आत्मिक वरदानों के
प्रयोगकर्ता (2)
पिछले लेख में हमने परमेश्वर पवित्र
आत्मा द्वारा मसीही सेवकाई के लिए मसीही विश्वासियों को दिए जाने वाले वरदानों के
प्रयोगकर्ताओं के बारे में देखा था। हम यह भी देख चुके हैं कि न तो कोई मसीही
सेवकाई, और न
ही कोई आत्मिक वरदान, औरों की तुलना में छोटा या बड़ा,
अथवा अधिक या कम महत्वपूर्ण है। परमेश्वर की दृष्टि में सभी का समान
स्तर है, सभी समान रीति से महत्वपूर्ण हैं, और जिसे जो सेवकाई और वरदान परमेश्वर ने दिया है, वही
उसके लिए आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है; उसके प्रतिफल और आशीषें
उसी सेवकाई को उचित रीति से पूरा करने से हैं। किसी अन्य की सेवकाई अथवा वरदानों
की लालसा करना, उन्हें माँगने की प्रार्थनाएं करना, और अपनी सेवकाई और वरदानों को गौण समझना वचन के अनुसार सही नहीं है।
मण्डली में विभिन्न वरदानों की उपयोगिता
के आधार पर 1 कुरिन्थियों
12:28 में संख्या के साथ एक क्रम दिया गया है; यह क्रम मण्डली में उपयोगिता की वरीयता को दर्शाने के लिए है, वरदानों अथवा सेवकाइयों को बड़ा या छोटा दिखाने के लिए नहीं। इस क्रम के
अनुसार, सबसे अधिक उपयोगी हैं वचन की सेवकाई से संबंधित,
प्रेरित, भविष्यद्वक्ता, और शिक्षक होने के वरदान। इसके बाद सामर्थ्य के काम करने, चंगा करने वाले, और उपकार करने वाले
वरदान हैं, और मण्डली में उपयोगिता के आधार पर अंत में
विभिन्न प्रकार की भाषाएं बोलने और उनके अनुवाद करने के वरदान हैं - क्योंकि इन
भाषाओं से संबंधित वरदानों की उपयोगिता तब ही पड़ेगी जब कोई परदेशी या विदेशी प्रचारक
अथवा सेवक, जो स्थानीय भाषा नहीं जानता है, वचन की सेवकाई के लिए उस मण्डली में आए; अन्यथा
मण्डली के प्रतिदिन के कार्यों में उन भाषाओं संबंधी वरदानों की कोई आवश्यकता नहीं
है। किन्तु आज लोगों में पहले तीन, सबसे उपयोगी वरदानों की
अपेक्षा अंतिम वरदानों की लालसा बहुत अधिक है, और “अन्य भाषा बोलने” के वरदान को लेकर तो बहुत सी गलत
शिक्षाएं और धारणाएं बताई और सिखाई जाती हैं, वचन के
दुरुपयोग द्वारा लोगों को बहकाया जाता है।
इसी प्रकार यदि हम इफिसियों 4:11-13 को देखें,
“और उसने कितनों को भविष्यद्वक्ता नियुक्त कर के, और कितनों को सुसमाचार सुनाने वाले नियुक्त कर के, और
कितनों को रखवाले और उपदेशक नियुक्त कर के दे दिया। जिस से पवित्र लोग सिद्ध हों
जाएं, और सेवा का काम किया जाए, और
मसीह की देह उन्नति पाए। जब तक कि हम सब के सब विश्वास, और
परमेश्वर के पुत्र की पहचान में एक न हो जाएं, और एक सिद्ध
मनुष्य न बन जाएं और मसीह के पूरे डील डौल तक न बढ़ जाएं” तो भी इसी बात की पुष्टि हो जाती है कि मण्डली की, प्रभु
की देह - उसकी कलीसिया की, प्राथमिक आवश्यकता वचन की सेवकाई
और वचन की शिक्षा देने वाले हैं। यदि वचन की सेवकाई ठीक से होगी, तो जैसा इफिसियों में लिखा है, पवित्र लोग, अर्थात मण्डली के लोग, सिद्ध होंगे, सेवा का काम किया जाएगा, मसीह की देह उन्नति पाएगी।
यही कारण है कि मण्डली में उपयोगिता के आधार पर 1 कुरिन्थियों
12:28 में वरदानों की उपयोगिता के पहले तीन स्थान वचन की
सेवकाई से संबंधित वरदानों को दिए गए हैं।
किन्तु इन पहले तीन वरदानों को लेकर भी
आज असमंजस और तरह-तरह की शिक्षाओं का बोल-बाला हो गया है। बहुत से लोग अपने आप को “प्रेरित (Apostle)”,
या “भविष्यद्वक्ता (Prophet)” कहने लग गए हैं; किन्तु अपने आप को शिक्षक शायद ही
कोई कहता है। इन लोगों के नाम के साथ “प्रेरित (Apostle)”,
या “भविष्यद्वक्ता (Prophet)” उपाधि लगाकर इंटरनेट पर वीडियो एवं प्रचार संदेशों की भरमार है। इसी
प्रकार से “सामर्थ्य के काम करने वाले (Miracle
Workers)” या “चंगा करने वालों (healers)” का भी बहुत नाम और प्रचार होता है। किन्तु वचन की
खरी सेवकाई और सही शिक्षाएं देने वालों की संख्या बहुत कम है; जो वचन की सही सेवकाई करते भी हैं, लोग उन्हें अधिक
पसंद नहीं करते हैं; जो पवित्र आत्मा द्वारा 2 तिमुथियुस 4:3-4
की भविष्यवाणी, “क्योंकि ऐसा समय आएगा,
कि लोग खरा उपदेश न सह सकेंगे पर कानों की खुजली के कारण अपनी
अभिलाषाओं के अनुसार अपने लिये बहुतेरे उपदेशक बटोर लेंगे। और अपने कान सत्य से
फेरकर कथा-कहानियों पर लगाएंगे” की पूर्ति है। परमेश्वर
पवित्र आत्मा ने जब पौलुस प्रेरित के द्वारा ये पत्रियाँ लिखवाई थीं, उस समय के पत्रियों के उन प्राथमिक पाठकों के लिए जो “प्रेरित”, “भविष्यद्वक्ता”, आदि
उपाधियों का अर्थ था, वही
आज भी इन शब्दों का प्राथमिक अर्थ है, जिसे, क्योंकि परमेश्वर का वचन और बात कभी बदलती नहीं है, इसलिए
बदला या नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता है; उस मूल अर्थ के स्थान
पर आज अन्य अर्थ लागू नहीं किए जा सकते हैं, अन्यथा यह वचन
को बदलने और उसे अटल के स्थान पर परिवर्तनीय बनाना होगा। हम अगले लेख में परमेश्वर
के वचन बाइबल में दिए गए “प्रेरित”, “भविष्यद्वक्ता”,
आदि शब्दों के अर्थ और अभिप्रायों को देखेंगे।
यदि आप मसीही विश्वासी हैं तो आपको यह ध्यान
रखना अनिवार्य है कि आप परमेश्वर के वचन की सच्चाई का प्रचार और प्रसार खराई के
साथ करें। लोगों द्वारा अपने आप को दी जाने वाली उपाधियों से प्रभावित होकर उनके
बारे कोई अनुचित धारणाएं न बना लें, उनकी बातों को वचन की बातों से बढ़कर न समझें, और बेरिया के विश्वासियों के समान (प्रेरितों 17:11) हर बात को वचन से जाँच-परख कर ही स्वीकार करें।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक
स्वीकार नहीं किया है, तो
अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के
पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की
आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए
- उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से
प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ
ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस
प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद
करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया,
उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी
उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को
क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और
मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।”
सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा
भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- आमोस
1-3
- प्रकाशितवाक्य 6