ समय के पश्चात, उन नए विश्वासियों का मसीही जीवन के प्रति जोश और लगाव ठण्डा पड़ने लगता है, और धीरे-धीरे वे मसीही विश्वासियों की संगति से, वचन की शिक्षा प्राप्त करने से दूर हटने लगते हैं। सांसारिक तथा पारिवारिक कार्य और ज़िम्मेदारियाँ बहुतेरों की आत्मिक बढ़ोतरी में रुकावटें उत्पन्न कर देती हैं। यह एक परीक्षा का, एक चुनौती का समय होता है, जब उस मसीही विश्वासी को यह तय करना होता है कि वह अपनी देखभाल स्वयं करेगा और अपने प्रयासों से अपने लिए सांसारिक लाभ की बातों को अर्जित करेगा, या वह इसकी ज़िम्मेदारी परमेश्वर के हाथों में ही रहने देगा, और परमेश्वर को ही अपने वायदे के अनुसार उस मसीही बालक की उचित और उपयुक्त देखभाल, उन्नति और बढ़ोतरी करवाने देगा (मत्ती 6:25-34)। अधिकांश लोग इस परीक्षा में फेल हो जाते हैं, परमेश्वर पर भरोसा बनाए रखने के स्थान पर, वे अपने ही प्रयासों और परिश्रम तथा युक्तियों से अपनी देखभाल, उन्नति और बढ़ोतरी के कार्यों में लग जाते हैं, तथा परमेश्वर, उसके वचन, उसके लोगों की संगति से दूर हो जाते हैं। इससे क्योंकि उन्हें अब आवश्यक वचन की शिक्षा, उचित और उपयुक्त मात्रा में आत्मिक भोजन नहीं मिलता है, जितना उनकी आत्मिक बढ़ोतरी के लिए उन्हें चाहिए इसलिए उनका आत्मिक जीवन दुर्बल तथा अप्रभावी रहता है।

इस आत्मिक कुपोषण की स्थिति को कैसे पहचाना तथा समझा जा सकता है? परमेश्वर पवित्र आत्मा ने इसके लिए उनबालकया अपरिपक्व रहने वाले मसीहियों में पाए जाने वाले लक्षण दो स्थानों पर लिखवाए हैं। इन लक्षणों का विश्लेषण और व्याख्या हम अगले लेख से आरंभ करेंगे। यदि आप मसीही विश्वासी हैं तो अपने पापों से पश्चाताप करने और मसीह यीशु को अपना व्यक्तिगत उद्धारकर्ता ग्रहण करने, उसे अपना जीवन समर्पित करने और उसकी आज्ञाकारिता में चलने का निर्णय लेने के समय से लेकर, अभी तक के अपने मसीही जीवन की उन्नति और बढ़ोतरी के बारे में आप अपने लिए क्या कहेंगे? क्या आपकी मसीही जीवन की उन्नति और बढ़ोतरी उस समय-अवधि के अनुसार संतोषजनक है, या कहीं आप पिछड़ गए हैं? कहीं, जैसा सामान्यतः होता है, सांसारिक तथा पारिवारिक कार्यों और ज़िम्मेदारियों के निर्वाह ने आपके मसीही विश्वास और जीवन की बढ़ोतरी को बाधित तो नहीं कर दिया है? आप अपनी हर प्रकार की आवश्यकताओं के लिए किस पर भरोसा रखते हैं और आश्रित रहते हैं - अपने आप पर, अपने प्रयासों, परिश्रम तथा मानवीय सहयोगियों एवं सहायकों पर, या फिर परमेश्वर पर? संसार और संसार की सभी बातें यहीं छूट जाएंगी, परलोक में इनमें से कुछ भी साथ नहीं जाएगा; जाएगा तो केवल वह जो परमेश्वर देगा, अन्य सभी यही छूट जाएगा, नाश हो जाएगा (1 यूहन्ना 2:15-17)। इसलिए यदि आपको अपने मसीही जीवन में कुछ सुधार करने हैं, तो अभी समय और अवसर रहते कर लीजिए; बाद में यदि देर हो गई, तो बहुत भारी हानि में पड़ जाएंगे।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी। 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • लैव्यव्यवस्था 11-12        
  • मत्ती 26:1-25