मैं और मेरे पति, पिछली गर्मियों में वापस अपने शहर ट्रेन से लौट रहे थे। हमें जो बैठने की सीटें मिली थीं उनका रुख ट्रेन के पीछे की ओर था, अर्थात हमारी पीठ ट्रेन के आगे की ओर और हमारे मुख ट्रेन के पीछे की ओर थे। ट्रेन की खिड़की से बाहर का दृश्य दिखाई दे रहा था, किंतु हम केवल वह देख रहे थे जो हमसे पीछे की ओर निकलता जा रहा था, हमारे सामने से आने वाला दृश्य हम देख नहीं सकते थे। मुझे यह अच्छा नहीं लग रहा था; मैं देखना चाहती थी कि मैं जिस ओर जा रही हूँ वहां आगे क्या है।
कुछ ऐसा ही जीवन के संबंध में भी हमारे साथ होता है - हम उत्सुक्त रहते हैं कि हम जान सकें कि आगे क्या होने वाला है। हमारी इच्छा रहती है कि हम जान सकें कि परिस्थितियों का क्या परिणाम होगा; परमेश्वर हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर किस प्रकार से देगा। लेकिन हमारी उस ट्रेन यात्रा के समान, हम केवल वह ही देख पाते हैं जो पीछे की ओर निकल गया है, आगे से आने वाला नहीं। लेकिन हमारे विश्वास की आंखें हमें दिखातीं हैं कि हमारे लिए आगे क्या रखा हुआ है।
परमेश्वर के वचन बाइबल में इब्रानियों का ११वां अध्याय ’विश्वास का अध्याय’ कहा जाता है, क्योंकि इसमें उन लोगों का उल्लेख है जो विश्वास के साथ परमेश्वर के साथ बने रहे और आगे बढ़ते रहे। इस अध्याय में इन विश्वास के योद्धाओं में से कुछ ने दो प्रकार की बातें अपनी विश्वास की आंखों से देखीं। एक प्रकार की बात देखने वाले लोग थे नूह, इब्राहिम और सारा: "ये सब विश्वास ही की दशा में मरे; और उन्होंने प्रतिज्ञा की हुई वस्तुएं नहीं पाईं, पर उन्हें दूर से देखकर आनन्दित हुए और मान लिया, कि हम पृथ्वी पर परदेशी और बाहरी हैं। पर वे एक उत्तम अर्थात स्वर्गीय देश के अभिलाषी हैं..." (इब्रानियों ११:१३, १६)। विश्वास द्वारा दूसरी प्रकार की बात देखने वाला है मूसा जिसने ’अनदेखे’ अर्थात प्रभु यीशु को विश्वास की आंखों से देखा: "इसलिये कि उसे पाप में थोड़े दिन के सुख भोगने से परमेश्वर के लोगों के साथ दुख भोगना और उत्तम लगा। और मसीह के कारण निन्दित होने को मिसर के भण्डार से बड़ा धन समझा: क्योंकि उस की आंखे फल पाने की ओर लगी थीं। विश्वास ही से राजा के क्रोध से न डरकर उस ने मिसर को छोड़ दिया, क्योंकि वह अनदेखे को मानों देखता हुआ दृढ़ रहा" (इब्रानियों ११:२५-२७)।
अपने जीवन में आज के संघर्षों के फल को हम चाहे देख ना पाएं, लेकिन प्रत्येक मसीही विश्वासी अपने विश्वास की आंखों से देख सकता है कि वह कहां जा रहा है - अपने स्वर्गीय वतन और घर जहां वह अपने प्रभु और उद्धारकर्ता के साथ अनन्त तक रहेगा और वहां "वह उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं" (प्रकाशितवाक्य २१:४)। - ऐनी सेटास
स्वर्ग की प्रतिज्ञा हमारी अनन्त आशा है।
सो जब तुम मसीह के साथ जिलाए गए, तो स्वर्गीय वस्तुओं की खोज में रहो, जहां मसीह वर्तमान है और परमेश्वर के दाहिनी ओर बैठा है। पृथ्वी पर की नहीं परन्तु स्वर्गीय वस्तुओं पर ध्यान लगाओ। - कुलुस्सियों ३:१-२
बाइबल पाठ: इब्रानियों ११:१३-१६; २३-२७
Heb 11:13 ये सब विश्वास ही की दशा में मरे; और उन्होंने प्रतिज्ञा की हुई वस्तुएं नहीं पाई, पर उन्हें दूर से देखकर आनन्दित हुए और मान लिया, कि हम पृथ्वी पर परदेशी और बाहरी हैं।
Heb 11:14 जो ऐसी ऐसी बातें कहते हैं, वे प्रगट करते हैं, कि स्वदेश की खोज में हैं।
Heb 11:15 और जिस देश से वे निकल आए थे, यदि उस की सुधि करते तो उन्हें लौट जाने का अवसर था।
Heb 11:16 पर वे एक उत्तम अर्थात स्वर्गीय देश के अभिलाषी हैं, इसी लिये परमेश्वर उन का परमेश्वर कहलाने में उन से नहीं लजाता, सो उस ने उन के लिये एक नगर तैयार किया है।
Heb 11:23 विश्वास ही से मूसा के माता पिता ने उस को, उत्पन्न होने के बाद तीन महीने तक छिपा रखा; क्योंकि उन्होंने देखा, कि बालक सुन्दर है, और वे राजा की आज्ञा से न डरे।
Heb 11:24 विश्वास ही से मूसा ने सयाना होकर फिरौन की बेटी का पुत्र कहलाने से इन्कार किया।
Heb 11:25 इसलिये कि उसे पाप में थोड़े दिन के सुख भोगने से परमेश्वर के लोगों के साथ दुख भोगना और उत्तम लगा।
Heb 11:26 और मसीह के कारण निन्दित होने को मिसर के भण्डार से बड़ा धन समझा: क्योंकि उस की आंखे फल पाने की ओर लगी थीं।
Heb 11:27 विश्वास ही से राजा के क्रोध से न डरकर उस ने मिसर को छोड़ दिया, क्योंकि वह अनदेखे को मानों देखता हुआ दृढ़ रहा।
एक साल में बाइबल:
- श्रेष्ठगीत ६-८
- गलतियों ४