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मंगलवार, 28 दिसंबर 2021

मसीही सेवकाई और पवित्र आत्मा के वरदान - 26


वरदानों का प्रयोग - रोमियों 12:3 - स्व-आँकलन के साथ 

परमेश्वर पवित्र आत्मा ने पौलुस में होकर रोमियों 12 अध्याय के पहले दो पदों में मसीही सेवकाई के लिए अनिवार्य मसीही विश्वासी की सही मानसिकता के बारे में लिखवाया।  इन दोनों पदों से हमने देखा था कि मसीही सेवकाई के लिए मसीही विश्वासी को परमेश्वर के प्रति पूर्णतः समर्पित, और आज्ञाकारी होना चाहिए, साथ ही पापों की क्षमा और उद्धार के द्वारा उसके जीवन में आए भीतरी परिवर्तन को व्यावहारिक जीवन में भी प्रकट होना चाहिए। यह व्यावहारिक परिवर्तन ही उसके जीवन में उद्धार और पवित्र आत्मा के कार्य को प्रमाणित करता है; परमेश्वर के वचन बाइबल में इसका और कोई प्रमाण नहीं दिया गया है। सही मानसिकता और वास्तविक समर्पण तथा पूर्ण आज्ञाकारिता के बाद, पवित्र आत्मा की अगुवाई में पौलुस मसीही विश्वासी के लिए अनिवार्य एक और बात के लिए कहता है - स्वयं का आँकलन करना। 

पौलुस यह स्पष्ट कर देता है कि यह बात कहने का अधिकार उसे उसकी सेवकाई की नियुक्ति के द्वारा, परमेश्वर से मिला है। वह कहता है, “क्योंकि मैं उस अनुग्रह के कारण जो मुझ को मिला है, तुम में से हर एक से कहता हूं...”; और 1 कुरिन्थियों 15:9-10 में वह इसअनुग्रहके विषय बताता है कि यह उसका परमेश्वर द्वारा प्रेरित नियुक्त करके सुसमाचार की सेवकाई के लिए ठहराया जाना है, जिसकी पुष्टि फिर वह रोमियों 1:1 और अपनी सभी पत्रियों के आरंभ में करता है। अर्थात, परमेश्वर के द्वारा उसे सौंपे गए दायित्व के निर्वाह के लिए वह मसीही विश्वासियों को मसीही विश्वास और जीवन से संबंधित उन शिक्षाओं से अवगत करवाता था, जो परमेश्वर उसे औरों के लिए बताता था। यह मसीही सेवकाई के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण शिक्षा है, जिसका निर्वाह करना बहुत से लोगों को कठिन लगता है। आज प्रचारकों और उपदेशकों को लोगों की प्रशंसा करने, उन से लुभावनी बातें कहने में कोई संकोच नहीं होता है; किन्तु खरी और सही शिक्षा देने में उन्हें संकोच होता है कि कहीं लोगों को बुरा न लग जाए (जो अन्त के दिनों का एक चिह्न है - 2 तिमुथियुस 4:1-5) - चाहे उनके सच्चाई न बताने के कारण परमेश्वर को बुरा लगता रहे। हर मसीही सेवक को गलातियों 1:10 “यदि मैं अब तक मनुष्यों को ही प्रसन्न करता रहता, तो मसीह का दास न होताहमेशा स्मरण रखना चाहिए, और उसके अनुसार अपनी सेवकाई का निर्वाह करना चाहिए।

रोमियों 12:3 में कही गई अगली बात है कि यह शिक्षाहर एकके लिए है। यह केवल उनके लिए नहीं है जो प्रचार करने या शिक्षा देने, अथवा मण्डली की देख-भाल और संचालन के कार्य में लगे हैं। मसीही सेवकाई से संबंधित ये शिक्षाएं मण्डली के हर एक सदस्य, प्रत्येक मसीही विश्वासी के लिए हैं, क्योंकि परमेश्वर ने सभी के लिए कुछ भले कार्य निर्धारित किए हैं (इफिसियों 2:10), और परमेश्वर पवित्र आत्मा ने सभी की भलाई के लिए मण्डली के सभी सदस्यों को उनकी सेवकाई के अनुसार वरदान दे दिए हैं (1 कुरिन्थियों 12:7, 11)। इसलिए इस सेवकाई को सुचारु रीति से करना और वरदानों का सदुपयोग करना भी सभी मसीही विश्वासियों को आना चाहिए। इस कार्य के लिए, पद 1 और 2 के समर्पण, आज्ञाकारिता, और व्यावहारिक जीवन में प्रकट होने वाले भीतरी परिवर्तन के बाद, अगला कदम है अपने विषय सही आँकलन करना और सही दृष्टिकोण रखना। 

एक स्वाभाविक मानवीय प्रवृत्ति है कि जब किसी को कोई विशेष ज़िम्मेदारी दी जाती है, तो उसमें इस बात को लेकर विशिष्ट होने का विचार भी आ जाता है, जिसे फिर शैतान उकसा कर अपने आप को औरों से उच्च समझने की मानसिकता और घमण्ड में परिवर्तित करके उस व्यक्ति को पाप में फंसा देता है, परमेश्वर की सेवकाई के लिए उसे अप्रभावी बना देता है। शैतान की इस युक्ति में फँसने से बचने के लिए प्रत्येक मसीही विश्वासी को पौलुस के समानपरन्तु मैं जो कुछ भी हूं, परमेश्वर के अनुग्रह से हूं: और उसका अनुग्रह जो मुझ पर हुआ, वह व्यर्थ नहीं हुआ परन्तु मैं ने उन सब से बढ़कर परिश्रम भी किया: तौभी यह मेरी ओर से नहीं हुआ परन्तु परमेश्वर के अनुग्रह से जो मुझ पर था” (1 कुरिन्थियों 15:10) की मानसिकता के साथ कार्य करना चाहिए। अर्थात, अपने मसीही विश्वासी होने को, या अपने प्रभु के लिए किसी रीति से और किसी कार्य के उपयोगी होने को, अपनी किसी योग्यता अथवा गुण के कारण न समझे, वरन, केवल और केवल परमेश्वर के अनुग्रह में उसे दी गई ऐसी ज़िम्मेदारी, जिसे उसे परमेश्वर की इच्छा के अनुसार, उसी के दिए वरदान के द्वारा निभाना है, समझे।

पौलुस इस बात को और स्पष्ट करते हुए कहता है कि जैसा और जितना परमेश्वर ने बनाया और दिया है, उस से बढ़कर कोई अपने आप को न समझे। इसके लिए प्रत्येक मसीही विश्वासी कोसुबुद्धिके साथ अपने आप को जाँचने, अपना आँकलन करने वाला होना चाहिए। औरों को जाँचना, उनकी आलोचना करना, उनके स्तर को समझना और पहचानना तथा लोगों के सामने औरों के बारे में अपने आँकलन का बयान करना तो बहुत सहज होता है। किन्तु इसी माप-दण्ड को अपने ऊपर लागू करके, इसी के अनुसार अपना सही आँकलन करना बहुत कठिन होता है। और इससे भी कठिन होता है खराई से यह स्व-आँकलन करने के पश्चात, परमेश्वर के समक्ष उसका अंगीकार करके, अपने आप को उसके अनुसार सुधारना, या सुधारे जाने के लिए अपने आप को परमेश्वर के हाथों में सौंप देना। परमेश्वर का वचन हमें दोनों ही बातों की शिक्षा और उदाहरण प्रदान करता है। पवित्र आत्मा की अगुवाई में पौलुस 1 कुरिन्थियों 11:27-32 में बलपूर्वक यह निर्देश देता है कि प्रत्येक मसीही विश्वासी को, प्रभु की मेज़ में भाग लेने से पहले, अपने आप को जाँच लेना चाहिए। जो ऐसा करता है, वह फिर परमेश्वर से दण्ड पाने से बच जाता है, वरन उसकी आशीषों का संभागी हो जाता है। इसी प्रकार से स्व-आँकलन का एक लिखित प्रमाण दाऊद द्वारा लिखा गया भजन 51 है, जो उसने बतशेबा तथा उसके पति ऊरिय्याह के साथ किए गए पाप के लिए नातान द्वारा उसे बताए जाने के बाद लिखा था। इस भजन में दाऊद न केवल अपने पाप का अंगीकार कर रहा है, वरन अपने आप को शुद्धि के लिए परमेश्वर के हाथों में भी छोड़ दे रहा है।  खराई से अपने स्व-आँकलन करने, पाप मान लेने, और अपने आप को परमेश्वर के हाथों में छोड़ देने की इसी प्रवृत्ति के कारण दाऊद को बाइबल मेंपरमेश्वर के मन के अनुसार” (प्रेरितों 13:22) व्यक्ति कहा गया है।

यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो यह स्व-आँकलन करने की व्यावहारिक मानसिकता आप के लिए भी अनिवार्य है। परमेश्वर किसी में विद्यमान किसी भी घमण्ड के साथ कार्य नहीं कर सकता है। आप परमेश्वर के लिए तब ही उपयोगी होंगे, आप परमेश्वर से तब ही आशीषें प्राप्त करेंगे, जब आप अपने अंदर झांक कर, अपने मन की वास्तविक स्थिति को परमेश्वर के सामने मान लेने वाले और उसके सुधार के लिए उसके हाथों में अपने आप को छोड़ देने वाले बनेंगे। वह आपकी वास्तविकता आप से पहले, आप से अधिक गहराई से, और आप से बेहतर जानता है (1 इतिहास 28:9)। किन्तु वह चाहता है कि आप भी अपनी वास्तविकता को जानें और मानें, जिससे वह आपको अपनी सामर्थ्य से परिपूर्ण करके अपने लिए उपयोगी, अपनी मण्डली के लिए उन्नति का कारण, स्वयं आपके लिए आशीषें अर्जित करने वाला बना सके।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी। 

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • ज़कर्याह 5-8     
  • प्रकाशितवाक्य 19