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शनिवार, 30 अक्तूबर 2021

मसीही विश्वास एवं शिष्यता - 30


मसीही विश्वासी के गुण (6) - क्रूस उठाकर चलने के लिए तैयार रहता है 

सुसमाचारों में दिए गए प्रभु यीशु मसीह के शिष्य के गुणों में से यह छठा गुण है कि मसीही विश्वासी, प्रभु यीशु के कहे के अनुसार, अपना इनकार करते हुए प्रतिदिन अपना क्रूस उठाकर चलने को तैयार रहता है। प्रभु यीशु ने अपने शिष्यों से कहा है:

लूका 9:23 उसने सब से कहा, यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आप से इनकार करे और प्रति दिन अपना क्रूस उठाए हुए मेरे पीछे हो ले

       लूका 14:27 और जो कोई अपना क्रूस न उठाए; और मेरे पीछे न आए; वह भी मेरा चेला नहीं हो सकता

       आजक्रूस उठाकर चलनाएक मुहावरा बन कर रह गया है, और इससे उसका महत्व बहुत कम हो गया है। लोग किसी भी व्यक्तिगत कठिनाई, संकट, परेशानी, को अपना क्रूस बताने लगे हैं, और कठिनाइयों को झेलने को क्रूस उठाना कहने लगे हैं। किन्तु इसका वास्तविक और सही तात्पर्य बिल्कुल भिन्न है। वाक्यांशक्रूस उठाकर चलनाके वास्तविक अर्थ को समझने के लिए इसके ऐतिहासिक अभिप्राय एवं प्रयोग को देखना होगा। प्रभु यीशु मसीह की पृथ्वी की सेवकाई के दिनों में क्रूस समाज के सबसे निकृष्ट और जघन्य अपराधियों को एक बहुत क्रूर और पीड़ादायक मृत्यु देने का तरीका था, जिसमें अपराधी बहुत धीरे-धीरे किन्तु अत्यधिक पीड़ा के साथ क्रूस पर टंगे-टंगे मरता था, कई बार उसे मरने में एक दिन से भी अधिक का समय लग जाता। क्रूस पर चढ़ाए जाने से पहले उस अपराधी को कोड़े मारने, पीटने, आदि के द्वारा सैनिक यातनाएं देते थे, फिर उस घायल अवस्था में उसी से उसका काठ का बना भारी क्रूस उठवाकर उसे मारे जाने के सार्वजनिक स्थान पर ले जाते थे, जहाँ पर फिर उसे नंगा कर के उसके हाथों और पैरों को काठ पर ठोक कर, उसे धीरे-धीरे मरने के लिए छोड़ दिया जाता था, और मरने के समय तक उसका उपहास, और उसे यातना देना चलता रहता था। 

इसलिए उस समय के समाज में जब लोग किसी को क्रूस उठाए जाते हुए देखते थे, तो उनके लिए उसमें कुछ बातें निहित और स्पष्ट होती थीं। देखने वाले जानते और समझते थे कि:

  • वह व्यक्ति कोई बहुत जघन्य अपराधी है 
  • उसने कुछ बहुत घृणित और निंदनीय कार्य किए हैं 
  • इस कारण वह निन्दा, उपहास, और मृत्यु दण्ड के योग्य है 
  • जहाँ वह व्यक्ति जा रहा है, वहाँ से अब वह जीवित वापस नहीं आएगा, केवल उसकी लाश ही लाई जाएगी। 

प्रभु यीशु मसीह पर इनमें में से कोई भी बात लागू नहीं होती थी, फिर भी प्रभु ने अपनी ईश्वरीय महिमा, अपने स्वर्गीय वैभव, अपने परमेश्वरत्व के स्तर एवं सम्मान को छोड़ कर, यह सब, मेरे, आपके, और समस्त संसार के सभी लोगों के उद्धार का मार्ग बनाने के लिए, स्वेच्छा से, परमेश्वर पिता की आज्ञाकारिता में (इब्रानियों 10:5-7; यूहन्ना 4:34; 6:38), सहना स्वीकार कर लिया, और सह लिया।

उपरोक्त तथ्यों के आधार पर हम निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि जब प्रभु ने अपने शिष्यों से कहा कि उनके पीछे आने के लिए वे प्रतिदिन अपना क्रूस उठाकर उनके पीछे चलने के लिए तैयार रहें, तो उनका क्या अर्थ रहा होगा। प्रकट है कि प्रभु का अर्थ किसी व्यक्ति के द्वारा अपनी किसी व्यक्तिगत समस्या के लिए कठिनाई अथवा परेशानी का सामना करना नहीं था। स्वाभाविक अर्थ है कि जो भी प्रभु यीशु का शिष्य बनना चाहे, उनका अनुसरण करना चाहे, जैसे परमेश्वर की आज्ञाकारिता में प्रभु ने संसार और समाज से अनुचित और अकारण उपहास, निन्दा और अत्यधिक यातनाएं सहीं, उसी प्रकार वह शिष्य भी, मत्ती 10:16-20 तथा रोमियों 8:17-18 के अनुसार, प्रभु के अनुसरण, परमेश्वर के वचन की आज्ञाकारिता, और सुसमाचार प्रचार  के लिए, प्रतिदिन:

  • अकारण अपमानित होने और निन्दा सहने के लिए तैयार रहे
  • लोगों के हाथों मारे-पीटे, यातनाएं दिए जाने, और दुख उठाने के लिए तैयार रहे 
  • अपने प्राणों तक को बलिदान करने के लिए तैयार रहे (यूहन्ना 16:1-2)

अर्थात, जब प्रभु यीशु का शिष्य प्रभु की सेवकाई के लिए, प्रभु की आज्ञाकारिता में, घर से बाहर निकले तो किसी भी दुर्दशा, अथवा मृतक अवस्था में वापस लौटने के विचार के साथ निकले; और यह उसके लिए एक-दो दिन, अथवा यदा-कदा की नहीं, वरन प्रतिदिन की बात हो। साथ ही उसके अन्दर अपने लिए कोई महत्वाकांक्षा, किसी आदर-सम्मान को पाने, लोगों में कुछ स्तर रखने, अपने आप को किसी योग्य अथवा कुछ समझने की भावना न हो।  

 यदि आप प्रभु यीशु मसीह के शिष्य हैं, तो प्रभु यीशु की शिष्यता की इस कसौटी पर आज अपने आप को कहाँ खड़ा हुआ पाते हैं? क्या आप वास्तव में प्रभु यीशु के पीछे चलने में उसके लिए, उसके वास्तविक अर्थ में, अपना क्रूस उठाने के लिए तैयार हैं; या यह आपके लिए केवल एक वाक्यांश है, जिसका निर्वाह आपको संभव नहीं लगता है? क्या अपने आप को प्रभु यीशु का शिष्य कहना आप के लिए एक औपचारिकता निभाना है, या आप सच्चे मन से उसके समर्पित और आज्ञाकारी शिष्य हैं

और यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी उसके पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • यिर्मयाह 20-21
  • 2 तिमुथियुस