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शुक्रवार, 23 दिसंबर 2016

उपहार


   जब हमारे बच्चे छोटे थे और हमारे साथ घर पर रहा करते थे, तब क्रिसमस की प्रातः की हमारी पारिवारिक परंपरा बड़ी साधारण परन्तु बहुत अर्थपूर्ण होती थी। हम अपने परिवार को क्रिसमस ट्री के चारों ओर एकत्रित करते, जहाँ वे सारे उपहार रखे होते थे जिन्हें हम एक दूसरे को देने के लिए लाए थे; और हम सब मिलकर क्रिसमस की कहानी को पढ़ते थे। यह एक कोमल स्मरण करवाना होता था कि हम एक दूसरे को उपहार इसलिए नहीं देते हैं क्योंकि मसीह यीशु के जन्म के समय उससे मिलने आने वाले लोग उपहार लेकर आए थे। वरन, हमारा एक दूसरे को प्रेम की भेंटों का उपहार देना, परमेश्वर के हमारे प्रति व्यक्त किए गए अति महान प्रेम की एक छोटी झलक को दिखाना था।

   जब हम क्रिसमस कथा की उन परिचित घटनाओं - स्वर्गदूतों का सन्देश देना, चरवाहों का आना, चरनी का दृश्य आदि को दोहराते थे, हमारी आशा होती थी कि उस प्रथम क्रिसमस पर जो परमेश्वर ने हमारे लिए किया उसकी महानता और महत्वता का एहसास, एक दूसरे के प्रति हमारे प्रेम प्रदर्शित करने के प्रत्येक प्रयास से कहीं अधिक बढ़कर होने पाए।

   अपने पुत्र को हमारे पापों से छुटकारे के लिए बलिदान होने भेजने के उपहार के सामने अन्य प्रत्येक उपहार बहुत छोटा और नगण्य है; यह वह यथार्थ है जिसे प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थुस की मण्डली को लिखी अपने पत्री व्यक्त करते हुए कहा: "परमेश्वर को उसके उस दान के लिये जो वर्णन से बाहर है, धन्यवाद हो" (2 कुरिन्थियों 9:15)।

   स्पष्ट है कि परमेश्वर का अपने पुत्र को हमारा मुक्तिदाता, उद्धारकर्ता बनाकर भेजना एक ऐसा उपहार है जिसे हम शब्दों में कभी पूर्णतया बयान नहीं कर सकेंगे। लेकिन हम इसी उपहार के उपलक्ष्य में क्रिसमस का उत्सव मनाते हैं; क्रिसमस पर महत्वपूर्ण वे उपहार नहीं है जो हम एक दूसरे को देते हैं, वरन सबसे अधिक महत्वपूर्ण वह उपहार है जो परमेश्वर ने हम मनुष्यों को दिया है। - बिल क्राउडर


प्रभु यीशु स्वयं वह सर्वोत्तम तथा महानतम उपहार हैं 
जो मानव जाति को कभी भी दिया गया हो।

क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है। - रोमियों 6:23

बाइबल पाठ: रोमियों 8:28-35
Romans 8:28 और हम जानते हैं, कि जो लोग परमेश्वर से प्रेम रखते हैं, उन के लिये सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती है; अर्थात उन्हीं के लिये जो उस की इच्छा के अनुसार बुलाए हुए हैं। 
Romans 8:29 क्योंकि जिन्हें उसने पहिले से जान लिया है उन्हें पहिले से ठहराया भी है कि उसके पुत्र के स्वरूप में हों ताकि वह बहुत भाइयों में पहिलौठा ठहरे। 
Romans 8:30 फिर जिन्हें उसने पहिले से ठहराया, उन्हें बुलाया भी, और जिन्हें बुलाया, उन्हें धर्मी भी ठहराया है, और जिन्हें धर्मी ठहराया, उन्हें महिमा भी दी है। 
Romans 8:31 सो हम इन बातों के विषय में क्या कहें? यदि परमेश्वर हमारी ओर है, तो हमारा विरोधी कौन हो सकता है? 
Romans 8:32 जिसने अपने निज पुत्र को भी न रख छोड़ा, परन्तु उसे हम सब के लिये दे दिया: वह उसके साथ हमें और सब कुछ क्योंकर न देगा? 
Romans 8:33 परमेश्वर के चुने हुओं पर दोष कौन लगाएगा? परमेश्वर वह है जो उन को धर्मी ठहराने वाला है। 
Romans 8:34 फिर कौन है जो दण्ड की आज्ञा देगा? मसीह वह है जो मर गया वरन मुर्दों में से जी भी उठा, और परमेश्वर की दाहिनी ओर है, और हमारे लिये निवेदन भी करता है। 
Romans 8:35 कौन हम को मसीह के प्रेम से अलग करेगा? क्या क्लेश, या संकट, या उपद्रव, या अकाल, या नंगाई, या जोखिम, या तलवार?

एक साल में बाइबल: 
  • नहूम 1-3
  • प्रकाशितवाक्य 14